https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/19/20

🙏परमात्मा से मिलन🙏एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था , पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

🙏परमात्मा से मिलन🙏

एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था , पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।

1 दिन उसने 1 थैले में 5 ,6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने के लिये निकल पड़ा।

      चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया।

उसने देखा एक नदी के तट पर 1 बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं, जिनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी , और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों।

        वो 6 -7 साल का मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।

      फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाँथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली , माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी ख़ुशी आ गई आँखों में ख़ुशी के आंसू भी थे ,,,,

     बच्चा माता को देखे जा रहा था , जब माता ने रोटी खाली बच्चे ने 1 और रोटी माता को दे दी ।
माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।
,,,,

      जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा और वो बार- बार पीछे मुडकर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं । 

      बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,
बच्चा बहूत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, 
तो बच्चे ने बताया!

      माँ ! ....आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं,,, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ....
       उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो गाव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा ..??

      माता जी बोलीं,,,, मैं 2 दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी,, मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।
      आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे सांथ बैठकर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,, भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।

        इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।

  वास्तव में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए  अगाध सच्चा प्रेम था । 
     और प्रभु ने दोनों को , दोनों के लिये, दोनों में ही  ( ईश्वर) खुद को भेज दिया।

जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो, हमे हर एक जीव में वही नजर आता है।
🙏🌹🙏जय माताजी🙏🌹🙏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*अनोखी दवाई*💊 चम्पक द्वादशी :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*जय श्री कृष्ण*


अनोखी दवाई 💊 चम्पक द्वादशी : 

अनोखी दवाई💊


काफी समय से दादी की तबियत खराब थी . घर पर ही दो नर्स उनकी देखभाल करतीं थीं . 

डाक्टरों ने भी अपने हाथ उठा दिए थे और कहा था कि जो भी सेवा करनी है कर लीजिये . 

दवाइयां अपना काम नहीं कर रहीं हैं .

उसने घर में बच्चों को होस्टल से बुला लिया . 

काम के कारण दोनों मियां बीबी काम पर चले जाते . 

दोनों बच्चे बार - बार अपनी दादी को देखने जाते . 

दादी ने आँखें खोलीं तो बच्चे दादी से लिपट गए .

'दादी ! 


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पापा कहते हैं कि आप बहुत अच्छा खाना बनाती हैं . 

हमें होस्टल का खाना अच्छा नहीं लगता . 

क्या आप हमारे लिए खाना बनाओगी ?'

नर्स ने बच्चों को डांटा और बाहर जाने को कहा . 

अचानक से दादी उठी और नर्स पर बरस पड़ीं .

'आप जाओ यहाँ से . 

मेरे बच्चों को डांटने का हक़ किसने दिया है ? 

खबरदार अगर बच्चों को डांटने की कोशिश की !'

'कमाल करती हो आप . 

आपके लिए ही तो हम बच्चों को मना किया . 

बार - बार आता है तुमको देखने और डिस्टर्ब करता है . 

आराम भी नहीं करने देता .'

'अरे! 

इनको देखकर मेरी आँखों और दिल को कितना आराम मिलता है तू क्या जाने ! 

ऐसा कर मुझे जरा नहाना है . 

मुझे बाथरूम तक ले चल .'

नर्स हैरान थी .

कल तक तो दवाई काम नहीं कर रहीं थी और आज ये चेंज .




सब समझ के बाहर था जैसे . 

नहाने के बाद दादी ने नर्स को खाना बनाने में मदद को कहा . 

पहले तो मना किया फिर कुछ सोच कर वह मदद करने लगी .

खाना बनने पर बच्चों को बुलाया और रसोई में ही खाने को कहा .

'दादी ! 

हम जमीन पर बैठकर खायेंगे आप के हाथ से, मम्मी तो टेबल पर खाना देती है और खिलाती भी नहीं कभी .'

दादी के चेहरे पर ख़ुशी थी . 

वह बच्चों के पास बैठकर उन्हें खिलाने लगी .

बच्चों ने भी दादी के मुंह में निबाले दिए . 

दादी की आँखों से आंसू बहने लगे .

'दादी ! 

तुम रो क्यों रही हो ? 

दर्द हो रहा है क्या ? 

मैं आपके पैर दबा दूं .'

'अरे! 

नहीं, ये तो बस तेरे बाप को याद कर आ गए आंसू, वो भी ऐसे ही खाता था मेरे हाथ से .

* पर अब कामयाबी का भूत ऐसा चढ़ा है कि खाना खाने का भी वक्त नहीं है उसके पास और न ही माँ से मिलने का समय *

'दादी ! 

