https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/07/20

☘️🌹ॐनमो नारायणाय 🌹☘️

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

☘️🌹ॐनमो नारायणाय 🌹☘️

*एक बूढ़ी माता मंदिर के सामने भीख मांगती थी , एक संत ने कहा , आपका बेटा लायक है , फिर यहां क्यों ? बुढ़िया बोली बाबा , मेरे पति का देहांत हो गया है , मेरा पुत्र परदेस नौकरी के लिए चला गया , जाते समय मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया था , वे खर्च हो गये , इसीलिए भीख मांग रही हूँ । मेरा बेटा हर महीने एक रंग बिरंगा कागज भेजता है जिसे मैं दीवार पर चिपका देती हूँ ।*
 *संत ने उसके घर जाकर देखा कि दीवार पर साठ (60) बैंक ड्राफ्ट चिपका के रखे थे ,प्रत्येक ₹50,000 राशि के थे ,पढ़ी लिखी न होने के कारण वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी संपत्ति है , संत ने उसे ( ड्राफ्ट) का मूल्य समझाया ।*

 *उस माता की भांति हमारी स्थिति ऐसी ही है , हमारे पास धर्म ग्रंथ तो हैं पर माथे से लगाकर अपने घर में सुसज्जित करके रखते हैं जबकि हम उनका वास्तविक लाभ तभी उठा पाएगें जब उनका अध्ययन , चिंतन , मनन करके जीवन में उतारेगें और प्रभु का नाम ले कर भजन व सत्संग करेंगे ।*.... 
🙏🏻😊😊🙏🏻
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

""!! लक्ष्मी का निवास !!""🌾🍁👏👏👏🍁🌾

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जय द्वारकाधीश

""!! लक्ष्मी का निवास !!""

🌾🍁👏👏👏🍁🌾

एक बहुत धनवान व्यक्ति के चार बेटे थे। 
.
सेठ ने अपने चारों बेटों का विवाह कर दिया, लेकिन बहुओं का स्वभाव उग्र और असहिष्णु निकला। 
.
इस कारण वे आपस में रोज ही लड़ती-झगड़तीं। अब सेठ के घर दिन-रात गृह-कलह मची रहती। 
.
इससे खिन्न होकर लक्ष्मीजी ने वहां से चले जाने की ठानी। 
.
रात को लक्ष्मीजी ने सेठ को स्वप्न में दर्शन दिया और कहा, “यह कलह मुझसे नहीं देखा जाता। 
.
जहां ऐसे लड़ने-झगड़ने वाले लोग रहते हैं, वहां मैं नहीं रह सकती। मैं तुम्हारा घर छोड़कर जा रही हूं।”
.
सेठ बहुत गिड़गिड़ाकर रोने लगा, लक्ष्मीजी के पैरों से लिपट गया और कहा,“मां! मैं आपका अनन्य भक्त रहा हूं। मुझे छोड़कर आप न जाएं।
लक्ष्मीजी को उस पर दया आ गई और कहा- “कलह के स्थान पर मेरा ठहर सकना तो संभव नहीं, लेकिन तुम मुझसे एक वरदान मांग सकते हो।
.
धनिक सेठ ने कहा- “अच्छा मां यही सही। आप यह वरदान दें कि मेरे घर के सभी सदस्य आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहें।” 
.
लक्ष्मीजी ने ‘एवमस्तु’ कहा और वहां से चली गई। 
.
दूसरे दिन से ही सेठ के बेटे-बहू प्रेमपूर्वक रहने लगे और मिलजुल कर सब काम करने लगे।
.
एक दिन धनिक सेठ ने स्वप्न में देखा कि लक्ष्मीजी उसके घर में वापस आ गई हैं। 
.
उसने उन्हें प्रणाम किया और पुनः पधारने के लिए धन्यवाद दिया। 
.
लक्ष्मीजी ने कहा- इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं है। मेरा उसमें कुछ अनुग्रह भी नहीं है। 
.
जहां एकता होती है और प्रेम रहता है, वहां तो मैं बिना बुलाए ही जा पहुंचती हूं।
.
मित्रों, जो लोग दरिद्रता से बचना चाहते हैं और घर में मां लक्ष्मी का निवास चाहते हैं, उन्हें अपने घर में कलह की परिस्थितियां पैदा नहीं होने देना चाहिए।

 🚩🍀जय माताजी🍀🚩
🙏जय श्री कृष्ण 🙏 
🙏शुभ रात्रि वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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🍁*शिव प्रभात किरण*🍁🌺✨👏🕉️👏✨🌺

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🍁*शिव प्रभात किरण*🍁

🌺✨👏🕉️👏✨🌺
 
मनुष्य जीवन की दिव्यता और विविध पुरुषार्थ पूर्वजों के आशीर्वाद से ही फलीभूत होते हैं। श्राद्धपक्ष में ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के साथ पितृ-सत्ता भूमंडल पर चैतन्य रहती है ! 

ईशसत्ता के साथ नित्य एकीकृत पितृ-सत्ता हमारा सर्वथा मंगल करें ..! "श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ ..." (जो श्रद्धा से किया जाये, वह श्राद्ध है।) अपने पूर्वजों के प्रति स्नेह, विनम्रता, आदर व श्रद्धा भाव से विधिपूर्वक किया जाने वाला मुक्त कर्म ही श्राद्ध है। 
यह पितृऋण से मुक्ति पाने का सरल व सहज उपाय है। इसे पितृयज्ञ भी कहा गया है। हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई है। 

जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। 
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं - पितृ-ऋण, देव-ऋण तथा ऋषि-ऋण। इनमें पितृ-ऋण सर्वोपरि है। 

पितृ-ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब वृद्ध भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया ...।
 
🌹🔱ॐ नमः शिवाय🔱🌹
🙏शुभ प्रभात वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🌅☘️शुभ औऱ मंगलमय हो जय श्री कृष्ण☘️🌞
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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*अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म🚩🇮🇳**क्रमांक=०६*

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*अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म🚩🇮🇳*
*क्रमांक=०६*

*बाल संस्कार:-* अपने बच्चो को निम्नलिखित श्लोकों को नित्य दैनन्दिनी में शामिल करने हेतु संस्कार दे एवं खुद भी पढ़े। 

*प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र संग्रह।*

*प्रात: कर-दर्शनम्*

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

*पृथ्वी क्षमा प्रार्थना*

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

*त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण*

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

*स्नान मन्त्र*

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

*सूर्यनमस्कार*

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्।
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

*संध्या दीप दर्शन*

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

*गणपति स्तोत्र*

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

*आदिशक्ति वंदना*

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

*शिव स्तुति*

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

*विष्णु स्तुति*

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

*श्रीकृष्ण स्तुति*

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥

*श्रीराम वंदना*

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

*श्रीरामाष्टक*

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

*एक श्लोकी रामायण*

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
*सरस्वती वंदना*

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

*हनुमान वंदना*

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

*स्वस्ति-वाचन*

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

*शांति पाठ*

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
*॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*
🕉🐚⚔🚩🌞🇮🇳⚔🌷🙏🏻
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।। श्रीरामचरितमानस प्रवचन ।।गोस्वामी तुलसीदासजी ने कूट रुप में , एक बड़ी गूढ़ बात कही है -

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।। श्रीरामचरितमानस प्रवचन ।।

गोस्वामी तुलसीदासजी ने कूट रुप में , एक बड़ी गूढ़ बात कही है -
*रवि पंचक जाके नहीं, ताहि चतुर्थी नाहिं*।
*तेहि सप्तक घेरे रहे, कबहुँ तृतीया नाहिं*।।
गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज कहते हैं कि जिसको रवि पंचक नहीं है, उसको चतुर्थी नहीं आयेगी। उसको सप्तक घेरकर रखेगा और उसके जीवन में तृतीया नहीं आयेगी।

मतलब निम्नलिखित है, ध्यान से समझिये --

रवि -पंचक का अर्थ होता है - रवि से पाँचवाँ यानी गुरुवार ( रवि , सोम , मंगल , बुद्ध , *गुरु* ) अर्थात् जिनको गुरु नहीं है , तो सन्त सद्गुरु के अभाव में उसको चतुर्थी नहीं होगी।चतुर्थी यानी *बुध* ( रवि , सोम , मंगल, *बुध* ) अर्थात् सुबुद्धि नहीं आयेगी। सुबुद्धि नहीं होने के कारण वह सन्मार्ग पर चल नहीं सकता है। 

सन्मार्ग पर नहीं चलनेवाले का परिणाम क्या होगा ? ' तेहि सप्तक घेरे रहे ' सप्तक क्या होता है ? *शनि* ( रवि , सोम मंगल , बुध , बृहस्पति , शुक्र , *शनि* ) अर्थात् उसको शनि घेरकर रखेगा और ' कबहुँ तृतीया नाहिं।' तृतीया यानी *मंगल* ( रवि , सोम , *मंगल* )। उसके जीवन में मंगल नहीं आवेगा । इसलिए अपने जीवन में मंगल चाहते हो , तो संत सद्गुरु ( *शिक्षक* ) की शरण में जाओ ।
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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🤏 कर्मफल 👏🚩🚩🚩🚩🚩कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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🤏 कर्मफल 👏
🚩🚩🚩🚩🚩

कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है?

मनुष्य कितना परिश्रमी हो सकता है। इसका अनुमान करना सरल नहीं है किन्तु वहीं मनुष्य जब ये देखना और सोचना प्रारंभ कर देता है कि मैंने इतना परिश्रम किया, कष्ट झेला फिर भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला। तब उसका मनोबल टूटने लगता है और उसी क्षण से वह परिश्रम से धीरे - धीरे हाथ झड़ने लगता है। वह ये सोचने लगता है कि अंततः परिश्रम का लाभ ही क्या? किन्तु बिना परिश्रम लाभ होता भी तो नहीं।
एक किसान ने महीने भर अपने खेत पर काम किया। खाद जल से अच्छी तरह सिंचाई करना फिर बीज को बोना और हर क्षण खेती की रखवाली करना किन्तु एक दिन जब फसल को काटने का समय आया तब एक रात पहले खेत में आग लग गई और सब फसल जलकर राख हो गई। 

किसान बहुत दुःखी हुआ, किन्तु अपना दुर्भाग्य समझ उसने पुनः प्रयास करके खेती करना नहीं छोड़ा और इस बार उसने खेत में जगह - जगह किनारा खोदकर उसमें जल भर दिया ताकि फिर कभी आग लगे तो बीच में पानी से भरे नाले से वह आग दूसरी ओर फैलने से बचा सके। 

संकट की घड़ी आपकी चेतना को जगाती है, आपको अत्यधिक सतर्क करती है।

अंत में हर जीवन में संताप का कारण कर्म फल नहीं होता, समय रहते कभी प्रयास न करने का पश्चाताप मनुष्य को मृतक बना देता है। 

जितना आप अपने आपको फल और परिणाम के आशा की डोर से बांधते हैं उतना ही आप परिश्रम करने से दूर होते जाते है, ये आम अनुभव है किन्तु परम सत्य भी।

कर्म निश्चित ही आपका है, कर्म फल कभी आपका नहीं है यही सोच प्रगति का मार्ग बनाती है।

🌺🍀जय जगदीश हरे🍀🌺
🙏जय श्री कृष्ण 🙏वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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।। सुंदर कविता अनुवाद सहित ।।रोने का अर्थ क्या है?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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।। सुंदर कविता अनुवाद सहित ।।

रोने का अर्थ क्या है? 

रोने का अर्थ है: 
कोई भाव इतना प्रबल हो गया है 
कि अब आंसुओं के अतिरिक्त उसे 
प्रकट करने का कोई और उपाय नहीं है। 
फिर वह भाव चाहे दुख का हो, चाहे आनंद का हो।

आंसू अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। 
गहन भावनाओं को,
जो हृदय के गहरे से उठती हैं, 
वे आंसुओं में ही प्रकट हो सकती हैं। 

शब्द छोटे पड़ते हैं। 
गीत छोटे पड़ते हैं। 
जहां गीत चूक जाते हैं, 
वहां आंसू शुरू होते हैं। 
जो किसी और तरह से प्रकट नहीं 
होता वह आंसुओं से प्रकट होता है। 

आंसू तुम्हारे भीतर कोई 
ऐसी भाव-दशा से उठते हैं 
जिसे सम्हालना और संभव नहीं है, 
जिसे तुम न सम्हाल सकोगे, 
जिसकी बाढ़ तुम्हें बहा ले जाती है।

फिर, ये आंसू चूंकि आनंद के हैं, 
इनमें मुस्कुराहट भी मिली होगी, 
इनमें हंसी का स्वर भी होगा। 
और चूंकि ये आंसू अहोभाव के हैं, 
इनमें गीत की ध्वनि भी होगी। 
तो गाओ भी,रोओ भी, 
हंसो भी--तीनों साथ चलने दो। 
कंजूसी क्या? एक क्यों? 
तीनों क्यों नहीं?

लेकिन, मन हिसाबी-किताबी है। 

वह सोचता है: 
एक करना ठीक मालूम पड़ता है--
या तो गा लो या रो लो। 
मैं तुमसे कहता हूं कि इस हिसाब 
को तोड़ने की ही तो सारी चेष्टा चल रही है। 
यही तो दीवाने होने का अर्थ है।
तुमने अगर कभी किसी को 
रोते, हंसते, गाते एक साथ देखा हो, 
तो सोचा होगा पागल है। 
पागल ही कर सकता है इतनी हिम्मत। 
होशियार तो कमजोर होता है, 
होशियारी के कारण कमजोर होता है। 
होशियार तो सोच-सोच कर कदम रखता है, 
सम्हाल-सम्हाल कर कदम रखता है। 
उसी सम्हालने में तो चूकता चला जाता है।

होशियारों को कब परमात्मा मिला! 

होशियार चाहे संसार में 
साम्राज्य को स्थापित कर लें, 
परमात्मा के जगत में 
बिलकुल ही वंचित रह जाते हैं। 
वह राज्य उनका नहीं है। 
वह राज्य तो दीवानों का है। 
वह राज्य तो उनका है 
जिन्होंने तर्क-जाल तोड़ा, 
जो भावनाओं के रहस्यपूर्ण लोक में प्रविष्ट हुए।

इन तीनों द्वारों को एक साथ ही खुलने दो। 
परमात्मा ने हृदय पर दस्तक दी, 
तब ऐसा होता है। 
इसे सौभाग्य समझो।

             🙏 जय श्री कृष्ण 🙏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳**💐💐गुरु का महत्त्व💐💐*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*🌳🦚आज की कहानी🦚🌳*

*💐💐गुरु का महत्त्व💐💐*

एक राजा था,उसे पढने लिखने का बहुत शौक था। एक बार उसने मंत्री-परिषद् के माध्यम से अपने लिए एक शिक्षक की व्यवस्था की शिक्षक राजा को पढ़ाने के लिए आने लगा। राजा को शिक्षा ग्रहण करते हुए कई महीने बीत गए, मगर राजा को कोई लाभ नहीं हुआ।

गुरु तो रोज खूब मेहनत करता थे परन्तु राजा को उस शिक्षा का कोई फ़ायदा नहीं हो रहा था।

राजा बड़ा परेशान, गुरु की प्रतिभा और योग्यता पर सवाल उठाना भी गलत था क्योंकि वो एक बहुत ही प्रसिद्द और योग्य गुरु थे. आखिर में एक दिन रानी ने राजा को सलाह दी कि राजन आप इस सवाल का जवाब गुरु जी से ही पूछ कर देखिये.
राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”

 गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.

गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है.

गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
 राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .
मित्रों, इस छोटी सी कहानी का सार यह है कि हम रिश्ते-नाते, पद या धन वैभव किसी में भी कितने ही बड़े क्यों न हों हम अगर अपने गुरु को उसका उचित स्थान नहीं देते तो हमारा भला होना मुश्किल है. और यहाँ स्थान का अर्थ सिर्फ ऊँचा या नीचे बैठने से नहीं है , इसका सही अर्थ है कि हम अपने मन में गुरु को क्या स्थान दे रहे हैं।

 क्या हम सही मायने में उनको सम्मान दे रहे हैं या स्वयं के ही श्रेस्ठ होने का घमंड कर रहे हैं ? अगर हम अपने गुरु या शिक्षक के प्रति हेय भावना रखेंगे तो हमें उनकी योग्यताओं एवं अच्छाइयों का कोई लाभ नहीं मिलने वाला और अगर हम उनका आदर करेंगे, उन्हें महत्व देंगे तो उनका आशीर्वाद हमें सहज ही प्राप्त होगा.

🚩🚩जय श्री राम🚩🚩

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रामेश्वर कुण्ड

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