https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 08/17/20

युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,कि कलयुग में क्या होगा ?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,कि कलयुग में क्या होगा ?


युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,

कि कलयुग में क्या होगा ?
पूरा अवश्य पढें।
अच्छा लगेगा।

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।



पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान 
ढूंढ रहे थे।

उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन विचार आया कि इन 5 में बुद्धिमान कौन है परीक्षा ली जाय।

शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,

भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।

भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,

भीम बोला- मुझे महल देखना है!

शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।

2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।

3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

भीम ने कहा- 

मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।

और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।

वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,

आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।

बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

दरबान - क्या देखा आपने ?

भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। 

एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

अर्जुन आया बोला- 

मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।

आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। 

एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।


बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । 

अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

दरबान ने पूछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

नकुल आया बोला
 मुझे महल देखना है ।

फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

शनिदेव ने पूछा क्या देखा ?

नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।

भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?

भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- 

यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।

भीम को छोड़ दिया।

अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??

उसने फसल के

बारे में बताया 

युधिष्ठिर ने कहा- 

यह भी कलियुग में होने वाला है।

वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।

अर्जुन भी छूट गया।

नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

तब युधिष्ठिर ने कहा- 

कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।

तब नकुल भी छूट गया।

सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

तब युधिष्ठिर बोले- 

कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  

आज के कलयुग में यह

सारी बातें सच

साबित हो रही है ।।

मुझे अच्छा लगा। 

आपके समक्ष रखा है ।

मैं आशा करता हूँ 

🙏 कि आप इसे और भी लोगों तक पहुचायेंगे !!!!!!!

👏🏻👏🏻  जयश्रीकृष्ण, जय श्रीराधे 👏🏻👏🏻
  🙏🏻  *ॐ शांति*🙏🏻
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*जो होता है प्रभु परमात्मा की इच्छा से होता है* , *विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता:*

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जय द्वारकाधीश


जो होता है प्रभु परमात्मा की इच्छा से होता है

कभी कभी हमारे साथ कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे हम बहुत बेचैनी  महसूस करते है। 

ऐसा लगता है जैसे अब सब कुछ खत्म हो गया इससे कई लोग डिप्रेशन  मे चले जाते है तो कई लोग बड़ा और बेवकूफी भरा कदम उठा लेते है पर जरा सोचिये पतझड़ के समय जब पेड़ मे ऐक भी पत्ती नही बचती है तो क्या उस पेड़ का अंत हो जाता है? 

नही। 

वो पेड़ हार नही मानता नए जीवन और बहार के आश मे खड़ा रहता है। 

और जल्द ही उसमे नयी पत्तियाँ आनी शुरू हो जाती है, उसके जीवन मे फिर से बहार आ जाती  है। 

यही प्रकृति का नियम है।


ठीक ऐसे ही अगर हमारे जीवन मे कुछ ऐसे डेसट्रक्टिवे पल आते है तो इसका मतलब अंत नही बल्की ये इस बात का इशारा है कि हमारे जीवन मे भी नयी बहार आयगी अत: हमे सब कुछ भूलकर नयी जिन्दगी की शुरूआत करनी चाहिये। 

और ये विश्वास रखना चाहिए कि नयी जिन्दगी पुरानी से कही बेहतर होगी। 

विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता: 
                                                                                                                                    भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।

द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। 

तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।

चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।

उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा। 

गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने
साथ यमलोक ले जाएँगे।

गरूड़ को दया आ गई। 

इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। 

उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद बापिस कैलाश पर आ गया।

आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी
नजर से क्यों देखा था। 

यम देव बोले.....! 

" गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। 

मैं सोच रहा था कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी। "

गरुड़ समझ गये " मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए। "

इस लिए कृष्ण कहते है।

करता तू वह है ,
जो तू चाहता है।
परन्तु होता वह है,
जो में चाहता हूँ।
कर तू वह ,
जो में चाहता हूँ,
फिर होगा वो, 
जो तू चाहेगा ।

जीवन के 6 सत्य:-

1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं ?

क्योंकि..लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..

2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है ?

क्योंकि...श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....

3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों , मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....

4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है

क्योंकि...अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...

5 . कोई फर्क नहीं पड़ता कि " आप " नहीं हँसेंगे तो सभ्य कहलायेंगे ?

क्यूंकि ..." आप " पर हंसने के लिए दुनिया खड़ी है ?

