https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/18/20

ब्रज रस धारा / विनम्रता /अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

ब्रज रस धारा / विनम्रता /अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई  


राधे राधे......!

||  ब्रज रस धारा ||

 
जब गोकुल में बहुत बड़े - बड़े उत्पात होने लगे,

तो नंदबाबा और बड़े - बूढ़े सब लोगो ने इकठ्ठा होकर - अब ब्रज वासियो को क्या करना चाहिए?

’ इस विषय पर विचार किया,उनमे से उपनन्द नाम के गोप थे, उन्हें पता था कि किस समय क्या व्यवहार करना चाहियें, उन्होंने कहा भाईयो ! '





अब यहाँ ऐसे उत्पात होने लगे है जो बच्चो के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी है इस लि यदि हम लोग गोकुल और गोकुल वासियो का भला चाहते है तो यहाँ से कूच कर देना चाहिए,यहाँ से पास ही में“वृन्दावन”नाम का एक वन है, उसमे छोटे - छोटे और भी बहुत से नये - नये वन है वहाँ बड़ा ही पवित्र पर्वत,घास और हरी - भरी लता - वनस्पतियाँ है गोप, गोपी और गायों के लिए तो वह केवल सुविधा का ही नहीं, सेवन करने योग्य स्थान है सो यदि तुम सब लोगो को यह बात जँचती हो तो आज ही हम लोग वहाँ के लिए कूच कर दे ।

गाड़ी – छकडे जोते और पहले गायों को जो हमारी एक मात्र संपत्ति है वहाँ भेज दे । 

सब ने सहमति दे दी,सब लोगों ने झुंड - की - झुंड गाये इकट्टी की, बूढों, बच्चो और स्त्रियों को, और घर की सब सामग्री छकडे पर लादकर स्वयं उनके पीछे - पीछे धनुष - बाण लेकर बड़ी सावधानी से चलने लगे, 

उन्होंने गौ और बछडो को सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे सिंगी और तुरही जोर - जोर से बजाते हुए वृन्दावन की यात्रा करने लगे। 

गोपियाँ सुन्दर - सुन्दर वस्त्र पहनकर गले में हार धारण किये हुए, बड़े आनंद से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओ के गीत गाती जाती थी।

यशोदारानी और रोहिणी जी भी वैसे ही सज - धज कर अपने - अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण और बलराम के साथ एक छकडे पर शोभायमान हो रही थी। 

वे अपने दोनों बालको की तोतली बोली सुनकर अघाती ना थी, वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन था, 

चाहे कोई भी ऋतु हो, वहाँसुख - ही - सुख है, वहाँ हरा - भरा वन अत्यंत मनोहर,

गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी के सुन्दर - सुन्दर पुलिनो को देखकर भगवान कृष्ण और बलराम के हृदय में प्रीति का उदय हुआ,
थोड़े ही दिनों में समय आने पर वे ‘बछड़ा चराने’ लगे।

दूसरे ग्वालबालो के साथ खेलने के लिए बहुत - सी सामग्री लेकर, 

वे घर से निकल पड़ते और गोष्ठी के पास ही अपने बछडो को चराते, कही भगवान बाँसुरी बजा रहे है तो कही गुलेल या ढेलवाँस से ढेले फेक रहे है, 

किसी समय अपने पैरों के घुँघरू पर तान छेड रहे है तो कही बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे है, 

एक ओर देखिये तो सांड बनकर आपस में लड़ रहे है, 

तो दूसरी ओर मोर, कोयल, बन्दर, आदि पशु - पक्षियों की बोलियाँ निकाल रहे है इस प्रकार उस सुन्दर वृन्दावन में भगवान की बड़ी ही अनुपम शोभा है ।

सार - वृन्दावन के कण - कण में भगवान का वास है वृन्दावन की धूलिके लिए बड़े - बड़े योगी जन भी तरसते है |

    || जय जय श्री राधे कृष्ण ||

विनम्रता हमारी ताक़त है या कमज़ोरी ?


विनम्रता

अहंकार कब हमारे असल अस्तित्व को अपने घेरे में घेर लेता है, 

हमें पता ही नहीं चलता! हर पल की जागरूकता ही हमें लक्ष्य तक ले चल सकती है।

एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया।

नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ।

एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज़ में समुद्र से कहा, 

" बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या - क्या लाऊँ? "

" मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ। "

समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। 

उसने नदी से कहा, " यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी - सी घास उखाड़कर ले आओ। "

नदी ने कहा, 
"बस ...! 

इतनी - सी बात, अभी लेकर आती हूँ। "

मैदान से गुजरते वक़्त नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया घास पर, परन्तु घास नहीं उखड़ी। 

नदी ने कई बार जोर लगाया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी।

आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली, 

" मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ। 

मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ।"

समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला, 

" जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते है। "

किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, 

उसे प्रचंड आँधी - तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं बिगाड़ सकता। "

जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है।

कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है, 

क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है।

और नम्रता साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है...!

बीज की यात्रा वृक्ष तक है, नदी की यात्रा सागर तक है, 

और...!

मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक...!

संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब कुदरत का विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं।

इसी लिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...!

मैं न होता तो क्या होता...!

