https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 08/18/20

*बहुत सुंदर प्रसंग*👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*बहुत सुंदर प्रसंग*
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻

*एक राजा ने यह ऐलान करवा दिया कि कल सुबह जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा तब जिस शख़्स ने भी महल में जिस चीज़ को हाथ लगा दिया वह चीज़ उसकी हो जाएगी।*
*इस ऐलान को सुनकर सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं तो सबसे क़ीमती चीज़ को हाथ लगाऊंगा।*
*कुछ लोग कहने लगे मैं तो सोने को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग चांदी को तो कुछ लोग कीमती जेवरात को, कुछ लोग घोड़ों को तो कुछ लोग हाथी को, कुछ लोग दुधारू गाय को हाथ लगाने की बात कर रहे थे।*
*जब सुबह महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद चीज़ों के लिये दौड़ने लगे।*
*सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद चीज़ों को हाथ लगा दूँ ताकि वह चीज़ हमेशा के लिए मेरी हो जाऐ।*
*राजा अपनी जगह पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था।*
*उसी समय उस भीड़ में से एक शख्स राजा की तरफ बढ़ने लगा और धीरे-धीरे चलता हुआ राजा के पास पहुँच कर उसने राजा को छू लिया।*
*राजा को हाथ लगाते ही राजा उसका हो गया और राजा की हर चीज भी उसकी हो गयी।*
*जिस तरह राजा ने उन लोगों को मौका दिया और उन लोगों ने गलतियां की।*
*ठीक इसी तरह सारी दुनियाँ का मालिक भी हम सबको हर रोज़ मौक़ा देता है, लेकिन अफ़सोस हम लोग भी हर रोज़ गलतियां करते हैं।*
*हम  प्रभु को पाने की बजाए उस परमपिता की बनाई हुई दुनियाँ की चीजों की कामना करते हैं। लेकिन कभी भी हम लोग इस बात पर गौर नहीं करते कि क्यों न दुनियां  के बनाने वाले प्रभु  को पा लिया जाए*
*अगर प्रभु हमारे  हो गए तो ही उसकी बनाई हुई हर चीज भी हमारी हो जाएगी*
*🙏जी ॐ हरि ॐ जी 🙏*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

एक अमृत तुल्य ज्ञानवर्धक प्रस्तुति!

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जय द्वारकाधीश

*एक अमृत तुल्य ज्ञानवर्धक प्रस्तुति! 🙏🏻🌹*


* जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल
सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥

भावार्थ:-जिनका नाम जन्म-मरण रूपी रोग की (अव्यर्थ) औषध और तीनों भयंकर पीड़ाओं (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःखों) को हरने वाला है, वे कृपालु श्री रामजी मुझ पर और आप पर सदा प्रसन्न रहें॥

मित्रो, आनन्द के महासिन्धु भगवान् रामजी हैं लेकिन रक्षा करने वाले हनुमानजी है, "तुम रच्छक काहू को डरना" जिसके रक्षक श्रीहनुमानजी हो उसको किसी से भी डरने की आवश्यकता नही हैं, हनुमानजी का सेवक है अभयम, देवी-देवता भी इससे डरने है सब देवी-देवता सोचते है कि हनुमानजी का सेवक है इसको सताने से हमारी दुर्दशा हो जायेगी और इसके अनेको प्रमाण हैं।

जो आनन्द सिन्धु सुख राशी, सीकर तें त्रैलोक सुपासी। 
सो सुख धाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक बिश्रामा।।


"आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांकतें काँपै" इतना प्रबल तेज है श्रीहनुमानजी का इसको केवल श्रीहनुमानजी ही संभाल सकते हैं, क्योंकि यह शंकरजी के अवतार हैं, शंकर सुवन और शंकरजी प्रलय के देवता हैं, जिसमे प्रलय करने तक की शक्ति और सामर्थ्य हो उसको कोई सम्भाल सकता है क्या? लक्ष्मणजी की मूर्छा के समय यही तो बोले थे "जो हो अब अनुशासन पावो" भगवान् अगर आपकी आज्ञा हो तो! 

जो हों अब अनुशासन पावो तो चन्द्रमा निचोड़ चेल, 
जों लाइ सुधा सिर लावों जो हो अनुशासन पाऊँ।
कैं पाताल, दलो विहयावल अमृत कुँड मैं हिलाऊँ, 
भेदि, भवनकर भानु वायु तुरन्त राहुँ ते ताऊ।

यह तेज, यह प्रबल यह श्रीहनुमानजी हैं, सज्जनों! आप कल्पना करें कितनी इनकी भारी गर्जना भारी होगी, एक बार भीम को कुछ अभिमान हो गया जब कोई पुष्प द्रोपदी ने मंगाया था तो इन्होंने कहा मै लाऊंगा कोई कमल या विशेष फूल जो हिमालय में होता था, और उस सीमा के भीतर देवताओं का वास है, मनुष्य वहां नही जा सकता, लेकिन भीम ने अहंकार में कह दिया कि मैं लाऊँगा, बद्रीनाथ के पास हनुमानचट्टी में बूढे वानर के रूप में हनुमानजी लेटे थे।

भीम तो अपने अभिमान में जा रहे थे, भीम ने कहा ऐ वानर एक तरफ हट जा मुझे आगे जाने दो, बूढ़े वानर के वेश में हनुमानजी ने कहा बूढ़ा हो गया हूँ अब हिम्मत नही है, तुम मुझे थोड़ा सा सरका दो तो भीम ने कहा कि लाँघ कर जा नही सकता, बीच में तुम पडे़ हो, भीम ने पूँछ को सरकाने की भरसक कोशिश की मगर हनुमानजी की पूँछ जिसे रावण नही हिला पाया बाकी की तो बात छोड़ो।

भीम जब बहुत पसीना-पसीना हो गयें तो कहा कि कहीं आप मेरे बड़े भाई हनुमानजी तो नही है, तब हनुमानजी ने अपना एक छोटा रूप प्रकट किया, भीम ने प्रणाम किया और कहा कि हम आपका वह रूप देखना चाहते है जिस रूप में आपने लंका जलाई थी, "विकट रूप धरि लंक जरावा" हनुमानजी ने कहा वह रूप तुम सहन नहीं कर पाओगे, देख नही पाओगे।