6. कोई फर्क नहीं पड़ता कि ,आप कितने अमीर हैं ? और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास हैं ? 

क्योंकि...घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा...

इस लिए संभल के चलिए ... ज़िन्दगी का सफर छोटा है , हँसते हँसते काटिये , आनंद आएगा ।      
*◆●स्वयं विचार करें​●◆*
*जय श्री राधे श्याम👏*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। वेद पुराण शास्त्रों आधारित सुंदर कहानी बिहारीजी की लीला बासी तुलसी।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। वेद पुराण शास्त्रों आधारित सुंदर कहानी बिहारीजी की लीला बासी तुलसी।।

बिहारी जी किसी का उधार नही रखते...!

एक बार की बात है। 

वृन्दावन में एक संत रहा करते थे। 




उनका नाम था कल्याण बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे एक बार उनके पास एक सेठ आया।

अब था तो सेठ लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था। 

उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था। 

अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये। 

उन संत ने कहा देखो अगर मैं कोई उपाय जनता तो तुम्हे अवश्य बता देता।

मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकूँ।

ये मेरे बस में नही है।

हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी। 

इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया। 

अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले तुझे जो कुछ मांगना है।

जो कुछ कहना है...!

इनसे कह दे...!

ये सब की मनो कामनाओ को पूर्ण कर देते है। 

अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया। 

कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया।

फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा।

बिहारी जी का धन्यवाद करता फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया।

वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही।

लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था।

तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है।

तो उसने उसे कुछ पैसे दिए 750 रुपये और कहा कि....!

ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना। 

अब बात तो बहुत पुरानी है ये...!

अब वो भक्त जब वृन्दावन आया है।

तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया है।

लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया।

लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे तो बन गई है कोई बात नही।

लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही।




अब इधर मंदिर बंद हुआ।

तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए।

अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है। 

उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी।

वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है।

तुम उस भक्त को ये रुपये लौटा देना।

ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए।

अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया।

कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की।

अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया।

तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आएंगे। 

जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया।

कि ये बात तो मैं ही जानता था और तो मैने किसी को बताई भी नही।

सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे।

वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है। 

ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला।

तो भक्तो ऐसे है हमारे बिहारी जी ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते। 

जो एक बार इनकी शरण ले लेता है।

फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

बासी तुलसी

प्रश्न- कुछ लोग कहते हैं कि रविवार को तुलसी चयन नहीं करनी चाहिये तथा जल भी नहीं देना चाहिये, शास्त्र में क्या प्रावधान है?

उत्तर: केवल रविवार ही क्यों? 

शास्त्र में तो अनेक दिवसों में तुलसी चयन का निषेध उपलब्ध होता है! 

जहाँ तक जल देने का प्रश्न है।

सींचना या जल देना कभी भी निषिद्ध नहीं है!

पद्मपुराण उत्तर खण्ड तथा स्कन्द पुराण अवन्ती खण्ड में कथित है- 

रोगाणाम भिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तक- त्रासिनी सींचे जाने पर तुलसी यमराज को दूर भगा देती है।

अगस्त संहिता का वचन है-

तुलसी रोपण, जल सिंचन, दर्शन एवं स्पर्श आदि से पवित्रता मिलती है।

तुलसी रोपिता सिक्ता दृष्टा स्पृष्टा च पावयेत्।

पुनः पद्मोक्ति है।

कि तुलसी रोपण, पालन, जल सेंचन, दर्शन, स्पर्श करने से समस्त पाप भस्मित कर देती है।

रोपणात् पालनात् सेकाद्      
दर्शनात् स्पर्शनात्रान्नृणाम् ।
तुलसी दहते पापं वाड्मनः काय संचितम् ।।

जहाँ तक चयन करने की बात है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड में श्रीभगवान तुलसी के प्रति कहते हैं- 

पुर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति, मध्याह्नकाल, रात्रि, दोनों सन्ध्यायें, अशौच समय, बिना स्नान किये शरीर में तेल लगाकर तुलसी चयन न करें! 

