https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: 2025

एक बहुत ही सुंदर सी कथा :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........

जय द्वारकाधीश 

श्रीमहाभारतम् 

।। श्रीहरिः ।।

* श्रीगणेशाय नमः *

।। श्रीवेदव्यासाय नमः ।।

(आस्तीकपर्व )

त्रयोदशोऽध्यायः  

जरत्कारु का अपने पितरों के अनुरोध से विवाह के लिये उद्यत होना.....! 

वायुभक्षो निराहारः शुष्यन्ननिमिषो मुनिः । 

इतस्ततः परिचरन् दीप्तपावकसप्रभः ।। १४ ।। 

अटमानः कदाचित् स्वान् स ददर्श पितामहान् । 

लम्बमानान् महागर्ते पादैरूर्वैरवाङ्मुखान् ।। १५ ।।


वे कभी वायु पीकर रहते और कभी भोजनका सर्वथा त्याग करके अपने शरीरको सुखाते रहते थे। 

उन महर्षिने निद्रापर भी विजय प्राप्त कर ली थी, इसलिये उनकी पलक नहीं लगती थी। 

इधर - उधर विचरण करते हुए वे प्रज्वलित अग्निके समान तेजस्वी जान पड़ते थे। 

घूमते - घूमते किसी समय उन्होंने अपने पितामहोंको देखा जो ऊपरको पैर और नीचेको सिर किये एक विशाल गड्ढेमें लटक रहे थे ।। १४-१५ ।।






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तानब्रवीत् स दृष्ट्वैव जरत्कारुः पितामहान् । 

के भवन्तोऽवलम्बन्ते गर्ते ह्यस्मिन्नधोमुखाः ।। १६ ।।


उन्हें देखते ही जरत्कारुने उनसे पूछा- 'आपलोग कौन हैं, जो इस गड्ढेमें नीचेको मुख किये लटक रहे हैं ।। १६ ।।


वीरणस्तम्बके लग्नाः सर्वतः परिभक्षिते । 

मूषकेन निगूढेन गर्तेऽस्मिन् नित्यवासिना ।। १७ ।।


'आप जिस वीरणस्तम्ब ( खस नामक तिनकोंके समूह ) को पकड़कर लटक रहे हैं, उसे इस गड्ढेमें गुप्तरूपसे नित्य निवास करनेवाले चूहेने सब ओरसे प्रायः खा लिया है' ।। १७ ।।३


पितर ऊचुः


यायावरा नाम वयमृषयः संशितव्रताः । 

संतानप्रक्षयाद् ब्रह्मन्नधो गच्छाम मेदिनीम् ।। १८ ।।


पितर बोले- ब्रह्मन् ! हमलोग कठोर व्रतका पालन करनेवाले यायावर नामक मुनि हैं। 

अपनी संतान - परम्पराका नाश होनेसे हम नीचे - पृथ्वीपर गिरना चाहते हैं ।। १८ ।।


अस्माकं संततिस्त्वेको जरत्कारुरिति स्मृतः । 

मन्दभाग्योऽल्पभाग्यानां तप एव समास्थितः ।। १९ ।।


हमारी एक संतति बच गयी है, जिसका नाम है जरत्कारु। 

हम भाग्यहीनोंकी वह अभागी संतान केवल तपस्यामें ही संलग्न है ।। १९ ।।


न स पुत्राञ्जनयितुं दारान् मूढश्चिकीर्षति । 

तेन लम्बामहे गर्ने संतानस्य क्षयादिह ।। २० ।। 

अनाथास्तेन नाथेन यया दुष्कृतिनस्तथा । 

कस्त्वं बन्धुरिवास्माकमनुशोचसि सत्तम ।। २१ ।। 

ज्ञातुमिच्छामहे ब्रह्मन् को भवानिह नः स्थितः । 

किमर्थं चैव नः शोच्याननुशोचसि सत्तम ।। २२ ।।


वह मूढ़ पुत्र उत्पन्न करनेके लिये किसी स्त्रीसे विवाह करना नहीं चाहता है। 

अतः वंशपरम्पराका विनाश होनेसे हम यहाँ इस गड्ढेमें लटक रहे हैं। 

हमारी रक्षा करनेवाला वह वंशधर मौजूद है, तो भी पापकर्मी मनुष्योंकी भाँति हम अनाथ हो गये हैं। 

साधुशिरोमणे ! 

