सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन { 🏹🏹🏹 *धनुष यज्ञ* 🏹🏹🏹} ।।
।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।
🏹🏹🏹 *धनुष यज्ञ* 🏹🏹🏹
🍁🍁🍁 *भाग 52* 🍁🍁🍁
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---------- गतांक से आगे -----
सज्जनों ,--- विवाह के बाद
भगवान राम सहित चारो भाईयों को सखियां कोहबर मे लेकर जाती हैं ।
मित्रों कोहबर एक ऐसा भवन हैं , जहाँ पर वर कन्या बैठते हैं ।
लोकरीति मे मातायें दो दल बनाकर बैठती हैं और उनमे परस्पर विनोद वचनों का जो प्रसंग होता हैं वह यह कि दूल्हा और दूल्हन मे वर कौन ?
अर्थात श्रेष्ठ कौन !
कौन है वर ? इसको कहते है कोहबर ?
इस कोहबर मे श्रीराम , लक्ष्मण , भरत , सत्रुघन चारो भाइयो को लेकर सखियां चली ।
*कोहबरहिं आने कुअँर कुअँरि सुआसिनिन्ह सुख पाइ कै ।*
*अति प्रीति लौकिक रीति लागीं करन मंगल गाइ कै।*
अच्छा मित्रों गोस्वामी बाबा ने अभी तक तो बहुत ही गहराई से वर्णन कर रहे थे ।
कोहबर के अन्दर का वर्णन तो बहुत सूक्ष्म रुप से किया ।
किसी ने गोस्वामी बाबा से पूँछा - बाबा !
भीतर का वर्णन करो ।
गोस्वामी बाबा कहते है यह वर्णन हम नही कर सकते ।
पूँछा क्यों ?
गोस्वामी बाबा जी कहते है मुझे कोहबर के अन्दर सखिओं ने जाने ही नही दिया ।
जब राम जी को सखियां कोहबर मे ले जाने लगी तो गोस्वामी बाबा अपनी कलम कागज लेकर साथ चल दिये - वे तो प्रत्येक प्रसंग मे उपस्थित रहते है भाव से ।
जन्म का गीत हो तो गाने वालो मे तुलसी बाबा भी ।
विवाह मे आये तो सारा हाल गोस्वामी बाबा लिख रहे है ।
पर जब कोहबर मे प्रवेश करने लगे तो सखियो ने कहा, बाबा तुम कहाँ ?
गोस्वामी बाबा कहते है , हम तो संवाददाता है , साथ ही रहते है , सब कुछ लिखते हैं , सबको सूचित करते है कहाँ पर क्या हुआ ?
सखिओं ने कहा ,यहाँ नही घुस सकते ।
कोहबर भवन मे प्रवेश नही मिलेगा ।
अरे !
पूँछा क्यों ?
बाबा जी तुम नही जा सकोगे कोहबर भवन मे दाढी वालो का काम नही साडी़ वालो का काम हैं ।
तुम तो बाहर ही रहो ।
यह तो सखि भाव वालो का काम हैं ।
इसलिए गोस्वामी बाबा लिखते है -
*कोतुक विनोद प्रमोदु प्रेम न जाइ कहि जानहिं अलीं।*
ये तो सखी भाव वाले संत जानते हैं ।
तो फिर कोहबर मे प्रवेश हुआ ।
अब तो कोहबर मे तरह तरह का विनोद ।
एक सखी ने अद्भुत बात कही ।
अब एक तो सरस्वती माता श्री जानकी जी के पक्ष मे और राम जी के पक्ष मे गौरी माता -
*लहकौरि गौरि सिखाव रामहिं सीय सन सारद कहैं।*
गौरी माता राम जी की ओर से और सरस्वती माता सीता जी की ओर से - अब दोनो पक्ष प्रबल है ।
श्री सीता जी के पक्ष मे बैठी हुई सखी ने व्यंग करते हुए कहा कि चारों राजकुमार के जन्म की गाथा बडी बिचित्र हैं ।
गुरु जी के पास गए ।
गुरु जी ने श्रृंगी ऋषी को बुलाया ।
श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ कराया ।
यज्ञ मे अग्निदेव प्रकट हुए ।
खीर का प्रसाद दिया ।
माताओ ने उस खीर का प्रसाद पाया और पुत्रो का जन्म हो गया ।
ऐसा और पहले सुना है --- ?
