भगवान सूर्य के वंश :
भगवान सूर्य के वंश :
भगवान सूर्य के वंश होने से मनु सूर्यवंशी कहलाये ।
रघुवंशी :- यह भारत का प्राचीन क्षत्रिय कुल है ।
जो भारतवर्ष के सभी क्षत्रीय कुलों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रियकुल माना जाता है ।
ऐतिहासिक दृष्टि से रघुकुल मर्यादा, सत्य, चरित्र, वचन पालन, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है ।
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अयोध्या के सूर्यवंशी सम्राट रघु ने इस वंश की नींव रखी थी ।
रघुवंशी का अर्थ है रघु के वंशज ।
अर्थात सम्राट रघु के वंशज रघुवंशी कहलाते है ।
बौद्ध काल तक रघुवंशियो को इक्ष्वाकु, रघुवंशी तथा सूर्यवंशी क्षत्रिय कहा जाता था।
मूलरुप से यह वंश भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु से प्रारम्भ हुआ था।
जो सूर्यवंश, इक्ष्वाकु वंश, ककुत्स्थ वंश व रघुवंश नाम से जाना जाता है।
आदिकाल में ब्रह्मा जी ने भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु को पृथ्वी का प्रथम राजा बनाया था।
भगवान सूर्य के पुत्र होने के कारण मनु जी सूर्यवंशी कहलाये तथा इनसे चला यह वंश सूर्यवंश कहलाया।
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अयोध्या के सूर्यवंश में आगे चल कर प्रतापी राजा रघु हुये।
राजा रघु से यह वंश रघुवंश कहलाया।
इस वंश मे इक्ष्वाकु, ककुत्स्थ, हरिश्चंद्र, मांधाता, सगर, भगीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ, राम जैसे प्रतापी राजा हुये हैं।
रघुवंशियों के कुछ राजाओं का वर्णन रघुवंशकाव्य में दिया गया है।
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कौशल जनपद पर इक्ष्वाकुवंशी रघुवंशी राजा राहुल ( महाकौशला ) का शासन था।
राजा राहुल महाकौशला ने काशी, लुम्बनी, कपिलवस्तु, कौलिय आदि राज्यों को जीत कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी कौशल राज्य की राजधानी साकेत ( अयोध्या ) थी।
साकेत (अयोध्या ), श्रावस्ती व वाराणसी कौशल राज्य के प्रमुख नगरी थी।
|| भगवान सूर्य नारायण की जय हो ||
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शुभ काम में क्यों बनाई गई
नारियल फोड़ने की परंपररा।
सनातन धर्म के ज्यादातर धार्मिक संस्कारों में नारियल का विशेष महत्व है।
कोई भी व्यक्ति जब कोई नया काम शुरू करता है तो भगवान के सामने नारियल फोड़ता है।
चाहे शादी हो, त्योहार हो या फिर कोई महत्वपूर्ण पूजा, पूजा की सामग्री में नारियल आवश्यक रूप से रहता है नारियल को संस्कृत में श्रीफल के नाम से जाना जाता है।
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विद्वानों के अनुसार यह फल बलि कर्म का प्रतीक है।
बलि कर्म का अर्थ होता है उपहार या नैवेद्य की वस्तु।
देवताओं को बलि देने का अर्थ है, उनके द्वारा की गई कृपा के प्रति आभार व्यक्त करना या उनकी कृपा का अंश के रूप मे देवता को अर्पित करना।
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एक समय सनातन धर्म में मनुष्य और जानवरों की बलि सामान्य बात थी।
तभी आदि शंकराचार्य ने इस अमानवीय परंपरा को तोड़ा और मनुष्य के स्थान पर नारियल चढ़ाने की शुरुआत की।
नारियल कई तरह से मनुष्य के मस्तिष्क से मेल खाता है।
नारियल की जटा की तुलना मनुष्य के बालों से, कठोर कवच की तुलना मनुष्य की खोपड़ी से और नारियल पानी की तुलना खून से की जा सकती है।
साथ ही, नारियल के गूदे की तुलना मनुष्य के दिमाग से की जा सकती है।
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नारियल फोड़ने का ये है महत्व-
नारियल फोड़ने का मतलब है कि आप अपने अहंकार और स्वयं को भगवान के सामने समर्पित कर रहे हैं।
माना जाता है कि ऐसा करने पर अज्ञानता और अहंकार का कठोर कवच टूट जाता है और ये आत्मा की शुद्धता और ज्ञान का द्वार खोलता है, जिससे नारियल के सफेद हिस्से के रूप में देखा।
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मोहि भरोसौ स्वामी जी को ।
करि हैं अपनों आप बरोबरि, प्रान अधार है पीकौ ॥ [1]
विषे वासना जारि खेह करि, उपजै हैं हित नीकौ ।
श्रीरसिकविहारी - बिहारिनि तन मन, और लगे सब फीको ॥ [2] -
श्री ललित किशोरी देव, श्री ललित किशोरी देव जू की वाणी, सिद्धांत के पद (127)
मुझे तो ललिता अवतार स्वामी श्री हरिदास जी पर विश्वास है।
उन की करुणा ऐसी है कि वे जिस पर कृपा करते हैं, उसे भी अपने समान बना लेव हैं ।
अर्थात् जिस प्रकार वे स्वयं श्री प्रिया - प्रियतम की सेवा करते हैं, वही से का अधिकार वे अपने कृपा पात्र को भी दे देते हैं।
उनके प्राणों का आधार युगल नित्य विहार है । [1]
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वे साधक के चित्त से समस्त विषय वासनाओं को मिटा कर, उसके हृदय में श्री श्यामा - कुंजबिहारी के प्रति अनन्य प्रेम भर देते हैं।
श्री पंडारामा प्रभु राज्यगुरु कहते हैं-
"जब स्वामी जी की कृपा होती है, तब रसिक के तन, मन और प्राणों में केवल बिहारी - बिहारिनी ही बसते हैं, और शेष संसार नीरस लगने लगता है।" [2]
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु