https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/13/20

!! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

!! कृष्णचक्रा" और "रामचक्रा"!!

!! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !!

!! जय श्रीगौरीशाजी !!

शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। 

कहते हैं कि जब शिवजी अति क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। 

साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। 

चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए।

आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। 

जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है। 

यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है।




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समाज, परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही स्त्री की भी है। 
स्त्री तथा पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। 

एक - दूसरे के बिना इनका जीवन निरर्थक है। 

अर्धनारीश्वर लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले।

उनके साथ किसी प्रकार का भेद - भाव न किया जाए। 

पुरुष कठोरता का प्रतीक है, स्त्री कोमलता का - पुरुष अपनी कर्मठता से अन्न धन लाता है, स्त्री अन्नपूर्णा होती है यानि अन्न को खाने योग्य बनाकर एक पूर्णता का संचार करती है, धन के सही इस्तेमाल से घर की रूपरेखा बनाती है और बचत करती है। 

समय की माँग हो तो स्त्री को पुरुष सी कठोरता अपनानी होती है, पुरुष को कोमलता -  अर्धनारीश्वर सही अर्थ तभी पाता है।

           || जय शिव शक्ति ||




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आज गोकुल में छड़ीमार होली की रहेगी धूम, जानें इस परंपरा का इतिहास और महत्व

मथुरा - वृंदावन समेत पूरे ब्रज की होली देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। 

ब्रज की होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। 

कान्हा की नगरी में होली खेलने का अंदाज बिल्कुल ही अलग है। 

यहां रंग, अबीर - गुलाल के अलावा फूल, लड्डू, लट्ठ और छड़ी से होली खेली जाती है। 

ब्रज ही एक जगह ऐसी है जहां लट्ठ और छड़ी से मार खाकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। 

पूरे ब्रज में होली का उत्सव लड्डू मार होली के साथ शुरू हो जाता है। 

वहीं आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाएगी। 

तो आइए जानते हैं छड़ीमार होली के बारे में।

छड़ीमार होली का महत्व

आज यानी 11 मार्च को गोकुल में छड़ीमार खेली जाएगी। 

हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को छड़ीमार होली खेली जाती है। 

छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर की जाती है। 

हर साल होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। 

छड़ीमार होली क्यों खेली जाती है?

पौराणिक कथा के अुनसार, कान्हा जी बचपन में बड़े ही नटखट थे और वे गोपियों को काफी परेशान भी करते थे। 

गोपियां कृष्ण जी को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थी। 

गोपियां छड़ी का इस्तेमाल कान्हा जी सिर्फ डराने के लिए करती थी। 

कहते हैं कि इसी परंपरा की वजह से आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है, जिसमें लट्ठ की जगह छड़ी का प्रयोग किया जाता है। 

बाल गोपाल को चोट न लग जाए इसलिए लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं कि  छड़ीमार होली कृष्‍ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक मानी जाती है।

आज का उत्सव इस प्रकार होगा

भगवान कृष्ण की नगरी गोकुल में आज मंगलवार को छड़ीमार होली का आयोजन मुरलीधर घाट पर दोपहर 12 बजे से होगा। 

इस की तैयारियां मंदिर कमेटी व प्रशासन द्वारा अंतिम चरण में पहुंचा दी हैं। 

नंद भवन से ठीक बारह बजे ठाकुर जी का डोला निकलेगा। 

जो देशी विदेशी फूलों से सजाया जाएगा। 

डोले में ठाकुर जी बाल,कृष्ण लाल के स्वरूपों को बैठाकर उनको गोकुल के मुख्य बाजारों में होली खिलाते हुए मुरलीधर घाट की और ले जाते है। 

पूरे रास्ते गुलाल, टेसू के फूलों का रंग, गुलाब, गेंदा के फूलों की पत्ती, इत्र आदि भक्तों पर डाला जाएगा। 

भगवान के सखा,अपनी पारंपरिक भेष भूषा, बगलबंदी छोती, सखियां लहंगा फारिया में डोले के साथ ब्रज के लोकगीतों की मधुर गीतों पर नृत्य करते हुए चलते हैं। 

