सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। जीवन के मर्म कर्म की सुंदर कहानी ।।
जीवन मे श्रद्धा और समर्पण..का महत्व क्या होता है ?
एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई।
शाम ढलने के करीब थी।
उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।
वह डर के मारे इधर - उधर भागने लगी।
वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा।
दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया।
घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।
वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया।
तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था।
उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।
उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम हुई थी।
लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे।
वह गाय उस किचड़ के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी।
वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका।
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वह भी धीरे - धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा।
दोनों भी करीब करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे।
गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूछा, क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है?
बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं।
मेरा कोई मालिक नहीं।
मैं खुद ही जंगल का मालिक हूं।
गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारे उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है?
उस बाघ ने कहा, तुम भी तो फस गई हो और मरने के करीब हो।
तुम्हारी भी तो हालत मेरे जैसी है।
गाय ने मुस्कुराते हुए कहा, बिलकुल नहीं।
मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां पर नहीं पाएगा तो वह ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा।
तुम्हें कौन ले जाएगा?
थोड़ी ही देर में सच में ही एक आदमी वहां पर आया और गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया।
जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे की तरफ कृतज्ञता पूर्वक देख रहे थे।
वे चाहते हुए भी उस बाघ को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे क्योंकि उनकी जान के लिए वह खतरा था।
गाय समर्पित ह्रदय का प्रतीक है।
बाघ अहंकारी मन है और मालिक सद्गुरु का प्रतीक है।
कीचड़ यह संसार है।
और यह संघर्ष अस्तित्व की लड़ाई है।
किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है लेकिन उसकी अति नहीं होनी चाहिए।
"कर्मन की गति कितनी न्यारी होती है "
गुजरात का सौराष्ट्र ग्रामणी पंथक का खंभालिया नामका इलाका में अहमदाबाद के *वासणा* नामक एक इलाका से रहने वाले भाई सौराष्ट्र का भाणवड खंभालिया में नोकरी पर आए थे।
वहाँ एक कार्यपालक इंजीनियर रहता था जो नहर का कार्यभार सँभालता था।
वही आदेश देता था कि किस क्षेत्र में पानी देना है।
सभी उन्हे...!
शाह 'साहब ' से ही सब बुलाते थे '
एक बार एक बड़े संपन्न किसान ने उसे 100-100 रूपयों की दस नोटें एक लिफाफे में देते हुए कहा :
“साहब....!
कुछ भी हो....!
पर फलाने व्यक्ति को पानी न मिले।
मेरा इतना काम आप कर दीजिये।”
साहब ने सोचा कि :
“हजार रूपये मेरे भाग्य में आने वाले हैं इसी लिए यह दे रहा है।
किन्तु गलत ढंग से रुपये लेकर मैं क्यों कर्मबन्धन में पड़ूँ ?
हजार रुपये आने वाले होंगे तो कैसे भी करके आ जायेंगे।
मैं गलत कर्म करके हजार रूपये क्यों लूँ ?
मेरे अच्छे कर्मों से अपने - आप रूपये आ जायेंगे।ʹ
अतः उसने हजार रूपये उस किसान को लौटा दिये।
कुछ दिनों के बाद इंजीनियर एक बार मुंबई से लौट रहा था।
मुंबई से एक व्यापारी का लड़का भी उसके साथ बैठा।
वह लड़का सूरत आकर जल्दबाजी में उतर गया और अपनी अटैची गाड़ी में ही भूल गया।
वह इंजीनियर समझ गया कि अटैची उसी लड़के की है।
अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रूकी।
अटैची पड़ी थी लावारिस…..!
उस इंजीनियर ने अटैची उठा ली और घर ले जाकर खोली।
उसमें से पता और टैलिफोन नंबर लिया।
इधर सूरत में व्यापारी का लड़का बड़ा परेशान हो रहा था किः
“हीरे के व्यापारी के इतने रूपये थे, इतने लाख का कच्चा माल भी था।
किसको बतायें ?