इतने निषिद्ध दिनों में तुलसी चयन करना वर्जित कहा है ।

वहीं बिना तुलसी के भगवदचर्ना अधूरी मानी जाती है।

अतः वाराह पुराण में इसके समाधान के रूप में व्यवस्था दी गयी है।

कि निषिद्ध काल में स्वतः झड़कर गिरे हुए तुलसीदलों से अर्चना करें:  --
  
निषिद्धे दिवसे प्राप्ते गृहणीयात् ।
गलितं दलम्तेनैव पूजा         
 कुर्वति न पूजा तुलसीं बिना ।।

उक्त निषिद्ध अवसरों के अपवाद स्वरूप शास्त्र का ऐसा निर्देश भी है।

कि शालग्राम की नित्य पूजा हेतु निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी चयन कर्तव्य है ।

शालग्रामशिलार्चार्थं प्रत्यहं तुलसी सितौ।
 तुलसी ये चिन्वन्ति धन्यास्ते कर पल्लवाः।।

संक्रान्त्यादौ निषिद्धेऽपि तुलस्यवचय स्मृतः

तथापि द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी न करें विष्णु धर्मोंत्तर का वचन है- 

न छिन्द्यात् तुलसी विप्रा द्वादश्यां वैष्णवः क्वचित्।

तुलसी दल चयन करके घर में रखे जा सकते हैं और उन्हें ही पूजा में प्रयुक्त किया जा सकता है।

क्योंकि तुलसी दल बासी नहीं माने जाते।

अतः वर्जित नहीं है

अनेक पुराणों में यह श्लोक उद्धृत है-

वर्ज्यं पर्युषितं पुष्प वर्ज्यं पर्युषित जलम्।
 न वर्ज्यं तुलसी दलं न वर्ज्यं जाह्नवी जलम् पद्म- स्कन्द- नारदादि।।

अर्थात पुष्प या जल बासी हो सकते हैं।

तुलसीदल व गंगाजल कभी बासी नहीं होते।





अच्छी सोच

एक महान विद्वान से मिलने के लिये एक दिन रोशनपुर के राजा आये। 

राजा ने विद्वान से पुछा, ‘क्या इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो बहुत महान हो लेकिन उसे दुनिया वाले नहीं जानते हो?’

विद्वान ने राजा से विनम्र भाव से मुस्कुराते हुये कहा, ‘हम दुनिया के ज्यादातर महान लोगों को नहीं जानते हैं।’ 

दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो महान लोगों से भी कई गुना महान हैं।

राजा ने विद्वान से कहा, ‘ऐसे कैसे संभव है’। 

विद्वान ने कहा, मैं आपको ऐसे कई व्यक्तियों से मिलवाऊंगा। इतना कहकर विद्वान, राजा को लेकर एक गांव की ओर चल पड़े। 

रास्ते में कुछ दुर पश्चात् पेड़ के नीचे एक बुढ़ा आदमी वहाँ उनको मिल गया। 

बुढ़े आदमी के पास एक पानी का घड़ा और कुछ डबल रोटी थी। 

विद्वान और राजा ने उससे मांगकर डबल रोटी खाई और पानी पिया।

जब राजा उस बूढ़े आदमी को डबल रोटी के दाम देने लगा तो वह आदमी बोला, ‘महोदय, मैं कोई दुकानदार नहीं हूँ। 

मैं बस वही कर रहा हूँ जो मैं इस उम्र में करने योग्य हूँ। 

मेरे बेटे का डबल रोटी का व्यापार है, मेरा घर में मन नहीं लगता इसलिये राहगिरों को ठंडा पानी पिलाने और डबल रोटी खिलाने आ जाया करता हूँ। 

इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।

विद्वान ने राजा को इशारा देते हुए कहा कि देखो राजन् इस बुढ़े आदमी की इतनी अच्छी सोच ही इसे महान बनाती है।

फिर इतना कहकर दोनों ने गाँव में प्रवेश किया तब उन्हें एक स्कूल नजर आया। 

स्कूल में उन्होंने एक शिक्षक से मुलाकात की और राजा ने उससे पूछा कि आप इतने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं तो आपको कितनी तनख्वाह मिलती है। 

उस शिक्षक ने राजा से कहा कि महाराज मैं तनख्वाह के लिये नहीं पढ़ा रहा हूँ, यहाँ कोई शिक्षक नहीं थे और विद्यार्थियों का भविष्य दाव पर था इस कारण मैं उन्हें मुफ्त में शिक्षा देने आ रहा हूँ।

विद्वान ने राजा से कहा कि महाराज दूसरों के लिये जीने वाला भी बहुत ही महान होता है। 

