https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/02/20

गोपीगीत* *पुष्प-*🌹

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*गोपीगीत*

  *पुष्प-*🌹

 *सुरतवर्धनम् शोक नाशनम् स्वरित वेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।* *इतररागविस्मारणं नृणां वितर वीर नस्तेऽ-धरामृतम् ।।*


🌹     ये तीनों प्रकार की निन्दा,  द्वेष से प्रेरित होकर नहीं की गई है। अपितु दुःख इस निन्दा में प्रेरक है। यह तो प्रेम का मधुर उपालम्भ है। दुःख में बोला हुआ सब कुछ क्षम्य है। परन्तु द्वेष भाव से प्रेरित होकर बोला हुआ कभी भी क्षम्य नहीं कहा जा सकता है । पत्नी जब पति पर अकुलाने लगती है, झुंझलाने लगती है, तब कभी रोते हुए कहने लगती है, 'इससे तो मर जाना अच्छा, मेरी आँखें फूट जायें तो बेहतर है न देखना न दाझना (जलना) कभी-कभी ऐसा भी कह देती है, “जाने दो उनका तो स्वभाव ही दुर्वासा जैसा है।"

🌹   इस प्रकार जब व्यक्ति पर दुःख आ पड़ता है, तब उसकी वाणी पर से विवेक का नियन्त्रण हट जाता है। उसके विचारों पर से भी विवेक का अंकुश दूर हो जाता है। ऐसे समय में व्यक्ति विना कुछ सोचे समझे प्रलाप करने लगता है। यहाँ गोपिकाओं द्वारा की गई यह निन्दा दुःख की निन्दा है । तमोगुण के स्वभाव के कारण दुःख में तमतमा कर पैदा होने वाली यह निन्दा है। अतः यहाँ यह निन्दा दोष रूप नहीं है।
🌹    अब आगे आने वाले श्लोक में गोपिकाएँ अपने दुःख से अकुलाकर, अपनी वाणी पर के विवेक को खोकर ब्रह्माजी की निन्दा किस प्रकार करती हैं, इसके दर्शन हम अगले श्लोक में करेंगे। 

 *रे निरमोही छबि दरसाय जा,* 
 *कान चाहकी श्याम बिरह घन, मुरली मधुर सुनाय जा।* 
 *'ललित किशोरी' नयन चकोर, द्युतिमुख चन्द्र दिखाय जा,* 
 *भयो चहत यह प्राण बटोही, रूठे पथिक मनाय जा॥* 

           क्रमशः.......
              
     €﹏^°*)🌼(*°^﹏€
            *🌴🌹🌴*
   *)🌼कृष्णमयीरात्रि🌼(*
*°🌹श्रीकृष्णाय समर्पणं 🌹°*
   *)🌼जैश्रीराधेकृष्ण (*
             *🌴 🌹🌴*
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
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।। शालिग्राम पूजा महात्म्य ।।〰〰🌼〰🌼〰🌼〰〰

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जय द्वारकाधीश

।। शालिग्राम पूजा महात्म्य ।।

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भक्तो की अनेक प्रकार की इच्छाये अपने ठाकुर जी के प्रति होती है, किसी भक्त ने इच्छा की, कि भगवान सगुण साकार बनकर आये तो भगवान राम, कृष्ण का रूप लेकर आ गये. किसी भक्त ने कहा मेरे बेटे के रूप में आये तो भगवान कश्यप अदिति के पुत्र के रूप में आ गए।

किसी भक्त कि इच्छा हुई कि भगवान मेरे सखा बनकर आये, तो वृंदावन में सखा बनकर ग्वाल बाल के साथ खेलने लगे. किसी कि भगवान के साथ लडने की इच्छा हुई तो भगवान ने उसके साथ युद्ध किया. इसी प्रकार किसी भक्त की भगवान को खाने की इच्छा हुई तो भगवान शालिग्रामके रूप में प्रकट हो गए.
जो नेपाल में पहाडो के रूप में होते है वहाँ एक विशेष प्रकार के कीड़े उन पहाडो को खाते है और वह पहाड़ टूट टूटकर टुकडो के रूप में गंडकी नदी में गिरते जाते है. नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को शालिग्राम कहते हैं. इसमें एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं. कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं. इस पत्थर को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है तथा इसकी पूजा भगवान शालिग्राम के रूप में की जाती है.
पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है. इसके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है. भगवान शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है.

प्रति वर्ष कार्तिक मास की
द्वादशी को महिलाएं प्रतीक
स्वरूप तुलसी और भगवान
शालिग्राम का विवाह कराती हैं.
तुलसी दल से पूजा करता है,ऐसा कहा जाता है कि पुरुषोत्तम मास में एक लाख तुलसी दल से भगवान शालिग्राम की पूजा करने से वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है. ऐसा कहा जाता है कि पुरुषोत्तम मास में एक लाख तुलसी दल से भगवान शालिग्राम की पूजा करने से समस्त तीर्थो का फल मिल जाता है मृत्युकाल में इसका जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है.