तुम कौन हो जो हमारे बन्धु-बान्धवोंकी भाँति हमलोगोंकी इस दयनीय दशाके लिये शोक कर रहे हो ? 

ब्रह्मन् ! हम यह जानना चाहते हैं कि तुम कौन हो जो आत्मीयकी भाँति यहाँ हमारे पास खड़े हो ? 

सत्पुरुषोंमें श्रेष्ठ ! हम शोचनीय प्राणियोंके लिये तुम क्यों शोकमग्न होते हो ।। २०-२२ ।।


जरत्कारुरुवाच


मम पूर्वे भवन्तो वै पितरः सपितामहाः । 

ब्रूत किं करवाण्यद्य जरत्कारुरहं स्वयम् ।। २३ ।।


जरत्कारुने कहा - महात्माओ ! 

आपलोग मेरे ही पितामह और पूर्वज पितृगण हैं। 

स्वयं मैं ही जरत्कारु हूँ। 

बताइये, आज आपकी क्या सेवा करूँ? ।। २३ ।।


पितर ऊचुः


यतस्व यत्नवांस्तात संतानाय कुलस्य नः । 

आत्मनोऽर्थेऽस्मदर्थे च धर्म इत्येव वा विभो ।। २४ ।।


पितर बोले - तात ! 

तुम हमारे कुलकी संतान - परम्पराको बनाये रखनेके लिये निरन्तर यत्नशील रहकर विवाहके लिये प्रयत्न करो। 

प्रभो ! तुम अपने लिये, हमारे लिये अथवा धर्मका पालन हो, इस उद्देश्यसे पुत्रकी उत्पत्तिके लिये यत्न करो ।। २४ ।।


न हि धर्मफलैस्तात न तपोभिः सुसंचितैः । 

तां गतिं प्राप्नुवन्तीह पुत्रिणो यां व्रजन्ति वै ।। २५ ।।


तात ! पुत्रवाले मनुष्य इस लोकमें जिस उत्तम गतिको प्राप्त होते हैं, उसे अन्य लोग धर्मानुकूल फल देनेवाले भलीभाँति संचित किये हुए तपसे भी नहीं पाते ।। २५ ।।


क्रमशः...

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🌷🌷श्री लिंग महापुराण🌷🌷


ध्यान यज्ञ वर्णन....! ( भाग 1 )

ऋषि ने पूछा- हे सूतजी ! विरक्त और ज्ञानियों के द्वारा ध्यान योग श्रेष्ठ कहा गया है। 

सो आप हमें ध्यान योग को विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।

सूतजी ने कहा-एक बार एक गुफा में शिवजी महाराज भवानी के साथ सुखपूर्वक विराजमान थे। 

तब वहाँ पर मुनीश्वरों ने आकर उन्हें प्रणाम किया और स्तुति की। 

हे वृषभध्वज ! अत्यन्त कालकूट नाम के विष को आपने नष्ट कर दिया। 

आप में ही सम्पूर्ण जगत स्थित है। 

इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा- हे ऋषियो ! 

कालकूट विष नहीं है किन्तु यह संसार ही विष है। 

इससे सब प्रकार इस संसार से बचना चाहिए। 

देखा हुआ तथा सुना हुआ दोनों प्रकार का जो त्याग कर देता है वही संसार कहा है। 

निवृत्त लक्षण धर्म है और अज्ञान मूलक संसार है। 

उ‌द्भिज, स्वेदज, अण्डज और जरायज चार प्रकार के जीव हैं। 

विषयों की निवृत्ति भोग से नहीं होती किन्तु भोगने से तो वे इस प्रकार बढ़ते हैं जैसे अग्नि घी द्वारा और बढ़ती है।






राग द्वेष भय आदि नाना प्रकार के रोगों से ग्रस्त प्राणी छिन्न मूल वृक्ष की तरह विवश होकर गिर जाते हैं। 

पुण्य रूपी वृक्ष का क्षय होने से देवता भी स्वर्ग से पतित होकर अनेकों कष्टों को भोगते हैं। 

कीट, पक्षी, मृग, पशु आदि सबको इस संसार में दुखी ही देखा है। 

देवता, दैत्य, नृप, राक्षस सबको दुःखमय देखा है। 

उस तप से, नाना प्रकार के दानों से आत्मा लब्ध नहीं होती जैसी कि ज्ञानियों को लब्ध होती है। 

