https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: ।। जीवन की सत्य कहानी ।।

।। जीवन की सत्य कहानी ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। जीवन की सत्य कहानी ।।

श्रीहरिः

एक लोटा पानी

(१)

चैतका महीना था। 

ग्वालियर राज्यका मशहूर डाकू परसराम अपने अरबी घोड़ेपर चढ़ा हुआ, जिला दमोहके देहातमें होकर कहीं जा रहा था। 





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लकालक दोपहरी थी। 

प्यासके कारण परसरामका गला सूख रहा था। 

कोई तालाब, नदी या गाँव दिखायी न देता था। 

चलते-चलते एक चबूतरा मिला, जिसपर एक शिवलिंग रखा था। 

छोटे और कच्चे चबूतरेपर बरसातके पानीने छोटे-छोटे गड्ढे कर दिये थे। 

इसलिये महादेवजीकी मूर्ति कुछ तिरछी-सी हो रही थी। 

यह देख परसराम घोड़ेसे उतरा और उसे एक पेड़से बाँधकर अपनी तलवारसे महादेवजीकी पिण्डीको ठीक बिठलाने लगा। 

परसराम बोला—‘महादेव गुरुजी हैं। 

परशुराम के गुरु थे, इसलिये मेरे भी गुरु हैं। 

वे भी ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण हूँ। 

उन्होंने अमीरोंका नाश किया था और गरीबोंका पालन किया था, वही मैं भी कर रहा हूँ। 

मूर्ख लोग मुझे डाकू कहते हैं। 

धनवान् से जबरन् धन लेकर दीनोंका पालन करना क्या डाकूपन है ? 

है तो बना रहे। 

ग्वालियर राज्यने मेरे लिये पाँच हजारका इनामी वारंट जारी किया है और भारत-सरकारने पचीस हजारका। 

मेरी गिरफ्तारीके लिये तीस हजारका इनाम छप चुका है। 

वे लोग अमीरोंके पालक और गरीबोंके घालक हैं। 

इस लिये मुझे डाकू कहते हैं। 

डाकू वे हैं या मैं ? 

इसका निर्णय कौन करेगा ? 

खैर कोई परवाह नहीं। 

जबतक शंकर गुरुका पंजा मेरी पीठपर है तब तक कोई परसरामको गिरफ्तार नहीं कर सकता। 

लेकिन क्या मैं आज प्यासके मारे इस जंगलमें मर जाऊँगा ? 

मेरे पंद्रह साथी—

जो सब पढ़े-लिखे और बहादुर हैं—

अपने-अपने अरबी घोड़ोंपर चढ़े मुझे खोज रहे होंगे। 

जब वे मुझे इस जंगलमें मरा हुआ पायेंगे, तब वे नेत्रहीन होकर बड़े दु:खी होंगे। 

बाबा! गुरुदेव! क्या एक लोटा पानीके बिना आप मेरी जान ले लेंगे ?’

तबतक एक बुढ़िया वहाँ आयी। 

उसके हाथमें एक लोटा जल था और लोटेके ऊपर एक कटोरी थी, जिसमें मिठाई रखी थी।

परसराम— बूढ़ी माई! 

तुम कहाँ रहती हो ?

बुढ़िया— थोड़ी दूरपर सेखूपुर गाँव है। 

बागोंमें बसा है, इस लिये दिखायी नहीं देता। 

वहीं मेरा घर है। 

जातिकी अहीर हूँ बेटा!

परसराम—

यहाँ क्यों आयी हो?

चबूतरेपर पानी और मिठाई रखकर बुढ़िया बैठ गयी और रोने लगी। 

परसरामने जब बहुत समझाया तब वह कहने लगी—

‘बेटा! मौतके दिन पूरे करती हूँ। 

घरमें एक लड़का था और बहू थी। 

मेरा बेटा बिहारी तुम्हारी ही उमरका था। 

उसीने यह चबूतरा बनाया था और कहींसे लाकर उसीने महादेव यहाँ रखे थे। 

रोजाना पूजा करता था। 

परसाल इस गाँवमें कलमुही ताऊन ( प्लेग ) आयी। 

बेटा और बहू दोनों एक दस सालकी कन्या छोड़कर उड़ गये। 

रोने के लिये मैं रह गयी। 

जबसे बेटा मरा, तबसे मैं रोज एक लोटा पानी चढ़ा जाती हूँ और रो जाती हूँ। 

इस साल वैशाखमें नातिन चम्पाका विवाह है। 

घरमें कुछ नहीं है। 

न जानें, कैसे महादेव बाबा चम्पाका विवाह करेंगे।’

