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*💐भिखारी / चमकीले नीले पत्थर की कीमत 💐*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

*💐भिखारी / चमकीले नीले पत्थर की कीमत 💐*

*🦚🌳 आज की     कहानी  🌳🦚🌞*

*💐भिखारी💐*


अपनी नई नवेली दुल्हन किरन को, शादी के दूसरे दिन, ही दहेज मे मिली नई चमाचमाती गाड़ी से, शाम को दिनेश लॉन्ग ड्राइव पर लेकर निकला !


गाड़ी बहुत तेज भगा रहा था ,किरन ने उसे ऐसा करने से मना किया तो बोला-

अरे जानेमन !! 

मजे लेने दो, *आज तक दोस्तों की गाड़ी चलाई है,* आज अपनी गाड़ी है, सालों की तमन्ना पूरी हुई। 

मैं तो खरीदने की सोच भी नही सकता था, *इसी लिए तुम्हारे डैड से मांग करी थी।*

किरन बोली :-

अच्छा, म्यूजिक तो कम रहने दो ( आवाज कम करते करते हुए किरन ने कहा )

तभी अचानक *गाड़ी के आगे एक भिखारी आ गया*, बडी मुश्किल से ब्रेक लगाते, पूरी गाड़ी घुमाते हुए दिनेश ने बचाया,फिर तुरंत उसको गाली देकर बोला-

अबे मरेगा क्या भिखारी साले , देश को बरबाद करके रखा है तुम लोगों ने।

किरन गाड़ी से निकलकर उस भिखारी तक पहुंची तो देखा बेचारा अपाहिज था उससे माफी मांगते हुए पर्स से 100रू निकालकर उसे दिए और बोला -

माफ करना काका वो हम बातों मे?

कही चोट तो नहीं आई ? 

ये लीजिए हमारी शादी हुई है मिठाई खाइएगा ओर आर्शिवाद दीजिएगा...!

उसे साइड में फुटपाथ पर ले जाकर बिठा दिया भिखारी दुआएं देने लगा....!,

गाड़ी मे वापस आकर जैसे ही किरन बैठी दिनेश बोला :- 

तुम जैसों की वजह से इनकी हिम्मत बढती है *भिखारी को मुंह नही लगाना चाहिए*

किरन मुसकुराते हुए बोली - 

*भिखारी तो मजबूर था इसीलिए भीख मांग रहा था वरना सब कुछ सही होते हुए भी लोग भीख मांगते हैं दहेज लेकर!* 

जानते हो खून पसीना मिला होता है गरीब लड़की के माँ - बाप का इस दहेज मे आपने भी तो पापा से गाड़ी मांगी थी तो कौन भिखारी हुआ?? 

वो मजबूर अपाहिज या ....??

एक बाप अपने जिगर के टुकड़े को २० सालों तक संभालकर रखता है दूसरे को दान करता है जिसे कन्यादान "महादान" तक कहा जाता है ताकि दूसरे का परिवार चल सके उसका वंश बढे और किसी की नई गृहस्थी शुरू हो....!

उस पर दहेज मांगना भीख नही तो क्या है बोलो ..?

दिनेश एकदम खामोश नीची नजरें किए शर्मिंदगी से सब सुनता रहा क्योंकि....!

किरन की बातों से पडे तमाचे ने उसे बता दिया था कि *कौन है सचमुच का भिखारी......!*

*सदैव प्रसन्न रहिये!!*
*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*

आज का प्रेरक प्रसङ्ग*

   *!! चमकीले नीले पत्थर की कीमत !!*




एक शहर में बहुत ही ज्ञानी प्रतापी साधु महाराज आये हुए थे । 

बहुत से दीन दुखी, परेशान लोग उनके पास उनकी कृपा दृष्टि पाने हेतु आने लगे ।

ऐसा ही एक दीन दुखी, गरीब आदमी उनके पास आया और साधु महाराज से बोला ‘ महाराज में बहुत ही गरीब हूँ ।

मेरे ऊपर कर्जा भी है ।

मैं बहुत ही परेशान हूँ। 

मुझ पर कुछ उपकार करें’ ।

साधु महाराज ने उसको एक चमकीला नीले रंग का पत्थर दिया ।

और कहा ‘कि यह कीमती पत्थर है ।

जाओ जितनी कीमत लगवा सको लगवा लो। 

वो आदमी वहां से चला गया और उसे बचने के इरादे से अपने जान पहचान वाले एक फल विक्रेता के पास गया और उस पत्थर को दिखाकर उसकी कीमत जाननी चाही।
 
फल विक्रेता बोला ‘मुझे लगता है ये नीला शीशा है ।

महात्मा ने तुम्हें ऐसे ही दे दिया है ।

हाँ यह सुन्दर और चमकदार दिखता है ।

तुम मुझे दे दो....!