सदना कसाई का प्रसंग-

〰〰🌼〰〰🌼〰〰

एक सदना नाम का कसाई था,मांस बेचता था पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहा था रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया.उसे अच्छा लगा उसने सोचा बड़ा अच्छा पत्थर है क्यों ना में इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करू. उसे उठाकर ले आया.और मांस तौलने में प्रयोग करने लगा.
जब एक किलो तोलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तोलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार चाहे जितना भी तोलता हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता.
एक दिन की बात है उसी दूकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत उस सदना के पास आये और गुस्से में बोले ये तुम क्या कर रहे हो क्या तुम जानते नहीं जिसे पत्थर समझकर तुम तोलने में प्रयोग कर रहे हो वे शालिग्राम भगवान है इसे मुझे दो जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला हे ब्राह्मण देव मुझे पता नहीं था कि ये भगवान है मुझे क्षमा कर दीजिये.और शालिग्राम भगवान को उसने ब्राह्मण को दे दिया.
ब्राह्मण शालिग्राम शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की. जब रात हुई और वह ब्राह्मण सोया तो सपने में भगवान आये और बोले ब्राह्मण मुझे तुम जहाँ से लाए हो वही छोड आओं मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा. इस पर ब्राह्मण बोला भगवान !
वो कसाई तो आपको तुला में रखता था जहाँ दूसरी और मास तोलता था उस अपवित्र जगह में आप थे.

भगवान बोले - ब्रहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तोलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से झूला झूल रहा हो जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था.हर पल मेरा भजन करता था जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था वो आनंद यहाँ नहीं.इसलिए आप मुझे वही छोड आये.तब ब्राह्मण तुरंत उस सदना कसाई के पास गया और बोला मुझे माफ कर दीजिए.वास्तव में तो आप ही सच्ची भक्ति करते है.ये अपने भगवान को संभालिए.

सार

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भगवान बाहरी आडम्बर से नहीं भक्त के भाव से रिझते है.उन्हें तो बस भक्त का भाव ही भाता है।
जय श्री कृष्ण...!!!!
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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐 🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐🕉 *सागर के मोती*

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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

    🌷🌹💐🌺🌷🌹💐
      🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷
     🌷🌹💐🌺🌷🌹💐

🕉 *सागर के मोती*

सर्वभाव से भगवान का भजन करने का तात्पर्य है कि *मैं-पन* बिल्कुल न रहे। जैसे कन्या सर्वभाव से पति की हो जाती है उसका गोत्र भी नहीं रहता, ऐसे ही सर्वभाव से भगवान के हो जाएं, अपना कोई भी भाव अलग न रहे।

धन के द्वारा दूसरों का उपकार कभी हुआ नहीं, हो सकता नहीं।  जिसके भीतर धन की आसक्ति है वह उपकार नहीं कर सकता। वह परमात्मा की तरफ भी नहीं लग सकता। उपकार उदारता से होता है धन से नहीं। कल्याण उदारता से होता है। रुपयों का महत्व नहीं है। प्रत्युत  रुपयों के खर्च (त्याग) का महत्व है। रुपयों का खर्च उदार ही कर सकता है।
महिमा और निंदा परिस्थिति, वस्तु आदि की नहीं है। सदुपयोग की महिमा है और दुरुपयोग की निंदा है-- यह सार बात है।

जब तक ह्रदय में भोग और संग्रह का महत्व बैठा है तब तक परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसके भीतर नाशवान का महत्व हो वह अविनाशी को कैसे प्राप्त करेगा। 

       🕉🕉🕉🕉🕉🕉
    🕉🙏ॐ हरि ॐ🙏 🕉
      🕉🕉🕉🕉🕉🕉
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।। श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष ।।●●ऊँ●●

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।। श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष ।।

●●ऊँ●●

*भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक की सोलह तिथियां श्राद्ध कहलाती है, हमारे धर्मग्रथों में यह मान्यता है कि एक पीढ़ी पहले के पूर्वजों अर्थात जो भी हमसे बड़े हैं, जो भी हमारे पूर्वज है उनके प्रति हम श्रद्धावनत हों, उन्हें स्मरण करें और उनके प्रति कृतज्ञ बनें।इसलिए यदि दादा-दादी, नाना-नानी, मां-पिता, बड़ा भाई या अन्य हमारे स्वजन जिनसे हमारा बहुत प्रेम रहा है और उनका देहान्त हो गया है, उनका श्राद्ध करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है।जिस भी तिथि को उनका देहान्त हुआ है, श्राद्ध पक्ष की उसी तिथि को उनका श्राद्ध किया जाता है।श्राद्ध पक्ष में आपके पूर्वज, बन्धु-बांधव धरती पर आकर तर्पण-समर्पण प्राप्त कर पुनः उच्चलोक की यात्रा करते हैं।यदि पितरों को श्रद्धा पूर्वक पूजा, ध्यान एवं आहवान किया जाए तो वे मनुष्य के प्रत्येक कार्य में ऐसे अच्छे सहयोगी बनते हैं कि चिंताएं एवं समस्याएं जीवन से दूर हो जाती है। "श्राद्ध पक्ष एक अवसर है हम सब को अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का।"*
====================

