सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। श्रीमद्भागवत प्रवचन ।।
श्रीराधारानी ने अपने चरण कमलों में सुख देने वाले
हमारी श्रीराधारानी ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले उन्नीस चिन्हों को धारण किया है...!
जो समस्त सुखों की खान, कमल से भी कोमल हैं और उनके चरणों की रज की चाह ब्रह्मा, शिव, सनकादिक, नारद, व्यास आदि भी करते हैं..!
इन्हीं श्री चरणों का ध्यान करने पर मनुष्य को प्राकृत और अप्राकृत वैभव देने के साथ ही श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देते हैं...!
इन चिह्नों के ध्यान से मन और हृदय पवित्र होते हैं तथा सांसारिक क्लेश, पीड़ा और भय का नाश होता है..
श्रीराधा के बांये पैर में कुल 11 चिह्न हैं ---
बांये पैर के अंगूठे के मूल में जौ, उसके नीचे चक्र, चक्र के नीचे छत्र, छत्र के नीचे कंकण, अंगूठे के बगल में ऊर्ध्वरेखा, मध्यमा के नीचे कमल का फूल, कमल के फूल के नीचे फहराती हुई ध्वजा, कनिष्ठिका के नीचे अंकुश, एड़ी में ऊंगलियों की ओर मुंह वाला अर्धचन्द्र, चन्द्रमा के दायीं ओर पुष्प और बायीं ओर लता के चिह्न हैं...!
छत्र ---
श्रीराधा के बांये चरण में छत्र का चिह्न यह दर्शाता है कि यदुपति, व्रजपति, गोपपति एवं त्रिभुवनपति श्रीकृष्ण की स्वामिनी श्रीराधा हैं।
वे समस्त गोपीयूथ की भी स्वामिनी हैं।
इस चिह्न का ध्यान करने से मनुष्य को राज्यसुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति व त्रिविध तापों से रक्षा होती है।
चक्र ---
व्रजभूमि में एकछत्र व्रजेश्वरी श्रीराधा का ही राज्य है।
तेज - तत्त्व का प्रतीक चक्र - चिह्न ध्यान करने पर भक्तों के मन के कामरूपी निशाचर को मारकर अज्ञान का नाश कर देता है।
ध्वज ---
कलियुग की कुटिल गति देखकर मनुष्य शीघ्र ही भयभीत हो जाता है।
अत: उसे निर्भयता और सभी कार्यों में विजय दिलाने के लिए श्रीराधा ने अपने चरण में ध्वज-चिह्न धारण किया है।
लता ---
वाम - चरण में लता चिह्न है और श्रीकृष्ण के चरण में वृक्ष चिह्न है।
जिस प्रकार लता वृक्ष का आश्रय लेकर सदैव ऊपर चढ़ती चली जाती है उसी प्रकार श्रीराधा सदैव श्रीकृष्णाश्रय में रहती हैं।
लता चिह्न का ध्यान करने से साधक की सदैव उन्नति होती है और भगवान श्रीराधाकृष्ण में प्रीति बढ़ती है।
पुष्प ---
मानिनी ( रूठी ) श्रीराधिका को मनाते समय भगवान श्रीकृष्ण उनके पांव पलोटते है।
श्रीराधा के चरण श्रीकृष्ण को कठोर न प्रतीत हों इस लिए श्रीराधाजी अपने चरणों में पुष्पचिह्न धारण करती हैं।
इस का ध्यान करने से मनुष्य श्रीराधाजी की भक्ति प्राप्त करता है, उसका यश बढ़ता है और मन प्रसन्न रहता है।
कंकण ---
निकुंजलीला में कंकणों के मुखरित होने से श्रीराधा ने कंकण उतारकर रख दिए और उनका चिह्न अपने चरणकमल में धारण किया है ।
इनका ध्यान मंगलकारक है।
कमल ---
कमल चिह्न का भाव है कि लक्ष्मीजी इन चरणों का सदा ध्यान करती हैं, उन पर बलिहार जाती हैं।
इस चिह्न का ध्यान सभी प्रकार के वैभव व नवनिधि का दाता है।
ऊर्ध्वरेखा -
संसाररूप सागर अपार है, इस लिए श्रीराधा ने वाम - चरण में ऊर्ध्वरेखा धारणकर पुल बांध दिया है।
भक्त श्रीराधा के चरणों में ऊर्ध्वरेखा का ध्यान करने से सहज ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं।
जो श्रीराधा के चरणों की भक्ति करते हैं उनकी कभी अधोगति नहीं होती है।
अंकुश ---
मनरूपी उन्मत्त हाथी किसी भी प्रकार वश में नहीं आता है।
अत: मन के निग्रह के लिए श्रीराधा के चरणों में अंकुश चिह्न का ध्यान करना चाहिए।
अर्ध-चन्द्र --- अर्ध-चन्द्र निष्कलंक माना जाता है।
यह शिवजी व गणेशजी के मस्तक पर विराजमान रहता है और एक - एक दिन करके वृद्धि को प्राप्त होता है।
श्रीराधा के चरण में अर्ध - चन्द्र के चिह्न का ध्यान त्रिताप को नष्ट करके भक्ति और समृद्धि को बढ़ाता है।
चन्द्रमा मन के देवता है....!
भक्तों का मन श्रीराधा के चरणों में लगा रहे इसलिए श्रीराधा के चरण में अर्ध - चन्द्र का चिह्न है।
यव ( जौ ) ---
यव के चिह्न का अर्थ है कि भोजन की चिन्ता और सांसारिक मोहमाया को छोड़कर इन चरणकमलों की शरण लेने से सारे पाप - ताप मिट जाते हैं।
जौ का चिह्न सर्वविद्या और सिद्धियों का दाता है....!
इस का ध्यान करने वालों को सुमति, सुगति, विद्या और सुख - सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण जय श्री कृष्ण
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