https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: ઑગસ્ટ 2020

●●ऊँ●●★★ *अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त :-*====================

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

●●ऊँ●●

★★ *अनन्त चतुर्दशी पूजा मुहूर्त :-*

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◆ *आइए जानते हैं कि 2020 में अनंत चतुर्दशी कब है व अनंत चतुर्दशी 2020 की तारीख व मुहूर्त। अनंत चतुर्दशी व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है, इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के कई राज्यों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान कई जगहों पर धार्मिक झांकियॉं निकाली जाती है।*

◆◆ *अनंत चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम :-*

◆ *01.  यह व्रत भाद्रपद मासमें शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके लिए चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में व्याप्त होनी चाहिए।*

◆ *02.  यदि चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।*

◆◆ *अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा विधि :-*

*अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है :-*

◆ *01.  इस दिन प्रातःकाल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश स्थापना करें।*

◆ *02.  कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।*

◆ *03.  इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें।*

◆ *04.  अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें।*

    *अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।*

   *अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।*

◆ *05.  पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।*

◆◆ *अनंत चतुर्दशी का महत्व :-*

*पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह भगवान विष्णु का दिन माना जाता है।*

 *अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन है। इस दिन भगवान विष्णु की लोक कथाएं सुनी जाती है।*
◆◆ *अनंत चतुर्दशी की कथा :-*

*महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।*

*इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।*
************[ऊँ विष्णुवे नमः]
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
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जय द्वारकाधीश....
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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐 🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐🕉 *सागर के मोती*

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🕉 *सागर के मोती*

भगवदभजन में परतंत्रता नहीं होती-- यह सिद्धांत है। सांसारिक प्रतिकूलता भजन में बाधक नहीं होती। प्रतिकूलता में मनुष्य संसार से ऊंचा उठता है। भगवान ने भागवत में कहा है कि मैं कृपा करता हूं तो धन हरण कर लेता हूं अर्थात प्रतिकूलता भेजता हूं। भगवान धन नहीं हटाते प्रत्युत परमात्मा प्राप्ति की बाधा हटाते हैं। अपने सुख दुख का कारण दूसरे को मानना ही बाधा है सुख या दुख को देने वाला कोई दूसरा नहीं है-- *सुखस्य दुखस्य न कोऽपि दाता* मनुष्य वर्तमान के कर्मों से बंधता है पूर्व के कर्मों से नहीं। पूर्व कर्मों के अनुसार तो परिस्थिति आती है परिस्थिति दुख नहीं देती प्रत्युत अनुकूलता की इच्छा दुख देती है। 
भजन में सभी स्वतंत्र हैं परंतु मनुष्य अनुकूलता में न तो भजन करता है न पुण्य। अनुकूलता हो या प्रतिकूलता, स्वार्थ और अभिमान का त्याग करके दूसरों का हित करें। क्रोध करने से भी किसी का हित होता है तो वैसा करो। हमारा ध्येय हित का होना चाहिए। *सभी प्रश्नों का उत्तर शास्त्र में है हम जाने चाहे ना जाने*। प्रतिकूलता में अपना विवेक काम ना करें तो भगवान को पुकारो।

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।। सुंदर कहानी ।।🤏 भगवान से रिश्ता 👏🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️

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जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

🤏 भगवान से रिश्ता 👏
🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️🙇‍♂️

एक बार मथुरा के निकट एक गाँव में एक छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शन को जाते थे। 

जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहे थे। उस समय वाहन बहुत कम थे। उनको दर्शन को जाते देख उस छोटी लड़की ने कहा “पिताजी मुझे भी अपने साथ ठाकुर जी के दर्शन के लिए ले चलो” पिताजी ने कहा बेटा अभी आप छोटे हो इतना चल नहीं पाओगे, बड़ी हो जाओ, तब तुम्हें साथ में ले चलेंगे। 

कुछ समय बीता जब वो 7 साल की हुई तो फिर घरवालों का किसी कारणवश वृन्दावन जाना हुआ। फिर उस बच्ची ने कहा “पिताजी अब मुझे भी साथ ले चलो ठाकुर जी के दर्शन के लिए।” लेकिन किसी कारणवश वो उसको न ले जा सके। बच्ची के मन में ठाकुर जी के प्रति बहुत प्रगाढ़ प्रेम था। वह बस उनका मन से चिंतन करती रहती थी और दुखी भी होती थी की ठाकुर जी के दर्शन को न जा सकी आज तक। गाँव में उसके सभी सहपाठी प्रभु जी के दर्शन कर चुके थे। जब वो सब ठाकुर जी के मंदिर और उनके रूप का वर्णन करते तो इस बच्ची के मन में दर्शन की ललक और भी बढ़ जाती।

समय अपने पंख लगा के बढ़ता गया। कही अवसर मिले जाने के पर शायद उसके भाग्य में ठाकुर जी के दर्शन नहीं लिखे थे। जब वो 17 साल की हुई तो उसके पिताजी कोे उसके विवाह की चिंता हो गयी। उसका विवाह तय हो गया सयोंग कहो य उसकी ठाकुर जी के प्रति प्रेम उसका विवाह वृन्दावन के सबसे पास वाले गाँव में हो गया।

वह लड़की बहुत प्रसन्न थी, कि अब तो उसको भी ठाकुर जी के दर्शन होंगे। जब विवाह संपन्न हुआ तो वह अपने ससुराल गयी। फिर रस्म निभाने के लिए वापस अपने घर आई।

एक दो दिन बाद वो और उसके पति जब वापस अपने घर जा रहे तो बीच में यमुना नदी पर उसके पति बोला
“तुम कुछ देर इधर बैठो, मैं यमुना में स्नान करके आता हूँ।”

उस लड़की का चिंतन अब ठाकुरजी की तरफ चला गया और सोचने लगी की कब ठाकुर जी के दर्शन होंगे। उस लड़की ने लंबा घूँघट निकाल रखा है, क्योकि गाँव है, ससुराल है, और वही बैठ गई। फिर वो मन ही मन विचार करने लगी ‘कि देखो!
ठाकुरजी की कितनी कृपा है। उन्हें मैंने बचपन से भजा और दर्शन के लिए लालायित थी, उनकी कृपा से अब मेरा विवाह श्रीधाम वृंदावन में ही हो गया पर मैं इतने सालों से ठाकुरजी को मानती हूँ पर अब तक उनसे कोई भी रिश्ता नहीं जोड़ा ?” फिर सोचने लगी “ठाकुरजी की उम्र क्या हो सकती है ? “मेरे हिसाब से लगभग 17 वर्ष के ही होंगे, मेरे पति 21 वर्ष के है, उनसे थोड़े ही छोटे होंगे, इसलिए वो मेरे पति के छोटे भाई की तरह हुए तो मेरे देवर की तरह, लो आज से ठाकुरजी मेरे देवर होंगे।” अब तो ठाकुरजी से नया सम्बन्ध जोड़कर उसको बहुत प्रसन्नता हुई और मन ही मन ठाकुरजी से कहने लगी “ठाकुर जी ! आज से मै आपकी भाभी और आप मेरे देवर हो गए, पर वो समय कब आएगा जब आप मुझे भाभी – भाभी कह कर पुकारोगे ?”

