https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 💥 अध्याय 6 💥 """"""""""""""""'"

💥 अध्याय 6 💥 """"""""""""""""'"

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

💥  अध्याय  6 💥
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फलों  की इच्छा का त्याग कर,
     जो करें  सभी  नित्य  कर्म को।
वह योगी,न करें वह भोगी,
      साधु मानते इसी धर्म को।। 1।।
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  सुन जिसे संन्यास कहते है,
      उसको ही तू योग  जान ले।
 बिना फल ,संकल्प को छोड़े -
      योगी न होता यह मान लें ।। 2।।

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मुनि  को योग प्राप्त करने में  ,
      कर्म ही तो कारण होते हैं ।
निष्काम कर्म से योग मार्ग,
     पर आरूढ़ शांति बोते हैं ।। 3।।

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इन्द्रिय भोग ,न ही कर्मों  में, 
     आसक्ति  वो नाहिँ पाता है।
सर्व संकल्प का त्यागी मुनि, 
     योगारूढ़  कहा जाता है।।4।।

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खुद से खुद का उद्धार करें, 
    न करना अपनी तू अधोगति।
होता मानव स्वयं का मित्र-
    शत्रु बन रोकता खुद की गति।।5।।
     
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जिसने जीता आत्मा से मन,
वह खुद का ही तो साथी है।
 आत्मा से मन जीत न पाया,
वह खुद से खुद का अराति है।।6।।

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संयोग-वियोग,सुख-दुःखादि ,
सबमें धरते शांति का  वास।
वैसे साधक के हृद में ही-
परमात्मा करते  हैं निवास।।7।।

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जो रहता संतुष्ट ज्ञान से,
    जिसका सदैव रहता स्थिर मन।
जीता इन्द्रिय को जो साधक,
     सम लगे उसे सुवर्ण, पाहन।।8।।

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सुहृद्,मित्र,शत्रु और  पापी,  
       उनको जो देखे एक तुल्य।
वैसा नर पाता इस धरा पर
       योगियों  में सदा श्रेष्ठ मूल्य ।।9।।
        
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उचित रहता योगी के लिए, 
      संग त्याग कर एकांत वास ।
करें  मन वआत्मा को वश में, 
      रखें जीव का शिव में निवास।।10।।
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योग के लिए चयन करों तुम, 
   ऐसी निर्मल व शांत धरनी ।
कुश व मृगचर्म का रख आसन,
    विरक्ति  हो अंतस में दूनी।। 11।।
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फिर करों  मन को  एकाग्र तुम ,
      इससे होती दूर कुबुद्धी।
होए  इच्छा व वृत्ति  समाप्त ,
      तब जाकर होती आत्म शुद्धि ।12।।
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रख स्थिर अपने इस तन को तू,
    बिना कुछ  इधर-उधर हिलाये।
दृष्टि रख अम्र के अग्र भाग में 
      भौतिकता से चित्त  हटायें।।13।।
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 पंचभूत को पंचभूत  से,
 नाश करता योग से जो नर।
शांत चित्त कर मुझमें रमता,
वो ले  मन चाहा मुझसे वर।।14।।

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मन को करके  वश में योगी,
आत्मा को रमाये योग से ।
वो ही मानव पा जाता फिर
परम पद को सात्विक भोग से।।15।।

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विषयों का कर के अति सेवन,
या करता निरोधात्मक वृद्धि ।
वैसे साधक नहीं पा सकें ,
योगाभ्यासों से कभी सिद्धि ।।16।।
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ले परिमित अन्न  ,परिमित भ्रमण,
      संग जो करता परिमित कर्म ।
शयन,जागरण करता परिमित ,
      तोष बढ़ पूर्ण हो योग धर्म  ।।17।।
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आत्मा से जो मनुज रोकता, 
      अपनी  इन चित्त वृत्तियों  को।
 होता निःस्पृह भावना छोड़ 
     तभी वह पाता युक्तियों को।।18।।
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जिसने किया अधीन चित्त को,
    योग में सदैव लगा रहता।
उस नर का मन शांत  स्थान के,
     दीपक की भाँति जला करता।। 19।।

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 जिस भाव से योग सेवा कर ,
     भक्त को मिलता  विश्राम है।
वहीं चित्त स्वयं  शुद्ध होकर  ,
     चैतन्य   का  करता पान है।20।।
   
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जो सुख पाएँ अनन्त हृद में ,
    दुख का न लेश मात्र होता।
वह जानता बुद्धि से सुख को
     वह  चैतन का पात्र होता।।21।

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आत्मस्वरूप सुख पाकर मन,
 भौतिकता की चाह न बोता।
सुख में स्थिर मन को रखकर ,
 सुख-दुख से विचलित न होता।।22।।

                           💥
जब मन दुख से पाता निवृत्ति,
वह स्थिति  है योगावस्था ।
अतःतू खुश होकर योग कर ,
यही है निर्विकल्प व्यवस्था।।23।।

                      💥
जब  करेगा साधक संकल्प ,
काम त्यागे 'औ' हो आभास ।
हट जाता फिर विषयों  से मन ,
 फिर  कर तू यहीं  योगाभ्यास।। 24।।

