https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म : https://sarswatijyotish.com
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अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म :

अखण्ड भारत हिन्दू सनातन धर्म :


एक सेठ बड़ा धनवान था। 

उसे अपने ऐश्वर्य धन सम्पत्ति का बड़ा अभिमान था। 






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अपने को बड़ा दानी धर्मात्मा सिद्ध करने के लिये घर पर नित्य एक साधु को भोजन कराता था। 

एक दिन एक ज्ञानी महात्मा आये उसके यहां भोजन करने को। 

" सेठ जी ने उनकी सेवा पूजा करने का तो ध्यान नहीं रखा और अपने अभिमान की बातें करने लगा “ देखो महाराज वहाँ से लेकर इधर तक यह अपनी बड़ी कोठी है। 

पीछे भी इतना ही बड़ा बगीचा है। 

पास ही दो बड़ी मिलें हैं अमुक - अमुक शहर में भी मिलें हैं। 

इतनी धर्मशालाएँ कुएं बनाये हुये हैं। 

दो लड़के विलायत पढ़ने जा रहे हैं। 

"आप जैसे साधु संन्यासियों के पेट पालन के लिये यह रोजाना का सदावर्त लगा रखा है।”

सेठ अपनी बातें कहता ही जा रहा था। 

"महात्मा जी ने सोचा इसके अभिमान को अब दूर करना चाहिए। "

बीच में रोक कर सेठ जी से कहा “ आपके यहाँ दुनिया का नक्शा है।” 

"सेठ ने कहा “ महाराज बहुत बड़ा नक्शा हैं।” 

महात्मा जी ने नक्शा मँगाया। उसमें सेठ से पूछा “ इस दुनिया के नक्शे में भारत कहाँ है? 

“ सेठ ने बताया। “ 

" अच्छा इसमें मुम्बई कहाँ हैं? “ 

" सेठ ने हाथ रखकर बताया। “ महात्मा जी ने फिर पूछा “ अच्छा इसमें तुम्हारी कोठी, बगीचे, मिलें बताओ कहाँ हैं? 

सेठ बोला “ महाराज दुनिया के नक्शे में इतनी छोटी चीजें कहाँ से आई? "
 
महात्मा ने कहा “ सेठ जी जब इस दुनिया के नक्शे में तुम्हारी कोठी, बगीचे, महल का कोई पता नहीं तो विश्व ब्रह्माण्ड जो भगवान के लीला ऐश्वर्य का एक खेल मात्र है उनके यहाँ तुम्हारे ऐश्वर्य का क्या स्थान होगा? "

“ सेठ जी समझ गया और उसका अभिमान नष्ट हुआ। 

वह साधु के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा। "

थोड़ी सी समृद्धि ऐश्वर्य पाकर मनुष्य इतना अभिमानी और अहंकारी बन जाता है। 

यदि वह अपनी स्थिति की तुलना अन्य लोगों से,फिर भगवान के अनन्त ऐश्वर्य से करे तो उसे अपनी स्थिति का पता चले। 

धन सम्पत्ति ऐश्वर्य का अभिमान वथा है,सबसे बड़ी मूर्खता है।

भगवन के घर केवल राम नाम की कीमत है बाकि सब व्यर्थ हैं..!



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सनातन धर्म :


बाल संस्कार : - अपने बच्चो को निम्नलिखित श्लोकों को नित्य दैनन्दिनी में शामिल करने हेतु संस्कार दे एवं खुद भी पढ़े। 

*प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र संग्रह।*

प्रात: कर-दर्शनम् :

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना :

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण : 

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

स्नान मन्त्र :

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

सूर्यनमस्कार :

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्।
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥





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संध्या दीप दर्शन :

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

गणपति स्तोत्र :

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

आदिशक्ति वंदना :

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

शिव स्तुति :

कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

विष्णु स्तुति :

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

श्रीकृष्ण स्तुति :

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥

श्रीराम वंदना :

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्रीरामाष्टक :

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

एक श्लोकी रामायण :

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥




सरस्वती वंदना :

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

हनुमान वंदना :

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

स्वस्ति-वाचन :

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

शांति पाठ :

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
*॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥*
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