सत्संग का प्रभाव / समय’ और ‘धैर्य / भगवान शंकर का डमरू
सत्संग का प्रभाव
एक शिष्य अपने गुरु के पास आकर बोला......!
‘गुरुजी, लोग हमेशा प्रश्न करते है कि सत्संग का असर क्यों नहीं होता?
मेरे मन में भी यह प्रश्न चक्कर लगा रहा है।
कृपा करके मुझे इसका उत्तर समझाएं।
गुरुजी ने उसके सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई।
लेकिन थोड़ी देर बाद बोले, ‘वत्स जाओ, एक घड़ा मदिरा ले आओ।’
शिष्य मदिरा का नाम सुनते ही अवाक रह गया।
‘ गुरुजी और शराब’ वह सोचता ही रह गया।
गुरूजी ने फिर कहा,....! ‘
सोचते क्या हो......!
' जाओ एक घड़ा मदिरा ले आओ।’
वह गया और मदिरा का घड़ा ले आया।
फिर गुरुजी ने शिष्य से कहा....!
‘ यह सारी मदिरा पी लो। ’
शिष्य यह बात सुनकर अचंभित हुआ।
आगाह करते हुए गुरु जी ने फिर कहा,.....!
‘ वत्स, एक बात का ध्यान रखना, मदिरा मुंह में लेने पर निगलना मत।
इसे शीघ्र ही थूक देना।
मदिरा को गले के नीचे न उतारना। ’
शिष्य ने वही किया, मदिरा को मुंह में भरकर तत्काल थूक देता, देखते - देखते घड़ा खाली हो गया।
फिर आकर उसने गुरुजी से कहा....!
‘ गुरुदेव, घड़ा खाली हो गया। ’
गुरुजी ने पूछा, ‘तुझे नशा आया या नहीं?’
शिष्य बोला, ‘गुरुदेव, नशा तो बिल्कुल नहीं आया।
’ गुरुजी बोले.....!,
‘अरे मदिरा का पूरा घड़ा खाली कर गए और नशा नहीं चढ़ा?
यह कैसे संभव है ? ’
शिष्य ने कहा......!
‘ गुरुदेव, नशा तो तब आता जब मदिरा गले से नीचे उतरती.....!
गले के नीचे तो एक बूंद भी नहीं गई फिर नशा कैसे चढ़ता ? ’
गुरुजी ने समझाया....!
‘ सत्संग को ऊपर-ऊपर से जान लेते हो, सुन लेते हो गले के नीचे तो उतारते ही नहीं....!
व्यवहार में यह आता नहीं तो प्रभाव कैसे पड़ेगा?
सत्संग के वचन को केवल कानों से नहीं,मन की गहराई से भी सुनना होता है।
एक - एक वचन को ह्रदय में उतारना पड़ता है।
उस पर आचरण करना ही सत्संग के वचनों का सम्मान है..!!
🙏🏿🙏🏻🙏जय श्री कृष्ण🙏🏽🙏🏼🙏🏾
' समय ’ और ‘ धैर्य '
एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता था.....!
”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”
बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नही देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे.
एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु की आवाज सुनी....!
“ जो चाहोगे सो पाओगे”,
जो चाहोगे सो पाओगे”,
और आवाज सुनते ही उसके पास चला गया उसने साधु से पूछा -
“महाराज आप बोल रहे थे कि....!
" जो चाहोगे सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मै जो चाहता हूँ? ”
साधु उसकी बात को सुनकर बोला –
“ हाँ बेटा तुम जो कुछ भी चाहता है मै उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हे मेरी बात माननी होगी लेकिन पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या? ”
युवक बोला-
” मेरी एक ही ख्वाहिश है मै हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना चाहता हूँ.“
साधू बोला.....!
” कोई बात नही मै तुम्हे एक हीरा और एक मोती देता हूँ....!
उससे तुम जितने भी हीरे मोती बनाना चाहोगे बना पाओगे! ”
और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी की हथेली पर रखते हुए कहा....! "
” पुत्र, मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं....! "
लोग इसे ‘ समय ’ कहते हैं....!
इसे तेजी से अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने हीरे बना सकते हो.
युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि साधु उसका दूसरी हथेली, पकड़ते हुए बोला....!
” पुत्र , इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे कीमती मोती है.....! "
लोग इसे “ धैर्य ” कहते हैं....!
जब कभी समय देने के बावजूद परिणाम ना मिलें तो इस कीमती मोती को धारण कर लेना....!
याद रखन जिसके पास यह मोती है....!
वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर सकता है.....!
युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर विचार करता है और निश्चय करता है.....!
कि आज से वह कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और हमेशा धैर्य से काम लेगा।
और ऐसा सोचकर वह हीरों के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन खुद भी हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनता है....!
तात्पर्य :
' समय ’ और ‘ धैर्य ....!’
वह दो हीरे-मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
अतः ज़रूरी है कि हम अपने कीमती समय को बर्वाद ना करें और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें..!!
🙏🏾🙏🏿🙏🏼जय श्री कृष्ण🙏🏽🙏🙏🏻
|| भगवान शंकर का डमरू ||
भगवान शिव के डमरू का महत्व यह है कि यह डमरू ब्रह्मांड का प्रतीक है, जो हमेशा विस्तार और पतन कर रहा है।
एक विस्तार के बाद यह ढह जाता है और फिर इसका विस्तार होता है, यह सृष्टि की प्रक्रिया है।
अगर आप अपने दिल की धड़कन को देखें तो यह सिर्फ एक सीधी रेखा नहीं है बल्कि एक लय है जो ऊपर और नीचे जाती है।
सारा संसार लय के सिवा कुछ नहीं है;
ऊर्जा बढ़ रही है और फिर से उठने के लिए ढह रही है।तो डमरू इसी ब्रह्मांड का प्रतीक है।
डमरू के आकार को देखो, यह ऊपर और नीचे की ओर ढह जाता है और फिर से फैलता है।
पुराणों के अनुसार भगवान शिव के गले पर मौजूद सर्प वासुकी नागों के राजा हैं।
भगवान शिव का घातक सर्प को आभूषण के रूप में धारण करना यह दर्शाता है कि वे समय और मृत्यु से स्वतंत्र हैं और वास्तव में समय भी उनके ही नियंत्रण में है।
भगवान शिव को सभी प्राणियों के स्वामी पशुपतिनाथ के रूप में भी जाना जाता है और जैसा कि एक और कहानी है....!
ऐसा माना जाता है कि एक बार जब सांप की प्रजाति खतरे में थी....!
तो शिव ने उन्हें आश्रय दिया और इस प्रकार, वह एक रक्षक के रूप में इन सांपों को आभूषण के रूप में पहनते हैं।
पशुओं के स्वामी होने के कारण उनके व्यवहार पर भी उनका पूर्ण नियंत्रण होता है।
सांप दुनिया में सभी बुराई और काल प्रकृति के स्वामी हैं।
सर्प को अपने गले में धारण करके....!
भगवान शिव हमें आश्वासन देते हैं कि कोई भी बुराई हमें छू नहीं सकती है या हमें नष्ट नहीं कर सकती है।
|| डमरू धारी सब पर भारी ||
पंडारामा प्रभु राज्यगुरू
( द्रविड़ ब्राह्मण )