" जब हम महानता की दीवार तोड़ देते हैं और खुद को ईश्वर के, 

मालिक के विनम्र, तुच्छ सेवक के रूप में समर्पित कर देते हैं - 

जब शून्य होते हुए अपनी प्रवृत्तियों को वश में करके हम उन्हें अपने अस्तित्व की पूरी जिम्मेदारी सौंप देते हैं -

केवल तभी हम सच्चे अर्थ में जीवन का आनंद लेते हैं। 

जिसका अर्थ है - 

पूर्ण समर्पण। "

🌸🌹🌸🌹जय श्री कृष्ण🌹🌸🌹🌸  

अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई


       *अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई*

          *🌹दुःख ने सुख से कहा🌹*

          *तुम कितने भाग्यशाली हो*

*जो लोग तुम्हें पाने की कोशिश में लगे *रहते हैं....🙏🏻*
         *🌸सुख ने मुस्कराते हुए कहा🌸*

         भाग्यशाली मैं नहीं तुम हो...!

  
" दुःख ने हैरानी से पूछा : - " 

वो कैसे*

*सुख ने बड़ी ईमानदारी से जबाब  दिया 👍🏼*

वो ऐसे कि तुम्हें पाकर लोग अपनों को याद करते हैं 🙏🏻

लेकिन मुझे पाकर सब अपनों को भूल जाते हैं             

    🙏🌹 जय श्री कृष्ण  🙏🌹*          🍀

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक :-**गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |**गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं| |*हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही धारण करना | प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा |

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक :-*

*गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |*
*गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं| |*

हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! 

हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही धारण करना | प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा |

 हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे | 
गोकुल में आपके कारण सदैव उत्सव छाया रहता था मेरे ह्रदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहे साधना में, सेवा-सुमिरन में मेरा उसाह कभी कम न हो | मै जप, साधना सेवा,करते हुए कभी थकूँ नहीं | 

मेरी इन्द्रियों में संसार का आकर्षण न हो, मैं आँख से तुझे ही देखने कि इच्छा रखूं, कानों से तेरी वाणी सुनने की इच्छा रखूं, जीभ के द्वारा दिया हुआ नाम जपने की इच्छा रखूं ! 
हे गोविन्द ! आप गोपियों के प्यारे हो ! ऐसी कृपा करो, ऐसी सदबुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियां आपको ही चाहे ! 

मेरी इन्द्रियरूपी गोपीयों में संसार की चाह न हो, आपकी ही चाह हो !
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
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अद्भुत शिक्षा : ईश्वर कौन है ? : सन्मुख होइ जीव :

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जय द्वारकाधीश

अद्भुत शिक्षा :  ईश्वर कौन है ? : सन्मुख होइ जीव :


अद्भुत शिक्षा :


पत्नी के क्रोध से तंग पति ने एक दिन उसे कीलों से भरी एक थैली देकर कहा-

"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना ।"

  पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार में ठोक दी ।

यह प्रक्रिया लगातार करती रही।

धीरे - धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोकने के व्यर्थ परिश्रम से अच्छा है की....!
 
क्रोध ही नहीं किया जाए और इस प्रकार कील ठोकने की संख्या कम होती गई। 

एक दिन ऐसा भी आया जब पत्नी ने दिन में कोई कील नहीं ठोंकी।

प्रसन्नता से यह बात पति को बताने पर वह भी बहुत प्रसन्न हुआ और कहा....!

" जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई....! 

ठोंकी कील में से एक कील निकाल लेना ।"

पत्नी ऐसा ही करने लगी, एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। 

उसने खुशी खुशी यह बात पति को बताई।

पति पत्नी को लेकर बाड़े में गये और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा-

क्या तुम ये छेद भर सकती हो ?

पत्नी ने कहा नहीं जी ।

तब पति ने समझाया....!

"अब समझी ,क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"

"***भविष्य में जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोकने तो नहीं जा रहे हैं ?***""

|| ईश्वर कौन है ?||


ईश्वर को सर्वोच्च शक्ति माना जाता है।


ईश्वर को परमेश्वर, ब्रह्म, परमात्मा, प्रणव, सच्चिदानंद, और परब्रह्म भी कहा जाता है। 

ईश्वर को सृष्टिकर्ता और नियंता माना जाता है। 

ईश्वर के बारे में अलग - अलग धर्मों और महजबो में अलग - अलग मान्यताएं हैं।

ईश्वर से जुड़ी कुछ मान्यताएं : -

ईश्वर सर्वव्यापी है, यानी हर जगह मौजूद है।

ईश्वर सर्व शक्तिमान है, यानी वह हर काम कर सकता है।

ईश्वर सर्वज्ञ है, यानी वह सब कुछ जानता है। 

ईश्वर निराकार है, लेकिन वह कई रूपों में भी है।

ईश्वर की इच्छा है कि लोग अपने कर्मों के फल को उसी को अर्पण करें।

ईश्वर की प्रकृति को अधिष्ठान बनाकर वह अपने संकल्प के अधीन रखकर व्यक्ति भावापन्न हो जाते हैं।

ईश्वर की इस प्रकृति को अवतार कहा जाता है।

कौन चलाता है इस दुनियां को ?

कहाँ है ईश्वर?

तुम माँ के पेट में थे नौ महीने तक,कोई दुकान तो चलाते नहीं थे, फिर भी जिए।

हाथ — पैर भी न थे कि भोजन कर लो,फिर भी जिए।

श्वास लेने का भी उपाय न था,फिर भी जिए।

नौ महीने माँ के पेट में तुम थे,कैसे जिए?

तुम्हारी मर्जी क्या थी?

किसकी मर्जी से जिए?

फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ....! 

जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया...!

किसकी मर्जी से?

अभी दूध को पीने वाला आने ही वाला है 

कि दूध तैयार है...!

किसकी मर्जी से?

गर्भ से बाहर होते ही तुमने कभी इसके पहले साँस नहीं ली थी माँ के पेट में तो माँ की साँस से ही काम चलता था....!

लेकिन जैसे ही तुम्हें माँ से बाहर होने का अवसर आया...!

तत्क्षण तुमने साँस ली, किसने सिखाया ?

पहले कभी साँस ली नहीं थी,किसी पाठशाला में गए नहीं थे, किसने सिखाया कैसे साँस लो ?

किसकी मर्जी से ?

फिर कौन पचाता है तुम्हारे दूध को जो तुम पीते हो,और तुम्हारे भोजन को ?

कौन उसे हड्डी — मांस — मज्जा में बदलता है ?

किसने तुम्हें जीवन की सारी प्रक्रियाएँ दी हैं ?

कौन जब तुम थक जाते हो तुम्हें सुला देता है ?

और कौन जब तुम्हारी नींद पूरी हो जाती है तुम्हें उठा देता है ?

कौन चलाता है इन चाँद — सूर्यों को ?

कौन इन वृक्षों को हरा रखता है ?

कौन खिलाता है फूल अनंत — अनंत रंगों के और गंधों के? 

इतने विराट का आयोजन जिस स्रोत से चल रहा है...!

एक तुम्हारी छोटी — सी जिंदगी उसके सहारे न चल सकेगी ?

थोड़ा सोचो,थोड़ा ध्यान करो।

अगर इस विराट के आयोजन को तुम चलते हुए देख रहे हो,कहीं तो कोई व्यवधान नहीं है, सब सुंदर चल रहा है,सुंदरतम चल रहा है;

ईश्वर दिखता नही बल्कि दिखाता है।

ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है।

संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः 

संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है यही तो ईश्वर है।

         || ईश्वर सर्वोपरि है ||

सन्मुख होइ जीव


सन्मुख होइ जीव मोहि जबही, 
   जनम कोटि अघ नासहिं तबही।


इसे मैंने कुछ ऐसे समझा कि प्रभु कृपा अनवरत बरस रही है परन्तु हम उनके सामने ही नहीं जाते इसी लिए हमारे पाप नष्ट नहीं होते परन्तु अगर कोई जीव उनके सन्मुख हो जाये तो उसके करोड़ों जन्मों पाप नष्ट हो जाते हैं। 

ठीक वैसे - जैसे हम सब जानते हैं कि सूर्य हमेशा रहता है....! 

यह तो हमारी पृथ्वी घूमती है तो पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां दिन होता है....! 

तब चाहे करोड़ों वर्षों का अन्धकार हो, प्रकाश के सम्मुख जाने से तुरंत समाप्त हो जाता है।

उसी प्रकार श्री हरि के सम्मुख जाने से करोड़ों जन्मों के पाप भस्म हो जाते हैं- 

अब संशय यह उठता है कि हम तो रोज़ पूजा पाठ करते हैं....! 

मंदिर जाते हैं....! 

इत्यादि इत्यादि तो हमारे पाप तो विनष्ट नहीं हुए हम तो अभी भी दुखी हैं तो मेरे प्यारे! ज़रा ईमानदारी से बताना कि पूजा पाठ, जप तप क्या प्रभु के लिए किया था या मनोकामना सिद्धि के लिए-- 

तो शरणागति तो पदार्थों की है प्रभु की नहीं जिस दिन प्रभु के पास, कान्हा के पास कान्हा के लिए जायेंगे जब यह भाव भाव होगा कि जो तुझे अच्छा लगे वही मुझे स्वीकार - 

उस दिन कोई क्लेश नहीं रहेगा - 

उस दिन सब अन्धकार दूर हो जायेगा। 

उस दिन वो प्यारा तुम्हे निज रूप दे देगा।

      || जय श्री राम जय श्री श्याम ||

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

( वैशाख मास में विविध वस्तुओं के दान का महत्त्व तथा वैशाख स्नान के नियम )

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

( वैशाख मास में विविध वस्तुओं के दान का महत्त्व तथा वैशाख स्नान के नियम )


        इस अध्याय में:-

 (वैशाख मास में विविध वस्तुओं के दान का महत्त्व तथा वैशाख स्नान के नियम)


                       संक्षिप्त श्रीस्कन्द-महापुराण

                                  

                                 वैष्णव-खण्ड
                           वैशाखमास-माहात्म्य
                                 

          नारदजी कहते हैं - वैशाख मास में धूप से तपेऔर थके - माँदे ब्राह्मणों को श्रमनाशक सुखद पलंग देकर मनुष्य कभी जन्म - मृत्यु आदि के क्लेशों से कष्ट नहीं पाता। 

जो वैशाख मास में पहनने के लिये कपड़े और विछावन देता है, वह उसी जन्म में सब भोगों से सम्पन्न हो जाता है और समस्त पापों से रहित हो ब्रह्मनिर्वाण ( मोक्ष ) को प्राप्त होता है। 


जो तिनके की बनी  या अन्य खजूर आदि के पत्तों की बनी हुई चटाई दान करता है, उसकी उस चटाई परसाक्षात् भगवान् विष्णु शयन करते हैं। 

चटाई देने वाला बैठने और बिछाने आदि में सब ओर से सुखी रहता है। 

जो सोने के लिये चटाई और कम्बल देता है, वह उतने ही मात्र से मुक्त हो जाता है। 

निद्रा से दुःख का नाश होता है, निद्रा से थकावट दूर होती है और वह निद्रा चटाई पर सोने वाले को सुखपूर्वक आ जाती है। 

धूप से कष्ट पाये हरा श्रेष्ठ ब्राह्मण को जो सूक्ष्मतर वस्त्र दान करता है, वह पूर्ण आयु और परलोक में उत्तम गति को पाता है जो पुरुष ब्राह्मण को फूल और रोली देता है.....! 

