https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/12/20

धैर्य साधना की शक्ति 〰️〰️🌼🌼🌼〰️〰️वर्षों पुरानी बात है। एक राज्य में महान योद्धा रहता था।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

धैर्य साधना की शक्ति 

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वर्षों पुरानी बात है। एक राज्य में महान योद्धा रहता था। कभी किसी से नहीं हारा था। बूढ़ा हो चला था, लेकिन तब भी किसी को भी हराने का माद्दा रखता था। चारों दिशाओं में उसकी ख्याति थी। उससे देश-विदेश के कई युवा युद्ध कौशल का प्रशिक्षण लेने आते थे।

एक दिन एक कुख्यात युवा लड़ाका उसके गांव आया। वह उस महान योद्धा को हराने का संकल्प लेकर आया था, ताकि ऐसा करने वाला पहला व्यक्ति बन सके। बेमिसाल ताकतवर होने के साथ ही उसकी खूबी दुश्मन की कमजोरी पहचानने और उसका फायदा उठाने में महारत थी। वह दुश्मन के पहले वार का इंतजार करता। इससे वह उसकी कमजोरी का पता लगाता। फिर पूरी निर्ममता, शेर की ताकत और बिजली की गति से उस पर पलटवार करता। यानी, पहला वार तो उसका दुश्मन करता लेकिन आखिरी वार इस युवा लड़ाके का ही होता था।

अपने शुभचिंतकों और शिष्यों की चिंता और सलाह को नजरअंदाज करते हुए बूढ़े योद्धा ने युवा लड़ाके की चुनौती कबूल की। जब दोनों आमने-सामने आए तो युवा लड़ाके ने महान योद्धा को अपमानित करना शुरू किया। उसने बूढ़े योद्धा के ऊपर रेत-मिट्टी फेंकी। चेहरे पर थूका भी। बूढ़े योद्धा को गालियां देता रहा। जितने तरीके से संभव था, उतने तरीके से उसे अपमानित किया। लेकिन बूढ़ा योद्धा शांतचित्त, एकाग्र और अडिग रहा और उसके प्रत्येक क्रियाकलाप को पैनी नज़रों से देखता रहा ।

युवा लड़ाका थकने लगा। अंतत: अपनी हार सामने देखकर वह शर्मिंदगी के मारे भाग खड़ा हुआ।
बूढ़े योद्धा के कुछ शिष्य इस बात से नाराज और निराश हुए कि उनके गुरु ने गुस्ताख युवा लड़ाके से युद्ध नहीं किया। उसे सबक नहीं सिखाया। इन शिष्यों ने गुरु को घेर लिया और सवाल किया, 'आप इतना अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? आपने उसे भाग जाने का मौका कैसे दे दिया?’

महान योद्धा ने जवाब दिया, ‘यदि कोई व्यक्ति आपके लिए कुछ उपहार लाए, लेकिन आप लेने से इनकार कर दें। तब यह उपहार किसके पास रह गया?’देने वाले के पास ही न ।

इसी प्रकार साधना में भी कई प्रकार की बाधाएं आएँगी उनसे लड़ने में अपनी शक्ति न गवाएं बल्कि कुछ समय मौन रहें साधना में निरन्तरता रखें सहज होने की कोशिश रखें । थोड़े ही समय बाद आप उन परिस्तिथियों से आगे निकल जायेंगे। और हमेशा विजयी ही रहेंगे। साधना से जो बड़ी बात अंदर पैदा होती है वो है असीम शांति जिसके सम्पर्क में आते ही बड़ी से बड़ी आसुरी शक्ति भी अपनी कोशिशें कर के थक जाती हैं और भाग जाती हैं या साधक के शरणागत हो जाती है बस जरूरत है धैर्य की और असीम शांति की।

अगर परिस्तिथिवश कभी लड़ना भी पड़े तो अंदर शांत रहते हुए पूरी परिस्तिथियों को देखते हुए लड़ो बिना क्रोध किये कोई भी शक्ति होगी आपके ऊपर प्रभाव न डाल सकेगी।
🌼〰️जय श्री कृष्ण〰️🌼〰जय श्री कृष्ण️〰️🌼〰️जय श्री कृष्ण〰️🌼
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सुंदर कहानी ।।मानव जीवन का महत्व

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जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

मानव जीवन का महत्व 

एक व्यक्ति नदी के किनारे पहुँचा आत्महत्या करने। पास ही सन्त की कुटिया थी। सन्त सब देख रहे थे। वह कूदने ही वाला था कि सन्त ने आवाज लगाई। “ठहर”। उसने कहा रोको मत। 

मुझे मरना ही है। जिन्दगी बेकार है। यहाँ कुछ भी नहीं है। परमात्मा भी मुझसे रूठ गया है सबको निहाल कर दिया है मेरे पास कुछ भी नहीं है। सन्त ने कहा-आज रात ठहर जा। चाहे तो कल मर जाना।” सन्त की बात मानकर वह रात भर ठहर गया। प्रातः सन्त उस व्यक्ति को लेकर राजमहल पहुँचे। 

सारा वृत्तांत सुनाया। फिर उसे आकर कान में बताया कि राजा साहब को तुम्हारी आँखों की जरूरत है। एक लाख रुपया दे रहे हैं। एक आँख का। दोनों दे दोगे तो दो लाख देने को तैयार हैं। उसने कहा मैं आँखें बेच दूँ फिर देखूँगा काहे से। 
सन्त फिर राजा के पास गया। थोड़ी देर में लौट कर आया और बोला “यदि कान भी देते हो तो चार लाख रुपया देने को तैयार हैं। और नाक देनी हो तो पाँच लाख। उसने कहा “क्या मतलब” “मैं आँख कान नाक बेच दूँ।

 उसने कहा “सम्राट हाथ पैर तक भी खरीदने को तैयार है”। तू चाहे तो सबका सौदा तय कर ले दस लाख देंगे। 

अब तो वह चकराया कि मात्र शरीर की इतनी कीमत। सन्त ने कहा-तूने कभी अकल पसार कर सोचा कि सुरदुर्लभ तन जा तुझे मिला क्या इस प्रकार बेअकली से बुरी तरह नष्ट करने के लिए मिला था। लाखों करोड़ों लोग तुझसे भी गई बीती स्थिति में होंगे”। 

मनुष्य की समझ में आ गया मानव जीवन का महत्व। उसने आत्महत्या का इरादा छोड़ा व पुरुषार्थ में जुट पड़ा।
जय जय परशुरामजी...!!!
हर हर महादेव हर...!!!
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