https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: સપ્ટેમ્બર 2020

श्रीराधारानी ने अपने चरण कमलों में सुख देने वाले

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।

 श्रीराधारानी ने अपने चरण कमलों में सुख देने वाले 


           हमारी श्रीराधारानी ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले उन्नीस चिन्हों को धारण किया है...!

जो समस्त सुखों की खान, कमल से भी कोमल हैं और उनके चरणों की रज की चाह ब्रह्मा, शिव, सनकादिक, नारद, व्यास आदि भी करते हैं..!

            इन्हीं श्री चरणों का ध्यान करने पर मनुष्य को प्राकृत और अप्राकृत वैभव देने के साथ ही श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देते हैं...! 

इन चिह्नों के ध्यान से मन और हृदय पवित्र होते हैं तथा सांसारिक क्लेश, पीड़ा और भय का नाश होता है..

श्रीराधा के बांये पैर में कुल 11 चिह्न हैं --- 

             बांये पैर के अंगूठे के मूल में जौ, उसके नीचे चक्र, चक्र के नीचे छत्र, छत्र के नीचे कंकण, अंगूठे के बगल में ऊर्ध्वरेखा, मध्यमा के नीचे कमल का फूल, कमल के फूल के नीचे फहराती हुई ध्वजा, कनिष्ठिका के नीचे अंकुश, एड़ी में ऊंगलियों की ओर मुंह वाला अर्धचन्द्र,  चन्द्रमा के दायीं ओर पुष्प और बायीं ओर लता के चिह्न हैं...!

             छत्र --- 

श्रीराधा के बांये चरण में छत्र का चिह्न यह दर्शाता है कि यदुपति, व्रजपति, गोपपति एवं त्रिभुवनपति श्रीकृष्ण की स्वामिनी श्रीराधा हैं। 

वे समस्त गोपीयूथ की भी स्वामिनी हैं। 

इस चिह्न का ध्यान करने से मनुष्य को राज्यसुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति व त्रिविध तापों से रक्षा होती है।

             चक्र --- 

व्रजभूमि में एकछत्र  व्रजेश्वरी श्रीराधा का ही राज्य है। 

तेज - तत्त्व का प्रतीक चक्र - चिह्न ध्यान करने पर भक्तों के मन के कामरूपी निशाचर को मारकर अज्ञान का नाश कर देता है।

              ध्वज --- 

कलियुग की कुटिल गति देखकर मनुष्य शीघ्र ही भयभीत हो जाता है। 

अत: उसे निर्भयता और सभी कार्यों में विजय दिलाने के लिए श्रीराधा ने अपने चरण में ध्वज-चिह्न धारण किया है।

              लता --- 

वाम - चरण में लता चिह्न है और श्रीकृष्ण के चरण में वृक्ष चिह्न है। 

जिस प्रकार लता वृक्ष का आश्रय लेकर सदैव ऊपर चढ़ती चली जाती है उसी प्रकार श्रीराधा सदैव श्रीकृष्णाश्रय में रहती हैं। 

लता चिह्न का ध्यान करने से साधक की सदैव उन्नति होती है और भगवान श्रीराधाकृष्ण में प्रीति बढ़ती है।

             पुष्प --- 

मानिनी ( रूठी ) श्रीराधिका को मनाते समय भगवान श्रीकृष्ण उनके पांव पलोटते है। 

श्रीराधा के चरण श्रीकृष्ण को कठोर न प्रतीत हों इस लिए श्रीराधाजी अपने चरणों में पुष्पचिह्न धारण करती हैं।

इस का ध्यान करने से मनुष्य श्रीराधाजी की भक्ति प्राप्त करता है, उसका यश बढ़ता है और मन प्रसन्न रहता है।

             कंकण --- 

निकुंजलीला में कंकणों के मुखरित होने से श्रीराधा ने कंकण उतारकर रख दिए और उनका चिह्न अपने चरणकमल में धारण किया है ।

 इनका ध्यान मंगलकारक है।

              कमल --- 

कमल चिह्न का भाव है कि लक्ष्मीजी इन चरणों का सदा ध्यान करती हैं, उन पर बलिहार जाती हैं। 

इस चिह्न का ध्यान सभी प्रकार के वैभव व नवनिधि का दाता है।

             ऊर्ध्वरेखा -   

संसाररूप सागर अपार है, इस लिए श्रीराधा ने वाम - चरण में ऊर्ध्वरेखा धारणकर पुल बांध दिया है। 

भक्त श्रीराधा के चरणों में ऊर्ध्वरेखा का ध्यान करने से सहज ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं।

 जो श्रीराधा के चरणों की भक्ति करते हैं उनकी कभी अधोगति नहीं होती है।

               अंकुश --- 

मनरूपी उन्मत्त हाथी किसी भी प्रकार वश में नहीं आता है। 

अत: मन के निग्रह के लिए श्रीराधा के चरणों में अंकुश चिह्न का ध्यान करना चाहिए।

              अर्ध-चन्द्र --- अर्ध-चन्द्र निष्कलंक माना जाता है।

 यह शिवजी व गणेशजी के मस्तक पर विराजमान रहता है और एक - एक दिन करके वृद्धि को प्राप्त होता है। 

श्रीराधा के चरण में अर्ध - चन्द्र के चिह्न का ध्यान त्रिताप को नष्ट करके भक्ति और समृद्धि को बढ़ाता है।

 चन्द्रमा मन के देवता है....! 

