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सखियों के श्याम , मासिक शिवरात्रि विशेष :

सखियों के श्याम , मासिक शिवरात्रि विशेष :  


श्रीहरिः

सखियों के श्याम :


(प्रीत किये दुख होत)


किंतु फिर भी इतना कुछ सुनकर भी श्यामसुंदर वैसे ही शिलापर बैठे मुस्कराते रहे । 

मल्लिकाके सुमन झरकर उनकी अलकों में उलझ रहे थे । 




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हमारी धूमिल आशा अब श्रीकिशोरीजीके चरणोंसे जा लगी। सबके झुके मुखोंकी अश्रुरुध्द—

धुंधलाई दृष्टिके सम्मुख अंधकार अधिपत्य जमाने लगा था। 

अन्तरको मानो गर्म लोहेसे दागा जा रहा हो; तभी श्रीकिशोरीजीका स्वर सुनाई पड़ा — 

'हम तुम्हारी दासी है श्यामसुंदर! 

हमारा.... उपहास.... तुम्हारे.... योग्य.... कार्य.... नहीं .... ।'


भरे कंठसे वे रुक-रुककर बड़ी कठिनाईसे बोल रही थी 'हमारा धर्म... — 

ज्ञान .......–रीति......-लोक...... -परलोक; .... सब....कुछ... तुम्ही .... हो। 

तुम्ही..... बताओ!..... तुम्हारे.... ये.... अरुण... अमल... पदाम्बुज....... छोडकर ....हम...... कहाँ..... जायं ?




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..... तुम्ही.... बताओ! 

....तुमसे ....बड़ा .....धर्म... कौन.... सा..... है ?

.... तुम्हारी.... लीलाओं से... तुम्हारे...... रूपसे... तुम्हारी..... हँसी.... और.... मीठी.... वाणीसे .....तुम्हारे.... बल... और.... गौरवसे.... तुम्हारे.... स्नेहिल..... स्वभावसे..... वशमें..... हुई..... हम.... अबलायें.... अब.... कहाँ..... जायें ? ...... क्या... तुम... मात्र.... व्रजराजकुमार...... ही..... हो ?'


'और बहिन वह चितचोर शिलातलसे उठ खड़ा हुआ, हँसता हुआ हमारे सम्मुख आया- अच्छा सखियों! तुम्हारी ही बात रहे। 

उसने कहा- चलो। 

इस सुन्दर रात्रिका नाच, गा और खेलकर सदुपयोगकर लिया जाये।'


'अपने पीताम्बरसे उसने हम सबके मुख पोंछे। 

जैसे हमारे मृत-तनमें जीवन जाग उठा हो, उस प्रसन्नताका वर्णन कैसे करूँ! 

कानोंके पथसे, जैसे जलते हुए हृदयपर सुधा धारा उडेली गयी हो। 


गजराजके साथ करिनियोंके झुंड-सी हम यमुनातटपर आयी और श्यामसुन्दरने 'मैं तुम्हारा क्या प्रिय करूँ सखियों ?' 

कहकर किसीके पुष्पवलय, किसीकी वेणी, किसीके नुपुर, हार, भुजबंद, करधनी और सीमन्तादि आभूषण बनाकर वह पहनाने लगे। 

साथ-ही-साथ हास-परिहास भी चला ।




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हमारे आनन्द कलरवसे वह पुलिन मुखरित हो उठा; तुम्हें वह सब स्मरण है न बहिन!'


'ललिता! यह सब तो हमारे एकान्त हृदयका अमूल्यवित्त है। 

इसका विस्मरण ही हमारा अन्त है बहिन! अहा, उस समय हृदय आवेगसे कैसा अवश हो गया था कि छोटे-से-छोटा कार्य करनेमें भी हम असमर्थ हो गयी थीं। 

सिरसे ओढ़नी भी सरकती, तो ओढ़ानेके लिये उन्हें पुकारती और वे शीलधाम सबके मनोरथ पूर्ण करते हमारे बीच घूमते फिर रहे थे। 


हाय! एकबार भी हमें स्मरण नहीं हुआ कि वे सुमन — 

सुकुमार श्रान्त हो रहे हैं! 