इस अदभुत नजारे को देशी विदेशी भक्त देख कर रोमांचित हो उठते हैं। 

सम्पूर्ण नगर की परिक्रमा के बाद डोला मुरलीधर घाट पर पहुंचेगा। 

यहां बने विशाल मंच पर ठाकुर जी को विराजमान कराया जाएगा। 

उसके बाद लगभग एक घंटा तक छड़ीमार होली महोत्सव चलेगा। 

एक घंटे तक होली में केवल गुलाल का प्रयोग होगा। 

यहां आरती के बाद पुन डोला मंदिर के प्रस्थान करेगा। 

मंदिर में वैदिक विधि विधान के साथ मंत्र उच्चारणाओं से ठाकुर जी को स्नान करा विराजमान कराया जाएगा। 

उसके बाद होली का समापन होगा।

        || जय श्री राधे कृष्ण ||



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मेरे प्रभु एक दिन तो अपने बाबा नन्द की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है, ये बड़ी मधुर लीला है।

अपने बाबा नन्द की गोद में बैठकर ठाकुर जी भोजन कर रहे है, मैया यशोदा सुंदर थाली में छप्पन भोग सजाकर लाइ लेकिन प्रभु चुपचाप भोजन नहीं करते क्योंकि नटखट है ना तो कुछ न कुछ बोलते रहते है।

एक और बाल कृष्ण बैठे बाबा की गोदी ने और एक और बलराम जी बैठे है। 

थाली सज गई है और ब्रजरानी यशोदा रसोई के दुआर पर खड़ी - खड़ी निहार रही है की मेरो लाला खावेगो में दूर ते देखूंगी, आरोग ने जा रही है।.


ब्रज के संतो ने इन लीलाओ को गाया -

की जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
कछु खावत, कछु धरनी गिरावत
( कुछ खा रहे है और कुछ नीचे गिरा रहे है )
कछु खावत, कुछु नीचे गिरावत
छवि निरखत बाबा नन्द जू की रनीयाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ 

थोडा सा खाते है, थोडा सा नीचे गिराते है। 

मैया देख - देख आनंदित होती है, हाय मेरो लाला खारयो है।

और भगवान बीच - बीच में खाते - खाते पूछते जाते है की बाबा या वस्तु को नाम कहा है ? 

याते कहा कहवे ? 

ये कौनसी वस्तु है ? 

बाबा जब तक बताओगे नाय तब तक में खाऊंगो नहीं तो बाबा ने कह दिया की बेटा कन्हिया याको नाम है " रामचक्रा ", का नाम है ? 

" रामचक्रा "

अब तो महाराज मचल गए प्रभु और बोले बाबा अब आओ खाओ, दाऊ भैया खाए और अब हम नहीं खाएंगे..!

तो पूछा लाला कहाँ बात हे गयी ? 

मैंने या वस्तु को नाम ही तो बोलो तो तू नाराज क्यों हे गयो ? 

भगवान बोले मोकू लगे है आप दाऊ भैया ते ज्यादा प्यार करो हो, आपने या खावे की चीज़ में भी दाऊ भैया को नाम धर दियो " रामचक्रा "

बोले खाने वस्तु को नाम भी दाऊ भैया के नाम पर धर दियो और बाबा जब तक मेरे नाम की वस्तु मोकू नहीं दिखाओगे तब तक भोजन नहीं करूँगा में, कहा मेरो नाम को कछु नहीं ? 

बाबा बोले देख कन्हिया तू रोवे मत ये देख ये जो दूसरी कटोरी में वस्तु धरी है ना याको नाम है   
" कृष्णचक्रा " 

प्रभु बोले हे बाबा साँची कहरे हो ? 

बाबा बोले बिलकुल साँची याको नाम है " कृष्णचक्रा " ....! 

अब तो ठाकुर जी प्रसन्न हो गए और उठाकर खाने लगे।

आप लोग सोच रहे होंगे की " रामचक्रा " और " कृष्णचक्रा " क्या है ? 