इसके मैं तुम्हें 1000 रुपए दे दूंगा। 

वो आदमी निराश होकर अपने एक अन्य जान पहचान वाले के पास गया जो की एक बर्तनों का व्यापारी था ।

उनसे उस व्यापारी को भी वो पत्थर दिखाया और उसे बचने के लिए उसकी कीमत जाननी चाही। 

बर्तनो का व्यापारी बोला....!

‘यह पत्थर कोई विशेष रत्न है में इसके तुम्हें 10,000 रुपए दे दूंगा । 

वह आदमी सोचने लगा की इसके कीमत और भी अधिक होगी और यह सोच वो वहां से चला आया.

उस आदमी ने इस पत्थर को अब एक सुनार को दिखाया ।

सुनार ने उस पत्थर को ध्यान से देखा और बोला ये काफी कीमती है ।

इसके मैं तुम्हें 1,00,000 रूपये दे दूंगा। 

वो आदमी अब समझ गया था कि यह बहुत अमुल्य है ।

उसने सोचा क्यों न मैं इसे हीरे के व्यापारी को दिखाऊं.....।

यह सोच वो शहर के सबसे बड़े हीरे के व्यापारी के पास गया।

उस हीरे के व्यापारी ने जब वो पत्थर देखा तो देखता रह गया ।

चौकने वाले भाव उसके चेहरे पर दिखने लगे ।

उसने उस पत्थर को माथे से लगाया और और पुछा तुम यह कहा से लाये हो ।

यह तो अमुल्य है ।

यदि मैं अपनी पूरी सम्पति बेच दूँ तो भी इसकी कीमत नहीं चुका सकता.....!

कहानी से सीख :-
 
हम अपने आप को कैसे आँकते हैं ।

क्या हम वो हैं जो राय दूसरे हमारे बारे में बनाते हैं ।

आपकी लाइफ अमूल्य है ।

आपके जीवन का कोई मोल नहीं लगा सकता.  आप वो कर सकते हैं ।

जो आप अपने बारे में सोचते हैं.।

कभी भी दूसरों के नेगेटिव कमैंट्स से अपने आप को कम मत आकियें।
🙏 जय माँ अंबे 🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🌳जय श्री कृष्ण🌳🙏🙏🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

महारास एक चिंतन , *★पूंछरी के लोठा की जय ★*

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जय द्वारकाधीश

।। श्री विष्णुपुराण प्रवचन ।।
   

महारास एक चिंतन , *★पूंछरी के लोठा की जय ★*       

    🌕शरदपूर्णिमा की आप सबको बधाई।

           ( महारास एक चिंतन )




🌇प्रथमतः उस ब्रह्म द्वारा बाँसुरी का नाद किया जाता है ।

अर्थात् जीव को अपनी ओर  आकर्षित करने हेतु आवाज लगाई जाती है। 

कुछ लोग इस आवाज को सुन नहीं पाते हैं। 

कुछ सुन तो लेते हैं लेकिन समझ नहीं पाते हैं। 

मगर जो लोग इस इशारे को समझ लेते हैं ।

वो सब भोग विलास का त्याग करके उस प्रभु की शरण में चले जाते हैं।

🌇जब जीव द्वारा पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण की जाती है ।

तब श्रीकृष्ण द्वारा अपना वह ब्रह्म रस उन शरणागतों के मध्य मुक्त हस्तों से वितरित करके उन्हें उस अलौकिक ब्रह्म रस का आस्वादन कराके निहाल किया जाता है।

🌇जब तक जीव प्रभु के इशारे को अनसुना करके मैं और मेरे में उलझा रहता है ।

तब तक ही वह परेशान रहता है ।

मगर जिस दिन उसकी समझ में आ जाता है ।

कि अब मेरे प्रभु मुझे बुला रहे हैं ।

और वह सब छोड़कर उस प्रभु के शरणागत हो जाता है ।

उसी दिन उस प्रभु द्वारा उसे उस ब्रह्म रस में डुबकी लगाने हेतु महारास के उस ब्रह्म रस वितरण महोत्सव में प्रविष्ट करा दिया जाता है।

🌇जिस रस को ब्रह्मा,शंकर प्राप्त करने को लालायित रहते हैं। 

उस रस को बृज की गोपियाँ प्राप्त करती हैं। 

श्रीराधा रानी तो रास की स्वामिनी हैं और श्री ठाकुर जी को भी नचाने वाली हैं। 

किशोरी जी की कृपा होती है तभी जीव को रास का आनंद प्राप्त होता है।

जय रणछोड !
जय श्री राधे कृष्ण !!
🌹🙏🌹🙏🌹

*★पूंछरी के लोठा की जय ★*



 बहुत सुंदर कथा, बड़े भाव से पढ़े


श्रीकृष्ण के श्रीलोठाजी नाम के एक मित्र थे।

श्रीकृष्ण ने द्वारिका जाते समय लौठाजी को अपने साथ चलने का अनुरोध किया।

इस पर लौठाजी बोले-

 'हे प्रिय मित्र ! 

