https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: पुरुषोत्तम मास माहात्म्य https://sarswatijyotish.com/India
લેબલ पुरुषोत्तम मास माहात्म्य https://sarswatijyotish.com/India સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો
લેબલ पुरुषोत्तम मास माहात्म्य https://sarswatijyotish.com/India સાથે પોસ્ટ્સ બતાવી રહ્યું છે. બધી પોસ્ટ્સ બતાવો

पौराणिक मणियो , पुरुषोत्तम मास माहात्म्य

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

पौराणिक मणियो , पुरुषोत्तम मास माहात्म्य :


पौराणिक मणियो के बारे में रोचक जानकारी 


मणियाँ अनेक प्रकार की होती है प्रकार की होती हैं। 

उनमें से 9 मणियों को मुख्य माना गया हैं !





eSplanade 5" Ganesha Brass Showpiece | Home Decor | Ganesh Ganesha Ganpati Ganapati Murti Idol (Sitting Ganesha)

https://amzn.to/3ZW9PE2


उनके नाम इस  प्रकार हैं। 

1 धृतमणि 

2 तैलमणि 

3 भीष्मकमणि  

4 उपलकमणि 

5 स्फटिकमणि 

6 पारसमणि  

7 उलूकमणि 

8 जाजवतमणि 

9 मासरमणि ।

इन मणियों में से पारसमणि का केवल नाम ही सुना जाता हैं। 

इसे पारस पत्थर भी कहते हैं । 

कहा जाता हैं कि पारस पत्थर अथवा पारसमणि का स्पर्ष पाते ही लोहा सोना बन जाता हैं। 

इस मणि अथवा पत्थर को काल्पनिक माना जाता हैं क्योंकि न तो यह मणि किसी के पास हैं और न किसी ने इसे अब तक देखा है। 

इस मणि के प्रभाव के विषय में सुना अवष्य जाता रहा है। 

ग्रह रत्नों की भांति ही इन मणियों को धारण करने से भी अनेक प्रकार के अनिष्टों की ष्षान्ति तथा  मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं मणियों का प्रभाव इस प्रकार कहा गया हैं !




Anciently Kan Drishti Yantra in Tamil, Size 4x4 Inches, Copper Yantra, Brown Colour, 1 No

https://amzn.to/4keTT6W



1 धृतमणि

इसे संस्कृत  में गरूड़मणि फारसी में जबरजदद हिन्दी में  कारकौतुक अंग्रेजी में पैरीडोट कहा जाता है।

हरे पीले लाल ष्ष्वेत ष्ष्याम एवं मधु मिश्रित रंग का पत्थर होता है। 

इस पर मोटे पिस्ते जैसे छींटे पाये जाते हैं मिथुन राशि में जडें । 

फिर हस्त नक्षत्र में  सूय मन्त्र द्वारा  रत्न जडि़त अंगुली में पहिनें ।

इस मणि के प्रभाव से धन संतान तथा स्नेह की वृद्वि होकर समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं छोटे बालकों के गले में इस मणि की माला पहिनाने से नजर तथा मृगी  रोग से रक्षा  होती है।  

इस मणि की माला  पर हनुमत मन्त्र  का जाप करने से  अनेक प्रकार की सिद्वियज्ञू प्राप्त होती हैं। 

लहसुनियॉ की भांति इस मणि में दोष होते है तथा उनका फल भी वैसा ही होता हैं। 

अत सदैव निर्दोष मणि ही धारण करनी चाहिए ।




RUDRADIVINE Brass Shree guru Yantra for Pooja for Home, Temple (Gold)

https://amzn.to/3I2MFpv



2 तैलमणि

इसे हिन्दी में उदउक  अंग्रेजी में टर्मेजीन कहा जाता है । 

यह वैक्रंात जाति का रत्न होता है । 

इसका रंग अरूणाभ ष्ष्वेत पीला तथा  काला होता है। 

यह मणि तेल के समान  चिकनी होती हैं। 

यदि ष्ष्वेत रंग की तैलमणि को अग्नि में रखा जाए तो वह उसी समय पीली हो जाती है और यदि कपड़े में लपेटकर रखा जाए तो तीसरे दिन पीली  हो जाती है पर हवा लगते ही यह अपने असली रंग को पुन प्राप्त कर लेती हैं मेष राशि के सूर्य में रोहीणी नक्षत्र पूर्ण अथवा जया तिथि एवं मंगलवार के दिन इस मणि को यदि किसी खेत में दो गज गहरा खोदकर गाढ़ 

