https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 2021

।। जीवन के मर्म कर्म की सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। जीवन के मर्म कर्म की सुंदर कहानी ।।


जीवन मे श्रद्धा और समर्पण..का महत्व क्या होता है ?


एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। 

शाम ढलने के करीब थी। 

उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है। 

वह डर के मारे इधर - उधर भागने लगी। 

वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा।

दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। 

घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई। 

वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। 

तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था।

उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था। 

उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम हुई थी। 

लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे।

वह गाय उस किचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी। 

वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। 



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 वह भी धीरे - धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। 

दोनों भी करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। 

गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।

थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?

बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। 

मेरा कोई मालिक नहीं। 

मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।

गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारे उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?

उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फस गई हो और मरने के करीब हो। 

तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी है।

गाय ने मुस्कुराते हुए कहा, बिलकुल नहीं। 

मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा। 

तुम्हें कौन ले जाएगा?

थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया। 
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे। 

वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।

गाय समर्पित ह्रदय का प्रतीक है। 

बाघ अहंकारी मन है और मालिक सद्गुरु का प्रतीक है। 

कीचड़ यह संसार है। 

और यह संघर्ष अस्तित्व की लड़ाई है। 

किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है लेकिन उसकी अति नहीं होनी चाहिए। 

"कर्मन की गति कितनी न्यारी होती है "

गुजरात का सौराष्ट्र ग्रामणी पंथक का खंभालिया नामका इलाका में अहमदाबाद के *वासणा* नामक एक इलाका से रहने वाले भाई सौराष्ट्र का भाणवड खंभालिया में नोकरी पर आए थे। 

वहाँ एक कार्यपालक इंजीनियर रहता था जो नहर का कार्यभार सँभालता था। 

वही आदेश देता था कि किस क्षेत्र में पानी देना है। 

सभी उन्हे...!

शाह 'साहब ' से ही सब बुलाते थे '

एक बार एक बड़े संपन्न किसान ने उसे 100-100 रूपयों की दस नोटें एक लिफाफे में देते हुए कहा :  

“साहब....!

कुछ भी हो....!

पर फलाने व्यक्ति को पानी न मिले। 

मेरा इतना काम आप कर दीजिये।”

साहब ने सोचा कि :  

“हजार रूपये मेरे भाग्य में आने वाले हैं इसी लिए यह दे रहा है। 

किन्तु गलत ढंग से रुपये लेकर मैं क्यों कर्मबन्धन में पड़ूँ ? 

हजार रुपये आने वाले होंगे तो कैसे भी करके आ जायेंगे। 

मैं गलत कर्म करके हजार रूपये क्यों लूँ ? 

मेरे अच्छे कर्मों से अपने - आप रूपये आ जायेंगे।ʹ 

अतः उसने हजार रूपये उस किसान को लौटा दिये।

कुछ दिनों के बाद इंजीनियर एक बार मुंबई से लौट रहा था। 

मुंबई से एक व्यापारी का लड़का भी उसके साथ बैठा। 

वह लड़का सूरत आकर जल्दबाजी में उतर गया और अपनी अटैची गाड़ी में ही भूल गया। 

वह इंजीनियर समझ गया कि अटैची उसी लड़के की है। 

अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रूकी। 

अटैची पड़ी थी लावारिस…..!

उस इंजीनियर ने अटैची उठा ली और घर ले जाकर खोली। 

उसमें से पता और टैलिफोन नंबर लिया।

इधर सूरत में व्यापारी का लड़का बड़ा परेशान हो रहा था किः 

“हीरे के व्यापारी के इतने रूपये थे, इतने लाख का कच्चा माल भी था। 

किसको बतायें ? 

बतायेंगे तब भी मुसीबत होगी।

” दूसरे दिन सुबह - सुबह फोन आया कि...!

 “आपकी अटैची ट्रेन में रह गयी थी जिसे मैं ले आया हूँ और मेरा यह पता है, आप इसे ले जाइये।”

बाप - बेटे गाड़ी लेकर वासणा पहुँचे और साहब के बँगले पर पहुँचकर उन्होंने पूछाः 

“साहब ! 