वह लौकिक भोगों का भोग करके मोक्ष को प्राप्त होता है। 

जो खस, कुश और जल से वासित चन्दन देता है, वह सब भोगों में देवताओं की सहायता पाता है तथा उसके पाप और दु:ख की हानि होकर परमानन्द की प्राप्ति होती है।

वैशाख के धर्म को जानने वाला जो पुरुष गोरोचन और कस्तूरी का दान करता है......!
 
वह तीनों तापों से मुक्त होकर परम शान्ति को प्राप्त होता है। 

जो विश्रामशाला बनवाकर प्याऊ सहित ब्राह्मण को दान करता है, वह लोकों का अधिपति होता है। 

जो सड़क के किनारे बगीचा, पोखरा, कुआँ और मण्डप बनवाता है, वह धर्मात्मा है, उसे पुत्रों की क्या आवश्यकता है। 

उत्तम शास्त्र का श्रवण, तीर्थयात्रा, सत्संग, जलदान, अन्नदान, पीपल का वृक्ष लगाना तथा पुत्र - इन सात को विज्ञ पुरुष सन्तान मानते हैं। 

जो वैशाख मास में तापनाशक तक्र दान करता है, वह इस पृथ्वी पर विद्वान् और धनवान् होता है। 

धूप के समय मट्टठे के समान कोई दान नहीं, इस लिये रास्ते के थके - माँदे ब्राह्मण को मट्टा देना चाहिये। 

जो वैशाख मास में धूप की शान्ति के लिये दही और खाँड़ दान करता है तथा विष्णुप्रिय वैशाख मास में जो स्वच्छ चावल देता है, वह पूर्ण आयु और सम्पूर्ण यज्ञों का फल पाता है। 

जो पुरुष ब्राह्मण के लिये गोघृत अर्पण करता है, वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर विष्णुलोक में आनन्द का अनुभव करता है। 

जो दिन के ताप की शान्ति के लिये सायंकाल में ब्राह्मण को ऊख दान करता है, उसको अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। 

जो वैशाख मास में शाम को ब्राह्मण के लिये फल और शर्बत देता है, उससे उसके पितरों को निश्चय ही अमृतपान का अवसर मिलता है। 

जो वैशाख के महीने में पके हुए आम के फल के साथ शर्बत देता है, उसके सारे पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं। 

जो वैशाख की अमावास्या को पितरों के उद्देश्य से कस्तूरी, कपूर, बेला और खस की सुगन्ध से वासित शर्बत से भरा हुआ घड़ा दान करता है, वह छियानबे घड़ा दान करने का पुण्य पाता है।

          वैशाख में तेल लगाना, दिन में सोना, कांस्य के पात्र में भोजन करना, खाट पर सोना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना, दुबारा भोजन करना तथा रात में खाना - ये आठ बातें त्याग देनी चाहिये।

          जो वैशाख में व्रत का पालन करने वाला पुरुष पद्म - पत्ते में भोजन करता है, वह सब पापो से मुक्त हो विष्णुलोक में जाता है। 

जो विष्णुभक्त पुरुष वैशाख मास में नदी - स्नान करता है, वह तीन जन्मों के पाप से निश्चय ही मुक्त हो जाता है। 

जो प्रात:काल सूर्योदय के समय किसी समुद्रगामिनी नदी में स्नान करता है, वह सात जन्मों के पाप से तत्काल छूट जाता है। 

जो मनुष्य सात गंगाओं में से किसी में ऊष:काल में स्नान करता है, वह करोड़ों जन्मों में उपार्जित किये हुए पाप से निस्सन्देह मुक्त हो जाता है। 

जाहनवी ( गंगा ), वृद्ध गंगा ( गोदावरी ), कालिन्दी ( यमुना ), सरस्वती, कावेरी, नर्मदा और वेणी - ये सात गंगाएँ कही गयी हैं। 

वैशाख मास आने पर जो प्रात:काल बावलियो में स्नान करता है, उसके महापातकों का नाश हो जाता है। 

कन्द, मूल, फल, शाक, नमक, गुड़, बेर, पत्र, जल और तक्र - जो भी वैशाख में दिया जाय, वह सब अक्षय होता है।

          ब्रह्मा आदि देवता भी बिना दिये हुए कोई वस्तु नहीं पाते। 

जो दान से हीन है, वह निर्धन होता है। 

अतः सुख की इच्छा रखने वाले पुरुष को वैशाख मास में अवश्य दान करना चाहिये। 

सूर्य देव के मेष राशि में स्थित होने पर भगवान् विष्णु के उद्देश्य से अवश्य प्रात:काल स्नान करके भगवान् विष्णु की पूजा करनी चाहिये। 