और ऐसे कई लोग हैं जिनकी ऐसी महान सोच ही उन्हें महान से भी बड़ा महान बनाती हैं।

इसलिए राजन् अच्छी सोच आदमी का किस्मत निर्धारित करती है।

इस लिए Friends हमेशा अच्छी बातें ही सोचकर कार्य करें और महान बनें। 

Friends आदमी बड़ी बातों से नहीं बल्कि अच्छी सोच व अच्छे कामों से महान माना जाता है।

शिक्षा:- 

Life में कुछ Achieve करने के लिये और सफलता हासिल करने के लिये बड़ी बातों को ज्यादा Importance देने के बजाय अच्छी सोच को ज्यादा महत्व देना चाहिये क्योंकि आपकी अच्छी सोच ही आपके कार्य को निर्धारित करती है!



सबक

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....!

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -

"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -

"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली - 
"हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" 

और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..। 

एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। 

महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- 

"माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.....! 

उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया......! 

भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे....! 

मैंने उससे खाने को कुछ माँगा....! 

उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- 

"मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"

              " निष्कर्ष "
           
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409 
व्हाट्सएप नंबर:+ 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏 🙏🙏

*महाकाल के दर्शन तो आप रोजाना*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*महाकाल के दर्शन तो आप रोजाना*   


महाकाल के दर्शन तो आप रोजाना 
 ही करते है ,तो विचार आया कि क्यों न श्री
महाकाल बाबा का पूरा महात्म लिखू पढ़ें जरूर
       जय श्री महाकाल

महाकाल महामात्य ( उज्जैन् )
       

महाकाल मंदिर परिसर में प्रमुख 42 देवताओं के मंदिर है,इस मन्दिर का लगभग साढ़े सात एकड़ में फैला विशाल परिसर संभवत भारत के किसी अन्य ज्योतिर्लिंग का नहीं है ।

देश के 12 ज्योर्तिलिंगो में एक  श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति है। 

उज्जैन पूरी दुनिया से इस अर्थ में अलग है कि आकाश में उज्जैन को जो मध्य स्थान प्राप्त है, वहीं धरती पर भी प्राप्त है। 

आकाश व धरती दोनेां के केन्द्र बिन्दु पर उज्जैन स्थित है।


महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूपों में लिया जाता है। 

इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की काल गणना होती रही है। 

प्राचीन श्री महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण11वी शताब्दी में हुआ। 

श्री महाकाल पृथ्वी के नाभी केन्द्र पर स्थित दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जो दुनिया का एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है। 

तंत्र मन्त्र  की दृष्टि से भी इस दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग का बडा महत्व है।

विश्व में अकेले श्री महाकाल है जो विविध रूपों में भक्तों को दर्शन देते है। 

कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी  राजसी रूप में आभूषण धारण कर। 

कभी भांग, कभी चंदन और सूखे मेवे से तो कभी फल, फूल से सजते है। 

राजाधिराज।

हनुमान, शिव, देवी सरस्वती, अवंतिका, भद्रकाली, नवग्रह, शनि, राधा - कृष्ण, गणेश के मंदिरों से विभूषित यह परिसर आध्यात्मिक अनुभूति का पावन  आंगन है।

श्री महाकाल मंदिर परिसर में यू तो छोटे - बडे अनेकों देवी देवताओं के मंदिर है परंतु परिसर में प्रमुख 42 मंदिर स्थापित है जो निम्नानुसार हैः-

श्री लक्ष्मी नृसिंह मंदिर है जो मंदिर परिसर के गलियारे में स्थित हैं। 

ऋद्धि - सिद्धी गणेश जी का मंदिर है जो लक्ष्मी नृसिंह मंदिर के आगे ही स्थित है। 

विट्ठल पण्ढ़रीनाथ मंदिर है जो मंदिर के गलियारे में स्थित है। 

श्री राम दरबार मंदिर गलियारे से कोटीतीर्थ की ओर नीचे उतरने पर स्थित है। 

श्री अवंतिका देवी का मंदिर जो उज्जैन का एक प्राचीन नाम अवंतिका है। 

इसका मंदिर श्री रामदरबार मंदिर के पीछे स्थापित हैं। 

श्री चन्द्रादिप्तेश्वर मंदिर श्री रामदरबार मंदिर से आगे बढने पर बायें हाथ पर स्थित है। 

श्री मंगलनाथ का मंदिर दन्द्रादिप्तेश्वर मंदिर से आगे भूमि पुत्र मंगल शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान है। 

