https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 02/17/22

।। श्री ऋग्वेद , श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के अनुसार श्रीसूर्यपुराण की महत्वपूर्ण कहानी।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋग्वेद , श्री यजुर्वेद और श्री विष्णु पुराण के अनुसार श्रीसूर्यपुराण की महत्वपूर्ण कहानी।।


श्रीं सूर्यनारायण की दो भार्या और उनकी सन्तानों का वर्णन।

सुमन्त मुनि कहते हैं कि--


हे राजन् ! 

इतना सुन साम्ब ने नारदजी से कहा कि महाराज, आपने सूर्यनारायण का ऐसा महात्म्य वर्णन किया।

जिससे मेरे हृदय में दृढ़ भक्ति उत्पन्न हो गई। 

अब आप राज्ञी निक्षुभा, दण्डी और पिंगल आदि का वर्णन करें।

साम्ब का वचन सुनकर नारदजी कहने लगे कि हे साम्ब ! 

सूर्य भगवान की दो भार्याओं - 

एक राज्ञी, दूसरी निक्षुभा में राज्ञी को द्यौः 

अर्थात् आकाश को कहते हैं और निक्षुभा पृथ्वी का नाम है। 

श्रावण कृष्ण सप्तमी को द्यौः 

उन्हों के साथ और माघ कृष्ण सप्तमी को निक्षुभा के संग सूर्यनारायण का संयोग होता है।

तब इन दोनों के गर्भ होता है। 

द्यौः के गर्भ से जल उत्पन्न होता है और भूमि के गर्भ से जगत के कल्याण के अर्थ अनेक के सस्य अर्थात् खेती उपजते हैं। 

सस्य को देख अति हर्ष से ब्राह्मण हवन करते हैं।

प्रकार...!

स्वाहाकार स्वधाकार से देवता और पितरों की तृप्ति होती है।

अब ये दोनों जिसकी कन्या हैं। 

और इनकी जो सन्तानें हैं, 

उनका हम वर्णन करते हैं। 

ब्रह्मा के पुत्र परीचि, परीचि के कश्यप, कश्यप के हिरण्यकशिपु, हिरण्यकशिपु के प्रह्लाद और प्रह्लाद के विरोचन नामक पुत्र हुआ।

विरोचन की भगिनी विश्वकर्मा को ब्याही गई, जिसकी कन्या संज्ञा हुई। 

परीचि की सुरूपा नामक कन्या अंगिरा ऋषि को ब्याही गई, जिससे बृहस्पति उत्पन्न हुए। 

बृहस्पति की ब्रह्मवादिनी भगिनी आठवें वसु प्रभा से ब्याही गई, जिसका पुत्र सब शिल्प जानने वाला विश्वकर्मा हुआ। 

उसी का नाम त्वष्टा है। 

विश्वकर्मा की कन्या संज्ञा को राज्ञी कहते हैं और उसको द्यौः तथा सुरेणु भी कहते हैं। 

उसी संज्ञा की छाया का नाम निक्षुभा है।

सूर्य भगवान की भार्या संज्ञा नामक बड़ी रूपवती और पतिव्रता थी...!

परन्तु सूर्यनारायण |

मनुष्य रूप से उनके समीप नहीं जाते थे। 

जिस रूप में जाते थे वह अति तेज से व्याप्त सूर्यनारायण का रूप सुन्दर न था।

इस लिए संज्ञा को नहीं रुचता था। 

संज्ञा से तीन सन्तानें हुई। 

परन्तु संज्ञा सूर्यनारायण के तेज से व्याकुल हो अपने पिता के घर चली गई और हजार वर्ष तक वहीं रही।

जब पिता ने संज्ञा को पति के घर जाने के लिए बहुत कहा...!