परसराम— महादेव बाबा चम्पाका विवाह खूब करेंगे। 

तुम यह पानी मुझे पिला दो, बड़ी प्यास लगी है।

बुढ़िया— पी लो बेटा, पी लो। 

मिठाई भी खा लो। 

यह पानी जो तुम पी लोगे तो मैं समझूँगी कि महादेवजी पर चढ़ गया। 

आत्मा सो परमात्मा। 

मैं फिर चढ़ा जाऊँगी। 

पी लो बेटा, पी लो, पहले यह मिठाई खा लो।

इतना कहकर बुढ़ियाने पानीका लोटा और मिठाईकी कटोरी परसराम के सामने रख दिये। 

मिठाई खाकर और शीतल स्वच्छ जल पीकर परसराम बोले—

‘चम्पाका विवाह कब होगा माई!’

बुढ़िया— वैशाख के उँजेरे पाखकी पंचमी को टीका है। 

केसरीपुर से बारात आयेगी।

परसराम— विवाहके लिये तुम चिन्ता कुछ मत करना। 

तुम्हारी चम्पाका विवाह महादेव ही करेंगे।

बुढ़िया— तुम कौन हो बेटा ? 

तुम्हारी हजारी उमर हो। 

गाँव तक चलो तो तुमको कुछ खिलाऊँ। 

भूखे मालूम होते हो।

परसराम— भूखा तो हूँ, पर गाँव मैं नहीं जा सकता। 

मेरा नाम परसराम है और लोग मुझे डाकू कहते हैं। 

आगरे के कप्तान यंग साहब, जिन्होंने सुल्ताना डाकू को गिरफ्तार किया था, तीस सिपाहियों के साथ मेरे पीछे लगे हुए हैं। 

मेरे साथी छूट गये हैं, इस लिये मैं गाँवमें नहीं जा सकता। 

जिस दिन चम्पाका विवाह होगा, उस दिन तुम्हारे गाँवमें पाँच मिनट के लिये आऊँगा।

बुढ़िया— तुम डाकू तो मालूम नहीं पड़ते— देवता मालूम पड़ते हो।

घोड़ेपर सवार होकर परसरामने कहा—

‘अब ऐसा ही उलटा जमाना आया है माई! 

उदार और बहादुर को डाकू कहा जाता है और महलों में बैठकर दिन दहाड़े गरीबोंको लूटनेवालों को रईस कहा जाता है। 

धर्मात्मा भीख माँगते हैं, पापी लोग हुकूमत करते हैं। 

पतिव्रताएँ उघारी फिरती हैं, छिनालों के पास रेशमी साड़ियाँ हैं। 

कलियुग है न! मैं जाता हूँ। 

मेरा नाम याद रखना पंचमीको आऊँगा।’

परसराम चले गये। 

बुढ़ियाने भी घर की राह ली। 

महादेवजी पर जल चढ़ाकर उसने चम्पा से परसराम के मिलने की सारी कहानी बयान कर दी; गाँवका मुखिया भी वहीं खड़ा था। 

उसने भी सारा हाल सुना। 

मुखियाने सोचा— मेरा भाग जग गया, इनाम का बड़ा हिस्सा मैं पाऊँगा। 

थाने में जाकर रिपोर्ट लिखायी कि ‘वैशाख शुक्लपक्षकी पंचमीके दिन परसराम सेखूपुरमें चम्पा के विवाहमें शामिल होने आयेगा। 

पुलिसके द्वारा यह समाचार यंग साहब को मालूम करा देना चाहिये। 

अगर उस रोज डाकू परसराम गिरफ्तार न हुआ तो फिर कभी न हो सकेगा।’

(२)

चौथ के दिन, बिहारी अहीर के दरवाजेपर पाँच गाड़ियाँ आकर खड़ी हुईं। 

एक में आटा भरा था। 

एक में घी, शक्कर और तरकारियाँ भरी थीं। 

एक गाड़ीमें कपड़े - ही - कपड़े थे, तरह - तरहके नये थानों से वह गाड़ी भरी थी। 

चौथी गाड़ीमें नये - नये बर्तन भरे थे और पाँचवीं गाड़ी तरह - तरहकी पक्की मिठाइयोंसे भरी थी। 

गाड़ीवानों ने सब सामान बिहारी अहीरके घर में भर दिया। 

लोगों ने जब यह पूछा कि ‘यह सामान किसने भेजा ?’ 