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बुद्धि लेता धैर्य की शरणत्,
      तब ब्रह्म रूप मन पाता है।
सारे चिन्तन होते समाप्त ,
      धर्म यह मार्ग बतलाता है ।। 25।।

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मन रहें हमेशा अति चंचल ,
       हो न  पाएँ जो  स्थित कभी ।
मन को बाँधें  रखो ब्रह्म में ,
      मन हो पाता हैं  शांत  तभी ।। 26।।

                
                  💥

हो जिसका मन शांत हमेशा ,
       रजोगुण होते उसके नष्ट ।
 आत्मा होती  ब्रह्म में लीन ,
       होते दूर आध्यात्मिक कष्ट ।।27।।

                    💥

ये योगी पापरहित होकर,
     जीव को शिव में लगाते हैं ।
फिर मिलता है  हमें  ब्रह्म सुख,
      ब्रह्म सुख वो ही दिलाते है।।28।।

                 💥

  देखता  जो  जीव में शिव को,
        ऐसा वह स्वरूप रखता है।
ऐक्य भाव में सदा व्याप्त हो ,
       वह सब में मुझे देखता है।।29।।

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 अर्जुन को बता रहे माधव,
    दीपक प्रकाश में भेद नहीं।
यह जो जान गया है  योगी, 
     मेरे रूप को पाता वही।।30।।

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 सभी प्राणी में  देखे मुझे, 
      रहती हो जिसमें  ऐक्य दृष्टि ।
बंधनों  से वह मुक्त रहता, 
      वही पाता फिर परमावृष्टि ।।31।।
     
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पराई पीर अपनी जानें ,
     सबको जो एक्य रुप माने।
वह ही होता है सर्व श्रेष्ठ ,
     भगवन आये तुझे   बताने।।32।।

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अर्जुन बोल रहे माधव से,
   आप ये जो मार्ग  बता रहें ।
ठग रहा मन मेरा बुद्धि को,
    हमें  कैसा पाठ पढ़ा रहें ।।33।।
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ठगी यह मन होत अति चंचल ,
     दौड़े हरपल दशों दिशा में ।
रोकना मन को बहु  कठिन है,
      रहे मन अपनी मनीषा में ।।34।।

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कृष्ण  बोल रहें ----
..................
 बात तेरी बिल्कुल सत्य है,
     मन का स्वभाव होए चंचल ।
वैराग्य के अभ्यास से ही --
शांत होता चित्त का हलचल।।35।।

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 जिसका मन नहीं रहें वश में,  
       कठिन लगे उसे योगसाधन।।
जितेन्द्रि पुरुष जो होए जग में, 
     यत्न से  वह पाएँ  स्थिरासन।।36।।
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 करें श्रद्धा से अभ्यास पर,
      ध्यान  में  जब शिथिलता आएँ ।
वैसा साधक बोलो माधव,
      फिर किस गति को वह पा जाएँ ।।37।।
     
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 जो  किया न कभी कर्म अर्पण,
     योग से  सिद्धि मिले न जिसको ।
 योगी की स्थिति होए वैसी,
       देखो बिन पानी के घन को।।38।।

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हे माधव तुम दूर  हटाओ
       मेरे मन की इस शंका  को।
 'औ' न कोई  इसे दूर करें , 
      समझो मेरी इस  मंशा को।।39।।

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मोक्ष की चाह रखे जो नर,
      उसका कभी न विनाश होता।
भले राह में रुकना पड़े, 
     अन्त में प्रभु का साथ होता।। 40।।

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योग भ्रष्ट मनुज  हमेशा ही,
    स्वर्ग का  निवास  पा जाता है।
जब ले वहीं जन्म दोबारा ,
      समृद्ध घर को वो आता है।।41।।

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या वह आता योगी कुल में, 
      स्वयं  लेने जन्म दोबारा ।
ऐसा जन्म लोक में  दुर्लभ, 
      दे रहें माधव  ज्ञान सारा।।42।।

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 पूर्व जन्म की सिद्ध बुद्धि से, 
       लेते जन्म यहाँ  दोबारा ।
बाल काल से फिर वे करते,
        प्रभु तमन्ना में योग सारा।।43।।

                         💥

पूर्व के अभ्यास से परवश,
     साधक योगा करता जाएँ ।
संपूर्णता की चाह में वो,
     फलों  से अधिक फिर फल पाएँ।।44।।

                          💥

जो भक्त  सब यत्न करता है,
     उसके पाप सभी  मिट  जाते।
हर जन्म के योग सिद्ध लोग, 
       ध्यान कर परम गति फिर पाते।। 45।।

               💥
ज्ञानी , कर्मी , तपस्वियों में, 
        होते सभी में श्रेष्ठ  योगी।
अतःकह रहा हूँ मैं तुमसे, 
         तुम  बन जाओ सच्चा जोगी।।46।।

                          💥
 
मुझमें जो भी चित्त लगाकर,
       श्रद्धा से करता मेरा भजन।
योगियों  में  लगते मुझे प्रिय,
       भक्ति में श्रेष्ठ है उसका मन।।47।।

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यहीं छठा अध्याय  समाप्त होता है🙏🏻
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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