https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 2022

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार शिव मानस पूजन , स्त्रोत्र ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार शिव मानस पूजन , स्त्रोत्र ।।


श्री यजुर्वेद श्री ऋग्वेद और श्री शिव महापुराण के अनुसार   शिव की मानस पूजा और स्त्रोत्र स्तुति।


1. शिव पूजन विधि 

મન થી કલ્પિત સામગ્રી દ્વારા કે જવાની પૂજા પણ માનસ પૂજા કહે છે | 







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આ પૂજા બ્રહ્મ પૂજા થી શાસ્ત્રો મે હઝાર ગુના મહત્વ પૂર્ણ થયું છે | 

मानस पूजा का आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी वर्णन किया | 







जो लक्ष्मी की प्राप्ति की इच्छा हो वो कमल, बिल्वपत्र, शतपत्र और शंख पुष्प भगवान से शिव की पूजा करें | 

જો એક લાખની સંખ્યામાં પુષ્પો દ્વારા ભગવાન શિવની પૂજા સંપન્ન થાય તો બધા જ પાપોનો નાશ થાય અને लक्ष्मी की भी प्राप्ती हो | 


2. बिल्व पत्र तोड़ने का निषिद्ध काल 
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिधि को सक्रांति के समय और सोमवार को बिल्वपत्र तोड़े, किन्तु बिल्वपत्र भगवान शिव को अति प्रिय है | 

અત: નિષિદ્ધ સમય પહેલાનો દિવસ થયો બિલ્વપત્ર ચઢાવવું જોઈએ | 

શાસ્ત્રે તો અહીં કહ્યું છે કે નવું બિલ્વપત્ર ન મળે તો ચઢાવે છે 

બિલ્વपत्र को ही फिर से शुद्ध जल से धोकर बार चढते हैं, मुझे कोई दोष नहीं है | 

फूल तोड़ते समय क्रमश: 

ॐ वरुणाय नमः: 

ॐ व्योमाय नमः 

ॐ पृथीवयो नमः बोले | 






3. માં બાસી જળ, ફૂલનો વિરોધ 

ભગવાન પર ચઢાયા, સુંઘા થયું આ અંગ સે લગાવ્યા ફળ-ફૂલ નિર્માલ્ય તુલ્ય હતું, અત: તે ન ચઢાયા | 

अपवित्र स्थान में उत्पन्न, अपवित्र पात्र में, आग से झुलसा हुआ, किड़ायुक्त, जो सुंदर न हो, जिसकी पंखुड़ियाँ बिखर हो, पृथ्वी पर गिरा हो, जो खिला न हो, निर्गंध य अगंध वाला फूल देवताओं पर न चढ़ा। | 

કાલીયનોને પ્રતિબંધિત છે | 

કિન્તુ આ નિયમ કમલ પુષ્પ પર લાગતો નથી | 

पुष्पादि चढाने उतारने की विधि 

તમારા હાથથી ત્રણ વાર આચમન કરો | 

हाथ धोने के बादिने हाथ में जल, पुष्प और चावलः 

ॐ नमः शिवाय: का मंत्र जप करते हैं।

भगवान शंकर का अनुरोध करें | 

तत बाद शिवलिंग पर जल चढ़ायाये | 

क्रम से दूध, दही, घी, शहद, शककर चढ़ाएं | 

और दोनो हाथो से शिव जी का ध्यान करे | 

तत्पश्चात क्रम से शुद्ध गंगा जल अथवा जल, इत्र और सुगन्धित जल से स्नान कराएं | 

क्रम से वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, चंदन, भस्म, कुमकुम, बेलपत्र, पुष्पमाला यदि प्रमाण हो तो सभी पत्र एवं मदार का पुष्प चढाएं | 

इसके बाद नित्य पूजन में गुर्च, तिल, जौ, धतूरे का पुष्प और फलते हुए धुप - दीप दिखाकर मिठाई का ही भोग भोग | 

फिर पान में कमल गट्टा, सुपाड़ी, इल्ली, लौंग रखकर भगवान को अर्पित करे इसके बाद फल चढ़ाएं |

