सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। बहुत सुंदर अच्छी कहानी ।।
गौतम बुद्ध रोज अपने शिष्यों को उपदेश देते थे।
जहां भी बुद्ध ठहरते थे, वहां रहने वाले लोग भी बुद्ध के प्रवचन सुनने पहुंच जाते थे।
एक व्यक्ति रोज बुद्ध के प्रवचन सुनने आ रहा था। वह सारी बातें बहुत ध्यान से सुनता था। लगभग एक माह तक उसने बुद्ध के सारे प्रवचन सुने।
एक माह बाद वह बुद्ध के पास गया और बोला कि तथागत मैं आपके प्रवचन रोज सुन रहा हूं। लेकिन, मुझे इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
आप हर एक बात सत्य बता रहे है, लेकिन मुझ पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ है। कृपया बताएं मुझे प्रवचन का लाभ कैसे मिल सकता है?
बुद्ध ने उसकी सुनी और पूछा कि तुम कहां रहते हो? व्यक्ति ने कहा कि मैं श्रावस्ती में रहता हूं।
बुद्ध ने फिर पूछा ये जगह यहां से कितनी दूर है?
व्यक्ति ने श्रावस्ती की दूरी बताई। इसके बाद बुद्ध ने फिर पूछा कि तुम वहां कैसे पहुंचते हो?
व्यक्ति ने उत्तर दिया कि कभी घोड़े पर, कभी बैलगाड़ी पर बैठकर जाता हूं। बुद्ध ने फिर पूछा कि तुम्हे वहां पहुंचने में समय कितना लगता है?
व्यक्ति ने समय भी बता दिया। इसके बाद बुद्ध ने अंतिम प्रश्न पूछा कि क्या तुम यहां बैठे-बैठे ही श्रावस्ती पहुंच सकते हो?
ये प्रश्न सुनकर व्यक्ति हैरान हो गया।
वह बोला कि तथागत ये कैसे संभव है? जब तक मैं चलूंगा नहीं, वहां कैसे पहुंच सकता हूं। मुझे श्रावस्ती पहुंचने के लिए चलना होगा।
बुद्ध बोले कि भाई ये बात एकदम सही है।
हम चलकर ही अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।
ठीक इसी तरह जब तक हम अच्छी बातों का पालन नहीं करेंगे, उन्हें अपने जीवन में नहीं उतारेंगे, तब तक हमें प्रवचनों से लाभ नहीं मिल सकता है।
अगर प्रवचनों से लाभ चाहते हो तो इन बातों का पालन करो। बुराइयों से बचो।
क्रोध मत करो।
दूसरों की मदद करो।
जब बातें तुम अपने जीवन में उतार लोगे तो उन्हें प्रवचनों का लाभ स्वत: मिलने लगेगा।
व्यक्ति को अपने सवालों का जवाब मिल गया�
जय ठाकर
" रूस का बहुत बड़ा गणितज्ञ आस्पेंस्की, एक अद्भुत फकीर गुरजिएफ के पास गया।
आस्पेंस्की विश्वविख्यात था। उसकी किताबें दुनिया की चौदह भाषाओं में अनुवादित हो चुकी थीं।
और उसने एक ऐसी अदभुत किताब लिखी थी कि कहा जाता है कि दुनिया में वैसी केवल तीन किताबें लिखी गई हैं।
पहली किताब अरिस्टोटल ने लिखी थी।
उस किताब का नाम है: आर्गानम, ज्ञान का सिद्धांत।
दूसरी किताब बेकन ने लिखी, उसका नाम है: नोवम आर्गानम, ज्ञान का नया सिद्धांत।
और तीसरी किताब पी.डी.आस्पेंस्की ने लिखी: टर्शियम आर्गानम, ज्ञान का तीसरा सिद्धांत।
कहते हैं इन तीन किताबों के मुकाबले दुनिया में और किताबें नहीं।
और बात में सच्चाई है।
मैंने तीनों किताबें देखी हैं।
बात में बल है।
ये तीन किताबें अद्भुत हैं।
