सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
*जय सत्य सनातन*
*अनमोल ओर दुर्लभ जीवन को कैसे सफल बनायें:-*
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*तरकारी (सब्जी) काटने की उचित पद्धति-२*
*♦️२. तरकारी काटते समय ध्यान रखने योग्य मुद्दे*
*अ. डंठल*
तरकारी काटते समय उसका डंठल निकालने पर, उसमें घनीभूत और तमोगुण वर्धन हेतु पूरक सिद्ध होनेवाली सूक्ष्म-वायु वायुमंडल में उत्सर्जित होती है ।
*♦️आ. तरकारी के संदर्भ में दिशा*
तरकारी काटते समय सदैव ऊपर से नीचे की दिशा में काटें ।
इससे तरकारी काटने के नाद से उत्पन्न जडत्वदर्शक अधोगामी तरंगें भूमि में तत्काल विसर्जित हो पाती हैं ।
*इ. शाक*
शाक बहुत महीन (बारीक) न काटकर साधारणतः मध्यम आकार में काटें, जिससे पत्तों से रस बाहर न आए ।
और काटने के बाद धोना नहीं चाहिए, काटने के पहले ही ठीक से धोना चाहिए
*♦️ई. तरकारी के टुकडों का आकार*
तरकारी को अनुपातिक आकार में अर्थात बहुत बडे अथवा बहुत छोटे भी नहीं, ऐसे मध्यम आकार के टुकडे करें । यदि भिंडी हो, तो एक से डेढ इंच के टुकडे करें ।
लौकी जैसी बडे आकार की तरकारी हो, तो 2से 3 इंच के टुकडे करें ।
2-3 इंच के टुकडे खाते समय उन्हें तोडना ही पडेगा । ऐसे में उन्हें पहले से ही छोटे क्यों न काटें ?
सामान्य आकार की तरकारी के टुकडे एक से डेढ इंच के हों । बडे आकार की तरकारी की अधिकतम सीमा 2-3 इंच बताई है ।
टुकडे एक-डेढ इंचसे छोटे न हों; क्योंकि उसमें विद्यमान सूक्ष्मजन्य प्रभावकारी पोषकता दर्शानेवाली रसबीजरूप रिक्तियों का ह्रास हो सकता है ।
(तरकारी की सूक्ष्म रिक्तियां रसयुक्त होती हैं । अनुपातिक आकार में तरकारी काटने से जीव को भोजन ग्रहण करते समय इस पोषक रस का लाभ होता है ।)
*♦️उ. रूप*
*गोलाकार अथवा खडे और सीधे टुकडे :*
इस स्वरूप में तरकारी काटने की प्रक्रिया से रज-तमात्मक स्पंदनों की निर्मिति रुक जाती है ।
*कलात्मक स्वरूप :* तरकारी को कलात्मक पद्धति से तिरछे अथवा पतले गोल टुकडों में न काटें; क्योंकि इन तिरछे टुकडों से कष्टदायक स्पंदनों की निर्मिति होती है । उनसे निकलनेवाले सूक्ष्म घर्षणात्मक नाद की ओर वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं ।
*ऊ. यंत्र से तरकारी काटने से क्या हानि होती है ?*
यंत्र से काटी गई तरकारी का चेतनाहीन हो जाती है । विद्युतवेग से चलनेवाले यंत्र वेग के बल पर प्रचंड मात्रा में रज-तमात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं और यह ऊर्जा ही उस विशिष्ट घटक में विद्यमान जीवसत्त्वरूप कणों को नष्ट करती है । यंत्र अल्प अवधि में अत्युच्च वेग धारण कर तरकारी के टुकडे करता है; इसलिए इस वेग की घर्षणात्मक तरंगों के सूक्ष्म आघातदायी स्पर्श से तरकारी में विद्यमान सूक्ष्म-रस रिक्तियों का उसी स्थान पर विघटन हो जाता है । इसलिए यंत्र से काटी गई तरकारी चेतनाहीन, अर्थात किसी शव समान दिखता है; क्योंकि तरकारी काटने के उपरांत भी उससे बहुत समयतक रज-तमात्मक तेजदायी विघटनात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । इसलिए ऐसी तरकारी गैस के चूल्हेपर पकाने पर इस उत्सर्जित (उत्सारण करनेवाला) ऊर्जा को (उत्सर्जन प्रक्रिया को) और गति मिलती है और कालांतर में यह विघटनात्मक ऊर्जा अन्न पकते हुए ही उसमें घनीभूत होती है । इसलिए हमारे सर्व ओर उत्सारक पीडादायी स्पंदनों के सूक्ष्म वायुमंडल का निर्माण करती है ।
*संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका* अध्यात्मशास्त्र’
*👉आगे...दाहिने हाथसे भोजन क्यों करना चाहिए ?*
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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