मुझे ब्रज त्यागने की कोई इच्छा नहीं हैं।

परन्तु तुम्हारे ब्रज त्यागने का मुझे अत्यन्त दु:ख हैं।


अत: तुम्हारे पुन: ब्रजागमन होने तक मैं अन्न - जल छोड़कर प्राणों का त्याग यही कर दूंगा। 

जब तू यहाँ लौट  आवेगा, तब मेरा नाम लौठा सार्थक होगा।

'श्रीकृष्ण ने कहा-

 'सखा ! 

ठीक है मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि बिना अन्न - जल के तुम स्वस्थ और जीवित रहोगे। 

तभी से श्रीलौठाजी पूंछरी में बिना खाये-पिये तपस्या कर रहे हैं।

"धनि - धनि पूंछरी के लौठा।

अन्न खाय न पानी पीवै ऐसेई पड़ौ सिलौठा।"

उसे विश्वास है कि श्रीकृष्णजी अवश्य यहाँ लौट कर आवेंगे। 

क्योंकि श्रीकृष्णजी स्वयं वचन दे गये हैं।

इस लिये इस स्थान पर श्रीलौठाजी का मन्दिर प्रतिष्ठित है।

श्री गोवर्धन का आकार एक मोर के सदृश है। श्रीराधाकुंड उनके जिहवा एवं कृष्ण कुण्ड चिवुक हैं।

ललिता कुण्ड ललाट है। 

पूंछरी नाचते हुए मोर के पंखों - पूंछ के स्थान पर हैं। 

इस लिये इस ग्राम का नाम पूछँरी प्रसिद्ध हैं।

इसका दूसरा कारण यह है, कि श्रीगिरिराजजी की आकृति गौरुप है। 

आकृति में भी श्रीराधाकुण्ड उनके जिहवा एवं ललिताकुण्ड ललाट हैं एवं पूंछ पूंछरी में हैं।

इस कारण से भी इस गांव का नाम पूँछरी कहते हैं। 

इस स्थान पर श्रीगिरिराजजी के चरण विराजित हैं। 

ऐसा भी कहते है कि जब सभी गोप गोपियाँ गोवर्धन की परिक्रमा नाचते गाते कर रहे थे,तभी एक मोटा तकड़ा गोप वही गिर गए तभी पीछे से एक सखी ने कहा अरे सखी पूछ री कौ लौठा,

अर्थात "कौन लुढक गया" इस लिए भी इसे पूंछरी लौठा कहते है।

!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
      हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
                     🌹🙏🏻🌹
जगत की झूठी रौनक से है आँखे भर गयी मेरी
चले आओ मेरे मोहन दरस की प्यास काफी है

        *🌹✨ हरे कृष्ण ✨🌹*
  *🌹💦जय जय श्री राधे💦🌹*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
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।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन / सुंदर सुविचार ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश


।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।


रामायण के प्रमुख पात्र व परिचय --


दशरथ - रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या ।




कौशल्या - दशरथ की बङी रानी, राम की माता ।

सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुध्न की माता ।

कैकयी - दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता ।

सीता - जनकपुत्री, राम की पत्नी ।

उर्मिला - जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी ।

मांडवी - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी ।

श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न
की पत्नी ।

राम - दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति ।

लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति ।

भरत - दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति ।

शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासूर के संहारक ।

शान्ता - दशरथ की पुत्री, राम भगिनी ।

बाली - किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयो का बल ।

सुग्रीव - बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमानजी ने मित्रता करवाई ।

तारा - बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओ मे स्थान ।

रुमा - सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी ।

अंगद - बाली तथा तारा का पुत्र ।

रावण - ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।

कुंभकर्ण - रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।

कुंभिनसी - रावण तथा कूंभकर्ण की भगिनी, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा की पुत्री ।

विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा, राका, मालिनी का पति ।

विभीषण - विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त ।

पुष्पोत्कटा - विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता ।

राका - विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता ।

मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी ।

खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता ।
त्रिसरा - विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति ।

शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-
दूसन एवं त्रिसरा की भगिनी, विंध्य क्षेत्र मे निवास ।