भीम बोले हम क्या कोई सामान्य व्यक्ति हैं, आप यदि महावीर है तो हम महाभीम है, हनुमानजी ने वह रूप थोड़ा सा प्रकट किया भीम मूर्छित होकर गिर पड़े, हनुमानजी ने मूर्छा दूर की और समझाया, तो उस तेज को सम्भालने की क्षमता केवल श्रीहनुमानजी में ही है, तब भीम ने कहा आप मेरे पर कृपा करें, तब हनुमानजी ने कहा जब तुम्हारा युद्ध होगा तब मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी।
गर्भ सृवहिं सुनि निशिचर नारी।।

भीम को वापस कर दिया कि आगे देवताओं की मर्यादा है किसी की मर्यादा का उल्लंघन नही करना चाहियें, यहाँ से भीम वापस आये तो हनुमानजी का बहुत गुणगान करते आयें, श्रीहनुमानजी की गर्जना इतनी जबरदस्त थी कि राक्षसों के हाल भी बेहाल हो गयें, गर्भवती राक्षसियों के तो गर्भपात हो गये थे, हनुमानजी की हाँक सुनकर रावण भी घबरा जाता था, रावण के भी कपड़े ढीले हो जाते थे।

हाँक सुनत रजनीचर भाजे, आवत देखि बिटप गहि तर्जा।।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा, चलत महाधुनि गरजेसि भारी।।

" हाँक सुनत दशकन्द के भये बन्धन ढीले " रावण के वीरों को देखकर जब हनुमानजी गर्जना करते थे तो वीर सैनिक मूर्छित होकर गिर जाते थे, भगदड़ मच जाती थी, केवल राम - रावण युद्ध में ही गर्जना नहीं, जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अर्जुन, हनुमानजी की प्रार्थना करो, बिना उनकी सहायता के युद्ध नही जीत पाओगे।

भगवान् तो अपने भक्त को ही स्थापित करना चाहते थे, अर्जुन भी भक्त थे लेकिन अर्जुन भक्त कम और सखा ज्यादा थे, हनुमानजी भक्त की पराकाष्ठा है, इस लिये हनुमानजी प्रसन्न हो तो भगवान् प्रसन्न रहते हैं ही, इस लिये भाई - बहनों हनुमानजी को भक्ति से प्रसन्न करो, कलयुग में भगवान् को पाने का एक ही साधन है हनुमानजी की भक्ति।

जय श्री रामजी! 
जय श्री हनुमानजी

|| भगवान के कई अवतार हैं ||

अनंत अवतार हैं। जिनमें से दस अवतार प्रमुख हैं। 

भगवान के चौबीस अवतारों का भी वर्णन ग्रंथों में मिलता है। 

लेकिन जन कल्याणार्थ भगवान के अवतार होते रहते हैं। 

इस प्रकार असंख्य अवतार हैं। 

इस लिए ही भगवान के असंख्य नाम हैं। लीला और कथा हैं। भगवान एक ही हैं। 

लेकिन समय - समय पर जैसे रूप गुण और लीला की जरूरत होती है उसके अनुरूप भगवान रूप बना लेते हैं जिसे अवतार कहा जाता है। 

ऐसे ही भगवान का दीनबंधु अवतार है। 

भगवान का श्रीरामावतार ही दीनबंधु अवतार है।

त्रेता युग में साक्षात पूर्ण ब्रह्म परमात्मा दीनबंधु के रूप में अवतरित हुए। 

इस लिए इस अवतार में भगवान ने जितने और जैसे दीनों का उद्धार किया उतना और अवतार में नहीं किया है। 

भगवान राम ने दीनों का उद्धार ही नहीं किया बल्कि दीनों के बीच ही अपना वास बना लिया। 

उन्हीं के बीच जाकर रहने लगे। 

रामजी ने पशु, पक्षी, राक्षस, पत्थर, कोल, किरात, भील , केवट आदि दीनों को अपना लिया। 

अपना बना लिया। 

इतनी करुणा और रूपों में भगवान ने प्रत्यक्ष नहीं बरसाई -

केवट मीत कहे सुख मानत वानर बंधु बड़ाई' और किसी अवतार में भगवान ने इतनी करुणा नहीं दिखाई कि वानर- भालू, और गीध आदि को भी अपने प्रेम का करुणा का पात्र बना लिया हो। 

उनके मित्र बन गए हों। 

सखा बन गए हों। 

उनके बीच, उनके साथ रहने लगे हों। 

बस गए हों। 

दीन मलीन वानर भालू सदा राम जी को घेरे रहते हैं। 

ऐसा उनका विरद है। 

उनकी शोभा है - 

‘दीन मलीन रहैं नित घेरे शोभा विरद तुम्हारी’ इस प्रकार रघुनाथ जी जैसा कोई दीनबंधु नहीं है।

यह संसार परिवर्तनशील है,यहां पर बहुत कुछ चीज बदल गई हैं और अभी और बदलेगी, परंतु परमात्मा कभी नहीं बदलता। 

वह हमेशा समरूप में रहता है और सृष्टि का संचालन पालन और पोषण करता रहता है। 

प्रभु श्री राम जिसे भगवान कहा जाता है वह कभी नहीं बदले।

प्रभु श्री राम एवं हनुमान जी की कृपा पर हमेशा बनी रहे।

             || जय श्री राम जय हनुमान ||

जयति जय बालकपि केलि
कौतुक उदित -चंडकर - मंडल -ग्रासकर्त्ता।

राहु -रवि -शुक्र -पवि -गर्व खर्वीकरण
शरण -  भयहरण  जय  भुवन - भर्त्ता।।

हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो। 

आपने बचपन में ही बाललीला से उदयकालीन प्रचण्ड सूर्य के मण्डल को लाल - लाल खिलौना समझकर निगल लिया था। 

उस समय आपने राहु, सूर्य,इन्द्र और वज्र का गर्व चूर्ण कर दिया था। 

हे शरणागत के भय हरने वाले! 

हे विश्व का भरण - पोषण करने वाले! ! 

आपकी जय हो,जय हो।'

  || हनुमान जी महाराज की जय हो ||
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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💥 अध्याय 6 💥 """"""""""""""""'"

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

💥  अध्याय  6 💥
         """"""""""""""""'"

फलों  की इच्छा का त्याग कर,
     जो करें  सभी  नित्य  कर्म को।
वह योगी,न करें वह भोगी,
      साधु मानते इसी धर्म को।। 1।।
                        💥

  सुन जिसे संन्यास कहते है,
      उसको ही तू योग  जान ले।
 बिना फल ,संकल्प को छोड़े -
      योगी न होता यह मान लें ।। 2।।

                  💥
मुनि  को योग प्राप्त करने में  ,
      कर्म ही तो कारण होते हैं ।
निष्काम कर्म से योग मार्ग,
     पर आरूढ़ शांति बोते हैं ।। 3।।

                 💥
इन्द्रिय भोग ,न ही कर्मों  में, 
     आसक्ति  वो नाहिँ पाता है।
सर्व संकल्प का त्यागी मुनि, 
     योगारूढ़  कहा जाता है।।4।।

                💥
खुद से खुद का उद्धार करें, 
    न करना अपनी तू अधोगति।
होता मानव स्वयं का मित्र-
    शत्रु बन रोकता खुद की गति।।5।।
     
                      💥
जिसने जीता आत्मा से मन,
वह खुद का ही तो साथी है।
 आत्मा से मन जीत न पाया,
वह खुद से खुद का अराति है।।6।।

                      💥
संयोग-वियोग,सुख-दुःखादि ,
सबमें धरते शांति का  वास।
वैसे साधक के हृद में ही-
परमात्मा करते  हैं निवास।।7।।

                💥
जो रहता संतुष्ट ज्ञान से,
    जिसका सदैव रहता स्थिर मन।
जीता इन्द्रिय को जो साधक,
     सम लगे उसे सुवर्ण, पाहन।।8।।

                      💥
सुहृद्,मित्र,शत्रु और  पापी,  
       उनको जो देखे एक तुल्य।
वैसा नर पाता इस धरा पर
       योगियों  में सदा श्रेष्ठ मूल्य ।।9।।
        
                       💥

उचित रहता योगी के लिए, 
      संग त्याग कर एकांत वास ।
करें  मन वआत्मा को वश में, 
      रखें जीव का शिव में निवास।।10।।
              💥
योग के लिए चयन करों तुम, 
   ऐसी निर्मल व शांत धरनी ।
कुश व मृगचर्म का रख आसन,
    विरक्ति  हो अंतस में दूनी।। 11।।
                      💥

फिर करों  मन को  एकाग्र तुम ,
      इससे होती दूर कुबुद्धी।
होए  इच्छा व वृत्ति  समाप्त ,
      तब जाकर होती आत्म शुद्धि ।12।।
                     💥

रख स्थिर अपने इस तन को तू,
    बिना कुछ  इधर-उधर हिलाये।
दृष्टि रख अम्र के अग्र भाग में 
      भौतिकता से चित्त  हटायें।।13।।
                   💥
 पंचभूत को पंचभूत  से,
 नाश करता योग से जो नर।
शांत चित्त कर मुझमें रमता,
वो ले  मन चाहा मुझसे वर।।14।।

                  💥
मन को करके  वश में योगी,
आत्मा को रमाये योग से ।
वो ही मानव पा जाता फिर
परम पद को सात्विक भोग से।।15।।

                   💥
विषयों का कर के अति सेवन,
या करता निरोधात्मक वृद्धि ।
वैसे साधक नहीं पा सकें ,
योगाभ्यासों से कभी सिद्धि ।।16।।
                  💥
ले परिमित अन्न  ,परिमित भ्रमण,
      संग जो करता परिमित कर्म ।
शयन,जागरण करता परिमित ,
      तोष बढ़ पूर्ण हो योग धर्म  ।।17।।
                        💥
आत्मा से जो मनुज रोकता, 
      अपनी  इन चित्त वृत्तियों  को।
 होता निःस्पृह भावना छोड़ 
     तभी वह पाता युक्तियों को।।18।।
                        💥
जिसने किया अधीन चित्त को,
    योग में सदैव लगा रहता।
उस नर का मन शांत  स्थान के,
     दीपक की भाँति जला करता।। 19।।

             💥
 जिस भाव से योग सेवा कर ,
     भक्त को मिलता  विश्राम है।
वहीं चित्त स्वयं  शुद्ध होकर  ,
     चैतन्य   का  करता पान है।20।।
   
                      💥
जो सुख पाएँ अनन्त हृद में ,
    दुख का न लेश मात्र होता।
वह जानता बुद्धि से सुख को
     वह  चैतन का पात्र होता।।21।

               💥
आत्मस्वरूप सुख पाकर मन,
 भौतिकता की चाह न बोता।
सुख में स्थिर मन को रखकर ,
 सुख-दुख से विचलित न होता।।22।।

                           💥
जब मन दुख से पाता निवृत्ति,
वह स्थिति  है योगावस्था ।
अतःतू खुश होकर योग कर ,
यही है निर्विकल्प व्यवस्था।।23।।

                      💥
जब  करेगा साधक संकल्प ,
काम त्यागे 'औ' हो आभास ।
हट जाता फिर विषयों  से मन ,
 फिर  कर तू यहीं  योगाभ्यास।। 24।।

               💥
बुद्धि लेता धैर्य की शरणत्,
      तब ब्रह्म रूप मन पाता है।
सारे चिन्तन होते समाप्त ,
      धर्म यह मार्ग बतलाता है ।। 25।।

                       💥

मन रहें हमेशा अति चंचल ,
       हो न  पाएँ जो  स्थित कभी ।
मन को बाँधें  रखो ब्रह्म में ,
      मन हो पाता हैं  शांत  तभी ।। 26।।

                
                  💥

हो जिसका मन शांत हमेशा ,
       रजोगुण होते उसके नष्ट ।
 आत्मा होती  ब्रह्म में लीन ,
       होते दूर आध्यात्मिक कष्ट ।।27।।

                    💥

ये योगी पापरहित होकर,
     जीव को शिव में लगाते हैं ।
फिर मिलता है  हमें  ब्रह्म सुख,
      ब्रह्म सुख वो ही दिलाते है।।28।।

                 💥

  देखता  जो  जीव में शिव को,
        ऐसा वह स्वरूप रखता है।
ऐक्य भाव में सदा व्याप्त हो ,
       वह सब में मुझे देखता है।।29।।

                     💥

 अर्जुन को बता रहे माधव,
    दीपक प्रकाश में भेद नहीं।
यह जो जान गया है  योगी, 
     मेरे रूप को पाता वही।।30।।

