सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। वेद पुराण शास्त्रों आधारित सुंदर कहानी बिहारीजी की लीला बासी तुलसी।।
बिहारी जी किसी का उधार नही रखते...!
एक बार की बात है।
वृन्दावन में एक संत रहा करते थे।
उनका नाम था कल्याण बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे एक बार उनके पास एक सेठ आया।
अब था तो सेठ लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था।
उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था।
अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये।
उन संत ने कहा देखो अगर मैं कोई उपाय जनता तो तुम्हे अवश्य बता देता।
मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकूँ।
ये मेरे बस में नही है।
हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी।
इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया।
अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले तुझे जो कुछ मांगना है।
जो कुछ कहना है...!
इनसे कह दे...!
ये सब की मनो कामनाओ को पूर्ण कर देते है।
अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया।
कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया।
फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा।
बिहारी जी का धन्यवाद करता फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया।
वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही।
लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था।
तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है।
तो उसने उसे कुछ पैसे दिए 750 रुपये और कहा कि....!
ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना।
अब बात तो बहुत पुरानी है ये...!
अब वो भक्त जब वृन्दावन आया है।
तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया है।
लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया।
लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे तो बन गई है कोई बात नही।
लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही।
अब इधर मंदिर बंद हुआ।
तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए।
अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है।
उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी।
वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है।
तुम उस भक्त को ये रुपये लौटा देना।
ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए।
अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया।
कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की।
अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया।
तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आएंगे।
जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया।
कि ये बात तो मैं ही जानता था और तो मैने किसी को बताई भी नही।
सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे।
वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है।
ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला।
तो भक्तो ऐसे है हमारे बिहारी जी ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते।
जो एक बार इनकी शरण ले लेता है।
फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।
बासी तुलसी
प्रश्न- कुछ लोग कहते हैं कि रविवार को तुलसी चयन नहीं करनी चाहिये तथा जल भी नहीं देना चाहिये, शास्त्र में क्या प्रावधान है?
उत्तर: केवल रविवार ही क्यों?
शास्त्र में तो अनेक दिवसों में तुलसी चयन का निषेध उपलब्ध होता है!
जहाँ तक जल देने का प्रश्न है।
सींचना या जल देना कभी भी निषिद्ध नहीं है!
पद्मपुराण उत्तर खण्ड तथा स्कन्द पुराण अवन्ती खण्ड में कथित है-
रोगाणाम भिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तक- त्रासिनी सींचे जाने पर तुलसी यमराज को दूर भगा देती है।
अगस्त संहिता का वचन है-
तुलसी रोपण, जल सिंचन, दर्शन एवं स्पर्श आदि से पवित्रता मिलती है।
तुलसी रोपिता सिक्ता दृष्टा स्पृष्टा च पावयेत्।
पुनः पद्मोक्ति है।
कि तुलसी रोपण, पालन, जल सेंचन, दर्शन, स्पर्श करने से समस्त पाप भस्मित कर देती है।
रोपणात् पालनात् सेकाद्
दर्शनात् स्पर्शनात्रान्नृणाम् ।
तुलसी दहते पापं वाड्मनः काय संचितम् ।।
जहाँ तक चयन करने की बात है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड में श्रीभगवान तुलसी के प्रति कहते हैं-
पुर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति, मध्याह्नकाल, रात्रि, दोनों सन्ध्यायें, अशौच समय, बिना स्नान किये शरीर में तेल लगाकर तुलसी चयन न करें!
इतने निषिद्ध दिनों में तुलसी चयन करना वर्जित कहा है ।
वहीं बिना तुलसी के भगवदचर्ना अधूरी मानी जाती है।
अतः वाराह पुराण में इसके समाधान के रूप में व्यवस्था दी गयी है।
कि निषिद्ध काल में स्वतः झड़कर गिरे हुए तुलसीदलों से अर्चना करें: --
निषिद्धे दिवसे प्राप्ते गृहणीयात् ।
गलितं दलम्तेनैव पूजा
कुर्वति न पूजा तुलसीं बिना ।।
उक्त निषिद्ध अवसरों के अपवाद स्वरूप शास्त्र का ऐसा निर्देश भी है।
कि शालग्राम की नित्य पूजा हेतु निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी चयन कर्तव्य है ।
शालग्रामशिलार्चार्थं प्रत्यहं तुलसी सितौ।
तुलसी ये चिन्वन्ति धन्यास्ते कर पल्लवाः।।
संक्रान्त्यादौ निषिद्धेऽपि तुलस्यवचय स्मृतः
तथापि द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी न करें विष्णु धर्मोंत्तर का वचन है-
न छिन्द्यात् तुलसी विप्रा द्वादश्यां वैष्णवः क्वचित्।
तुलसी दल चयन करके घर में रखे जा सकते हैं और उन्हें ही पूजा में प्रयुक्त किया जा सकता है।
क्योंकि तुलसी दल बासी नहीं माने जाते।
अतः वर्जित नहीं है
अनेक पुराणों में यह श्लोक उद्धृत है-
वर्ज्यं पर्युषितं पुष्प वर्ज्यं पर्युषित जलम्।
न वर्ज्यं तुलसी दलं न वर्ज्यं जाह्नवी जलम् पद्म- स्कन्द- नारदादि।।
अर्थात पुष्प या जल बासी हो सकते हैं।
तुलसीदल व गंगाजल कभी बासी नहीं होते।
अच्छी सोच
एक महान विद्वान से मिलने के लिये एक दिन रोशनपुर के राजा आये।
राजा ने विद्वान से पुछा, ‘क्या इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो बहुत महान हो लेकिन उसे दुनिया वाले नहीं जानते हो?’