मंदोदरी - रावण की पत्नी, तारा की भगिनी, पंचकन्याओ मे स्थान ।

मेघनाद - रावण का पुत्र इंद्रजीत, ल्क्ष्मन द्वारा वध ।

दधिमुख - सुग्रीव का मामा ।

ताङका - राक्षसी, मिथिला के वनो मे निवास, राम द्वारा वध ।

मारीची - ताङका का पुत्र, राम द्वारा वध ( स्वर्ण मर्ग के रूप मे ) ।

सुबाहू - मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध ।

सुरसा - सर्पो की माता ।

त्रिजटा - अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग ।

प्रहस्त - रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध मे मृत्यु ।

विराध - दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध ।

शंभासुर - राक्षस, इन्द्र द्वरा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा ।

सिंहिका - लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकङकर खाती थी ।

कबंद - दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धङ मे घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकङा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमे गाङ दिया ।

जामबंत - रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति।

नल - सुग्रीव की सेना का वानरवीर ।

नील - सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी ।

( नल और नील सुग्रीव सेना मे इंजीनियर व राम सेतु
निर्माण मे महान योगदान )।

शबरी - अस्पृश्य जाती की रामभक्त ।

संपाती - जटायु का बङा भाई, वानरो को सीता का पता बताया ।

जटायु - रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार ।

गृह - श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था ।

हनुमान - पवन के पुत्र, राम भक्त।

सुग्रीव के मित्र सुषेण वैध - सुग्रीव के ससुर ।

केवट - नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी ।

शुक्र-सारण - रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये ।

अगस्त्य - पहले आर्य ऋषि जिन्होने विन्ध्याचल पर्वतपार किया था तथा दक्षिण भारत गये ।

गौतम - तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट ।

अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित , राम ने शाप मुक्त किया,
पंचकन्याओ मे स्थान ।

ऋण्यश्रंग - ऋषि जिन्होने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया था ।

सुतीक्ष्ण - अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि ।

मतंग - ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी ।

वसिष्ठ - अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओ के गुरु ।

विश्वमित्र - राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी ।

शरभंग - एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम ।

सिद्धाश्रम - विश्वमित्र के आश्रम का नाम ।

भरद्वाज - बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे ।

माँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था ।

सतानन्द - राम के स्वागत को जनक के साथ जाने
वाले ऋषि ।

युधाजित - भरत के मामा 

जनक - मिथिला के राजा ।

सुमन्त्र - दशरथ के आठ मंत्रियो मे से प्रधान...!

मंथरा - कैकयी की मुंह लगी दासी कुबङी....!

देवराज - जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ ( पिनाक ) रख दिया था ।

आयोध्य – राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी...!

बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौङी....!

नगर के चारो ओर ऊँची व चौङी दीवारों व खाई थी....!

राजमहल से आठ सङके बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।
 
जय जय श्री राम राम राम सीताराम......!!!!

।। सुंदर सुविचार ।।

        संत समझाते हैं कि व्यर्थ और बेकार की बातचीत में ना लगे। 

        अगर  आप फिजूल की बातचीत करते हैं तो परमात्मा से की गई आप की प्रार्थनाएं मजाक मात्र हैं। 


        यह गपशप आपको बनावटी और कपटी साबित करते हैं। 

        यह रूहानियत की जड़ को ही काट देती है। 

        एक और तो परमात्मा से दया मेहर की याचना और दूसरी ओर अपने कीमती समय और शक्ति को बेकार खर्च करने का आपस में कोई मेल नहीं। 

        सोचिए अधिक बोलिए कम । 

        अगर आपको अपनी रूहानी निर्धनता का होश है तो हर मिनट अपनी आध्यात्मिक विरासत को पाने के लायक बनने की कोशिश करें।
।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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जय द्वारकाधीश....
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युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,कि कलयुग में क्या होगा ?

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,कि कलयुग में क्या होगा ?


युधिष्ठर को पूर्ण आभास था,

कि कलयुग में क्या होगा ?
पूरा अवश्य पढें।
अच्छा लगेगा।

पाण्डवों का अज्ञातवाश समाप्त होने में कुछ समय शेष रह गया था।



पाँचो पाण्डव एवं द्रोपदी जंगल मे छूपने का स्थान 
ढूंढ रहे थे।

उधर शनिदेव की आकाश मंडल से पाण्डवों पर नजर पड़ी शनिदेव के मन विचार आया कि इन 5 में बुद्धिमान कौन है परीक्षा ली जाय।

शनिदेव ने एक माया का महल बनाया कई योजन दूरी में उस महल के चार कोने थे, पूरब, पश्चिम, उतर, दक्षिण।

अचानक भीम की नजर महल पर पड़ी
और वो आकर्षित हो गया ,

भीम, यधिष्ठिर से बोला- भैया मुझे महल देखना है भाई ने कहा जाओ ।

भीम महल के द्वार पर पहुंचा वहाँ शनिदेव दरबान के रूप में खड़े थे,

भीम बोला- मुझे महल देखना है!