अब ठहाका लगाकर सखियां हसनें लगी जो सीता जी के पक्ष मे थी ।
गौरी माता तो उधर है लक्ष्मण जी को प्रेरित किया लक्ष्मण जी कहते हैं , बिल्कुल ठीक कहा , ऐसे ही हम लोगो का जन्म हुआ है ।
हमारे यहाँ तो यज्ञ के प्रसाद से जन्म होता है परन्तु मिथिला मे बडी सुबिधा है ।
वहाँ यह सब नही करना पडता है।
फिर ?
यहाँ तो फावडा लेकर जाओ , कुदाल और टोकरी लेकर जाओ और जमीनन खोदकर ले आओ ।
*कोउ नहि जनमे माता पिता बिनु बंधी वेद की रीति*
*तुम्हरे तो महि ते सब उपजत अस हमरे नहि नीति ।*
मित्रों ऐसे ही परस्पर हास परिहास हो रहा है ।
भगवान मुस्करा रहे है मिथिला की गाली सुनकर ।
लेकिन मित्रो इसका यह अर्थ नही हम लोग यह सोचे कि भगवान गाली से ही प्रसन्न होते हैं तथा पूजा पाठ बन्द करके गाली देना सुरु कर दो ।
भगवान हर एक की गाली पर प्रसन्न नही होते हैं ।
नही तो गाली देने का फल शिशुपाल से पूँछो ।
सीमा का उल्लंघन किया तो चक्र चल गया ।
भगवान गाली तो स्वीकार करते हैं लेकिन भक्ति के नाते , श्री जानकी जी के नाते ।
मिथिला के भाव के नाते ।
भगवान भक्त का विनोद स्वीकार करते हैं ।
मित्रों विवाह मे ऐसा समन्वय हो तो उसका आनन्द चौगुना हो जाएगा ।
दशरथ जी की , राम जी की कुछ माँग नही है और जनक जी दे रहे हैं ।
*दाइज दीन्ह न जाइ बखाना*
पर दशरथ जी क्या करते है
*उबरा सो जनवासहिं आवा* ।
यह है ।
एक माँग नही रहा हैं दूसरा दिए बिना मान नही रहा हैं ।
यह प्रेम का आनन्द है ।
यह प्रेम का सुख है ।
इसलिये विवाह - विवाह कब ?
एक होता है
*विवाह*
एक होता है
*वियाह* ।
विवाह मे वाह और वियाह मे आह ।
जिसके बाद आह हो वह वियाह है और जिसके बाद वाह हो वह विवाह है ।
वाह क्यों ?
दशरथ जी माँग नही रहे हैं और जनक जी बिना दिए मान नही रहें है ।
वाह -
*सम समधी देखे हम आजू* ।
और आह कहाँ है बेचारा कन्या का पिता दे नही पा रहा है और दूल्हे का पिता ले लेना चाहता है मान नही रहा है ।
देगा किसी तरह घर द्वार खेती बेचकर पर वह विआह ही होगा ।
बाद मे आह ही निकलेगी ।
मित्रो राम जी के विवाह को पढने का फल तभी मिलेगा जब विवाह करोगे नही तो विआह तो हो ही रहा है ।
मित्रों विवाह के बाद विदायी की चर्चा प्रारम्भ हो गयी है ।
किस प्रकार जानकी जी विदा होकर अयोध्या आती है जानने के लिए पढते रहे
*धनुष यज्ञ*
का अगला भाग । -----
*श्री राम जय राम राम राम जय जय*
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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