                💥
 सभी प्राणी में  देखे मुझे, 
      रहती हो जिसमें  ऐक्य दृष्टि ।
बंधनों  से वह मुक्त रहता, 
      वही पाता फिर परमावृष्टि ।।31।।
     
                     💥

पराई पीर अपनी जानें ,
     सबको जो एक्य रुप माने।
वह ही होता है सर्व श्रेष्ठ ,
     भगवन आये तुझे   बताने।।32।।

                   💥

अर्जुन बोल रहे माधव से,
   आप ये जो मार्ग  बता रहें ।
ठग रहा मन मेरा बुद्धि को,
    हमें  कैसा पाठ पढ़ा रहें ।।33।।
                   💥

ठगी यह मन होत अति चंचल ,
     दौड़े हरपल दशों दिशा में ।
रोकना मन को बहु  कठिन है,
      रहे मन अपनी मनीषा में ।।34।।

                         💥
कृष्ण  बोल रहें ----
..................
 बात तेरी बिल्कुल सत्य है,
     मन का स्वभाव होए चंचल ।
वैराग्य के अभ्यास से ही --
शांत होता चित्त का हलचल।।35।।

                       💥

 जिसका मन नहीं रहें वश में,  
       कठिन लगे उसे योगसाधन।।
जितेन्द्रि पुरुष जो होए जग में, 
     यत्न से  वह पाएँ  स्थिरासन।।36।।
                 💥
 करें श्रद्धा से अभ्यास पर,
      ध्यान  में  जब शिथिलता आएँ ।
वैसा साधक बोलो माधव,
      फिर किस गति को वह पा जाएँ ।।37।।
     
                      💥

 जो  किया न कभी कर्म अर्पण,
     योग से  सिद्धि मिले न जिसको ।
 योगी की स्थिति होए वैसी,
       देखो बिन पानी के घन को।।38।।

                         💥

हे माधव तुम दूर  हटाओ
       मेरे मन की इस शंका  को।
 'औ' न कोई  इसे दूर करें , 
      समझो मेरी इस  मंशा को।।39।।

                 💥

मोक्ष की चाह रखे जो नर,
      उसका कभी न विनाश होता।
भले राह में रुकना पड़े, 
     अन्त में प्रभु का साथ होता।। 40।।

                   💥

योग भ्रष्ट मनुज  हमेशा ही,
    स्वर्ग का  निवास  पा जाता है।
जब ले वहीं जन्म दोबारा ,
      समृद्ध घर को वो आता है।।41।।

                    💥

या वह आता योगी कुल में, 
      स्वयं  लेने जन्म दोबारा ।
ऐसा जन्म लोक में  दुर्लभ, 
      दे रहें माधव  ज्ञान सारा।।42।।

               💥
 पूर्व जन्म की सिद्ध बुद्धि से, 
       लेते जन्म यहाँ  दोबारा ।
बाल काल से फिर वे करते,
        प्रभु तमन्ना में योग सारा।।43।।

                         💥

पूर्व के अभ्यास से परवश,
     साधक योगा करता जाएँ ।
संपूर्णता की चाह में वो,
     फलों  से अधिक फिर फल पाएँ।।44।।

                          💥

जो भक्त  सब यत्न करता है,
     उसके पाप सभी  मिट  जाते।
हर जन्म के योग सिद्ध लोग, 
       ध्यान कर परम गति फिर पाते।। 45।।

               💥
ज्ञानी , कर्मी , तपस्वियों में, 
        होते सभी में श्रेष्ठ  योगी।
अतःकह रहा हूँ मैं तुमसे, 
         तुम  बन जाओ सच्चा जोगी।।46।।

                          💥
 
मुझमें जो भी चित्त लगाकर,
       श्रद्धा से करता मेरा भजन।
योगियों  में  लगते मुझे प्रिय,
       भक्ति में श्रेष्ठ है उसका मन।।47।।

    💥💥💥💥💥💥💥

यहीं छठा अध्याय  समाप्त होता है🙏🏻
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🌹🌹 आस्था व विश्वास / 🌸नटखट कान्हा 🌹🌹

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

🌹🌹 आस्था व विश्वास / 🌸नटखट कान्हा 🌹🌹


।। सुंदर कहानी ।।

🌹🌹 आस्था व विश्वास*🌹🌹


गरीबी से जूझती सरला दिन - ब - दिन परेशान रहने लगी थी।

भगवान के प्रति उसे असीम श्रद्धा थी और नित नेम करके ही वह दिन की शुरुआत करती थी।

आज भी नहा धोकर घर की पहली मंजिल पर बने पूजाघर में जाकर उसने श्रद्धा के साथ धूपबत्ती की और कल रात जो उसके पति को तनख्वाह मिली थी !

उसे भगवान के चरणों में अर्पित कर दी। 

पूजा खत्म करके वह घर के कामों में लग गई। 

बच्चों को तैयार करके उसने स्कूल भेज दिया और पति के लिए चाय नाश्ता बनाने लगी। 

पति नहाकर जैसे ही पूजा घर की तरफ़ बढ़ा।

कमरे से धुआँ निकल रहा था,वह अंदर की तरफ़ भागा "सरला!" उसने ज़ोर से आवाज दी।

" क्या हुआ " वह भी आवाज सुनकर ऊपर की तरफ़ भागी।

" हाय राम!यह क्या हुआ? "

            
कमरा धुएं से भर गया था,शायद पंखे के कारण जोत से आग फैल गई थी।

पास पड़ी सब धार्मिक किताबें और कुछ फोटो जल कर राख हो गए थे।वह वहीं जमीन पर बैठ गई।

अब क्या होगा कैसे बताए पति को कि जो पैसा वह महीना भर मेहनत करके लाया था,सब उसने स्वाह कर दिया। 

उसका अंतर्मन रो रहा था।
          
" चलो कोई बात नहीं अब जो होना था सो हो गया।

शुक्र करो कमरे में कोई सामान नहीं था,नहीं तो पता नहीं क्या होता। "

" यह सब बाद में संभाल लेना।

अभी मुझे काम के लिए लेट हो रहा है। " 

सरला का दिल बैठा जा रहा था,मन ही मन खुद को कोसती जा रही थी।

क्या जवाब देगी पति को जब वह पैसे के लिए पूछेगा?