श्री अन्नपूर्णा देवी का मंदिर मंगलनाथ शिवलिंग से आगे स्थापित है। 

वाच्छायन गणपति महाकाल मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार ( चांदी द्वार ) के पास पूर्व दिशा में प्रतिमा स्थिापित है। 

प्रवेश द्वार के गणेश जी की मूर्ति चांदी द्वार के उपर गणेश प्रतिमा विराजित है।


इसी तरह महाकाल मंदिर परिसर में ही गर्भगृह में विराजित ज्योर्तिलिंग के रूप में भगवान श्री महाकालेश्वर विराजमान है जो चांदी द्वार से नीचे उतरने पर गर्भगृह स्थापित है। 

गर्भगृह में ही देवी पार्वती, श्री गणेश व श्री कार्तिकेय की रजत प्रतिमाएं है। 

गर्भगृह में ही दो अखंड नंदा दीप है। 

श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर है जो श्री महाकालेश्वर के ठीक उपर स्थित है। 

श्री नागचन्द्रेश्वर महादेव का मंदिर है जो ओंकारेश्वर महादेव के उपर यानी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर से तीसरी मंजिल पर स्थित है। 

इस मंदिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी को ही खुलते है। 

नागचन्द्रेश्वर प्रतिमा के रूप में भी दर्शन होते है जो तीसरी मंजिल पर स्थापित है। 

सिद्धी विनायक मंदिर महाकालेश्वर प्रांगण में ओकारेश्वर मंदिर के सामने उत्तर दिशा की ओर स्थित है। 

साक्षी गोपाल मंदिर परिसर में सिद्धी विनायक के पास स्थित है। 

संकट मोचन सिद्धदास हनुमान मंदिर प्रांगण में उत्तर दिशा में स्थित है। 

स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर सिद्धदास हनुमान मंदिर के सामने स्थापित है।

महाकाल परिसर में ही बृहस्पतेश्वर महादेव मंदिर है जो प्रांगण के उत्तर में स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थित हैं। 

शिव की प्राचीन प्रतिमाएं त्रिविष्टपेश्वर महादेव मंदिर श्री महाकाल मंदिर के पीछे स्थित है। 

मां भद्रकाल्ये मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर से सटे उत्तरी कक्ष में है। 

नवग्रह मंदिर श्री महाकाल के निर्गम द्वार के पास स्थित है। 

मारूतिनंदन हनुमान मंदिर महाकाल परिसर के आग्नेय कोण में स्थित है। 

श्री राम मंदिर मारूतिनंदन हनुमान के पीछे स्थिापित है।

नीलकंठेश्वर मंदिर महाकाल मंदिर के निर्गम द्वार के पीछे स्थित है। 

मराठों का मंदिर नीलकंठेश्वर महादेव के पास स्थित है। 

इसका निर्माण देवास के नरेश द्वारा कराया गया था। 

गोविन्देश्वर महादेव मंदिर वृद्धकालेश्वर महाकाल मंदिर के समीप स्थित है। 

सूर्यमुखी हनुमान मंदिर कोटितीर्थ के प्रदक्षिणा मार्ग पर श्री महाकाल के प्रमुख द्वार के पास स्थित है। 

लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मंदिर कोटितीर्थ के उत्तर दिशा में स्थित है। 

कोटेश्वर महादेव मंदिर यह महाकाल के गण तथा कोटितीर्थ के अधिष्ठाता है। 

यह एक महत्वपूर्ण मंदिर है। 

प्रदोष के दिन श्री महाकाल की संध्या - पूजा के पहले कोटेश्वर की पूजा की जाती है।

सप्तऋषि मंदिर महाकाल परिसर के पीछे की ओर सप्तऋषियों के सात मंदिर है। 

अनादिकल्पेश्वर महादेव मंदिर सप्तऋषि मंदिर के ठीक सामने है। 

श्री बाल विजय मस्त हनुमान मंदिर अनादिकल्पेश्वर महादेव के सामने स्थित है। 

यह एक चैतन्य देव स्थान माना जाता है। 

श्री ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर परिसर में ही स्थित है। 