पर और अपर दो विद्यायें हैं। 

अपर विद्या वेद, शिक्षा, कल्प व्याकरणादि है। 

परा विद्या अक्षर ( ब्रह्म ) है जो शब्द रूप रस है। 

किन्तु शिवर्ज ने कहा है कि मैं सब कुछ हूँ। 

जगत मुझ में ही लय होता है तथा मुझसे ही उत्पन्न होता है। 

मेरे सिवाय कुछ नहीं। 

ऐसा जानना चाहिए।


मोक्ष का हेतु ज्ञान है। 

आत्मा में स्थित पुरुष ही मुक्त होता है। 

अज्ञान होने से क्रोध, लोभ, दम्भ, मोह की उत्पत्ति है। 

गुरु के सम्पर्क से उत्पन्न ज्ञान रूपी अग्नि उन्हें इस प्रकार जला देती है जैसे सूखे ईंधन को आँच जला देती है। 

जिस शिव की आज्ञा से भीत हुआ सूर्य उदय होता है, वायु बढ़ती है, चन्द्रमा चमकता है, वह्नि जलती है, भूमि धारण करती है, आकाश, अवकाश देता है सो हे विप्रो ! 

उसी शिव का चिन्तन करो।


संसार रूपी विष से तप्त मनुष्यों को ज्ञान और ध्यान के बिना कोई उपाय नहीं है। 

जो सब द्वन्दों को सहने वाला, सरल स्वभाव, अमानी, बुद्धिमानी, शान्त, ईर्ष्या रहित, सब प्राणियों में समान भाव वाला, तीनों ऋणों से रहित, पूर्व जन्म में पुण्य करने वाला, श्रद्धा से गुरु आदि की सेवा करने वाला, स्वर्ग लोक में प्राप्त होकर वहाँ के भोगों को भोगकर वह मनुष्य भारतवर्ष में जन्म लेकर ब्रह्म को जानना वाला बनता है। 

हे ब्राह्मणो ! मल युक्त मनुष्य को ज्ञान प्राप्ति का वही क्रम है। 

इस लिए इसी मार्ग से दृढ़व्रत होकर सबका त्याग करके, संसार रूपी कालकूट से मुक्त होता है। 

इस प्रकार संक्षेप में मैंने ज्ञान योग महात्म्य और पाशुपत योग को कहा। 

हे विप्र ! 

यह शिव के द्वारा कहा ज्ञान हर किसी को नहीं देना चाहिए यह योगियों को देने योग्य है। 

जो इस प्रसंग को पढ़ेगा या सुनेगा वह संसार से मुक्त होगा और ब्रह्म सायुज्य को प्राप्त होगा। इसमें संशय नहीं।


क्रमशः शेष अगले अंक में...

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संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण 


श्रीअयोध्या - माहात्म्य :

सम्भेदतीर्थ, सीताकुण्ड, गुप्तहरि और चक्रहरि तीर्थ की महिमा.....! 

इस प्रकार स्तुति करनेपर प्रसन्नचित्त, वरदायक भगवान् गरुड़ध्वजने कृपायुक्त हो सम्पूर्ण देवताओंपर अपनी सुधावर्षिणी दृष्टिसे अमृतकी वर्षा की और विनीत देवताओंसे यह मधुर वचन कहा - 'देवताओ! 

मैं ध्यानसे तुम्हारा सारा अभिप्राय जान गया हूँ। 

मैं इस समय अयोध्या नगरमें जाकर तुम्हारे तेजकी वृद्धि और दैत्योंके उपद्रवकी शान्तिके लिये गुप्त रहकर उत्तम तपका अनुष्ठान करूँगा। 

तुमलोग भी शुद्धचित्त हो अयोध्यामें जाकर दैत्योंके विनाशके लिये तीव्र तपस्या करो।' 

ऐसा कहकर भगवान् गरुड़वाहन अन्तर्धान हो गये। 

उन्होंने अयोध्यामें आकर गुप्त रहकर देवताओंके तेजकी वृद्धिके लिये शीघ्र उत्तम तपस्या प्रारम्भ की। 




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इस लिये वे गुप्तहरिके नामसे प्रसिद्ध हुए। 