" सामान की लिस्ट बना लेना,शाम को बाज़ार चलेंगे,राशन वगैरह लाना है ना। "

" हाँ!बना लूंगी,दुःखी मन से वह बोली। "

पति के निकलते ही उसने घर को ताला लगाया और अपने सुख दुःख की सहेली रूक्मणी के घर पहुंची,उसे देखते ही सरला रोते हुए उससे लिपट गई....!

 " अरे क्या हुआ,रो क्यों रही हो?

सारी घटना सुनकर वह भी परेशान हो गई, उसे सांत्वना देती हुई बोली....!

" भगवान पर भरोसा रखो वह सब भली करेंगे। "

वह चुप चाप उठी और बोझिल कदमों से घर  की तरफ़ चल दी। 

घर का ताला खोल बुझे मन से वह पूजा घर में जाकर बैठ गई। 

जले हुए सामान के बीच भगवान की फोटो उल्टी पड़ी हुई थी, उसने उसे सीधा कर दिया।तभी उसकी आंखें फैल गई।

जिस प्लेट में उसने रूपए रखे थे वह ज्यों के त्यों सही सलामत पड़े थे।

कांच का फ्रेम होने के कारण उसने प्लेट को पूरी तरह ढक दिया था।

अचानक यह सब देख सरला की आंखों से ख़ुशी के आंसुओं का सैलाब बहने लगा।

भगवान के प्रति उसका * विश्वास और आस्था * अचानक से और मजबूत महसूस होने लगी।

शिक्षा :- 

" अपने भगवान पर हमेशा विश्वास बनाए रखे।

मेरे भगवान कभी किसी का गलत या अमंगल होने नहीं देते।

कभी कभी आपको लगता होगा कि आपकी ज़िन्दगी में कुछ भी सही नहीं चल रहा है। 

आप सोचते कुछ और हैं और होता कुछ और है।

पर कुछ समय बीतने के बाद आपको एहसास होता है कि जो हुआ था अच्छा ही हुआ।

बस आपको उनपर पूर्ण श्रद्धा होनी चाहिये। "

🌹 *राधे राधे जी*🌹




          🌸नटखट कान्हा🌸


कान्हा आज अद्भुत आनन्द में हैँ। 

सखाओं संग इधर उधर डोल रहे हैँ। 

इन का पेटू सखा मधुमंगल और शरारती बन्दर तो इनके सदा के संगी हो गए है। 

इन के साथ मिलकर ये तरह तरह की शरारत करते हैं। 

राधा जू की एक सखी फल की टोकरी लेकर जा रही थी उसे मार्ग में ही रोक लिए। 

सखी ये फल तू किधर लेकर जा रही है। 

कान्हा ये राधा जू के लिए हैँ। 

अरे मैं भी तो उधर ही जा रहा हूँ। 

ला ओ ये टोकरी मुझे दे दो। 

नहीं कान्हा राधा जू तक न पहुंचेंगें ये फल। 

ये तुम्हारे पेटू सखा और बन्दर ही खा जायेंगें । 

तब भी कान्हा सखी की टोकरी से शरारत करके कुछ फल उड़ा लेते हैँ और तुरंत छिपा देते हैँ। 

सखी फल लेकर राधा जू के पास जाती है।

इधर राधा जू की स्थिति विचित्र बनी हुई है। 

सखी देखती है श्री जू राधा जू का पीताम्बर ओढ़ कर बैठी हुई है। 

अद्भुत आनन्द में है जैसे पीताम्बर उनके वस्त्र न होकर स्वयम् कान्हा ही उनसे लिपट गए हों । 

सखी प्रिया जू को फल खिलाती है पर वो अपने ही आनन्द में डूबी हुई हैँ। 

राधा जू अनुभव करती हैँ जैसे कान्हा ही उन्हें फल खिला रहे हैँ। 

कान्हा के मन की की इच्छा श्री को श्री जू अनुभूत कर रही हैँ कि वह कान्हा के संग हैँ और वही उन्हें खिला रहे हैँ। 

पुनः पुनः पीताम्बर में मुख छिपा कर प्रसन्न होती हैँ।

कुछ देर बाद वही सखी श्री जू की ओर आ रही है। 

कान्हा उसे मार्ग में ही रोक लेते हैँ। सखी तेरे पास क्या है और तू किधर जा रही है। 

कान्हा मेरे पास तो श्री जू के लिए चुनर है उनको देने जा रही हूँ । 

ये मैंने उनके लिए सजाई है। 

कान्हा उसे कहते हैँ ये चुनर मुझे दे दो श्री जू जब पाकशाला आएँगी तो बाद में उनको दे दूंगा। 

सखी देने से मना करती है। 

अरी ये कोई फल न हैँ जो मैं और मेरे सखा खा लेंगें । 

ये चुनर श्री जू अपने हाथों से ओढ़ा दूंगा। 

ये सुनकर सखी आनन्दित होती है ओर कान्हा को चुनर दे देती है। 

कुछ समय पश्चात वह देखती है कि कान्हा चुनर को ओढ़ वैसे ही आनन्दित होने लगते हैँ जैसे श्री जू उनके पीताम्बर को ओढ़ रखी थीं । 

युगल के मन में एक से भाव उठे देख सखी आश्चर्य में पड़ जाती है। 

पहले कान्हा का मन फल खिलाने को हुआ तो देखती है कि श्री जू यही अनुभूत कर रही हैं। 

अभी दोनों एक दूसरे के वस्त्र ओढ़ आनंदमग्न हो रहे हैँ। 

सखी इनके प्रेम पर बलिहार जाती है।

कुछ समय बाद सखी श्री जू के पास पाकशाला चली जाती है। 

श्री जू कई प्रकार के व्यंजन बना रही होती हैँ। 

ये सखी उनकी सहायता करते हुए गुनगुनाने लगती है। 

तभी कान्हा मधुमंगल और बन्दर पाकशाला की ओर आ जाते हैँ। 

बन्दर तो बाहर से ही बर्तनों की तोड़ फोड़ करने लगता है। 

पानी से भरी मटकी उल्टा देता है मटकी फोड़ देता है और कीच मचानी शुरू कर देता है।

पाकशाला से व्यंजन बनने की सुगन्ध के साथ गुनगुनाने की ध्वनि आती है। 

कान्हा भीतर आकर नाचने लगते हैँ। 

ये कोई नृत्य करने का स्थान है सखी पूछती है। 

स्थान तो ये गाने का भी नहीं है बाँवरी। 

मैं तो राधा जू का मन बहलाने को काम करती हुई गुनगुना रही थी। 

मैं भी राधा जू की प्रसननता के लिए नृत्य कर रहा हूँ । 

कान्हा राधा जू के हाथ से खाना बनाने की कड़छी और खोंची लेकर स्वयम् व्यंजन हिलाने लगते हैँ। 

