हनुमानजी ने तोड़ दिया था..!
हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़ सुदर्शन सत्यभामा का अभिमान...!
भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है।
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विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में।
श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं -
रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा।
इस में से सत्यभामा को अपनी सुंदरता और महारानी होने का घमंड हो चला था तो दूसरी ओर सुदर्शन चक्र खुद को सबसे शक्तिशाली समझता था और विष्णु वाहन गरूड़ को भी अपने सबसे तेज उड़ान भरने का घमंड था।
एक दिन श्रीकृष्ण अपनी द्वारिका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे और उनके निकट ही गरूड़ और सुदर्शन चक्र भी उनकी सेवा में विराजमान थे।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने व्यंग्यपूर्ण लहजे में पूछा -
हे प्रभु, आपने त्रेतायुग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं ?
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भगवान सत्यभामा की बातों का जवाब देते उससे पहले ही गरूड़ ने कहा-
भगवान क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।
तभी सुदर्शन से भी रहा नहीं गया और वह भी बोल उठा कि भगवान, मैंने बड़े - बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।
क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है ?
द्वारकाधीश समझ गए कि तीनों में अभिमान आ गया है।
भगवान मंद - मंद मुस्कुराने लगे और सोचने लगे कि इनका अहंकार कैसे नष्ट किया जाए, तभी उनको एक युक्ति सूझी...!
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भगवान मंद - मंद मुस्कुरा रहे थे।
वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को अहंकार हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरूड़ से कहा कि हे गरूड़ !
तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गरूड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले ग ए ।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी, आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।
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तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई भी प्रवेश न करने पाए।
सुदर्शन चक्र ने कहा, जो आज्ञा भगवान और भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गया।
गरूड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ !
भगवान राम, माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए पधारे हैं।
आपको बुला लाने की आज्ञा है।
आप मेरे साथ चलिए।
मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।
हनुमान ने विनयपूर्वक गरूड़ से कहा, आप चलिए बंधु, मैं आता हूं।
गरूड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा।
खैर मुझे क्या कभी भी पहुंचे, मेरा कार्य तो पूरा हो गया।
मैं भगवान के पास चलता हूं।
यह सोचकर गरूड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़ चले।
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लेकिन यह क्या ?
महल में पहुंचकर गरूड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं।
गरूड़ का सिर लज्जा से झुक गया।
तभी श्रीराम के रूप में श्रीकृष्ण ने हनुमान से कहा कि पवनपुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए ?
क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं ?
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुकाकर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे क्या कोई रोक सकता है ?
इस चक्र ने रोकने का तनिक प्रयास किया था इस लिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया।
मुझे क्षमा करें।
भगवान मंद - मंद मुस्कुराने लगे।
अंत में हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, हे प्रभु !
मैं आपको तो पहचानता हूं आप ही श्रीकृष्ण के रूप में मेरे राम हैं, लेकिन आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा का अहंकार भंग होने की बारी थी।
उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था।
रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरूड़ तीनों का गर्व चूर - चूर हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे।
तीनों की आंखों से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
भगवान ने अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त हनुमान द्वारा ही दूर किया।
अद्भुत लीला है प्रभु की
हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।
नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।
भावार्थ : - "हनुमान और अंगद युद्ध में गरजते हैं, राक्षस डरकर भाग जाते हैं।
जो भी बलशाली वीर हनुमान का स्मरण करता है, उसके सभी रोग और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।"
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चित्रकूट के हनुमान धारा मंदिर :
चित्रकूट गिरि करहु निवासू।
तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू॥
सैलु सुहावन कानन चारू।
करि केहरि मृग बिहग बिहारू॥
भावार्थ: - आप चित्रकूट पर्वत पर निवास कीजिए, वहाँ आपके लिए सब प्रकार की सुविधा है।
