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जय द्वारकाधीश
। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा एक अनजाने सत्य से परिचय---।
।। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।
लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा एक अनजाने सत्य से परिचय---
-हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है।
लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी ।
लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है ।
अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया -
भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा॥
अगस्त्य मुनि बोले-
श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे ।
लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥
उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥
ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥
लक्ष्मण ने उसका वध किया इस लिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥
श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥
फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं ।
कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥
अगस्त्य मुनि ने कहा-
प्रभु इंद्रजीत को वरदान था ।
कि उसका वध वही कर सकता था।
जो चौदह वर्षों तक न सोया हो ।
जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥
श्रीराम बोले-
परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल - फूल देता रहा ॥
मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था ।
बगल की कुटी में लक्ष्मण थे।
फिर सीता का मुख भी न देखा हो ।
और चौदह वर्षों तक सोए न हों ।
ऐसा कैसे संभव है ॥
अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥
प्रभु से कुछ छुपा है भला!
दरअसल.....!
सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु चाहते थे ।
कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर - घर में हो ॥
अगस्त्य मुनि ने कहा -
क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥
लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-
सच कहिएगा॥
प्रभु ने पूछा-
हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?
फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ?
और 14 साल तक सोए नहीं ?
यह कैसे हुआ ?
लक्ष्मणजी ने बताया-
भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥
आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था ।
क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नही।
चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए -
आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे ।
मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था ।
निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥
निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी ।
लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥
आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था.
अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा!
मैं जो फल - फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे ।
एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥
आपने कभी फल खाने को नहीं कहा-
फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?
मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥
सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥
प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥
फलों की गिनती हुई ।
सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥
प्रभु ने कहा-
इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?
लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया - उन सात दिनों में फल आए ही नहीं ।
1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥
2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥
3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे ।।
4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे ।।
5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे ।।
6. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी ।।
7. और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥
इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥
विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था ।
बिना आहार किए जीने की विद्या ।
उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥
भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया ।
जीवन में तीन बातें बड़ी महत्वपूर्ण हैं
प्रतीक्षा - परीक्षा - समीक्षा।
जीव भजन करे, साधना करे, सत्कर्म करे, पुरुषार्थ करे, कभी ना कभी फल जरूर मिलेगा।
प्रभु कृपा जरूर करेंगे भले प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।
दूसरी बात है परीक्षा - संसार की परीक्षा करते रहना।
जितना जल्दी जान लोगे इससे मुक्त हो जाओगे।
जानना ही मुक्त होने का मार्ग है।
जगत में सर्वत्र बहुत विषाद है।
प्रभु की और संत की शरणागति ही विषाद से प्रसाद की ओर ले जाती है।
तीसरी बात है समीक्षा - अपनी निरंतर समीक्षा करते रहो।
स्वयं का सुधार ही उद्धार कर सकता है।
भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक समृद्धि स्वयं के द्वारा ही प्राप्त होगी।
एक ज्ञानी और महान व्यक्ति आत्मचिंतन करते- करते शिखर पर पहुँच जाता है।
वहीं अज्ञानी स्वयं की बजाय दूसरों के गुण-दोष का
चिंतन ही करते रहने के कारण उपलब्धियों से वंचित रह जाता है।
श्रीमद्भागवत प्रवचन युग धर्म और जीवन की चाणक्य नीति
|| युग - धर्म ||
पहाड़ की तराई में एक गांव है कीरतपुर। उस गांव में एक बुढ़िया रहती थी।
उसका एक बेटा था।
जिसका विवाह उसने थोड़ी दूर बसे दूसरे गांव धर्मपुर में कर दिया था।
एक दिन बुढ़िया ने अपने बेटे रघुवीर से कहा, “बेटे, अब मुझसे घर का कामकाज नहीं होता।
तू जाकर बहू को लिवा ला।
मुझे बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा।”
रघुवीर मां की बात सुन अपनी बहू को लिवाने ससुराल के लिए चल पड़ा।
उसकी ससुराल के बीच एक घना जंगल पड़ता था।
जब वह जंगल के बीच से जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते के किनारे पेड़ के गिरे पत्तों-फूलों आदि में आग लगी हुई है और पास ही पत्तों की जलती आग के बीच एक बिल है जिसमें से सांप बार-बार अपना सिर निकाल रहा है, पर आग की गरमी से निकल नहीं पा रहा था।
बुढिया के बेटे को आते देख सांप जोर से चिल्लाकर बोला,
“ऐ भाई! मझे इस आग से बाहर निकालो, तुम्हारा बड़ा एहसान मानूंगा।”
रघुवीर ने कहा. “तुम तो सांप हो।
तुम्हारा क्या भरोसा, तुम निकलने के बाद मुझे काट सकते हो।*
सांप ने कहा,
“कैसी बातें करते हो, तुम मेरी जान बचाओगे और मैं तुम्हें काट लूंगा?
