https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: मासिक दुर्गाष्टमी

मासिक दुर्गाष्टमी

मासिक दुर्गाष्टमी :

मासिक दुर्गाष्टमी हिंदू धर्म में एक विशेष पर्व है जो हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। 
यह पर्व देवी दुर्गा को समर्पित होता है, जिन्हें शक्ति और साहस की देवी माना जाता है। 

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मासिक दुर्गाष्टमी पर देवी दुर्गा की पूजा करने से व्यक्ति को साहस, शक्ति और समृद्धि प्राप्त होती है। 

यह दिन उन भक्तों के लिए विशेष होता है जो जीवन में किसी भी प्रकार की बाधाओं और नकारात्मकता को दूर करना चाहते हैं। 

श्रावण मास में यह महत्वपूर्ण तिथि 01 अगस्त को पड़ रही है और यह दिन अत्यधिक शुभ माना जा रहा है।

पूजा का सर्वोत्तम समय अष्टमी तिथि के मध्यकाल में होता है, क्योंकि यह समय विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा के लिए अनुकूल माना जाता है।

मासिक दुर्गाष्टमी पूजा विधि :

मासिक दुर्गाष्टमी के दिन देवी दुर्गा की पूजा करना अत्यंत फलदायक होता है। 

आइए जानते हैं इस दिन की पूजा की पूरी विधि:

प्रातः स्नान और शुद्धता :

पूजा के लिए सबसे पहले प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 

पूजा स्थल को साफ करें और वहां पर रंगोली या पुष्पों से सजावट करें।

देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना :

पूजा स्थल पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। 

प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं। 

इसके बाद, प्रतिमा को पुष्प, फल, और अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।

मंत्रोच्चारण और आराधना:

देवी दुर्गा के मंत्रों का जाप करें। 

मुख्य मंत्रों में से एक है:

“ॐ दुं दुर्गायै नमः”

इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना विशेष लाभकारी होता है। 

इससे मन की शुद्धि होती है और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।

दीप और धूप अर्पण :

पूजा के दौरान देवी के सामने दीप जलाएं और धूप अर्पित करें। 

दीपक का प्रकाश सकारात्मकता का प्रतीक होता है और धूप से वातावरण शुद्ध होता है।

भोग अर्पण :

देवी दुर्गा को प्रसाद के रूप में फल, मिठाई, विशेषकर खीर या हलवा अर्पित करें। 

यह प्रसाद परिवार और अन्य भक्तों में वितरित करें।

आरती और परिक्रमा :

देवी दुर्गा की आरती करें और उसके बाद उनकी प्रतिमा की परिक्रमा करें। 

परिक्रमा करते समय ‘जय माता दी’ का उच्चारण करना शुभ माना जाता है।

व्रत के नियम एवं फल :

मासिक दुर्गाष्टमी के दिन व्रत का विशेष महत्व होता है। 

इस दिन भक्त पूर्ण निराहार व्रत रखते हैं या फिर फलाहार का सेवन करते हैं। 

व्रत रखने से मन की शुद्धि होती है और देवी की कृपा प्राप्त होती है।

मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

इस दिन की पूजा से घर में सुख-शांति का माहौल बना रहता है।

मासिक दुर्गाष्टमी पर मां दुर्गा की पूजा का पुण्य नवरात्रि की पूजा के बराबर माना जाता है।
 
इस दिन मां दुर्गा को उबले हुए चने, हलवा-पूरी, खीर, पुए वगैरह का भोग लगाया जाता है।

मां दुर्गा की पूजा में लाल चुनरी, सोलह श्रृंगार, लाल रंग का पुष्प, पुष्पमाला, और अक्षत का इस्तेमाल किया जाता है।
 
मां दुर्गा की मूर्ति को प्रसाद चढ़ाया जाता है।

मां दुर्गा की मूर्ति को चरणामृत भी अर्पित किया जाता है।

मां दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है और आरती की जाती है।

व्रत खोलने के लिए गेहूं और गुड़ से बनी चीज़ें खाई जाती हैं।

दुर्गा सप्तशती का पाठ :

इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अति शुभ माना जाता है। 

यह पाठ करने से व्यक्ति के जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं और देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मासिक दुर्गाष्टमी व्रत के लाभ :

इस व्रत से व्यक्ति को जीवन में साहस और शक्ति प्राप्त होती है। 

देवी दुर्गा की कृपा से नकारात्मकता का नाश होता है और जीवन में शांति आती है।

यह व्रत करने से आर्थिक संकट दूर होते हैं और समृद्धि प्राप्त होती है। 

जिनकी कुंडली में ग्रह दोष होते हैं, वे इस व्रत से उन दोषों का निवारण कर सकते हैं।

यह व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है।

मासिक दुर्गा अष्टमी व्रत का महत्व :

मान्यता है कि मासिक दुर्गा अष्टमी का व्रत करने से माता भक्तों के सभी कष्ट और परेशानियां हर लेती हैं। 

इस व्रत से भक्तों को माता आदिशक्ति की अखंड कृपा प्राप्त होती है। 

इससे घर में सुख-समृद्धि और मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।

देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्  :

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः . न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् .. १

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् . तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. २ 

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः . मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ३

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया . तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति .. ४

परित्यक्ता देवा विविधविधसेवाकुलतया मया पञ्चा शीतेरधिकमपनीते तु वयसि . इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् .. ५