भक्तों का मन श्रीराधा के चरणों में लगा रहे इसलिए श्रीराधा के चरण में अर्ध - चन्द्र का चिह्न है।

             यव ( जौ ) --- 

यव के चिह्न का अर्थ है कि भोजन की चिन्ता और सांसारिक मोहमाया को छोड़कर इन चरणकमलों की शरण लेने से सारे पाप - ताप मिट जाते हैं। 

जौ का चिह्न सर्वविद्या और सिद्धियों का दाता है....! 

इस का ध्यान करने वालों को सुमति, सुगति, विद्या और सुख - सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

♦️🌹रामायण के सात काण्ड मानव की उन्नति के सात सोपान🌹♦️

 
 1 बालकाण्ड  –

बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल , कपट , नही होता विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है...!

उसी को भगवान प्राप्त होते है। 

बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। 


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जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है। 

बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है....! 

बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा ।

जहाँ युद्ध,वैर ,ईर्ष्या नहीँ है ,वही अयोध्या है...! 

2 अयोध्याकाण्ड  – 

यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है। 

जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है....!

तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। 

भक्ति अर्थात् प्रेम ,अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है । 

रामका भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि ,सब इसी काण्ड मेँ है। 

राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई  देती है । 

अयोध्याकाण्ड का पाठ...!

करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है ।

उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते । 

उसका घर अयोध्या बनता है । 

कलह का मूल कारण धन एवं...!

प्रतिष्ठा है । 

अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है । 

सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए।

3 अरण्यकाण्ड  – 

 यह निर्वासन प्रदान करता है । 

इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी । 

बिना अरण्यवास ( जंगल ) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती । 

रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया । 

वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है। 

तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा । 

इसमेँ सूपर्णखा ( मोह ) एवं  शबरी ( भक्ति ) दोनो ही है। 

भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ ।

4 किष्किन्धाकाण्ड  – 

जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी । 

इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है। 

जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे। 

जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है। 

कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है। 

जिसका कण्ठ सुन्दर है....!

उसी की मित्रता राम से होती है...! 

किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी...!
 

5 सुन्दरकाण्ड  – 

जब जीव की मैत्री राम से हो...! 

जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है ।

इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है। 

सीताजी पराभक्ति है....!

जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है । 

संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है । 

ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है ।

संसार सागर को पार करते समय....!

मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है....! 

अच्छे रस ही सुरसा है....! 

नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। 

संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा । 

जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता ,जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

 6 लंकाकाण्ड  – 

जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ । 

जो इन्हेँ मार सकता है....!

वही काल को भी मार सकता है । 

जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है....!

लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं । 

काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ । 

क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है ।

7 उत्तरकाण्ड  – 

इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए । 

इसमेँ सब कुछ है ।

जब तक राक्षस...!

काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा । 

इसमेँ भक्ति की कथा है । 

भक्त कौन है  ? 

जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है...! 

पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है....! 

उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है...!

वृद्धावस्था मे राज्य करता है । 

जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध –

उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा । 

अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए ।

 _भावार्थ रामायण से_ 

 *🌹जय सियाराम जय जय सियाराम🌹* 
🙏 _जय श्री राम.... जय वीर हनुमान...._ 🙏

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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सत्य कहानी ।।*महाभारत को पढ़ने का समय न हो तो भी इसका नव सार सूत्र हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है :-

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जय द्वारकाधीश

।। सत्य कहानी ।।

*महाभारत  को पढ़ने का समय न हो तो भी इसका नव सार सूत्र हमारे जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है :-

1.  संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे = *कौरव

2.   आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन  अधर्म के साथ हो तो आपकी विद्या अस्त्र शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा =  *कर्ण*

3.   संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे =  *अश्वत्थामा

4.  कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े  = *भीष्म पितामह

5.  संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है =  *दुर्योधन
 6.  अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता  भी विनाश की ओर ले जाती है  = *धृतराष्ट्र

7.   व्यक्ति के पास विद्या  विवेक से बँधी  हो तो विजय अवश्य मिलती है = *अर्जुन

8.   हर कार्य में छल, कपट, व  प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते = *शकुनि

9.  यदि आप नीति,  धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती = *युधिष्ठिर

*‼️ यदि इन सूत्रों से शिक्षा लेना सम्भव नहीं होता है तो जीवन में  महाभारत संभव है।* 🙏

🙏🙏ॐ हरि ॐ 🙏🙏
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
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।। बहुत सुंदर कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। बहुत सुंदर कहानी ।।


