https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: एक अमृत तुल्य ज्ञानवर्धक प्रस्तुति! https://sarswatijyotish.com/India
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एक अमृत तुल्य ज्ञानवर्धक प्रस्तुति!

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*एक अमृत तुल्य ज्ञानवर्धक प्रस्तुति! 🙏🏻🌹*


* जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल
सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥

भावार्थ:-जिनका नाम जन्म-मरण रूपी रोग की (अव्यर्थ) औषध और तीनों भयंकर पीड़ाओं (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःखों) को हरने वाला है, वे कृपालु श्री रामजी मुझ पर और आप पर सदा प्रसन्न रहें॥

मित्रो, आनन्द के महासिन्धु भगवान् रामजी हैं लेकिन रक्षा करने वाले हनुमानजी है, "तुम रच्छक काहू को डरना" जिसके रक्षक श्रीहनुमानजी हो उसको किसी से भी डरने की आवश्यकता नही हैं, हनुमानजी का सेवक है अभयम, देवी-देवता भी इससे डरने है सब देवी-देवता सोचते है कि हनुमानजी का सेवक है इसको सताने से हमारी दुर्दशा हो जायेगी और इसके अनेको प्रमाण हैं।

जो आनन्द सिन्धु सुख राशी, सीकर तें त्रैलोक सुपासी। 
सो सुख धाम राम अस नामा, अखिल लोक दायक बिश्रामा।।


"आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांकतें काँपै" इतना प्रबल तेज है श्रीहनुमानजी का इसको केवल श्रीहनुमानजी ही संभाल सकते हैं, क्योंकि यह शंकरजी के अवतार हैं, शंकर सुवन और शंकरजी प्रलय के देवता हैं, जिसमे प्रलय करने तक की शक्ति और सामर्थ्य हो उसको कोई सम्भाल सकता है क्या? लक्ष्मणजी की मूर्छा के समय यही तो बोले थे "जो हो अब अनुशासन पावो" भगवान् अगर आपकी आज्ञा हो तो! 

जो हों अब अनुशासन पावो तो चन्द्रमा निचोड़ चेल, 
जों लाइ सुधा सिर लावों जो हो अनुशासन पाऊँ।
कैं पाताल, दलो विहयावल अमृत कुँड मैं हिलाऊँ, 
भेदि, भवनकर भानु वायु तुरन्त राहुँ ते ताऊ।

यह तेज, यह प्रबल यह श्रीहनुमानजी हैं, सज्जनों! आप कल्पना करें कितनी इनकी भारी गर्जना भारी होगी, एक बार भीम को कुछ अभिमान हो गया जब कोई पुष्प द्रोपदी ने मंगाया था तो इन्होंने कहा मै लाऊंगा कोई कमल या विशेष फूल जो हिमालय में होता था, और उस सीमा के भीतर देवताओं का वास है, मनुष्य वहां नही जा सकता, लेकिन भीम ने अहंकार में कह दिया कि मैं लाऊँगा, बद्रीनाथ के पास हनुमानचट्टी में बूढे वानर के रूप में हनुमानजी लेटे थे।

भीम तो अपने अभिमान में जा रहे थे, भीम ने कहा ऐ वानर एक तरफ हट जा मुझे आगे जाने दो, बूढ़े वानर के वेश में हनुमानजी ने कहा बूढ़ा हो गया हूँ अब हिम्मत नही है, तुम मुझे थोड़ा सा सरका दो तो भीम ने कहा कि लाँघ कर जा नही सकता, बीच में तुम पडे़ हो, भीम ने पूँछ को सरकाने की भरसक कोशिश की मगर हनुमानजी की पूँछ जिसे रावण नही हिला पाया बाकी की तो बात छोड़ो।

भीम जब बहुत पसीना-पसीना हो गयें तो कहा कि कहीं आप मेरे बड़े भाई हनुमानजी तो नही है, तब हनुमानजी ने अपना एक छोटा रूप प्रकट किया, भीम ने प्रणाम किया और कहा कि हम आपका वह रूप देखना चाहते है जिस रूप में आपने लंका जलाई थी, "विकट रूप धरि लंक जरावा" हनुमानजी ने कहा वह रूप तुम सहन नहीं कर पाओगे, देख नही पाओगे।

भीम बोले हम क्या कोई सामान्य व्यक्ति हैं, आप यदि महावीर है तो हम महाभीम है, हनुमानजी ने वह रूप थोड़ा सा प्रकट किया भीम मूर्छित होकर गिर पड़े, हनुमानजी ने मूर्छा दूर की और समझाया, तो उस तेज को सम्भालने की क्षमता केवल श्रीहनुमानजी में ही है, तब भीम ने कहा आप मेरे पर कृपा करें, तब हनुमानजी ने कहा जब तुम्हारा युद्ध होगा तब मैं तुम्हारी सहायता करूँगा।

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी।
गर्भ सृवहिं सुनि निशिचर नारी।।

भीम को वापस कर दिया कि आगे देवताओं की मर्यादा है किसी की मर्यादा का उल्लंघन नही करना चाहियें, यहाँ से भीम वापस आये तो हनुमानजी का बहुत गुणगान करते आयें, श्रीहनुमानजी की गर्जना इतनी जबरदस्त थी कि राक्षसों के हाल भी बेहाल हो गयें, गर्भवती राक्षसियों के तो गर्भपात हो गये थे, हनुमानजी की हाँक सुनकर रावण भी घबरा जाता था, रावण के भी कपड़े ढीले हो जाते थे।