' तब गाड़ीवानों ने कहा कि ‘हम लोग भेजने वाले का नाम - धाम कुछ नहीं जानते। 

हम लोग दमोह के रहनेवाले हैं। 

किराये पर गाड़ी चलाया करते हैं। 

हम लोगोंको किराया अदा कर दिया गया। 

हम लोगों को केवल यही हुक्म है कि यह सामान सेखूपुरके बिहारी अहीरके घरमें जबरन् भर आवें। 

बस, और ज्यादा ती न - पाँच हम लोग कुछ नहीं जानते।’ 

इस विचित्र घटना पर गाँवभर आश्चर्य कर रहा था। 

केवल मुखियाको और बुढ़ियाको मालूम था कि यह सब काम परसरामका है। 

मुखियाने थाने में इस घटनाकी रिपोर्ट लिखायी और यह भी लिखाया कि ‘कल पंचमीके दिन सुबहको जब चम्पाके फेरे पड़ेंगे, उस समय कन्यादान देने खुद परसरामके आनेकी उम्मीद है; 

क्योंकि वह अभीतक खुद नहीं आया है। 

पाँच मिनटके लिये गाँवमें आनेका उसने वचन दिया है। 

चाहे धरती इधर - की - उधर हो जाय, पर परसरामका वचन खाली नहीं जा सकता। 

चौथ की रातमें ही मिस्टर यंग साहब अपने तीस मरकट सिपाहियोंके साथ सेखूपुरमें आ धमके। 

उन सबोंने घोड़ों के सौदागरों का भेष बनाया था। 

मुखियाके दरवाजे पर वे लोग ठहर गये। 

गाँव वालों ने जाना कि घोड़े के सौदागर लोग मेले को जा रहे हैं। 

मुखिया और चौकीदार के सिवा असली भेद कोई नहीं जानता था।

(३)

पंचमीका सबेरा हुआ। परसरामने ज्यों ही घोड़ेपर चढ़ना चाहा, त्यों ही छींक हुई। 

एक साथी का नाम था रहीम। 

बी० ए० पास था। 

पेशावरका रहनेवाला था। 

घोड़ेकी सवारीमें और निशाना लगानेमें एक ही था। 

रहीमने परसरामको रोकते हुए कहा—

‘कहाँ जा रहे हैं आप ?’

परसराम—

सेखूपुर, चम्पाका कन्यादान देने। 

तुमको तो सब हाल मालूम करा दिया था। 

रोको मत। 

रुक नहीं सकता।

रहीम—

छींक हुई!

परसराम—

मुसलमान होकर भी छींक को मानते हो!

रहीम—

बात यह है कि यंग साहब अपने तीस सिपाहियों के साथ इधर ही गये हैं। 

उन लोगोंने सौदागरों का स्वाँग बनाया है। 

मगर मेरी नजर को धोखा नहीं दे सकते।

परसराम—

घूमने दो। 

क्या करेगा यंग साहब ?

रहीम— मालूम होता है कि मूर्ख बुढ़िया ने आपके मिल ने का हाल अपने गाँवमें बयान कर दिया है। 

पुलिसको आपके जाने का हाल मालूम हो गया है, तभी यंग साहबने मौका देखकर चढ़ाई की है।

परसराम— सम्भव है, तुम्हारा अनुमान सही हो। 

लेकिन इसी डर से मैं अपने वचन को तोड़ नहीं सकता। 

एक लोटा पानी से उऋण होना है।

रहीम— अच्छा, तो मैं भी साथ चलता हूँ। 

जो वक्त पर साथ दे, वही साथी है।

परसराम— तुम्हारी क्या जरूरत है ? 