जब वो किशोरी ये सब सोच ही रही थी तभी एक किशोरवस्था का सांवला सा लड़का उधर आ गया और कहने लगा “भाभी-भाभी” लडकी अचानक अपने भाव से बाहर आई और सोचने लगी “वृंदावन में तो मैं नई हूँ ये भाभी कहकर कौन बुला रहा है ?” वो नई थी इसलिए घूँघट उठाकर भी नहीं देखा कि गाँव के किसी बड़े-बूढ़े ने देख लिया तो बड़ी बदनामी होगी । जब वह बालक बार – बार कहता पर वह उत्तर ही न देती। बालक उसके और पास आया और कहा “ भाभी! नेक अपना चेहरा तो देखाय दे”। अब वह सोचने लगी “ अरे ये बालक तो बहुत जिद कर रहा है।” इसलिए उसने और कस के अपना घूँघट पकड़कर बैठ गई कि कही घूँघट उठाकर देख न ले।

“भाभी आपने ये पर्दा क्यों कर रखा हैं हम तो आपके देवर है।

उस लड़की ने उसको एक नज़र देखा फिर कहा “नहीं हम आपको नहीं जानते” और घूँघट ओढ़ लिया।
“नहीं - नहीं हम आपको जानते हैं आप उस गाँव के हो न बस कुछ ही दूर में हमारा घर है। भाभी अपना चेहरा तो दिखाओ।

“जब कह दिया न हम आपको नहीं जानते, इनको पता चल गया तो बहुत मार पड़ेगी”

“भाभी आप तो नाराज़ हो रही हो, देखो हम आपके इतने प्यारे देवर है आपसे मिलने के लिए इतनी दूर तक आ गए और आप हो कि बात भी नहीं कर रहे हो। क्यों आप हमसे मिलना नहीं चाहते थे।

और इतना कहते ही उस लड़के ने घूंघट खींच लिया और चेहरा देखा और भाग गया। थोड़ी देर में उसका पति भी आ गया, उसने अपने पति को सब बात कही।

पति बोला – “चिंता मत करो, वृंदावन बहुत बड़ा थोड़े ही है, कभी भी किसी गली में लड़का मिल गया तो हड्डी – पसली एक कर दूँगा। फिर कभी भी ऐसा नहीं कर सकेगा। तुम्हें जब भी और जहाँ भी दिखे, मुझे जरुर बताना।” फिर दोनों घर चले गए।

कुछ दिन बाद उसकी सासु माँ ने अपने बेटे से कहा – “बेटा ! देख तेरा विवाह हो गया अब बहू मायके से भी आ गई, पर तुम दोनों अभी तक बाँके बिहारीजी के दर्शन के लिए नहीं गए कल तुम जाकर बहू को ठाकुरजी के दर्शन कराकर लाना।” अगले दिन दोनों पति और पत्नी ठाकुर जी के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं। मंदिर में बहुत भीड़ थी, लड़का कहने लगा – “ देखो ! तुम स्त्रियों के साथ आगे जाकर दर्शन करो, में आता हूँ”। जब वो आगे गई पर घूंघट नहीं उठाती उसको डर लगता कोई बडा-बुढा देखेगा तो कहेगा की नई बहू घूँघट के बिना ही घूम रही है। बहूत देर हो गई तो पीछे से पति ने आकर कहा “अरी बाबली! ठाकुरजी सामने है, घूँघट काहे को नाय खोले, घूँघट नाय खोलेगी तो प्रभुजी के दर्शन कैसे करेगी ?”

अब उसने अपना घूँघट उठाया और जो बाँके बिहारी जी की ओर देखा तो बाँके बिहारी जी कि जगह वो ही बालक मुस्कुराता हुआ दिखा तो वह चिल्लाने लगी “सुनिये ओजी जल्दी आओ ! जल्दी आओ !”

पति जल्दी से भागा – भागा आया और बोला “क्या हुआ ?” लड़की बोली “ उस दिन जो मुझे भाभी-भाभी कह कर भागा था न वह लड़का मिल गया”।
पति ने कहा ‘कहाँ है? अभी उसे देखता हूँ बता तो जरा”। उसने ठाकुर जी की ओर इशारा करके बोली – ‘ये रहा, आपके सामने ही तो है’। उसके पति ने जब देखा तो अवाक ही रह गया और वही मंदिर में ही अपनी पत्नी के चरणों में गिर पड़ा और बोला “तुम बहुत ही धन्य हो वास्तव में तुम्हारे हृदय में सच्चाभाव ठाकुरजी के प्रति है। हम इतने वर्षों से वृंदावन में है पर आज तक हमें उनके दर्शन नहीं हुए और तेरा भाव इतना उच्च है कि ठाकुर जी ने तुझे दर्शन दे दिए।”

ठाकुर जी से सच्ची प्रेम से जो भी रिश्ता करो तो ठाकुर जी उसे जरूर निभाते हैं, जैसे इस कहानी में ठाकुरजी ने देवर का सबंध निभाया।

🌺🍀जय श्री कृष्ण🍀🌺
🙏जय द्वारकाधीश वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।🙏॥ भगवद चिन्तन ॥ 🙏 🌺 कृष्ण तत्व🌺

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।

🙏॥ भगवद चिन्तन ॥ 🙏
              
            🌺 कृष्ण तत्व🌺

🌹भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला, प्रत्येक कर्म अपने आप में कुछ विशेष अर्थ, कुछ विशेष संदेश लिये हैं। सात वर्ष के कन्हैया ने सात दिनों तक सात कोसीय गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठाया और नाम पड़ा गिरिधर और गिरिधारी।

🌹          आज इस लीला के रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास करते हैं। मानव जीवन कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा पड़ा है। कन्हैया जितने छोटे हैं, पर्वत उतना ही विशाल। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि जीव जितना दुर्बल अपने आप को समझने लगता है, उसकी समस्या भी उसी अनुपात में अपना रूप धारण कर लेती है।
🌹         इस स्थिति में उसके  पास दो विकल्प होते हैं। या तो जीवन की चुनौतियों को स्वीकार किया जाए या घुटने टेककर उस समस्या को अपने ऊपर हावी होने दिया जाए। दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर छोटे से कन्हैया ने बड़ी ही निर्भीकता और सुगमता के साथ उस विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया।