शनिदेव ने कहा- महल की कुछ शर्त है ।

1- शर्त महल में चार कोने हैं आप एक ही कोना देख सकते हैं।

2-शर्त महल में जो देखोगे उसकी सार सहित व्याख्या करोगे।

3-शर्त अगर व्याख्या नहीं कर सके तो कैद कर लिए जाओगे।

भीम ने कहा- 

मैं स्वीकार करता हूँ ऐसा ही होगा ।

और वह महल के पूर्व छोर की ओर गया ।

वहां जाकर उसने अद्भूत पशु पक्षी और फूलों एवं फलों से लदे वृक्षों का नजारा देखा,

आगे जाकर देखता है कि तीन कुंए है अगल-बगल में छोटे कुंए और बीच में एक बडा कुआ।

बीच वाला बड़े कुंए में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे खाली कुओं को पानी से भर देता है। फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तो खाली पड़े बड़े कुंए का पानी आधा रह जाता है इस क्रिया को भीम कई बार देखता है पर समझ नहीं पाता और लौटकर दरबान के पास आता है।

दरबान - क्या देखा आपने ?

भीम- महाशय मैंने पेड़ पौधे पशु पक्षी देखा वो मैंने पहले कभी नहीं देखा था जो अजीब थे। 

एक बात समझ में नहीं आई छोटे कुंए पानी से भर जाते हैं बड़ा क्यों नहीं भर पाता ये समझ में नहीं आया।

दरबान बोला आप शर्त के अनुसार बंदी हो गये हैं और बंदी घर में बैठा दिया।

अर्जुन आया बोला- 

मुझे महल देखना है, दरबान ने शर्त बता दी और अर्जुन पश्चिम वाले छोर की तरफ चला गया।

आगे जाकर अर्जुन क्या देखता है। 

एक खेत में दो फसल उग रही थी एक तरफ बाजरे की फसल दूसरी तरफ मक्का की फसल ।


बाजरे के पौधे से मक्का निकल रही तथा
मक्का के पौधे से बाजरी निकल रही । 

अजीब लगा कुछ समझ नहीं आया वापिस द्वार पर आ गया।

दरबान ने पूछा क्या देखा,

अर्जुन बोला महाशय सब कुछ देखा पर बाजरा और मक्का की बात समझ में नहीं आई।

शनिदेव ने कहा शर्त के अनुसार आप बंदी हैं ।

नकुल आया बोला
 मुझे महल देखना है ।

फिर वह उत्तर दिशा की और गया वहाँ उसने देखा कि बहुत सारी सफेद गायें जब उनको भूख लगती है तो अपनी छोटी बछियों का दूध पीती है उसे कुछ समझ नहीं आया द्वार पर आया ।

शनिदेव ने पूछा क्या देखा ?

नकुल बोला महाशय गाय बछियों का दूध पीती है यह समझ नहीं आया तब उसे भी बंदी बना लिया।

सहदेव आया बोला मुझे महल देखना है और वह दक्षिण दिशा की और गया अंतिम कोना देखने के लिए क्या देखता है वहां पर एक सोने की बड़ी शिला एक चांदी के सिक्के पर टिकी हुई डगमग डोले पर गिरे नहीं छूने पर भी वैसे ही रहती है समझ नहीं आया वह वापिस द्वार पर आ गया और बोला सोने की शिला की बात समझ में नहीं आई तब वह भी बंदी हो गया।

चारों भाई बहुत देर से नहीं आये तब युधिष्ठिर को चिंता हुई वह भी द्रोपदी सहित महल में गये।

भाइयों के लिए पूछा तब दरबान ने बताया वो शर्त अनुसार बंदी है।

युधिष्ठिर बोला भीम तुमने क्या देखा ?

भीम ने कुंऐ के बारे में बताया

तब युधिष्ठिर ने कहा- 

यह कलियुग में होने वाला है एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा परन्तु दो बेटे मिलकर एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।

भीम को छोड़ दिया।

अर्जुन से पुछा तुमने क्या देखा ??

उसने फसल के

बारे में बताया 

युधिष्ठिर ने कहा- 

यह भी कलियुग में होने वाला है।

वंश परिवर्तन अर्थात ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर बनिए की लड़की ब्याही जायेंगी।

अर्जुन भी छूट गया।

नकुल से पूछा तुमने क्या देखा तब उसने गाय का वृतान्त बताया ।

तब युधिष्ठिर ने कहा- 

कलियुग में माताऐं अपनी बेटियों के घर में पलेंगी बेटी का दाना खायेंगी और बेटे सेवा नहीं करेंगे ।

तब नकुल भी छूट गया।

सहदेव से पूछा तुमने क्या देखा, उसने सोने की शिला का वृतांत बताया,

तब युधिष्ठिर बोले- 

कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा परन्तु धर्म फिर भी जिंदा रहेगा खत्म नहीं होगा।।  

आज के कलयुग में यह

सारी बातें सच

साबित हो रही है ।।

मुझे अच्छा लगा। 

आपके समक्ष रखा है ।

मैं आशा करता हूँ 

🙏 कि आप इसे और भी लोगों तक पहुचायेंगे !!!!!!!

