सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
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🌷 शाश्वतज्ञान-वेदान्त🌷
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🕉 *सागर के मोती*
सर्वभाव से भगवान का भजन करने का तात्पर्य है कि *मैं-पन* बिल्कुल न रहे। जैसे कन्या सर्वभाव से पति की हो जाती है उसका गोत्र भी नहीं रहता, ऐसे ही सर्वभाव से भगवान के हो जाएं, अपना कोई भी भाव अलग न रहे।
धन के द्वारा दूसरों का उपकार कभी हुआ नहीं, हो सकता नहीं। जिसके भीतर धन की आसक्ति है वह उपकार नहीं कर सकता। वह परमात्मा की तरफ भी नहीं लग सकता। उपकार उदारता से होता है धन से नहीं। कल्याण उदारता से होता है। रुपयों का महत्व नहीं है। प्रत्युत रुपयों के खर्च (त्याग) का महत्व है। रुपयों का खर्च उदार ही कर सकता है।
महिमा और निंदा परिस्थिति, वस्तु आदि की नहीं है। सदुपयोग की महिमा है और दुरुपयोग की निंदा है-- यह सार बात है।
जब तक ह्रदय में भोग और संग्रह का महत्व बैठा है तब तक परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिसके भीतर नाशवान का महत्व हो वह अविनाशी को कैसे प्राप्त करेगा।
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🕉🙏ॐ हरि ॐ🙏 🕉
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🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
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(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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