श्री वृद्धकालेश्वर महाकाल ( जूना महाकाल ) श्री बाल हनुमान मंदिर के पास स्थित है। 

पवित्र कोटितीर्थ महाकाल के आंगन का जल तीर्थ है। 

महाभारत इस तीर्थ का उल्लेख है। 

कोटितीर्थ के पवित्र जल से नित्य महाकाल का अभिषेक होता है।

भगवान श्री महाकाल की प्रतिदिन पांच आरती होती है। 

भस्मार्ती  प्रतिदिन प्रातः होती है।

भस्मार्ती का समय केवल श्रावण मास में परिवर्तन किया जाता है। 

इसी प्रकार महाशिवरात्रि पर्व पर भस्मार्ती दोपहर 12 बजे होती है। 

विश्वभर में एक मात्र श्री महाकाल है जिनकी प्रातः 4 से 6 बजे तक वैदिक मंत्रों, स्त्रोत - पाठ, वाद्य यंत्रों, शंख, डमरू, घंटी घडियालों के साथ भस्मार्ती होती है। 

दद्दयोदय आरती प्रातः काल 7 बजे से होती है। 

इस आरती में समय पर परिवर्तन होता रहता है। 

तीसरी आरती प्रातः 10 बजे से नैवेद्य आरती होती है। 

शाम 5 बजे गर्भगृह में बाबा महाकाल का जलाभिषेक बंद रहता है और इस समय पूजन श्रंगार किया जाता है। 

इसके बाद शाम को संध्या आरती 7 बजे से की जाती है। शयन आरती रात्रि 10.30 बजे से होती है इसके बाद गर्भगृह के पट बंद हो जाते है। 

जेा अगले दिन प्रातः 4 बजे खुलते है। 

आरतियों में समय - समय पर परिवर्तन होता रहता है।


मंदिर परिसर के बाहर ही सिद्ध विनायक  गणेश जी की विशाल प्रतिमा है ।

इसी से थोड़ा आगे माँ हरसिद्धि का मंदिर है जो देवी के 52 शक्तिपीठो में से एक है ।

प्रसिद्द शिप्रा का घाट रामघाट भी हरसिध्दि मंदिर के समीप ही है ।समीप ही चार धाम मंदिर है ।

एक तरह से देखा जाय तो यह देवताओ की नगरी है जहाँ भी नजर दौड़ाये मंदिर नजर आएंगे।

यहां के कण कण में भगवान है  84 महादेव,9 नारायण,सप्तसागर , अष्टकालभैरव, चोसठ योगनी  सिद्धवट, सांदीपनि आश्रम,गोपाल मंदिर,भर्तहरि गुफा, इस्कॉन मंदिर, गढ़कालिका,चिन्तामण गणेश, हनुमानजी के सेकड़ो सिद्ध मंदिर यहां की शोभा बढ़ाते है ।

सिद्ध संतों की जाग्रत समाधि

इसी लिये कहा जाता है महाकाल यहाँ सपरिवार विराजित है ।

🔱जयश्री महाकाल🔱
🙏सुप्रभात वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🕉️🌅शुभ औऱ मंगलमय हो सोमवार🌞🕉️
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।। जीवन में वाह से आह तक कर्म के किए हुवे पापो का फल सुंदर कहानी।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। जीवन में वाह से आह तक कर्म के किए हुवे पापो का फल सुंदर कहानी।।


हल खींचते समय यदि कोई बैल गोबर या मूत्र करने की स्थिति में होता था।

तो किसान कुछ देर के लिए हल चलाना बन्द करके बैल के मल - मूत्र त्यागने तक खड़ा रहता था।

ताकि बैल आराम से यह नित्यकर्म कर सके, यह आम चलन था!



 हमने ( ईश्वर वैदिक ) यह सारी बातें बचपन में स्वयं अपनी आंखों से देख हुई हैं!

जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी।

जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं!

यह सब अभी 25 - 30 वर्ष पूर्व तक होता रहा!

उस जमाने का देसीघी यदि आज कल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था।

कि  2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है ! 

उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा - आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था!

टिटहरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है...!

हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टिटहरी चिल्लाती मिलती थी।

तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था! 

उस जमाने में आधुनिकशिक्षा नहीं थी!

सब आस्तिक थे!
 
दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था...!

यह एक सामान्य नियम था !

बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था।

बूढाबैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था...!

मरने तक उसकी सेवा होती थी!

उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था।

कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है...!

अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें? 

कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए?

जब बैल मर जाता तो किसान फफक - फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था।

जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था! 

माता - पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे!

पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था।

कि वह क्या कहना चाह रहा है?

वह पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवनव्यवहार में ही जीवनरस खोज लेता था । 

वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ! 