हमारे ब्रज में " दही - बड़े " को " दही - बड़ा " नहीं कहते है बल्कि आज भी कहा जाता है " रामचक्रा " 

और हमारे ब्रज में आज भी इमरती को भक्त " कृष्णचक्रा " कहते है।

आपसे भी में प्राथना करूँगा की आप भी आगे से दही - बड़ा आए सामने या किसी से मंगवाओ या इमरती मंगवाओ या सामने आपके रखी हो..!

आप उसको किसी को बताओ तो इमरती मत बोलना, दही - बड़ा मत बोलना बल्कि इमरती को " कृष्णचक्रा " और दही - बड़े को " रामचक्रा " बोलना..!

ये सब किसलिये रखे गए नाम ? 

ताकि इसी बहाने कम से कम ठाकुर जी का नाम लेने को मिल जाए हमे...!

नहीं तो भोगो में ही पड़ा रहता है जीव तो कम से कम इसी बहाने " राम " और " कृष्ण " का नाम निकल जाए मुख से..!

तो ऐसी लीला ठाकुर जी करते है।

ब्रजरानी यशोदा भोजन कराते - कराते थोड़ी सी छुंकि हुई मिर्च लेकर आ गई क्योंकि नन्द बाबा को बड़ी प्रिय थी।

लाकर थाली एक और रख दई तो अब भगवान बोले की बाबा हमे और कछु नहीं खानो, ये खवाओ ये कहा है ? 

हम ये खाएंगे...! 

तो नन्द बाबा डराने लगे की नाय - नाय लाला ये तो ताता है तेरो मुँह जल जाओगो..! 

भगवान बोले नाय बाबा अब तो ये ही खानो है मोय...!

खूब ब्रजरानी यशोदा को बाबा ने डाँटो की मेहर तुम ये क्यों लेकर आई ? .


तुमको मालूम है ये बड़ो जिद्दी है, ये मानवो वारो नाय फिर भी तुम लेकर आ गई...!

अब गलती हो गई ठाकुर जी मचल गए बोले अब बाकी भोजन पीछे होगा पहले ये ताता ही खानी है मुझे, पहले ये खवाओ। 

बाबा पकड़ रहे थे, रोक रहे थे पर इतने में तो उछलकर थाली के निकट पहुंचे और अपने हाथ से उठाकर मिर्च खा ली...

और अब ताता ही हो गई वास्तव में, ताता भी नहीं " ता था थई " हो गई।

अब महाराज भागे डोले फिरे सारे नन्द भवन में बाबा मेरो मो जर गयो, बाबा मेरो मो जर गयो,

मो में आग लग गई मेरे तो बाबा कछु करो और पीछे - पीछे ब्रजरानी यशोदा..!

नन्द बाबा भाग रहे है हाय - हाय हमारे लाला को मिर्च लग गई, हमारे कन्हिया को मिर्च लग गई।

महाराज पकड़ा है प्रभु को और इस लीला को आप पढ़ो मत बल्कि देखो।

गोदी में लेकर नन्द बाबा रो रहे है अरी यशोदा चीनी लेकर आ मेरे लाला के मुख ते लगा और इतना ही नहीं बालकृष्ण के मुख में नन्द बाबा फूँक मार रहे है।

आप सोचो क्या ये सोभाग्य किसी को मिलेगा ? 

जैसे बच्चे को कुछ लग जाती है तो हम फूँक मारते है बेटा ठीक हे जाएगी वैसे ही बाल कृष्ण के मुख में बाबा नन्द फूँक मार रहे है।

देवता जब ऊपर से ये दृश्य देखते है तो देवता रो पड़ते है और कहते है की प्यारे ऐसा सुख तो कभी स्वपन में भी हमको नहीं मिला जो इन ब्रजवासियो को मिल रहा है..! 

