श्रावण मास महात्म्य ( सोलहवां अध्याय )
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सौराष्ट्र देश में शोभन नामक एक नगर था.....!
उसमे सभी धर्मों के प्रति निष्ठां रखने वाला एक साहूकार रहता था.....!
उसने जलरहित एक अत्यंत निर्जन वन में बहुत पैसा खर्च करके शुभ तथा मनोहर सीढ़ियों से युक्त, पशुओं को जल पिलाने के लिए.....!
सरलता से उतरने - चढ़ने योग्य, दृढ पत्थरों से बंधी हुई तथा लंबे समय तक टिकने वाली एक बावली बनवाई....!
उस बावली के चारों ओर थके राहगीरों के विश्राम के लिए अनेक प्रकार के वृक्षों से शोभायमान एक बाग़ लगवाया लेकिन वह बावली सूखी ही रह गई और उसमे एक बून्द पानी नहीं आया....!
साहूकार सोचने लगा कि मेरा प्रयास व्यर्थ हो गया और व्यर्थ ही धन खर्च किया.....!
इसी चिंता में विचार करता हुआ वह साहूकार रात में वहीँ सो गया तब रात्रि में उसके स्वप्न में जल देवता आए और उन्होंने कहा कि “हे धनद !
जल के आने का उपाय तुम सुनो, यदि तुम हम लोगों के लिए आदरपूर्वक अपने पौत्र की बलि दो तो उसी समय तुम्हारी यह बावली जल से भर जाएगी....!”
यह सपना देख साहूकार ने सुबह अपने पुत्र को बताया....!
उसके पुत्र का नाम द्रविण था और वह भी धर्म - कर्म में आस्था रखने वाला था....!
वह कहने लगा – “आप मुझ जैसे पुत्र के पिता है...!
यह धर्म का कार्य है. इसमें आपको ज्यादा विचार ही नहीं करना चाहिए. यह धर्म ही है जो स्थिर रहेगा और पुत्र आदि सब नश्वर है....!
अल्प मूल्य से महान वस्तु प्राप्त हो रही है अतः यह क्रय अति दुर्लभ है....!
इसमें लाभ ही लाभ है....!
शीतांशु और चण्डाशु ये मेरे दो पुत्र है. इनमें शीतांशु नामक जो ज्येष्ठ पुत्र है उसकी बलि बिना कुछ विचार किए आप दे दे लेकिन पिताजी !
घर की स्त्रियों को यह रहस्य कभी ज्ञात नहीं होना चाहिए...!
उसका उपाय ये है कि इस समय मेरी पत्नी गर्भ से है और उसका प्रसवकाल भी निकट है जिसके लिए वह अपने पिता के घर जाने वाली है....!
छोटा पुत्र भी उसके साथ जाएगा......!
हे तात !
उस समय यह कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न हो जाएगा.....!
पुत्र की यह बात सुनकर पिता उस पर अत्यधिक प्रसन्न हुए और बोले – हे पुत्र !
तुम धन्य हो और मैं भी धन्य हूँ जो कि तुम जैसे पुत्र का मैं पिता बना।
इसी बीच सुशीला के घर से उसके पिता का बुलावा आ गया और वह जाने लगी तब उसके ससुर तथा पति ने कहा कि यह ज्येष्ठ पुत्र हमारे पास ही रहेगा....!
तुम इस छोटे पुत्र को ले जाओ. इस पर उसने ऐसा ही किया...!
उसके चले जाने के बाद पिता - पुत्र ने उस बालक के शरीर में तेल का लेप किया और अच्छी प्रकार स्नान कराकर सुन्दर वस्त्र व आभूषणों से अलंकृत करके पूर्वाषाढ़ा तथा शतभिषा नक्षत्र में उसे प्रसन्नतापूर्वक बावली के तट पर खड़ा किया और कहा कि बावली के जलदेवता इस बालक के बलिदान से आप प्रसन्न हों.....!
उसी समय वह बावली अमृततुल्य जल से भर गई....!
वे दोनों पिता - पुत्र शोक व हर्ष से युक्त होकर घर की ओर चले गए।
सुशीला ने अपने घर में तीसरे पुत्र को जन्म दिया और तीन महीने बाद अपने घर जाने को निकल पड़ी...!
मार्ग में आते समय वह बावली के पास पहुँची और उस बावली को जल से भरा हुआ देखा तो वह बहुत ही आश्चर्य में पड़ गई....!
उसने उस बावली में स्नान किया और कहने लगी कि मेरे ससुर का परिश्रम व धन का व्यय सफल हुआ....!
उस दिन श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि थी और सुशीला ने शीतला सप्तमी नामक शुभ व्रत रखा हुआ था....!
उसने वहीँ पर चावल पकाए और दही भी ले आई....!
इसके बाद जलदेवताओं का विधिवत पूजन करके दही, भात तथा ककड़ी फल का नैवेद्य अर्पण किया तथा ब्राह्मणों को वायन देकर साथ के लोगों के साथ मिलकर उसी नैवेद्य अन्न का भोजन किया।
उस स्थान से सुशीला का ग्राम एक योजन की दूरी पर स्थित था.....!
कुछ समय बाद वह सुन्दर पालकी में बैठ दोनों पुत्रों के साथ वहाँ से चल पड़ी तब वे जलदेवता कहने लगे कि हमें इसका पुत्र जीवित करके इसे वापिस करना चाहिए क्योंकि इसने हमारा व्रत किया है...!
साथ ही यह उत्तम बुद्धि रखने वाली स्त्री है....!
इस व्रत के प्रभाव से इसे नूतन पुत्र देना चाहिए....!
पहले उत्पन्न पुत्र को यदि हम ग्रहण किए रह गए तब हमारी प्रसन्नता का फल ही क्या ?
आपस में ऐसा कहकर उन दयालु जलदेवताओं ने बावली में से उसके पुत्र को बाहर निकालकर माता को दिखा दिया और फिर उसे विदा किया।
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इसी कारण से यह सप्तमी “शीतला - सप्तमी” इस यथार्थ नाम वाली है।
|| इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में “शीतला सप्तमी व्रत” कथन नामक सोलहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ||
महादेव की बिल्व पत्रों से पूजा :
त्रिदेवों में भगवान शिव को सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाला माना गया है।
अगर यह क्रिया कुछ मंत्रों के उच्चारण के साथ की जाय, तो भोलेशंकर व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।
हर प्रकार की पूजा और मंत्र उच्चारण में 108 का बहुत महत्व है।
यहां हम आपको 108 शिव मंत्रों के बारे में बता रहे हैं, किसी भी दिन इन 108 मंत्रों के साथ आप भगवान शिव की पूजा या शिवलिंग पर जलापर्ण करें तो आपकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
सोमवार या श्रावण सोमवार के दिन ऐसा करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
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तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥
सर्वत्रैलोक्यहर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३॥
नागकुण्डलसंयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४॥
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५॥
विभूत्यभ्यर्चितं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७॥
कालकालं गिरीशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८॥
सर्वेश्वरं सदाशान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९॥
वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०॥
हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥११॥
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१२॥
अघोररूपकं कुम्भं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१३॥
नीलकण्ठं जघन्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१४॥
महासेनं महावीरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१५॥
तौर्यातौर्यं च देव्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१६॥
अशेषपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१७॥
महापापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१८॥
कैलासवासिनं भीमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१९॥
करुणामृतसिन्धुं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२०॥
महापापहरं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२१॥
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२२॥
नीललोहितखट्वाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२३॥
वृषाङ्कं वृषभारूढं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२४॥
मृत्युञ्जयं लोकनाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२५॥
मृगपाणिं चन्द्रमौळिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२६॥
निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२७॥
सर्वतत्त्वस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२८॥
सर्वलोकैकनेत्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ी२९॥
कमलाप्रियपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३०॥
भवरोगविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३१॥
नगराजसुताकान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३२॥
फणिराजविराजं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३३॥
तेजोरूपं महारौद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३४॥
सर्वलोकैकनाथं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३५॥
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३६॥
नवरत्नकिरीटं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३७॥
नानारत्नमणिमयं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३८॥
भक्तमानसगेहं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३९॥
पुण्डरीकनिभाक्षं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४०॥
सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४१॥
विद्याविभेदरहितं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४२॥
धर्माधर्मप्रवृत्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४३॥
कल्पान्तभैरवं शुभ्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४४॥
दुःखावतारं भद्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४५॥
अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥
सर्वपक्षिमृगाधारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४७॥
जीवकृज्जीवहरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४८॥
वज्रेशं वज्रभूषं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४९॥
जितेन्द्रियं वीरभद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५०॥
दिगम्बरं क्षोभनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५१॥
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५२॥
शार्दूलचर्मवसनं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५३॥
पूर्णानन्दस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५४॥
ब्रह्माण्डनायकं तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५५॥
बृन्दारकप्रियतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५६॥
सुलभासुलभं लभ्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५७॥
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५८॥
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५९॥
कर्पूरगौरं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६०॥
योगदं योगिनां सिंहं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६१॥
भक्तकल्पद्रुमस्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६२॥
विष्णुब्रह्मादि वन्द्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६३॥
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६४॥
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६५॥
कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६६॥
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६७॥
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६८॥
शुद्धं च शाश्वतं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६९॥
गम्भीरं च वषट्कारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७०॥
करणं कारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७१॥
व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७२॥
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७३॥
हिरण्यदं हेमरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७४॥
वेदास्यं वेदरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७५॥
जगन्निवासं प्रथममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७६॥
रुद्राक्षभक्तसंस्तोममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७७॥
दक्षाध्वरविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७८॥
मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठमेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७९॥
सर्वदेवादिपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८०॥
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८१॥
कल्पकृत्कल्पनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८२॥
कपालमालाभरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८३॥
विष्णुक्रान्तमनन्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८४॥
यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८५॥
योगिमानसपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८६॥
महावक्त्रं महावृद्धं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८७॥
महेश्वरं शिवतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।८८॥
सत्यं सत्यगुणोपेतं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८९॥
दुर्लभं सर्वदेवानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९०॥
प्रदोषकाले पूजायां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९१॥
कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९२॥
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।९३॥
पञ्चबिल्वमिति ख्यातं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९४॥
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९५॥
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९६॥
सवत्सधेनुदानानि एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।९७॥
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९८॥
तुलाभागं शतावर्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९९॥
अधर्वोक्तं अधेभ्यस्तु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१००॥
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।१०१॥
त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०२॥
सर्वक्रतुमयं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ।।१०३॥
अन्ते च शिवसायुज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०४॥
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०५॥
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०६॥
तीर्थयात्राखिलं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०७॥
भवनं शाङ्करं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०८॥
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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