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લેબલ कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है ? https://sarswatijyotish.com સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
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कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है ?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है ?


कर्मफल...! 

गलत सलाह देने का परिणाम..! 

( एक शिक्षाप्रद कहानी )
एक गांव में एक किसान रहता था। 

उसने दो जानवर पाल रखे थे - एक गदहा और एक बकरा। 





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गदहा बहुत मेहनती था। 

वह प्रतिदिन खेतों से लेकर बाजार तक बोझ ढोता था। 

चाहे तेज धूप हो या मूसलाधार बारिश, गदहा बिना शिकायत किए अपने मालिक का काम करता था।

गदहे की मेहनत देखकर किसान उसे अच्छा चारा, घास और पानी देता था। 

कभी - कभी वह उसे गुड़ या हरी घास भी खिला देता था। 

यह देखकर बकरा जल-भुन जाता था। 

बकरा सोचता, मैं तो दिन भर खुले में घूमता हूं, खेलता हूं, उछलता हूं, लेकिन मुझे कोई विशेष खाना नहीं मिलता। 

और यह गदहा जो सारा दिन बोझ ढोता है, उस पर तो मालिक की खास कृपा बरसती है!

यह सोचते-सोचते बकरा अंदर ही अंदर ईर्ष्या की आग में जलने लगा। 

वह सोचने लगा कि कैसे गदहे को मालिक की नजर से गिराया जाए ताकि वह खुद गदहे की जगह सम्मान पाए।एक दिन बकरे ने गदहे से कहा, भाई! मैं तो मालिक की कृपा पर हँसता हूँ। 

मुझे तो खुला छोड़ रखा है-जहाँ मन किया, उधर गया; जो मन किया, किया। 

लेकिन तुम बेकार ही मालिक के लिए जान तोड़ मेहनत करते हो। 

फिर भी वह तुम्हें पीठ पर बोझ लादकर हर जगह घसीटता है।

गदहा थोड़ा मायूस होकर बोला, भाई, मुझे भी बुरा लगता है, पर मैं क्या कर सकता हूँ ? 

मेरा तो यही काम है।

बकरे ने चालाकी से कहा, उपाय है! क्यों न तुम एक दिन बीमार होने का बहाना बना लो? 

किसी गढ़े में गिर पड़ो और फिर आराम से कुछ दिन तक बैठकर खाओ-पीओ। 

मालिक को तो लगना चाहिए कि तुम अब कमजोर हो गए हो।

गदहा सीधा - सादा और सरल स्वभाव का था। 

उसने बकरे की बातों पर विश्वास कर लिया। 

अगले ही दिन उसने योजना के अनुसार खुद को एक गढ़े में गिरा दिया और जोर - जोर से चिल्लाने लगा।

गिरने से वह सचमुच घायल हो गया। 

उसके पैरों में मोच आ गई और शरीर पर कई खरोंचें आ गईं। 

अब वह सच में चलने - फिरने लायक नहीं रहा। 

किसान को जब पता चला, तो वह घबरा गया। 

उसने तुरंत पशु-चिकित्सक को बुलाया।

डॉक्टर ने गदहे को देखकर कहा, गंभीर चोट है। 

इसे कुछ दिनों तक आराम की जरूरत है। 

साथ ही इसके घावों पर बकरे की चर्बी से मालिश करनी होगी, तभी यह जल्दी ठीक होगा।

अब किसान के पास कोई विकल्प नहीं था। 

उसने जैसे ही बकरे की ओर देखा और छुरी उठाई, बकरे के होश उड़ गए। 

वह बुरी तरह डर गया और रोते- रोते कहने लगा, हाय! मैंने तो केवल चालाकी की थी।

मैंने तो सोचा था गदहे को मुश्किल में डालकर खुद फायदा उठाऊंगा, पर अब खुद ही फंस गया।

बकरे की आंखों से आँसू बहने लगे। 

वह बार-बार पछता रहा था, हाय! मेरी बुद्धि को आग लग गई थी, जो मैंने ऐसी कुटिल सलाह दी। 

अब उसी का परिणाम मुझे भोगना पड़ रहा है।पर अब पछताने का कोई लाभ नहीं था। 

किसान ने बकरे को काट दिया और उसकी चर्बी से गदहे के घावों की मरहम-पट्टी शुरू कर दी।

शिक्षा:-

जो दूसरों के लिए चाल चलता है, वह स्वयं ही फंस जाता है। 

ईर्ष्या और छल का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। 

दूसरों की सफलता या सम्मान देखकर जलना नहीं चाहिए, बल्कि खुद मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।




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कर्म फल की चिंता व्यर्थ क्यों है ?