और आस्पेंस्की ने तो हद्द कर दी! उसने किताब के प्रथम पृष्ठ पर ही यह लिखा है कि पहला सिद्धांत और दूसरा सिद्धांत जब पैदा भी नहीं हुए थे, तब भी मेरा तीसरा सिद्धांत मौजूद था।
मेरा तीसरा सिद्धांत उन दोनों से ज्यादा मौलिक है।
और इसमें भी बल है। यह बात भी झूठी नहीं है, कोरा दंभ नहीं है।
इस बात में सचाई है।
आस्पेंस्की की किताब बेकन, अरस्तू दोनों को मात कर देती है।
दोनों को बहुत पीछे छोड़ देती है।
ऐसा प्रसिद्ध गणितज्ञ गुरजिएफ को मिलने आया।
और गुरजिएफ ने पता है उससे क्या कहा! एक नजर उसकी तरफ देखा, उठा कर एक कागज उसे दे दिया - कोरा कागज - और कहा, बगल के कमरे में चले जाओ।
एक तरफ लिख दो जो तुम जानते हो - ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग, नरक - जो भी तुम जानते हो, एक तरफ लिख दो।
और दूसरी तरफ, जो तुम नहीं जानते हो।
फिर मैं तुमसे बात करूँगा।
उसके बाद ही बात करूँगा।
बुद्धिवादियों से मेरे मिलने का यही ढंग है।
हतप्रभ हुआ आस्पेंस्की।
ऐसे स्वागत की अपेक्षा न थी, यह कैसा स्वागत! नमस्कार नहीं, बैठो, कैसे हो, कुशलता - क्षेम भी नहीं पूछी।
उठा कर कागज दे दिया और कहा --
बगल के कमरे में चले जाओ!
सर्द रात थी, बर्फ पड़ रही थी।
और आस्पेंस्की ने लिखा है, मेरे जीवन में मैं पहली बार इतना घबड़ाया।
उस आदमी की आँखों ने डरा दिया! उस आदमी के कागज के देने ने डरा दिया! और जब मैं कलम और कागज लेकर बगल के कमरे में बैठा सोचने पहली दफा जीवन में-
कि मैं क्या जानता हूँ?
तो मैं एक शब्द भी न लिख सका।
क्योंकि जो भी मैं जानता था वह मेरा नहीं था।
और इस आदमी को धोखा देना मुश्किल है।
मैंने जो किताबें लिखी हैं, वे और किताबों के आधार पर लिखी थीं;
उनको माँजा था, सँवारा था, मगर वे किताबें मेरे भीतर आविर्भूत नहीं हुई थीं।
वे फूल मेरे नहीं थे; वे किसी बगीचे से चुन लाया था।
गजरा मैंने बनाया था, फूल मेरे नहीं थे।
एक फूल मेरे भीतर नहीं खिला।
आस्पेंस्की ने लिखा है कि मैं पसीने से तरबतर हो गया;
बर्फ बाहर पड़ रही थी और मुझसे पसीना चू रहा था!
मैं एक शब्द न लिख सका।
वापस लौट आया घंटे भर बाद।
कोरा कागज कोरा का कोरा ही गुर जिएफ को लौटा दिया और कहा कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ।
आप यहीं से शुरू करें-
यह मान कर कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ।
गुर जिएफ ने पूछा, तो फिर इतनी किताबें क्यों लिखीं?
कैसे लिखीं?
आस्पेंस्की ने कहा, अब उस दुखद प्रसंग को न उठाएँ।
अब मुझे और दीन न करें, और हीन न करें।
क्षमा करें।
मैं होश में नहीं था।
मैं बेहोशी में लिख गया।
वह मेरे पांडित्य का प्रदर्शन था।
लेकिन आपके पास ज्ञान के लिए आया हूँ, झोली फैलाता हूँ भिखमंगे की।
एक अज्ञानी की तरह आया हूँ।
गुरजिएफ ने कहा, तो फिर कुछ हो सकेगा।
फिर क्रांति हो सकती है।"
जय रणछोड़
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