https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: !! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !! https://sarswatijyotish.com/India
લેબલ !! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !! https://sarswatijyotish.com/India સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
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!! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

!! कृष्णचक्रा" और "रामचक्रा"!!

!! कृष्णचक्रा" और " रामचक्रा " !!

!! जय श्रीगौरीशाजी !!

शिवजी को अति क्रोधित स्वभाव का बताया गया है। 

कहते हैं कि जब शिवजी अति क्रोधित होते हैं तो उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है तो पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। 

साथ ही विषपान के बाद शिवजी का शरीर और अधिक गर्म हो गया जिसे शीतल करने के लिए उन्होंने चंद्र आदि को धारण किया। 

चंद्र को धारण करके शिवजी यही संदेश देते हैं कि आपका मन हमेशा शांत रहना चाहिए।

आपका स्वभाव चाहे जितना क्रोधित हो परंतु आपका मन हमेशा ही चंद्र की तरह ठंडक देने वाला रहना चाहिए। 

जिस तरह चांद सूर्य से उष्मा लेकर भी हमें शीतलता ही प्रदान करता है उसी तरह हमें भी हमारा स्वभाव बनाना चाहिए।

भगवान शंकर के अर्धनारीश्वर अवतार में हम देखते हैं कि भगवान शंकर का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा शरीर पुरुष का है। 

यह अवतार महिला व पुरुष दोनों की समानता का संदेश देता है।




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समाज, परिवार व सृष्टि के संचालन में पुरुष की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है उतना ही स्त्री की भी है। 
स्त्री तथा पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं। 

एक - दूसरे के बिना इनका जीवन निरर्थक है। 

अर्धनारीश्वर लेकर भगवान ने यह संदेश दिया है कि समाज तथा परिवार में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही आदर व प्रतिष्ठा मिले।

उनके साथ किसी प्रकार का भेद - भाव न किया जाए। 

पुरुष कठोरता का प्रतीक है, स्त्री कोमलता का - पुरुष अपनी कर्मठता से अन्न धन लाता है, स्त्री अन्नपूर्णा होती है यानि अन्न को खाने योग्य बनाकर एक पूर्णता का संचार करती है, धन के सही इस्तेमाल से घर की रूपरेखा बनाती है और बचत करती है। 

समय की माँग हो तो स्त्री को पुरुष सी कठोरता अपनानी होती है, पुरुष को कोमलता -  अर्धनारीश्वर सही अर्थ तभी पाता है।

           || जय शिव शक्ति ||




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आज गोकुल में छड़ीमार होली की रहेगी धूम, जानें इस परंपरा का इतिहास और महत्व

मथुरा - वृंदावन समेत पूरे ब्रज की होली देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। 

ब्रज की होली देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। 

कान्हा की नगरी में होली खेलने का अंदाज बिल्कुल ही अलग है। 

यहां रंग, अबीर - गुलाल के अलावा फूल, लड्डू, लट्ठ और छड़ी से होली खेली जाती है। 

ब्रज ही एक जगह ऐसी है जहां लट्ठ और छड़ी से मार खाकर लोग खुद को भाग्यशाली समझते हैं। 

पूरे ब्रज में होली का उत्सव लड्डू मार होली के साथ शुरू हो जाता है। 

वहीं आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाएगी। 

तो आइए जानते हैं छड़ीमार होली के बारे में।

छड़ीमार होली का महत्व

आज यानी 11 मार्च को गोकुल में छड़ीमार खेली जाएगी। 

हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को छड़ीमार होली खेली जाती है। 

छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर की जाती है। 

हर साल होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। 

छड़ीमार होली क्यों खेली जाती है?

पौराणिक कथा के अुनसार, कान्हा जी बचपन में बड़े ही नटखट थे और वे गोपियों को काफी परेशान भी करते थे। 

गोपियां कृष्ण जी को सबक सिखाने के लिए उनके पीछे छड़ी लेकर भागा करती थी। 

गोपियां छड़ी का इस्तेमाल कान्हा जी सिर्फ डराने के लिए करती थी। 

कहते हैं कि इसी परंपरा की वजह से आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है, जिसमें लट्ठ की जगह छड़ी का प्रयोग किया जाता है। 

बाल गोपाल को चोट न लग जाए इसलिए लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं कि  छड़ीमार होली कृष्‍ण के प्रति प्रेम और भाव का प्रतीक मानी जाती है।

आज का उत्सव इस प्रकार होगा

भगवान कृष्ण की नगरी गोकुल में आज मंगलवार को छड़ीमार होली का आयोजन मुरलीधर घाट पर दोपहर 12 बजे से होगा। 