तो आगे यदि जन्म देना तो इन ब्रजवासियो के घर का नोकर बना देना, यदि इनकी सेवा भी हमको मिल गई तो देवता कहते है हम धन्य हो जाएंगे।
 
🌹🍀जय श्री राधेकृष्ण🍀🌹
🙏जय द्वारकाधीश वंदन अभिनंदन मित्रों👏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

त्रिदेवी रहस्यम्🌻🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌻सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती ये त्रिदेव की पत्नियां हैं। इनकी कथा के बारे में लोगों में बहुत भ्रम है।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

त्रिदेवी रहस्यम्

🌻🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌻

सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती ये त्रिदेव की पत्नियां हैं। इनकी कथा के बारे में लोगों में बहुत भ्रम है। पुराणों में इनके बारे में भिन्न भिन्न जानकारियां मिलती है।
 
माता अम्बिका : ब्रह्मा, विष्णुन और महेश को ही सर्वोत्तम और स्वयंभू मान जाता है। क्या ब्रह्मा, विष्णु और महेश का कोई पिता नहीं है? वेदों में लिखा है कि जो जन्मा या प्रकट है वह ईश्व्र नहीं हो सकता। ईश्वशर अजन्मा, अप्रकट और निराकार है।

शिवपुराण के अनुसार उस अविनाशी परब्रह्म (काल) ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है। परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म। परम अक्षर ब्रह्म। वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है। एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी। सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है।

वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है। उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं। सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं।

पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है। एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है। उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं जिसे जगदम्बा भी कहते हैं। 

उसी के तीन प्रमुख रुप हैं, जो तीन देवियों के रुप में पूजे जाते हैं। अर्थात् सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती। 

माता सरस्वती का परिचय : 
 देवी सरस्वती का वर्ण श्वेंत है। ब्रह्मा के कई पुत्र और पुत्रियां थे। सरस्वती देवी को शारदा, शतरूपा, वाणी, वाग्देवी, वागेश्वरी और भारती भी कहा जाता है। 

 सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने मनुष्य योनि की रचना की, परंतु वह अपनी सर्जना से संतुष्ट नहीं थे, तब उन्होंने विष्णु जी से आज्ञा लेकर अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। 

सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।

माता लक्ष्मी का परिचय : ऋषि भृगु की पुत्री माता लक्ष्मी थीं। उनकी माता का नाम ख्याति था। (समुद्र मंथन के बाद क्षीरसागर से जो लक्ष्मी उत्पन्न हुई थी उसका इनसे कोई संबंध नहीं। हालांकि उन महालक्ष्मी ने स्वयं ही विष्णु को वर लिया था।) महउर्षि भृगु विष्णु के श्वसुर और शिव के साढू थे। महर्षि भृगु को भी सप्तर्षियों में स्थान मिला है।

राजा दक्ष के भाई भृगु ऋषि थे। इसका मतलब राजा दक्ष  की भतीजी थीं। माता लक्ष्मी के दो भाई दाता और विधाता थे। भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती उनकी (लक्ष्मीजी की) सौतेली बहन थीं। सती राजा दक्ष की पुत्री थी। माता लक्ष्मी के 18 पुत्रों में से प्रमुख चार पुत्रों के नाम हैं:- आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत। माता लक्ष्मी को दक्षिण भारत में श्रीदेवी कहा जाता है।
लक्ष्मी-विष्णु विवाह कथा : जब लक्ष्मीजी बड़ी हुई तो वह भगवान नारायण के गुण-प्रभाव का वर्णन सुनकर उनमें ही अनुरक्त हो गई और उनको पाने के लिए तपस्या करने लगी उसी तरह जिस तरह पार्वतीजी ने शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। वे समुद्र तट पर घोण तपस्या करने लगीं।

 तदनन्तर लक्ष्मी जी की इच्छानुसार भगवान विष्णु ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
दूसरी विवाह कथा : एक बार लक्ष्मीजी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ। 

माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णु जी को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थी लेकिन नारद मुनि भी लक्ष्मीजी से विवाह करना चाहते थे। नारदजी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरि रूप पाकर ही उनका वरण करेगी। तब नारदजी विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गए। विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार उन्हें हरि रूप दे दिया। हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। नारद वहाँ से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गये क्योंकि उनका चेहरा बन्दर जैसा लग रहा था।

 हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गए कि भगवान विष्णु ने उनके साथ छल किया। उनको भगवान पर बड़ा क्रोध आया। 