बतायेंगे तब भी मुसीबत होगी।
” दूसरे दिन सुबह - सुबह फोन आया कि...!
“आपकी अटैची ट्रेन में रह गयी थी जिसे मैं ले आया हूँ और मेरा यह पता है, आप इसे ले जाइये।”
बाप - बेटे गाड़ी लेकर वासणा पहुँचे और साहब के बँगले पर पहुँचकर उन्होंने पूछाः
“साहब !
आपका फोन आया था ?”
साहब :
“आप तसल्ली रखें।
आपके सभी सामान सुरक्षित हैं।”
साहब ने अटैची दी।
व्यापारी ने देखा कि अंदर सभी माल - सामान एवं रुपये ज्यों - के - त्यों हैं। ʹ
ये साहब नहीं, भगवान हैं….!
ʹ ऐसा सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ गये, उसका दिल भर आया।
उसने कोरे लिफाफे में कुछ रुपये रखे और साहब के पैरों पर रखकर हाथ जोड़ते हुए बोलाः
"साहब !
फूल नहीं तो फूल की पंखुड़ी ही सही, हमारी इतनी सेवा जरूर स्वीकार करना।”
साहब :
“एक हजार रूपये रखे हैं न ?”
व्यापारी....!
“साहब !
आपको कैसे पता चला कि एक ही हजार रूपये हैं ?”
साहब....!:
“एक हजार रूपये मुझे मिल रहे थे बुरा कर्म करने के लिए।
किन्तु मैंने वह बुरा कार्य नहीं किया यह सोचकर कि यदि हजार रूपये मेरे भाग्य में होंगे तो कैसे भी करके आयेंगे।”
व्यापारी....!
“साहब ! आप ठीक कहते हैं।
इसमें हजार रूपये ही हैं।”
सार : -
कुछ लोग टेढ़े - मेढ़े रास्ते से कुछ लेते हैं।
वे तो दुष्कर्म कर पाप कमा लेते हैं।
लेकिन जो धीरज रखते हैं।
वे ईमानादारी से उतना ही पा लेते हैं।
जितना उनके भाग्य में होता है।
श्रीकृष्ण कहते हैं-
गहना कर्मणो गतिः।
जब-जब हम कर्म करें तो कर्म को विकर्म में बदल दें अर्थात् कर्म का फल ईश्वर को अर्पित कर दें अथवा कर्म में से कर्त्तापन हटा दें तो कर्म करते हुए भी हो गया विकर्म।
कर्म तो किये लेकिन कर्म का बंधन नहीं रहा।
संसारी आदमी कर्म को बंधन कारक बना देता है।
साधक कर्म को विकर्म बनाता है।
लेकिन सिद्ध पुरुष कर्म को अकर्म बना देते हैं।
आप भी कर्म करें तो अकर्ता होकर करें, न कि कर्त्ता होकर।
कर्त्ता भाव से किया गया कर्म बंधन में डाल देता है एवं उसका फल भोगना ही पड़ता है।
तुलसीदास जी कहते हैं :-
करम प्रधान बिस्व करि राखा।
जस करइ सो तस फलु चाखा।
बुरा कर्म करते समय तो आदमी कर डालता है।
लेकिन बाद में उसका कितना भयंकर परिणाम आता है।
इसका पता ही नहीं चलता..!!
।। सुंदर कहानी ।।
।।भगवत भक्त परम संत नामदेव जी की श्रद्धा भक्ति आत्मसमर्पित भाव...! ।।
संत नामदेव जी,,।
बचपन में अपने ननिहाल में रहते थे,,।
इनके नाना जी का नाम बामदेव था,,।
जो ठाकुर जी के परम वैष्णो भक्त संत थे,,।
बचपन में नामदेव जी काठ के खिलौनों एवं मिट्टी के खिलौनों से खेला करते थे,,।
लेकिन इनका खेल...!
साधारण बच्चों की तरह नहीं था,,।
श्री नामदेव जी,,।
उन खिलौनों के साथ में...!
जिस प्रकार से कोई भक्त पूजा करता है,,।
भगवान को नहलाता है,,।
उनका ध्यान करता है...।
आसन देता है....!
और फिर उनका भोग लगाता है,,।
इसी प्रकार से यह खेला करते थे,,।
और अपने नाना जी को देखते थे,,।
कि नाना जी जो ठाकुर जी को दूध का भोग लगाते थे,,।
वही दूध संत नामदेव जी को प्रसाद रूप में मिलता था,,।
नामदेव जी अपने नाना की भक्ति देखकर,,।
बचपन से ही बार - बार नानाजी से कहते थे,,।
कि नाना जी भगवान की सेवा मुझे दे दीजिए,,।
नाना जी कहते थे ठीक है थोड़ा बड़ा हो जाएगा तो दे दूंगा,,।
इस प्रकार से कुछ दिन बीता,,।
तो 1 दिन फिर नामदेव जी अपने नाना से अण गए,,।
और कहने लगे नानाजी,,।
अब तो मुझे ठाकुर जी की सेवा दे दीजिए,,।
तो नाना जी ने कहा,,।
नामदेव कुछ दिन बाद मैं 3 दिन के लिए किसी गांव में किसी काम से मुझे जाना है,,।
यदि तुम उन 3 दिनो मैं,,।
अच्छे से ठाकुर जी की सेवा की,,।
उनको दूध का भोग लगाना,,।
और जो बचे तो स्वयं का भोग लगाना,,।
यदि तुम अच्छे से 3 दिन सेवा कर लोगे,,।
तो आने पर ठाकुर जी से पूछ कर तुम्हें हमेशा के लिए सेवा दे दूंगा,,।
इस प्रकार से समय बीतता गया,,।
एक दिन वह समय आ गया जब नाना जी को उस गांव में जाना पड़ा,,।
नाना जी ने कहा कि नामदेव अच्छे से भगवान की सेवा करना और दूध का भोग लगाना दूध भगवान को पिला देना,,।
नामदेव जी,,।
2 किलो दूध गर्म करते करते जब एक कटोरा दूध रह गया,,।
तो उसमें मेवा मिश्री इत्यादि मिलाकर के,,।
तुलसी पत्र का भोग लगाया,,।
और भगवान का पर्दा हटाकर ठाकुर जी के सामने रख दिया कटोरा,,।
थोड़ी देर प्रभु से प्रार्थना करने लगेगी प्रभु आकर के भोग लगाइए,,।
दूध रखा हुआ है...!
प्रभु आकर दूध पीजिए।
इस प्रकार थोड़ी देर बाद जब...!
पर्दा हटा कर देखा तो दूध का कटोरा वैसे का वैसे ही रखा है,,।
अब तो नामदेव जी को बहुत पीड़ा हुई उन्होंने सोचा कि हो सकता है ।
कि मेरी श्रद्धा में कोई कमी रह गई हो भगवान दूध नहीं पी रहे हैं,,।
इस प्रकार से अगला दिन भी बीता ।
उसी प्रकार से दूर रखा कटोरा भर के भगवान फिर नहीं आए,,।
नामदेव जी बहुत ही दुखी हो गए ।
परंतु यह बात घर में किसी को बताया नहीं अपने मन के अंदर रखा,,।
मन में खिंचा तान चलती रही ।
कि कल नाना जी का 3 दिन पूरा हो जाएगा और यदि भगवान ने दूध नहीं पिया ।
तू नानाजी आकर पूछेंगे।
और फिर मुझे ठाकुर जी की सेवा नहीं मिल पाएगी,,।
इसी प्रकार से प्रातः काल तीसरा दिन हुआ तीसरे दिन नामदेव जी उठे भगवान का बढ़िया से नए लाया तू लाया श्रृंगार किया और फूल माला प्रभु को अर्पण करके बढ़िया दूध का कटोरा तैयार किया,, ।
और उसमें मिश्री और भगवान का तुलसी पत्र मिलाकर के सामने रखा,,।
भगवान से कुछ देर प्रार्थना की, देखा कि कटोरा वैसे का वैसे रखा है ।
भगवान अभी दूध पीने के लिए नहीं आए,, ।
तभी उन्होंने आत्म समर्पण करते हुए प्रभु के सामने...!