सुहावना पर्वत है और सुंदर वन है।
वह हाथी, सिंह, हिरन और पक्षियों का विहार स्थल है॥
वाल्मीकि रामायण, महाभारत पुराण स्मृति उपनिषद व साहित्यक पोराणिक साक्ष्यों में खासकर कालिदास कृत मेघदुतम में चित्रकुट का विशद विवरण प्राप्त होता है।
त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोय स्वर्णिम प्राकृतिक दृश्यावलियों के कारण ही चित्रकूट के नाम से प्रसिध्द है जो लगभग 11 वर्ष तक श्रीराम माता सिता व भ्राता लक्ष्मण की आश्रय स्थली बनी रही।
यही मंदाकिनी पयस्विनी और सावित्री के संगम पर श्रीराम ने पितृ तर्पण किया था।
श्रीराम व भ्राता भरत के मिलन का साक्षी यह स्थल श्रीराम के वनवास के दिनों का साक्षात गवाह है, जहां के असंख्य प्राच्यस्मारकों के दर्शन के रामायण युग की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश चित्रकुट तीर्थ में ही इहलोकोका गमन हुआ था यहां के सती अनुसूया के आश्रम को इस कथा के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ।
मुगल काल में खासकर स्वामी तुलसीदासजी के समय में यहां की प्रतिष्ठा प्रभा पुनः प्रसिद्ध हो उठी।
भारत के तीर्थों में चित्रकुट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है कि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए।
हनुमान धारा चित्रकुट का एक ओर पवित्र स्थल है जहां के बारे में मान्यता है कि लंका दहन के उपरांत भक्तराज श्री हनुमानजी ने अपने शरीर के तापके शक्ती धारा की जलराशि से बुझाया था।
यह धारा रामघाट से लगभग 4 कि.मी. दूर है।
इस का जल शीतल और स्वच्छ है।
365 दिन यह जल आता रहता है।
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यह जल कहां से आता है यह किसी को जानकारी नहीं है।
यदि किसी व्यक्ति को दमा की बिमारी है तो यह जल पीने से काफी लोगों को लाभ मिला है।
यह मंदिर पहाडी पर स्थित है।
बहुत सुंदर द्विय मुर्ति है।
इस के दर्शन से हर एक व्यक्ति का तनाव से मुक्त हो जाता है तथा मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है।
कामतानाथजी को चित्रकुट तीर्थ का प्रधान देवता माना गया है।
वैसे तो मंदाकिनी नदी के तट पर चित्रकुट के दर्शन के लिए भक्तों का आना - जाना तो सदा लगा रहता है पर अमावस्या के दिन यहां श्रध्दालुओं के आगमन से विशाल मेला लग जाता है।
श्री कामदर गिरी की परिक्रम की महिमा अपार है।
श्रध्दा सुमन कामदर गिरी को साक्षात ॠग्वेद विग्रह मानसकर उनका दर्शन पूजन और परिक्रमा अवश्य करते रहते हैं।
चित्रकुट के केन्द्र स्थल का नाम रामघाट है जो मंदाकिनी के किनारे शोभायमान है।
इस घाट के ऊपर अनेक नए पुराणे मठ, मंदिर, अखाडे व धर्मशालाएं हैं, लेकिन कामदर गिरी भवन अच्छा बना हुआ है।
इस भवन को बंबई के नारायणजी गोयनका ने बनवाया।
इस के दक्षिण में राघव प्रयागघाट है यहां तपस्विनी मंदाकिनी ओर गायत्री नदियां आकर मिलती हैं।
जानकी कुंड यहां का पवित्र मंदिर दर्शनीय है।
नदी के किनारे श्वेत पत्थरों पर यहां चरण चिन्ह हैं।
लोक मान्यता है कि इसी स्थान पर माता सीता स्नान करती थी।
जानकी कुंड से कुछ दुर स्फटिक शिला है जहां स्फटिक युक्त एक विशाल शिला है।
मान्यता है कि अत्रि आश्रम आते जाते समय सीता और राम विश्राम किया करते थे।
यह वही स्थल है जहां श्रीराम कि शक्ति की परीक्षा लेने के लिए इंद्र पुत्र जयंत ने सीता जी को चोंच मारी थी।
यहां श्रीराम के चरण चिन्ह दर्शनीय है।
इस स्थान पर प्राकृतिक दृश्य बडा मनोरम है।
चित्रकुट से 12 कि.मी. दूर दक्षिण पश्चिम में एक पहाडी की तराह में गुप्त गोदावरी है।
यह दो चट्टानों के बीच सदा प्रवाह मान एक जलधारा है मान्यता है कि यह नासिक से गुप्त रूप से प्रकट हुई है।
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रामघाट से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर भरत कुप है मान्यता है कि श्रीराम को वापस अयोध्या लौटाने आए भरत के राज्यभिषेक हेतु लाए गए समस्त तीर्थों के जल को इसी कुप में डाल दिया इसकी महिमा अपार है यहां हरेक मकर संक्राती को विशाल मेला लगता है।
हाल के दिनों में चित्रकुट के तीर्थों में एक नया नाम आरोग्य धाम का जुडा है जो प्राकृतिक विधि से मानव चिकित्सा के भारत स्तर के एक ख्यातनाम केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुका है।
इस के अलावा वनदेवी स्थान, राम दरबार, चरण पादुका मंदिर, यज्ञवेदी मंदिर, तुलसी स्थान, सीता रसोई, श्री केकई मंदिर, दास हनुमान मंदिर श्रीराम पंचायत मंदिर आदि यहां के भूमि को सुशोभित कर रहे हैं।
चित्रकुट के आसपास के दर्शनीय स्थलों में नैहर वाल्मीकि आश्रम राजापुर सुतिक्षन आश्रम आदि प्रमुख जहां तीर्थ यात्री अपने समय व सुविधा के अनुसार जाते हैं।
चित्रकुट में मंदाकिनी के किनारे नौका पर सवार होकर इस मंच को महसूस किया जा सकता है।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश दोनों राज्य में अवतीर्ण चित्रकुट में हाल के वर्षों में चित्रकुट महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
हर रामनवमी व दिपावली के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है।
सचमुच चित्रकुट पावन है।
मन पावन रमणीय है अतः ये चित्रकुट में हनुमान धारा से यह एक श्रेष्ठ तीर्थ भूमि पावन बन गई है।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु