https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 10/03/20

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।जय श्री राम राम राम सीताराम ....... श्री लक्ष्मण ने भगवान् राम के सिर पर मोरपंख लगाने के लिए यही स्थान क्यों चुना ? अयोध्या में तो कभी उन्होंने उनके मस्तक पर मोरपंख नहीं लगाया।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

जय श्री राम राम राम सीताराम .......

           श्री लक्ष्मण ने भगवान् राम के सिर पर मोरपंख लगाने के लिए यही स्थान क्यों चुना ?

 अयोध्या में तो कभी उन्होंने उनके मस्तक पर मोरपंख नहीं लगाया। 

वास्तव में श्री लक्ष्मण इस श्रृंगार के द्वारा एक नयी भूमिका प्रस्तुत करते हैं। 

उनका तात्पर्य यह है कि यदि कोई भगवान का मोर बनना चाहे तो उसे अयोध्या में नहीं, जनकपुरी में जन्म लेना चाहिए। 

जो भक्ति का मोर होगा, वही राम का मोर होगा। 

जो भक्ति का अपना नहीं होगा, वह भगवान का भी अपना नहीं होगा। 

भगवान का मोर वही होगा, जो भक्ति की वाटिका में पालित है, जो भक्ति का पक्षधर है। 

गोस्वामीजी के लिए पक्षी पक्षपात का प्रतीक है। 

भक्ति का अर्थ ही है पक्षपात। 

गोस्वामीजी उत्तरकाण्ड में संकेत देते हैं कि भक्ति के आचार्य काकभूसुण्डीजी पक्षी हैं। 

पक्षी शब्द के दो अर्थ होते हैं -- 

एक तो आकाश में उड़ने वाला पक्षी और दूसरा वह, जिसके हृदय में किसी के प्रति पक्षपात हो। 

ज्ञानी निष्पक्षता का दावा करता है, पर भक्त ऐसा दावा नहीं करता। 

भक्त तो कहता है कि हम पक्षपाती हैं, और जब भक्त पक्षपाती बनता है, तो भगवान पक्षधर बनते हैं। 

न तो भक्त निष्पक्ष है और न भगवान् ही। 

भगवान् श्रीमद्भागवत में कह देते हैं --

*"मदन्यत् ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि"*
 (९/४/६८) -- 

'वे (भक्त) मेरे अतिरिक्त और कुछ नहीं जानते तथा मैं उनके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं जानता।' 

तो, पुष्पवाटिका में साक्षात पराभक्तिस्वरूप किशोरीजी के सन्मुख विरागी और निष्पक्ष ब्रह्म प्रकट होता है, तो वह अनुरागी और पक्षपात से युक्त हो जाता है और अपने माथे पर मोरपंख धारण कर लेता है।

 यह मोरपंख ईश्वर के अनुराग को ही प्रकट करता है। 

सीताजी का भगवान् राम के प्रति अनुराग तो प्रगट ही है। 

जब वे श्रीराघवेंद्र के सौन्दर्य को देखती हैं, तो उनका प्रभु के प्रति अनुराग उनके हाव-भाव से प्रगट हो जाता है। 

पर श्रीराम का उनके प्रति अनुराग है या नहीं ? 

सखियाँ अपने वर्णन के माध्यम से सीताजी को श्री राम के अनुराग के प्रति आश्वस्त करती हैं। 

वे सीताजी से कहती हैं --
 जरा मोरपंख को देखिए !

 उनका तात्पर्य यह था कि जब श्रीराघवेंद्र आपकी वाटिका के मोर के पंख को इतना सम्मान दे रहे हैं कि उसे सिर पर धारण कर लिया है, तब फिर वे आपको कहाँ पर धारण करेंगे इसकी कल्पना कर लीजिए। 

जो व्यक्ति आपकी छोटी से छोटी वस्तु को इतना सम्मान करता है, वह फिर आपका कितना सम्मान न करेगा ! 

तो, पुष्पवाटिका का मोरपंख और पुष्प की कलियाँ यही संकेत करते हैं कि भगवान भक्तों के पक्षधर हैं। 

और भगवान को इस प्रकार पक्षधर बनाने का कार्य श्री लक्ष्मण के द्वारा सम्पन्न होता है। 

वे मौन और निःशब्द रहकर पुष्पवाटिका में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका सम्पन्न करते हैं। 
-- श्री राम राम राम सीताराम 🌺🙏🏻
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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