सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
अद्भुत शिक्षा : ईश्वर कौन है ? : सन्मुख होइ जीव :
अद्भुत शिक्षा :
पत्नी के क्रोध से तंग पति ने एक दिन उसे कीलों से भरी एक थैली देकर कहा-
"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना ।"
पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार में ठोक दी ।
यह प्रक्रिया लगातार करती रही।
धीरे - धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोकने के व्यर्थ परिश्रम से अच्छा है की....!
क्रोध ही नहीं किया जाए और इस प्रकार कील ठोकने की संख्या कम होती गई।
एक दिन ऐसा भी आया जब पत्नी ने दिन में कोई कील नहीं ठोंकी।
प्रसन्नता से यह बात पति को बताने पर वह भी बहुत प्रसन्न हुआ और कहा....!
" जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई....!
ठोंकी कील में से एक कील निकाल लेना ।"
पत्नी ऐसा ही करने लगी, एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची।
उसने खुशी खुशी यह बात पति को बताई।
पति पत्नी को लेकर बाड़े में गये और कीलों के छेद दिखाते हुए पूछा-
क्या तुम ये छेद भर सकती हो ?
पत्नी ने कहा नहीं जी ।
तब पति ने समझाया....!
"अब समझी ,क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"
"***भविष्य में जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोकने तो नहीं जा रहे हैं ?***""
|| ईश्वर कौन है ?||
ईश्वर को सर्वोच्च शक्ति माना जाता है।
ईश्वर को परमेश्वर, ब्रह्म, परमात्मा, प्रणव, सच्चिदानंद, और परब्रह्म भी कहा जाता है।
ईश्वर को सृष्टिकर्ता और नियंता माना जाता है।
ईश्वर के बारे में अलग - अलग धर्मों और महजबो में अलग - अलग मान्यताएं हैं।
ईश्वर से जुड़ी कुछ मान्यताएं : -
ईश्वर सर्वव्यापी है, यानी हर जगह मौजूद है।
ईश्वर सर्व शक्तिमान है, यानी वह हर काम कर सकता है।
ईश्वर सर्वज्ञ है, यानी वह सब कुछ जानता है।
ईश्वर निराकार है, लेकिन वह कई रूपों में भी है।
ईश्वर की इच्छा है कि लोग अपने कर्मों के फल को उसी को अर्पण करें।
ईश्वर की प्रकृति को अधिष्ठान बनाकर वह अपने संकल्प के अधीन रखकर व्यक्ति भावापन्न हो जाते हैं।
ईश्वर की इस प्रकृति को अवतार कहा जाता है।
कौन चलाता है इस दुनियां को ?
कहाँ है ईश्वर?
तुम माँ के पेट में थे नौ महीने तक,कोई दुकान तो चलाते नहीं थे, फिर भी जिए।
हाथ — पैर भी न थे कि भोजन कर लो,फिर भी जिए।
श्वास लेने का भी उपाय न था,फिर भी जिए।
नौ महीने माँ के पेट में तुम थे,कैसे जिए?
तुम्हारी मर्जी क्या थी?
किसकी मर्जी से जिए?
फिर माँ के गर्भ से जन्म हुआ....!
जन्मते ही, जन्म के पहले ही माँ के स्तनों में दूध भर आया...!
किसकी मर्जी से?
अभी दूध को पीने वाला आने ही वाला है
कि दूध तैयार है...!
किसकी मर्जी से?
गर्भ से बाहर होते ही तुमने कभी इसके पहले साँस नहीं ली थी माँ के पेट में तो माँ की साँस से ही काम चलता था....!
लेकिन जैसे ही तुम्हें माँ से बाहर होने का अवसर आया...!
तत्क्षण तुमने साँस ली, किसने सिखाया ?
पहले कभी साँस ली नहीं थी,किसी पाठशाला में गए नहीं थे, किसने सिखाया कैसे साँस लो ?
किसकी मर्जी से ?
फिर कौन पचाता है तुम्हारे दूध को जो तुम पीते हो,और तुम्हारे भोजन को ?
कौन उसे हड्डी — मांस — मज्जा में बदलता है ?
किसने तुम्हें जीवन की सारी प्रक्रियाएँ दी हैं ?
कौन जब तुम थक जाते हो तुम्हें सुला देता है ?
और कौन जब तुम्हारी नींद पूरी हो जाती है तुम्हें उठा देता है ?
कौन चलाता है इन चाँद — सूर्यों को ?
कौन इन वृक्षों को हरा रखता है ?
कौन खिलाता है फूल अनंत — अनंत रंगों के और गंधों के?
इतने विराट का आयोजन जिस स्रोत से चल रहा है...!
एक तुम्हारी छोटी — सी जिंदगी उसके सहारे न चल सकेगी ?
थोड़ा सोचो,थोड़ा ध्यान करो।
अगर इस विराट के आयोजन को तुम चलते हुए देख रहे हो,कहीं तो कोई व्यवधान नहीं है, सब सुंदर चल रहा है,सुंदरतम चल रहा है;
ईश्वर दिखता नही बल्कि दिखाता है।
ईश्वर सुनता नही बल्कि सुनने की शक्ति देता है।
संसार में कोई भी वस्तु बिना बनाये नही बनती अतः
संसार भी किसी ने अवश्य बनाया है यही तो ईश्वर है।
|| ईश्वर सर्वोपरि है ||
सन्मुख होइ जीव
सन्मुख होइ जीव मोहि जबही,
जनम कोटि अघ नासहिं तबही।
इसे मैंने कुछ ऐसे समझा कि प्रभु कृपा अनवरत बरस रही है परन्तु हम उनके सामने ही नहीं जाते इसी लिए हमारे पाप नष्ट नहीं होते परन्तु अगर कोई जीव उनके सन्मुख हो जाये तो उसके करोड़ों जन्मों पाप नष्ट हो जाते हैं।
ठीक वैसे - जैसे हम सब जानते हैं कि सूर्य हमेशा रहता है....!
यह तो हमारी पृथ्वी घूमती है तो पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने होता है वहां दिन होता है....!
तब चाहे करोड़ों वर्षों का अन्धकार हो, प्रकाश के सम्मुख जाने से तुरंत समाप्त हो जाता है।
उसी प्रकार श्री हरि के सम्मुख जाने से करोड़ों जन्मों के पाप भस्म हो जाते हैं-
अब संशय यह उठता है कि हम तो रोज़ पूजा पाठ करते हैं....!
मंदिर जाते हैं....!
इत्यादि इत्यादि तो हमारे पाप तो विनष्ट नहीं हुए हम तो अभी भी दुखी हैं तो मेरे प्यारे! ज़रा ईमानदारी से बताना कि पूजा पाठ, जप तप क्या प्रभु के लिए किया था या मनोकामना सिद्धि के लिए--
तो शरणागति तो पदार्थों की है प्रभु की नहीं जिस दिन प्रभु के पास, कान्हा के पास कान्हा के लिए जायेंगे जब यह भाव भाव होगा कि जो तुझे अच्छा लगे वही मुझे स्वीकार -
उस दिन कोई क्लेश नहीं रहेगा -
उस दिन सब अन्धकार दूर हो जायेगा।
उस दिन वो प्यारा तुम्हे निज रूप दे देगा।
|| जय श्री राम जय श्री श्याम ||
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