तुम यहीं रहो।

रहीम— मैं आपको अकेला नहीं जाने दूँगा। 

नमक हरामी नहीं करूँगा। आपकी जान जायगी तो पहली मेरी जान जायगी।

दोनों घोड़े पर सवार होकर सेखूपुरकी ओर चल दिये। 

वे उस समय बिहारीके दरवाजे पर पहुँचे, जब चम्पाके फेरे पड़ गये थे और कन्यादानका समय आ गया था।

अपने घोड़े की बागडोर रहीमको पकड़ाकर परसराम उतर पड़े और घर में घुस गये। 

पाँच मुहरों से परसराम ने चम्पाका कन्यादान सब से पहले दिया और वे बाहर जाने लगे।

गाँववालों ने जान लिया कि इस व्यक्तिने ही पाँच गाड़ियाँ सामान भेजा था। 

श्रद्धा के मारे उन लोगोंने परसराम को घेर लिया। 

मारे खुशी के बुढ़िया की बोलती बंद थी। 

एक आदमी बोला—

‘वाह मालिक! 

बिना जल पान किये कहाँ जाते हो!’ दूसरा आदमी लोटा लिये चरण धोनेका उपाय करने लगा। 

तीसरा आदमी परसराम को बैठनेके लिये अपना साफा धरती पर बिछाने लगा। 

चौथा आदमी दौड़ा तो एक दोने में मिठाइयाँ भर लाया।

परसरामने कहा—

‘कैसे पागल हो तुमलोग! 

जिस कन्याका कन्यादान दिया, उसी का भोजन कैसे करूँगा ?’—

इतना कहकर वे घर से बाहर आ गये। 

घोड़ेपर चढ़ते - चढ़ते परसरामने देखा कि यंग साहबने सदल - बल उनको घेर लिया है। 

परसराम ने उनको ललकारकर कहा—

‘गाँवके बाहर आकर मरदूमी दिखलाओ।’ 

इस के बाद रहीम के साथ परसरामने घोड़ों को एड़ लगायी और गाँवसे बाहर हो गये। 

साहबने पीछा किया। 

सब लोग घोड़ों पर सवार थे।

 तड़ातड़ गोलियाँ छूटने लगीं। 

वे दोनों भी फायर करते जाते थे। 

परसराम और रहीम के अचूक निशानोंने पाँच सिपाही मार डाले।

(४)

परसरामको भागने का अवसर देने के लिये रहीमने अपना घोड़ा पीछे लौटाया और वह सिपाहियों के साथ जूझने लगा। 

सब लोगों ने उसे घेर लिया। 

दनादन गोलियाँ छूटने लगीं। 

तीन सिपाही रहीमने मौतके घाट उतार दिये। 

उसके शरीरमें चार गोलियाँ घुस चुकी थीं। 

एक गोली घोड़ेको लगी। 

घोड़ा और सवार दोनों ही मरकर गिर पड़े। 

तबतक परसराम एक कोस आगे निकल गये थे। 

साहब ने रहीमको वहीं छोड़ा और परसरामका पीछा किया। 

तीन कोसके बाद परसराम दिखायी पड़े। 

साहबकी गोलीसे परसरामका घोड़ा घायल होकर गिर पड़ा। 

परसराम पैदल चलने लगे। 

आगे था एक नाला, ५ - ६ गज चौड़ा था और तीस हाथ गहरा था। बरसाती पानीने उस नालेको खंदकका रूप दे दिया था। 

परसरामने कूदकर उसे पार करना चाहा; परंतु पैर फिसल गया। 

वे खंदकमें गिर पड़े। 

किनारे यंग साहब आ खड़े हुए। 

नीचे अँधेरा था, साफ - साफ दिखायी न पड़ता था।

ज्यों ही साहबने नीचे झाँका त्यों ही परसरामने गोली छोड़ दी। 

विक्टोरिया के इकबाल साहब तो बच गये, मगर उनका टोप उड़ गया। 

सिपाहियोंने गोली छोड़ी। 

परसराम एक किनारे छिप गये। 

फायर खाली गया। 

साहबने कहा—

‘तीस हाथ गहरे गड्ढेमें गिरा तो भी निशाना मार रहा है। 

शाबाश बहादुर, शाबाश! 