श्री डोंगरे जी महाराज वचनामृत 


भगवान शंकराचार्य जी से  किसी ने पूछा था भगवन इस संसार में शत्रु कौन है तो शंकराचार्य स्वामी जी ने उत्तर दिया कि अपना मन ही शत्रु है ; 

फिर से प्रश्न किया कि मित्र कौन है तो कहा कि मन ही मित्र है । 

जिस चाबी से ताला बंद होता है,उसी चाबी से खुलता भी है। 

यही मन जब काम सुख का चिंतन करता है ;

विषयों का चिंतन करता है तो पतन करने वाला बन जाता है और भय क्रोध और अशांति उत्पन्न करता है और यही मन जब परमात्मा का चिंतन करता है तो आनंद देने वाला हो जाता है और भगवान की गोद में बैठा देता है । 

मन से ही बंधन है और मुक्ति भी मन से ही है ।

जयति जय बालकपि केलि
कौतुक उदित -चंडकर - मंडल -ग्रासकर्त्ता।

राहु  - रवि  - शुक्र - पवि  - गर्व खर्वीकरण
शरण  - भयहरण  जय  भुवन - भर्त्ता।।

हनुमानजी आपकी जय हो, जय हो। 

आपने बचपन में ही बाललीला से उदयकालीन प्रचण्ड सूर्य के मण्डल को लाल - लाल खिलौना समझकर निगल लिया था। 

उस समय आपने राहु, सूर्य,इन्द्र और वज्र का गर्व चूर्ण कर दिया था। 

हे शरणागत के भय हरने वाले! हे विश्व का भरण - पोषण करने वाले! ! 

आपकी जय हो,जय हो।'

जय श्री कृष्ण 


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     अनुपयोगिता सें लोहा जंग खा जाता है,

स्थिरता से पानी अपनी शुद्धता खो देता है..

          इसी तरह

निष्क्रियता मस्तिष्क की ताकत सोख लेती है..!

इस लिए  जीवन में निरंतर सक्रिय रहें .
    
संस्कारो पर नाज

बेटा अब खुद कमाने वाला हो गया था ...!

इस लिए बात - बात पर अपनी माँ से झगड़ पड़ता था ये वही माँ थी जो बेटे के लिए पति से भी लड़ जाती थी। 

मगर अब फाइनेसिअली इंडिपेंडेंट बेटा पिता के कई बार समझाने पर भी इग्नोर कर देता और कहता, 

" यही तो उम्र है शौक की,खाने पहनने की, जब आपकी तरह मुँह में दाँत और पेट में आंत ही नहीं रहेगी तो क्या करूँगा। "

बहू खुशबू भी भरे पूरे परिवार से आई थी, इस लिए बेटे की गृहस्थी की खुशबू में रम गई थी।

बेटे की नौकरी अच्छी थी तो फ्रेंड सर्किल उसी हिसाब से मॉडर्न थी।

बहू को अक्सर वह पुराने स्टाइल के कपड़े छोड़ कर मॉडर्न बनने को कहता, मगर बहू मना कर देती....! 

वो कहता....!

कमाल करती हो तुम, आजकल सारा ज़माना ऐसा करता है, मैं क्या कुछ नया कर रहा हूँ। "

तुम्हारे सुख के लिए सब कर रहा हूँ और तुम हो कि उन्हीं पुराने विचारों में अटकी हो।

क्वालिटी लाइफ क्या होती है तुम्हें मालूम ही नहीं।

और बहू कहती "क्वालिटी लाइफ क्या होती है, ये मुझे जानना भी नहीं है, क्योकि लाइफ की क्वालिटी क्या हो, मैं इस बात में विश्वास रखती हूँ।"

आज अचानक पापा आई. सी. यू. में एडमिट हुए थे।

हार्ट अटेक आया था।

डॉक्टर ने पर्चा पकड़ाया, *तीन लाख* और जमा करने थे। 

डेढ़ लाख का बिल तो पहले ही भर दिया था मगर अब ये तीन लाख भारी लग रहे थे। 

वह बाहर बैठा हुआ सोच रहा था कि अब क्या करे।

उसने कई दोस्तों को फ़ोन लगाया कि उसे मदद की जरुरत है, मगर किसी ने कुछ तो किसी ने कुछ बहाना कर दिया। 

आँखों में आँसू थे और वह उदास था तभी खुशबू  खाने का टिफिन लेकर आई और बोली,"अपना ख्याल रखना भी जरुरी है। 

ऐसे उदास होने से क्या होगा? हिम्मत से काम लो, बाबू जी को कुछ नहीं होगा आप चिन्ता मत करो। 

कुछ खा लो फिर पैसों का इंतजाम भी तो करना है आपको मैं यहाँ बाबूजी के पास रूकती हूँ आप खाना खाकर पैसों का इंतजाम कीजिये।

" पति की आँखों से टप - टप आँसू झरने लगे। "

" कहा न आप चिन्ता मत कीजिये। 

जिन दोस्तों के साथ आप मॉडर्न पार्टियां करते हैं आप उनको फ़ोन कीजिये, देखिए तो सही, कौन कौन मदद को आता हैं। "

