https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 09/14/20

🙏🙏🙏🌹जय श्री कृष्ण🌹🙏🙏🙏*भगवान का दोस्त*बहुत छोटी कहानी है।संदेश बड़ा है।एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर फूल बेच रहा था। लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन ने उसके पैर देखे; बहुत दु:ख हुआ।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

🙏🙏🙏🌹जय श्री कृष्ण🌹🙏🙏🙏

*भगवान का दोस्त*

बहुत छोटी कहानी है।संदेश बड़ा है।

एक बच्चा दोपहर में नंगे पैर फूल बेच रहा था। लोग मोलभाव कर रहे थे। एक सज्जन ने उसके पैर देखे; बहुत दु:ख हुआ। वह भागकर गया, पास ही की एक दुकान से बूट लेकर के आया और कहा-"बेटा! बूट पहन ले।"
 लड़के ने फटाफट बूट पहने, बड़ा खुश हुआ और उस आदमी का हाथ पकड़के कहने लगा-"आप भगवान हो।" वह आदमी घबराकर बोला-"नहीं..नहीं. बेटा! मैं भगवान नहीं।" फिर लड़का बोला-"ज़रूर.. आप भगवान के दोस्त होंगे क्योंकि मैंने कल रात ही भगवान को अरदास की थी कि भगवानजी, मेरे पैर बहुत जलते हैं। मुझे बूट लेकर के दो।" वह आदमी आंखों में पानी लिये मुस्कुराता हुआ चला गया, पर वो जान गया था कि भगवान का दोस्त बनना ज्यादा मुश्किल नहीं है। कुदरत ने दो रास्ते बनाए हैं-

*1) देकर जाओ*, या
*2) छोड़कर जाओ*

*_साथ लेकर के जाने की कोई व्यवस्था नहीं।_*
जय श्री कृष्ण......!!!!
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। आज का भगवद चिन्तन ।।

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जय द्वारकाधीश

 ।। आज का भगवद चिन्तन ।।


आज का भगवद चिन्तन

            
यदि कोई यह कहता है कि उसने अपने जीवन में कभी कोई गलती नहीं की, तो इसका मतलब हुआ...! 

कि उसने अपने जीवन में कुछ हटके नहीं किया, नया नहीं किया। 

गलती करना कोई बुरी बात नहीं, एक गलती को बार - बार करना बुरी बात है। 

कोई भी गलती आप दो बार नहीं कर सकते, अगर आप गलती दोहराते हैं तो फिर ये गलती नहीं आपकी इच्छा है। 


  

उपलब्धि और आलोचना दोनों बहिन हैं। 

उपलब्धियाँ बढेंगी तो निश्चित ही आपकी आलोचना भी बढ़ेगी। 

लोग निंदा करते हैं या प्रशंसा ये महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण ये है कि जिम्मेदारियाँ ईमानदारी से पूरी की गई हैं या नहीं ?

और एक बात ! 



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जिस काम को करने में डर लगे, उसी को करने का नाम साहस है। 

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा बन जाता है। 

खुद पर भरोसा रखो। 

छोड़ो ये बात कि लोग क्या कहेंगे ? 

लोगों की परवाह किये बिना अपने विचारों को सृजन का रूप दे दो ताकि हर कोई कह सके...! 

" मान गए आपको। "

भगवान शालिग्राम को महिलाएं नहीं लगा सकतीं हाथ,केवल जनेऊधारी को ही पूजा का अधिकार।

सनातन धर्म के अनुसार आदिकाल से शालिग्राम भगवान के पूजन का बड़ा महत्व है। 

शालिग्राम की अराधना से पुण्य के अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।



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शालिग्राम भगवान का पूजन वही कर सकता है जो जनेऊ धारी हो। 

जिसने गायत्री की उपासना की हो, जो सूर्य को रोज अर्घ देता हो उसे ही भगवान शालिग्राम की पूजा करने का अधिकार है।

धर्म शास्त्रों के अनुसार जहां शालिग्राम होते हैं वहां सभी दोष स्वत ही दूर हो जाते हैं। 

आज कल आपको बहुत सुनने को मिल रहा है कि घर में वास्तु दोष है। 

वास्तु शांति करा लो, जिस घर में भगवान शालिग्राम होते हैं उस घर में किसी भी प्रकार का वास्तु दोष नहीं होता यदि होता भी है तो वह अपने आप दूर हो जाता है।

स्पष्ट शब्दों में कहा है कि महिलाएं और विवाहित स्त्री को शालिग्राम का स्पर्श नहीं करना चाहिए। 

विवाहित स्त्रियां भगवान शालिग्राम का स्पर्श नहीं कर सकतीं और पूजन भी नहीं। 

इस बात की पुष्टि स्वयं निर्णय सिंधु पुस्तक करती है। 



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नीचे श्लोक पुष्टि करती है..!

असत्छुद्रगतं दासं निषेधं विद्धि मानद् !
स्त्रीणामपिच साध्वीनां नैवाभावः प्रकीर्तिताः।।

ऐसे में महिलाओं को स्वयं विचार करना चाहिए कि अब दूसरा प्रश्न स्त्रियों के सामने यह उठता है कि हमारे घर में कोई पुरुष पूजा नहीं करते हैं या उनको पूजा करने का समय ही नहीं मिलता है। 

नित्य पूजा स्त्रियों को ही करना पड़ता है ऐसे में हम क्या करें ? 



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इस समस्या का समाधान स्कंद पुराण में मिल जाएगा लेकिन इसका उत्तर जानने के बाद महिलाओं को स्वयं विचार करना चाहिए कि उन्हें शालिग्राम का स्पर्श करना चाहिए या नहीं-

यहां समझें स्थिति..।

जिन स्त्रियों का मन पवित्र है, पूर्ण रूप से पतिव्रता है,मन में किसी पर पुरुष के लिए गलत भावना नहीं हैं,अपने पति को ही सर्वस्व मानती हैं। 

पति और अपने परिवारों के लिए ही जीती हैं ऐसी स्त्रियां नारियां भगवान शालिग्राम का पूजन व उनको स्नान करा सकती हैं। 

उनको कुछ दोष नहीं लगता। 

अत: वह महिलाएं खुद विचार करें कि उन्हें भगवान शालिग्राम का पूजन करना चाहिए कि नहीं।

 || भगवान सालिग्राम जी की जय हो ||
जय श्री राधे कृष्ण !!

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*🌻🌹मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है 🌹🌻🙏🏻*उ0-बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

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*🌻🌹मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है 🌹🌻🙏🏻*

उ0-बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दर्शन के लिए जाएं तो दर्शन करने के बाद बाहर आकर मंदिर की पेडी या ऑटले पर थोड़ी देर बैठते हैं । क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है?

आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठकर अपने घर की व्यापार की राजनीति की चर्चा करते हैं परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई । वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर के हमें एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं । आप इस लोक को सुनें और आने वाली पीढ़ी को भी इसे बताएं । यह श्लोक इस प्रकार है -
अनायासेन मरणम् ,बिना देन्येन जीवनम्।
देहान्त तव सानिध्यम्, देहि मे परमेश्वरम् ।।

इस श्लोक का अर्थ है *अनायासेन मरणम्* अर्थात बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और हम कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर पड़े पड़े ,कष्ट उठाकर मृत्यु को प्राप्त ना हो चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं ।

*बिना देन्येन जीवनम्* अर्थात परवशता का जीवन ना हो मतलब हमें कभी किसी के सहारे ना पड़े रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है वैसे परवश या बेबस ना हो । ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सके ।

*देहांते तव सानिध्यम* अर्थात जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर जी उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले ।

*देहि में परमेशवरम्* हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना ।

यह प्रार्थना करें गाड़ी ,लाडी ,लड़का ,लड़की, पति, पत्नी ,घर धन यह नहीं मांगना है यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं । इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठकर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए । यह प्रार्थना है, याचना नहीं है । याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है जैसे कि घर, व्यापार, नौकरी ,पुत्र ,पुत्री ,सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है वह याचना है वह भीख है।

हम प्रार्थना करते हैं प्रार्थना का विशेष अर्थ होता है अर्थात विशिष्ट, श्रेष्ठ । अर्थना अर्थात निवेदन। ठाकुर जी से प्रार्थना करें और प्रार्थना क्या करना है ,यह श्लोक बोलना है।

जब हम मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो खुली आंखों से भगवान को देखना चाहिए, निहारना चाहिए । उनके दर्शन करना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं । आंखें बंद क्यों करना हम तो दर्शन करने आए हैं । भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का ,मुखारविंद का, श्रंगार का, संपूर्णानंद लें । आंखों में भर ले स्वरूप को । दर्शन करें और दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठे तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किए हैं उस स्वरूप का ध्यान करें।

 *मंदिर में नेत्र नहीं बंद करना । बाहर आने के बाद पैड़ी पर बैठकर जब ठाकुर जी का ध्यान करें तब नेत्र बंद करें और अगर ठाकुर जी का स्वरूप ध्यान में नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं* और भगवान का दर्शन करें । नेत्रों को बंद करने के पश्चात उपरोक्त श्लोक का पाठ करें।

पाँच वस्तु ऐसी हे ,जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र है....

उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वमनं शवकर्पटम् ।
 काकविष्टा ते पञ्चैते,पवित्राति मनोहरा॥ 

1. उच्छिष्ट —  गाय का दूध,गाय का दूध पहले उसका बछड़ा पीकर उच्छिष्ट करता है।फिर भी वह पवित्र ओर शिव पर चढ़ता हे।

2. शिव निर्माल्यं - गंगा का जल,गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा शिव जी के मस्तक पर हुआ ।  नियमानुसार शिव जी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है पर गंगाजल पवित्र है।

3. वमनम्— उल्टी — शहद..मधुमख्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती है , तब वो अपने मुख से उस रस  की शहद के रूप में उल्टी करती है  ,जो पवित्र कार्यों मे उपयोग किया जाता है।

4. शव कर्पटम्— रेशमी वस्त्र,धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिये पवित्रता की आवश्यकता रहती है , रेशमी वस्त्र को पवित्र माना गया है , पर रेशम को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते पानी में डाला जाता है ओर उसकी मौत हो जाती है उसके बाद रेशम मिलता है तो हुआ शव कर्पट फिर भी पवित्र है ।

5. काक विष्टा— कौए का मल,कौवा पीपल  पेड़ों के फल खाता है ओर उन पेड़ों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है जिसमें से पेड़ों की उत्पत्ति होती है ,आपने देखा होगा की कही भी पीपल के पेड़ उगते नही हे बल्कि पीपल काक विष्टा से उगता है ,फिर भी पवित्र है।
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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...