तुम ठीक हो जाओ, 

हम दोनों आपके ही हाथ से खाना खायेंगे .'

'और पढने कौन जाएगा ? 

तेरी माँ रहने देगी क्या तुमको ? '

'दादी ! 

अब हम नहीं जायेंगे यहीं रहकर पढेंगे .' 

दादी ने बच्चों को सीने से लगा लिया .

*नर्स ने इस इलाज को कभी पढ़ा ही नहीं था जीवन में .*

*अनोखी दवाई थी अपनों का साथ हिल मिल कर रहने की.*

दादी ने नर्स को कहा:- 

आज के डॉक्टर और नर्स क्या जाने की भारत के लोग 100 साल तक निरोगी कैसे रहते थे।

छोटा सा गांव सुविधा कोई नहीं ......!

हर घर में गाय
खेत के काम
कुंए से पानी लाना
मसाले कूटना, अनाज दलना
दही बिलोना मक्खन निकालना 

एक घर में कम से कम 20 से 25 लोगों का खाना बनाना कपड़े धोना, कोई मिक्सी नहीं , नाही वॉशिंग मशीन या कुकर.....!

फिर भी जीवन में कोई रोग नहीं ....!

मरते दिन तक चश्मे नहीं और दांत भी सलामत।। 

*ये सभी केवल परिवार का प्यार मिलने से होता था।*

नर्स तो यह सुनकर हैरान रह गई और दादी दूसरे दिन ठीक हो गई। 

आईये बने हम भी दवा ऐसे ही किसी रोगी की😪😪😪🙏🏻

मैसेज को पसंद तो बहुत लोग करेंगें पर...! 

अमल शायद ही कोई करे यदि किसी एक ने भी अमल किया तो मैसेज करना सार्थक हो गया! 

चम्पक द्वादशी : 


ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को चंपक द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। 

इस तिथि में भगवन श्री विष्णु का पूजन होता है और भगवान की चंपा के फूलों से पूजा होती है। 

श्री कृष्णा को चंपा के फूल अति प्रिय हैं और इस दिन उनका श्रृंगार करने से वो प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।






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चम्पा द्वादशी के अन्य नाम :

हर महीने दो द्वादशी तिथि आती है। 

जिनमें से एक द्वादशी को भगवान श्री विष्णु जी के पूजन से जोड़ा गया है। 

द्वादशी तिथि को विष्णु द्वादशी के नाम से जाना जाता है। 

इस दिन शास्त्रों में भगवान विष्णु के भिन्न - भिन्न रुपों की पूजा आराधना करने का महत्व बताया गया है। 

इस लिए श्रद्धालुओं को इस दिन भगवान श्री विष्णु के कृष्ण रुप की पूजा करने से सुख - संपत्ति, वैभव और एश्वर्य की प्राप्ति होती है।

चम्पा द्वादशी को राघव द्वादशी और रामलक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी संबोधित किया गया है। 

इस दिन विष्णु के अवतार श्रीराम और श्री लक्ष्मण की मूर्तियों का पूजन भी होता है। 

राम और लक्ष्मण की पूजा करने के बाद एक घी से भरा हुआ घड़ा या कलश दान करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। 

पाप समाप्त होते हैं, मोक्ष पद की प्राप्ति होती है।

उदया तिथि के साथ व्रत का प्रारंभ होता है। 

सर्वप्रथम ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के लिए आसन पर बैठना चाहिए। 

धरती पर कुछ अनाज रखकर उसके ऊपर एक कलश की स्थापना करें। 

कलश में पूजा के लिए एक भगवान विष्णुजी की प्रतिमा को डाल दें। 

अबीर, गुलाल, कुमकुम, सुगंधित फूल, चंदन से भगवान की पूजा करें। 

भगवान को खीर का भोग लगाना चाहिए। 

ब्राह्मण भोजन का आयोजन करना चाहिए। 

ब्राह्मणों वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान करना चाहिए। 

मान्यता है कि त्रयोदशी तिथि को प्रतिमा को किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर करना उत्तम होता है।




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चंपक द्वादशी पूजा विधि :

चंपक द्वादशी तिथि के दिन भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए दिन का आरंभ करना चाहिए।

दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर, पूजा का संकल्प करना चाहिए।

श्री कृष्ण का पूजन करना चाहिए। 

भगवान श्री विष्णु के कृष्ण रुप की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।

इस दिन श्री विष्णु के राम अवतार का भी पूजन करना चाहिए।

श्री रामदरबार को सजाना चाहिए।

चंदन, अक्षत, तुलसी दल व पुष्प को भगवान श्री विष्णु के कृष्ण नाम व श्री राम नाम को बोलते हुए भगवान को अर्पित करने चाहिए।

भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए। 

इस के पश्चात प्रतिमा को पोंछ कर सुन्दर वस्त्र पहनाने चाहिए।

भगवान को दीप, गंध , पुष्प अर्पित करना, धूप दिखानी चाहिए।

अगर चम्पा के फूल उपलब्ध ना हों तो पीले - सफेद फूलों का उपयोग कर सकते हैं। 

साथ ही चंदन को अर्पित करना चाहिए।

आरती करने के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए।

भगवान के भोग को प्रसाद रुप में को सभी में बांटना चाहिए। 

सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए व दान - दक्षिणा इत्यादि भेंट करनी चाहिए।

चंपक द्वादशी व्रत में एकादशी से ही व्रत का आरंभ करना श्रेयस्कर होता है। 

अगर संभव न हो सके तो द्वादशी को व्रत आरंभ करें। 

पूरे दिन उपवास रखने के बाद रात को जागरण कीर्तन करना चाहिए। 

और दूसरे दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को फल और भोजन करवा कर उन्हें अपनी क्षमता अनुसार दान देना चाहिए। 




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जो पूरे विधि - विधान से चम्पा द्वादशी का व्रत करता है। 

वह बैकुंठ को पाता है। 

इस व्रत की महिमा से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। 

और वह सभी सांसारिक सुखों को भोग कर पाता है।

चंपा के फूलों का पूजा में महत्व :

चंपा द्वादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के पूजन में चम्पा फूलों का मुख्य रुप से उपयोग होता है. एक अन्य मान्यता है कि चंपा के पुष्प का संबंध शिव भगवान से भी रहा है। 

लेकिन ज्येष्ठ मास की द्वादशी के दिन श्री विष्णु पूजन में इन पुष्पों का उपयोग विशेष आराधना और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए होता है।

चंपा के फूलों के विषय में एक पौराणिक मान्यता भी बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार चंपा के फूलों पर न ही कोई भंवरा और न ही तितली, मधुमक्खी बैठते हैं. एक कहावत है कि ’’चम्पा तुझमें तीन गुण - रंग रूप और वास, अवगुण तुझमें एक ही भँवर न आयें पास’’। 

रूप तेज तो राधिके, अरु भँवर कृष्ण को दास, इस मर्यादा के लिये भँवर न आयें पास।।

मान्यताओं अनुसार चम्पा को राधिका और कृष्ण को भंवरा और मधुमक्खियों को गोप और गोपिकाओं के रूप में माना गया है। 

राधिका कृष्ण की सखी होने के कारण मधुमक्खियां चम्पा पर कभी नहीं बैठती हैं।

वास्तुशास्त्र में भी इस पुष्प को अत्यंत शुभ माना गया है। 

यह सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। 

इसे घर पर लगाने से धन संपदा का आगमन होता है।

इस फूल में परागण नहीं होता जिस कारण तितली अथवा भवरे इत्यादि इस पर नहीं आते हैं। 

इस के साथ ही यह भी कहा जाता है। 

कि चंपा फूल वासना रहित माना होता है यह सभी गुणों से मुक्त होते हुए भी त्याग की भावना को दर्शाता है। 

इस लिए भगवान श्री विष्णु जी को इन फूलों की माला, कंगन, पैर के कड़े इत्यादि आभूषण बना कर शृंगार किया जाता है। 

इस दिन इन पुष्पों से भगवान को सजाने एवं उनका पूजन करने से वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

चंपक/ चम्पा द्वादशी महत्व :

ऐसी मान्यता है कि चम्पा द्वादशी के दिन चंपा के फूलों से विधिवत भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है। 

चम्पा द्वादशी की कथा श्रीकृष्ण ने माहाराज युधिष्ठिर को बतलाई थी। 

श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि, हे युधिष्ठिर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को जो भक्त उपवास करके श्री कृ्ष्ण , राम नाम से मेरी आराधना करता है, उनको एक हजार गो के दान के बराबर फल प्राप्‍त होता है। 

चम्पा द्वादशी का व्रत कर विधि - विधान से पूजा करने पर मानव की सभी इच्छाएं इस लोक में पूरी होती है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।

🙏🏻🙏🏻

जय श्री कृष्ण....!