" पति खामोश और सूनी निगाहों से जमीन की तरफ़ देख रहा था।

कि खुशबू का हाथ उसकी पीठ पर आ गया। "

और वह पीठ  को सहलाने लगी।

"सबने मना कर दिया। "

सबने कोई न कोई बहाना बना दिया खुशबू।

आज पता चला कि ऐसी दोस्ती तब तक की है जब तक जेब में पैसा है। 

 किसी ने भी हाँ नहीं कहा जबकि उनकी पार्टियों पर मैंने लाखों उड़ा दिये।"

" इसी दिन के लिए बचाने को तो माँ-बाबा कहते थे। 

खैर, कोई बात नहीं, आप चिंता न करो, हो जाएगा सब ठीक।

 कितना जमा कराना है? "

" अभी तो तनख्वाह मिलने में भी समय है, आखिर चिन्ता कैसे न करूँ खुशबू ? "

"तुम्हारी ख्वाहिशों को मैंने सम्हाल रखा है।"

"क्या मतलब....?"

" तुम जो नई नई तरह के कपड़ो और दूसरी चीजों के लिए मुझे पैसे देते थे वो सब मैंने सम्हाल रखे हैं।

माँ जी ने फ़ोन पर बताया था, तीन लाख जमा करने हैं। मेरे पास दो लाख थे।

बाकी मैंने अपने भैया से मंगवा लिए हैं।

टिफिन में सिर्फ़ एक ही डिब्बे में खाना है बाकी में पैसे हैं।"

खुशबू ने थैला टिफिन सहित उसके हाथों में थमा दिया।

" खुशबू ! तुम सचमुच अर्धांगिनी हो, मैं तुम्हें मॉडर्न बनाना चाहता था, हवा में उड़ रहा था।
मगर तुमने अपने संस्कार नहीं छोड़े. आज वही काम आए हैं। "

सामने बैठी माँ के आँखो में आंसू थे उसे आज खुद के नहीं बल्कि पराई माँ के संस्कारो पर नाज था और वो बहु के सर पर हाथ फेरती हुई ऊपरवाले का शुक्रिया अदा कर रही थी।

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जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।*‼️राम कृपा ही केवलम्‼️**❗अनपायनी भक्ति❗* *************प्रश्न उठता है भक्ति कैसी हो? **************तब इसके लिए हमें श्रीरामचरितमानस में स्वयं सर्व श्रीगोस्वामी तुलसीदास, सीता जी, हनुमान जी, भरत जी, लक्ष्मण जी, भगवान के सखा गुह, सनकादिक ऋषि-मुनि इत्यादि जैसी भक्ति का वरदान प्रभु से मांगते हैं उसे समझना होगा।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री रामचरित्रमानस प्रवचन ।।

*‼️राम कृपा ही केवलम्‼️*

*❗अनपायनी भक्ति❗*
   
*************

प्रश्न उठता है भक्ति कैसी हो?
        **************

तब इसके लिए हमें श्रीरामचरितमानस में स्वयं सर्व श्रीगोस्वामी तुलसीदास, सीता जी, हनुमान जी, भरत जी, लक्ष्मण जी, भगवान के सखा गुह, सनकादिक ऋषि-मुनि इत्यादि जैसी भक्ति का वरदान प्रभु से मांगते हैं उसे समझना होगा।

श्रीमद्भागवत में श्री हनुमान जी महाराज कोk 👉परम भागवत(अर्थात सर्वश्रेष्ठ भक्त) कहा गया है, श्री हनुमान जी महाराज स्वयं भगवान शिव के अवतार हैं, और शिव जी को भी परम-वैष्णव कहा गया है, अतः भक्ति में हनुमान जी महाराज और शिव जी दोनों हीं उच्चतम आदर्श हैं । 

श्री रामचरितमानस में श्रीहनुमान जी महाराज प्रभु से अनपायनी भक्ति का वर मांगते हैं।यथा-

चौ॰-नाथ भगति अति सुखदायनी ।
  देहु कृपा करि अनपायनी ॥

सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी ।
  एवमस्तु तब कहेउ भवानी ॥

 (Kश्रीरामचरितमानस 5.34.1v)

भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। 

श्री हनुमान्‌जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा॥

उससे पहले श्री हनुमान जी को सीता माँ की कृपा मिल चुकी थी ..उन्हें पहले सीता जी का अनुपम वरदान मिल चूका था।

अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
 करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
 (श्री रामचरितमानस 5.17.2)
भावार्थ:-हे पुत्र! तुम अजर (बुढ़ापे से रहित), अमर और गुणों के खजाने हो ओ। 

श्री रघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें, वो तुमसे बहुत छोह (प्रेम) करें।

अतः साधक सीता जी के कृपा की छाया में रहते हुए श्री हनुमान जी महाराज का अनुसरण कर प्रभु श्री राम की"अनपायनी भक्ति को प्राप्त कर सकता है।

भक्ति का भाव स्वरुप जैसा भी हो सब में सीता जी की कृपा जरुरी है, सभी भावों में प्रभु के प्रति सेवा का भाव अर्थातv👉 "दास्यभक्ति" का तत्व हमेशा मौजूद होता है, दास्य-भक्ति के परम-आदर्श श्री हनुमान जी महाराज हैं।

  *🌹🙏जय जय राम सीताराम राम राम राम 🙏🌹*
🙏🙏🙏【【【【【{{{{ (((( मेरा पोस्ट पर होने वाली ऐडवताइस के ऊपर होने वाली इनकम का 50 % के आसपास का भाग पशु पक्षी ओर जनकल्याण धार्मिक कार्यो में किया जाता है.... जय जय परशुरामजी ))))) }}}}}】】】】】🙏🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 25 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। सुंदर काव्य रचना ।।

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जय द्वारकाधीश

।। सुंदर काव्य रचना ।।


स्त्री - सर्वदुखहर्ता

एक पति - पत्नी में तकरार हो गयी, पति कह रहा था : 

" मैं नवाब हूँ इस शहर का लोग इस लिए मेरी इज्जत करते है और तुम्हारी इज्जत मेरी वजह से है। "

पत्नी कह रही थी : 

" आपकी इज्जत मेरी वजह से है। 

मैं चाहूँ तो आपकी इज्जत एक मिनट में बिगाड़ भी सकती हूँ और बना भी सकती हूँ। " 


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नवाब को तैश आ गया और बोला-

" ठीक है दिखाओ

मेरी इज्जत खराब करके..! "

बात आई गई हो गयी। 

नवाब के घर शाम को महफ़िल जमी थी दोस्तों की...! 

हंसी मजाक हो रहा था कि अचानक नवाब को

अपने बेटे के रोने की आवाज आई....! 

वो जोर जोर से रो रहा था और नवाब की पत्नी बुरी तरह उसे डांट रही थी। 

नवाब ने जोर से आवाज देकर पूछा कि क्या हुआ बेगम क्यों डाँट रही हो..??

बेगम ने अंदर से कहा., 

" देखिये न--- 

आपका बेटा खिचड़ी मांग रहा है और जबकि उसका पेट भी भर चुका है..! "

नवाब ने कहा.., 

" दे दो थोड़ी सी और..! "

बेगम बोली., 

" घर में और भी तो लोग है सारी इसी को कैसे दे दूँ..? "

पूरी महफ़िल शांत हो गयी । 

लोग कानाफूसी करने लगे कि कैसा नवाब है ? 

जरा सी खिचड़ी के लिए इसके घर में झगड़ा होता है। 

नवाब की पगड़ी उछल गई। 

सभी लोग चुपचाप उठ कर चले गए।

नवाब उठ कर अपनी बेगम के पास आया और बोला.,

" मैं मान गया, तुमने आज मेरी इज्जत तो उतार दी, लोग भी कैसी-

कैसी बातें कर रहे थे। 

अब तुम यही इज्जत वापस लाकर दिखाओ..! "

बेगम बोली.., 

" इसमे कौन सी बड़ी बात है आज जो लोग महफ़िल में थे उन्हें आप फिर किसी बहाने से उन्हें निमंत्रण दी जिये..! "

नवाब ने फिर से सबको बुलाया बैठक और मौज मस्ती के बहाने., 

सभी मित्रगण बैठे थे, हंसी मजाक चल रहा था कि फिर वही नवाब के बेटे की रोने की आवाज आई नवाब ने आवाज देकर पूछा...!

" बेगम क्या हुआ क्यों रो रहा है हमारा बेटा ? "

बेगम ने कहा., 

" फिर वही खिचड़ी खाने की जिद्द कर रहा है..! "

लोग फिर एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि यार एक मामूली खिचड़ी के लिए इस नवाब के घर पर रोज झगड़ा होता है।

नवाब मुस्कुराते हुए बोला., 

" अच्छा बेगम तुम एक काम करो तुम खिचड़ी यहाँ लेकर आओ .. 

हम खुद अपने हाथों से अपने बेटे को देंगे., 

वो मान जाएगा और सभी मेहमानो को भी खिचड़ी खिलाओ..! "

बेगम ने जवाब दिया.., 

" जी नवाब साहब...! " 

बेगम बैठक खाने में आ गई पीछे नौकर खाने का सामान सर पर रख आ रहा था, हंडिया नीचे रखी और मेहमानो को भी देना शुरू किया अपने बेटे के साथ। 

सारे नवाब के दोस्त हैरान - जो परोसा जा रहा था वो चावल की खिचड़ी तो कत्तई नहीं थी। 

उसमे खजूर - पिस्ता-काजू बादाम - किशमिश गिरी इत्यादि से मिला कर बनाया हुआ
सुस्वादिष्ट व्यंजन था।

अब लोग मन ही मन सोच रहे थे कि ये खिचड़ी है? 

नवाब के घर इसे खिचड़ी बोलते हैं तो - मावा - मिठाई किसे बोलते होंगे ?

