https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: ।। सुंदर कहानी ।।*👏ध्यान न लगे, तो क्या करें?👏*

।। सुंदर कहानी ।।*👏ध्यान न लगे, तो क्या करें?👏*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। सुंदर कहानी ।।

*👏ध्यान न लगे, तो क्या करें?👏*

एक बार कबीर दास जी के पास एक साधक आया *अथाह विचलित! मन की उदासी उसके चेहरे पर भी साफ़ मुखर थी* मुरझाया- सा मुंह लेकर गुरु को प्रणाम कर वहीं बैठ गया
*कबीर दास जी ने शिष्य की और अपनी दृष्टि घुमाई* और उससे उसकी मायूसी का कारण पूछा!

*साधक -* गुरुदेव! आपने मुझे ब्रह्मज्ञान की महान ध्यान- साधना दी *लेकिन मै क्या करूं महाराज, बहुत प्रयास करने पर भी मै ध्यान नहीं लगा पाता?* न जाने कैसे कर्म- संस्कारों को अपने संग जमा कर लाया हूं, कि *आंख मूंदते ही मन विचारों की गलियों में दौड़ने लगता है* मै चाहकर भी इस मन को टिका नहीं पाता! मै क्या करूं?

*कबीर दास जी -* दुःखी मत हो वत्स! चलो *मै तुम्हें इस समस्या के समाधान हेतु आज एक उपाय बताता हूं* जब भी तुम्हारा चंचल मन ध्यान में टिकने से इंकार करे, तो इस सूत्र का सहारा ले लिया करो-

*' ध्यानमूलं गुर्रोर्मुति:'!*
अर्थात् आंखे मूंदकर सर्वप्रथम गुरु की मूर्ति का ध्यान किया करो *उनके दिव्य स्वरूप की आभा में मन रमाते हुए* ध्यान की गहराईओ में उतर जाओ!

*साधक हाथ जोड़कर--* जी गुरुदेव! *आपके वचनानुसार प्रयास करूंगा* परन्तु यदि चंचल मन तब भी न टिक पाया, तो मै क्या करूं?

*कबीर दास जी -* तब फ़िर तुम गुरु के श्री चरणों में ध्यान लगाना गुरु के चरण- कमलों में आराधना का मूल समाया हैं-
*' पूजा मूलं गुरोर्पदम् '!*
*साधक -* मै पूरा प्रयत्न करूंगा *पर मुझे क्षमा करें गुरुदेव... मै इस हठी मन के स्वभाव को भली- भांति जानता हूं* यदि तब भी इस मन ने ढीटता न छोड़ी, तो मै क्या करूं?

*कबीर दास जी -* यदि तब भी मन न लगे, तो फ़िर तुम उन दिव्य वचनों को स्मरण करना *जो तुम्हारे गुरु ने तुमसे कहे हो* क्योंकि गुरु के वचन महामंत्र हुआ करते हैं-

*' मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं '!*
उनका चिंतन मन को नियंत्रित करने में अत्यंत सहायक होता हैं
*साधक के चेहरे पर से उदासी के बादल काफ़ी हद तक छंट चुके थे* किन्तु अब भी निश्चिंतता का सूर्य पूरी तरह उदित नहीं हुआ था *वह याचना भरे स्वर में बोला*-- मै जानता हूं, यूं बार- बार पूछना धृष्टता ही होगी! *लेकिन इस पर भी यदि मेरे मन ने कोई चाल चली* तब मै क्या करूंगा, महाराज?'
*कबीर दास जी बुलंद स्वर में ऐलान कर उठे --* तब फ़िर एक ब्रह्मास्त्र चला देना!
*साधक -* कौन सा ब्रह्मास्त्र, प्रभु?

*कबीर दास जी -* हुं! तुम अपने मन को उन पलो की याद में भिगो देना *जब- जब गुरु ने तुम पर कृपा की* तुम्हें सहारा दिया! इस सूत्र को सदैव याद रखना कि *गुरु की कृपा ही मोक्ष का मूल है-*

*' मोक्ष मूलं गुरोर्कृपा '!*
*और ध्यान मोक्ष की सीढ़ी है*
अत: ध्यान का आधार केवल और केवल गुरु की कृपा ही है-
*' गुरुकृपा हि केवलम् '!*
इसलिए उनसे उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करना

*साधक आशा व नवीन उत्साह के साथ--* सत्य वचन, महाराज! सत्य वचन! *इन ४ ब्रह्मास्त्रों के बल पर मै निश्चित ही विजयी होऊंगा*
🙏🙏राम राम राम 
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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