कोई महीरथ नामक एक राजा था, जो कामनाओं में आसक्त और अजितेन्द्रिय था। 

वह केवल वैशाख - स्नान के सुयोग से स्वतः वैकुण्ठधाम को चला गया। 

वैशाख मास के देवता भगवान् मधुसूदन हैं। 

अतएव वह सफल मास है। 

वैशाख मास में भगवान् की प्रार्थना का मन्त्र इस प्रकार है-

          मधुसूदन    देवेश    वैशाखे    मेषगे    रवौ।
          प्रात:स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव॥

          'हे मधुसूदन! हे देवेश्वर माधव! मैं मेष राशि में सूर्य के स्थित होने पर वैशाख मास में प्रात: स्नान करूँगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिये।

          तत्पश्चात् निम्नांकित मन्त्र से अर्ध्य प्रदान करे-

          वैशाखे मेषगे भानौ प्रात:स्नानपरायणः।
          अर्ध्य तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन॥

          'सूर्य के मेष राशि पर स्थित रहते हुए वैशाख - मास में प्रात:स्नान के नियम में संलग्न होकर मैं आपको अर्ध्य देता हूँ। 

मधुसूदन! इसे ग्रहण कीजिये।'

          इस प्रकार अर्ध्य समर्पण करके स्नान करे। 

फिर वस्त्रों को पहनकर सन्ध्या - तर्पण आदि सब कर्मो को पूरा करके वैशाख मास में विकसित होने वाले पुष्पों से भगवान् विष्णु की पूजा करे। 

उसके बाद वैशाख मास के माहात्म्य को सूचित करने वाली भगवान् विष्णु की कथा सुने ऐसा करने से कोटि जन्मों के पापों से मुक्त होकर मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है। 

यह शरीर अपने अधीन है, जल भी अपने अधीन ही है, साथ ही अपनी जिह्वा भी अपने वश में है। 

अत: इस स्वाधीन शरीर से स्वाधीन जल में स्नान करके स्वाधीन जिह्वा से 'हरि' इन दो अक्षरोंका उच्चारण करे। 

जो वैशाख मास में तुलसी दल से भगवान् विष्णु की पूजा करता है, वह विष्णु की सायुज्य मुक्ति को पता है। 

अत: अनेक प्रकार के भक्ति मार्ग से तथा भाँति भाँति के व्रतों द्वारा भगवान् विष्णु की सेवा तथा उनके सगुण या निर्गुण स्वरूप का अनन्य चित्त से ध्यान करना चाहिये।

                             ~~~०~~~

                          "जय जय श्री हरि"

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
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पुरुषोत्तम मास माहात्म्य अध्याय - 06 नारदजी बोले, 'भगवान् गोलोक में जाकर क्या करते हैं? हे पापरहित! मुझ श्रोता के ऊपर कृपा करके कहिये।' श्रीनारायण बोले, 'हे नारद! पापरहित! अधिमास को लेकर भगवान् विष्णु के गोलोक जाने पर जो घटना हुई वह हम कहते हैं, सुनो।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

.                    पुरुषोत्तम मास माहात्म्य
                           अध्याय - 06

          नारदजी बोले, 'भगवान् गोलोक में जाकर क्या करते हैं? हे पापरहित! मुझ श्रोता के ऊपर कृपा करके कहिये।'

          श्रीनारायण बोले, 'हे नारद! पापरहित! अधिमास को लेकर भगवान् विष्णु के गोलोक जाने पर जो घटना हुई वह हम कहते हैं, सुनो।

          उस गोलोक के अन्दर मणियों के खम्भों से सुशोभित, सुन्दर पुरुषोत्तम के धाम को दूर से भगवान् विष्णु देखते हैं। उस धाम के तेज से बन्द हुए नेत्र वाले विष्णु धीरे-धीरे नेत्र खोलकर और अधिमास को अपने पीछे कर धीरे-धीरे धाम की ओर जाते हैं। अधिमास के साथ भगवान् के मन्दिर के पास जाकर विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उठकर खड़े हुए द्वारपालों से अभिनन्दित भगवान् विष्णु पुरुषोत्तम भगवान् की शोभा से आनन्दित होकर धीरे-धीरे मन्दिर में गये और भीतर जाकर शीघ्र ही श्रीपुरुषोत्तम कृष्ण को नमस्कार करते हैं।

          गोपियों के मण्डल के मध्य में रत्नमय सिंहासन पर बैठे हुए कृष्ण को नमस्कार कर पास में खड़े होकर विष्णु बोले।

          श्रीविष्णु बोले, 'गुणों से अतीत, गोविन्द, अद्वितीय, अविनाशी, सूक्ष्म, विकार रहित, विग्रहवान, गोपों के वेष के विधायक, छोटी अवस्था वाले, शान्त स्वरूप, गोपियों के पति, बड़े सुन्दर, नूतन मेघ के समान श्याम, करोड़ों कामदेव के समान सुन्दर, वृन्दावन के अन्दर रासमण्डल में बैठने वाले पीतरंग के पीताम्बर से शोभित, सौम्य, भौंहों के चढ़ाने पर मस्तक में तीन रेखा पड़ने से सुन्दर आकृति वाले, रासलीला के स्वामी, रासलीला में रहने वाले, रासलीला करने में सदा उत्सुक, दो भुजा वाले, मुरलीधर, पीतवस्त्रधारी, अच्युत, ऐसे भगवान् की मैं वन्दना करता हूँ।' इस प्रकार स्तुति करके भगवान् श्रीकृष्ण को नमस्कार कर, पार्षदों द्वारा सत्कृत विष्णु रत्नतसिंहासन पर कृष्ण की आज्ञा से बैठे।