अपने हाथ में छूरी उठा ली,,।
और कहां है प्रभु यदि आज आप दूध नहीं पिएंगे तो मैं अपने प्राणों को स्वयं ही आत्म समर्पण कर दूंगा,,।
इतना कहकर ज्यौ ही,, ।
अपनी गर्दन पर छुरी का प्रहार करना चाहा तुरंत ही ठाकुर जी प्रकट हो गए,,।
ठाकुर जी ने छुरी को पकड़ लिया,,।
और नामदेव जी से कहा कि हम दूध पी रहे हैं आप ऐसा ना करें हम दूध पी रहे हैं,,।
इस प्रकार भगवान ने नामदेव जी के हाथों से दूध पिया,,।
अगले दिन नानाजी जब घर पर आए तो नाना जी ने सेवा के बारे में पूछा,,,,!
तब नामदेव जी ने दूध पीने की भगवान की लीला को बताया,, ।
उनको विश्वास नहीं हुआ उन्होंने कहा यह मेरे सामने भगवान दूध पिए तो मैं मान लूंगा,,।
अगले दिन प्रातः काल नामदेव जी ने इसी प्रकार से भगवान के सामने दूध रखा,, ।
परंतु भगवान दूध पीने के लिए नहीं आए,, ।
तब नामदेव जी ने भगवान से कहा कि कल मेरे सामने जब दूध पीकर गए तो आज क्यों नहीं आए मुझे झूठा बनाते हो,,।
इतना कहकर के हाथ में छुरी उठा लिया,, ।
और जैसे ही अपनी गर्दन पर चलाना चाहा तुरंत भगवान अपने दिव्य रूप में प्रकट होकर के मोर मुकुट बंसी वाले हाथ में बंसी लिए हुए प्रगट ही हो गए,, ।
देखते ही देखते भगवान दूध का सारा कटोरा पीने ही वाले थे,,।
क्योंकि बचपन से हम नाना जी के हाथ से आपका ही भोग लगाया दुग्ध पान करता आ रहा हूं।
नामदेव जी के द्वारा नाना बामदेव को भगवान के दर्शन हुए ।
और सभी भगवान के दर्शन करके कृतकृत्य हो गए,, ।
और उसी दिन से नाना जी ने नामदेव जी को भक्ति समर्पित कर दी,,।
अर्थात ठाकुर जी की सेवा दे दी।
इस प्रकार से संस्कार यदि आपके परिवार में या आपके नाना मामा नाना नानी या आप के संपर्क में जिसके पास में बचपन से ही भगवान की कृपा भगवत भक्ति प्राप्त हो जाती है।
उसका जीवन धन्य हो जाता है।
इस कथा के माध्यम से अपनी भक्ति को पुष्ट करें और आगे बढ़े जीवन के अपने अंतिम लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करें।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
हे नाथ नारायण वासुदेवा
हे नाथ नारायण वासुदेव
सलाह के सौ शब्दों से ज़्यादा अनुभव की एक ठोकर इंसान को मज़बूत बनाती है।
कुछ बातें समझाने पर नहीं बल्कि खुद पर बीत जाने पर ही समझ में आती है।
मनुष्य इस ब्रह्मांड के छोटे से अंतरिक्ष की एक सी पृथ्वी पर,छोटे से छोटा एक जीव है!
फिर भी उसे घमंड है कि वह सब जानता है।
सब कर सकता है,यही उसकी बड़ी मूर्खता है।
सूखी लकड़ी और बुद्धिहीन मनुष्य कभी नहीं झुकते बस इनको तोड़ना पड़ता है।
!!!!! शुभमस्तु !!!
🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