 🌹        जीवन की समस्याएं भले ही पहाड़ जितनी विशाल हों लेकिन अपने आत्मविश्वास को डिगाए बिना, मजबूत इच्छाशक्ति के साथ उसका सामना किया जाए तो हम पायेंगे कि बड़े ही आसानी से उसका निराकरण भी हो गया। समस्याओं के आगे भी डिगना नहीं, टिकना सीखो।
         🙏🏻🙏🏻🕉🕉🙏🏻🙏🏻
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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*जय सत्य सनातन**अनमोल ओर दुर्लभ जीवन को कैसे सफल बनायें:-*➖➖➖➖➖➖➖➖➖

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*जय सत्य सनातन*

*अनमोल ओर दुर्लभ जीवन को कैसे सफल बनायें:-*

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*तरकारी (सब्जी) काटने की उचित पद्धति-२*

*♦️२. तरकारी काटते समय ध्यान रखने योग्य मुद्दे*

*अ. डंठल*

तरकारी काटते समय उसका डंठल निकालने पर, उसमें घनीभूत और तमोगुण वर्धन हेतु पूरक सिद्ध होनेवाली सूक्ष्म-वायु वायुमंडल में उत्सर्जित होती है ।

*♦️आ. तरकारी के संदर्भ में दिशा*

तरकारी काटते समय सदैव ऊपर से नीचे की दिशा में काटें । 
इससे तरकारी काटने के नाद से उत्पन्न जडत्वदर्शक अधोगामी तरंगें भूमि में तत्काल विसर्जित हो पाती हैं ।

*इ. शाक*

शाक बहुत महीन (बारीक) न काटकर साधारणतः मध्यम आकार में काटें, जिससे पत्तों से रस बाहर न आए । 
और काटने के बाद धोना नहीं चाहिए, काटने के  पहले ही ठीक से धोना चाहिए

*♦️ई. तरकारी के टुकडों का आकार*

तरकारी को अनुपातिक आकार में अर्थात बहुत बडे अथवा बहुत छोटे भी नहीं, ऐसे मध्यम आकार के टुकडे करें । यदि भिंडी हो, तो एक से डेढ इंच के टुकडे करें । 

लौकी जैसी बडे आकार की तरकारी हो, तो 2से 3 इंच के टुकडे करें ।

2-3 इंच के टुकडे खाते समय उन्हें तोडना ही पडेगा । ऐसे में उन्हें पहले से ही छोटे क्यों न काटें ?

सामान्य आकार की तरकारी के टुकडे एक से डेढ इंच के हों । बडे आकार की तरकारी की अधिकतम सीमा 2-3 इंच बताई है । 

टुकडे एक-डेढ इंचसे छोटे न हों; क्योंकि उसमें विद्यमान सूक्ष्मजन्य प्रभावकारी पोषकता दर्शानेवाली रसबीजरूप रिक्तियों का ह्रास हो सकता है ।

 (तरकारी की सूक्ष्म रिक्तियां रसयुक्त होती हैं । अनुपातिक आकार में तरकारी काटने से जीव को भोजन ग्रहण करते समय इस पोषक रस का लाभ होता है ।)

*♦️उ. रूप*

*गोलाकार अथवा खडे और सीधे टुकडे :*

 इस स्वरूप में तरकारी काटने की प्रक्रिया से रज-तमात्मक स्पंदनों की निर्मिति रुक जाती है । 

*कलात्मक स्वरूप :* तरकारी को कलात्मक पद्धति से तिरछे अथवा पतले गोल टुकडों में न काटें; क्योंकि इन तिरछे टुकडों से कष्टदायक स्पंदनों की निर्मिति होती है । उनसे निकलनेवाले सूक्ष्म घर्षणात्मक नाद की ओर वायुमंडल की अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होती हैं ।
*ऊ. यंत्र से तरकारी काटने से क्या हानि होती है ?*

यंत्र से काटी गई तरकारी का चेतनाहीन हो जाती है । विद्युतवेग से चलनेवाले यंत्र वेग के बल पर प्रचंड मात्रा में रज-तमात्मक ऊर्जा का निर्माण करते हैं और यह ऊर्जा ही उस विशिष्ट घटक में विद्यमान जीवसत्त्वरूप कणों को नष्ट करती है । यंत्र अल्प अवधि में अत्युच्च वेग धारण कर तरकारी के टुकडे करता है; इसलिए इस वेग की घर्षणात्मक तरंगों के सूक्ष्म आघातदायी स्पर्श से तरकारी में विद्यमान सूक्ष्म-रस रिक्तियों का उसी स्थान पर विघटन हो जाता है । इसलिए यंत्र से काटी गई तरकारी चेतनाहीन, अर्थात किसी शव समान दिखता है; क्योंकि तरकारी काटने के उपरांत भी उससे बहुत समयतक रज-तमात्मक तेजदायी विघटनात्मक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । इसलिए ऐसी तरकारी गैस के चूल्हेपर पकाने पर इस उत्सर्जित (उत्सारण करनेवाला) ऊर्जा को (उत्सर्जन प्रक्रिया को) और गति मिलती है और कालांतर में यह विघटनात्मक ऊर्जा अन्न पकते हुए ही उसमें घनीभूत होती है । इसलिए हमारे सर्व ओर उत्सारक पीडादायी स्पंदनों के सूक्ष्म वायुमंडल का निर्माण करती है ।


*संदर्भ ग्रंथ : सनातन का ग्रंथ, ‘रसोईके आचारोंका* अध्यात्मशास्त्र’

*👉आगे...दाहिने हाथसे भोजन क्यों करना चाहिए ?*

*🤝बने रहिए रोज जीवन के कुछ अनमोल सूत्र, सनातन के अनमोल वचन आप तक समिति द्वारा पहुँचाये जाएंगे*
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सुंदर कहानी ।।🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌺संकल्प शक्ति 🌺🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

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🌹🌺संकल्प शक्ति 🌺🌹

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एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ किसी पहाड़ी इलाके में ठहरे थे। शाम के समय वह अपने एक शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले। दोनों प्रकृति के मोहक दृश्य का आनंद ले रहे थे। 

विशाल और मजबूत चट्टानों को देख शिष्य के भीतर उत्सुकता जागी। उसने पूछा- 'इन चट्टानों पर तो किसी का शासन नहीं होगा, क्योंकि ये अटल, अविचल और कठोर हैं।' 

शिष्य की बात सुनकर बुद्ध बोले- 'नहीं, इन शक्तिशाली चट्टानों पर भी किसी का शासन चलता है। लोहे के प्रहार से इन चट्टानों के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।' 

इस पर शिष्य बोला- 'तब तो लोहा सर्वशक्तिशाली हुआ।' 

बुद्ध मुस्कुराए और बोले- 'नहीं, अग्नि अपने ताप से लोहे का रूप परिवर्तित कर सकती है।' 

उन्हें धैर्यपूर्वक सुन रहे शिष्य ने कहा- 'मतलब, अग्नि सबसे ज्यादा शक्तिवान है।' 

बुद्ध बोले, 'नहीं। अग्नि की उष्णता को जल शीतलता में बदल देता है तथा अग्नि को शांत कर देता है।' 
शिष्य ने फिर प्रश्न किया- 'आखिर जल पर किसका शासन है?' 

बुद्ध ने उत्तर दिया- 'वायु का वेग जल की दिशा भी बदल देता है।' 

शिष्य कुछ कहता, उससे पहले ही बुद्ध ने कहा- 'अब तुम कहोगे कि पवन सबसे शक्तिशाली हुआ। नहीं। वायु सबसे शक्तिशाली नहीं है। सबसे शक्तिशाली है मनुष्य की संकल्प शक्ति, क्योंकि इसी से पृथ्वी, जल, वायु, और अग्नि को नियंत्रित किया जा सकता है। अपनी संकल्प शक्ति से ही अपने भीतर व्याप्त कठोरता, उष्णता और शीतलता के आगमन को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए संकल्प शक्ति ही सर्वशक्तिशाली है। 
 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🌺☘️जय श्री सूर्यदेव☘️🌺
🙏जय द्वारकाधीश वंदन अभिनंदन मित्रों👏
🌅🌻शुभ औऱ मंगलमय हो जय श्री कृष्ण🌻🌞
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// सुंदर कहानी //जय श्री राम🙏🙏🙏जय श्री कृष्णघर में जरूर लगाएं तुलसी का पौधा, जानें महत्व

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जय द्वारकाधीश

// सुंदर कहानी //

जय श्री राम🙏🙏🙏जय श्री कृष्ण

घर में जरूर लगाएं तुलसी का पौधा, जानें महत्व और नियम

तुलसी के पौधे का महत्व धर्मशास्त्रों में भी बखूबी बताया गचया है. तुलसी के पौधे को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे से कई आध्यात्मिक बातें जुड़ी हैं. शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को तुसली अत्यधिक प्रिय है. तुलसी के पत्तों के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है. क्योंकि भगवान विष्णु का प्रसाद बिना तुलसी दल के पूर्ण नहीं होता है. तुलसी की प्रतिदिन का पूजा करना और पौधे में जल अर्पित करना हमारी प्राचीन परंपरा है. मान्यता है कि जिस घर में प्रतिदिन तुलसी की पूजा होती है, वहां सुख-समृद्धि, सौभाग्य बना रहता है. धन की कभी कोई कमी महसूस नहीं होती.

- जिस घर में तुलसी का पौधा होता है उस घर की कलह और अशांति दूर हो जाती है. घर-परिवार पर मां लक्ष्मी जी की विशेष कृपा बनी रहती है.

- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुलसी के पत्तों के सेवन से भी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है. जो व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी का सेवन करता है, उसका शरीर अनेक चंद्रायण व्रतों के फल के समान पवित्रता प्राप्त कर लेता है.

- तुलसी के पत्ते पानी में डालकर स्नान करना तीर्थों में स्नान कर पवित्र होने जैसा है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति ऐसा करता है वह सभी यज्ञों में बैठने का अधिकारी होता है.

- भगवान विष्णु का भोग तुलसी के बिना अधूरा माना जाता है. इसका कारण यह बताया जाता है कि तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं.

- कार्तिक महीने में तुलसी जी और शालीग्राम का विवाह किया जाता है. कार्तिक माह में तुलसी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

- शास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी पूजन और उसके पत्तों को तोड़ने के लिए नियमों का पालन करना अति आवश्यक है.

तुलसी पूजन के नियम

- तुलसी का पौधा हमेशा घर के आंगन में लगाना चाहिए. आज के दौर में में जगह का अभाव होने की वजह तुलसी का पौधा बालकनी में लगा सकते है.

- रोज सुबह स्वच्छ होकर तुलसी के पौधे में जल दें और एवं उसकी परिक्रमा करें.

- सांय काल में तुलसी के पौधे के नीचे घी का दीपक जलाएं, शुभ होता है.

- रविवार के दिन तुलसी के पौधे में दीपक नहीं जलाना चाहिए.

- भगवान गणेश, मां दुर्गा और भगवान शिव को तुलसी न चढ़ाएं.

- आप कभी भी तुलसी का पौधा लगा सकते हैं लेकिन कार्तिक माह में तुलसी लगाना सबसे उत्तम होता है.

- तुलसी ऐसी जगह पर लगाएं जहां पूरी तरह से स्वच्छता हो.

- तुलसी के पौधे को कांटेदार पौधों के साथ न रखें
 
तुलसी की पत्तियां तोड़ने के भी कुछ विशेष नियम हैं-

- तुलसी की पत्तियों को सदैव सुबह के समय तोड़ना चाहिए. अगर आपको तुलसी का उपयोग करना है तो सुबह के समय ही पत्ते तोड़ कर रख लें, क्योंकि तुलसी के पत्ते कभी बासी नहीं होते हैं.
- बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है.

- तुलसी की पत्तियां तोड़ते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें.

- तुलसी के पौधे को कभी गंदे हाथों से न छूएं.

- तुलसी की पत्तियां तोड़ने से पहले उसे प्रणाम करेना चाहिए और इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते.

- बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है.

- रविवार, चंद्रग्रहण और एकादशी के दिन तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए.
जय श्री कृष्ण...!!!
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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।। सुंदर छंद ।।जय श्री कृष्ण...!!!

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जय द्वारकाधीश

।।  सुंदर छंद ।।

जय श्री कृष्ण...!!!

हरि नाम मुख सजे, 
बादल गगन सजे, 
रवि संग नभ सजे, 
*सजी अरुणाई रे!*

झड़ी सजे लगातार,पंछी आदि भूख मरे, 
चोंच सजे अन्न-कण, 
*पड़े जो दिखाई रे!*
भाग दौड़ जीवन ये, थम सा  गया है अब, 
परिवार बीच सजे, 
*खुशियाँ समाई रे!*

छलक प्रभात रंग,भोर सजे वत्स संग,
देशवासी धरा सजे, 
*सुनें रघुराई रे!*

जय श्री कृष्ण!!