          श्रीनारायण बोले, 'यह विष्णु का किया हुआ स्तोत्र प्रातःकाल उठ कर जो पढ़ता है उसके समस्त पाप नाश हो जाते हैं और अनिष्ट स्वप्न भी अच्छे फल को देते हैं, और पुत्रपौत्रादि को बढ़ाने वाली भक्ति श्रीगोविन्द में होती है, आकीर्ति का नाश होकर सत्कीर्ति की वृद्धि होती है।

          भगवान् विष्णु बैठ गये और कृष्ण के आगे काँपते हुए अधिमास को कृष्ण के चरण कमलों में नमन कराते हैं।

          तब श्रीकृष्ण ने विष्णु से पूछा कि यह कौन है? कहाँ से यहाँ आया है? क्यों रोता है? इस गोलोक में तो कोई भी दुःखभागी होता नहीं है। इस गोलोक में रहने वाले तो सर्वदा आनन्द में मग्न रहते हैं। ये लोग तो स्वप्न में भी दुष्टवार्ता या दुःखभरा समाचार सुनते ही नहीं। अतः हे विष्णो! यह क्यों काँपता है और आँखों से आँसू बहाता दुःखित हमारे सम्मुख किस लिये खड़ा है?'

          श्रीनारायण बोले, 'नवीन मेघ के समान श्यामसुन्दर, गोलोक के नाथ का वचन सुन, सिंहासन से उठकर महाविष्णु मलमास की सम्पूर्ण दुःख-गाथा कहते हुए बोले।'

          श्रीविष्णु बोले, 'हे वृन्दावन की शोभा के नाथ! हे श्रीकृष्ण! हे मुरलीधर! इस अधिमास के दुःख को आपके सामने कहता हूँ, आप सुने। इसके दुःखित होने के कारण ही स्वामी रहित अधिमास को लेकर मैं आपके पास आया हूँ, इसके उग्र दुःखरूप अग्नि को आप शान्त करें। यह अधिमास सूर्य की संक्रान्ति से रहित है, मलिन है, शुभकर्म में सर्वदा वर्जित है।

 स्वामी रहित मास में स्नान आदि नहीं करना चाहिये, ऐसा कहकर वनस्पति आदिकों ने इसका निरादर किया है।
          द्वादश मास, कला, क्षण, अयन, संवत्सर आदि सेश्विरों ने अपने-अपने स्वामी के गर्व से इसका अत्यन्त निरादर किया। इसी दुःखाग्नि से जला हुआ यह मरने के लिये तैयार हुआ, तब अन्य दयालु व्यक्तियों द्वारा प्रेरित होकर, हे हृषीकेश! शरण चाहने की इच्छा से हमारे पास आया और काँपते-काँपते घड़ी-घड़ी रोते-रोते अपना सब दुःखजाल इसने कहा। इसका यह बड़ा भारी दुःख आपके बिना टल नहीं सकता, अतः इस निराश्रय का हाथ पकड़कर आपकी शरण में लाया हूँ।

          ‘दूसरों का दुःख आप सहन नहीं कर सकते हैं’ ऐसा वेद जानने वाले लोग कहते हैं।

 अतएव इस दुःखित को कृपा करके सुख प्रदान कीजिये। हे जगत्पते! ‘आपके चरणकमलों में प्राप्त प्राणी शोक का भागी नहीं होता है’ ऐसा वेद जाननेवालों का कहना कैसे मिथ्या हो सकता है? मेरे ऊपर कृपा करके भी इसका दुःख दूर करना आपका कर्तव्य है क्योंकि सब काम छोड़कर इसको लेकर मैं आया हूँ मेरा आना सफल कीजिये। 

‘बारम्बार स्वामी के सामने कभी भी कोई विषय न कहना चाहिये’ ऐसी नीति के जानने वाले बड़े-बड़े पण्डित सर्वदा कहा करते हैं।'

          इस प्रकार अधिमास का सब दुःख भगवान् कृष्ण से कहकर हरि, कृष्ण के मुखकमल की ओर देखते हुए कृष्ण के पास ही हाथ जोड़ कर खड़े हो गये।

          ऋषि लोग बोले, 'हे सूतजी! आप दाताओं में श्रेष्ठ हैं आपकी दीर्घायु हो, जिससे हम लोग आपके मुख से भगवान् की लीला के कथारूप अमृत का पान करते रहें। हे सूत! गोलोकवासी भगवान् कृष्ण ने विष्णु के प्रति फिर क्या कहा? और क्या किया? इत्यादि लोकोपकारक विष्णु-कृष्ण का संवाद सब आप हम लोगों से कहिये।

          परम भगवद्भक्त नारद ने नारायण से क्या पूछा? हे सूत! इसको आप इस समय हम लोगों से कहिये। नारद के प्रति कहा हुआ भगवान्‌ का वचन तपस्वियों के लिये परम औषध है।'
इति श्रीबृहन्नारदीये पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये षष्ठोऽध्यायः ॥६॥
                      ----------:::×:::---------- 

                       "जय जय श्री राधे"
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। बहुत अच्छा सुंदर मार्मिक प्रसंग ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। बहुत अच्छा सुंदर मार्मिक प्रसंग ।। 


अद्भुत है हिमालय का रहस्य, इसीलिए आज भी रहते हैं रामायण और महाभारत काल के ये पात्र.....!!!!!!!!