इस की तैयारियां मंदिर कमेटी व प्रशासन द्वारा अंतिम चरण में पहुंचा दी हैं। 

नंद भवन से ठीक बारह बजे ठाकुर जी का डोला निकलेगा। 

जो देशी विदेशी फूलों से सजाया जाएगा। 

डोले में ठाकुर जी बाल,कृष्ण लाल के स्वरूपों को बैठाकर उनको गोकुल के मुख्य बाजारों में होली खिलाते हुए मुरलीधर घाट की और ले जाते है। 

पूरे रास्ते गुलाल, टेसू के फूलों का रंग, गुलाब, गेंदा के फूलों की पत्ती, इत्र आदि भक्तों पर डाला जाएगा। 

भगवान के सखा,अपनी पारंपरिक भेष भूषा, बगलबंदी छोती, सखियां लहंगा फारिया में डोले के साथ ब्रज के लोकगीतों की मधुर गीतों पर नृत्य करते हुए चलते हैं। 

इस अदभुत नजारे को देशी विदेशी भक्त देख कर रोमांचित हो उठते हैं। 

सम्पूर्ण नगर की परिक्रमा के बाद डोला मुरलीधर घाट पर पहुंचेगा। 

यहां बने विशाल मंच पर ठाकुर जी को विराजमान कराया जाएगा। 

उसके बाद लगभग एक घंटा तक छड़ीमार होली महोत्सव चलेगा। 

एक घंटे तक होली में केवल गुलाल का प्रयोग होगा। 

यहां आरती के बाद पुन डोला मंदिर के प्रस्थान करेगा। 

मंदिर में वैदिक विधि विधान के साथ मंत्र उच्चारणाओं से ठाकुर जी को स्नान करा विराजमान कराया जाएगा। 

उसके बाद होली का समापन होगा।

        || जय श्री राधे कृष्ण ||



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मेरे प्रभु एक दिन तो अपने बाबा नन्द की गोद में बैठकर भोजन कर रहे है, ये बड़ी मधुर लीला है।

अपने बाबा नन्द की गोद में बैठकर ठाकुर जी भोजन कर रहे है, मैया यशोदा सुंदर थाली में छप्पन भोग सजाकर लाइ लेकिन प्रभु चुपचाप भोजन नहीं करते क्योंकि नटखट है ना तो कुछ न कुछ बोलते रहते है।

एक और बाल कृष्ण बैठे बाबा की गोदी ने और एक और बलराम जी बैठे है। 

थाली सज गई है और ब्रजरानी यशोदा रसोई के दुआर पर खड़ी - खड़ी निहार रही है की मेरो लाला खावेगो में दूर ते देखूंगी, आरोग ने जा रही है।.


ब्रज के संतो ने इन लीलाओ को गाया -

की जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
कछु खावत, कछु धरनी गिरावत
( कुछ खा रहे है और कुछ नीचे गिरा रहे है )
कछु खावत, कुछु नीचे गिरावत
छवि निरखत बाबा नन्द जू की रनीयाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ
जेवत श्याम, नन्द जू की कनियाँ 

थोडा सा खाते है, थोडा सा नीचे गिराते है। 

मैया देख - देख आनंदित होती है, हाय मेरो लाला खारयो है।

और भगवान बीच - बीच में खाते - खाते पूछते जाते है की बाबा या वस्तु को नाम कहा है ? 

याते कहा कहवे ? 

ये कौनसी वस्तु है ? 

बाबा जब तक बताओगे नाय तब तक में खाऊंगो नहीं तो बाबा ने कह दिया की बेटा कन्हिया याको नाम है " रामचक्रा ", का नाम है ? 

" रामचक्रा "

अब तो महाराज मचल गए प्रभु और बोले बाबा अब आओ खाओ, दाऊ भैया खाए और अब हम नहीं खाएंगे..!

तो पूछा लाला कहाँ बात हे गयी ? 

मैंने या वस्तु को नाम ही तो बोलो तो तू नाराज क्यों हे गयो ? 

भगवान बोले मोकू लगे है आप दाऊ भैया ते ज्यादा प्यार करो हो, आपने या खावे की चीज़ में भी दाऊ भैया को नाम धर दियो " रामचक्रा "

बोले खाने वस्तु को नाम भी दाऊ भैया के नाम पर धर दियो और बाबा जब तक मेरे नाम की वस्तु मोकू नहीं दिखाओगे तब तक भोजन नहीं करूँगा में, कहा मेरो नाम को कछु नहीं ? 

