https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 10/02/20

हमें अपने ह्रदय को राम - नाम से परिपूरित करना चाहिए ,

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

*‼️राम कृपा ही केवलम्‼️*

*❗राम राम राम प्रभु जी❗*

 हमें  अपने  ह्रदय  को  राम - नाम  से  परिपूरित  करना चाहिए ,


हमें  अपने  ह्रदय  को  राम - नाम  से  परिपूरित  करना चाहिए ,  भर  लेना चाहिए , 

 और  राम-नाम  रूपी धन  ही  एकत्रित   करना चाहिए,  इसी  सच्चे  धन  का  संग्रह  करें  |  


अपने  भीतर   राम-नाम  रूपी  मूर्ति को  स्थापित   कर  लीजिए   तथा  भीतर   की  और मुड़कर  पूजन  आराधन करें-

अंतस्थ - अंतःकरण - ह्रदय  में आसीन प्रभु राम की उपासना कीजिए 

|| सरयू जी की उत्पत्ति ||

एक बार राजा इक्ष्वाकु ने वशिष्ठ जी से यह इच्छा प्रकट की कि...! 

इतनी बड़ी अयोध्या में कोई भी नदी नहीं है....! 

जिस से जन मानस को बहुत बड़ी परेशानी होती है। 

हे गुरुदेव जी ! 

कोई उपाय कीजिए। 

राजा इक्ष्वाकु की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने नंदिनी से कहा...!

नंदिनी ! 

 " कोई उपाय बताओ। "

तब नंदिनी ने वशिष्ठ जी कहा....! 

महाराज ! 

एक बार भगवान बैकुंठ में विराजमान थे। 

उसी समय भगवान विष्णु के दर्शन के लिए भगवान शंकर और माता पार्वती बैकुंठ पहुँचे। 

उस समय वहाँ पर अन्य देवता ब्रह्मा , नारद और इंद्र आदि भी उपस्थित थे। 

सभी को प्रसन्न देखकर शिवजी मग्न होकर के नाचने लगे। 

नारद जी वीणा बजाने लगे। 

इस तरह से सभी के सभी प्रसन्न मुद्रा में हो गए। 

शिव जी के नृत्य को देखकर भगवान विष्णु जी अधिक प्रसन्न हुए और शिव जी से वरदान माँगने को कहा। 

भगवान शिव जी ने विष्णु जी से भक्ति माँगी। 

शंकर जी के प्रेम को देखकर विष्णु जी  के नेत्रों में खुशी के आँसू आ गए। 

वे आँसू जब गिरने की स्थिति में हुए तो ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में रोक लिया। 

वहीं से आप उन्हीं से कामना करके नदी को प्राप्त कर सकते हैं।

वशिष्ठ जी ने नौ हजार वर्ष ब्रह्मा जी की तपस्या की।

ब्रह्मा जी के प्रसन्न होने पर वशिष्ठ जी ने ब्रह्मा जी को अपनी इच्छा सुनाई। 

तब ब्रह्मा जी ने वही भगवान विष्णु के नेत्रों का जल कमंडल से पृथ्वी पर गिरा दिया । 

वह जल सुमेरु पर्वत पर गिरा और वहीं पर बहने लगा। 

जब पृथ्वी तक वह जल नहीं आया....! 

तो ऐरावत हाथी ने अपने दाँतों के प्रहार से पर्वत को काटा ! 

जिससे वह जल पृथ्वी की ओर गिरा....!

सुमेर पर्वत से निकलकर वह जल हरि धाम के निकट मानसरोवर में समा गया। 

मानसरोवर ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुआ है। 

अब वशिष्ठ जी ने पुनः बहुत दिनों तक तपस्या की और तब भगवान पुनः प्रकट हुए। 

उन्होंने मानसरोवर को हिचकोले लेने को कहा। 

अथक प्रयास के बाद वह जल वहां से निकला। 

वशिष्ठ जी ने वह जल प्राप्त किया और अयोध्या लेकर आये। 

यही सरयू नदी हुई।

विष्णु जी के नेत्र से उत्पन्न होने के कारण सरयू का एक नाम नयनजा भी है....! 

तथा वशिष्ठ जी के द्वारा पृथ्वी पर लाए जाने के कारण सरयू का एक नाम वशिष्ठी भी है। 

इस तरह से सरयू के तीन नाम हुए सरयू....! 

नयनजा और विशिष्ठी।

            || सरयू महारानी की जय हो ||
*🌹🙏जय राम राम सीताराम 🙏🌹*

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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