नारद सीधा बैकुण्ठ पहुँचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रूप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा। समुद्र मंथन वाली लक्ष्मी : समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मी को कमला कहते हैं जो दस महाविद्याओं में से अंतीम महाविद्या है। देवी कमला, जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु की पत्नी हैं। देवताओं तथा दानवों ने मिलकर, अधिक सम्पन्न होने हेतु समुद्र का मंथन किया, समुद्र मंथन से 18 रत्न प्राप्त हुए, जिन में देवी लक्ष्मी भी थी, जिन्हें भगवान विष्णु को प्रदान किया गया तथा उन्होंने देवी का पानिग्रहण किया। देवी का घनिष्ठ संबंध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैं।

माता सती या पार्वती का परिचय- माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि नामों से जाना जाता है। कहते हैं कि माता सती के ही ये नए जन्म थे। यह किसी एक जन्म की कहानी नहीं कई जन्मों और कई रूपों की कहानी है। 

जो भी हो इस गुत्थी को सुलझाना थोड़ा मुश्किल है।  
माता पार्वती का परिचय : माता पार्वती शिवजी की दूसरी पत्नीं थीं। मान्यता अनुसार शिवजी की तीसरी पत्नी उमा और चौथी काली थी। हालंकि इन्हें पार्वती का ही भिन्न रूप भी माना जाता है। पार्वती माता अपने पिछले जन्म में सती थीं। 

सती माता के ही 51 शक्तिपीठ हैं। माता सती के ही रूप हैं जिसे 10 महाविद्या कहा जाता है- काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला। पुराणों में इनके संबंध में भिन्न भिन्न कहानियां मिलती है। दरअसल ये सभी देवियों की कहानी पुराणों में अलग-अलग मिलती है। इनमें से कुछ तो पार्वती का रूप या अवतार नहीं भी है।
 दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।
 
देवी पार्वती के पिता का नाम हिमवान और माता का नाम रानी मैनावती था। माता पार्वती की एक बहन का नाम गंगा है, जिसने महाभारत काल में शांतनु से विवाह किया था और जिनके नाम पर ही एक नदी का नाम गंगा है।
माता पार्वती को ही गौरी, महागौरी, पहाड़ोंवाली और शेरावाली कहा जाता है। 

अम्बे और दुर्गा का चित्रण पुराणों में भिन्न मिलता है। अम्बे या दुर्गा को सृष्टि की आदिशक्ति माना गया है जो सदाशिव (शिव नहीं) की अर्धांगिनी है। माता पार्वती को भी दुर्गा स्वरूप माना गया है, लेकिन वे दुर्गा नहीं है। 

नवरात्रि का त्योहार माता पार्वर्ती के लिए ही मनाया जाता है। पार्वती के 9 रूपों के नाम हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
 
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति.चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति.महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

माता पार्वती के 6 पुत्रों में से प्रमुख दो पुत्र हैं:- गणेश और कार्तिकेय। भगवान गणेश के कई नाम है उसी तरह कार्तिकेय को स्कंद भी कहा जाता है। 

इनके नाम पर एक पुराण भी है। इसके अलावा उन्होंने हेति और प्रहेति कुल के एक अनाथ बालक सुकेश को भी पाला था। सुकेश से ही राक्षस जाति का विकास हुआ। इसके अलावा उन्होंने भूमा को भी पाल था जो शिव के पसीने से उत्पन्न हुआ था। 

जलंधर और अयप्पा भी शिव के पुत्र थे लेकिन पार्वती ने उनका पालन नहीं किया था। माता पार्वती की दो सहचरियां जया और विजया भी थीं।

पौराणिक मान्यता अनुसार भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती जिसने यज्ञ में कूद कर अपनी जान दे दी थी। यही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनकर आई, जिनके पुत्र गणेश और कार्तिकेय हैं। फिर शिव की एक तीसरी पत्नी थीं जिन्हें उमा कहा जाता था। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा गया है। उत्तराखंड में इनका एकमात्र मंदिर है। भगवान शिव की चौथी पत्नी मां महाकाली है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था।
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*"हिम्मत"*🙏🏻🚩🌹 👁❗👁 🌹🚩🙏🏻विपुल लगभग एक माह से तेज ज्वर से पीड़ित था।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*"हिम्मत"*