हाँक सुनत रजनीचर भाजे, आवत देखि बिटप गहि तर्जा।।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा, चलत महाधुनि गरजेसि भारी।।

" हाँक सुनत दशकन्द के भये बन्धन ढीले " रावण के वीरों को देखकर जब हनुमानजी गर्जना करते थे तो वीर सैनिक मूर्छित होकर गिर जाते थे, भगदड़ मच जाती थी, केवल राम - रावण युद्ध में ही गर्जना नहीं, जिस समय महाभारत का युद्ध हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अर्जुन, हनुमानजी की प्रार्थना करो, बिना उनकी सहायता के युद्ध नही जीत पाओगे।

भगवान् तो अपने भक्त को ही स्थापित करना चाहते थे, अर्जुन भी भक्त थे लेकिन अर्जुन भक्त कम और सखा ज्यादा थे, हनुमानजी भक्त की पराकाष्ठा है, इस लिये हनुमानजी प्रसन्न हो तो भगवान् प्रसन्न रहते हैं ही, इस लिये भाई - बहनों हनुमानजी को भक्ति से प्रसन्न करो, कलयुग में भगवान् को पाने का एक ही साधन है हनुमानजी की भक्ति।

जय श्री रामजी! 
जय श्री हनुमानजी

|| भगवान के कई अवतार हैं ||

अनंत अवतार हैं। जिनमें से दस अवतार प्रमुख हैं। 

भगवान के चौबीस अवतारों का भी वर्णन ग्रंथों में मिलता है। 

लेकिन जन कल्याणार्थ भगवान के अवतार होते रहते हैं। 

इस प्रकार असंख्य अवतार हैं। 

इस लिए ही भगवान के असंख्य नाम हैं। लीला और कथा हैं। भगवान एक ही हैं। 

लेकिन समय - समय पर जैसे रूप गुण और लीला की जरूरत होती है उसके अनुरूप भगवान रूप बना लेते हैं जिसे अवतार कहा जाता है। 

ऐसे ही भगवान का दीनबंधु अवतार है। 

भगवान का श्रीरामावतार ही दीनबंधु अवतार है।

त्रेता युग में साक्षात पूर्ण ब्रह्म परमात्मा दीनबंधु के रूप में अवतरित हुए। 

इस लिए इस अवतार में भगवान ने जितने और जैसे दीनों का उद्धार किया उतना और अवतार में नहीं किया है। 

भगवान राम ने दीनों का उद्धार ही नहीं किया बल्कि दीनों के बीच ही अपना वास बना लिया। 

उन्हीं के बीच जाकर रहने लगे। 

रामजी ने पशु, पक्षी, राक्षस, पत्थर, कोल, किरात, भील , केवट आदि दीनों को अपना लिया। 

अपना बना लिया। 

इतनी करुणा और रूपों में भगवान ने प्रत्यक्ष नहीं बरसाई -

केवट मीत कहे सुख मानत वानर बंधु बड़ाई' और किसी अवतार में भगवान ने इतनी करुणा नहीं दिखाई कि वानर- भालू, और गीध आदि को भी अपने प्रेम का करुणा का पात्र बना लिया हो। 

उनके मित्र बन गए हों। 

सखा बन गए हों। 

उनके बीच, उनके साथ रहने लगे हों। 

बस गए हों। 

दीन मलीन वानर भालू सदा राम जी को घेरे रहते हैं। 

ऐसा उनका विरद है। 

उनकी शोभा है - 

‘दीन मलीन रहैं नित घेरे शोभा विरद तुम्हारी’ इस प्रकार रघुनाथ जी जैसा कोई दीनबंधु नहीं है।

यह संसार परिवर्तनशील है,यहां पर बहुत कुछ चीज बदल गई हैं और अभी और बदलेगी, परंतु परमात्मा कभी नहीं बदलता। 

वह हमेशा समरूप में रहता है और सृष्टि का संचालन पालन और पोषण करता रहता है। 

प्रभु श्री राम जिसे भगवान कहा जाता है वह कभी नहीं बदले।

प्रभु श्री राम एवं हनुमान जी की कृपा पर हमेशा बनी रहे।

             || जय श्री राम जय हनुमान ||

जयति जय बालकपि केलि
कौतुक उदित -चंडकर - मंडल -ग्रासकर्त्ता।

राहु -रवि -शुक्र -पवि -गर्व खर्वीकरण
शरण -  भयहरण  जय  भुवन - भर्त्ता।।

हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो। 

आपने बचपन में ही बाललीला से उदयकालीन प्रचण्ड सूर्य के मण्डल को लाल - लाल खिलौना समझकर निगल लिया था। 

उस समय आपने राहु, सूर्य,इन्द्र और वज्र का गर्व चूर्ण कर दिया था। 

हे शरणागत के भय हरने वाले! 

हे विश्व का भरण - पोषण करने वाले! ! 

आपकी जय हो,जय हो।'

  || हनुमान जी महाराज की जय हो ||
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...