👏🏻👏🏻  जयश्रीकृष्ण, जय श्रीराधे 👏🏻👏🏻
  🙏🏻  *ॐ शांति*🙏🏻
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

*जो होता है प्रभु परमात्मा की इच्छा से होता है* , *विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता:*

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश


जो होता है प्रभु परमात्मा की इच्छा से होता है

कभी कभी हमारे साथ कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे हम बहुत बेचैनी  महसूस करते है। 

ऐसा लगता है जैसे अब सब कुछ खत्म हो गया इससे कई लोग डिप्रेशन  मे चले जाते है तो कई लोग बड़ा और बेवकूफी भरा कदम उठा लेते है पर जरा सोचिये पतझड़ के समय जब पेड़ मे ऐक भी पत्ती नही बचती है तो क्या उस पेड़ का अंत हो जाता है? 

नही। 

वो पेड़ हार नही मानता नए जीवन और बहार के आश मे खड़ा रहता है। 

और जल्द ही उसमे नयी पत्तियाँ आनी शुरू हो जाती है, उसके जीवन मे फिर से बहार आ जाती  है। 

यही प्रकृति का नियम है।


ठीक ऐसे ही अगर हमारे जीवन मे कुछ ऐसे डेसट्रक्टिवे पल आते है तो इसका मतलब अंत नही बल्की ये इस बात का इशारा है कि हमारे जीवन मे भी नयी बहार आयगी अत: हमे सब कुछ भूलकर नयी जिन्दगी की शुरूआत करनी चाहिये। 

और ये विश्वास रखना चाहिए कि नयी जिन्दगी पुरानी से कही बेहतर होगी। 

विधि का विधान कोई टाल नहीं सकता: 
                                                                                                                                    भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।

द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। 

तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।

चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।

उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की द्रष्टि से देखा। 

गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने
साथ यमलोक ले जाएँगे।

गरूड़ को दया आ गई। 

इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। 

उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद बापिस कैलाश पर आ गया।

आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी
नजर से क्यों देखा था। 

यम देव बोले.....! 

" गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। 

मैं सोच रहा था कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी। "

गरुड़ समझ गये " मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए। "

इस लिए कृष्ण कहते है।

करता तू वह है ,
जो तू चाहता है।
परन्तु होता वह है,
जो में चाहता हूँ।
कर तू वह ,
जो में चाहता हूँ,
फिर होगा वो, 
जो तू चाहेगा ।

जीवन के 6 सत्य:-

1. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने खूबसूरत हैं ?

क्योंकि..लँगूर और गोरिल्ला भी अपनी ओर लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं..

2. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका शरीर कितना विशाल और मज़बूत है ?

क्योंकि...श्मशान तक आप अपने आपको नहीं ले जा सकते....

3. आप कितने भी लम्बे क्यों न हों , मगर आने वाले कल को आप नहीं देख सकते....

4. कोई फर्क नहीं पड़ता कि , आपकी त्वचा कितनी गोरी और चमकदार है

क्योंकि...अँधेरे में रोशनी की जरूरत पड़ती ही है...

5 . कोई फर्क नहीं पड़ता कि " आप " नहीं हँसेंगे तो सभ्य कहलायेंगे ?

क्यूंकि ..." आप " पर हंसने के लिए दुनिया खड़ी है ?

6. कोई फर्क नहीं पड़ता कि ,आप कितने अमीर हैं ? और दर्जनों गाड़ियाँ आपके पास हैं ? 

क्योंकि...घर के बाथरूम तक आपको चल के ही जाना पड़ेगा...

इस लिए संभल के चलिए ... ज़िन्दगी का सफर छोटा है , हँसते हँसते काटिये , आनंद आएगा ।      
*◆●स्वयं विचार करें​●◆*
*जय श्री राधे श्याम👏*
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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।। वेद पुराण शास्त्रों आधारित सुंदर कहानी बिहारीजी की लीला बासी तुलसी।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। वेद पुराण शास्त्रों आधारित सुंदर कहानी बिहारीजी की लीला बासी तुलसी।।

बिहारी जी किसी का उधार नही रखते...!