हम अपने मान - सम्मानमें डूबी सौभाग्यपर इठला रही थीं कि अकस्मात वे न जाने कहाँ खो गये.... ।' 

– विशाखा अचेत हो भूमिपर लुढ़क गयी।




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'आह! यह पाषाण हृदया ललिता ही रह शेष रह गयी है सब सहने को। 

बहिन विशाखा! कैसे समझाऊँ तुम्हें— 

वे दिन दूरि गये। 

उस दिन कुछ क्षणोंमें ही उन्हें न देख पानेसे हम अर्ध- विक्षिप्त हो गयी थी, आज अनिश्चितकालके लिये उन्हें खोकर भी हम जी रही हैं। 

धिक्कार है प्राणोंकी इस परुषता को !'


'बहिन! चैतन्य लाभ करो । 

तनिक देखो तो! 

तुम उस छोटी-सी हानिको लेकर ही क्षुब्ध - मथित हो रही हो, जब वर्तमानमें आओगी तो धैर्यका कहीं कूल किनारा ही न पा सकोगी। 

बहिन विशाखा! सुनो मेरी बात न सुनोगी ? 

महारासका वह आनन्द महासिन्धु; उसमें अवगाहन न करोगी ? 

आँखें खोलो तो बहिन।'




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' आह श्यामसुन्दर ! 

भली करी तुमने।' —

कहकर विशाखाने उठनेका प्रयत्न किया तो ललिताने बाँहें बढ़ाकर सहायता दी।


'आगे कह बहिन।'


'क्या करोगी सुनकर ? "


'सो नहीं जानती ललिता! किंतु इस चर्चाके अतिरिक्त हमारे लिये अन्य उपाय ही क्या है ?"


श्रीकिशोरी जू के समीप कौन है ?' 


'सुदेवी और चन्द्रावली बहिन हैं। 

वे अचेत हैं, उनकी अवस्था देखी नहीं जाती।


श्यामसुन्दर ! 

जिन आँखोंकी तनिक-सी उदासी तुम सह नहीं पाते थे, आज वे ही नेत्र तुम्हारे ही कारण निर्झर बन गये हैं। 

तुम तो इतने कठोर कभी नहीं थे। 

यदि कोई अपराध बन पड़ा हो तो हमें अनन्त काल तक दर्शन न दो।


हम विरहाग्निमें जलती रहकर भी सुखी रहेंगी, किंतु तुम राधा बहिनको कष्ट न दो, हमसे सहा नहीं जाता। 

नया स्थान देखनेके लोभने तुम्हें इतना निष्ठुर बना दिया कि उन्हें, जो तुम्हारे ही अवलम्बपर जी रही हैं, नितान्त भुला बैठे ?


‘उस दिन, हाँ उस दिन जो किशोरीजी हम सखियोंके सामने भी तुमसे कुछ कहते सकुचा जाती थीं, वह संकोच और शीलकी प्रतिमूर्ति श्रीराधा गुरुजनोंके सम्मुख ही कातर हो ऊँचे स्वरसे 'गोविन्द ! 

दामोदर! माधव!' कहकर पुकार उठी थीं।




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वस्त्रों का ध्यान भूल अजस्त्र अश्रुवर्षण करते नेत्र तुम्हारे मुखपर टिकाये लज्जा त्यागकर उन्होंने तुम्हारे पीतपटका छोर थाम लिया था। 

यह देख बड़े-बूढ़ोंके नेत्र भी बरस पड़े थे और महाबली रामने व्यथासे मुख फेर लिया। 

क्या तुम तनिक भी न समझ सके कि किशोरीजीसे यह नितान्त असम्भव कार्य किस प्रकार सम्भव हो सका ?"


'आह निर्मम ! 