नवाब की इज्जत को चार - चाँद लग गए । 

लोग नवाब की रईसी की बातें करने लगे।

नवाब ने बेगम के सामने हाथ जोड़े और कहा 

" मान गया मैं कि घर की स्त्री इज्जत बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है---

और जिस व्यक्ति को घर में इज्जत हासिल नहीं उसे दुनियाँ मे कहीं इज्जत नहीं मिलती..! "

सृष्टि मे यह सिद्धांत हर जगह लागू हो जाएगा । 

अहंकार युक्त जीवन में स्त्री जब चाहे हमारे अहंकार की इज्जत उतार सकती है और नम्रता युक्त जीवन मे इज्ज़त बना सकती है..

हर हर महादेव

मैं नारी......

मै नारी नदी सी मेरे दो किनारे।

एक किनारे ससुराल,  दूजी ओर मायका
दोनों मेरे अपने फिर भी अलग दोनों का जायका।

एक तरफ मां जिसकी कोख का मैं हिस्सा ।
दूजी ओर सास जिनके लाल संग  जुड़ा मेरे
जीवन भर का किस्सा 

एक तरफ पिता  , जिनसे है अपनत्व की धाक।
दूजी ओर ससुरजी जिनकी हैं सम्मान की साख।

मायके का आँगन मेरे जन्म की किलकारी
ससुराल का आँगन  मेरे बच्चों की चिलकारी


मायके में मेरी बहने , मेरी हमजोली
ससुराल में मेरी ननदे है, शक्कर सी मीठी गोली।

मायके में मामा , काका है पिता सी मुस्कान
ससुराल के देवर जेठ हैं तीखे में मिष्टान।

मायके में भाभी 

है ममता के खजाने की चाबी ।
ससुराल में देवरानी जेठानी
हैं मेरी तरह ही बहती नदी का पानी।

मायके में मेरा भईया

एक आस जो बनेगा दुख में मेरी नय्या
ससुराल में मेरे प्राणप्रिय सैया
जो हैं मेरे जीवन के खेवैया।

ससुराल ओर मायका हैं दो नदी की धारा
जो एक नारी में समाकर नारी को बनाती है सागर सा गहरा।

नारी शक्ति को प्रणाम  
🙏🙏🙏🙏जय अंबे🙏🙏🙏🙏

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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।*‼️राम कृपा ही केवलम्‼️**❗सच्चिदानन्द-- असली सुख, सत्य और ज्ञान से अलग नहीं है, एक ही है❗* दुनियामें सुख चाहनेवाले तो सभी लोग हैं- सब चाहते हैं कि हमको सुख मिले, पर सुख कैसे मिले- इसको भी पक्का कर लेते हैं कि सुख ऐसे मिले। आप देखो, हमारे वृन्दावनमें बिहारीजीके मन्दिर जाते हैं तो कहते हैं कि हे बिहारीजी हमको सुख चाहिए।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्रीरामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।

*‼️राम कृपा ही केवलम्‼️*

*❗सच्चिदानन्द-- असली सुख, सत्य और ज्ञान से अलग नहीं है, एक ही है❗*

     दुनियामें सुख चाहनेवाले तो सभी लोग हैं- सब चाहते हैं कि हमको सुख मिले, पर सुख कैसे मिले- इसको भी पक्का कर लेते हैं कि सुख ऐसे मिले। 

आप देखो, हमारे वृन्दावनमें बिहारीजीके मन्दिर जाते हैं तो कहते हैं कि हे बिहारीजी हमको सुख चाहिए।

 बिहारीजी चुप रहे, कि यह तो मैं जानता ही हूँ बोलनेकी कोई जरूरत नहीं है। 

फिर बोले कि महाराज, वह सुख हमको बेटेके रूपमें चाहिए- बेटा मिले तब हम सुखी होंगे। 

तो बिहारीजीने सोचा कि यह बात तो हमको नहीं मालूम थी, इसने हमको अज्ञानी बनाया। 

फिर बोले कि महाराज, बेटेके रूपमें जो सुख चाहिए वह एक वर्षके भीतर ही चाहिए।

 समयका भी बन्धन लगाया बिहारीजी के और महाराज बेटी न हो, बेटा ही हो और वह गोरा हो, हृष्ट हो, पुष्ट हो, बलिष्ठ हो, सेवा करनेवाला हो- माने बिहारीजीकी बुद्धिपर तो कुछ छोड़ा ही नहीं- सारा अपनी बुद्धिमें ले लिया।

          तो सुख चाहते हैं और उसको अपने माने हुए तरीकेसे चाहते हैं- इसमें न ईश्वरकी बात माने, न गुरुकी बात मानें, हमें तो
हमारी वासनाके अनुसार जो वस्तु है उससे सुख मिलना चाहिए।

 अब कभी-कभी ईश्वरकी इच्छामें और अपनी वासनामें मेल नहीं खाता है तो रोना पड़ता है। 

रोना कहाँसे आता है कि जब हमारा ईश्वरसे मतभेद होता है तभी आता है।

अगर ईश्वरके मतसे हमारा मत मिलता जाये तो रोना कहाँ आवेगा? 