यहाँ पहले आये हुए भगवान् विष्णुके हाथसे सुदर्शन चक्र छूटकर गिरा था, अतः चक्रहरिके नामसे भगवान्‌की प्रसिद्धि हुई। 

उन दोनोंके दर्शनमात्रसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। 

भगवान् श्रीहरिके प्रभावसे देवता प्रबल तेजस्वी हो गये। 

उन्होंने युद्धमें दैत्योंको परास्त करके अपना स्थान प्राप्त कर लिया और परम आनन्दयुक्त हो वे अतिशय शोभा पाने लगे। 

तत्पश्चात् बृहस्पति आदि सब देवताओंने भगवान्‌को प्रणाम किया और उनके दर्शनके लिये उत्कण्ठित हो सब के सब अयोध्यामें आये। 

वहाँ पुनः प्रणाम करके हाथ जोड़कर एकाग्रचित्तसे श्रीहरिका ध्यान करते हुए उन्हींमें तन्मय हो गये। 

तब भगवान् विष्णुने उनसे कहा- 'देवताओ! 

मैं इस समय तुम्हारी कौन - सी इच्छा पूर्ण करूँ।' 

देवता बोले - जगत्पते! 

इस समय आपके द्वारा हमारा सब कार्य सिद्ध हो गया तथापि हमारी रक्षाके लिये आपको सदैव यहीं रहना चाहिये।


श्रीभगवान् बोले - देवताओ! यह कथा संसारमें प्रसिद्धिको प्राप्त होगी। 

समस्त प्राणियोंमें श्रेष्ठ जो पुरुष यहाँ उत्तम भक्तिसे पूजा, यज्ञ और जप आदिका अनुष्ठान करता है, वह परमगतिको प्राप्त होता है। 

जो जितेन्द्रिय मानव अपनी शक्तिके अनुसार यहाँ दान करता है, वह अनुपम स्वर्गलोकको पाकर फिर कभी शोक नहीं करता। 

यहाँ मेरी प्रसन्नताके लिये शुद्धचित्तसे गोदान करना चाहिये। 

जो मेरी भक्तिमें तत्पर होकर यहाँ आत्मशुद्धिके लिये स्नान करते हैं, उनकी मुक्ति उनके हाथमें ही है। 

भगवान् चक्रहरिके स्थानपर मेरी प्रीतिके लिये प्रयत्नपूर्वक उत्तम दान और जप-होमादि करना चाहिये। 

श्रेष्ठ देवताओ ! 

तुम भी यहाँ विधानसे यात्रा करो। 

इस गुप्तहरिके स्थानके निकट ही शुभ संगम है, जहाँ गोप्रतारघाटसे तीन योजन पश्चिम घाघरा नदीसे सरयूका संगम हुआ है। 

वहाँ विधिपूर्वक स्नान करके समस्त मनोरथोंकी सिद्धि करनेवाले भगवान् गुप्तहरिका दर्शन करना चाहिये।


ऐसा कहकर पीताम्बरधारी भगवान् विष्णु वहीं अन्तर्धान हो गये। 

देवता भी विधिपूर्वक यात्रा करके यत्नपूर्वक अयोध्यामें रहने लगे। 

तबसे यह स्थान पृथ्वीमें विख्यात हो गया। 

कार्तिककी पूर्णिमाको विशेषरूपसे यहाँकी वार्षिक यात्रा होती है। 

वहाँ संगमस्नान करके भगवान् गुप्तहरिका दर्शन किया जाता है। 

तत्पश्चात् सरयू और घाघराके मिले हुए जलके तटपर गोप्रतारतीर्थमें स्नान करके सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाले भगवान्‌की पूजा करनी चाहिये। 

मार्गशीर्ष शुक्ला द्वादशीको चक्रहरिकी यात्रा करनी चाहिये। 

जो इस प्रकार यात्रा करता है, वह भगवान् विष्णुके लोकमें आनन्दका अनुभव करता है।

क्रमशः...

शेष अगले अंक में जारी

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श्रीमहाभारतम् 

।। श्रीहरिः ।।
* श्रीगणेशाय नमः *
।। श्रीवेदव्यासाय नमः ।।

( आस्तीकपर्व )

त्रयोदशोऽध्यायः

जरत्कारु का अपने पितरों के अनुरोध से विवाह के लिये उद्यत होना......! 