विद्वान ने राजा से विनम्र भाव से मुस्कुराते हुये कहा, ‘हम दुनिया के ज्यादातर महान लोगों को नहीं जानते हैं।’
दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो महान लोगों से भी कई गुना महान हैं।
राजा ने विद्वान से कहा, ‘ऐसे कैसे संभव है’।
विद्वान ने कहा, मैं आपको ऐसे कई व्यक्तियों से मिलवाऊंगा। इतना कहकर विद्वान, राजा को लेकर एक गांव की ओर चल पड़े।
रास्ते में कुछ दुर पश्चात् पेड़ के नीचे एक बुढ़ा आदमी वहाँ उनको मिल गया।
बुढ़े आदमी के पास एक पानी का घड़ा और कुछ डबल रोटी थी।
विद्वान और राजा ने उससे मांगकर डबल रोटी खाई और पानी पिया।
जब राजा उस बूढ़े आदमी को डबल रोटी के दाम देने लगा तो वह आदमी बोला, ‘महोदय, मैं कोई दुकानदार नहीं हूँ।
मैं बस वही कर रहा हूँ जो मैं इस उम्र में करने योग्य हूँ।
मेरे बेटे का डबल रोटी का व्यापार है, मेरा घर में मन नहीं लगता इसलिये राहगिरों को ठंडा पानी पिलाने और डबल रोटी खिलाने आ जाया करता हूँ।
इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।
विद्वान ने राजा को इशारा देते हुए कहा कि देखो राजन् इस बुढ़े आदमी की इतनी अच्छी सोच ही इसे महान बनाती है।
फिर इतना कहकर दोनों ने गाँव में प्रवेश किया तब उन्हें एक स्कूल नजर आया।
स्कूल में उन्होंने एक शिक्षक से मुलाकात की और राजा ने उससे पूछा कि आप इतने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं तो आपको कितनी तनख्वाह मिलती है।
उस शिक्षक ने राजा से कहा कि महाराज मैं तनख्वाह के लिये नहीं पढ़ा रहा हूँ, यहाँ कोई शिक्षक नहीं थे और विद्यार्थियों का भविष्य दाव पर था इस कारण मैं उन्हें मुफ्त में शिक्षा देने आ रहा हूँ।
विद्वान ने राजा से कहा कि महाराज दूसरों के लिये जीने वाला भी बहुत ही महान होता है।
और ऐसे कई लोग हैं जिनकी ऐसी महान सोच ही उन्हें महान से भी बड़ा महान बनाती हैं।
इसलिए राजन् अच्छी सोच आदमी का किस्मत निर्धारित करती है।
इस लिए Friends हमेशा अच्छी बातें ही सोचकर कार्य करें और महान बनें।
Friends आदमी बड़ी बातों से नहीं बल्कि अच्छी सोच व अच्छे कामों से महान माना जाता है।
शिक्षा:-
Life में कुछ Achieve करने के लिये और सफलता हासिल करने के लिये बड़ी बातों को ज्यादा Importance देने के बजाय अच्छी सोच को ज्यादा महत्व देना चाहिये क्योंकि आपकी अच्छी सोच ही आपके कार्य को निर्धारित करती है!

सबक
एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"
दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....!
वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"
वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -
"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"
एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -
"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"
और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली -
"हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?"
और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..।
एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।
हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके,
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।
इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।
हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..।
महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।
ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।
वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।
जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा-
"माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।
लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.....!
उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया......!
भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे....!
मैंने उससे खाने को कुछ माँगा....!
उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि-
"मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"
जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।
उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?
और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"
" निष्कर्ष "
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: + 91- 7010668409
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏 🙏🙏