सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्रीमद्भागवत गीता सारः ।।
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*_संक्षिप्त गीता : छठा अध्याय_*
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*भगवान श्री कृष्ण ने छठे अध्याय में कहा कि जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम ही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है।
सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहा जाता है।
जब मनुष्य सभी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके बिना फल की इच्छा के कोई कार्य करता है तो उस समय वह मनुष्य योग मे स्थित कहलाता है।
जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है, लेकिन जो मनुष्य मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।
जिसने अपने मन को वश में कर लिया उसको परमात्मा की प्राप्ति होती है और जिस मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसके लिए सुख-दुःख, सर्दी-गर्मी और मान-अपमान सब एक समान हो जाते हैं।
ऐसा मनुष्य स्थिर चित्त और इन्द्रियों को वश में करके ज्ञान द्वारा परमात्मा को प्राप्त करके हमेशा सन्तुष्ट रहता है।*
〰️ *अगला अध्याय कल....*〰️
|| हनुमानजी का परब्रह्म स्वरूप ||
शिव पुराण' की 'रुद्र संहिता' में हनुमान के परब्रह्म स्वरूप की संपूर्णता की आधारशिला स्थापित की गई है।
श्रीरुद्र से श्रीहनुमान जी की अभिन्नता और एका कारता का उल्लेख है।
याज्ञवल्क्यजी ने भारद्वाजजी को बोध प्रदान करते हुए कहा है कि-
"परमात्मा नारायण ही श्री हनुमान हैं।हनुमान को रुद्रों में ग्यारहवाँ रुद्र माना गया है।
वह परम कल्याण, स्वरूप साक्षात शिव हैं।
गोस्वामी तुलसीदास ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'हनुमान बाहुक' में भी इसका समर्थन किया है।
'वायु पुराण' के पूर्वाद्ध में भगवान महादेव के हनुमान रूप में अवतार लेने का उल्लेख है।
विनय पत्रिका' के अनेक पदों में गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान को शंकर रूप मानकर 'देवमणि' रुद्रावतार महादेव, वामदेव, कालाग्रि आदि नामों से संबोधित किया है।
हनुमान को पुराणों में कहीं भगवान शिव के अंश रूप में तो कहीं साक्षात शंकर जी के रूप में वर्णित किया गया है।
'शिव पुराण' की 'शतरुद्र संहिता' के बीसवें अध्याय से इस कथन की पुष्टि होती है।
'स्कंद पुराण' के अनुसार हनुमानजी से बढ़कर जगत में कोई नहीं है।
किसी भी दृष्टि से चाहे पराक्रम, उत्साह, मति और प्रताप वर विचार करें अथवा शील माधुर्य और नीति को देखें, चाहे गाम्भीर्य चातुर्य और धैर्य को देखें,इस विशाल ब्रह्मांड में हनुमान जैसा कोई नहीं है।
हनुमान जी के लिए वायुपुत्र' का जो प्रयोग होता है, उसकी दार्शनिक प्रतीकात्मक भूमिका जानना अनिवार्य है।
वायु, गति, पराक्रम, विद्या, भक्ति और प्राण शब्द का पर्याय है।
वायु के बिना या वायु की वृद्धि से प्राणियों का मरण होता है।
साधक और योगी के लिए तो प्राण, वायु का नियमन योग की आधार भूमिका है।
पवन सभी का प्राणदाता जनक है।इसी प्राणतत्व की भूमिका पर हनुमान जी पवनपुत्र सहज ही निरुपित हो जाते हैं।
|| श्री हनुमानजी महाराज की जय हो ||
|| आज माता यशोदा जयंती है ||
साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है।
यह दिन भगवान कृष्ण की मां यशोदा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण का जन्म मां देवकी के कोख से हुआ था।
हिंदू धर्म में यशोदा जयंती का पर्व बेहद खास होता है।
हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती मनाई जाती है।
यह दिन भगवान कृष्ण की मां यशोदा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण का जन्म मां देवकी के कोख से हुआ था, लेकिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण भगवान का पालन - पोषण किया था।
यशोदा जयंती के पावन पर्व पर भगवान कृष्ण और माता यशोदा का पूजन किया जाता है।
साथ ही माताएं अपने संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत भी रखती हैं।
यह त्योहार खासतौर से गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्यों में बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
|| माता यशोदा जी की जय हो ||
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