*सिद्ध तपोधन जोगिजन सुर किंनर मुनिबृंद।
बसहिं तहाँ सुकृती सकल सेवहिं सिव सुखकंद॥

भावार्थ:-

सिद्ध, तपस्वी, योगीगण, देवता, किन्नर और मुनियों के समूह उस पर्वत पर रहते हैं। 
वे सब बड़े पुण्यात्मा हैं और आनंदकन्द श्री महादेवजी की सेवा करते हैं॥

हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको देवी - देवताओं और तपस्वियों के रहने का स्थान माना गया है। 

हिमालय में जैन, बौद्ध और हिन्दू संतों के कई प्राचीन मठ और गुफाएं हैं। 

मान्यता है कि गुफाओं में आज भी कई ऐसे तपस्वी हैं, जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहे हैं। 





इस संबंध में हिन्दुओं के दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के सिद्धि योगियों के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। 

उनके इतिहास में आज भी यह दर्ज है कि हिमालय में कौन - सा मठ कहां पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं। 

इसी संदर्भ भी जानिए कि महाभारत और रामायण काल के लोग आज भी हिमालय में क्यों रहते हैं।
 
हिमालय का विस्तार कहां तक है?

भारत का प्रारंभिक इतिहास हिमालय से जुड़ा हुआ है। 

भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है। 

इसके अलावा उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं। 

यह सभी अखंड भारत का हिस्सा हैं।
 
रामायण काल के लोग!!!!!!


अत्रि : - 

अत्रि नाम से कई ऋषि हो गए हैं। 

एक है ब्रह्मा के पुत्र अत्रि। 

इन्होंने कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। 

इनके ही पुत्र  दत्तात्रेय, चन्द्रमा और दुर्वासा थे। 

इन का उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता - अनुसूया संवाद के समय तक प्रकट हुआ था। 

कहते हैं कि वे भी हिमालय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।
 
दुर्वासा : - 

दुर्वासा ऋषि का नाम सभी ने सुना होगा। 

उन्होंने सतयुग में इंद्र को भी शाप दिया था। 

उन्हें राम के युग में भी देखा गया और वे द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को भी शाप देते हुए नजर आता हैं। 

कहते हैं कि वे भी सशरीर आज भी जिंदा हैं और हिमालय के ही किसी क्षेत्र में स्थित हैं।
 
वशिष्ठ : - 

वशिष्ठ नाम से कालांतर में कई ऋषि हो गए हैं। 

एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में, पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए और छठवें महाभारत काल में हुए।

पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। 

पुराणों में कुल बारह वशिष्ठों का जिक्र है। 

हालांकि विद्वानों के अनुसार कहते हैं कि एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकुवंशी त्रिशुंकी के काल में हुए जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। 

तीसरे कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। 

चौथे अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि ( प्रथम ) कहा जाता था। 

पांचवें राजा सौदास के समय में हुए थे जिनका नाम वशिष्ठ श्रेष्ठभाज था। 

छठे वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि ( द्वितीय ) कहा जाता था। 

इसके बाद सातवें भगवान राम के समय में हुए जिन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और आठवें महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम पराशर था। 

इनके अलावा वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस जैसे दूसरे वशिष्ठों का भी जिक्र आता है। 

वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था। 

लेकिन कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। 

उनका स्थान हिमालय के किसी क्षेत्र में बताया जाता है।
 
राजा बलि :

असुरों के राजा बलि या बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। 

वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। 

दान - पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। 

उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। 

विष्णु ने कश्यप ऋषि के यहां वामन रूप में जन्म लेकर राजा बलि से दान में तीन पग धरती मांग ली थी। 

शुक्राचार्य ने राजा बलि को इसके लिए सतर्क किया था लेकिन राजा बलि ने उसे सीधा साधा ब्रामण समझकर तीन पग धरती दान में देने का संकल्प व्यक्त कर दिया। 

तब वामन रूप विष्णु ने विराट रूप धर दो पगों में तीनों लोक नाप लिए। 

जिसके बाद तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा जिसके बाद वो पाताल लोक चले गए। 

राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न हुए और उन्होंने उसे न केवल चिरं‍जीवी होने का वरदान दिया बल्कि वे खुद राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए। 

कहते हैं कि राजा बलि आज भी जिंदा हैं और वह हिमालय की किसी गुफा या जंगल में रहते हैं।
 
जामवंत :  - 

गंधर्व माता और अग्नि के पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। 

परशुराम और हनुमान से भी लंबी उम्र है जामवन्तजी कि क्योंकि उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। 

परशुराम से बड़े हैं जामवन्त और जामवन्त से बड़े हैं राजा बलि।  

जामवन्त सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है। 

जामवंतजीन ने ही हनुमानजी की उनकी शक्तियों को याद दिलाया था। 

श्रीकृष्ण की एक पत्नीं जामवन्त की पुत्री ही थी। 

जामवंतजी को चिरं‍जीवियों में शामिल किया गया है जो कलियुग के अंत तक रहेंगे। 

कहते हैं कि हिमालय की किसी गुफा में आज भी रहत हैं। 

संभवत: वह किंपुरुष नामक स्थान है।




परशुराम : - 

भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम कलिकाल के अंत तक सशरीर रहेंगे। 

परशुराम सतयुग में थे जब उन्होंने अपने फरसे से श्रीगणेशजी का एक दांत तोड़ दिया था।

त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़े जाने के समय वे आए थे और उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया था। 

इसके बाद द्वापर युग में उन्होंने श्रीकृष्ण को चक्र प्रदान किया था। 

कुछ लोग कहते हैं कि भगवान श्री हरि विष्णु जी के कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार में भगवान को भगवान परशुराम जी द्वारा ही वेद - वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान की जाएगी। 

वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। 

भगवान परशुराम जी हनुमान जी, विभीषण की भांति चिरंजीवी हैं तथा महेंद्र पर्वत पर निवास करते हैं। 

एक महेंद्र पर्वत हिमालय के क्षेत्र में हैं तो दूसरा कहते हैं कि महेंद्रगिरि पर्वत उड़ीसा के गजपति जिले के परालाखेमुंडी में मौजूद है।

मार्कण्डेय : - 

भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मार्कण्डेय ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया था, कहा जाता है इन्होंने महामृत्युंजय जाप को सिद्ध करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी और यह हमेशा के अजर अमर हो गए। 

ऐसा कहा जाता है कि वे भी हिमालय की किसी गुफा में रहते हैं।


हनुमान : - 

हनुमानजी को एक कल्प तक इस धरती पर रहने का वरदान मिला है। 

अर्थात कलिकाल के अंत के बाद भी। 

श्रीमद भागवत पुराण अनुसार हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। 

गंधमादन पर्वत तो तीन हैं, पहला हिमवंत पर्वत के पास, दूसरा उड़िसा में और तीसरा रामेश्वरम के पास। 

अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे जो हिमवंत पर्वत के पास था। 

इंद्रलोक में जाते समय अर्जुन को हिमवंत और गंधमादन को पार करते दिखाया गया है। 

मान्यता है कि हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन पर्वत स्थित है। 

दक्षिण में केदार पर्वत है। 

सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। 

आज यह क्षेत्र तिब्बत में है। 

यहीं कहीं हनुमानजी हैं।

विभीषण : - 

रावण के छोटे भाई विभिषण। 

जिन्होंने राम की नाम की महिमा जपकर अपने भाई के विरु‍द्ध लड़ाई में उनका साथ दिया और जीवन भर राम नाम जपते रहें। 

उन्होंने भगवान राम को रावण की मृत्यु का राज बताया था। 

भगवान राम ने प्रसन्न होकर विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। विभीषण भी हिमलय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।

महाभारत काल के लोग !!!!!!

अश्वत्थामा : - 

महाभारत काल में द्रौपदी के सो रहे पुत्रों को वध करने और उत्तरा के गर्भ में ब्राह्मास्त्र उतारने के अपराध के चलते भगवान श्रीकृष्ण ने अश्‍वत्थामा को तीन हजार वर्षों तक सशरीर भटकते रहने का शाप दे दिया था। 

तब अश्‍वत्‍थामा ने ऋषि वेद व्यासजी से कहा था कि आप जहां रहेंगे मैं भी वहीं रहूंगा।

ऋषि व्यास : - 

वेद के चार भाग करने के कारण कृष्ण द्वैपायन ऋषि को वेद व्यास कहा जाने लगा। 

उन्होंने ही महाभारत और पुराणों की रचना की थी। 

वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। 

मान्यताओं के अनुसार ये भी कई युगों से जीवित हैं और कलिकाल में भगवान के अवतार के समय प्रकट होंगे। 

कहा जाता हैं कि वर्तमान में में हिमालय में ही रहते हैं जबकि कुछ लोगों के अनुसार वे गंगा तट पर रहते हैं।
 
कृपाचार्य : - 

गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वार के पुत्र कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे और वह जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। 

कृपाचार्य अश्वथामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। उन्हें भी चिरंजीवी रहने का वरदान भी था। 

कहते हैं कि वे भी हिमालय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।

 
क्यों रहते हैं लोग हिमालय में ?????

हिमालय क्षेत्र में प्रकृति के सैकड़ों चमत्कार देखने को मिलेंगे। 

एक ओर जहां सुंदर और अद्भुत झीलें हैं तो दूसरी ओर हजारों फुट ऊंचे हिमखंड। 

हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमालय चमत्कारों की खान है। 

कहते हैं कि हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती।

प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। 

मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म - शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। 

इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। 

इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। 

पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में विवस्ता नदी के किनारे मानव की उत्पत्ति हुई थी।
 
हनुमानजी हिमालय के एक क्षेत्र से ही संजीवनी का पर्वत उखाड़कर ले गए थे। 

हिमालय ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां दुनियाभर की जड़ी - बूटियों का भंडार है। 

हिमालय की वनसंपदा अतुलनीय है। 

हिमालय में लाखों जड़ी - बूटियां हैं जिससे व्यक्ति के हर तरह के रोग को दूर ही नहीं किया जा सकता बल्कि उसकी उम्र को दोगुना किया जा सकता है। 

मान्यता है कि कस्तूरी मृग और येति का निवास हिमालय में ही है। 

येति या यति एक विशालकाय हिम मानव है जिसे देखे जाने की घटना का जिक्र हिमालय के स्थानीय निवासी करते आए हैं। 

येति आज भी एक रहस्य है।

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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...