https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 10/05/20

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ( माता सीता के व्यथा की आत्मकथा ) ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन  ( माता सीता के व्यथा की आत्मकथा ) ।।

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

🙏🥰 _*श्रीसीताराम शरणम् मम* _🥰🙏

*#मैं_जनक_नंदिनी...41*

_*( माता सीता के व्यथा की आत्मकथा)*_

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_*बरनी न जाई बिषादु अपारा.........*_
*📙( रामचरितमानस )📙*
🙏🙏👇🏼🙏🙏

*मैं वैदेही !*

अनुमान से ज्यादा अवध की स्थिति विषम हो गयी थी  ।


मेरे श्रीराम नें महाराज श्रीदशरथ जी के चरणों में प्रणाम किया .....

हे पिता जी !  

अब आप मुझे आज्ञा दें  ।

नही !  

 पर्वत के समान दृढ़ता वाले  चक्रवर्ती महाराज आज   हिलकियों से रो पड़े थे  ।

बस चौदह वर्ष की तो बात है ना  पिता जी !  

बीत जायेंगें देखते देखते ।

महारानी सुमित्रा !     

आपकी सेविका आयी है ......

वो कुछ कहना  चाहती है  ।   
महामन्त्री सुमन्त्र नें  माता सुमित्रा से कहा ।

मैने देखा  वो घबड़ाई हुयी थी ................
श्रीराम और  माता कौशल्या नें भी देखा था  ।

क्या बात है  !      

बोलो  .......
क्यों आयी हो यहाँ  ?

सुमित्रा माँ नें  अपनी सेविका से वहीं पूछा  ।

सब का ध्यान सेविका की बातों में ही चला गया था  ।

सेविका की आँखों में आँसू भरे हुए थे  ...........

महारानी !      

माण्डवी मूर्छित हो गयीं हैं ......
और श्रुतकीर्ति   निरन्तर रोये जा रही हैं .........
मेरी  समझ में नही आया  कि मैं क्या करूँ .....

तो मैं  यहाँ   आगयी  ।

क्यों क्या हुआ माण्डवी को  ? 

मैने ही पूछा था  ।

कुछ नही .........
किसी  सेविका नें उन्हें  इतना ही कहा .......

अब तो आप महारानी बनोगी........
आपके पति भरत राजा बनेगें  ।

इतना  सुनना था  कि  माण्डवी मूर्छित हो गयी हैं   ।

सीते !  

तुम जाओ .......
और  माण्डवी श्रुतकीर्ति उर्मिला ........

लक्ष्मण !  

तुम उर्मिला को बोल कर आये हो ना  ?

हाँ  भैया !  

मैनें कह दिया कि मैं भी जा रहा हूँ वन में  ।

सीते ! 

तुम जाओ ......
और  शीघ्र आना .......
उन भोली भाली  बालिकाओं को समझा कर ...............।

मैने सिर झुकाकर  अपनें आर्यपुत्र श्रीराम की बात मानी ......
और माता सुमित्रा को लेकर  चल दी  थी   माण्डवी के महल में  ।

जीजी !   

 दौड़ पड़ी थी   वो उर्मिला मुझे देखते ही  ।

उर्मिला श्रुतकीर्ति,  माण्डवी के  महल में ही  थीं  ।

जीजी !   

ये क्या हो गया   ?

बेचारी बच्ची श्रुतकीर्ति ........
वो हिलकियों से  रो  रही थी  ।

उर्मिला की वो सूखी आँखें  !  

उफ़  !   

क्या हुआ  माण्डवी को ......
मैनें जाकर माण्डवी के सिर में हाथ रखा  ।

जीजी !    

इनको तो कुछ पता ही नही था .................
वो  एक सेविका नें कह दिया ...........
तुम्हारे पति की इच्छा पूरी हो गयी ना !

तुम्हारा पति भरत यही चाहता था ना .......
कि  अवध का राज्य तुम लोगों को मिले .........
अब  तो  तुम महारानी हो .........