शौनक उवाच

किमर्थं राजशार्दूलः स राजा जनमेजयः । 
सर्पसत्रेण सर्पाणां गतोऽन्तं तद् वदस्व मे ।। १ ।। 

निखिलेन यथातत्त्वं सौते सर्वमशेषतः । 
आस्तीकश्च द्विजश्रेष्ठः किमर्थं जपतां वरः ।। २ ।। 

मोक्षयामास भुजगान् प्रदीप्ताद् वसुरेतसः । 
कस्य पुत्रः स राजासीत् सर्पसत्रं य आहरत् ।। ३ ।। 

स च द्विजातिप्रवरः कस्य पुत्रोऽभिधत्स्व मे ।

शौनकजीने पूछा - सूतजी ! 

राजाओंमें श्रेष्ठ जनमेजयने किसलिये सर्पसत्रद्वारा सर्पोंका अन्त किया? 

यह प्रसंग मुझसे कहिये। सूतनन्दन ! 

इस विषयकी सब बातोंका यथार्थरूपसे वर्णन कीजिये। 

जप - यज्ञ करनेवाले पुरुषोंमें श्रेष्ठ विप्रवर आस्तीकने किसलिये सर्पोको प्रज्वलित अग्निमें जलनेसे बचाया और वे राजा जनमेजय, जिन्होंने सर्पसत्रका आयोजन किया था, किसके पुत्र थे ? 

तथा द्विजवंशशिरोमणि आस्तीक भी किसके पुत्र थे? यह मुझे बताइये ।। १ -३३ ।।

सौतिरुवाच

महदाख्यानमास्तीकं यथैतत् प्रोच्यते द्विज ।। ४ ।। 
सर्वमेतदशेषेण शृणु मे वदतां वर ।

उग्रश्रवाजीने कहा- ब्रह्मन् ! 

आस्तीकका उपाख्यान बहुत बड़ा है। 

वक्ताओंमें श्रेष्ठ ! 

यह प्रसंग जैसे कहा जाता है, वह सब पूरा - पूरा सुनो ।। ४३ ।।

शौनक उवाच

श्रोतुमिच्छाम्यशेषेण कथामेतां मनोरमाम् ।। ५ ।।

आस्तीकस्य पुराणर्षेर्बाह्मणस्य यशस्विनः ।

शौनकजीने कहा- सूतनन्दन ! 
पुरातन ऋषि एवं यशस्वी ब्राह्मण आस्तीककी इस मनोरम कथाको मैं पूर्णरूपसे सुनना चाहता हूँ ।। ५३ ।।

सौतिरुवाच

इतिहासमिमं विप्राः पुराणं परिचक्षते ।। ६ ।। 
कृष्णद्वैपायनप्रोक्तं नैमिषारण्यवासिषु । 
पूर्व प्रचोदितः सूतः पिता मे लोमहर्षणः ।। ७ ।। 

शिष्यो व्यासस्य मेधावी ब्राह्मणेष्विदमुक्तवान् । 
तस्मादहमुपश्रुत्य प्रवक्ष्यामि यथातथम् ।। ८ ।।

उग्रश्रवाजीने कहा - शौनकजी! 

ब्राह्मणलोग इस इतिहासको बहुत पुराना बताते हैं। 

पहले मेरे पिता लोमहर्षणजीने, जो व्यासजीके मेधावी शिष्य थे, ऋषियोंके पूछनेपर साक्षात् श्रीकृष्णद्वैपायन ( व्यास ) के कहे हुए इस इतिहासका नैमिषारण्यवासी ब्राह्मणोंके समुदायमें वर्णन किया था। 

उन्हींके मुखसे सुनकर मैं भी इसका यथावत् वर्णन करता हूँ ।। ६-८ ।।

इदमास्तीकमाख्यानं तुभ्यं शौनक पृच्छते । 
कथयिष्याम्यशेषेण सर्वपापप्रणाशनम् ।। ९ ।।

शौनकजी ! यह आस्तीक मुनिका उपाख्यान सब पापोंका नाश करनेवाला है। 
आपके पूछनेपर मैं इसका पूरा-पूरा वर्णन कर रहा हूँ ।। ९ ।।

आस्तीकस्य पिता ह्यासीत् प्रजापतिसमः प्रभुः । 
ब्रह्मचारी यताहारस्तपस्युग्रे रतः सदा ।। १० ।।

