सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
#सती_सुलोचना...
नागराज वासुकी की पुत्री तथा इंद्रजीत मेघनाद की पत्नी सुलोचना पतिव्रता सती नारी थी... जो अपने पति मेघनाद के शीश को गोद मे रखकर सती हुई।
यद्यपि वाल्मीकि रामायण व तुलसीदास की रामचरितमानस में सुलोचना के सती होने का कोई प्रसंग नहीं है । रामायण के अनुसार श्रीराम ने मेघनाद का शव अपने दूतों के माध्यम से रावण के दूतों को सौंप दिया था।
तथापि दक्षिण भारत की लोक कथा मे मेघनाद की मृत्यु के पश्चात का जो दृष्टांत मिलता है, वह रोचक और ज्ञानवर्धक हैं ।
लक्ष्मण के बाण ने मेघनाद के शरीर से पृथक हुई एक भुजा को मेघनाद के महल में पहुंचा दिया। मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने भुजा देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि, उसके पति की मृत्यु हो गई है । सुलोचना ने पर पुरूष की भुजा मान उसे स्पर्श नहीं किया... और भुजा से कहा- "यदि तू मेरे स्वामी की भुजा है, तो मेरे पतिव्रत धर्म के बल से युद्ध का वृत्तांत लिख कर प्रमाण दे ।
रक्तरंजीत भुजा ने रक्त से धरती पर लिखा - "हे प्राणप्रिये ! श्रीराम के भार्इ लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ। लक्ष्मण ने कर्इ वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा का त्याग कर रखा है। वे तेजस्वी तथा समस्त दैवीय गुणों से सम्पन्न है। उन्हीं के बाणों से मेरा प्राणान्त हो गया और मेरा सिर श्रीरामजी के पास है।
यह पढ़ते ही सुलोचना व्याकुल हो गयी और पति के संग सती होने का निश्चय किया... किंतु पति का शव और शीश तो रामादल के पास था, जिनके बिना सती होना संभव नहीं था !
अपने पति की कटी भुजा को सीने से लगाए सुलोचना सहायता के लिए रावण के पास गई और अपने पति का सिर लाने का आग्रह किया । रावण ने कहा - "हे पुत्री ! राम शत्रु है। शत्रु के पास याचक बन कर जाना सम्भव नही है। तुम चार घड़ी प्रतिक्षा करो... मै मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूँ ।" सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ और निराश होकर वह मंदोदरी के पास गई ।
महारानी मंदोदरी ने कहा - "देवी !
तुम भगवान श्रीराम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं । जिस समाज में बाल ब्रह्मचारी हनुमान, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण तथा त्रिलोकीनाथ भगवान श्रीराम विद्यमान हैं, उस समाज में जाने से डरना नहीं चाहिए। मुझे विश्वास है कि इन स्तुत्य महापुरुषों के द्वारा तुम निराश नहीं लौटायी जाओगी।"
सुलोचना के आने का समाचार सुनते ही श्रीराम खड़े हो गये और स्वयं चलकर सुलोचना के पास आये और बोले- "देवी, तुम्हारे पति विश्व के अनन्य योद्धा और पराक्रमी थे। उनमें बहुत-से सदगुण थे; किंतु विधी की लिखी को कौन टाल सकता है ?"
सुलोचना भगवान की स्तुति करने लगी...
