सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
। बंगाल में एक भक्त हुआ ।
।। बहुत सुंदर कहानी ।।
बंगाल में एक भक्त हुआ।
कभी मंदिर में नहीं गया।
पिता बहुत धार्मिक थे।
तो पिता चिंतित थे, स्वभावत:।
लेकिन बेटा बड़ा ज्ञानी था, शास्त्रों का बड़ा ज्ञाता था।
दूर — दूर तक बड़ी ख्याति थी।
नव्य न्याय का, न्याय का, तर्क का बड़ा पंडित था।
साठ वर्ष का हो गया, तो अस्सी वर्ष के पिता ने कहा कि अब बहुत हो गया, अब तू भी का हो गया, अब मंदिर जाना जरूरी है!
उस साठ वर्ष के के बेटे ने कहा, मंदिर तो मैं कई बार सोचा कि जाऊं, लेकिन पूरा मन कभी मैंने पाया नहीं कि मंदिर जाऊं।
और अगर अधूरे मन से गया, तो मंदिर में जा ही कैसे पाऊंगा?
आधा बाहर रह जाऊंगा, आधा भीतर जाऊंगा, तो जाना हो ही नहीं पाएगा।
और फिर मैं आपको भी रोज मंदिर जाते देखता हूं वर्षों से, चालीस वर्ष का तो कम से कम मुझे स्मरण है; लेकिन आपकी जिंदगी में मैंने कोई फर्क नहीं देखा।
तो मैं मानता हूं कि आप मंदिर अभी पहुंच ही नहीं पाए हैं।
आप जाते हैं, आते हैं, लेकिन पूरा मंदिर और पूरा मन कहीं मिल नहीं पाते।
तो आपको देखकर भी मेरी हिम्मत टूट जाती है।
जाऊंगा एक दिन जरूर, लेकिन उसी दिन, जिस दिन पूरा मन मेरे पास हो।
और दस वर्ष बीत गए।
बाप मरने के करीब पहुंच गया।
अभी तक वह प्रतीक्षा कर रहा है कि किसी दिन उसका बेटा जाएगा।
सत्तरवीं उसकी वर्षगांठ आ गई।
और बेटा उस दिन सुबह बाप के, पैर छूकर बोला कि मैं मंदिर जा रहा हूं।
बेटा मंदिर गया।
घड़ी, दो घड़ी, तीन घड़ी बीती।
बाप चिंतित हुआ; बेटा मंदिर से अब तक लौटा नहीं है! फिर आदमी भेजा।
मंदिर के पास तो बड़ी भीड़ लग गई है।
फिर का बाप भी पहुंचा।
पुजारियों ने कहा कि इस बेटे ने क्या किया, पता नहीं! इसने आकर सिर्फ एक बार राम का नाम लिया और गिर पड़ा!
एक पत्र वह अपने घर लिखकर रख आया था।
जिसमें उसने लिखा था कि एक बार राम का नाम लूंगा, पूरे मन से।
अगर कुछ हो जाए, तो ठीक, अगर कुछ न हो, तो फिर दुबारा नाम न लूंगा।
क्योंकि फिर दुबारा लेने का क्या प्रयोजन है?
एक ही बार राम का नाम पूरे मन से लिया गया, वह शरीर से मुक्त हो गया! लेकिन पूरे मन से तो हम कुछ ले नहीं पाते।
पूरे मन का मतलब ही होता है कि मन समाप्त हुआ।
मन का कोई अर्थ ही नहीं होता, जब मन पूरा हो जाए।
जहां पूरा हो जाता है मन, वहां मन समाप्त हो जाता है।
जब तक अधूरा होता है, तभी तक मन होता है।
इसे हम ऐसा समझें कि अधूरा होना, मन का स्वभाव है।
अपने ही भीतर बंटा होना, मन का स्वभाव है।
अपने ही भीतर लड़ते रहना, मन का स्वभाव है।
द्वंद्व, कलह, खंडित होना, मन की नियति और प्रकृति है।
आपने जीवन में बहुत बार निर्णय लिए होंगे, रोज लेने पड़ते हैं, लेकिन मन से कभी कोई निर्णय पूरा नहीं लिया जाता।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, संन्यास हमें लेना है, लेकिन अभी सत्तर प्रतिशत मन तैयार है; अभी तीस प्रतिशत मन तैयार नहीं है।
कोई आता है, वह कहता है, नब्बे प्रतिशत मन तैयार है; अभी दस प्रतिशत मन तैयार नहीं है।
जब मेरा पूरा मन तैयार हो जाएगा, तब मैं संन्यास में छलांग लगाऊंगा।
मैं उनसे कहता हूं कि पूरा मन तुम्हारा किसी और चीज में कभी तैयार हुआ है?
पूरा मन कभी तैयार होता ही नहीं।
और जब कोई व्यक्ति पूरा तैयार होता है, तो मन शून्य हो जाता है; मन तत्क्षण विदा हो जाता है।
अधूरे आदमी के पास मन होता है, पूरे आदमी के पास मन नहीं होता।
बुद्ध, या राम, या कृष्ण जैसे व्यक्तियों के पास मन नहीं होता।
और जहां मन नहीं होता, वहीं आत्मा के दर्शन, वहीं परमात्मा की झलक मिलनी शुरू होती है।
संसार में दरिद्र कौन है....!
यह प्रश्न चारों तरफ से उभर कर सामने आता है संसार में दरिद्र कौन है !
इस पर जब हम चिंतन करना प्रारंभ करेंगे तब हमारे को बहुत ही गहराई के अंदर उतरना पड़ेगा तब हमारे को इस प्रश्न का उत्तर है !
बड़ी मुश्किल से प्राप्त होगा पर प्राप्त होगा यह निश्चित बात है।
दरिद्र वही व्यक्ति कहलाता है जिस व्यक्ति की कामनाएं बहुत ही ज्यादा विशाल होती है।
जिसकी महत्वाकांक्षाएं इतनी ज्यादा बढ़ जाती है !
समुद्र को भी वह निगल जाए तो भी उसकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं हो सकती है !
वही व्यक्ति वास्तव में दरिद्र कहलाने का अधिकारी बनता है।
जो व्यक्ति अपने मन में संतुष्ट रहना जान देता है !
वह व्यक्ति कौन धनी है !
कौन निर्धन है कभी भी अपने मन के अंदर चिंतन नहीं करता है !
वह हमेशा अपनी ही मस्ती में मस्त रहने वाला व्यक्ति होता है !
संसार का अपने आप को वह सबसे ज्यादा सुखी मनाना प्रारंभ कर देता है।
आवश्यकता है !
निर्धन व्यक्ति भी पूरी हो सकती है पर इच्छाएं महत्वाकांक्षाएं राजा के भी इस संसार के अंदर कभी भी पूरी नहीं हो सकती है !
सारे संसार का साम्राज्य भी उसको प्राप्त हो जाए तो भी उसके मन के अंदर शांति का नामोनिशान नजर नहीं आएगा !
जहां महत्वाकांक्षाएं होती है वहां पर दरिद्रता काम नहीं होती है और ज्यादा तेजी के साथ के अंदर बढ़ाने प्रारंभ हो जाती है।
ज्ञान की पाठशाला के विद्यार्थियों के लिए भी यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात जानने की है !
हम भी हमारे जीवन के अंदर दरिद्र है या नहीं यह भी एक बार चिंतन करना प्रारंभ कर देना चाहिए ज्ञान का सर क्या है !
ज्ञान का सार है अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना प्रारंभ कर देना जो विद्यार्थी अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना प्रारंभ कर देता है !
वह व्यक्ति इस संसार के अंदर अपने आप को सुखी अनुभव कर सकता है पर ज्ञान उसे व्यक्ति के लिए भर बहुत बन जाता है !
जिस व्यक्ति के मां के अंदर महत्व आकांक्षाओं के बादल मंडराने प्रारंभ कर देती है !
ज्यादा महत्व कामनाओं को उभारना सबसे बड़ी दरिद्रता की निशानी बन जाती है..!!
🙏🙏🏿🙏🏾जय श्री कृष्ण🙏🏽🙏🏼🙏🏻
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