https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: ।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन / सुंदर सुविचार ।।

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन / सुंदर सुविचार ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश


।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।


रामायण के प्रमुख पात्र व परिचय --


दशरथ - रघुवंशी राजा इन्द्र के मित्र कोशल के राजा तथा राजधानी एवं निवास अयोध्या ।




कौशल्या - दशरथ की बङी रानी, राम की माता ।

सुमित्रा - दशरथ की मझली रानी, लक्ष्मण तथा शत्रुध्न की माता ।

कैकयी - दशरथ की छोटी रानी, भरत की माता ।

सीता - जनकपुत्री, राम की पत्नी ।

उर्मिला - जनकपुत्री, लक्ष्मण की पत्नी ।

मांडवी - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, भरत की पत्नी ।

श्रुतकीर्ति - जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री, शत्रुध्न
की पत्नी ।

राम - दशरथ तथा कौशल्या के पुत्र, सीता के पति ।

लक्ष्मण - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, उर्मिला के पति ।

भरत - दशरथ तथा कैकयी के पुत्र, मांडवी के पति ।

शत्रुध्न - दशरथ तथा सुमित्रा के पुत्र, श्रुतकीर्ति के पति, मथुरा के राजा लवणासूर के संहारक ।

शान्ता - दशरथ की पुत्री, राम भगिनी ।

बाली - किश्कंधा (पंपापुर) का राजा, रावण का मित्र तथा साढ़ू, साठ हजार हाथीयो का बल ।

सुग्रीव - बाली का छोटा भाई, जिनकी हनुमानजी ने मित्रता करवाई ।

तारा - बाली की पत्नी, अंगद की माता, पंचकन्याओ मे स्थान ।

रुमा - सुग्रीव की पत्नी, सुषेण वैध की बेटी ।

अंगद - बाली तथा तारा का पुत्र ।

रावण - ऋषि पुलस्त्य का पौत्र, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।

कुंभकर्ण - रावण तथा कुंभिनसी का भाई, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा का पुत्र ।

कुंभिनसी - रावण तथा कूंभकर्ण की भगिनी, विश्रवा तथा पुष्पोत्कटा की पुत्री ।

विश्रवा - ऋषि पुलस्त्य का पुत्र, पुष्पोत्कटा, राका, मालिनी का पति ।

विभीषण - विश्रवा तथा राका का पुत्र, राम का भक्त ।

पुष्पोत्कटा - विश्रवा की पत्नी, रावण, कुंभकर्ण तथा कुंभिनसी की माता ।

राका - विश्रवा की पत्नी, विभीषण की माता ।

मालिनी - विश्रवा की तीसरी पत्नी ।

खर-दूषण त्रिसरा तथा शूर्पणखा की माता ।
त्रिसरा - विश्रवा तथा मालिनी का पुत्र, खर-दूषण का भाई एवं सेनापति ।

शूर्पणखा - विश्रवा तथा मालिनी की पुत्री, खर-
दूसन एवं त्रिसरा की भगिनी, विंध्य क्षेत्र मे निवास ।

मंदोदरी - रावण की पत्नी, तारा की भगिनी, पंचकन्याओ मे स्थान ।

मेघनाद - रावण का पुत्र इंद्रजीत, ल्क्ष्मन द्वारा वध ।

दधिमुख - सुग्रीव का मामा ।

ताङका - राक्षसी, मिथिला के वनो मे निवास, राम द्वारा वध ।

मारीची - ताङका का पुत्र, राम द्वारा वध ( स्वर्ण मर्ग के रूप मे ) ।

सुबाहू - मारीची का साथी राक्षस, राम द्वारा वध ।

सुरसा - सर्पो की माता ।

त्रिजटा - अशोक वाटिका निवासिनी राक्षसी, रामभक्त, सीता से अनुराग ।

प्रहस्त - रावण का सेनापति, राम-रावण युद्ध मे मृत्यु ।

विराध - दंडक वन मे निवास, राम लक्ष्मण द्वारा मिलकर वध ।

शंभासुर - राक्षस, इन्द्र द्वरा वध, इसी से युद्ध करते समय कैकेई ने दशरथ को बचाया था तथा दशरथ ने वरदान देने को कहा ।

सिंहिका - लंका के निकट रहने वाली राक्षसी, छाया को पकङकर खाती थी ।

कबंद - दण्डक वन का दैत्य, इन्द्र के प्रहार से इसका सर धङ मे घुस गया, बाहें बहुत लम्बी थी, राम-लक्ष्मण को पकङा, राम- लक्ष्मण ने गङ्ढा खोद कर उसमे गाङ दिया ।

जामबंत - रीछ थे, रीछ सेना के सेनापति।

नल - सुग्रीव की सेना का वानरवीर ।

नील - सुग्रीव का सेनापति जिसके स्पर्श से पत्थर पानी पर तैरते थे, सेतुबंध की रचना की थी ।

( नल और नील सुग्रीव सेना मे इंजीनियर व राम सेतु
निर्माण मे महान योगदान )।

शबरी - अस्पृश्य जाती की रामभक्त ।

संपाती - जटायु का बङा भाई, वानरो को सीता का पता बताया ।

जटायु - रामभक्त पक्षी, रावण द्वारा वध, राम द्वारा अंतिम संस्कार ।

गृह - श्रंगवेरपुर के निषादों का राजा, राम का स्वागत किया था ।

हनुमान - पवन के पुत्र, राम भक्त।

सुग्रीव के मित्र सुषेण वैध - सुग्रीव के ससुर ।

केवट - नाविक, राम-लक्ष्मण-सीता को गंगा पार करायी ।

शुक्र-सारण - रावण के मंत्री जो बंदर बनकर राम की सेना का भेद जानने गये ।

अगस्त्य - पहले आर्य ऋषि जिन्होने विन्ध्याचल पर्वतपार किया था तथा दक्षिण भारत गये ।

गौतम - तपस्वी ऋषि, अहल्या के पति, आश्रम मिथिला के निकट ।

अहल्या - गौतम ऋषि की पत्नी, इन्द्र द्वारा छलित तथा पति द्वारा शापित , राम ने शाप मुक्त किया,
पंचकन्याओ मे स्थान ।

ऋण्यश्रंग - ऋषि जिन्होने दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया था ।

सुतीक्ष्ण - अगस्त्य ऋषि के शिष्य, एक ऋषि ।

मतंग - ऋषि, पंपासुर के निकट आश्रम, यही शबरी भी रहती थी ।

वसिष्ठ - अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओ के गुरु ।

विश्वमित्र - राजा गाधि के पुत्र, राम-लक्ष्मण को धनुर्विधा सिखायी थी ।

शरभंग - एक ऋषि, चित्रकूट के पास आश्रम ।

सिद्धाश्रम - विश्वमित्र के आश्रम का नाम ।

भरद्वाज - बाल्मीकी के शिष्य, तमसा नदी पर क्रौच पक्षी के वध के समय वाल्मीकि के साथ थे ।

माँ-निषाद’ वाला श्लोक कंठाग्र कर तुरंत वाल्मीकि को सुनाया था ।

सतानन्द - राम के स्वागत को जनक के साथ जाने
वाले ऋषि ।

युधाजित - भरत के मामा 

जनक - मिथिला के राजा ।

सुमन्त्र - दशरथ के आठ मंत्रियो मे से प्रधान...!

मंथरा - कैकयी की मुंह लगी दासी कुबङी....!

देवराज - जनक के पूर्वज-जिनके पास परशुराम ने शंकर का धनुष सुनाभ ( पिनाक ) रख दिया था ।

आयोध्य – राजा दशरथ के कोशल प्रदेश की राजधानी...!

बारह योजना लंबी तथा तीन योजन चौङी....!

नगर के चारो ओर ऊँची व चौङी दीवारों व खाई थी....!

राजमहल से आठ सङके बराबर दूरी पर परकोटे तक जाती थी।
 
जय जय श्री राम राम राम सीताराम......!!!!

।। सुंदर सुविचार ।।

        संत समझाते हैं कि व्यर्थ और बेकार की बातचीत में ना लगे। 

        अगर  आप फिजूल की बातचीत करते हैं तो परमात्मा से की गई आप की प्रार्थनाएं मजाक मात्र हैं। 


        यह गपशप आपको बनावटी और कपटी साबित करते हैं। 

        यह रूहानियत की जड़ को ही काट देती है। 

        एक और तो परमात्मा से दया मेहर की याचना और दूसरी ओर अपने कीमती समय और शक्ति को बेकार खर्च करने का आपस में कोई मेल नहीं। 

        सोचिए अधिक बोलिए कम । 

        अगर आपको अपनी रूहानी निर्धनता का होश है तो हर मिनट अपनी आध्यात्मिक विरासत को पाने के लायक बनने की कोशिश करें।
।।।।।। जय श्री कृष्ण ।।।।।।।
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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