'जो थारी राय सो म्हारी राय। 

तो जिसने अपनी राय ईश्वरकी रायके साथ मिला दी। 

‘स देवो यदेव कुरुते तदेव मङ्गलाय'-ईश्वर जो करता है
उसीमें अपना मङ्गल है- रातमें अपना मङ्गल, दिनमें अपना मङ्गल, प्रातः अपना मङ्गल है, सायं अपना मङ्गल है, पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण अपना मङ्गल है- मरना-जीना सब अपना मङ्गल है। 

दिशाओंमें पूरब-पश्चिम होता है और कालमें सायं-प्रातः होता है और वस्तुओंमें आना-जाना-मरना-जीना होता है- यह सब एक ही चीज है, जैसे सायं-प्रातःका भेद है वैसे ही मरने-जीनेका भेद है। 

तो जो ईश्वर करता है वह मङ्गल-ही-मङ्गल है।

 अब जब ईश्वरकी रायसे अपनी राय मिल गयी तब दुःखका सवाल कहाँ रहा?

        अब आपको इसमें जो मर्म है वह सुनाता हूँ- तुम सत्यसे सुखी होना चाहते हो कि असत्यसे भी सुख लेना चाहते हो? 

भले असत्यसे मिले लेकिन हमको सुख मिले; भले बेईमानीसे मिले लेकिन हमको सुख मिले; चोरीसे मिले लेकिन हमको सुख मिले; दूसरेके धनसे मिले लेकिन हमको सुख मिले- हमको तो सुख चाहिए, हम धर्म-अधर्म, ईमानदारी-बेईमानी कुछ नहीं जानते। 

तो बोले-बेटा, अभी 'जायस्व म्रियस्व' अभी तुम संसारमें पैदा होओ और मरो, तुम्हारे लिए ईश्वरकी क्या चर्चा है? 

      जब मनुष्य कहता है कि सत्यसे ही हमको सुख चाहिए, असत्यसे हमको सुख नहीं चाहिए, चोरी-बेईमानी-व्यभिचारसे हमको सुख नहीं चाहिए, हमको अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रहसे सुख चाहिए, हमको बेईमानीसे नहीं; ईमानदारीसे सुख चाहिए, हमको असत्यसे नहीं, सत्यसे सुख चाहिए। 

तब तुम ईश्वरके मार्गमें चलनेके अधिकारी होते हो। 

यह बात प्रारम्भमें इसलिए कह देता हूँ कि सबके कामकी कोई बात इसमें से निकले। 

असलमें सत्य ही सुख है, जहाँ तुम सत्यसे च्युत हो जाते हो वहाँ ज्ञानसे भी च्युत हो गये और सुखसे भी च्युत हो गये, क्योंकि जो सत्य है वही ज्ञान है और वही सुख है। 

जो सत्यके ज्ञानके लिये व्याकुल है, सत्यकी प्राप्तिके लिए व्याकुल है वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करनेके लिए भी व्याकुल है और वही सच्चा सुख प्राप्त करनेके लिए व्याकुल है, नहीं तो झूठी चीजसे जो ज्ञान होगा वह सच्चा तो होगा नहीं, वह झूठा ज्ञान भी होगा और झूठा सुख भी होगा।

 इसीलिए, ये झूठे लोग जो हैं, एक बार इनके पास दस-बीस लाख रुपया आ भी जाय, पर बादमें उनको छटपटाना ही पड़ता है-रुपया आय तो कहाँ रखें, कैसे छिपावें, चोरसे कैसे बचावें, पुलिससे कैसे बचें, घरवालोंसे कैसे बचें- यह बेकली रहती है।

 रख दिया तो किसीको पता न लगे या अभिमान बढ गया कि हमारे पास इतना है। 

सबको पैसेसे तोलते हैं कि यह साधु हमारे पास आया है तो पैसेके लिए आया होगा; और पाना चाहते हैं ईश्वर और जिस दिलमें ईश्वर रहना चाहिए, सत्य रहना चाहिए, उस दिलमें आकर बैठ गया पैसा।

         तो, सत्यकी जिज्ञासा तुम्हारे हृदयमें कितनी है इससे तुम अपने दिलको ठोक-बजा लो, दूसरेको बतानेकी जरूरत नहीं है, असलमें जो सत्य है वही सुख है और सत्य ही ज्ञान है, सत्य ही सुख है, ज्ञान ही सत्य है और ज्ञान ही सुख है। 

जो लोग असत्यमें सुख लूटना चाहते हैं उनको सुख मिलनेवाला नहीं है , उनको सुख मिलेगा ही नहीं। वे सोचते ही रह जाते हैं- यह करेंगे, यह करेंगे और पैसा उठाकर कोई दूसरा ले जाता है।