सखी कहती है कान्हा तुम छोड़ दो। 

सारा श्रम तो राधा जू ने किया भोजन बनाने का तुम सबसे यही कहोगे कि ये व्यंजन मैंने बनाये हैं। 

कान्हा अपनी बातों में मग्न हो जाते हैँ और व्यंजन बर्तन में नीचे चिपकने लगता है । 

धीरे धीरे जलने जैसे गन्ध आने लगती है और बहुत सारा धुआँ इकठ्ठा हो जाता है। 

लो देख लो तुम्हारे नाच गाने का कमाल। 

एक ही व्यंजन को छूकर उसे भी खराब किये हो।

इधर पेटू मधुमंगल और नटखट बन्दर धुंए में खाँसते हुए बन्द पड़े बर्तनों में खाद्य सामग्री खोजने लगते। 

देखें तो सही इस बन्द बर्तन में क्या है। 

इस से पहले कि कोई उनको रोके मिर्च की डिबिया खोल लेते हैँ और शरारतों में सारी मिर्च गिरा देते हैँ। 

पहले धुएँ के कारण खाँस रहे थे अभी मिर्ची के कारण छींकने भी लगते। सभी पाकशाला से बाहर आ जाते हैँ। 

कान्हा और मण्डली को यशोदा मैया की और से खूब डांट पड़ती है। 

तुम पाकशाला के भीतर क्या करने गए थे।

कान्हा मैया के सामने कह नहीं पाते कि वो श्री जू को चुनर ओढ़ाने आये थे।

मैया ये पेटू मधुमंगल ही पुनः पुनः भोजन मांगता है।

मुझे इसकी बात माननी पड़ती है न।

भोजन के पश्चात कान्हा श्री जू के लौटने से पहले अपने करों से उन्हें वो चुनर ओढ़ा देते हैँ।

श्री जू सखी की दी हुई चुनर पहनकर आनन्दित होती हैँ तथा कान्हा छिपाये हुए कुछ फल भी उन्हें अपने हाथों से खिलाते हैँ।

सखी श्री जू के आनन्द से आनन्दित है।

नटखट कान्हा अपनी शरारतों द्वारा सभी को आनन्द देते हैँ..!!
   💧💧💧💧जय श्री कृष्ण💧💧💧💧💧जय श्री कृष्ण💧💧💧💧💧💧💧
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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🙏🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹🙏*धन, पुत्र, वही जो परमार्थ में लगे*

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🙏🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹🙏

*धन, पुत्र, वही जो परमार्थ में लगे*

    एक सेठ बड़ा साधु सेवी था। जो भी सन्त महात्मा नगर में आते वह उन्हें अपने घर बुला कर उनकी सेवा करता। एक बार एक महात्मा जी सेठ के घर आये। सेठानी महात्मा जी को भोजन कराने लगी। सेठ जी उस समय किसी काम से बाज़ार चले गये। 
भोजन करते करते महात्मा जी ने स्वाभाविक ही सेठानी से कुछ प्रश्न किये। पहला प्रश्न यह था कि तुम्हारा बच्चे कितने हैं ? सेठानी ने उत्तर दिया कि ईश्वर की कृपा से चार बच्चे हैं। 
महात्मा जी ने दूसरा प्रश्न किया कि तुम्हारा धन कितना है? उत्तर मिला कि महाराज! ईश्वर की अति कृपा है लोग हमें लखपति कहते हैं। महात्मा जी जब भोजन कर चुके तो सेठ जी भी बाज़ार से वापिस आ गये और सेठ जी महात्मा जी को विदा करने के लिये साथ चल दिये। मार्ग में महात्मा जी ने वही प्रश्न सेठ से भी किये जो उन्होंने सेठानी से किये थे। पहला प्रश्न था कि तुम्हारे बच्चे कितने हैं? सेठ जी ने कहा महाराज! मेरा एक पुत्र है। महात्मा जी दिल में सोचने लगे कि ऐसा लगता है सेठ जी झूठ बोल रहे हैं। इसकी पत्नी तो कहती थी कि हमारे चार बच्चे हैं और हमने स्वयं भी तीन-चार बच्चे आते-जाते देखे हैं और यह कहता है कि मेरा एक ही पुत्र है। महात्मा जी ने दुबारा वही प्रश्न किया, सेठ जी तुम्हारा धन कितना है? सेठ जी ने उत्तर दिया कि मेरा धन पच्चीस हज़ार रूपया है। महात्मा जी फिर चकित हुए इसकी सेठानी कहती थी कि लोग हमें लखपति कहते हैं। इतने इनके कारखाने और कारोबार चल रहे हैं और यह कहता है मेरा धन पच्चीस हज़ार रुपये है। महात्मा जी ने तीसरा प्रश्न किया कि सेठ जी! तुम्हारी आयु कितनी है? सेठ ने कहा-महाराज मेरी आयु चालीस वर्ष की है महात्मा जी यह उत्तर सुन कर हैरान हुए सफेद इसके बाल हैं, देखने में यह सत्तर-पचहत्तर वर्ष का वृद्ध प्रतीत होता है और यह अपनी 
आयु चालीस वर्ष बताता है। सोचने लगे कि सेठ अपने बच्चों और धन को छुपाये परन्तु आयु को कैसे छुपा सकता है? 
महात्मा जी रह न सके और बोले-सेठ जी! ऐसा लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो? 
सेठ जी ने हाथ जोड़कर विनय की महाराज! 
झूठ बोलना तो वैसे ही पाप है और विशेषकर सन्तोंं के साथ झूठ बोलना और भी बड़ा पाप है। 
आपका पहला प्रश्न मेरे बच्चों के विषय में था। वस्तुतः मेरे चार पुत्र हैं किन्तु मेरा आज्ञाकारी पुत्र एक ही है। भक्ति भाव पूजा पाठ में लगा हुआ है मैं उसी एक को ही अपना पुत्र मानता हूँ। जो मेरी आज्ञा में नहीं रहते कुसंग के साथ रहते हैं वे मेरे पुत्र कैसे? दूसरा प्रश्न आपका मेरा धन के विषय में था। महाराज! मैं उसी को अपना धन समझता हूँ जो परमार्थ की राह में लगे। मैने जीवन भर में पच्चीस हज़ार रुपये ही परमार्थ की राह में लगाये हैं वही मेरी असली पूँजी है। जो धन मेरे मरने के बाद मेरे पुत्र बन्धु-सम्बन्धी ले जावेंगे वह मेरा क्यों कर हुआ? तीसरे प्रश्न में आपने मेरी आयु पूछी है। चालीस वर्ष पूर्व मेरा मिलाप एक
 संत जी से हुआ था। उनकी सेवा चरण-शरण ग्रहण करके गुरु धारण किए मैं तब से भजन-अभ्यास और साधु सेवा कर रहा हूँ। इसलिये मैं इसी चालीस वर्ष की अवधि को ही अपनी आयु समझता हूँ।