वह अतुल्य भारत था!

पिछले 30 - 40 वर्ष में लार्डमैकाले की शिक्षा उस गौरवशाली सुसम्पन्न भारत को निगल गई!

हाय रे लार्ड मैकाले ! 

तेरा सत्यानाश हो! 

तेरी शिक्षा सबसे पहले किसी देश की संवेदनाओं को जहर का टीका लगाती है।

फिर शर्म - हया की जड़ों में तेजाब डालती है और फिर मानवता को पूरी तरह अपंग बनाकर उसे अपनी जरूरत की मशीन का रूप दे देती है!

पाप का फल भोगना ही पड़ता है।

मनुष्य को ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये।

कि मेरा पाप तो कम था पर दण्ड अधिक भोगना पडा अथवा मैंने पाप तो किया नहीं पर दण्ड मुझे मिल गया! 



कारण कि यह सर्वज्ञ, सर्वसुहृद्, सर्वसमर्थ भगवान् का विधान है।

कि पाप से अधिक दण्ड कोई नहीं भोगता और जो दण्ड मिलता है।

वह किसी न किसी पाप का ही फल होता है।

किसी गाँव में एक सज्जन रहते थे। 

उनके घर के सामने एक सुनार का घर था। 

सुनार के पास सोना आता रहता था और वह गढ़कर देता रहता था। 

ऐसे वह पैसे कमाता था। 

एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया। 

रात्रि में पहरा लगाने वाले सिपाही को इस बात का पता लग गया। 

उस पहरेदार ने रात्रि में उस सुनार को मार दिया और जिस बक्से में सोना था।

उसे उठाकर चल दिया। 

इसी बीच सामने रहने वाले सज्जन लघुशंका के लिये उठकर बाहर आये। 

उन्होंने पहरेदार को पकड़ लिया कि तू इस बक्से को कैसे ले जा रहा है? 

तो पहरेदारने कहा-

'तू चुप रह..!

हल्ला मत कर। 

इसमें से कुछ तू ले ले और कुछ मैं ले लूँ।' 

सज्जन बोले- 

'मैं कैसे ले लँ? 

मैं चोर थोड़े ही हूँ!' 

पहरेदार ने कहा -

'देख, तू समझ जा, मेरी बात मान ले।

नहीं तो दुःख पायेगा।' 

पर वे सज्जन माने नहीं। 

तब पहरेदार ने बक्सा नीचे रख दिया और उस सज्जन को पकड़कर जोर से सीटी बजा दी। 

सीटी सुनते ही और जगह पहरा लगाने वाले सिपाही दौड़कर वहाँ आ गये। 

उसने सबसे कहा कि 'यह इस घर से बक्सा लेकर आया है और मैंने इसको पकड़ लिया है।' 

तब सिपाहियों ने घर में घुसकर देखा कि सुनार मरा पड़ा है। 

उन्होंने उस सज्जन को पकड़ लिया और राजकीय सिपाहियों के हवाले कर दिया। 

जज के सामने बहस हुई तो उस सज्जन ने कहा कि 'मैंने नहीं मारा है।

उस पहरेदार सिपाही ने मारा है।' 

सब सिपाही आपस में मिले हुए थे।

उन्होंने कहा की 'नहीं इसी ने मारा है।

हमने खुद रात्रि में इसे पकड़ा है'।

इत्यादि। 

मुकदमा चला। 

चलते - चलते अन्त में उस सज्जन के लिये फाँसी का हुक्म हुआ। 

फाँसी का हुक्म होते ही उस सज्जन के मुख से निकला- 

'देखो, सरासर अन्याय हो रहा है ! 

भगवान् के दरबार में कोई न्याय नहीं! 

मैंने मारा नहीं।

मुझे दण्ड हो और जिसने मारा है।

वह बेदाग छूट गया।

जुर्माना भी नहीं; 

यह अन्याय है! 
    
जज पर उसके वचनों का असर पड़ा कि वास्तव में यह सच बोल रहा है।

इसकी किसी तरह से जाँच होनी चाहिये ।

ऐसा विचार करके उस जज ने एक योजना बनाई। 

सुबह होते ही एक व्यक्ति रोता - चिल्लाता हुआ आया और बोला-

'हमारे भाई की हत्या हो गयी...!

सरकार ! 

इसकी जाँच होनी चाहिये।' 

तब जज ने उसी सिपाही को और कैदी सज्जन को मरे व्यक्ति की लाश उठाकर लाने के लिये भेजा। 

दोनों उस व्यक्ति के साथ वहाँ गये..!