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः . तवापर्णे कर्णे विशति मनु वर्णे फलमिदं जनः को जानीते जननि जननीयं जपविधौ .. ६

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः . कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ७

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभववाञ्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः . अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः .. ८

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः . श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव .. ९

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि . नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति .. १० 

जगदम्ब विचित्र मत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि . अपराधपरम्परापरं न हि माता समुपेक्षते सुतम् .. ११

मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि . एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु .. १२

माँ दुर्गा की आरती :

जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर, रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित, वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…

श्री देवी जगदंबार्पणमस्तु
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धर्म, संगठन और संस्कृति की रक्षा हेतु राष्ट्रीय सनातन पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष श्री विश्वजीत सिंह अनंत द्वारा रचित सनातन धर्म प्रार्थना।

सभी सनातनी हिन्दू समाज इस प्रार्थना को अपने जीवन में धारण कर लें, और हिन्दू समाज में इसका अधिक से अधिक उपयोग करें।
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*#सनातन_धर्म_प्रार्थना*

ॐ नमः सच्चिदानन्दस्वरूपाय परात्मने।
सनातनधर्मसंस्थाय, नित्यविजयवर्चसे॥१॥

धर्म एव जगन्मूलं, सत्ये यत्र प्रतिष्ठितम्।
वेददीपप्रकाशेन, पावनं मार्गमर्चयाम्॥२॥

सत्यधर्मपराः स्मः वयं, परमात्मवाक्याश्रयाः।
सर्वभूतेषु सौहार्दं, धर्मे नः पातु सर्वदा॥३॥

दुष्टवृत्तिर्नशिष्यतु, धर्मद्रोहिनि न: क्रिया।
तेजो यज्ञमयं नः स्याद्, जयायै नः जनार्दन॥४॥

शौर्ययुक्ताः सदा स्मः वयं, धर्मनिष्ठाः समाहिताः।
संघबलं संप्रयुज्यैव, विजयां धर्मसंश्रिताम्॥५॥

गायत्रीशक्तिसंपन्नाः, धर्मे प्रज्ञां निवेशयाम्।
चेतसि श्रद्धया युक्ताः, वृत्तिं शुद्धां प्रपालयाम्॥६॥

पृथ्व्याः सनातनभूमिर्या, भूमिमातर्नमोऽस्तु ते। 
रक्षयस्व सनातनं धर्मं, संस्कृतिर्नः सदा स्थिरा॥७॥

जयतु धर्ममार्गोऽयं, जयतु धर्मसंगतिः।
जयतु शक्तिसंघट्टः, जयतु धर्मसंश्रयः॥॥८॥

बलं नः स्याद् सनातनं, तेजो वेदप्रबोधितम्।
सत्ये धृतिः प्रतिष्ठेत, धर्मं पालयाम वयम्॥९॥

🔔 सामूहिक जयघोष:

बोले सो अभय, सनातन धर्म की जय!
धर्म संस्कृति अमर रहे!
सनातनी एकता अक्षुण्ण रहे!
हर हर महादेव!

सनातन धर्म प्रार्थना का हिन्दी भावार्थ

हम उस परमात्मा को नमन करते हैं जो सत्य, चैतन्य और आनंदस्वरूप हैं; जो सनातन धर्म की स्थापना में स्थित हैं और जिनकी विजयश्री चिरकाल तक विद्यमान है॥१॥

धर्म ही इस समस्त सृष्टि की जड़ है, जिसमें सत्य की प्रतिष्ठा है। 

हम वेदों के दीपप्रकाश से प्रकाशित उस पावन पथ की आराधना करते हैं॥२॥

हम सत्य-धर्म के साधक हैं, जो परमात्मा की वाणी पर आश्रित है। 

हम समस्त प्राणियों में सौहार्द रखकर धर्म से सदा रक्षा की प्रार्थना करते हैं॥३॥

हम चाहते हैं कि दुष्ट वृत्तियाँ शीघ्र नष्ट हों, और धर्मद्रोहियों का नाश हम स्वयं करें। हे प्रभु! 

हमारे भीतर यज्ञमय तेज उत्पन्न करें जिससे हम धर्म की विजय करें॥४॥

हम सदा साहस और धर्मनिष्ठा से युक्त रहें। 

हम संगठन की शक्ति से धर्म की विजय को प्राप्त करें॥५॥

हम गायत्री मंत्र की शक्ति से समृद्ध हों, और हमारी बुद्धि धर्म में स्थित रहे। 

श्रद्धा से युक्त होकर हम अपनी वृत्तियों को शुद्ध बनाए रखें॥६॥

जो पृथ्वी सनातन धर्म की भूमि है, हे भूमिमाता! आपको प्रणाम है। 

आप हमारे सनातन धर्म की रक्षा करें और हमारी संस्कृति को सदा के लिए अडिग एवं स्थिर बनाए रखें॥७॥

हम चाहते हैं कि धर्म का मार्ग सदा विजयी हो, धर्म की एकता की जय हो, संगठित शक्ति की विजय हो और धर्माश्रय की प्रतिष्ठा बनी रहे॥८॥

हमारे भीतर सनातन धर्म का बल और वेदज तेज समाहित हो। 

हमारा मन सत्य में स्थित हो और हम सब मिलकर धर्म की सदा रक्षा करें॥९॥
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!!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Kovil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits, V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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