              कबीर संगत साध की, साहिब आवे याद।
              लेखे में सोई घड़ी, बाकी दे दिन बाद। ।

जब कभी सन्त महापुरुषों का मिलाप होता है-
उनकी संगति में जाकर मालिक की याद आती है, 
वास्तव में वही घड़ी सफल है। शेष दिन जीवन के निरर्थक हैं।

🙏🌹🙏जय श्री कृष्ण🙏🌹🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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*💐भिखारी / चमकीले नीले पत्थर की कीमत 💐*

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*💐भिखारी / चमकीले नीले पत्थर की कीमत 💐*

*🦚🌳 आज की     कहानी  🌳🦚🌞*

*💐भिखारी💐*


अपनी नई नवेली दुल्हन किरन को, शादी के दूसरे दिन, ही दहेज मे मिली नई चमाचमाती गाड़ी से, शाम को दिनेश लॉन्ग ड्राइव पर लेकर निकला !


गाड़ी बहुत तेज भगा रहा था ,किरन ने उसे ऐसा करने से मना किया तो बोला-

अरे जानेमन !! 

मजे लेने दो, *आज तक दोस्तों की गाड़ी चलाई है,* आज अपनी गाड़ी है, सालों की तमन्ना पूरी हुई। 

मैं तो खरीदने की सोच भी नही सकता था, *इसी लिए तुम्हारे डैड से मांग करी थी।*

किरन बोली :-

अच्छा, म्यूजिक तो कम रहने दो ( आवाज कम करते करते हुए किरन ने कहा )

तभी अचानक *गाड़ी के आगे एक भिखारी आ गया*, बडी मुश्किल से ब्रेक लगाते, पूरी गाड़ी घुमाते हुए दिनेश ने बचाया,फिर तुरंत उसको गाली देकर बोला-

अबे मरेगा क्या भिखारी साले , देश को बरबाद करके रखा है तुम लोगों ने।

किरन गाड़ी से निकलकर उस भिखारी तक पहुंची तो देखा बेचारा अपाहिज था उससे माफी मांगते हुए पर्स से 100रू निकालकर उसे दिए और बोला -

माफ करना काका वो हम बातों मे?

कही चोट तो नहीं आई ? 

ये लीजिए हमारी शादी हुई है मिठाई खाइएगा ओर आर्शिवाद दीजिएगा...!

उसे साइड में फुटपाथ पर ले जाकर बिठा दिया भिखारी दुआएं देने लगा....!,

गाड़ी मे वापस आकर जैसे ही किरन बैठी दिनेश बोला :- 

तुम जैसों की वजह से इनकी हिम्मत बढती है *भिखारी को मुंह नही लगाना चाहिए*

किरन मुसकुराते हुए बोली - 

*भिखारी तो मजबूर था इसीलिए भीख मांग रहा था वरना सब कुछ सही होते हुए भी लोग भीख मांगते हैं दहेज लेकर!* 

जानते हो खून पसीना मिला होता है गरीब लड़की के माँ - बाप का इस दहेज मे आपने भी तो पापा से गाड़ी मांगी थी तो कौन भिखारी हुआ?? 

वो मजबूर अपाहिज या ....??

एक बाप अपने जिगर के टुकड़े को २० सालों तक संभालकर रखता है दूसरे को दान करता है जिसे कन्यादान "महादान" तक कहा जाता है ताकि दूसरे का परिवार चल सके उसका वंश बढे और किसी की नई गृहस्थी शुरू हो....!

उस पर दहेज मांगना भीख नही तो क्या है बोलो ..?

दिनेश एकदम खामोश नीची नजरें किए शर्मिंदगी से सब सुनता रहा क्योंकि....!

किरन की बातों से पडे तमाचे ने उसे बता दिया था कि *कौन है सचमुच का भिखारी......!*

*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*

आज का प्रेरक प्रसङ्ग*

   *!! चमकीले नीले पत्थर की कीमत !!*




एक शहर में बहुत ही ज्ञानी प्रतापी साधु महाराज आये हुए थे । 

बहुत से दीन दुखी, परेशान लोग उनके पास उनकी कृपा दृष्टि पाने हेतु आने लगे ।

ऐसा ही एक दीन दुखी, गरीब आदमी उनके पास आया और साधु महाराज से बोला ‘ महाराज में बहुत ही गरीब हूँ ।

मेरे ऊपर कर्जा भी है ।

मैं बहुत ही परेशान हूँ। 

मुझ पर कुछ उपकार करें’ ।

साधु महाराज ने उसको एक चमकीला नीले रंग का पत्थर दिया ।

और कहा ‘कि यह कीमती पत्थर है ।

जाओ जितनी कीमत लगवा सको लगवा लो। 

वो आदमी वहां से चला गया और उसे बचने के इरादे से अपने जान पहचान वाले एक फल विक्रेता के पास गया और उस पत्थर को दिखाकर उसकी कीमत जाननी चाही।
 
फल विक्रेता बोला ‘मुझे लगता है ये नीला शीशा है ।

महात्मा ने तुम्हें ऐसे ही दे दिया है ।

हाँ यह सुन्दर और चमकदार दिखता है ।

तुम मुझे दे दो....!