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
  नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य,
  नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य॥

भावार्थ~ हे मेरे प्राणनाथ हे विश्वमूर्ते हे विभो आपको नमस्कार है नमस्कार है।

हे चिदानन्दमूर्ते आपको नमस्कार है नमस्कार है।

हे तप तथा योग से प्राप्तव्य प्रभो आपको नमस्कार है नमस्कार है।

हे वेदवेद्य भगवन् आपको नमस्कार है नमस्कार है…।

त्वदन्य: शरण्य: प्रपन्नस्य नेति
   प्रसीद स्मरन्नेव हन्यास्तु दैन्यम्।
न चेत्ते भवेद् भक्तवात्सल्यहानि-
 स्ततो मे दयालो दयां सन्निधेहि।।

अयं दानकालस्त्वहं दानपात्रं
  भवन्नाथ दाता त्वदन्यं न याचे।
भवद्भक्तिमेव स्थिरां देहि मह्यं
 कृपाशीलशम्भो कृतार्थोऽस्मि तस्मात्।।

हे शिवजी! 

मुझ शरणागत की रक्षा आपके सिवा और कौन कर सकता है? 

मैं जब भी आपका स्मरण करूं, उसी समय आप मुझपर प्रसन्न हों।

मेरी दीनता और दुखों का हरण करें। 

यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपकी दीनवत्सलता नष्ट हो जायेगी। 

हे दयालु! 

है नाथ!

आपके लिए यही दान का उचित समय है और मैं आपसे दान पाने के लिए सत्पात्र हूं।

 हे नाथ!

आप औढरदानी हैं और मैं आपके सिवाय अन्य किसी से भी याचना नहीं कर सकता हूं। 

मुझे तो केवल आपके चरणों की स्थिर भक्ति चाहिए। 

हे कृपाशील शम्भो! 

वही अविचल भक्ति मुझे प्रदान कर कृतार्थ करने की कृपा करें।

तीनों लोको के नाथ को, मन में लिया बसाया।
जीवन अब महादेव भरोसे वो ही पार लगाय।।

नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणाः।
 नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः।।

जिसे सभी मुनि सम्मान और श्रद्धा से प्रणाम करते हैं।

जिसे सभी देवता आदर और श्रद्धा से प्रणाम करते हैं।

जिसे सभी अप्सराएं सम्मान और श्रद्धा से नमन करती हैं।

जिसे मनुष्य भी सम्मान और श्रद्धा से नमन करते हैं।

मैं ऐसे शिव को नमन करता हूं।

जो देवताओं के देवता हैं।

महाकाल स्तोत्रं:-
 
दिन में एक बार जाप करने से कठीन से कठीन काम भी हो जाएगे आसान।

अधिकतर लोगों को पता होगा कि भगवान शंकर के अनेकों नाम है। 

भक्त भिन्न - भिन्न नामों से इनका गुणगान करते हैं।

कोई महादेव तो कोई भोलेनाथ, कोई अघोरी तो कोई शंभु। 

भोलेनाथ के अलग - अलग रूपों के कारण ही उनके इतने नाम हैं। 

इन्हें तंत्र साधना का जनक भी कहा जाता है।

इस लिए कोई भी तंत्र साधना उनके बिना पूरी नहीं होती। 

जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से इनकी अराधना करता है।

उसके जीवन से बड़े-बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं।

भगवान शिव का एक स्वरूप महाकाल का भी है।

यानि वे मृत्यु को भी अपने वश में रखते हैं।

महामृत्युंजय मंत्र के विषय में तो यह भी माना जाता है ।

कि वह आसन्न मृत्यु को भी टाल सकता है। 

लेकिन बहुत ही कम महाकाल स्तोत्रं के बारे में जानते हैं।

जिसे स्वयं भगवान शिव ने भैरवी को बताया था। 

इस स्तोत्रं में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों की स्तुति की गई है। 

धार्मिक ग्रंथों की मानें तो यह स्तोत्रं भगवान शिव के भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