खुश हो ना  अब तो   ।

बस इतना सुनते ही  ये  मूर्छित हो कर गिर गयीं  हैं  ।

श्रुतकीर्ति नें  रोते  हुए कहा  ।

मेरे नेत्रों से "टप् टप्"  आँसू गिरनें लगे थे  ।

माण्डवी !    

उठो  बहन .............
उठो  !

मैने जल का छींटा दिया ..........।

आँखें खोलीं  माण्डवी नें ........................
मुझे देखते ही  लिपट कर रोने लगी थी  वो  ।

जीजी !  

हाथ जोड़ती हूँ  मैं तुम्हारे  तुम  उस सेविका की तरह मुझ से व्यंग मत करना ..............
मुझे नही बनना महारानी ।

और  मैं अपनें प्राणनाथ को भी जानती हूँ ........
वो भी नही  चाहते  ये राज्यपाट.......।

जीजी ! 

मत जाओ ना !    

हम लोगों को छोड़कर मत जाओ  ।

हिलकियों से रोते हुये  माण्डवी बोले जा रही थी  ।

जीजी !  

वो भी नही हैं .................
मुझे तो ये डर है कि   कहीं आनें के बाद  मुझे दोषी मानकर कहीं मेरा ही त्याग न कर दें  ।

नही ......
माण्डवी !    

भरत  ऐसा नही है .........
माता सुमित्रा आगे आयीं थीं .......
उन्होंने पूरी दृढ़ता के साथ ये बात कही थी  ।

आज विधाता हमारे वाम है ..............
इसलिये ये सब हो रहा है......
देखना  कल सब ठीक हो जाएगा  ।

माता सुमित्रा नें  समझाया था  ।

क्यों किया माता कैकेई नें  ऐसा !

         अत्यंत कातर होकर माण्डवी बोली थी  ।

किसी का दोष नही है....

माण्डवी !   

किसी को दोष मत दो....
सुनो  वधू !    

याद रहे कैकेई  आप सबकी पूज्या है ....
और वो पूज्या ही रहेंगी ।

मैं देखती रह गयी थी माता सुमित्रा का मुख ................
कितनी ऊँची स्थिति थी माता सुमित्रा की  ।

माता !     

मुझे तो जीजी माण्डवी की चिन्ता लग रही है ............
और ये  बेचारी श्रुतकीर्ति  ! 

उर्मिला की वो सूनी आँखें ..............
पी रही थी आँसू  वो ....
बाहर निकाल नही रही थी ...............।

मैं ही  रो गयी .............
और  उर्मिला को गले से लगाते हुए कहा .... 
रो ले उर्मिला .........
मेरी बात मान,  रो ले........
मन  हल्का हो जाएगा  ।

कैसे रोऊँ  जीजी !   

कैसे रोऊँ  ?      

मेरे प्राण नाथ नें मुझे रोनें की आज्ञा तक नही दी .............
मुझे कहा है .......

चौदह वर्ष तक आँसू नही गिरनें चाहिये  तुम्हारे  ।

ओह !   

ये क्या कह दिया था लक्ष्मण नें  !    

मैने  उर्मिला को देखा ........
मै श्रुतकीर्ति के पास गयी .........
वो  तो बच्ची है ..........
बहुत छोटी है ..........
उसे  अवध में क्या हुआ ........ 
पूरी बात पता भी नही है ........... 
बस  इतना ही  जानती है वो कि  अवध में अनर्थ हो गया है .......
बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है .........
उसकी जीजी  और जीजा वन में जा रहे हैं .....
चौदह वर्ष के लिये  ।

चौदह वर्ष तो बहुत होता है ............ 
जीजी !  

हम लोग कैसे रहेंगीं  यहाँ !

और मेरे नाथ !........

कहीं  वो मुझे तो नही छोडेँगेँ  ।

सुमित्रा माता  दौड़ पडीं ............ 
अपनी पुत्र वधू को हृदय से लगा लिया ...
बेटी !      