तबतक परसराम ने आवाज के निशाने पर एक गोली छोड़ दी। 

साहबके पास एक सिपाही खड़ा था। 

उसकी खोपड़ी उड़ गयी।

साहबने कहा—

‘हमारे नौ आदमी काम आ चुके हैं। 

मगर डाकू का एक ही आदमी मरा।’

एक सिपाही था राजपूत। 

उसने आगे बढ़कर कहा—

‘मिट्टी गिराकर डाकू को दाब देना चाहिये।’ 

आवाज का निशाना साधकर परसराम ने गोली छोड़ी। 

राजपूत बेचारा मरकर गिर गया। 

साहब ने कहा—

‘वेल परसराम! 

टुम बाहर आ जाओ। 

अम टुम पर बहोत खुश हैं। 

टुम एक बहादुर और बातका ढनी आडमी है। 

अम टुमारे निशानेपर खुश हूँ।’

परसरामने जवाब दिया—

‘मैं अपना वचन पूरा कर चुका। 

एक लोटा पानी से उऋण हो गया। 

अब मरनेका डर नहीं है।’

साहब—

‘अगर टुम डाका डाल ना बंड करने की कसम खाओ तो अम टुम को वायसराय से कहकर छुड़ा लेगा। 

इतमिनान करो और बाहर आओ। 

टुम भी बात का ढनी, अम भी बात का ढनी। 

आज से टुम हमारा डोस्त हुआ।’

परसराम बाहर निकल आये और आत्मसमर्पण कर दिये। 

यंग साहबने उनको गिरफ्तार कर लिया और आगरा ले गये। 

कुछ दिनों मुकदमा चला। 

मगर यंग साहब ने परसरामको साफ बरी करा दिया। 

परसरामने समझ लिया—

अच्छा उद्देश्य होने पर भी आखिर डकैती थी बहुत बुरी चीज, उसका समर्थन हो ही नहीं सकता। 

अतएव उस काम को छोड़ दिया। 

वे साधु हो गये और अपने साथियों को नेकी का जीवन व्यतीत करनेका उपदेश दिया। 

परसरामने हरद्वारमें जाकर पाँच साल तक घोर तपस्या की और सन् 1935 ई० में गंगाजीकी बीच धारामें खड़े - खड़े शरीर त्याग दिया। 

परसरामने यह दिखला दिया कि विपत्ति को देखकर भी वचन का पालन करना चाहिये।

जय श्री राधे .......यह गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक है – "एक लोटा पानी", उसी पुस्तक से यह कहानी लिया गया है।



।। ।। जीवन की सत्य कहानी ।। ।।

*🧍🧍🏻‍♀️पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा तो पत्नी ने.. बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दिया।*

बोली : जब अपने खुद के बाप को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़ रगड़ के नहाये थे।अब किसी की लाश पर मत्था टेककर आ रहे हो, अब नहीं नहाओगे ?

पति : अरी बावरी, वो तो समाधी है।

पत्नी : समाधि ! 🤔 उसको जलाया कब ? जलावेगा तभी तो समाधि बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।

पति : अरे, वो तो देवता है।




पत्नी : तो तुम्हारे पिता क्या राक्षस थे ? जो उन्हें देवता बता रहे हैं। क्या हमारे 33 कोटि देवी-देवता कम पड़ गये क्या तुम्हें ?

पति : अरी मुझे तो.. दोस्त अब्दुल ले गया था। अगर नहीं जाऊँगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा?

पत्नी : तो उस अब्दुल को.. सामने वाले हनुमानजी के मन्दिर में मत्था टेकवाने ले आना। कल मंगलवार भी है।

पति : वो तो कभी नहीं आवेगा मत्था टेकने। ला तू पानी की बाल्टी दे।

पत्नी : तो कान पकड़ के 10 दंड बैठक और लगाओ, और सौगंध लो कि.. आगे से किसी की मजार पर नहीं जाओगे !
हमारा घर एक मंदिर 🛕 है यहाँ "बांके बिहारी जी , श्री राधारानी , महादेवजी और माँ आदिशक्ति विराजित हैं।
याद रखें हम खड़े (जिंदा) को पूजते हैं लेटे (मुर्दा) को नहीं। 

*जय सनातन धर्म की* !🚩
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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