प्रति दिन बस :

एक बार इस स्तोत्रं का जाप भक्त के भीतर नई ऊर्जा और शक्ति का संचार कर सकता है। 

इस स्तोत्रं का जाप आपको सफलता के बहुत निकट लेकर जा सकता है।

ॐ महाकाल महाकाय ।महाकाल जगत्पत।।

महाकाल महायोगिन ।महाकाल नमोस्तुते।।

महाकाल महादेव ।
महाकाल महा प्रभो।।

महाकाल महारुद्र ।
महाकाल नमोस्तुते।।

महाकाल महाज्ञान ।
महाकाल तमोपहन।।

महाकाल महाकाल ।महाकाल नमोस्तुते।।

भवाय च नमस्तुभ्यं ।
शर्वाय च नमो नमः।।


रुद्राय च नमस्तुभ्यं ।
पशुना पतये नमः।।

उग्राय च नमस्तुभ्यं ।महादेवाय वै नमः।।

भीमाय च नमस्तुभ्यं ।मिशानाया नमो नमः।।

ईश्वराय नमस्तुभ्यं ।
तत्पुरुषाय वै नमः।।

सघोजात नमस्तुभ्यं ।
शुक्ल वर्ण नमो नमः।।

अधः काल अग्नि रुद्राय ।
रूद्र रूप आय वै नमः।।

स्थितुपति लयानाम च ।
हेतु रूपआय वै नमः।।

*परमेश्वर रूप स्तवं ।
नील कंठ नमोस्तुते।।

पवनाय नमतुभ्यम ।
हुताशन नमोस्तुते।।

सोम रूप नमस्तुभ्यं 
सूर्य रूप नमोस्तुते।

यजमान नमस्तुभ्यं अकाशाया नमो नमः।।

सर्व रूप नमस्तुभ्यं ।
विश्व रूप नमोस्तुते।।

ब्रहम रूप नमस्तुभ्यं ।
विष्णु रूप नमोस्तुते।।

रूद्र रूप नमस्तुभ्यं ।
महाकाल नमोस्तुते।।

स्थावराय नमस्तुभ्यं ।
जंघमाय नमो नमः।।

नमः उभय रूपा भ्याम ।शाश्वताय नमो नमः।।

हुं हुंकार नमस्तुभ्यं। निष्कलाय नमो नमः।।

सचिदानंद रूपआय ।महाकालाय ते नमः।।

प्रसीद में नमो नित्यं मेघ वर्ण नमोस्तुते।
प्रसीद में महेशान दिग्वासाया नमो नमः।।

ॐ ह्रीं माया – स्वरूपाय सच्चिदानंद तेजसे।
स्वः सम्पूर्ण मन्त्राय सोऽहं हंसाय ते नमः।।

इत्येवं देव देवस्य मह्कालासय भैरवी ।
कीर्तितम पूजनं सम्यक सधाकानाम सुखावहम।।

     || जय श्री महाकाल ||

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!
🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-

PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏🙏



।। श्री ऋग्वेद , श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के अनुसार श्रीसूर्यपुराण की महत्वपूर्ण कहानी।।

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।। श्री ऋग्वेद , श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के अनुसार श्रीसूर्यपुराण की महत्वपूर्ण कहानी।।


गीताजी भावार्थ : 

अध्धाय १० श्लोक ३७ / हरे कृष्ण...! 

भगवान श्री कृष्ण अपनी विभूतियों का और विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए कहते हैं...! 

कि वृष्णिवंशियों में वासुदेव सबसे महान माने जाते हैं...! 

तो भगवान वृष्णिवंशियों में वासुदेव हैं। 

पांडवों में अर्जुन को सबसे महान माना जाता है...! 

तो पांडवों में अगर कहा जाए तो भगवान अर्जुन हैं। 

समस्त मुन्नियों में भगवान व्यास का स्थान सबसे प्रथम श्रेणी में रखा गया है...! 

तो भगवान मुनियों में व्यास मुनि हैं..!

और विचारकों में भगवान उशना है...! 

जो कि विचारकों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं...! 