जहाँ लाश पड़ी थी। 

खाट पर लाश के ऊपर कपड़ा बिछा था। 

खून बिखरा पड़ा था। 

दोनों ने उस खाट को उठाया और उठाकर ले चले। 

साथ का दूसरा व्यक्ति...!

सूचना देने के बहाने दौड़कर आगे चला गया। 

तब चलते - चलते सिपाही ने कैदी से कहा-

'देख, उस दिन तू मेरी बात मान लेता...!

तो सोना मिल जाता और फाँसी भी नहीं होती।

अब देख लिया सच्चाई का फल ?'   

कैदी ने कहा-

'मैंने तो अपना काम सच्चाई का ही किया था।

फाँसी हो गयी तो हो गयी! 

हत्या की तूने और दण्ड भोगना पड़ा मेरे को!

भगवान् के यहाँ न्याय नहीं!'

खाट पर झूठमूठ मरे हुए के समान पड़ा हुआ व्यक्ति उन दोनों की बातें सुन रहा था। 

जब जज के सामने खाट रखी गयी तो खूनभरे कपड़े को हटाकर वह उठ खड़ा हुआ और उसने सारी बात जज को बता दी।

कि रास्ते में सिपाही यह बोला और कैदी यह बोला। 

यह सुनकर जज को बड़ा आश्चर्य हुआ। 

सिपाही भी हक्का - बक्का रह गया। 

उस सिपाही को पकड़कर कैद कर लिया गया।
      
परन्तु जज के मन में सन्तोष नहीं हुआ। 

उसने कैदी को एकान्त में बुलाकर कहा कि।

'इस मामले में तो मैं तुम्हें निर्दोष मानता हूँ।

पर सच - सच बताओ कि इस जन्म में तुमने कोई हत्या की है क्या?' 

वह बोला - बहुत पहले की घटना है। 

किसी बात पर क्रोध में मैंने तलवार से एक व्यक्ति का गला काट दिया और घर के पीछे जो नदी है, उसमें फेंक दिया। 

इस घटना का किसी को पता नहीं लगा।

यह सुनकर जज बोला - 

तुम्हारे को इस समय फाँसी होगी ही।

मैंने भी सोचा कि मैंने तो कभी किसी से भी घूस ( रिश्वत ) नहीं खायी।

कभी बेईमानी नहीं की।

फिर मेरे हाथ से इसके लिये फाँसी का हुक्म लिखा कैसे गया ?

अब सन्तोष हुआ। 

उसी पाप का फल तुम्हें यह भोगना पड़ेगा।

सिपाही को अलग फाँसी होगी।' 

उस सज्जन ने चोर सिपाही को पकड़कर अपने कर्तव्य का पालन किया था। 

फिर उसको जो दण्ड मिला है।

वह उसके कर्तव्य-पालन का फल नहीं है।

प्रत्युत उसने बहुत पहले जो हत्या की थी।

उस हत्या का फल है। 

कारण कि मनुष्य को अपनी रक्षा करने का अधिकार है।

मारने का अधिकार नहीं। 

मारने का अधिकार रक्षक क्षत्रिय का...!

राजा का है। 

अत:...!

कर्तव्य का पालन करने के कारण ही उनको उस पाप ( हत्या ) का फल उसको यहीं मिल गया और परलोक के भयंकर दण्ड से उसका छुटकारा हो गया। 

कारण कि इस लोक में जो दण्ड भोग लिया जाता है।

उसका थोड़े में ही छुटकारा हो जाता है।

थोड़े में ही शुद्धि हो जाती है।

नहीं तो परलोक में बड़ा भयंकर ( ब्याजसहित ) दण्ड भोगना पड़ता है।]

इस कहानी से यह पता लगता है।

कि मनुष्य के कब किये हुए पाप का फल कब मिलेगा इसका कुछ पता नहीं। 

भगवान् का विधान तो विचित्र ही होता है। 

जब तक पुराने पुण्य प्रबल रहते है तब तक उग्र पाप का फल भी तत्काल नहीं मिलता। 

जब पुराने पुण्य खत्म होते हैं ।

तब उस पाप की बारी आती है। 

पाप का फल ( दण्ड ) तो भोगना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में भोगना पड़े या जन्मान्तर में।

★★

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
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!🙏🙏

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रामेश्वर कुण्ड

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