प्रभास पाटण प्राची से सूरज उगा , गगन हो गया लाल ,
 रजनी का तम दूर है , 
मन में नहीं मलाल
जय मुरलीधर...!!!!
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*_संक्षिप्त गीता : सत्रहवां अध्याय_* 〰️〰️〰️〰️〰️

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जय द्वारकाधीश

☀️🔱🔆⚜️💢🐚✨🌟

*_संक्षिप्त  गीता  : सत्रहवां  अध्याय_* 

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*सत्रहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि सत, रज और तम जिसमें इन तीन गुणों का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है।*
*यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब तीन प्रकार की श्रद्धा से संचालित होते हैं। यहाँ तक कि आहार भी तीन प्रकार का है। उनके भेद और लक्षण गीता ने यहाँ बताए हैं। जिस प्रकार यज्ञ से, तप से और दान से जो स्थिति प्राप्त होती है, उसे भी "सत्‌" ही कहा जाता है और उस परमात्मा की प्रसन्नता लिए जो भी कर्म किया जाता है वह भी निश्चित रूप से "सत्‌" ही कहा जाता है। बिना श्रद्धा के यज्ञ, दान और तप के रूप में जो कुछ भी सम्पन्न किया जाता है, वह सभी "असत्‌" कहा जाता है, इसलिए वह न तो इस जन्म में लाभदायक होता है और न ही अगले जन्म में लाभदायक होता है।*

     〰️ *अगला  अध्याय  कल....*〰️

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।। श्री रामायण के प्रवचन ।।*मेघनाथ को बाबा तुलसीदास जी ने सम्मान देते हुए

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।। श्री रामायण के प्रवचन ।।

*मेघनाथ को बाबा तुलसीदास जी ने सम्मान देते हुए उसको "अतुलित योद्धा" कहके सम्बोधित किया है। मेघनाथ बहुत तापशाली, बलशाली व ज्ञानवान है।*
*उसकी पत्नी सुलोचना शेषनाग जी की पुत्री है। वो प्रभु की व रावण दोनों की अन्तरलीला को जानता है, इसलिए वो बिना किसी को रोके-टोके बस अपना पात्र कुशलता से निभा रहा है।भाई अक्षयकुमार के वध की बात सुनकर बड़े क्रोध के साथ वो रथ पर चढ़ कर महाबलि योद्धाओं के साथ अशोक वाटिका गया, उसे देख कर श्री हनुमानजी जोर से गर्जना की तथा तेजी से उसकी तरफ भागे !*

                *।। राम  राम ।।*
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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐 🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐🕉 *सागर के मोती*

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    🌷🌹💐🌺🌷🌹💐
      🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷
     🌷🌹💐🌺🌷🌹💐

🕉 *सागर के मोती*

मनुष्य वर्तमान को देखता है और भूत भविष्य की चिंता करता है। चिंता उसकी करता है जो अभी नहीं है।  वर्तमान को ठीक बनाओ। वर्तमान ठीक रहेगा तो भूत भी ठीक हो जाएगा और भविष्य भी ; क्योंकि भविष्य भी वर्तमान में आएगा।

करने योग्य कर्म न करने से और न करने योग्य कर्म करने से दुख होता है।  अतः ऐसा कर्म करें जिससे अभी भी हित हो और परिणाम में भी ; हमारा भी हित हो और दूसरों का भी। दूसरों को दिया गया दुख कई गुना होकर मिलेगा क्योंकि यह मनुष्य शरीर खेत है। किसी के हित की भावना करना अपने अहित को निमंत्रण देना है।
मनुष्य शरीर अपने उद्धार के लिए मिला है अतः जो देश, काल, परिस्थिति आदि मिली है उसी में हर मनुष्य को परमात्मा प्राप्ति हो सकती है। केवल अपनी इच्छा और सच्ची लगन हो तो भगवान भी सहायता करते हैं।

       🕉🕉🕉🕉🕉🕉
       🕉🙏हरि ॐ🙏 🕉
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*वामन अवतार**29 अगस्त विशेष*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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*वामन अवतार*

*29 अगस्त विशेष*

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। जो इस वर्ष आज 29 अगस्त शनिवार को है।

प्राचीन धर्मग्रंथ शास्त्रों के अनुसार इस शुभ तिथि को श्री विष्णु के रूप भगवान वामन का अवतरण हुआ था।

धार्मिक शास्त्र,पुराणों तथा मान्यताओं के अनुसार भक्तों को इस दिन व्रत-उपवास करके दोपहर (अभिजित मुहूर्त) में भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए।
भगवान वामन की संभव हो तो स्वर्ण प्रतिमा नही तो पीतल की प्रतिमा का पंचोपचार सहित पूजा करनी चाहिए।
भगवान वामन को पंचोपचार सामर्थ्य हो तो षोडषोपचार पूजन करने से पहले चावल, दही आदि जैसी वस्तुओं का दान करना सबसे उत्तम माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस दिन भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
*वामन अवतार की पौराणिक कथा*

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वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है. वामन अवतार कथा अनुसार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।

देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं। असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।

तब उनके व्रत, आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु जी प्रकट हुये और बोले- देवी! व्याकुल मत हो मैं तुम्हारे ही पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उनका हारा हुआ राज्य दिलाऊंगा। तब समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से जन्म लेकर वामन के रूप में अवतार लिया। तब उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे।

महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि स्वर्ग पर अपना स्थायी अधिकार प्राप्त करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव वहां पहुंचे गये। उनके तेज से यज्ञशाला स्वतः प्रकाशित हो उठी।

बलि ने उन्हें एक उच्च आसन पर बिठाकर उनका आदर सत्कार किया और अंत में राजा बली ने वामन देव से इक्षीत भेंट मांगने को कहा।

इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब रजा बलि उनसे बार-बार अनुरोध करने लग गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में देने को कहा। तब राजा बलि ने उनसे और अधिक कुछ मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन देव अपनी बात पर अड़े रहे।

तब राजा बलि ने अपने दायें हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। जेसे ही संकल्प पूरा हुआ वेसे ही वामन देव का आकार बढ़ने लगा और वे बोने वामन से विराट वामन हो गए।

तब उन्होंने अपने एक पग से पृथ्वी और अपने दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए तो कुछ बचा ही नही तब राजा बलि ने तीसरे पग को रखने के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया।

तब राजा बली बोले- हे प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। आप तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दो। सब कुछ दान कर चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन देव प्रसन्न हो गए। 

तब बाद में उन्हे पाताल का अधिपति बनाकर देवताओं को उनके भय से मुक्त कराया। 

एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।

वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।
*वामन देव की आरती*

〰️〰️🔸🔸🔸〰️〰️

ओम जय वामन देवा, हरि जय वामन देवा!!

बली राजा के द्वारे, बली राजा के द्वारे संत करे सेवा,

वामन रूप अनुपम छत्र, दंड शोभा, हरि छत्र दंड शोभा !!

तिलक भाल की मनोहर भगतन मन मोहा,

अगम निगम पुराण बतावे, मुख मंडल शोभा, हरि मुख मंडल शोभा।

कर्ण, कुंडल भूषण, कर्ण, कुंडल भूषण, पार पड़े सेवा,

परम कृपाल जाके भूमी तीन पगा, हरि भूमि तीन पड़ा 

तीन पांव है कोई, तीन पांव है कोई बलि अभिमान खड़ा।

प्रथम पाद रखे ब्रह्मलोक में, दूजो धार धरा, हरि दूजो धार धरा।

तृतीय पाद मस्तक पे, तृतीय पाद मस्तक पे बली अभिमान खड़ा।

रूप त्रिविक्रम हारे जो सुख में गावे, हरि जो चित से गावे।

सुख सम्पति नाना विधि, सुख सम्पति नाना विधि हरि जी से पावे।

ॐजय वामन देवा हरि जय वामन देवा।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
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" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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*💥एकादशी व्रत कथा💥* *🚩🚩पद्मा एकादशी🚩🚩*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*💥एकादशी व्रत कथा💥*

   *🚩🚩पद्मा एकादशी🚩🚩*

युधिष्ठिर ने पूछा: केशव ! कृपया यह बताइये कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है, उसके देवता कौन हैं और कैसी विधि है?