श्रीराम ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- "देवी ! मुझे लज्जित न करो। मै जानता हूँ कि आप परम सती है और पतिव्रता नारी की महिमा अपार है ।
अश्रुपूरित नयनों से प्रभु श्रीराम की ओर देखकर सुलोचना बोली - "राघवेन्द्र ! मै अपने पति का मस्तक लेने के लिये यहाँ आर्इ हूँ।" श्रीराम ने ससम्मान मेघनाद का शीश सुलोचना को दे दिया... पति का छिन्न शीश देखते ही सुलोचना का हृदय अत्यधिक द्रवित हो उठा । आंखों से नीर उमड पड़े... रोते-रोते सुलोचना ने श्रीराम के पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा - "सुमित्रानन्दन ! तुम भूलकर भी गर्व मत करना की मेघनाथ का वध आपने किया है । इन्द्रजीत मेघनाद को धराशायी करने की शक्ति विश्व में किसी के पास नहीं थी। यह तो दो पति व्रता नारियों का भाग्य था । आपकी पत्नी भी पतिव्रता हैं... और मैं भी पति चरणों में अनुरक्ति रखने वाली उनकी अनन्य भक्त हूँ । इतना ही अंतर है कि, मेरे पति एक पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे और उन्हीं के पक्ष मे युद्ध लड रहे थे । इसी कारण वह परलोक सिधारे।"
इधर राम के शिविर मे उपस्थित सभी योद्धा यह नहीं समझ पा रहे थे कि, सुलोचना को कैसे पता चला कि, उसके पति का मस्तक भगवान राम के पास है ! सुग्रीव ने पूछ ही तो लिया कि, उन्हें कैसे ज्ञात हुआ कि, मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है।
सुलोचना ने स्पष्टता से भुजा का सारा घटनाक्रम बता दिया... व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे - "निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है... तो फिर यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है।"
श्रीराम ने कहा- "व्यर्थ बातें मत करो मित्र ! सती नारी के तप से सब कुछ सम्भव है ।
लेकिन शिविरार्थियों के मुख के भावों से आहत सुलोचना ने कहा- "यदि मैं मन, वचन और कर्म से पति को देवता मानती हूँ तो, मेरे पति का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे।"
अभी सुलोचना की बात पूरी भी नहीं हुर्इ थी कि, कटा हुआ मस्तक जोरों से अट्टहास कर हंसने लगा ।
यह देखकर सभी दंग रह गये। सभी ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया। सभी पतिव्रता की महिमा से परिचित हो गये थे।
सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की- "भगवन, आज मेरे पति की अन्त्येष्टि क्रिया है और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ... अत: आज युद्ध बंद रखे । श्रीराम ने सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार कर ली।
मेघनाद के अंतिम संस्कार के लिए एक दिन युद्ध नहीं हुआ, यह प्रसंग रामायण मे वर्णित है ।
सुलोचना पति का सिर लेकर वापस लंका आ गर्इ।
लंका में समुद्र के तट पर एक चंदन की चिता तैयार की गयी। अपने पति का शीश गोद में लेकर सुलोचना चिता पर जा बैठी और कुछ ही क्षणों मे धधकती हुई अग्नि में बैठी सती सुलोचना अपने प्रियतम पति के संग बैकुंठ को प्रस्थान कर गई ।
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पूज्यश्री भगवन् कहते थे कि,
"हर युग में एक सती और एक यति इस भूमण्डल पर अवतरित होते हैं... उनके ही पुण्य प्रताप से वसुंधरा पुष्पित पल्लवित होती है और समाज सुख पाता हैं ।"
बाबा एक और बात कहते थे -
"जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन !
सती नारियों के यशोगान की गाथाएं हमारे ग्रंथों में सृजित है... जो निरंतर समाज को मार्गदर्शन और प्रेरणा देने का कार्य करती हैं ।
विड़म्बना यह है कि,
आधुनिकता की नकली चकाचौंध ने हमारे नेत्रों पर माया का परदा ड़ाल दिया है... और हम हमारी संस्कृति, संस्कार और अपने यशस्वी इतिहास से विमुख होते जा रहे है ।
याद रखिये...
जो अपनी जड़ से कट जाता है, उसका पनपना कभी संभव नहीं हो सकता ।
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निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं । श्रीसहित अनुज समेत कृपा निकेत पद मन लाइहौं ॥
जय राम राम रामजी की...
जय श्री कृष्ण....
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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