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            💜
घर घर गीता लाना है...!

जीवन सरल बनाना है...!      
                 💚
मन में गीता...!

जीवन जीता...!     
        
        🙏जय श्री कृष्ण🙏

श्रीं सूर्यनारायण की दो भार्या और उनकी सन्तानों का वर्णन।

सुमन्त मुनि कहते हैं कि --







हे राजन् ! 

इतना सुन साम्ब ने नारदजी से कहा कि महाराज, आपने सूर्यनारायण का ऐसा महात्म्य वर्णन किया।

जिससे मेरे हृदय में दृढ़ भक्ति उत्पन्न हो गई। 

अब आप राज्ञी निक्षुभा, दण्डी और पिंगल आदि का वर्णन करें।

साम्ब का वचन सुनकर नारदजी कहने लगे कि हे साम्ब ! 

सूर्य भगवान की दो भार्याओं - 

एक राज्ञी, दूसरी निक्षुभा में राज्ञी को द्यौः 

अर्थात् आकाश को कहते हैं और निक्षुभा पृथ्वी का नाम है। 

श्रावण कृष्ण सप्तमी को द्यौः 

उन्हों के साथ और माघ कृष्ण सप्तमी को निक्षुभा के संग सूर्यनारायण का संयोग होता है।

तब इन दोनों के गर्भ होता है। 

द्यौः के गर्भ से जल उत्पन्न होता है और भूमि के गर्भ से जगत के कल्याण के अर्थ अनेक के सस्य अर्थात् खेती उपजते हैं। 

सस्य को देख अति हर्ष से ब्राह्मण हवन करते हैं।

प्रकार...!

स्वाहाकार स्वधाकार से देवता और पितरों की तृप्ति होती है।

अब ये दोनों जिसकी कन्या हैं। 

और इनकी जो सन्तानें हैं, 

उनका हम वर्णन करते हैं। 

ब्रह्मा के पुत्र परीचि, परीचि के कश्यप, कश्यप के हिरण्यकशिपु, हिरण्यकशिपु के प्रह्लाद और प्रह्लाद के विरोचन नामक पुत्र हुआ।

विरोचन की भगिनी विश्वकर्मा को ब्याही गई, जिसकी कन्या संज्ञा हुई। 

परीचि की सुरूपा नामक कन्या अंगिरा ऋषि को ब्याही गई, जिससे बृहस्पति उत्पन्न हुए। 

बृहस्पति की ब्रह्मवादिनी भगिनी आठवें वसु प्रभा से ब्याही गई, जिसका पुत्र सब शिल्प जानने वाला विश्वकर्मा हुआ। 

उसी का नाम त्वष्टा है। 

विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा को राज्ञी कहते हैं और उसको द्यौः तथा सुरेणु भी कहते हैं। 

उसी संज्ञा की छाया का नाम निक्षुभा है।

सूर्य भगवान की भार्या संज्ञा नामक बड़ी रूपवती और पतिव्रता थी...!

परन्तु सूर्यनारायण |

मनुष्य रूप से उनके समीप नहीं जाते थे। 

जिस रूप में जाते थे वह अति तेज से व्याप्त सूर्यनारायण का रूप सुन्दर न था।

इस लिए संज्ञा को नहीं रुचता था। 

संज्ञा से तीन सन्तानें हुई। 

परन्तु संज्ञा सूर्यनारायण के तेज से व्याकुल हो अपने पिता के घर चली गई और हजार वर्ष तक वहीं रही।

जब पिता ने संज्ञा को पति के घर जाने के लिए बहुत कहा...!

तब वह उत्तरकुरु प्रदेश को चली गई और घोड़ी का रूप धार तृण चरके अपना कालक्षेप करने लगी। 

सूर्यनारायण के समीप संज्ञा के रूप से छाया रहती थी।

सूर्य भगवान उसको संज्ञा ही जानते थे। 

उससे भी दो पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई।

श्रुतश्रवा और श्रुतकर्मा ये दो छाया के पुत्र और तपती नामक कन्या हुई। 

श्रुतश्रवा तो सावर्णि मनु हुआ और श्रुतकर्मा शनैश्चर नामक ग्रह हुआ। 

संज्ञा जिस प्रकार अपनी सन्तानों पर स्नेह करती थी, वैसा छाया ने न किया। 

इस बात को संज्ञा के ज्येष्ठ पुत्र मनु ने तो सहा; परन्तु छोटा पुत्र यम न सह सका। 

जब छाया ने बहुत ही क्लेश किया, तब क्रोध से यम ने भर्त्सना की और मारने को चरण उठाया।

यह देख क्रोध कर छाया ने यम को दिया कि हे दुष्ट! 

यह तेरा चरण गिर पड़े। 

माता के शाप से यम व्याकुल हो पिता के समीप गए। 

और सब वृतान्त कहा कि महाराज, यह माता हमसे स्नेह नहीं करती। 

मैंने भूल अथवा बालकपन से केवल चरण उठाया था।

परन्तु माता ने मुझे घोर शाप दिया। 

अब मेरे चरण की रक्षा आप ही करें। 

शाप....!

पुत्र का यह वचन सुनकर सूर्यनारायण ने कहा कि हे पुत्र ! 

इसमें कुछ बड़ा कारण होगा कि अति धर्मात्मा तुझ को माता के ऊपर क्रोध आया। 

सब शापों का प्रतिघात है...!

परन्तु माता का दिया शाप कभी अन्यथा नहीं हो सकता पर तेरे स्नेह से कुछ उपाय करते हैं। 

तेरे चरण के मांस को लेकर कृमि भूमि पर जाएँ।

इससे माता का शाप भी सत्य हो और तेरे चरण की रक्षा भी होगी।

सुमन्त मुनि कहते हैं कि हे राजन्! 

इस प्रकार पुत्र को आश्वासन देकर सूर्यनारायण ने छाया से कहा कि इससे तुम स्नेह क्यों नहीं करतीं? 

माता को सब सन्तानें समान माननी चाहिए। 

यह सुनकर भी छाया कुछ उत्तर न दिया। 

तब सूर्यनारायण क्रोध कर शाप देने को उद्यत हुए। 

छाया ने पति को अति क्रुद्ध देखकर भय से सब वृतान्त कह दिया ! 

इसी अवसर पर विश्वकर्मा वहाँ आए।

सूर्य नारायण ने अपने श्वसुर को क्रोधयुक्त देखकर मीठे वचनों से उनका क्रोध शान्त कर आसन पर बैठाया। 

तब विश्वकर्मा ने कहा कि हमारी पुत्री संज्ञा तुम्हारे प्रचण्ड तेज से व्याकुल हो वन को चली गई है और तुम्हारा रूप उत्तम होने के लिए तप करती है। 

हमको ब्रह्माजी की आज्ञा है कि हम तुम्हारा रूप उत्तम बना देवें। 

यदि तुम्हारी भी रुचि हो, तो हम इस कार्य में प्रवृत्त हों।

श्वसुर का वचन सूर्यनारायण ने अंगीकार किया।

तब शाकद्वीप में सूर्यनारायण को भ्रमि अर्थात् खराद पर चढ़ाकर विश्वकर्मा ने उनका प्रचण्ड तेज छील डाला और उनका उत्तम रूप बना दिया। 

सूर्यनारायण ने भी योगबल से जाना कि हमारी भार्या घोड़ी के रूप में उत्तर - कुरु में रहती है।

यह जानकर आप भी अश्व का रूप धारण कर उसके समीप गए और मैथुन के लिए प्रवृत्त हुए।

 • परन्तु संज्ञा ने इनको परपुरुष जान इनका • 

वीर्य नासिका में धारण किया। 

उससे देवताओं के वैद्य आश्विनीकुमार उत्पन्न हुए। 

नासत्य और दस्त्र, ये उनके नाम हैं। 

इसके अनन्तर सूर्यनारायण ने अपना वास्तविक रूप धारण किया।

जिसको देख संज्ञा बहुत प्रसन्न हुई और सूर्यनारायण से संग किया। 

तब रेवन्त नामक पुत्र सूर्य भगवान के समान रूपवाला उत्पन्न हुआ। 

उसने सूर्यनारायण के आठवें घोड़े को अपने चढ़ने के लिए ले लिया और उस पर चढ़कर वह उसे खूब कुदाता था।