ऐसी बात सोची भी नहीं जा सकती।”
सांप के बार-बार अनुनय करने पर लड़के को दया आ गई और उसने लाठी की मदद से सांप को आग से निकाल दिया।
सांप जैसे ही आग से बाहर हुआ, उसने लड़के से कहा,
“अब मैं तुम्हें काटूंगा।”
रघुवीर हक्का-बक्का रह गया, थरथराते हुए उसने कहा,
“लेकिन तुमने तो न काटने का पक्का वायदा किया था।”
सांप ने हंसते हुए कहा,
“अरे मूर्ख! यह-
कलियुग है।
कहने और करने में जमीन आसमान का अंतर है।
यहां भलाई का बदला बुराई से है।
यहां युग धर्म है।
मैं तुम्हें काट कर युग - धर्म जरूर निबाहूंगा।”
लड़के ने कहा,
“यदि तुम्हें काटना ही है तो काट लो, पर मेरी तसल्ली तो करवा दो कि कलियुग का यही धर्म है।”
सांप ने लड़के की बात मान ली।
लड़का सांप के साथ जंगल चरती हुई एक गाय के पास गया और गाय को पूरी घटना सुनाकर बोला,
“गाय माता !
अब तुम्हीं न्याय करो!” गाय बोली, "
सांप ठीक कह रहा है।
मुझे ही देखो, घास खाकर दूध देती हूं।
खेती के लिए बछड़े बैल देती हूं लेकिन मेरे बूढ़े होने पर यह आदमी मुझे कसाई के हवाले कर देता है।
यही इस युग का न्याय है।
” सांप ने कहा, "
अब तो तेरी तसल्ली हो गई?
” लड़का गिड़गिड़ाया, “
किसी एक से और बात कर लेने दो।
अगर उसने भी यही कहा तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।
” लड़के ने सामने एक पेड़ को अपनी सारी कहानी दुहराई तो पेड़ ने कहा, “
सांप ठीक कह रहा है।
मैं आदमी को शीतल छाया और मीठे फल देता हूं..!
पर बदले में आदमी मुझे काटता है...!
आग में जलाता है।
कलियुग का यही धर्म है।
” यह सुनकर लड़के ने सांप से कहा..!“
मैं तुम्हारे काटने का विरोध नहीं करूंगा।
लेकिन मेरी एक अंतिम इच्छा है..!
जब से मेरा विवाह हुआ है मैंने अपनी पत्नी का मुंह ठीक से नहीं देखा है।
तुम मुझे एक मौका दे दो।
मैं अपनी पत्नी को देखकर वापस आ जाऊंगा तब तुम मुझे काट लेना।
” सांप ने कहा, “मंजूर है...!
पर पत्नी से कोई बात न करना और 3 घण्टे के भीतर लौट आना।
” लड़का अपनी ससुराल पहुंचा।
कुछ कदम दूर से ही उसने देखा...!
उसकी पत्नी दरवाजा साफ कर रही है।
उसे देखकर उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।
उसकी पत्नी उसे इस तरह देख अवाक रह गई।
वह कुछ पूछ पाती इसके पहले ही लड़का वापस चल दिया।
पत्नी ने सोचा जरूर कोई विपत्ति आई है।
वह भी पीछे - पीछे चलकर सांप तक पहुंच गई।
*सांप ने फुफकारते हुए कहा...!
“मैंने तो तुम्हें पत्नी से बात करने से मना किया था।
इसको लेकर क्यों आए हो?”
इस पर उसकी पत्नी ने कहा...!
“इन्होंने मुझसे बात नहीं की।
ये बिना कुछ बोले वापस चल दिए तो मैं इनके पीछे - पीछे चली आई हूं।
” लड़के ने कहा...!