एक बार की बात है। 

वृन्दावन में एक संत रहा करते थे। 




उनका नाम था कल्याण बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे एक बार उनके पास एक सेठ आया।

अब था तो सेठ लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था। 

उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था। 

अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा महाराज आप कोई उपाय करिये। 

उन संत ने कहा देखो अगर मैं कोई उपाय जनता तो तुम्हे अवश्य बता देता।

मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही जिससे मैं तेरे व्यापार को ठीक कर सकूँ।

ये मेरे बस में नही है।

हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी। 

इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया। 

अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले तुझे जो कुछ मांगना है।

जो कुछ कहना है...!

इनसे कह दे...!

ये सब की मनो कामनाओ को पूर्ण कर देते है। 

अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया। 

कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे धीरे ठीक हो गया।

फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा।

बिहारी जी का धन्यवाद करता फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया।

वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नही रही।

लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था।

तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है।

तो उसने उसे कुछ पैसे दिए 750 रुपये और कहा कि....!

ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना। 

अब बात तो बहुत पुरानी है ये...!

अब वो भक्त जब वृन्दावन आया है।

तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया है।

लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया।

लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे तो बन गई है कोई बात नही।

लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही।




अब इधर मंदिर बंद हुआ।

तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए।

अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है। 

उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी।

वो मेने स्वीकार की लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है।

तुम उस भक्त को ये रुपये लौटा देना।

ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए।

अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया।

कि ये कैसी लीला है बिहारी जी की।

अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुच गया।

तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आएंगे। 

जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया।

कि ये बात तो मैं ही जानता था और तो मैने किसी को बताई भी नही।

सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे।

वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है। 

ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा और बोला जय हो बिहारी जी की इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला।

तो भक्तो ऐसे है हमारे बिहारी जी ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नही रहने देते। 

जो एक बार इनकी शरण ले लेता है।

फिर उसे किसी से कुछ माँगना नही पड़ता उसको सब कुछ मिलता चला जाता है।

बासी तुलसी

प्रश्न- कुछ लोग कहते हैं कि रविवार को तुलसी चयन नहीं करनी चाहिये तथा जल भी नहीं देना चाहिये, शास्त्र में क्या प्रावधान है?

उत्तर: केवल रविवार ही क्यों? 

शास्त्र में तो अनेक दिवसों में तुलसी चयन का निषेध उपलब्ध होता है! 

जहाँ तक जल देने का प्रश्न है।

सींचना या जल देना कभी भी निषिद्ध नहीं है!

पद्मपुराण उत्तर खण्ड तथा स्कन्द पुराण अवन्ती खण्ड में कथित है- 

रोगाणाम भिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तक- त्रासिनी सींचे जाने पर तुलसी यमराज को दूर भगा देती है।

अगस्त संहिता का वचन है-

तुलसी रोपण, जल सिंचन, दर्शन एवं स्पर्श आदि से पवित्रता मिलती है।

तुलसी रोपिता सिक्ता दृष्टा स्पृष्टा च पावयेत्।

पुनः पद्मोक्ति है।

कि तुलसी रोपण, पालन, जल सेंचन, दर्शन, स्पर्श करने से समस्त पाप भस्मित कर देती है।

रोपणात् पालनात् सेकाद्      
दर्शनात् स्पर्शनात्रान्नृणाम् ।
तुलसी दहते पापं वाड्मनः काय संचितम् ।।

जहाँ तक चयन करने की बात है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खण्ड में श्रीभगवान तुलसी के प्रति कहते हैं- 

पुर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति, मध्याह्नकाल, रात्रि, दोनों सन्ध्यायें, अशौच समय, बिना स्नान किये शरीर में तेल लगाकर तुलसी चयन न करें! 

इतने निषिद्ध दिनों में तुलसी चयन करना वर्जित कहा है ।

वहीं बिना तुलसी के भगवदचर्ना अधूरी मानी जाती है।

अतः वाराह पुराण में इसके समाधान के रूप में व्यवस्था दी गयी है।

कि निषिद्ध काल में स्वतः झड़कर गिरे हुए तुलसीदलों से अर्चना करें:  --
  
निषिद्धे दिवसे प्राप्ते गृहणीयात् ।
गलितं दलम्तेनैव पूजा         
 कुर्वति न पूजा तुलसीं बिना ।।

उक्त निषिद्ध अवसरों के अपवाद स्वरूप शास्त्र का ऐसा निर्देश भी है।

कि शालग्राम की नित्य पूजा हेतु निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी चयन कर्तव्य है ।

शालग्रामशिलार्चार्थं प्रत्यहं तुलसी सितौ।
 तुलसी ये चिन्वन्ति धन्यास्ते कर पल्लवाः।।

संक्रान्त्यादौ निषिद्धेऽपि तुलस्यवचय स्मृतः

तथापि द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी न करें विष्णु धर्मोंत्तर का वचन है- 