 ऐसा मत बोल ....... 
शत्रुघ्न  तुम्हे प्रेम करता है ...... 
बहुत ।

जीजी !   

हाथ पकड़ा माण्डवी नें ...................

आप जा रही हो वन में  ?        

हाँ ...... 

माण्डवी !    

 पर सुन बहन !    

तू सम्भालेगी ना  इस अवध को ?

देख हम  सब   मिथिला  भूमि की  हैं .....
हमारे पिता  मिथिलेश  देहातीत महापुरुष हैं..........
उनकी  मर्यादा  का ख्याल रखना माण्डवी !

माण्डवी !    

देख  बहन !    

अब सारी जिम्मेवारी तेरे ऊपर है .........

ये दोनों  उर्मिला और श्रुतकीर्ति बच्ची ही तो हैं ........ 
इनको सम्भालना  ।

माता पिता  और भरत भैया को सम्भालना  ।

मैने इतना क्या कहा ......... 
उर्मिला नें तुरन्त कह दिया ....... 
हम लोगों का तो कुछ नही  जीजी !  

पर मुझे चिन्ता तो   जीजी माण्डवी की हो रही है ।

सुमित्रा माता नें उर्मिला को  कुछ और कहनें से मना कर दिया ........ 
इस समय  विषाद  क्या कम है !........ 
जो  और भविष्य की  सोच सोच कर  दुःख के सागर में ही डूब जाएँ ............।

मैने माण्डवी को फिर कहा .......... 
लाज रखियो  जनकपुर की  ।

मुझे पता है  भरत भैया  इस राज्य को स्वीकार नही करेंगें ......... 
पर  स्वीकार करनें के अलावा और कोई उपाय भी तो नही है ना !

राज्य का सञ्चालन ......... 
प्रजा की देख रेख ......... 
ये सब वो करें !

यहीं  हमारे पूज्य चरण की आज्ञा है ............।

और बड़ों की आज्ञा पालन करना .......
 यही तो सिखाया है ना .... 
हमारी  मिथिला की भूमि नें ...........!

मैने  समझाया ............. 
आँसू पोंछे  माण्डवी नें ...... 
समझदार है माण्डवी ......... 
पर  बेचारी श्रुतकीर्ति !      

वो  कोनें में रोती जा रही है .... 
और कहती जा आरही है ...... 
जीजी ! 

मत जाओ ना !  

मत जाओ !

मैने श्रुतकीर्ति की  ठोढ़ी को पकड़कर   ऊपर किया ........

देख ! 

श्रुतकीर्ति !   

तुम  रघुकुल की पुत्रवधु हो .......... 
दुःख को सहो ... 
इसके अलावा और कोई उपाय नही है ........... 
मेरी बात समझो !

समझ रही हो ना  छोटी !      

   वो  फिर गले से लग गयी  ।

उसनें भी अपनें अश्रु पोंछे......... 
और  वो  बच्ची श्रुतकीर्ति गम्भीर हो गयी.... 
उफ़ !  

उसकी वो  गम्भीरता मुझ से अब  देखी नही जा रही थी ।

मैं सबके सिर में हाथ रखकर निकल गयी ...... 
और बाहर आकर  मैने  आँसू बहाये ............... 
पर  फिर पोंछ लिए ....... 
कहीं मेरे आर्यपुत्र श्रीराम को ये अच्छा न लगे ... इसलिये  ।

सुमित्रा माता मुझे देख रही थीं  ।

तुम्हारी सब  बहनें किस मिट्टी की बनी हैं   !     

मुझे  माता सुमित्रा नें कहा था बाहर आकर ।

पर महल से बाहर आगयीं थीं  मेरी तीनों बहनें ....... 
मुझे देखती रहीं ।

पर मैने उनकी और मुड़कर नही देखा ......
क्या  करती देखकर  !   

_*शेष चरिञ  अगले भाग में..........*_

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_*जनकसुता जग जननि जानकी। 
अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥*_

_*ताके जुग पद कमल मनावउँ। 
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥*_
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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जय द्वारकाधीश....
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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...