आपका फोन आया था ?”

साहब

“आप तसल्ली रखें। 

आपके सभी सामान सुरक्षित हैं।”

साहब ने अटैची दी। 

व्यापारी ने देखा कि अंदर सभी माल - सामान एवं रुपये ज्यों - के - त्यों हैं। ʹ

ये साहब नहीं, भगवान हैं….!

ʹ ऐसा सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ गये, उसका दिल भर आया।

उसने कोरे लिफाफे में कुछ रुपये रखे और साहब के पैरों पर रखकर हाथ जोड़ते हुए बोलाः

"साहब ! 

फूल नहीं तो फूल की पंखुड़ी ही सही, हमारी इतनी सेवा जरूर स्वीकार करना।”

साहब : 

“एक हजार रूपये रखे हैं न ?”

व्यापारी....!

“साहब ! 

आपको कैसे पता चला कि एक ही हजार रूपये हैं ?”

साहब....!: 

“एक हजार रूपये मुझे मिल रहे थे बुरा कर्म करने के लिए। 

किन्तु मैंने वह बुरा कार्य नहीं किया यह सोचकर कि यदि हजार रूपये मेरे भाग्य में होंगे तो कैसे भी करके आयेंगे।”

व्यापारी....!

“साहब ! आप ठीक कहते हैं। 

इसमें हजार रूपये ही हैं।”

सार : -   

कुछ लोग टेढ़े - मेढ़े रास्ते से कुछ लेते हैं।

वे तो दुष्कर्म कर पाप कमा लेते हैं।

लेकिन जो धीरज रखते हैं।

वे ईमानादारी से उतना ही पा लेते हैं।

जितना उनके भाग्य में होता है।

श्रीकृष्ण कहते हैं- 

गहना कर्मणो गतिः।

जब-जब हम कर्म करें तो कर्म को विकर्म में बदल दें अर्थात् कर्म का फल ईश्वर को अर्पित कर दें अथवा कर्म में से कर्त्तापन हटा दें तो कर्म करते हुए भी हो गया विकर्म। 

कर्म तो किये लेकिन कर्म का बंधन नहीं रहा।

संसारी आदमी कर्म को बंधन कारक बना देता है।

साधक कर्म को विकर्म बनाता है।

लेकिन सिद्ध पुरुष कर्म को अकर्म बना देते हैं।

आप भी कर्म करें तो अकर्ता होकर करें, न कि कर्त्ता होकर। 

कर्त्ता भाव से किया गया कर्म बंधन में डाल देता है एवं उसका फल भोगना ही पड़ता है।

तुलसीदास जी कहते हैं :-

करम  प्रधान  बिस्व  करि  राखा।
जस करइ सो तस फलु चाखा।

बुरा कर्म करते समय तो आदमी कर डालता है।

लेकिन बाद में उसका कितना भयंकर परिणाम आता है।

इसका पता ही नहीं चलता..!!

।। सुंदर कहानी ।।

।।भगवत भक्त परम संत नामदेव जी की श्रद्धा भक्ति आत्मसमर्पित भाव...! ।।

संत नामदेव जी,,।

बचपन में अपने ननिहाल में रहते थे,,।

इनके नाना जी का नाम बामदेव था,,।

जो ठाकुर जी के परम वैष्णो भक्त संत थे,,।

बचपन में नामदेव जी काठ के खिलौनों एवं मिट्टी के खिलौनों से खेला करते थे,,।

लेकिन इनका खेल...!

साधारण बच्चों की तरह नहीं था,,।

श्री नामदेव जी,,।

उन खिलौनों के साथ में...!

जिस प्रकार से कोई भक्त पूजा करता है,,।

भगवान को नहलाता है,,।

उनका ध्यान करता है...।

आसन देता है....!

और फिर उनका भोग लगाता है,,।

इसी प्रकार से यह खेला करते थे,,।

और अपने नाना जी को देखते थे,,।

कि नाना जी जो ठाकुर जी को दूध का भोग लगाते थे,,।

वही दूध संत नामदेव जी को प्रसाद रूप में मिलता था,,।

नामदेव जी अपने नाना की भक्ति देखकर,,।

बचपन से ही बार - बार नानाजी से कहते थे,,।

कि नाना जी भगवान की सेवा मुझे दे दीजिए,,।

नाना जी कहते थे ठीक है थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो दे दूंगा,,।

इस प्रकार से कुछ दिन बीता,,।

तो 1 दिन फिर नामदेव जी अपने नाना से अण गए,,।

और कहने लगे नानाजी,,।

अब तो मुझे ठाकुर जी की सेवा दे दीजिए,,।

तो नाना जी ने कहा,,।

नामदेव कुछ दिन बाद मैं 3 दिन के लिए किसी गांव में किसी काम से मुझे जाना है,,।

यदि तुम उन 3 दिनो मैं,,।

अच्छे से ठाकुर जी की सेवा की,,।

उनको दूध का भोग लगाना,,।

और जो बचे तो स्वयं का भोग लगाना,,।

यदि तुम अच्छे से 3 दिन सेवा कर लोगे,,।

तो आने पर ठाकुर जी से पूछ कर तुम्हें हमेशा के लिए सेवा दे दूंगा,,।

इस प्रकार से समय बीतता गया,,।

एक दिन वह समय आ गया जब नाना जी को उस गांव में जाना पड़ा,,।

नाना जी ने कहा कि नामदेव अच्छे से भगवान की सेवा करना और दूध का भोग लगाना दूध भगवान को पिला देना,,।

नामदेव जी,,।

2 किलो दूध गर्म करते करते जब एक कटोरा दूध रह गया,,।

तो उसमें मेवा मिश्री इत्यादि मिलाकर के,,।

तुलसी पत्र का भोग लगाया,,।

और भगवान का पर्दा हटाकर ठाकुर जी के सामने रख दिया कटोरा,,।

थोड़ी देर प्रभु से प्रार्थना करने लगेगी प्रभु आकर के भोग लगाइए,,।

दूध रखा हुआ है...!

प्रभु आकर दूध पीजिए।

इस प्रकार थोड़ी देर बाद जब...!

पर्दा हटा कर देखा तो दूध का कटोरा वैसे का वैसे ही रखा है,,।

अब तो नामदेव जी को बहुत पीड़ा हुई उन्होंने सोचा कि हो सकता है ।

कि मेरी श्रद्धा में कोई कमी रह गई हो भगवान दूध नहीं पी रहे हैं,,।

इस प्रकार से अगला दिन भी बीता ।

उसी प्रकार से दूर रखा कटोरा भर के भगवान फिर नहीं आए,,।

नामदेव जी बहुत ही दुखी हो गए ।

परंतु यह बात घर में किसी को बताया नहीं अपने मन के अंदर रखा,,।

मन में खिंचा तान चलती रही ।

कि कल नाना जी का 3 दिन पूरा हो जाएगा और यदि भगवान ने दूध नहीं पिया ।

तू नानाजी आकर पूछेंगे।

और फिर मुझे ठाकुर जी की सेवा नहीं मिल पाएगी,,।

इसी प्रकार से प्रातः काल तीसरा दिन हुआ तीसरे दिन नामदेव जी उठे भगवान का बढ़िया से नए लाया तू लाया श्रृंगार किया और फूल माला प्रभु को अर्पण करके बढ़िया दूध का कटोरा तैयार किया,, ।

और उसमें मिश्री और भगवान का तुलसी पत्र मिलाकर के सामने रखा,,।

भगवान से कुछ देर प्रार्थना की, देखा कि कटोरा वैसे का वैसे रखा है ।

भगवान अभी दूध पीने के लिए नहीं आए,, ।

तभी उन्होंने आत्म समर्पण करते हुए प्रभु के सामने...!

अपने हाथ में छूरी उठा ली,,।

और कहां है प्रभु यदि आज आप दूध नहीं पिएंगे तो मैं अपने प्राणों को स्वयं ही आत्म समर्पण कर दूंगा,,।

इतना कहकर ज्यौ ही,, ।

अपनी गर्दन पर छुरी का प्रहार करना चाहा तुरंत ही ठाकुर जी प्रकट हो गए,,।

ठाकुर जी ने छुरी को पकड़ लिया,,।

और नामदेव जी से कहा कि हम दूध पी रहे हैं आप ऐसा ना करें हम दूध पी रहे हैं,,।

इस प्रकार भगवान ने नामदेव जी के हाथों से दूध पिया,,।

अगले दिन नानाजी जब घर पर आए तो नाना जी ने सेवा के बारे में पूछा,,,,!

तब नामदेव जी ने दूध पीने की भगवान की लीला को बताया,, ।

उनको विश्वास नहीं हुआ उन्होंने कहा यह मेरे सामने भगवान दूध पिए तो मैं मान लूंगा,,।

अगले दिन प्रातः काल नामदेव जी ने इसी प्रकार से भगवान के सामने दूध रखा,, ।

परंतु भगवान दूध पीने के लिए नहीं आए,, ।

तब नामदेव जी ने भगवान से कहा कि कल मेरे सामने जब दूध पीकर गए तो आज क्यों नहीं आए मुझे झूठा बनाते हो,,।

इतना कहकर के हाथ में छुरी उठा लिया,, ।

और जैसे ही अपनी गर्दन पर चलाना चाहा तुरंत भगवान अपने दिव्य रूप में प्रकट होकर के मोर मुकुट बंसी वाले हाथ में बंसी लिए हुए प्रगट ही हो गए,, ।

देखते ही देखते भगवान दूध का सारा कटोरा पीने ही वाले थे,,।

तो नामदेव जी ने कहा प्रभु थोड़ा मेरे लिए भी छोड़ देना,, ।

क्योंकि बचपन से हम नाना जी के हाथ से आपका ही भोग लगाया दुग्ध पान करता आ रहा हूं।

नामदेव जी के द्वारा नाना बामदेव को भगवान के दर्शन हुए ।

और सभी भगवान के दर्शन करके कृतकृत्य हो गए,, ।

और उसी दिन से नाना जी ने नामदेव जी को भक्ति समर्पित कर दी,,।

अर्थात ठाकुर जी की सेवा दे दी।

इस प्रकार से संस्कार यदि आपके परिवार में या आपके नाना मामा नाना नानी या आप के संपर्क में जिसके पास में बचपन से ही भगवान की कृपा भगवत भक्ति प्राप्त हो जाती है।

उसका जीवन धन्य हो जाता है।

इस कथा के माध्यम से अपनी भक्ति को पुष्ट करें और आगे बढ़े जीवन के अपने अंतिम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करें।

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी 
हे नाथ नारायण वासुदेवा
हे नाथ नारायण वासुदेव

सलाह के सौ शब्दों से ज़्यादा अनुभव की एक ठोकर इंसान को मज़बूत बनाती है।

कुछ बातें समझाने पर नहीं बल्कि खुद पर बीत जाने पर ही समझ में आती है।
          
मनुष्य इस ब्रह्मांड के छोटे से अंतरिक्ष की एक सी पृथ्वी पर,छोटे से छोटा एक जीव है!

फिर भी उसे घमंड है कि वह सब जानता है।

सब कर सकता है,यही उसकी बड़ी मूर्खता है।
         
सूखी लकड़ी और बुद्धिहीन मनुष्य कभी नहीं झुकते बस इनको तोड़ना पड़ता है।


         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा ---।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा  एक अनजाने सत्य से परिचय---।


। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।

लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा  एक अनजाने सत्य से परिचय--- 

-हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है।



लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी ।

लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है ।

अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया -

भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा॥


अगस्त्य मुनि बोले- 

श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे ।

लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ 

उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥

ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥

 लक्ष्मण ने उसका वध किया इस लिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥

श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ 

फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं ।

कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥

अगस्त्य मुनि ने कहा- 

प्रभु इंद्रजीत को वरदान था ।

कि उसका वध वही कर सकता था।

जो चौदह वर्षों तक न सोया हो ।

जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥

श्रीराम बोले-  

परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल - फूल देता रहा ॥ 

मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था ।

बगल की कुटी में लक्ष्मण थे।

फिर सीता का मुख भी न देखा हो ।

और चौदह वर्षों तक सोए न हों ।

ऐसा कैसे संभव है ॥

अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ 

प्रभु से कुछ छुपा है भला! 