तब वह उत्तरकुरु प्रदेश को चली गई और घोड़ी का रूप धार तृण चरके अपना कालक्षेप करने लगी। 

सूर्यनारायण के समीप संज्ञा के रूप से छाया रहती थी।

सूर्य भगवान उसको संज्ञा ही जानते थे। 

उससे भी दो पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुई।

श्रुतश्रवा और श्रुतकर्मा ये दो छाया के पुत्र और तपती नामक कन्या हुई। 

श्रुतश्रवा तो सावर्णि मनु हुआ और श्रुतकर्मा शनैश्चर नामक ग्रह हुआ। 

संज्ञा जिस प्रकार अपनी सन्तानों पर स्नेह करती थी, वैसा छाया ने न किया। 

इस बात को संज्ञा के ज्येष्ठ पुत्र मनु ने तो सहा; परन्तु छोटा पुत्र यम न सह सका। 

जब छाया ने बहुत ही क्लेश किया, तब क्रोध से यम ने भर्त्सना की और मारने को चरण उठाया।

यह देख क्रोध कर छाया ने यम को दिया कि हे दुष्ट! 

यह तेरा चरण गिर पड़े। 

माता के शाप से यम व्याकुल हो पिता के समीप गए। 

और सब वृतान्त कहा कि महाराज, यह माता हमसे स्नेह नहीं करती। 

मैंने भूल अथवा बालकपन से केवल चरण उठाया था।

परन्तु माता ने मुझे घोर शाप दिया। 

अब मेरे चरण की रक्षा आप ही करें। 

शाप....!

पुत्र का यह वचन सुनकर सूर्यनारायण ने कहा कि हे पुत्र ! 

इसमें कुछ बड़ा कारण होगा कि अति धर्मात्मा तुझ को माता के ऊपर क्रोध आया। 

सब शापों का प्रतिघात है...!

परन्तु माता का दिया शाप कभी अन्यथा नहीं हो सकता पर तेरे स्नेह से कुछ उपाय करते हैं। 

तेरे चरण के मांस को लेकर कृमि भूमि पर जाएँ।

इससे माता का शाप भी सत्य हो और तेरे चरण की रक्षा भी होगी।

सुमन्त मुनि कहते हैं कि हे राजन्! 

इस प्रकार पुत्र को आश्वासन देकर सूर्यनारायण ने छाया से कहा कि इससे तुम स्नेह क्यों नहीं करतीं? 

माता को सब सन्तानें समान माननी चाहिए। 

यह सुनकर भी छाया कुछ उत्तर न दिया। 

तब सूर्यनारायण क्रोध कर शाप देने को उद्यत हुए। 

छाया ने पति को अति क्रुद्ध देखकर भय से सब वृतान्त कह दिया ! 

इसी अवसर पर विश्वकर्मा वहाँ आए।

सूर्य नारायण ने अपने श्वसुर को क्रोधयुक्त देखकर मीठे वचनों से उनका क्रोध शान्त कर आसन पर बैठाया। 

तब विश्वकर्मा ने कहा कि हमारी पुत्री संज्ञा तुम्हारे प्रचण्ड तेज से व्याकुल हो वन को चली गई है और तुम्हारा रूप उत्तम होने के लिए तप करती है। 

हमको ब्रह्माजी की आज्ञा है कि हम तुम्हारा रूप उत्तम बना देवें। 

यदि तुम्हारी भी रुचि हो, तो हम इस कार्य में प्रवृत्त हों।

श्वसुर का वचन सूर्यनारायण ने अंगीकार किया।

तब शाकद्वीप में सूर्यनारायण को भ्रमि अर्थात् खराद पर चढ़ाकर विश्वकर्मा ने उनका प्रचण्ड तेज छील डाला और उनका उत्तम रूप बना दिया। 

सूर्यनारायण ने भी योगबल से जाना कि हमारी भार्या घोड़ी के रूप में उत्तर - कुरु में रहती है।

यह जानकर आप भी अश्व का रूप धारण कर उसके समीप गए और मैथुन के लिए प्रवृत्त हुए।

 • परन्तु संज्ञा ने इनको परपुरुष जान इनका • 

वीर्य नासिका में धारण किया। 

उससे देवताओं के वैद्य आश्विनीकुमार उत्पन्न हुए। 

नासत्य और दस्त्र, ये उनके नाम हैं। 

इसके अनन्तर सूर्यनारायण ने अपना वास्तविक रूप धारण किया।

जिसको देख संज्ञा बहुत प्रसन्न हुई और सूर्यनारायण से संग किया। 

तब रेवन्त नामक पुत्र सूर्य भगवान के समान रूपवाला उत्पन्न हुआ। 

उसने सूर्यनारायण के आठवें घोड़े को अपने चढ़ने के लिए ले लिया और उस पर चढ़कर वह उसे खूब कुदाता था।