        विष्णु-पुराणमें लिखा है कि पूर्वजन्मके जितने दुश्मन होते हैं- जिनका पैसा लेकर पूर्वजन्ममें मार लिया होता है- माने पूर्व जन्मका जिनका कर्ज रहता है, वे सब इस जन्ममें बेटा बनकर आते हैं कि इस जन्ममें इनसे सब वसूल करेंगे। 
ये मरेंगे तो हम सब-का-सब ले लेंगे, या तो मार करके ले लेंगे- बेटा बनकर आते हैं, मित्र बनकर आते हैं, रिश्तेदार बनकर आते हैं! यह भी लिखा है कि पाँच प्रकारके पुत्र होते हैं। 

उनमें से एक जिनकी धरोहर रखी है वे, एक- जिनका कर्ज लिया हुआ होता है-वे; एक जिनकी चोरी की हुई होती है वे- ऐसे पांच प्रकारके बेटे होते हैं। 

तो, सत्य और सुखको जिन्होंने अलग-अलग कर दिया वे परमार्थसे वंचित हो गये और जिन्होंने सत्य और सुखको एक कर दिया वे सत्यके जिज्ञासु हो गये, वे सुखके जिज्ञासु हो गये, परमार्थ-पथके पथिक हो गये

 (केनोपनिषद् प्रवचन'में संकलित प्रवचनों से)
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❗वास्तविक गुरु❗

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
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*❗वास्तविक गुरु❗*


वास्तविक गुरु वह होता है, जिसमें केवल चेलेके कल्याणकी चिन्ता होती है । 

जिसके हृदयमें हमारे कल्याणकी चिन्ता ही नहीं है, वह हमारा गुरु कैसे हुआ ? 

जो हृदयसे हमारा कल्याण चाहता है, वही हमारा वास्तविक गुरु है, चाहे हम उसको गुरु मानें या न मानें और वह गुरु बने या न बने । 

उसमें यह इच्छा नहीं होती कि मैं गुरु बन जाऊँ, दूसरे मेरेको गुरु मान लें, मेरे चेले बन जायँ । 

जिसके मनमें धनकी इच्छा होती है, वह धनदास होता है । 

ऐसे ही जिसके मनमें चेलेकी इच्छा होती है, वह चेलादास होता है । 

जिसके मनमें गुरु बननेकी इच्छा है, वह दूसरे का कल्याण नहीं कर सकता । 

जो चेलेसे रुपये चाहता है, वह गुरु नहीं होता, प्रत्युत पोता - चेला होता है । 

कारण कि चेलेके पास रुपये हैं तो उसका चेला हुआ रुपया और रुपयेका चेला हुआ गुरु तो वह गुरु वास्तवमें पोता - चेला ही हुआ ! 


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Vado 5 Mukhi Rudraksha Mala 108 Beads with Certificate 7 mm Brown


विचार करें, जो आपसे कुछ भी चाहता है, वह क्या आपका गुरु हो सकता है ? 

नहीं हो सकता । 

जो आपसे कुछ भी धन चाहता है, मान - बड़ाई चाहता है, आदर चाहता है, वह आपका चेला होता है, गुरु नहीं होता ।

 सच्‍चे महात्माको दुनियाकी गरज नहीं होती, प्रत्युत दुनियाको ही उसकी गरज होती है ।

 जिसको किसीकी भी गरज नहीं होती, वही वास्तविक गुरु होता है ।

कबीर जोगी जगत गुरु,  

तजै  जगत की आस ।
जो जग की आसा करै तो जगत गुरु वह दास ॥

जो सच्‍चे सन्त - महात्मा होते हैं, उनको गुरु बननेका शौक नहीं होता, प्रत्युत दुनियाके उद्धारका शौक होता है । 

उनमें दुनियाके उद्धारकी सच्‍ची लगन होती है । 

मैं भी अच्छे सन्त - महात्माओंकी खोजमें रहा हूँ और मेरेको अच्छे सन्त - महात्मा मिले भी हैं । 

परन्तु उन्होंने कभी ऐसा नहीं कहा कि तुम चेला बन जाओ तो कल्याण हो जायगा । 

जिनको गुरु बननेका शौक है, वही ऐसा प्रचार करते हैं कि गुरु बनाना बहुत जरूरी है, बिना गुरुके मुक्ति नहीं होती, आदि - आदि ।

कोई वर्तमान मनुष्य ही गुरु होना चाहिये ‒

ऐसा कोई विधान नहीं है । 

श्रीशुकदेवजी महाराज हजारों वर्ष पहले हुए थे, पर उन्होंने चरणदासजी महाराजको दीक्षा दी ! 

सच्‍चे शिष्यको गुरु अपने - आप दीक्षा देता है । 

कारण कि चेला सच्‍चा होता है तो उसके लिये गुरुको ढूँढ़नेकी आवश्यकता नहीं होती, प्रत्युत गुरु अपने-आप मिलता है । 

सच्‍ची लगनवालेको सच्‍चा महात्मा मिल जाता है‒

जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥
                                 ( मानस, बालकाण्ड २५९ / ३ )

*🌹🙏जय श्री सीताराम🙏🌹*

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रामेश्वर कुण्ड

 || रामेश्वर कुण्ड || रामेश्वर कुण्ड एक समय श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर श्रीराधिका के साथ ...