दरअसल.....!

सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु चाहते थे ।

कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर - घर में हो ॥ 

अगस्त्य मुनि ने कहा -  

क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥

लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-

सच कहिएगा॥

प्रभु ने पूछा- 

हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?

 फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ? 

और 14 साल तक सोए नहीं ?

 यह कैसे हुआ ?

लक्ष्मणजी ने बताया- 

भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥

आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था ।

क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नही।

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए -  

आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे ।

मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था ।

निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥

निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी ।

लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ 

आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था.

अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा! 

मैं जो फल - फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे ।

एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ 

आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- 

फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥

 सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ 

प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ 

फलों की गिनती हुई ।

सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥

 प्रभु ने कहा-

इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया - उन सात दिनों में फल आए ही नहीं ।


1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥  

2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥ 

3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे ।।

4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे ।।

5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे ।।

6. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी ।।

7. और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥

इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ 

विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था ।

बिना आहार किए जीने की विद्या ।

उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥

भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया । 

जीवन में तीन बातें बड़ी महत्वपूर्ण हैं



प्रतीक्षा - परीक्षा - समीक्षा। 

जीव भजन करे, साधना करे, सत्कर्म करे, पुरुषार्थ करे, कभी ना कभी फल जरूर मिलेगा। 

प्रभु कृपा जरूर करेंगे भले प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। 

दूसरी बात है परीक्षा - संसार की परीक्षा करते रहना। 

जितना जल्दी जान लोगे इससे मुक्त हो जाओगे। 

जानना ही मुक्त होने का मार्ग है। 

जगत में सर्वत्र बहुत विषाद है। 

प्रभु की और संत की शरणागति ही विषाद से प्रसाद की ओर ले जाती है। 

तीसरी बात है समीक्षा - अपनी निरंतर समीक्षा करते रहो। 

स्वयं का सुधार ही  उद्धार कर सकता है। 

भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक समृद्धि स्वयं के द्वारा ही प्राप्त होगी। 

एक ज्ञानी और महान व्यक्ति आत्मचिंतन करते- करते शिखर पर पहुँच जाता है। 

वहीं अज्ञानी स्वयं की बजाय दूसरों के गुण-दोष का 

चिंतन ही करते रहने के कारण उपलब्धियों से वंचित रह जाता है।

श्रीमद्भागवत प्रवचन युग धर्म और जीवन की चाणक्य नीति

  || युग - धर्म ||
 
पहाड़ की तराई में एक गांव है कीरतपुर। उस गांव में एक बुढ़िया रहती थी। 

उसका एक बेटा था। 

जिसका विवाह उसने थोड़ी दूर बसे दूसरे गांव धर्मपुर में कर दिया था। 

एक दिन बुढ़िया ने अपने बेटे रघुवीर से कहा, “बेटे, अब मुझसे घर का कामकाज नहीं होता। 

तू जाकर बहू को लिवा ला। 

मुझे बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा।” 

रघुवीर मां की बात सुन अपनी बहू को लिवाने ससुराल के लिए चल पड़ा। 

उसकी ससुराल के बीच एक घना जंगल पड़ता था।

जब वह जंगल के बीच से जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते के किनारे पेड़ के गिरे पत्तों-फूलों आदि में आग लगी हुई है और पास ही पत्तों की जलती आग के बीच एक बिल है जिसमें से सांप बार-बार अपना सिर निकाल रहा है, पर आग की गरमी से निकल नहीं पा रहा था। 

बुढिया के बेटे को आते देख सांप जोर से चिल्लाकर बोला,

 “ऐ भाई! मझे इस आग से बाहर निकालो, तुम्हारा बड़ा एहसान मानूंगा।” 

रघुवीर ने कहा. “तुम तो सांप हो। 

तुम्हारा क्या भरोसा, तुम निकलने के बाद मुझे काट सकते हो।*

सांप ने कहा, 

“कैसी बातें करते हो, तुम मेरी जान बचाओगे और मैं तुम्हें काट लूंगा? 

ऐसी बात सोची भी नहीं जा सकती।” 

सांप के बार-बार अनुनय करने पर लड़के को दया आ गई और उसने लाठी की मदद से सांप को आग से निकाल दिया। 

सांप जैसे ही आग से बाहर हुआ, उसने लड़के से कहा, 

“अब मैं तुम्हें काटूंगा।”

रघुवीर हक्का-बक्का रह गया, थरथराते हुए उसने कहा, 

“लेकिन तुमने तो न काटने का पक्का वायदा किया था।” 

सांप ने हंसते हुए कहा, 

“अरे मूर्ख! यह-

कलियुग है। 

कहने और करने में जमीन आसमान का अंतर है। 

यहां भलाई का बदला बुराई से है। 

यहां युग धर्म है। 

मैं तुम्हें काट कर युग - धर्म जरूर निबाहूंगा।” 

लड़के ने कहा,

 “यदि तुम्हें काटना ही है तो काट लो, पर मेरी तसल्ली तो करवा दो कि कलियुग का यही धर्म है।”

सांप ने लड़के की बात मान ली। 

लड़का सांप के साथ जंगल चरती हुई एक गाय के पास गया और गाय को पूरी घटना सुनाकर बोला,

 “गाय माता ! 

अब तुम्हीं न्याय करो!” गाय बोली, "

सांप ठीक कह रहा है। 

मुझे ही देखो, घास खाकर दूध देती हूं। 

खेती के लिए बछड़े बैल देती हूं लेकिन मेरे बूढ़े होने पर यह आदमी मुझे कसाई के हवाले कर देता है।

यही इस युग का न्याय है।

” सांप ने कहा, "

अब तो तेरी तसल्ली हो गई?

” लड़का गिड़गिड़ाया, “

किसी एक से और बात कर लेने दो। 

अगर उसने भी यही कहा तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।

” लड़के ने सामने एक पेड़ को अपनी सारी कहानी दुहराई तो पेड़ ने कहा, “

सांप ठीक कह रहा है। 

मैं आदमी को शीतल छाया और मीठे फल देता हूं..!

पर बदले में आदमी मुझे काटता है...!

आग में जलाता है। 

कलियुग का यही धर्म है।

” यह सुनकर लड़के ने सांप से कहा..!“

मैं तुम्हारे काटने का विरोध नहीं करूंगा।

लेकिन मेरी एक अंतिम इच्छा है..!

जब से मेरा विवाह हुआ है मैंने अपनी पत्नी का मुंह ठीक से नहीं देखा है। 

तुम मुझे एक मौका दे दो। 

मैं अपनी पत्नी को देखकर वापस आ जाऊंगा तब तुम मुझे काट लेना।

” सांप ने कहा, “मंजूर है...!

पर पत्नी से कोई बात न करना और 3 घण्टे के भीतर लौट आना।

” लड़का अपनी ससुराल पहुंचा। 

कुछ कदम दूर से ही उसने देखा...!

उसकी पत्नी दरवाजा साफ कर रही है। 

उसे देखकर उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।

उसकी पत्नी उसे इस तरह देख अवाक रह गई।

वह कुछ पूछ पाती इसके पहले ही लड़का वापस चल दिया।

पत्नी ने सोचा जरूर कोई विपत्ति आई है। 

वह भी पीछे - पीछे चलकर सांप तक पहुंच गई।

*सांप ने फुफकारते हुए कहा...!

“मैंने तो तुम्हें पत्नी से बात करने से मना किया था। 

इसको लेकर क्यों आए हो?” 

इस पर उसकी पत्नी ने कहा...!

“इन्होंने मुझसे बात नहीं की। 

ये बिना कुछ बोले वापस चल दिए तो मैं इनके पीछे - पीछे चली आई हूं।

” लड़के ने कहा...!

“अब मैं तैयार हूं। 

युग धर्म का निर्वाह करो।” 

सांप लड़के को काटने को तैयार हुआ तभी उसकी पत्नी ने कहा...!

“थोड़ा रुक जाओ...!

