https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: मानव जीवन का सुंदर कहानी https://sarswatijyotish.com
લેબલ मानव जीवन का सुंदर कहानी https://sarswatijyotish.com સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
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।। मानव जीवन का सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। मानव जीवन का सुंदर कहानी ।।


मानव जीवन का महत्व 


गलत सलाह देने का परिणाम ( शिक्षाप्रद कहानी )

एक गांव में एक किसान रहता था। 

उसने दो जानवर पाल रखे थे — एक गदहा और एक बकरा। 






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गदहा बहुत मेहनती था। 

वह प्रतिदिन खेतों से लेकर बाजार तक बोझ ढोता था। 

चाहे तेज धूप हो या मूसलाधार बारिश, गदहा बिना शिकायत किए अपने मालिक का काम करता था।

गदहे की मेहनत देखकर किसान उसे अच्छा चारा, घास और पानी देता था। 

कभी-कभी वह उसे गुड़ या हरी घास भी खिला देता था। 

यह देखकर बकरा जल-भुन जाता था। 

बकरा सोचता, “मैं तो दिन भर खुले में घूमता हूं, खेलता हूं, उछलता हूं, लेकिन मुझे कोई विशेष खाना नहीं मिलता। 

और यह गदहा जो सारा दिन बोझ ढोता है, उस पर तो मालिक की खास कृपा बरसती है!”

यह सोचते - सोचते बकरा अंदर ही अंदर ईर्ष्या की आग में जलने लगा। 

वह सोचने लगा कि कैसे गदहे को मालिक की नजर से गिराया जाए ताकि वह खुद गदहे की जगह सम्मान पाए।

एक दिन बकरे ने गदहे से कहा, “भाई! मैं तो मालिक की कृपा पर हँसता हूँ। 

मुझे तो खुला छोड़ रखा है — जहाँ मन किया, उधर गया; जो मन किया, किया। 

लेकिन तुम बेकार ही मालिक के लिए जान तोड़ मेहनत करते हो। 

फिर भी वह तुम्हें पीठ पर बोझ लादकर हर जगह घसीटता है।”

गदहा थोड़ा मायूस होकर बोला, “भाई, मुझे भी बुरा लगता है, पर मैं क्या कर सकता हूँ? 

मेरा तो यही काम है।”

बकरे ने चालाकी से कहा, “उपाय है! क्यों न तुम एक दिन बीमार होने का बहाना बना लो? 

किसी गढ़े में गिर पड़ो और फिर आराम से कुछ दिन तक बैठकर खाओ - पीओ। 

मालिक को तो लगना चाहिए कि तुम अब कमजोर हो गए हो।”

गदहा सीधा - सादा और सरल स्वभाव का था। 

उसने बकरे की बातों पर विश्वास कर लिया। 

अगले ही दिन उसने योजना के अनुसार खुद को एक गढ़े में गिरा दिया और जोर - जोर से चिल्लाने लगा।




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गिरने से वह सचमुच घायल हो गया। 

उसके पैरों में मोच आ गई और शरीर पर कई खरोंचें आ गईं। 

अब वह सच में चलने - फिरने लायक नहीं रहा। 

किसान को जब पता चला, तो वह घबरा गया। 

उसने तुरंत पशु-चिकित्सक को बुलाया।

डॉक्टर ने गदहे को देखकर कहा, “गंभीर चोट है। 

इसे कुछ दिनों तक आराम की जरूरत है। 

साथ ही इसके घावों पर बकरे की चर्बी से मालिश करनी होगी, तभी यह जल्दी ठीक होगा।”

अब किसान के पास कोई विकल्प नहीं था। 

उसने जैसे ही बकरे की ओर देखा और छुरी उठाई, बकरे के होश उड़ गए। 

वह बुरी तरह डर गया और रोते-रोते कहने लगा, “हाय! मैंने तो केवल चालाकी की थी। 

मैंने तो सोचा था गदहे को मुश्किल में डालकर खुद फायदा उठाऊंगा, पर अब खुद ही फंस गया।”

बकरे की आंखों से आँसू बहने लगे। 

वह बार-बार पछता रहा था, “हाय! मेरी बुद्धि को आग लग गई थी, जो मैंने ऐसी कुटिल सलाह दी। 

अब उसी का परिणाम मुझे भोगना पड़ रहा है।”

पर अब पछताने का कोई लाभ नहीं था। 

किसान ने बकरे को काट दिया और उसकी चर्बी से गदहे के घावों की मरहम-पट्टी शुरू कर दी।

शिक्षा:

जो दूसरों के लिए चाल चलता है, वह स्वयं ही फंस जाता है।

ईर्ष्या और छल का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। 

दूसरों की सफलता या सम्मान देखकर जलना नहीं चाहिए, बल्कि खुद मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।






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मानव जीवन का महत्व  

एक व्यक्ति नदी के किनारे पहुँचा आत्महत्या करने। 

पास ही सन्त की कुटिया थी। 

सन्त सब देख रहे थे। 

वह कूदने ही वाला था कि सन्त ने आवाज लगाई। 

“ठहर”। 

उसने कहा रोको मत। 

मुझे मरना ही है। 

जिन्दगी बेकार है। 

यहाँ कुछ भी नहीं है। 

परमात्मा भी मुझसे रूठ गया है सबको निहाल कर दिया है मेरे पास कुछ भी नहीं है। 

सन्त ने कहा-आज रात ठहर जा। 

चाहे तो कल मर जाना।” 

सन्त की बात मानकर वह रात भर ठहर गया। 

प्रातः सन्त उस व्यक्ति को लेकर राजमहल पहुँचे। 

सारा वृत्तांत सुनाया। 

फिर उसे आकर कान में बताया कि राजा साहब को तुम्हारी आँखों की जरूरत है। 

एक लाख रुपया दे रहे हैं। 

एक आँख का। 

दोनों दे दोगे तो दो लाख देने को तैयार हैं। 

उसने कहा मैं आँखें बेच दूँ फिर देखूँगा काहे से। 




सन्त फिर राजा के पास गया। 

थोड़ी देर में लौट कर आया और बोला “यदि कान भी देते हो तो चार लाख रुपया देने को तैयार हैं। 

और नाक देनी हो तो पाँच लाख। 

उसने कहा “क्या मतलब” “मैं आँख कान नाक बेच दूँ।

उसने कहा “सम्राट हाथ पैर तक भी खरीदने को तैयार है”। 

तू चाहे तो सबका सौदा तय कर ले दस लाख देंगे। 

अब तो वह चकराया कि मात्र शरीर की इतनी कीमत। 

सन्त ने कहा-तूने कभी अकल पसार कर सोचा कि सुरदुर्लभ तन जा तुझे मिला क्या इस प्रकार बेअकली से बुरी तरह नष्ट करने के लिए मिला था। 

लाखों करोड़ों लोग तुझसे भी गई बीती स्थिति में होंगे”। 

मनुष्य की समझ में आ गया मानव जीवन का महत्व। उसने आत्महत्या का इरादा छोड़ा व पुरुषार्थ में जुट पड़ा।
जय जय परशुरामजी...!!!
हर हर महादेव हर...!!!





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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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