सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। सुंदर कहानी ।।
*हम इस धरती के निवासी नहीं हैं। हमें यह मानव-शरीर कुछ दिनों के लिये मिला है। यह मानव चोला प्रभु का सबसे उत्तम निर्माण है। यह हमारा सौभाग्य है कि हमें यह मानव शरीर मिला है क्योंकि केवल इसी शरीर में हम जिंदगी के रहस्य को समझ सकते हैं। अब हमें स्वयं को स्वतंत्र करने का मार्ग ढूँढना है।*
*मानव-शरीर एक कारागार है जिसमें से हमें बाहर निकलना है। इस कारागार में सुराग करके हम एक दरवाजा बना सकते हैं जिसके जरिये बाहर निकल सकते हैं। यह दरवाजा हम कहाँ बनाएं? संत-सत्गुरु फरमाते हैं कि इस शरीर के नौ भौतिक द्वार (दो आँखें, दो कान, नाक, मुँह और दो गुदा द्वार) हैं और इसके अतिरिक्त एक दसवाँ द्वार भी है, यह संकरा द्वार दो भू-मध्य के बीचों-बीच स्थित है, आत्मा मृत्यु के समय इसी द्वार से बाहर निकलती है और शरीर छोड़ देती है।*
*एक संत-सत्गुरु ही तुम्हें यहाँ से भागने का मार्ग दिखा सकता है। वह हमें इस मार्ग से बाहर निकलने में मददगार होता है। इस भौतिक शरीर से भागने का और सदा-सदा की असीम खुशी को पाने का एकमात्र यही रास्ता है। कबीर साहिब फरमाते हैं “मुझे इस संसार में कोई सच्चा सुख नजर नहीं आता, जिसे भी मैं देखता हूँ वह पूरी तरह दुखी है। यहाँ तक कि योगी भी दुखी हैं, जो तपस्वी हैं, वे तो दुगुने दुखी हैं। हम सभी कामना व लोभ से दुखी हैं। कोई भी इंसान इनसे मुक्त नहीं है। कबीर साहिब फ्रमाते हैं कि पूरी दुनिया दुखों से भरी है पर जो संत महापुरुष हैं केवल वेही सुखी हैं क्युकि उनका अपने मन पर नियंत्रण है।"
*मन पर नियंत्रण कर हम पूरी दुनिया से जीत सकते है परन्तु इस पर नियंत्रण कैसे कर सकते है क्युकि यह तो भौतिक सुखों के आकर्षणों के पीछे भाग रहा है। ऐसा देखा गया है कि हम जितना अधिक सुखों को पाने की इच्छा करते हैं उतना ही स्वयं को दुखी अथवा निराश महसूस करते हैं | इसका कारण है कि सच्ची खुशी हमारे अंदर विद्यमान है। सारी खुशियाँ और आनंद हमारे अंतर में विद्यमान है। जबकि इस दुनिया के सुख और आराम कुछ सीमित समय तक ही हमारे साथ रहते हैं। यदि हमारी आत्मा मन इंद्रियों के आकर्षणों से मुक्त हो जाए तभी वह प्रभु से एकमेक हो सकती है, जो कि सर्वशक्तिमान है और केवल तभी सदा-सदा की खुशी को पा सकती है। जो सदा रहने वाली शांति और खुशी पाना चाहते हैं; उन्हें प्रभु की शरण में जाना चाहिए | प्रभु कहाँ हैं? ऐसी कोई स्थान नहीं है, जहाँ प्रभु नहीं हैं | वे हमारे सबसे करीब मानव शरीर में ही वास करते हैं, यही उनका पवित्र निवास है। हम इस शरीर में हैं यानि हम प्रभु हैंकिन्तु जब तक हम अपनी आत्मा मन और माया से भिन्न नहीं करते तब तक हम प्रभु का अनुभव नहीं कर पाते।*
*मन और आत्मा एक-दूसरे के साथ परस्पर बंधे हैं और हमें इन्हे अलग करना नहीं आता। जिन्होंने इन्हें अलग कर लिया उन्होंने अपने आप को जान लिया और प्रभु को पा लिया।*
*प्रभु जो सबमें विराजमान हैं, सबका पिता-परमेश्वर है। वह समस्त जगत का कर्ता है, परमेश्वर है। सभी मानव एक हैं| हम स्वयं पर अलग-अलग धर्मों के लेबल लगाकर घूमते हैं परन्तु हम पहले इंसान हैं | हम चेतन स्वरूप हैं| इस मानव-चोले में ही हम आत्म -साक्षात्कतार और परमात्म साक्षात्कार कर सकते हैं | इस लक्ष्य को हम केवल मानव शरीर में रहकर ही प्राप्त कर सकते हैं, किसी अन्य योनि में रहकर नहीं | सिमरण करो हमारे पास यह एक सुनहरा मौका है।*
जय श्री कृष्ण
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
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(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏
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