बाबा बोले देख कन्हिया तू रोवे मत ये देख ये जो दूसरी कटोरी में वस्तु धरी है ना याको नाम है   
" कृष्णचक्रा " 

प्रभु बोले हे बाबा साँची कहरे हो ? 

बाबा बोले बिलकुल साँची याको नाम है " कृष्णचक्रा " ....! 

अब तो ठाकुर जी प्रसन्न हो गए और उठाकर खाने लगे।

आप लोग सोच रहे होंगे की " रामचक्रा " और " कृष्णचक्रा " क्या है ? 

हमारे ब्रज में " दही - बड़े " को " दही - बड़ा " नहीं कहते है बल्कि आज भी कहा जाता है " रामचक्रा " 

और हमारे ब्रज में आज भी इमरती को भक्त " कृष्णचक्रा " कहते है।

आपसे भी में प्राथना करूँगा की आप भी आगे से दही - बड़ा आए सामने या किसी से मंगवाओ या इमरती मंगवाओ या सामने आपके रखी हो..!

आप उसको किसी को बताओ तो इमरती मत बोलना, दही - बड़ा मत बोलना बल्कि इमरती को " कृष्णचक्रा " और दही - बड़े को " रामचक्रा " बोलना..!

ये सब किसलिये रखे गए नाम ? 

ताकि इसी बहाने कम से कम ठाकुर जी का नाम लेने को मिल जाए हमे...!

नहीं तो भोगो में ही पड़ा रहता है जीव तो कम से कम इसी बहाने " राम " और " कृष्ण " का नाम निकल जाए मुख से..!

तो ऐसी लीला ठाकुर जी करते है।

ब्रजरानी यशोदा भोजन कराते - कराते थोड़ी सी छुंकि हुई मिर्च लेकर आ गई क्योंकि नन्द बाबा को बड़ी प्रिय थी।

लाकर थाली एक और रख दई तो अब भगवान बोले की बाबा हमे और कछु नहीं खानो, ये खवाओ ये कहा है ? 

हम ये खाएंगे...! 

तो नन्द बाबा डराने लगे की नाय - नाय लाला ये तो ताता है तेरो मुँह जल जाओगो..! 

भगवान बोले नाय बाबा अब तो ये ही खानो है मोय...!

खूब ब्रजरानी यशोदा को बाबा ने डाँटो की मेहर तुम ये क्यों लेकर आई ? .


तुमको मालूम है ये बड़ो जिद्दी है, ये मानवो वारो नाय फिर भी तुम लेकर आ गई...!

अब गलती हो गई ठाकुर जी मचल गए बोले अब बाकी भोजन पीछे होगा पहले ये ताता ही खानी है मुझे, पहले ये खवाओ। 

बाबा पकड़ रहे थे, रोक रहे थे पर इतने में तो उछलकर थाली के निकट पहुंचे और अपने हाथ से उठाकर मिर्च खा ली...

और अब ताता ही हो गई वास्तव में, ताता भी नहीं " ता था थई " हो गई।

अब महाराज भागे डोले फिरे सारे नन्द भवन में बाबा मेरो मो जर गयो, बाबा मेरो मो जर गयो,

मो में आग लग गई मेरे तो बाबा कछु करो और पीछे - पीछे ब्रजरानी यशोदा..!

नन्द बाबा भाग रहे है हाय - हाय हमारे लाला को मिर्च लग गई, हमारे कन्हिया को मिर्च लग गई।

महाराज पकड़ा है प्रभु को और इस लीला को आप पढ़ो मत बल्कि देखो।

गोदी में लेकर नन्द बाबा रो रहे है अरी यशोदा चीनी लेकर आ मेरे लाला के मुख ते लगा और इतना ही नहीं बालकृष्ण के मुख में नन्द बाबा फूँक मार रहे है।

आप सोचो क्या ये सोभाग्य किसी को मिलेगा ? 

जैसे बच्चे को कुछ लग जाती है तो हम फूँक मारते है बेटा ठीक हे जाएगी वैसे ही बाल कृष्ण के मुख में बाबा नन्द फूँक मार रहे है।

देवता जब ऊपर से ये दृश्य देखते है तो देवता रो पड़ते है और कहते है की प्यारे ऐसा सुख तो कभी स्वपन में भी हमको नहीं मिला जो इन ब्रजवासियो को मिल रहा है..! 

तो आगे यदि जन्म देना तो इन ब्रजवासियो के घर का नोकर बना देना, यदि इनकी सेवा भी हमको मिल गई तो देवता कहते है हम धन्य हो जाएंगे।
 
🌹🍀जय श्री राधेकृष्ण🍀🌹
🙏जय द्वारकाधीश वंदन अभिनंदन मित्रों👏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...