कोमलता पूर्वक धीरेसे अपना वस्त्र छुड़ाते हुए तुमने एक वाक्य- केवल एक छोटा सा वाक्य कहा था 'अहम् आयास्मे।' 

और तुम रथपर जा चढ़े थे। 

जब रथ चल पड़ा तो मैंने दौड़कर घोड़ोंकी वल्गा थाम ली थी, कई बहिनें घोड़ोंके आगे पथमें सो गयी थी। 


मैंने वल्गा थामे ही कातर याचनाकी थी— 

श्याम जू! वे स्वर्णवल्लरी छिन्न यूथिका सी भूमिपर पड़ी हैं, उन श्रीराधाको मैं कैसे धैर्य बंधाऊँगी? 

तब तुमने अपने आँसू भरे विवश नेत्रोंसे मेरी ओर देखकर कंठसे गुंजामाल उतारकर दी थी। 


वहीं गुंजामाल, जब उनके तड़फते हुए प्राण देहपिंजरसे मुक्त होना चाहते हैं, तो हम उनके गलेमें पहना देती है और तुम्हारे 'अहम् आयास्मे ।' 

का मधुर मंत्र उनके कानोंमें सुनाती हैं, जिससे उनका प्राणपंछी कुछ समयके लिये पुनः अर्गलाबद्ध हो शाँति पा जाता है।'


‘तुम्हारे उन भरे-भरे नेत्रोंको देखकर समझा था—

राजा कंसकी आज्ञासे विवश होकर जा रहे हैं। 

जैसे ही अवकाश मिला, तुरन्त लौट आयेंगे। 

मथुरा है ही कितनी दूर ?


श्यामसुन्दर! सब लौट आये, पर तुम न आये। 

कंस मर गया है किंतु तुम्हें अवकाश न मिला। 

निर्दयी! आज तुम्हारे उसी एक वाक्यपर भानुललीके प्राण अटके हैं।




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ओ निष्ठुर! जिनके एक दिन दर्शन न पाकर तुम व्याकुल हो उठते थे; आकर देख लो विरहमें उनकी कैसी अवस्था हो गयी है। 

गुरुजनोंसे भी वे अपने दुःखकी लज्जास्पद स्थिति छिपा नहीं पातीं। 


श्यामसुंदर, मैं तुम्हारे पाय परूँ ! 

एक बार चलकर उन्हें देख लो, उनके नेत्रोंकी प्यास बुझा दो।'


'हाय, कितने दिन हम उन्हें भुलावे में रख सकेंगी, चलो.... चलो मोहन ! 

उनकी जीवन हानिसे बढ़कर व्रजकी तुम्हारी और क्या हानि होगी ? ..... 

चलो माधव!'


'ललिता ! उठ बहिन, किशोरीजीके समीप चलें। 

जो प्रेमके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकार वशमें नहीं होता; वह आयेगा भी तो श्रीकिशोरीजीके ही कारण ! 

उस प्रेमसिन्धुके मिस हम भी दर्शन पा लेंगी; इस अरण्य रोदनसे क्या होगा!'


जय श्री राधे......




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श्री राधे 🙏🏽


मासिक शिवरात्रि विशेष :


शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का विशेष पर्व है। 

हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।


पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए। 

उनके क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलकर भस्म होने वाला था किन्तु माता पार्वती ने महादेव का क्रोध शांत कर उन्हें प्रसन्न किया इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भोलेनाथ ही उपासना की जाती है और इस दिन को मासिक शिवरात्रि कहा जाता है।




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माना जाता है कि महाशिवरात्रि के बाद अगर प्रत्येक माह शिवरात्रि पर भी मोक्ष प्राप्ति के चार संकल्पों भगवान शिव की पूजा, रुद्रमंत्र का जप, शिवमंदिर में उपवास तथा काशी में देहत्याग का नियम से पालन किया जाए तो मोक्ष अवश्य ही प्राप्त होता है। 

इस पावन अवसर पर शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा और अभिषेक करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।


अन्य भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव लिङ्ग के रूप में प्रकट हुए थे। 