न छिन्द्यात् तुलसी विप्रा द्वादश्यां वैष्णवः क्वचित्।

तुलसी दल चयन करके घर में रखे जा सकते हैं और उन्हें ही पूजा में प्रयुक्त किया जा सकता है।

क्योंकि तुलसी दल बासी नहीं माने जाते।

अतः वर्जित नहीं है

अनेक पुराणों में यह श्लोक उद्धृत है-

वर्ज्यं पर्युषितं पुष्प वर्ज्यं पर्युषित जलम्।
 न वर्ज्यं तुलसी दलं न वर्ज्यं जाह्नवी जलम् पद्म- स्कन्द- नारदादि।।

अर्थात पुष्प या जल बासी हो सकते हैं।

तुलसीदल व गंगाजल कभी बासी नहीं होते।





अच्छी सोच

एक महान विद्वान से मिलने के लिये एक दिन रोशनपुर के राजा आये। 

राजा ने विद्वान से पुछा, ‘क्या इस दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जो बहुत महान हो लेकिन उसे दुनिया वाले नहीं जानते हो?’

विद्वान ने राजा से विनम्र भाव से मुस्कुराते हुये कहा, ‘हम दुनिया के ज्यादातर महान लोगों को नहीं जानते हैं।’ 

दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो महान लोगों से भी कई गुना महान हैं।

राजा ने विद्वान से कहा, ‘ऐसे कैसे संभव है’। 

विद्वान ने कहा, मैं आपको ऐसे कई व्यक्तियों से मिलवाऊंगा। इतना कहकर विद्वान, राजा को लेकर एक गांव की ओर चल पड़े। 

रास्ते में कुछ दुर पश्चात् पेड़ के नीचे एक बुढ़ा आदमी वहाँ उनको मिल गया। 

बुढ़े आदमी के पास एक पानी का घड़ा और कुछ डबल रोटी थी। 

विद्वान और राजा ने उससे मांगकर डबल रोटी खाई और पानी पिया।

जब राजा उस बूढ़े आदमी को डबल रोटी के दाम देने लगा तो वह आदमी बोला, ‘महोदय, मैं कोई दुकानदार नहीं हूँ। 

मैं बस वही कर रहा हूँ जो मैं इस उम्र में करने योग्य हूँ। 

मेरे बेटे का डबल रोटी का व्यापार है, मेरा घर में मन नहीं लगता इसलिये राहगिरों को ठंडा पानी पिलाने और डबल रोटी खिलाने आ जाया करता हूँ। 

इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है।

विद्वान ने राजा को इशारा देते हुए कहा कि देखो राजन् इस बुढ़े आदमी की इतनी अच्छी सोच ही इसे महान बनाती है।

फिर इतना कहकर दोनों ने गाँव में प्रवेश किया तब उन्हें एक स्कूल नजर आया। 

स्कूल में उन्होंने एक शिक्षक से मुलाकात की और राजा ने उससे पूछा कि आप इतने विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं तो आपको कितनी तनख्वाह मिलती है। 

उस शिक्षक ने राजा से कहा कि महाराज मैं तनख्वाह के लिये नहीं पढ़ा रहा हूँ, यहाँ कोई शिक्षक नहीं थे और विद्यार्थियों का भविष्य दाव पर था इस कारण मैं उन्हें मुफ्त में शिक्षा देने आ रहा हूँ।

विद्वान ने राजा से कहा कि महाराज दूसरों के लिये जीने वाला भी बहुत ही महान होता है। 

और ऐसे कई लोग हैं जिनकी ऐसी महान सोच ही उन्हें महान से भी बड़ा महान बनाती हैं।

इसलिए राजन् अच्छी सोच आदमी का किस्मत निर्धारित करती है।

इस लिए Friends हमेशा अच्छी बातें ही सोचकर कार्य करें और महान बनें। 

Friends आदमी बड़ी बातों से नहीं बल्कि अच्छी सोच व अच्छे कामों से महान माना जाता है।

शिक्षा:- 

Life में कुछ Achieve करने के लिये और सफलता हासिल करने के लिये बड़ी बातों को ज्यादा Importance देने के बजाय अच्छी सोच को ज्यादा महत्व देना चाहिये क्योंकि आपकी अच्छी सोच ही आपके कार्य को निर्धारित करती है!



सबक

एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..।

वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा....!

वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -

"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली -

"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"

और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और वह रुक गई ओर वह बोली - 
"हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" 

और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे की आँच में जला दिया..। 

एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी लेके, 

"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..।

इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। 

महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..।

वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- 

"माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.....! 

उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया......! 

भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे....! 

मैंने उससे खाने को कुछ माँगा....! 

उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- 

"मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लिया.....।

उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला कर नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था -
"जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा ।"

              " निष्कर्ष "
           
हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...