“अब मैं तैयार हूं।
युग धर्म का निर्वाह करो।”
सांप लड़के को काटने को तैयार हुआ तभी उसकी पत्नी ने कहा...!
तुम इन्हें काटने जा रहे हो।
सिर्फ इतना बता दो, इनके बाद मैं अपना गुजारा कैसे करूंगी!
” सांप ने कहा...!
“उसका इंतजाम है।
इस बिल के सात फेरे करके इसे खोदोगी तो तुम्हें सोने से भरे हुए सात घड़े मिलेंगे, तुम्हारी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।”
लड़के की पत्नी ने कहा...!
“मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास करूं।
मेरी तसल्ली के लिए सात फेरे कर बिल खोद लेने दीजिए।”
सांप लड़की की बात मान गया।
लड़के की पत्नी बिल के फेरे लेने लगी।
सातवां फेरा पूरा होते-होते उसने अपने पति के हाथ से लाठी छीनकर उसे सांप के सिर पर जोर से दे मारी।
सांप छटपटाने लगा।
वह लड़की से बोला...!
तू तो बड़ी धोखेबाज निकली।
तब उसकी पत्नी ने कहा...!
“क्षमा करना नाग देवता।
मैं तो आप ही की बात रख रही हूं।
आपने कहा कि यहां भलाई का बदला बुराई है।
हमें आपने इतना बड़ा खजाना बताया।
लेकिन हमें भी तो कलियुग का धर्म निबाहना पड़ा और आपके प्राण लेने पड़े।”
सांप का निर्जीव शरीर एक ओर धराशायी हो गया।
बहुत बड़ी दौलत के मालिक होने के बावजूद भी यदि मन में कुछ पाने की चाह बाकी है ।
तो समझ लेना वो अभी दरिद्र ही है ।
और कुछ पास में नहीं फिर भी जो अपनी मस्ती में झूम रहा है ।
उससे बढ़कर भी कोई दूसरा करोड़ पति नहीं हो सकता है।
सुदामा को गले लगाने के लिए आतुर श्री द्वारिकाधीश इस लिए भागकर नहीं गए ।
कि सुदामा के पास कुछ नहीं है।
अपितु इस लिए गए कि सुदामा के मन में कुछ भी पाने की इच्छा अब शेष नहीं रह गयी थी।
इस लिए ही संतों ने कहा है कि जो कुछ नहीं माँगता उसको भगवान स्वयं को दे देते हैं।
द्वारिकापुरी में आज सुदामा राजसिंहासन पर विराजमान हैं।
और कृष्ण समेत समस्त पटरानियाँ चरणों में बैठकर उनकी चरण सेवा कर रही हैं।
सुदामा अपने प्रभाव के कारण नहीं पूजे जा रहे हैं ।
अपितु अपने स्वभाव और कुछ भी न चाहने के भाव के कारण पूजे जा रहे हैं।
सुदामा की कुछ भी न पाने की इच्छा ने उन्हें द्वारिकापुरी का राजसिंहासन प्रदान कर दिया।
मानो कि भगवान ये कहना चाह रहे हों ।
कि जिसकी अब और कोई इच्छा बाकी नहीं रही ।
वो मेरे ही समान मेरे बराबर में बैठने का अधिकारी बन जाता है !
श्रीमद भगवद्गीता के अनुसार चाणक्य नीति की तीन बाते।
तीन चीजे सोच समझ कर देना।
1जवाब,
2- सलाह
3- उधार,
तीन चीजे सब को प्यारी होती है !
1- दौलत,
2- औरत,
3- औलाद,
तीन चीजे हमेशा दर्द देती है.!
1- धोखा,
2- गरीबी,
3- यादें,
तीन चीजे कभी मत करो!
1- घमंड,
2- अपमान,
3-उम्मीद,
तीन चीजे चुराई नही जा सकती !
1- चरित्र
2- ज्ञान,
3- विद्या,
तीन चीजे छोटी मत समझो !
1- कर्ज,
2-फर्ज,
3-मर्ज,
तीन चीजों को हमेशा महत्व दे!
1- परिवार
2-रिश्तेदार,
3-दोस्त
जय श्री कृष्ण !!
जय श्री राम.
🙏🙏🙏
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