पहली बार शिव लिङ्ग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्माजी द्वारा की गयी थी। 

इसी लिए महा शिवरात्रि को भगवान शिव के जन्मदिन के रूप में जाना जाता है और श्रद्धालु लोग शिवरात्रि के दिन शिव लिङ्ग की पूजा करते हैं। 

शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। 

हिन्दु पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता हैं। 

शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इन्द्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती और रति ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था। 

जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महा शिवरात्रि से आरम्भ कर सकते हैं और एक साल तक कायम रख सकते हैं। 

यह माना जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत को करने से भगवान शिव की कृपा द्वारा कोई भी मुश्किल और असम्भव कार्य पूरे किये जा सकते हैं। 

श्रद्धालुओं को शिवरात्रि के दौरान जागी रहना चाहिए और रात्रि के दौरान भगवान शिव की पूजा करना चाहिए। 

अविवाहित महिलाएँ इस व्रत को विवाहित होने हेतु एवं विवाहित महिलाएँ अपने विवाहित जीवन में सुख और शान्ति बनाये रखने के लिए इस व्रत को करती है।


मासिक शिवरात्रि अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो वह बहुत ही शुभ होती है। 

शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। 

मध्य रात्रि को निशिता काल के नाम से जाना जाता है और यह दो घटी के लिए प्रबल होती है। 


मासिक शिवरात्रि पूजा विधि :


इस दिन सुबह सूर्योंदय से पहले उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत हो जाएं। 

अपने पास के मंदिर में जाकर भगवान शिव परिवार की धूप, दीप, नेवैद्य, फल और फूलों आदि से पूजा करनी चाहिए। 

सच्चे भाव से पूरा दिन उपवास करना चाहिए। 

इस दिन शिवलिंग पर बेलपत्र जरूर चढ़ाने चाहिए और रुद्राभिषेक करना चाहिए। 

इस दिन शिव जी रुद्राभिषेक से बहुत ही जयादा खुश हो जाते हैं. शिवलिंग के अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी इत्यादि का उपयोग किया जाता है। 

शाम के समय आप मीठा भोजन कर सकते हैं, वहीं अगले दिन भगवान शिव के पूजा के बाद दान आदि कर के ही अपने व्रत का पारण करें। 

अपने किए गए संकल्प के अनुसार व्रत करके ही उसका विधिवत तरीके से उद्यापन करना चाहिए। 

शिवरात्रि पूजन मध्य रात्रि के दौरान किया जाता है। 

रात को 12 बजें के बाद थोड़ी देर जाग कर भगवान शिव की आराधना करें और श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें, इससे आर्थिक परेशानी दूर होती हैं। 

इस दिन सफेद वस्तुओं के दान की अधिक महिमा होती है, इससे कभी भी आपके घर में धन की कमी नहीं होगी। 

अगर आप सच्चे मन से मासिक शिवरात्रि का व्रत रखते हैं तो आपका कोई भी मुश्किल कार्य आसानी से हो जायेगा. इस दिन शिव पार्वती की पूजा करने से सभी कर्जों से मुक्ति मिलने की भी मान्यता हैं।


शिवरात्रि पर रात्रि जागरण और पूजन का महत्त्व :


माना जाता है कि आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना अति आवश्यक है। 

इस दिन रात्रि को जागरण कर शिवपुराण का पाठ सुनना हर एक उपवास रखने वाले का धर्म माना गया है। 

इस अवसर पर रात्रि जागरण करने वाले भक्तों को शिव नाम, पंचाक्षर मंत्र अथवा शिव स्रोत का आश्रय लेकर अपने जागरण को सफल करना चाहिए।


उपवास के साथ रात्रि जागरण के महत्व पर संतों का कहना है कि पांचों इंद्रियों द्वारा आत्मा पर जो विकार छा गया है उसके प्रति जाग्रत हो जाना ही जागरण है। 