दिया जाय और उपर से मिटी डालकर पानी सींच दिया जाए तो उस खेत में सामान्य से बीस गुना अधिेक फसल उत्पन्न होती हैं इस मणि को अगुठी में जड़वाकर धारण करने से बल तथा तेज में वृद्धि होती है तथा शारिरीक अंगों में सुगंध उत्पन्न होती है। 

संग गुदड़ी तथा संग पितरिया को इस मणि से उत्पन्न माना जाता है। 

अन्य रत्‍नों  की भांति इसमें भी दोष होतें है। 

तथा उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। 

इस लिए सदैव निर्दोष मणि ही धारण करनी चाहिए।






eSplanade Brass Ganesh Ganesha Ganpati Vinayak Showpiece | Murti Idol Statue Sculpture - 5.75" Inches

https://amzn.to/4lryLvh  

 
3 भीष्मक मणि

इस मणि  के दो मुख्य भेद माने जाते है - 

1 मोहिनी भीष्मक 2 कामदेव भीष्मक मणि

मोहिनी भीष्मक मणि को अमृतमणि तथा मोहिन भीषमक भी कहा जाता है। 

इसका रंग सरसों तथा तोरई के फूल जैसा केले के नवीन पत्र एवं गुलदाऊजी के फूल जैसा पीला भी होता है। 

इसमें हीरे जैसी चमक  पाई जाती है। 

कामदेव भीष्मक मणि काली शहद जैसी, दही तथा फिटकरी के मिश्रण से बने रंग जैसी होती है। 

यह चिकनी, स्वच्छ, अच्छे घाट की तथा सुन्दर रंग व कान्ति वाली होती है। 

जब सूर्च आद्रा नक्षत्र पर तथा चन्द्रमा मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, अथवा कुंभ राषि में हो तब मोहिनी भीष्मक मणि को रूई में लपेटकर, पूर्व दिशा की ओर, पानी में डुबा कर रख दें। 

फिर जब चन्द्रमा वृषभ, कर्क कन्या, वृष्चिक, अथवा मकर राशि पर आये तब मणि को पश्चिम  दिशा में रखकर विधिवत् पूजन करें, ऐसा करने से श्रेष्ठ वर्षा होती है।

अगर मणि का पूजन करने से पांच दिन के भीतर ही वर्षा हो तो अच्छी होगी। 

यदि 10 दिन के भीतर वर्षा हो तो अनाज का भाव सस्ता होगा यह समझना चाहिए। 

अगर वर्षा आरम्भ होनें के बाद 5 से 10 दिन तक निरन्तर पानी बरसता रहे तो अकाल पड़ेगा - यह समझना चाहिए और यदि 24 दिन तक पानी बरसता रहे तो भारी संकट आयेगा।

मोहिनी भीष्मक को धारण करने से धन धान्य, ऐष्वर्य, शारिरीक –सुख, तथा स्त्री सुख की वृद्धि होती है। यह मणि प्रसन्नता देने वाली भी है। 

‘कामदेव भीष्मक को धारण करनें से शत्रु पर विजय सम्पुर्ण कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। 

हद्धय रोग तथा अन्य अनेक प्रकार के रोगों को भी दूर करता है।

मोहिनी भीष्मक के संग जहरात, संग पनिया, संग वदिनी, संग सेलखड़ी, यह चार उपरत्न बताएं गये है। 

कामदेव भीष्मक के संगमरमर तथा संगभूरा - ये दो उपरत्न कहे गये हैं। अन्य रत्नों की भांति इस मणि में भी दोष पाये जाते है। 