इसी से उसका नाम रेवन्त हुआ।

क्योंकि रेवत धातु प्लवगति अर्थात् कूदकर चलना के अर्थ में है।

सूर्यनारायण ने दण्डनायक और पिंगल को आज्ञा दी कि हमारा आठवाँ अश्व रेवन्त से ले आओ।

परन्तु बल से मत लाना।

कोई छिद्र पाकर हर लेना। 

आज्ञा पाकर ये दोनों रेवन्त के पास गए और बहुत काल तक वहाँ रहे।

परन्तु कोई छिद्र न मिला कि अश्व को हरें, सदा रेवन्त को सावधान ही देखा। 

मनु, यम, यमुना, सावर्णि,शनैश्चर, तपती, दो अश्विनीकुमार और रेवन्त ये सूर्यनारायण की सन्तानें हुई।

संज्ञा का नाम राज्ञी है और छाया को निक्षुभा कहते हैं। 

राजु धातु दीप्ति अर्थ में है।

जिससे राज्ञी शब्द बनता है। 

सब भूतों से अधिक दीप्ति होने से सूर्यनारायण राजा कहलाते हैं। 


राजा की भार्या होने से भी संज्ञा को राज्ञी कहते हैं। 

क्षुभ संचलन धातु है।

उससे 'नि' उपसर्ग लगकर निक्षुभा शब्द बनता है। 
सब मनुष्यों को अति पीड़ित देख सूर्यपुत्र यम ने धर्म से सबका अनुरंजन किया इससे धर्मराज कहलाया और अपने शुद्ध कर्म के प्रभाव से पितरों का स्वामी और लोकपाल यमराज बना।

आजकल जो मनु वर्तमान है।

इनके वंश में विष्णु भगवान का अवतार हुआ।

यम की बहिन यमुना नदी हुई। 

सावर्णि आठवें मनु होंगे और यम के बड़े भ्राता मनु आजकल राज्य करते हैं और सावर्णि मेरु पर्वत के पृष्ठ पर तप कर रहे हैं। 

सावर्णि के भ्राता शनैश्चर ग्रह बने और उनकी बहिन तपती नदी हुई जो विन्ध्याचल से निकल पश्चिम समुद्र में जा मिली है और जिसमें स्नान करने से बहुत पुण्य होता है। 

सौम्या नदी से तपती का संगम और गंगा से यमुना का संगम होता है। 

अश्विनीकुमार देवताओं के वैद्य बने।

जिनकी विद्या से भूमि पर भी वैद्य अपना निर्वाह करते हैं। 

रेवन्त नामक अपने पुत्र को सूर्यनारायण ने सब अश्वों का स्वामी बनाया। 

रेवन्त का पूजन कर जो मार्ग ( यात्रा ) में जावे।

उसको क्लेश नहीं होता। 

विश्वकर्मा ने सूर्यनारायण की आज्ञा से उनके तेज से भोजक को बनाया जो सूर्यनारायण की पूजा करने वाला हुआ। 

जो सूर्य भगवान की सन्तानों की इस उत्पत्ति को सुने, वह सब पापों से मुक्त हो सूर्यलोक में बहुत काल पर्यन्त निवास कर चक्रवर्ती राजा होता है।

(  जिस जातकों की जन्म कुंडली में चंद्र निर्बल हो मांगलिक असर हो निसंतान या पुत्री संतान हो ऐसा जातक हर रविवार को सुबह नित्यकर्म स्नान करने के बाद सूर्यनारायणं पूजन करने के बाद इस कहानी को नियमित अध्यन करे और सुने सुनाए तो तत्काल जरुर शुभ फल प्राप्त होता ही है। )

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         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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