इसी से उसका नाम रेवन्त हुआ।

क्योंकि रेवत धातु प्लवगति अर्थात् कूदकर चलना के अर्थ में है।

सूर्यनारायण ने दण्डनायक और पिंगल को आज्ञा दी कि हमारा आठवाँ अश्व रेवन्त से ले आओ।

परन्तु बल से मत लाना।

कोई छिद्र पाकर हर लेना। 

आज्ञा पाकर ये दोनों रेवन्त के पास गए और बहुत काल तक वहाँ रहे।

परन्तु कोई छिद्र न मिला कि अश्व को हरें, सदा रेवन्त को सावधान ही देखा। 

मनु, यम, यमुना, सावर्णि,शनैश्चर, तपती, दो अश्विनीकुमार और रेवन्त ये सूर्यनारायण की सन्तानें हुई।

संज्ञा का नाम राज्ञी है और छाया को निक्षुभा कहते हैं। 

राजु धातु दीप्ति अर्थ में है।

जिससे राज्ञी शब्द बनता है। 

सब भूतों से अधिक दीप्ति होने से सूर्यनारायण राजा कहलाते हैं। 






राजा की भार्या होने से भी संज्ञा को राज्ञी कहते हैं। 

क्षुभ संचलन धातु है।

उससे 'नि' उपसर्ग लगकर निक्षुभा शब्द बनता है। 

सब मनुष्यों को अति पीड़ित देख सूर्यपुत्र यम ने धर्म से सबका अनुरंजन किया इससे धर्मराज कहलाया और अपने शुद्ध कर्म के प्रभाव से पितरों का स्वामी और लोकपाल यमराज बना।

आजकल जो मनु वर्तमान है।

इनके वंश में विष्णु भगवान का अवतार हुआ।

यम की बहिन यमुना नदी हुई। 

सावर्णि आठवें मनु होंगे और यम के बड़े भ्राता मनु आजकल राज्य करते हैं और सावर्णि मेरु पर्वत के पृष्ठ पर तप कर रहे हैं। 

सावर्णि के भ्राता शनैश्चर ग्रह बने और उनकी बहिन तपती नदी हुई जो विन्ध्याचल से निकल पश्चिम समुद्र में जा मिली है और जिसमें स्नान करने से बहुत पुण्य होता है। 

सौम्या नदी से तपती का संगम और गंगा से यमुना का संगम होता है। 

अश्विनीकुमार देवताओं के वैद्य बने।

जिनकी विद्या से भूमि पर भी वैद्य अपना निर्वाह करते हैं। 

रेवन्त नामक अपने पुत्र को सूर्यनारायण ने सब अश्वों का स्वामी बनाया। 

रेवन्त का पूजन कर जो मार्ग ( यात्रा ) में जावे।

उसको क्लेश नहीं होता। 

विश्वकर्मा ने सूर्यनारायण की आज्ञा से उनके तेज से भोजक को बनाया जो सूर्यनारायण की पूजा करने वाला हुआ। 

जो सूर्य भगवान की सन्तानों की इस उत्पत्ति को सुने, वह सब पापों से मुक्त हो सूर्यलोक में बहुत काल पर्यन्त निवास कर चक्रवर्ती राजा होता है।

(  जिस जातकों की जन्म कुंडली में चंद्र निर्बल हो मांगलिक असर हो निसंतान या पुत्री संतान हो ऐसा जातक हर रविवार को सुबह नित्यकर्म स्नान करने के बाद सूर्यनारायणं पूजन करने के बाद इस कहानी को नियमित अध्यन करे और सुने सुनाए तो तत्काल जरुर शुभ फल प्राप्त होता ही है। )

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
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एक बहुत ही सुंदर सी कथा :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोप...