सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
ब्रज रस धारा / विनम्रता /अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई
राधे राधे......!
|| ब्रज रस धारा ||
जब गोकुल में बहुत बड़े - बड़े उत्पात होने लगे,
तो नंदबाबा और बड़े - बूढ़े सब लोगो ने इकठ्ठा होकर - अब ब्रज वासियो को क्या करना चाहिए?
’ इस विषय पर विचार किया,उनमे से उपनन्द नाम के गोप थे, उन्हें पता था कि किस समय क्या व्यवहार करना चाहियें, उन्होंने कहा भाईयो ! '
अब यहाँ ऐसे उत्पात होने लगे है जो बच्चो के लिए तो बहुत ही अनिष्टकारी है इस लि यदि हम लोग गोकुल और गोकुल वासियो का भला चाहते है तो यहाँ से कूच कर देना चाहिए,यहाँ से पास ही में“वृन्दावन”नाम का एक वन है, उसमे छोटे - छोटे और भी बहुत से नये - नये वन है वहाँ बड़ा ही पवित्र पर्वत,घास और हरी - भरी लता - वनस्पतियाँ है गोप, गोपी और गायों के लिए तो वह केवल सुविधा का ही नहीं, सेवन करने योग्य स्थान है सो यदि तुम सब लोगो को यह बात जँचती हो तो आज ही हम लोग वहाँ के लिए कूच कर दे ।
गाड़ी – छकडे जोते और पहले गायों को जो हमारी एक मात्र संपत्ति है वहाँ भेज दे ।
सब ने सहमति दे दी,सब लोगों ने झुंड - की - झुंड गाये इकट्टी की, बूढों, बच्चो और स्त्रियों को, और घर की सब सामग्री छकडे पर लादकर स्वयं उनके पीछे - पीछे धनुष - बाण लेकर बड़ी सावधानी से चलने लगे,
उन्होंने गौ और बछडो को सबसे आगे कर लिया और उनके पीछे सिंगी और तुरही जोर - जोर से बजाते हुए वृन्दावन की यात्रा करने लगे।
गोपियाँ सुन्दर - सुन्दर वस्त्र पहनकर गले में हार धारण किये हुए, बड़े आनंद से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओ के गीत गाती जाती थी।
यशोदारानी और रोहिणी जी भी वैसे ही सज - धज कर अपने - अपने प्यारे पुत्र श्रीकृष्ण और बलराम के साथ एक छकडे पर शोभायमान हो रही थी।
वे अपने दोनों बालको की तोतली बोली सुनकर अघाती ना थी, वृन्दावन बड़ा ही सुन्दर वन था,
चाहे कोई भी ऋतु हो, वहाँसुख - ही - सुख है, वहाँ हरा - भरा वन अत्यंत मनोहर,
गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी के सुन्दर - सुन्दर पुलिनो को देखकर भगवान कृष्ण और बलराम के हृदय में प्रीति का उदय हुआ,
थोड़े ही दिनों में समय आने पर वे ‘बछड़ा चराने’ लगे।
दूसरे ग्वालबालो के साथ खेलने के लिए बहुत - सी सामग्री लेकर,
वे घर से निकल पड़ते और गोष्ठी के पास ही अपने बछडो को चराते, कही भगवान बाँसुरी बजा रहे है तो कही गुलेल या ढेलवाँस से ढेले फेक रहे है,
किसी समय अपने पैरों के घुँघरू पर तान छेड रहे है तो कही बनावटी गाय और बैल बनकर खेल रहे है,
एक ओर देखिये तो सांड बनकर आपस में लड़ रहे है,
तो दूसरी ओर मोर, कोयल, बन्दर, आदि पशु - पक्षियों की बोलियाँ निकाल रहे है इस प्रकार उस सुन्दर वृन्दावन में भगवान की बड़ी ही अनुपम शोभा है ।
सार - वृन्दावन के कण - कण में भगवान का वास है वृन्दावन की धूलिके लिए बड़े - बड़े योगी जन भी तरसते है |
|| जय जय श्री राधे कृष्ण ||
विनम्रता हमारी ताक़त है या कमज़ोरी ?
विनम्रता
अहंकार कब हमारे असल अस्तित्व को अपने घेरे में घेर लेता है,
हमें पता ही नहीं चलता! हर पल की जागरूकता ही हमें लक्ष्य तक ले चल सकती है।
एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया।
नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ।
एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज़ में समुद्र से कहा,
" बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या - क्या लाऊँ? "
" मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ। "
समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है।
उसने नदी से कहा, " यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो, तो थोड़ी - सी घास उखाड़कर ले आओ। "
नदी ने कहा,
"बस ...!
इतनी - सी बात, अभी लेकर आती हूँ। "
मैदान से गुजरते वक़्त नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया घास पर, परन्तु घास नहीं उखड़ी।
नदी ने कई बार जोर लगाया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी।
आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली,
" मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ।
मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ।"
समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला,
" जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते है। "
किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो,
उसे प्रचंड आँधी - तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं बिगाड़ सकता। "
जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है।
कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है,
क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है।
और नम्रता साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है...!
बीज की यात्रा वृक्ष तक है, नदी की यात्रा सागर तक है,
और...!
मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक...!
संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब कुदरत का विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं।
इसी लिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि...!
मैं न होता तो क्या होता...!
" जब हम महानता की दीवार तोड़ देते हैं और खुद को ईश्वर के,
मालिक के विनम्र, तुच्छ सेवक के रूप में समर्पित कर देते हैं -
जब शून्य होते हुए अपनी प्रवृत्तियों को वश में करके हम उन्हें अपने अस्तित्व की पूरी जिम्मेदारी सौंप देते हैं -
केवल तभी हम सच्चे अर्थ में जीवन का आनंद लेते हैं।
जिसका अर्थ है -
पूर्ण समर्पण। "
🌸🌹🌸🌹जय श्री कृष्ण🌹🌸🌹🌸
अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई
*अचानक एक मोड़ पर सुख और दुःख की मुलाकात हो गई*
*🌹दुःख ने सुख से कहा🌹*
*तुम कितने भाग्यशाली हो*
*जो लोग तुम्हें पाने की कोशिश में लगे *रहते हैं....🙏🏻*
*🌸सुख ने मुस्कराते हुए कहा🌸*
भाग्यशाली मैं नहीं तुम हो...!
" दुःख ने हैरानी से पूछा : - "
वो कैसे*
*सुख ने बड़ी ईमानदारी से जबाब दिया 👍🏼*
वो ऐसे कि तुम्हें पाकर लोग अपनों को याद करते हैं 🙏🏻
लेकिन मुझे पाकर सब अपनों को भूल जाते हैं
🙏🌹 जय श्री कृष्ण 🙏🌹* 🍀
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