इसके मैं तुम्हें 1000 रुपए दे दूंगा। 

वो आदमी निराश होकर अपने एक अन्य जान पहचान वाले के पास गया जो की एक बर्तनों का व्यापारी था ।

उनसे उस व्यापारी को भी वो पत्थर दिखाया और उसे बचने के लिए उसकी कीमत जाननी चाही। 

बर्तनो का व्यापारी बोला....!

‘यह पत्थर कोई विशेष रत्न है में इसके तुम्हें 10,000 रुपए दे दूंगा । 

वह आदमी सोचने लगा की इसके कीमत और भी अधिक होगी और यह सोच वो वहां से चला आया.

उस आदमी ने इस पत्थर को अब एक सुनार को दिखाया ।

सुनार ने उस पत्थर को ध्यान से देखा और बोला ये काफी कीमती है ।

इसके मैं तुम्हें 1,00,000 रूपये दे दूंगा। 

वो आदमी अब समझ गया था कि यह बहुत अमुल्य है ।

उसने सोचा क्यों न मैं इसे हीरे के व्यापारी को दिखाऊं.....।

यह सोच वो शहर के सबसे बड़े हीरे के व्यापारी के पास गया।

उस हीरे के व्यापारी ने जब वो पत्थर देखा तो देखता रह गया ।

चौकने वाले भाव उसके चेहरे पर दिखने लगे ।

उसने उस पत्थर को माथे से लगाया और और पुछा तुम यह कहा से लाये हो ।

यह तो अमुल्य है ।

यदि मैं अपनी पूरी सम्पति बेच दूँ तो भी इसकी कीमत नहीं चुका सकता.....!

कहानी से सीख :-
 
हम अपने आप को कैसे आँकते हैं ।

क्या हम वो हैं जो राय दूसरे हमारे बारे में बनाते हैं ।

आपकी लाइफ अमूल्य है ।

आपके जीवन का कोई मोल नहीं लगा सकता.  आप वो कर सकते हैं ।

जो आप अपने बारे में सोचते हैं.।

कभी भी दूसरों के नेगेटिव कमैंट्स से अपने आप को कम मत आकियें।
🙏 जय माँ अंबे 🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🌳जय श्री कृष्ण🌳🙏🙏🙏🙏
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महारास एक चिंतन , *★पूंछरी के लोठा की जय ★*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। श्री विष्णुपुराण प्रवचन ।।
   

महारास एक चिंतन , *★पूंछरी के लोठा की जय ★*       

    🌕शरदपूर्णिमा की आप सबको बधाई।

           ( महारास एक चिंतन )




🌇प्रथमतः उस ब्रह्म द्वारा बाँसुरी का नाद किया जाता है ।

अर्थात् जीव को अपनी ओर  आकर्षित करने हेतु आवाज लगाई जाती है। 

कुछ लोग इस आवाज को सुन नहीं पाते हैं। 

कुछ सुन तो लेते हैं लेकिन समझ नहीं पाते हैं। 

मगर जो लोग इस इशारे को समझ लेते हैं ।

वो सब भोग विलास का त्याग करके उस प्रभु की शरण में चले जाते हैं।

🌇जब जीव द्वारा पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण की जाती है ।

तब श्रीकृष्ण द्वारा अपना वह ब्रह्म रस उन शरणागतों के मध्य मुक्त हस्तों से वितरित करके उन्हें उस अलौकिक ब्रह्म रस का आस्वादन कराके निहाल किया जाता है।

🌇जब तक जीव प्रभु के इशारे को अनसुना करके मैं और मेरे में उलझा रहता है ।

तब तक ही वह परेशान रहता है ।

मगर जिस दिन उसकी समझ में आ जाता है ।

कि अब मेरे प्रभु मुझे बुला रहे हैं ।

और वह सब छोड़कर उस प्रभु के शरणागत हो जाता है ।

उसी दिन उस प्रभु द्वारा उसे उस ब्रह्म रस में डुबकी लगाने हेतु महारास के उस ब्रह्म रस वितरण महोत्सव में प्रविष्ट करा दिया जाता है।

🌇जिस रस को ब्रह्मा,शंकर प्राप्त करने को लालायित रहते हैं। 

उस रस को बृज की गोपियाँ प्राप्त करती हैं। 

श्रीराधा रानी तो रास की स्वामिनी हैं और श्री ठाकुर जी को भी नचाने वाली हैं। 

किशोरी जी की कृपा होती है तभी जीव को रास का आनंद प्राप्त होता है।

जय रणछोड !
जय श्री राधे कृष्ण !!
🌹🙏🌹🙏🌹

*★पूंछरी के लोठा की जय ★*



 बहुत सुंदर कथा, बड़े भाव से पढ़े


श्रीकृष्ण के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे।

श्रीकृष्ण ने द्वारिका जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया।

इस पर लौठाजी बोले-

 'हे प्रिय मित्र ! 

मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं।

परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं।


अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न - जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। 

जब तू यहाँ लौट  आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।

'श्रीकृष्ण ने कहा-

 'सखा ! 

ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न - जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे। 

तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं।

"धनि - धनि पूंछरी के लौठा।

अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा।"

उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहाँ लौट कर आवेंगे। 

क्योंकि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं।

इस लिये इस स्थान पर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित है।

श्री गोवर्धन का आकार एक मोर के सदृश है। श्रीराधाकुंड उनके जिहवा एवं कृष्ण कुण्ड चिवुक हैं।

ललिता कुण्ड ललाट है। 

पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों - पूंछ के स्थान पर हैं। 

इस लिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं।

इसका दूसरा कारण यह है, कि श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। 

आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरी में हैं।

इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। 

इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं। 

ऐसा भी कहते है कि जब सभी गोप गोपियाँ गोवर्धन की परिक्रमा नाचते गाते कर रहे थे,तभी एक मोटा तकड़ा गोप वही गिर गए तभी पीछे से एक सखी ने कहा अरे सखी पूछ री कौ लौठा,

अर्थात "कौन लुढक गया" इस लिए भी इसे पूंछरी लौठा कहते है।

!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
      हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
                     🌹🙏🏻🌹
जगत की झूठी रौनक से है आँखे भर गयी मेरी
चले आओ मेरे मोहन दरस की प्यास काफी है

        *🌹✨ हरे कृष्ण ✨🌹*
  *🌹💦जय जय श्री राधे💦🌹*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

रामेश्वर कुण्ड

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