तुम इन्हें काटने जा रहे हो। 

सिर्फ इतना बता दो, इनके बाद मैं अपना गुजारा कैसे करूंगी!

” सांप ने कहा...!

 “उसका इंतजाम है। 

इस बिल के सात फेरे करके इसे खोदोगी तो तुम्हें सोने से भरे हुए सात घड़े मिलेंगे, तुम्हारी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।” 

लड़के की पत्नी ने कहा...!

“मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास करूं। 

मेरी तसल्ली के लिए सात फेरे कर बिल खोद लेने दीजिए।” 

सांप लड़की की बात मान गया। 

लड़के की पत्नी बिल के फेरे लेने लगी। 

सातवां फेरा पूरा होते-होते उसने अपने पति के हाथ से लाठी छीनकर उसे सांप के सिर पर जोर से दे मारी।

सांप छटपटाने लगा। 

वह लड़की से बोला...!

तू तो बड़ी धोखेबाज निकली।

तब उसकी पत्नी ने कहा...!

“क्षमा करना नाग देवता। 

मैं तो आप ही की बात रख रही हूं। 

आपने कहा कि यहां भलाई का बदला बुराई है। 

हमें आपने इतना बड़ा खजाना बताया।

लेकिन हमें भी तो कलियुग का धर्म निबाहना पड़ा और आपके प्राण लेने पड़े।” 

सांप का निर्जीव शरीर एक ओर धराशायी हो गया। 

लड़का और उसकी पत्नी खजाना लेकर अपने गांव खुशी-खुशी लौट आए।      

बहुत बड़ी दौलत के मालिक होने के बावजूद भी यदि मन में कुछ पाने की चाह बाकी है ।

 तो समझ लेना वो अभी दरिद्र ही है ।

और कुछ पास में नहीं फिर भी जो अपनी मस्ती में झूम रहा है ।

उससे बढ़कर भी कोई दूसरा करोड़ पति नहीं हो सकता है।

सुदामा को गले लगाने के लिए आतुर श्री द्वारिकाधीश इस लिए भागकर नहीं गए ।

 कि सुदामा के पास कुछ नहीं है।

अपितु इस लिए गए कि सुदामा के मन में कुछ भी पाने की इच्छा अब शेष नहीं रह गयी थी।

इस लिए ही संतों ने कहा है कि जो कुछ नहीं माँगता उसको भगवान स्वयं को दे देते हैं। 

द्वारिकापुरी में आज सुदामा राजसिंहासन पर विराजमान हैं।

और कृष्ण समेत समस्त पटरानियाँ चरणों में बैठकर उनकी चरण सेवा कर रही हैं।

सुदामा अपने प्रभाव के कारण नहीं पूजे जा रहे हैं । 

अपितु अपने स्वभाव और कुछ भी न चाहने के भाव के कारण पूजे जा रहे हैं।

सुदामा की कुछ भी न पाने की इच्छा ने उन्हें द्वारिकापुरी का राजसिंहासन प्रदान कर दिया। 

मानो कि भगवान ये कहना चाह रहे हों । 

कि जिसकी अब और कोई इच्छा बाकी नहीं रही ।

वो मेरे ही समान मेरे बराबर में बैठने का अधिकारी बन जाता है !

श्रीमद भगवद्गीता के अनुसार चाणक्य नीति की तीन बाते।

तीन चीजे सोच समझ कर देना।

1जवाब,

2- सलाह 

3- उधार,

तीन चीजे सब को प्यारी होती है !

1- दौलत,

2- औरत,

3- औलाद,

तीन चीजे हमेशा दर्द देती है.!

1- धोखा,

2- गरीबी,

3- यादें,

तीन चीजे कभी मत करो!

1- घमंड,

2- अपमान,  

3-उम्मीद,

तीन चीजे चुराई नही जा सकती !

1- चरित्र 

2- ज्ञान,

3- विद्या,

तीन चीजे छोटी मत समझो !

1- कर्ज,

2-फर्ज,

3-मर्ज,

तीन चीजों को हमेशा महत्व दे!

1- परिवार 

2-रिश्तेदार, 

3-दोस्त

जय श्री कृष्ण !!
जय श्री राम.
🙏🙏🙏

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...