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विपुल लगभग एक माह से तेज ज्वर से पीड़ित था। वह इतना कमजोर हो चुका था कि बिना किसी सहारे के उठ भी नहीं पाता था। आज रात वह बहुत बैचेनी महसूस करते हुए कराह रहा था। उसकी यह हालत देखकर उसकी माँ उसके पास आयी और उसके माथे पर हाथ रखकर महसूस कि हिदायत दी।

विपुल दवा पीकर बड़बडाने लगा कि माँ, तुम मेरे लिए इतने दिनों से कितना कष्ट उठाकर मेरी सेवा, सुश्रुषा कर रहीया कि उसे बुखार बहुत तेज है। उसने विपुल को दवा पिलायी और आराम करने की हो, मुझे ऐसा महसूस होता है कि मेरा जीवन का समय पूरा हो चुका है और तुमसे बिछुड़ने का समय नज़दीक आता जा रहा है। माँ ने उसकी बात सुनकर उसके माथे पर हाथ रखकर समझाया कि जब तक साँस है जीवन में आस है। विपुल बोला, मैं सभी आशाएँ छोड़ चुका हूँ, आज की रात मुझे गहरी नींद में सोने दो, मैं कल का सूरज देख पाता हूँ या नहीं, ये नहीं जानता हूँ। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरी आत्मा के द्वार पर चाँद का दूधिया प्रकाश दस्तक दे रहा है। मैं अंधकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ। मुझे भूत, वर्तमान और भविष्य के अहसास के साथ पाप और पुण्य का हिसाब भी दिख रहा है। मैंने धर्म से जो कर्म किये हैं वे ही मेरे साथ जाएँगे, माँ तू ही बता यह मेरा प्रारंभ से अंत है या अंत से प्रारंभ ?

विपुल की करूणामय बातें सुनकर माँ का मन भी विचलित हो गया, उसने अपनी आँखों में आए, आँसुओं के सैलाब को रोकते हुए अपने बेटे से कहा कि देखो तुम हिम्मत मत हारना, यही तुम्हारा सच्चा मित्र है। सुख-दुख में सही राह दिखलाता है और विपरीत परिस्थितियों में भी तुम्हारा साथ निभाकर तुम्हें शक्ति देकर तुम्हारे हाथों को थामे रहता है, डॉक्टर साहब ने तुम्हारा रोग पहचान लिया है और उन्होंने दवाईयाँ भी बदल दी हैं। जिनके प्रभाव से तुम कुछ ही दिनों में ठीक हो जाओगे। आज में तुम्हें एक कविता सुना रही हूँ जिसे तुम ध्यान से सुनकर इसपर गंभीरतापूर्वक मनन करना।
भंवर में, मंझधार में, ऊँची लहर में

नाव बढ़ती जा रही है।

दुखों से, कठिनाइयों से

जूझकर भी सांस चलती जा रही है।

स्वयं पर विश्वास जिसमें

जो परिश्रमरत रहा है

लक्ष्य पर थी दृष्टि जिसकी

और संघर्षों में जो अविचल रहा है

वह सफल है

और जिसका डिग गया विश्वास

वह निश्चित मरा है।

विपुल पर माँ की बातों का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। और उसके अंदर असीमित ऊर्जा, दृढ़ इच्छा शक्ति व आत्म विश्वास जागृत हो गया। 

यह ईश्वरीय कृपा थी, माँ का आर्शीवाद, स्नेह एवं प्यार था या विपुल का भाग्य कि वह कुछ दिनों में ही ठीक हो गया। आज वह पुनः ऑफिस जा रहा था। उसकी माँ उसे दरवाजे तक विदा करने आयी, उसका बैग उसे दिया और मुस्कुरा कर आँखों से ओझल होने तक उसे देखती रही।

   🌹🙏🏻🚩 *जय सियाराम* 🚩🙏🏻🌹
      🚩🙏🏻 *जय श्री महाकाल* 🙏🏻🚩
    🌹🙏🏻 *जय श्री पेड़ा हनुमान* 🙏🏻🌹
🚩🚩🚩जय श्री कृष्ण🚩🚩🚩
🌹🌹🌹जय श्री कृष्ण🌹🌹🌹
🙏🏻🙏🏻🙏🏻जय श्री कृष्ण🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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