★★ *"पितृ नमन"* ★★
*पितर चरण में नमन करें,ध्यान धरें दिन रात।*
*कृपा दृष्टि हम पर करें, सिर पर धर दें  हाथ॥*

*ये  कुटुम्ब है आपका, आपका   है  परिवार।*
*आपके  आशिर्वाद  से, फले - फूले  संसार॥*

*भूल -चूक  सब क्षमा करें, करें मेहर भरपूर।*
*सुख  सम्पति  से घर भरें, कष्ट करें सब दूर॥*

*आप  हमारे  हृदय  में, आपकी हम  संतान।*
*आपके  नाम से  हैं जुड़ी, मेरी हर  पहचान॥*

*आपका ऋण भारी सदा, नहीं चुकाया जाय।*
*सात जनम  भी कम पड़े, वेद पुराण  बताय॥*

*हर  दिन  हर  पल आपसे, माँगे  ये  वरदान।*
*वंश  बेलि  बढ़ती  रहे, बढ़े   मान   सम्मान॥*

       *।। ⛳⛳⛳ ।।*
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।। श्री शिवमहापुराण प्रवर्चन ।।🔱🔆🐍🌙🔱🔆🐍🌙*_भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर

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।। श्री शिवमहापुराण प्रवर्चन ।।

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*_भगवान  शिव  अर्थात  पार्वती  के  पति  शंकर  जिन्हें  महादेव,  भोलेनाथ,  आदिनाथ  आदि  कहा  जाता  है।  आइए  उन  भगवान   शिव  के   "35"  रहस्य  समझें:_*

       *_दूसरा  दिन_*

*_🔱4. शिव  की  अर्द्धांगिनी : -_ शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।*

*_🔱5. शिव  के  पुत्र : -_ शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।*
*_🔱6. शिव  के  शिष्य : -_ शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।*

*_🔱7. शिव  के  गण : -_ शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।* 

     *_कल  भी  जारी ....._*

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🌲🌲🌲🌲 पितृ-पक्ष - श्राद्ध 🌲🌲🌲🌲

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🌲🌲🌲🌲  पितृ-पक्ष - श्राद्ध  🌲🌲🌲🌲

   #पितृ_पक्ष :- भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
तदनुसार 1सितम्बर 2020 मंगलवार से प्रारंभ।

.   🌎🌐  इस सृष्टि में प्रत्येक वस्तु का अथवा प्राणी का जोड़ा है । जैसे - रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं । सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है । दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं ।

     इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है । दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता । ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं । 
पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है । 

💎  धर्म ग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है। 
वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है ।

💎  पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है ।
श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

💎  श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे। इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं ।
यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है ।

💎  श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं--
     1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं ।
 दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए ।

     2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही, राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है ।
पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है ।

     3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं ।
     4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह करभोजन करें ।

     5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए ।
इससे वे प्रसन्न होते हैं ।
श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पड़ने से वह पितरों को नहीं पहुंचता ।

     6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है ।

     7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है ।
तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है । 
वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं ।
कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं ।

     8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है ।

     9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है ।
     10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते ।

     11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए ।
जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है ।

     12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए ।

     13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है ।

     14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है ।
     15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।

     16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

     17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं । 
आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

     18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
     19- भविष्य पुराण के अनुसार 
श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, 
जो इस प्रकार हैं-

# 1- नित्य, 
2- नैमित्तिक, 
3- काम्य, 
# 4- वृद्धि, 
5- सपिण्डन, 
6- पार्वण, 
# 7- गोष्ठी, 
8- शुद्धर्थ, 
9- कर्मांग, 
 #10- दैविक, 
11- यात्रार्थ, 
12- पुष्टयर्थ

     20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार :
#तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।

#भोजन_व_पिण्ड_दान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं। 

#वस्त्रदान-- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।

#दक्षिणा_दान-- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।

     21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

     22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।

     23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।

     24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।

     25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।

     26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा।
जय श्री कृष्ण...!!!!
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवर्चन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवर्चन ।।

*श्री हनुमानजी का मुक्के खाने के बाद भी मेघनाद जिंदा रहा यह देखकर श्री हनुमानजी समझ गए कि ये वरदान प्राप्त निशाचर है, ऐसे नहीं मरेगा ।*
*उधर मेघनाथ ने श्री हनुमानजी पर तरह-तरह की मायावी शक्तियों का प्रयोग किया, परन्तु प्रभू श्री राम के सेवक होने के कारण व माता सीता के आशीर्वाद के प्रताप से पवन पुत्र (शंकर सुमन केसरी नंदन) श्री हनुमानजी पर किसी मायावी शस्त्र का बिल्कुल असर नही हुआ !*

                *।। राम  राम राम ।।* 

*आज पूर्णमासी है ।*
*आज से श्राद्ध-पक्ष प्रारम्भ है ।*
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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...