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! इस विषय में मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ, जिसे ब्रह्माजी ने महात्मा नारद से कहा था ।

नारदजी ने पूछा: चतुर्मुख ! आपको नमस्कार है ! मैं भगवान विष्णु की आराधना के लिए आपके मुख से यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है?
ब्रह्माजी ने कहा: मुनिश्रेष्ठ ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है । क्यों न हो, वैष्णव जो ठहरे ! भादों के शुक्लपक्ष की एकादशी ‘पद्मा’ के नाम से विख्यात है । उस दिन भगवान ह्रषीकेश की पूजा होती है । 

यह उत्तम व्रत अवश्य करने योग्य है । सूर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि हो गये हैं । वे अपने औरस पुत्रों की भाँति धर्मपूर्वक प्रजा का पालन किया करते थे । उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चिन्ताएँ नहीं सताती थीं और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था । उनकी प्रजा निर्भय तथा धन धान्य से समृद्ध थी । महाराज के कोष में केवल न्यायोपार्जित धन का ही संग्रह था । उनके राज्य में समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने अपने धर्म में लगे रहते थे । मान्धाता के राज्य की भूमि कामधेनु के समान फल देनेवाली थी । उनके राज्यकाल में प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होता था ।

एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई । इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित हो नष्ट होने लगी । तब सम्पूर्ण प्रजा ने महाराज के पास आकर इस प्रकार कहा :
प्रजा बोली: नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजा की बात सुननी चाहिए । पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नार’ कहा है । वह ‘नार’ ही भगवान का ‘अयन’ (निवास स्थान) है, इसलिए वे ‘नारायण’ कहलाते हैं । नारायणस्वरुप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापकरुप में विराजमान हैं । वे ही मेघस्वरुप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करती है । नृपश्रेष्ठ ! इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है, अत: ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेम का निर्वाह हो ।
राजा ने कहा: आप लोगों का कथन सत्य है, क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है । अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जगत जीवन धारण करता है ।

 लोक में बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत विस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है, किन्तु जब मैं बुद्धि से विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता । फिर भी मैं प्रजा का हित करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करुँगा ।

ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने गिने व्यक्तियों को साथ ले, विधाता को प्रणाम करके सघन वन की ओर चल दिये । वहाँ जाकर मुख्य मुख्य मुनियों और तपस्वियों के आश्रमों पर घूमते फिरे । एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अंगिरा ॠषि के दर्शन हुए । उन पर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्ष में भरकर अपने वाहन से उतर पड़े और इन्द्रियों को वश में रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनि के चरणों में प्रणाम किया । मुनि ने भी ‘स्वस्ति’ कहकर राजा का अभिनन्दन किया और उनके राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी । राजा ने अपनी कुशलता बताकर मुनि के स्वास्थय का समाचार पूछा । मुनि ने राजा को आसन और अर्ध्य दिया । उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनि के समीप बैठे तो मुनि ने राजा से आगमन का कारण पूछा ।
राजा ने कहा: भगवन् ! मैं धर्मानुकूल प्रणाली से पृथ्वी का पालन कर रहा था । फिर भी मेरे राज्य में वर्षा का अभाव हो गया । इसका क्या कारण है इस बात को मैं नहीं जानता ।

ॠषि बोले : राजन् ! सब युगों में उत्तम यह सत्ययुग है । इसमें सब लोग परमात्मा के चिन्तन में लगे रहते हैं तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है । इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं । किन्तु महाराज ! तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तपस्या करता है, इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते । तुम इसके प्रतिकार का यत्न करो, जिससे यह अनावृष्टि का दोष शांत हो जाय ।

 राजा ने कहा: मुनिवर ! एक तो वह तपस्या में लगा है और दूसरे, वह निरपराध है । अत: मैं उसका अनिष्ट नहीं करुँगा । आप उक्त दोष को शांत करनेवाले किसी धर्म का उपदेश कीजिये ।

ॠषि बोले: राजन् ! यदि ऐसी बात है तो एकादशी का व्रत करो । भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो ‘पद्मा’ नाम से विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी । नरेश ! तुम अपनी प्रजा और परिजनों के साथ इसका व्रत करो ।

ॠषि के ये वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये । उन्होंने चारों वर्णों की समस्त प्रजा के साथ भादों के शुक्लपक्ष की ‘पद्मा एकादशी’ का व्रत किया । इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे । पृथ्वी जल से आप्लावित हो गयी और हरी भरी खेती से सुशोभित होने लगी । उस व्रत के प्रभाव से सब लोग सुखी हो गये ।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन् ! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए । ‘पद्मा एकादशी’ के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढकँकर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को दान देना चाहिए, साथ ही छाता और जूता भी देना चाहिए । दान करते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करना चाहिए :
नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥

अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥

‘बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करनेवाले भगवान गोविन्द ! आपको नमस्कार है… नमस्कार है ! मेरी पापराशि का नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं |’
राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है ।

*🙏🏻🌹 हरे कृष्णा 🙏🏻🌹*
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।। श्री गणपति स्तुति ।।शुख शान्ति एवं वैभव हेतु - गणेश पुजन

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।। श्री गणपति स्तुति ।।

शुख शान्ति एवं वैभव हेतु - गणेश पुजन
भगवान गणेश की अपने भक्तों पर असीम कृपा है। उन्होंने हम पर बड़ा उपकार किया है, जो हम कभी भुला नहीं सकते। भगवान गणेश हम पर प्रसन्न कैसे हों, इसका उपाय अत्यंत सुगम है।
इनका ध्यान इस प्रकार करें-
अपने दो हाथों में इक्षुदण्ड धारण किए हुए तथा दो हाथों में पाश एवं अंकुश धारण किए हुए। एक हाथ में कमल धारण किए हुए श्यामांगी को बगल में बैठाए हुए त्रिनेत्र रक्त वर्ण वाले गणपति का मैं ध्यान करता हूं।
मंत्र :
ॐ ह्रीं गं ह्रीं वशमानय स्वाहा।।
विनियोग :
ॐ अस्य श्री हस्तिमुख गणेश मंत्रस्य श्री गणक ऋषि: गायत्री छंद:। श्री हस्तिमुख गणपति देवता ममाभीष्ट सिद्धयर्थे विनियोग:।
ऐसा बोलकर जल छोड़ें।
अंग न्यास तथा करन्यास इस प्रकार करें।
ॐ गं अंगुष्ठाभ्यां नम: हृदयाय नम:
ॐ गं तर्जनीभ्यां नम: शिरसे स्वाहा
ॐ गं मध्यमाभ्यां नम: शिखायै वषट्
ॐ गं अनामिकाभ्यां नम: कवचाय हुम्
ॐ गं कनिष्ठिकाभ्यां नम: नैत्रत्रयाय वौषट्
ॐ गं करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:अस्त्राय फट्

         हर हर महादेव हर...!!!
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।। हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति ।।*वैदिक घड़ी**देखिये आपकी घड़ी क्या कहती है*

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।। हिन्दू सनातन धर्म संस्कृति ।।

*वैदिक घड़ी*

*देखिये आपकी घड़ी क्या कहती है*

◆ 12:00 बजने के स्थान पर आदित्या: लिखा हुआ है, जिसका अर्थ यह है कि सूर्य 12 प्रकार के होते हैं...

अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु

◆ 1:00 बजने के स्थान पर ब्रह्म लिखा हुआ है, इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म एक ही प्रकार का होता है।
एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति

◆ 2:00 बजने की स्थान पर अश्विनौ लिखा हुआ है जिसका तात्पर्य यह है कि अश्विनी कुमार दो हैं।

◆ 3:00 बजने के स्थान पर त्रिगुणा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि गुण तीन प्रकार के हैं।

सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।

◆ 4:00 बजने के स्थान पर चतुर्वेदा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि वेद चार प्रकार के होते हैं।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

◆ 5:00 बजने के स्थान पर पंचप्राणा: लिखा हुआ है, जिसका तात्पर्य है कि प्राण पांच प्रकार के होते हैं।

अपान, समान, प्राण, उदान और व्यान

◆ 6:00 बजने के स्थान पर षड्र्सा: लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि रस 6 प्रकार के होते हैं।

मधुर, अमल, लवण, कटु, तिक्त और कसाय

◆ 7:00 बजे के स्थान पर सप्तर्षय: लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि सप्त ऋषि 7 हुए हैं।

कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ

◆ 8:00 बजने के स्थान पर अष्ट सिद्धिय: लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि सिद्धियां आठ प्रकार की होती है।

अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व
◆ 9:00 बजने के स्थान पर नव द्रव्यणि अभियान लिखा हुआ है इसका तात्पर्य है कि 9 प्रकार की निधियां होती हैं।

पद्म, महापद्म, नील, शंख, मुकुंद, नंद, मकर, कच्छप, खर्व

◆ 10:00 बजने के स्थान पर दशदिशः लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि दिशाएं 10 होती है।

पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, आग्नेय, आकाश, पाताल

◆ 11:00 बजने के स्थान पर रुद्रा: लिखा हुआ है, इसका तात्पर्य है कि रुद्र 11 प्रकार के हुए हैं।

कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, अहिर्बुध्न्य, शम्भु, चण्ड और भव

*सनातन धर्म मे प्रत्येक वस्तु कुछ न कुछ अवश्य सिखाती है...*
जय जय परशुरामजी...!!!!
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।। सत्य घटना आधारित कहानी ।।#श्री_राधारमण_मंदिर_वृंदावन

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#श्री_राधारमण_मंदिर_वृंदावन

यह भट्टी श्री राधारमण मंदिर की है जो पिछले 478 सालों से लगातार जल रही है।
कई वर्षों से जल रही इस भट्टी का उपयोग ठाकुर जी की रसोई तैयार करने के लिए किया जाता है। श्री राधारमण मंदिर में दीपक जलाने से लेकर प्रसाद तैयार करने में भी इस भट्टी का इस्तेमाल किया जाता है। मंदिर की प्रथम आरती के लिए अग्नि वैदिक मंत्रों के माध्यम से आज से 478 वर्ष पहले प्रकट की गई थी। इसके लिए अरण्य मंथन का सहारा लिया गया था।

उसके बाद ही ठाकुर ने गोपाल भट्ट गोस्वामी के मन में यह भाव पैदा किया कि इसी अग्नि से भविष्य में ठाकुर की आरती की जाय। यहीं कारण है कि इस मंदिर में करीब पौने पांच सौ वर्ष से माचिस का प्रयोग नहीं किया गया। आज भी ठाकुर की आरती पौने पांच सौ वर्ष पूर्व प्रकट अग्नि से की जाती है।

जय श्री राधारमण🚩
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।। सत्य घटना आधारित कहनो ।।संपूर्ण भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज

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जय द्वारकाधीश

।। सत्य घटना आधारित कहनो ।।

संपूर्ण भारत वर्ष में कथावाचक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डोंगरेजी महाराज एकमात्र ऐसे कथावाचक थे जो दान का रूपया अपने पास नही रखते थे और न ही लेते थे।
जिस जगह कथा होती थी लाखों रुपये उसी नगर के किसी सामाजिक कार्य के लिए दान कर दिया करते थे। उनके अन्तिम प्रवचन में गोरखपुर में कैंसर अस्पताल के लिये एक करोड़ रुपये उनके चौपाटी पर जमा हुए थे।

उनकी पत्नी आबू में रहती थीं। पत्नी की मृत्यु के पांचवें दिन उन्हें खबर लगी ।  बाद में वे अस्थियां लेकर गोदावरी में विसर्जित करने मुम्बई के सबसे बड़े धनाढ्य व्यक्ति रति भाई पटेल के साथ गये। 
नासिक में डोंगरेजी ने रतिभाई से कहा कि रति हमारे पास तो कुछ है ही नही, और इनका अस्थि विसर्जन करना है। कुछ तो लगेगा ही क्या करें ? 
फिर खुद ही बोले - "ऐसा करो कि इसका जो मंगलसूत्र एवं कर्णफूल हैं, इन्हे बेचकर जो रूपये मिले उन्हें अस्थि विसर्जन में लगा देते हैं।"

इस बात को अपने लोगों को बताते हुए कई बार रोते - रोते रति भाई ने कहा कि "जिस समय यह सुना हम जीवित कैसे रह गये, बस हमारा हार्ट फैल नही हुआ।"
हम आपसे कह नहीं सकते, कि हमारा क्या हाल था। जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, वह महापुरूष कह रहे हैं कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिये पैसे नही हैं और हम खड़े-खड़े सुन रहे थे ? फूट-फूट कर रोने के अलावा एक भी शब्द मुहँ से नही निकल रहा था।
ऐसे वैराग्यवान और तपस्वी संत-महात्माओं के बल पर ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा है।

इस प्रसंग को सुन कर आजकल के हमारे धर्मद्रोही तथाकथित कथावाचकों को देखो जिन्होंने पैसों के लिए अपने धर्म को ही बदनाम कर दिया 
सिर्फ करोडों कमाने के लिए
राधे राधे

🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सत्य घटना आधारित कहनी ।।बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सत्य घटना आधारित कहनी ।।

बनारस में एक चर्चित दूकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त-यार आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे ही थे कि एक लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए मेरे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई।

उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे। उनको देखकर मन मे न जाने क्या आया कि मैने जेब मे सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया,

"दादी लस्सी पियोगी ?"

मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं और मेरे मित्र अधिक। क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता लेकिन लस्सी तो 25 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।

दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी और अपने पास जो मांग कर जमा किए हुए 6-7 रुपए थे वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नही आया तो मैने उनसे पूछा,

"ये किस लिए?"

"इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबूजी !"

भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी।

एकाएक मेरी आंखें छलछला आईं और भरभराए हुए गले से मैने दुकान वाले से एक लस्सी बढ़ाने को कहा... उन्होने अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई।

अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका।

डर था कि कहीं कोई टोक ना दे.....कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर आपत्ति न हो जाये... लेकिन वो कुर्सी जिसपर मैं बैठा था मुझे काट रही थी.....

लस्सी कुल्लड़ों मे भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नही हो सकती थी... हां! मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल को घूरा... लेकिन वो कुछ कहते उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा,

"ऊपर बैठ जाइए साहब! मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं किन्तु इंसान कभी-कभार ही आता है।"

अब सबके हाथों मे लस्सी के कुल्लड़ और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी, बस एक वो दादी ही थीं जिनकी आंखों मे तृप्ति के आंसू, होंठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थीं।
 जानें क्यों जब कभी हमें 10-20 रुपए किसी भूखे गरीब को देने या उसपर खर्च करने होते हैं तो वो हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कि क्या वो चंद रुपए किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती हैं?

क्या कभी भी उन रुपयों को बीयर , सिगरेट ,पर खर्च कर ऐसी दुआएं खरीदी जा सकती हैं?

जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापूर्ण और करुणामय काम करते रहें भले ही कोई अभी आपका साथ दे या ना दे, समर्थन करे ना करें। सच मानिए इससे आपको जो आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है
☺️☺️☺️
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जय श्री कृष्ण....!!!!

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।। सुंदर कहानी ।।संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं-

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

संसार में दो प्रकार के पेड़ पौधे होते हैं-

प्रथम: अपना फल स्वयं दे देते हैं,
जैसे - आम, अमरुद, केला इत्यादि ।

द्वितीय : अपना फल छिपाकर रखते हैं,
जैसे - आलू, अदरक, प्याज इत्यादि ।

जो फल अपने आप दे देते हैं, उन वृक्षों को सभी खाद-पानी देकर सुरक्षित रखते हैं, और  ऐसे वृक्ष फिर से फल देने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

किन्तु जो अपना फल छिपाकर रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते हैं, उनका वजूद ही खत्म हो जाता हैं।

ठीक इसी प्रकार...
जो व्यक्ति अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वयं ही समाज सेवा में समाज के उत्थान में लगा देते हैं, उनका सभी ध्यान रखते हैं और वे मान-सम्मान पाते है।
वही दूसरी ओर
जो अपनी विद्या, धन, शक्ति स्वार्थवश छिपाकर रखते हैं, किसी की सहायता से मुख मोड़े रखते है, वे जड़ सहित खोद लिए जाते है, अर्थात् समय रहते ही भुला दिये जाते है।

प्रकृति कितना महत्वपूर्ण संदेश देती है, बस समझने, सोचने और कार्य में परिणित करने की बात है।
हर हर महादेव हर.....!!!

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💢☀️🐚✨🔆🌟🔱💢*_संक्षिप्त गीता : पंद्रहवां अध्याय_* 〰️〰️〰️〰️〰️

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

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*_संक्षिप्त  गीता : पंद्रहवां अध्याय_* 

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*पंद्रहवें अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने विश्व के अश्वत्थ रूप का वर्णन किया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तार वाला है। वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा।*
 *एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है।*

〰️〰️ *_अगला  अध्याय  कल...._*

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🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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।। सुंदर अच्छा सुविचार ।।*श्री हनुमानजी ने रावण के पुत्र अक्षय कुमार के वध के बाद

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर अच्छा सुविचार ।।

*श्री हनुमानजी ने रावण के पुत्र अक्षय कुमार के वध के बाद* 
*उसके साथ आये महाबली योद्धाओं में से कुछ को प्रहार से मारा, कुछ को मसल कर मार दिया, कुछ को धरती में पटक कर मार दिया, जो थोडे से बचे वो अधमरे से रावण के पास जा कर चिल्लाये की महाराज वानर तो महाबलशाली है, आप जल्दी कुछ उपाय करो वरना लगता है कि वो वानर अकेला ही पूरी लंका उजाड़ देगा !* 

             *।। राम  राम  राम ।।*

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🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐 🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷 🌷🌹💐🌺🌷🌹💐

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    🌷🌹💐🌺🌷🌹💐
      🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷
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🕉 *सागर के मोती*

गुरु की प्रसंता से विद्या सफल होती है और प्रसन्नता न होने से विद्या विफल होती है। अतः विद्यार्थी को चाहिए कि वह गुरु की सेवा करें उनकी आज्ञा माने और उनकी प्रसन्नता ले।  गुरु की आज्ञा का पालन करना एक नंबर की सेवा है। आज्ञा पालन से गुरु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
विद्यार्थियों के बुद्धि  अच्छी होती है। वास्तविक बात यह है कि वे परिश्रम नहीं करते।  वह परिश्रम करें तो गुरु भी प्रसन्न होंगे और माता-पिता भी। विद्यार्थी को केवल बुद्धिबल ही नहीं, प्रत्युत मनोबल, शरीरबल आदि सभी बल बढ़ाने चाहिए।  उसे व्रत उपवास से शरीर को कृश नहीं करना चाहिए।

 विद्यार्थी को अपनी विद्या का अभिमान नहीं करना चाहिए।  मैं जानकार हूं --ऐसा अभिमान होने से जानना बंद हो जाएगा और नहीं बढ़ेगा।

       🕉🕉🕉🕉🕉🕉
       🕉🙏हरि ॐ🙏 🕉
      🕉🕉🕉🕉🕉🕉
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🙏जय आलबाई🙏 जय माता दी 🙏जय अंबे🙏🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

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🙏जय आलबाई🙏 जय माता दी 🙏जय अंबे🙏

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

               मिट्टी का मटका
                        और
              परिवार की किम्मत
                 सिर्फ बनाने
                   वाले को 
                 पता होता है
                  तोड़ने वाले 
                    को नही

                क्रोध के समय
               थोड़ा रुक जाए
                        और 
                गलती के समय 
                थोड़ा झुक जाए

                  दुनियां की 
                सब समस्याएं
                     हल हो 
                     जाएगी

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷


🙏🌹 आपका दिन शुभ और मंगलमय हो 🌹🙏

           🙏जय अंबे🙏 जय माता दी 🙏जय अंबे🙏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...