मनुष्य कितना परिश्रमी हो सकता है। 

इसका अनुमान करना सरल नहीं है किन्तु वहीं मनुष्य जब ये देखना और सोचना प्रारंभ कर देता है कि मैंने इतना परिश्रम किया, कष्ट झेला फिर भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं मिला। 

तब उसका मनोबल टूटने लगता है और उसी क्षण से वह परिश्रम से धीरे - धीरे हाथ झड़ने लगता है। 

वह ये सोचने लगता है कि अंततः परिश्रम का लाभ ही क्या 

किन्तु बिना परिश्रम लाभ होता भी तो नहीं।





एक किसान ने महीने भर अपने खेत पर काम किया। 

खाद जल से अच्छी तरह सिंचाई करना फिर बीज को बोना और हर क्षण खेती की रखवाली करना किन्तु एक दिन जब फसल को काटने का समय आया तब एक रात पहले खेत में आग लग गई और सब फसल जलकर राख हो गई। 

किसान बहुत दुःखी हुआ, किन्तु अपना दुर्भाग्य समझ उसने पुनः प्रयास करके खेती करना नहीं छोड़ा और इस बार उसने खेत में जगह - जगह किनारा खोदकर उसमें जल भर दिया ताकि फिर कभी आग लगे तो बीच में पानी से भरे नाले से वह आग दूसरी ओर फैलने से बचा सके। 

संकट की घड़ी आपकी चेतना को जगाती है, आपको अत्यधिक सतर्क करती है।

अंत में हर जीवन में संताप का कारण कर्म फल नहीं होता, समय रहते कभी प्रयास न करने का पश्चाताप मनुष्य को मृतक बना देता है। 

जितना आप अपने आपको फल और परिणाम के आशा की डोर से बांधते हैं उतना ही आप परिश्रम करने से दूर होते जाते है, ये आम अनुभव है किन्तु परम सत्य भी।

कर्म निश्चित ही आपका है, कर्म फल कभी आपका नहीं है यही सोच प्रगति का मार्ग बनाती है।





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|| मंगला गौरी व्रत  ||


श्रावण मास भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता गौरी को समर्पित है। 

भगवान शिव और माता गौरी के व्रत कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु श्रावण मास को पवित्र माह माना गया है। 
श्रावण सोमवार और मंगला गौरी जैसे व्रत श्रावण मास में किये जाते हैं। 

भक्त या तो श्रावण मास के दौरान व्रत करने का संकल्प लेते हैं या फिर श्रावण मास के आरम्भ से, अगले सोलह सप्ताह व्रत करने का संकल्प लेते हैं।

मंगला गौरी का व्रत श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। 

स्त्रियाँ, मुख्यतः नवविवाहित स्त्रियाँ, सुखी वैवाहिक जीवन के लिये माता गौरी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु इस व्रत को करती हैं। 

श्रावण मास को उत्तर भारतीय राज्यों में सावन माह के रूप में भी जाना जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था।

उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। 

लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। 

ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था।

उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। 

संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। 

परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। 

अतः अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहु को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई।

इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। 

तभी से ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है। 

इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं और अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम पूजा तो करती ही हैं। 

इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। 

इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है। 

इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है। 

व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है।

अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगना चाहिए। 

इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है। 

अतः शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमों के अनुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है।

1- पहला मंगला गौरी व्रतः 15 जुलाई

2- दूसरा मंगला गौरी व्रतः 22 जुलाई

3. तीसरा मंगला गौरी व्रतः 29 जुलाई

4. चौथा मंगला गौरी व्रतः 5 अगस्त

     || मां गौरी की जय हो ||
🌺🍀जय जगदीश हरे🍀🌺
🙏जय श्री कृष्ण 🙏वंदन अभिनंदन मित्रों👏





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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

श्रावण मास विवाह :

श्रावण मास विवाह : श्रावण मास विवाह बाधा निवारण प्रयोग : सामग्रीः कात्यायनी यंत्र एवं कात्यायनी माला। कई जो संतान के विवाह में विलम्ब से दुख...