और उनका प्रभाव भी होता है। 

अतः सदैव निर्दोष मणि ही धारण करें।






Veronese Statue de Ganesh (Ganesha) Éléphant hindou Dieu du succès Bronze véritable moulé en poudre 19,5 cm

https://amzn.to/4npBirN



4 उपलक मणि

इस उपल रत्नोपाल तथा अंगे्रजी में ओपल कहते है। 

यह मणि शहद के समान तथा अनेक प्रकार के विभिन्न रंगो वाली होती हैं इसके उपर लाल, पीले, नीले, श्वेत, तथा हरें रंग के बिन्दू पाये जाते है। 

यदि इसे तेल, जल अथवा दूध में डाला जाये तो अधिक चमकती है। 

इस मणि को धारण करने से भक्ति, वैराग्य तथा आत्मोन्नति की प्राप्ति होती है तथा अनेक प्रकार की मनोभिलाषाएं पूर्ण होती है। 

संग अजूबा तथा संग अबरी को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। 

इसमें भी अन्य रत्नों की भांति दोष होतें है और उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। 

अतः सदैव निर्दोष मणि को धारण करें। 

इसको धारण करनें से वाकसिद्धी प्राप्त होती है। 

ज्योतिष्यिों, हस्तरेखाविदों एवं तांत्रिकों को यह रत्न अवश्‍य धारण करना चाहिए।






Wonder Care | Statue de Ganesh sculptée avec Beaucoup de détails dans Une Finition Antique Ivoire – Idole de Ganesh pour Voiture | Décoration d'intérieur | Mandir | Cadeau | Idole de Dieu Hindou

https://amzn.to/4lyjmtf



5 स्फटिक मणि

इसे बिल्लौर तथा अग्रेंजी में क्वाटर्ज कहा जाता है। 

यह मणि श्वेत रंग की चमकदार, हल्की या भारी होती हैं इस मणि युक्त अंगूठी को धारण करनें से सुख, संतोष, रूप, बल, वीर्य की प्राप्ति होती है। 

यदि इस मणि की माला पर मंत्र का जप किया जाये तो वह सिद्ध हो जाता है। 

संग दूधिया तथा संग बिल्लौर को इस मणि का उपरत्न माना गया है। 

इसमें भी अन्य रत्नों की भांति दोष होते है। 

अैर उनका प्रभाव भी अशुभ होता है। 

अतः सदैव निर्दोष मणि को ही धारण करें। 

स्फटिक की माला गले  में पहननें से धन धान्य सुख समृद्धि प्राप्त होती है। 






4OUR FAITH Shree Samporan Sarv Kasht Nicaran Yantram, religiös, göttlich, spirituell, verwendet für Diwali Pooja und Geschenk

https://amzn.to/44lko4S


6 पारसमणि

इस स्पर्षमणि तथा अंगे्रजी में फिलोस्फर्ष स्टोन कहा जाता है। 

इसका रंग काला होता है और इसमें सुगन्ध आती है। 

इस मणि को स्पर्ष करानें मात्र से ही लोहा सोना बन जाता है ऐसा माना गया है। 

यह मणि जिस राजा  के पास होती है उसके राज्य में कोई दुखीः व रोगी नहीं रहता है। 

यह नैत्र ज्योति वर्धक शीतल तथा बल पराक्रम एवं तेज की वृद्धि करनें वाली कही जाती है। 

संग कसौटी संग टेड़ी, संग चुम्बक को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। 

यह मणि मैनें आज तक किसी के पास देखी सुनी नहीं है।





Shree Mahamratyunjaya Yantram Sri Yantra Shri Yantra Energized Yantra Yantra Kavach in (Größe 22,9 x 22,9 cm)

https://amzn.to/4npPIIv



7 उलूक मणी

उल्ल रत्न भी कहा जाता है इसका रंग मटमैला तथा अंग नरम होता है। 

कहा जाता है कि यह मणि उल्लू के घोषलों में मिलती है परन्तु यह अभी तक किसी को मिल नहीं पाई है इस मणि को नैत्र रोग नाषक बताया जाता है। 

यह भी कहा जाता है कि यदि किसी अन्धे व्यक्ति को अंधेरे स्थान में जाकर तथा वहां दीप जलाकर इस मणि को उसकी आंखों से लगा दिया जाये तो उसे दिखाई देनें लगता है 1 

संगवासी तथा 2 संगवसरों को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। 

यह मणि भी मैनें किसी के पास देखी सुनी नहीं है, हाँ खोज में अवश्‍य हॅू।





HOME GENIE Saraswati Yantra – Messing-Yantra für Weisheit, Wissen und Erfolg in der Bildung – Vastu und spirituelles Werkzeug, 1 Stück

https://amzn.to/4kkwt0f


8 लाजावर्त मणि

इसे हिन्दी में लाजावर्त, अंग्रेजी में लैपिस लैजूली कहा जाता है, इसका रंग मोरकण्ठ की भांति नीला श्याम होता है और इस पर सोनें के छींटे पाये जाते है। 

इस मणि को मंगलवार के दिन धारण करना चाहिए। इसके प्रभाव से बल, बुद्धि एवं शक्ति की वृद्धि होती है तथा भूत, पिषाच, दैत्य, सर्प आदि का भय दूर संगमूसा तथा संग बादल को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। 

अन्य रत्नों की भांति इस मणि में भी दोष पाये जाते हैं। 

दोषी मणि को धारण करना अशुभ फलदायक होता है इस लिए सदैव निर्दोष मणि ही धारण करना चाहिए।




Brass Made Shri Surya Yantra/Shri Sun Yantra/Siddh Surya Yantra fro Good Luck, Success and Prosperity from vrindavan 4 cms

https://amzn.to/4lykIUR


9 मासर मणि

इस मणि को अग्रेंजी में एमनी कहा जाता है। 

यह हकीक पत्थर जैसी होती है। 

यह सफेद, लाल, पीले, व काले इन चार रंगो में होती है इसमें कमल के फल जैसी चमक तथा चिकनापन पाया जाता है। 

इस मणि की अग्नि तथा जल ये दो जातियां होती है अग्नि वर्ण वाणी मणि को अगर सूत में लपेटकर अग्नि के ऊपर रख दिया जाये तो सूत नहीं जलता तथा जलवर्ण वाली को यदि पानी मिश्रित दूध में डाल दिया जाये तो दूध व पानी अलग अलग हो जाते है। 

अग्नि वर्ण मणि को धारण करने वाला व्यक्ति आग में नहीं जलता तथा जलवर्ण मणि को धारण करने वाला पानी में नहीं डूबता ऐसा कहा जाता है। 

यह मणि भूत प्रेत चोर शत्रु, अग्नि के भय से भी दूर करती है। 

इस को भी मैंने कभी नहीं देखा हैं पर सुना अवश्‍य है। 

संग शहीद तथा हींग हकीक को इस मणि का उपरत्न माना जाता है। 

अन्य रत्नों  की भांति इसमें भी दोष पाये जाते है और उनका प्रभाव अशुभ होता है।

                    

पुरुषोत्तम मास माहात्म्य :

                           अध्याय - 06

          
नारदजी बोले, 'भगवान् गोलोक में जाकर क्या करते हैं ? 

हे पापरहित! मुझ श्रोता के ऊपर कृपा करके कहिये।'
          
श्रीनारायण बोले, 'हे नारद! पापरहित! अधिमास को लेकर भगवान् विष्णु के गोलोक जाने पर जो घटना हुई वह हम कहते हैं, सुनो।

उस गोलोक के अन्दर मणियों के खम्भों से सुशोभित, सुन्दर पुरुषोत्तम के धाम को दूर से भगवान् विष्णु देखते हैं। 

उस धाम के तेज से बन्द हुए नेत्र वाले विष्णु धीरे - धीरे नेत्र खोलकर और अधिमास को अपने पीछे कर धीरे - धीरे धाम की ओर जाते हैं। 

अधिमास के साथ भगवान् के मन्दिर के पास जाकर विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उठकर खड़े हुए द्वारपालों से अभिनन्दित भगवान् विष्णु पुरुषोत्तम भगवान् की शोभा से आनन्दित होकर धीरे - धीरे मन्दिर में गये और भीतर जाकर शीघ्र ही श्रीपुरुषोत्तम कृष्ण को नमस्कार करते हैं।

गोपियों के मण्डल के मध्य में रत्नमय सिंहासन पर बैठे हुए कृष्ण को नमस्कार कर पास में खड़े होकर विष्णु बोले।

श्रीविष्णु बोले, 'गुणों से अतीत, गोविन्द, अद्वितीय, अविनाशी, सूक्ष्म, विकार रहित, विग्रहवान, गोपों के वेष के विधायक, छोटी अवस्था वाले, शान्त स्वरूप, गोपियों के पति, बड़े सुन्दर, नूतन मेघ के समान श्याम, करोड़ों कामदेव के समान सुन्दर, वृन्दावन के अन्दर रासमण्डल में बैठने वाले पीतरंग के पीताम्बर से शोभित, सौम्य, भौंहों के चढ़ाने पर मस्तक में तीन रेखा पड़ने से सुन्दर आकृति वाले, रासलीला के स्वामी, रासलीला में रहने वाले, रासलीला करने में सदा उत्सुक, दो भुजा वाले, मुरलीधर, पीतवस्त्रधारी, अच्युत, ऐसे भगवान् की मैं वन्दना करता हूँ।' 





Divine Harmony: Jellybean Retails Vamavarti Original Loud Blowing Shankh|Conch For Pooja - 350 grm, 6 Inch (Size Guarantee - Quality Matters)

https://amzn.to/4keXbai


इस प्रकार स्तुति करके भगवान् श्रीकृष्ण को नमस्कार कर, पार्षदों द्वारा सत्कृत विष्णु रत्नतसिंहासन पर कृष्ण की आज्ञा से बैठे।

श्रीनारायण बोले, 'यह विष्णु का किया हुआ स्तोत्र प्रातःकाल उठ कर जो पढ़ता है उसके समस्त पाप नाश हो जाते हैं और अनिष्ट स्वप्न भी अच्छे फल को देते हैं, और पुत्रपौत्रादि को बढ़ाने वाली भक्ति श्रीगोविन्द में होती है, आकीर्ति का नाश होकर सत्कीर्ति की वृद्धि होती है।

भगवान् विष्णु बैठ गये और कृष्ण के आगे काँपते हुए अधिमास को कृष्ण के चरण कमलों में नमन कराते हैं।

तब श्रीकृष्ण ने विष्णु से पूछा कि यह कौन है ? 

कहाँ से यहाँ आया है? क्यों रोता है? इस गोलोक में तो कोई भी दुःखभागी होता नहीं है। 

इस गोलोक में रहने वाले तो सर्वदा आनन्द में मग्न रहते हैं। 

ये लोग तो स्वप्न में भी दुष्टवार्ता या दुःखभरा समाचार सुनते ही नहीं। 

अतः हे विष्णो! यह क्यों काँपता है और आँखों से आँसू बहाता दुःखित हमारे सम्मुख किस लिये खड़ा है?'

श्रीनारायण बोले, 'नवीन मेघ के समान श्यामसुन्दर, गोलोक के नाथ का वचन सुन, सिंहासन से उठकर महाविष्णु मलमास की सम्पूर्ण दुःख-गाथा कहते हुए बोले।'

श्रीविष्णु बोले, 'हे वृन्दावन की शोभा के नाथ! हे श्रीकृष्ण! हे मुरलीधर! इस अधिमास के दुःख को आपके सामने कहता हूँ, आप सुने। 

इसके दुःखित होने के कारण ही स्वामी रहित अधिमास को लेकर मैं आपके पास आया हूँ, इसके उग्र दुःखरूप अग्नि को आप शान्त करें। 

यह अधिमास सूर्य की संक्रान्ति से रहित है, मलिन है, शुभकर्म में सर्वदा वर्जित है।

स्वामी रहित मास में स्नान आदि नहीं करना चाहिये, ऐसा कहकर वनस्पति आदिकों ने इसका निरादर किया है।


          

द्वादश मास, कला, क्षण, अयन, संवत्सर आदि सेश्विरों ने अपने-अपने स्वामी के गर्व से इसका अत्यन्त निरादर किया। 
इसी दुःखाग्नि से जला हुआ यह मरने के लिये तैयार हुआ, तब अन्य दयालु व्यक्तियों द्वारा प्रेरित होकर, हे हृषीकेश! शरण चाहने की इच्छा से हमारे पास आया और काँपते - काँपते घड़ी - घड़ी रोते - रोते अपना सब दुःखजाल इसने कहा। इसका यह बड़ा भारी दुःख आपके बिना टल नहीं सकता, अतः इस निराश्रय का हाथ पकड़कर आपकी शरण में लाया हूँ।





NIBOSI Watch for Men Fashion Business Men Watches Ultra-Thin Waterproof Chronograph Quartz Watches with Stainless Steel Band

https://amzn.to/4l25asx

         
 ‘दूसरों का दुःख आप सहन नहीं कर सकते हैं’ ऐसा वेद जानने वाले लोग कहते हैं।

अतएव इस दुःखित को कृपा करके सुख प्रदान कीजिये। 

हे जगत्पते! ‘आपके चरणकमलों में प्राप्त प्राणी शोक का भागी नहीं होता है’ ऐसा वेद जाननेवालों का कहना कैसे मिथ्या हो सकता है ? 

मेरे ऊपर कृपा करके भी इसका दुःख दूर करना आपका कर्तव्य है क्योंकि सब काम छोड़कर इसको लेकर मैं आया हूँ मेरा आना सफल कीजिये। 

‘बारम्बार स्वामी के सामने कभी भी कोई विषय न कहना चाहिये’ ऐसी नीति के जानने वाले बड़े - बड़े पण्डित सर्वदा कहा करते हैं।'

इस प्रकार अधिमास का सब दुःख भगवान् कृष्ण से कहकर हरि, कृष्ण के मुखकमल की ओर देखते हुए कृष्ण के पास ही हाथ जोड़ कर खड़े हो गये।

ऋषि लोग बोले, 'हे सूतजी! आप दाताओं में श्रेष्ठ हैं आपकी दीर्घायु हो, जिससे हम लोग आपके मुख से भगवान् की लीला के कथारूप अमृत का पान करते रहें। 

हे सूत! गोलोकवासी भगवान् कृष्ण ने विष्णु के प्रति फिर क्या कहा ? 

और क्या किया? इत्यादि लोकोपकारक विष्णु - कृष्ण का संवाद सब आप हम लोगों से कहिये।







マセラティ クォーツ時計 腕時計 メンズ Sfida 44mm ブルーダイヤル ダークグレー ステンレススチール クロノグラフ 夜光 100m防水 日本ムーブメント R8873640001 [公式正規品] [2年保証]

https://amzn.to/4l5OAZ3



परम भगवद्भक्त नारद ने नारायण से क्या पूछा ? 

हे सूत! इसको आप इस समय हम लोगों से कहिये। 

नारद के प्रति कहा हुआ भगवान्‌ का वचन तपस्वियों के लिये परम औषध है।'

इति श्रीबृहन्नारदीये पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये षष्ठोऽध्यायः ॥६॥
                      ----------:::×:::---------- 

                       "जय जय श्री राधे"

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

भगवान सूर्य के वंश :

भगवान सूर्य के वंश : भगवान सूर्य के वंश : भगवान सूर्य के वंश होने से मनु  सूर्यवंशी कहलाये ।   रघुवंशी :-  यह भारत का प्राचीन क्षत्रिय कुल ह...