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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।। आज का भगवद चिन्तन ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। आज का भगवद चिन्तन ।।

|| पाप और पुण्य ||


पुण्य' का अर्थ है, एक ऐसा कार्य जिससे अपना भी सुख बढ़े और दूसरों का भी। 

जैसे यज्ञ करना माता पिता की सेवा करना प्राणियों की रक्षा करना उन्हें भोजन देना ईश्वर का ध्यान करना सत्य बोलना न्याय से व्यवहार करना ईमानदारी से व्यापार करना वेद प्रचार आदि उत्तम कार्यों में दान देना वैदिक गुरुकुल विद्वानों संन्यासियों आदि योग्य व्यक्तियों को सब प्रकार से सहयोग देना इत्यादि। 





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'पाप' का अर्थ है, "जिस कार्य से अपना भी दुख बढ़े और दूसरों का भी। 

जैसे चोरी करना झूठ बोलना धोखा देना अन्याय करना दूसरों का शोषण करना किसी का अधिकार या धन संपत्ति छीन लेना व्यभिचार करना शराब तंबाकू गुटखा मसाला सुल्फा गांजा आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना आदि।

वेद आदि शास्त्रों में पाप और पुण्य की यही परिभाषा बताई गई है। 

"जो लोग ऊपर बताए उत्तम गुण कर्मों को धारण करते हैं। 

तथा अपने धारण किए हुए संकल्प का पूरी शक्ति लगाकर पालन करते हैं। 

वे पुण्यात्मा होते हैं। 





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और जो ऊपर बताए पाप कर्मों का आचरण करते हैं, वे पापात्मा' कहलाते हैं।

आप सब लोग भी अपना - अपना आत्म निरीक्षण करें, और स्वयं को पहचानें, कि " आप पुण्यात्मा हैं या पापात्मा हैं। 

यदि आप पुण्यात्मा हैं, तो बहुत अच्छी बात है। 

यदि नहीं हैं, तो पुण्यात्मा बनने का प्रयास करें।

ऐसे ही दूसरे लोगों का भी परीक्षण करें। 

जो पुण्यात्मा हों, उनके साथ मिलजुल कर रहें, वे आपको सुख देंगे, और आप भी उन्हें सुख देवें। 

जो पापात्मा हों, उनके साथ झगड़ा भी नहीं करना और व्यवहार भी नहीं रखना, उनसे दूर रहना ही उचित है। 

क्योंकि वे स्वयं तो दुखी हैं ही, और उनके साथ झगड़ा करने या व्यवहार रखने से वे आपको भी दुख ही देंगे।

अतः उत्तम संकल्पों / गुण कर्मों को धारण करें, उनका पूरी शक्ति लगाकर पालन करें,और पुण्यात्मा बनें।

समय मूल्यवान और बहुमूल्य नहीं वह तो अमूल्य है। 

हमारे पूरे जीवन भर की कमाई भी समय के एक क्षण को नहीं खरीद पायेगी फिर समय का दुरुपयोग किस लिए है ? 





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सर्वेषामेव भूतानां, सुखदं शान्तमव्ययम् । 
मृत्यजयं महाकालं, नमस्यामि शनैश्चरम्।।

शनिदेव को समर्पित है। 

इस का अर्थ है: "मैं सभी प्राणियों के लिए सुखदायक, शांत और अविनाशी, मृत्युंजय, महाकाल शनिदेव को नमस्कार करता हूँ।

यह मंत्र शनि मृत्युंजय स्तोत्र का एक भाग है, जो शनिदेव की स्तुति में पढ़ा जाता है।

इस मंत्र में शनिदेव को "मृत्युंजय" और "महाकाल" कहा गया है, जो उनके प्रचंड और शक्तिशाली स्वरूप को दर्शाता है। 






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यह मंत्र शनिदेव के उन भक्तों द्वारा पढ़ा जाता है जो शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या से पीड़ित हैं या जिन्हें शनिदेव के प्रकोप से भय है।

व्यस्तता हो अवश्य मगर वह सृजनात्मक, जनात्मक कार्यों में हो, तभी समय का सदुपयोग समझा जायेगा। 

समय किसी के साथ नहीं चलता। 

हमें ही इसके साथ चलना पड़ेगा और एक बात समय किसी के लिए रुकता भी नही।


    

अत:समय अमूल्य है हर क्षण घट रहा है, यह आज है कल नहीं, अभी है फिर नहीं। 

इस लिए समय के महत्व को विशेष रूप से समझा जाये और अपने जीवन को अच्छे कार्यों में, श्रेष्ठ कार्यों में लगाया जाये। 

समय का सदुपयोग बुद्धिमत्ता है।

जय मुरलीधर !
जय श्री राधे कृष्ण !!






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श्रावण मास महात्म्य ( सोलहवां अध्याय )

श्रावण मास महात्म्य ( सोलहवां अध्याय )  शीतलासप्तमी व्रत का वर्णन तथा व्रत कथा : ईश्वर बोले  –  हे सनत्कुमार !  अब मैं शीतला सप्तमी व्रत को ...