यही नहीं रात्रि प्रिय महादेव से भेंट करने का सबसे उपयुक्त समय भी यही होता है। 

इसी कारण भक्त उपवास के साथ रात्रि में जागकर भोलेनाथ की पूजा करते है।


शास्त्रों में शिवरात्रि के पूजन को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है। 

कहते हैं महाशिवरात्रि के बाद शिव जी को प्रसन्न करने के लिए हर मासिक शिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करनी चाहिए। 

माना जाता है कि इस दिन महादेव की आराधना करने से मनुष्य के जीवन से सभी कष्ट दूर होते हैं। 

साथ ही उसे आर्थिक परेशनियों से भी छुटकारा मिलता है। 

अगर आप पुराने कर्ज़ों से परेशान हैं तो इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर आप अपनी समस्या से निजात पा सकते हैं। 

इसके अलावा भोलेनाथ की कृपा से कोई भी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता है।


शिवपुराण कथा में छः वस्तुओं का महत्व :


बेलपत्र से शिवलिंग पर पानी छिड़कने का अर्थ है कि महादेव की क्रोध की ज्वाला को शान्त करने के लिए उन्हें ठंडे जल से स्नान कराया जाता है।


शिवलिंग पर चन्दन का टीका लगाना शुभ जाग्रत करने का प्रतीक है। 

फल, फूल चढ़ाना इसका अर्थ है भगवान का धन्यवाद करना।


धूप जलाना, इसका अर्थ है सारे कष्ट और दुःख दूर रहे।


दिया जलाना इसका अर्थ है कि भगवान अज्ञानता के अंधेरे को मिटा कर हमें शिक्षा की रौशनी प्रदान करें जिससे हम अपने जीवन में उन्नति कर सकें।


पान का पत्ता, इसका अर्थ है कि आपने हमें जो दिया जितना दिया हम उसमें संतुष्ट है और आपके आभारी हैं।




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समुद्र मंथन की कथा :


समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। 

हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। 

भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। 

जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव 'नीलकंठ' के नाम से प्रसिद्ध हैं। 

उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। 

इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। 

शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। 

जैसे सुबह  हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। 

शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। 

तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है


शिकारी की कथा :


एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, 'ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?' 

उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। 

पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। 

वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। 

क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। 

संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'


शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। 

चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। 

संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। 

शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। 

अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। 

लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। 

शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। 

बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। 

शिकारी को उसका पता न चला।


पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। 

इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। 

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। 

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। 

शीघ्र ही प्रसव करूंगी। 

तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। 

मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' 

शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।


कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। 

शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। 

समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। 

तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! 

मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। 

कामातुर विरहिणी हूं। 

अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। 

मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' 

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। 

दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। 

वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। 

तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। 

शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। 

उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। 

वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' 

मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। 

इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। 

इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। 

मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। 

उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। 

इस लिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। 

हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।


मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। 

उसने उस मृगी को भी जाने दिया। 

शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। 

पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। 

शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। 

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! 

यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। 

मैं उन मृगियों का पति हूं। 

यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। 

मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। 


मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। 

तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। 

अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। 

मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' 

उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। 

उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। 

धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। 

भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। 

वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। 

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। 

उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। 

उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। 

देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। 

घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने  पुष्प वर्षा की। 

तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए'।


भगवान गंगाधर की आरती :


ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।

त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर...॥


कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।

गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥

कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।


रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर...॥

तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।

तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥


क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌।

इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ हर...॥


बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।

किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥


धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।

क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर...॥


रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।

चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥


तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।

अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर...॥


कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌।

त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌॥


सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌।

डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ हर...॥


मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌।

वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌॥


सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌।

इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर...॥


शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।

नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥


अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।

अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर...॥

ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।


रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥

संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।


शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर...॥


त्रिगुण शिवजी की आरती :


ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव...॥


एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।

जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।

पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।

पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।


भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।


जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।


त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥


ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव....।।...

पंडारामा प्रभु राज्यगुरु


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