आस्तीकके पिता प्रजापतिके समान प्रभावशाली थे। 
ब्रह्मचारी होनेके साथ ही उन्होंने आहारपर भी संयम कर लिया था। 
वे सदा उग्र तपस्यामें संलग्न रहते थे ।। १० ।।

जरत्कारुरिति ख्यात ऊर्ध्वरता महातपाः । 
स यायावराणां प्रवरो धर्मज्ञः संशितव्रतः ।। ११ ।।  

कदाचिन्महाभागस्तपोबलसमन्वितः । 
चचार पृथिवीं सर्वां यत्रसायंगृहो मुनिः ।। १२ ।।

उनका नाम था जरत्कारु। 
वे ऊध्र्वरता और महान् ऋषि थे। 
यायावरों में उनका स्थान सबसे ऊँचा था। 
वे धर्मके ज्ञाता थे। एक समय तपोबलसे सम्पन्न उन महाभाग जरत्कारुने यात्रा प्रारम्भ की। 
वे मुनि - वृत्तिसे रहते हुए जहाँ शाम होती वहीं डेरा डाल देते थे ।। ११-१२ ।।

तीर्थेषु च समाप्लावं कुर्वन्नटति सर्वशः । 
चरन् दीक्षां महातेजा दुश्चरामकृतात्मभिः ।। १३ ।।

वे सब तीर्थोंमें स्नान करते हुए घूमते थे। 
उन महातेजस्वी मुनिने कठोर व्रतोंकी ऐसी दीक्षा लेकर यात्रा प्रारम्भ की थी, जो अजितेन्द्रिय पुरुषोंके लिये अत्यन्त दुःसाध्य थी ।। १३ ।।

क्रमशः...

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🌷🌷श्री लिंग महापुराण🌷🌷

पंचाक्षर महात्म्य वर्णन....! 
    
इस मन्त्र का वामदेव ऋषि पंक्ति छन्द, देवता साक्षात् मैं ही शिव हूँ, नकारादि पाँच बीज पंच भूतात्मक हैं। 

सर्वव्यापी अव्यय ( ॐ ) प्रणव उसकी आत्मा में हैं। 

हे देवि ! तुम इसकी शक्ति हो।

इस मन्त्र के द्वारा बताये गए विधि पूर्वक न्यास आदि भी करने चाहिए। 

हे शुभे ! 

इसके बाद मैं तुमसे मन्त्र का ग्रहण करना कहता हूँ।

सत्य परायण, ध्यान परायण गुरु को प्राप्त करके शुद्ध भाव से मन, वाणी और कर्म के द्वारा तथा अनेकों द्रव्यों द्वारा आचार्य ( गुरु ) को सन्तुष्ट करके विधि पूर्वक गुरु मुख से मन्त्र ग्रहण करना चाहिए। 

शुचि स्थान में, अच्छे ग्रह में, अच्छे काल में तथा नक्षत्र में तथा श्रेष्ठ योग में मन्त्र ग्रहण करना चाहिए। 

गृह में मन्त्र जपना समान जानना चाहिए। 
गौ के खिरक में सौ गुना और शिवजी के पास में अनन्त गुना मन्त्र का फल होता है।

जप यज्ञ से सौ गुना उपाँशु जप का होता है। 

जो मन्त्र वाणी से उच्चारण किया जाता है वह वाचिक कहा जाता है। 

जो धीरे - धीरे ओठों को कुछ हिलाते हुए जप किया जाता है उसे उपाँशु कहते हैं। 

केवल मन बुद्धि के द्वारा जप किया जाए और शब्दार्थ का, चिन्तन किया जाए वह मानसिक जप होता है। 

तीनों उत्तरोत्तर श्रेष्ठ हैं। 

जप यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं। 

वे विपुल भोगों को तथा मोक्ष को देते हैं, जप से जन्मान्तरों के पाप क्षय होते हैं, मृत्यु को भी जीत लिया जाता है। 

जप से सिद्धि प्राप्त होती है परन्तु सदाचारी पुरुष को सब सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं दुराचारी को नहीं, क्योंकि उसका साधन निष्फल है। 

अतः आचार ही परम धर्म है। 

आचार ही परम तप है तथा आचार ही परम विद्या है। 

आचार से ही परम गति है। 

आचारवान पुरुष ही सब फलों को पाता है तथा आचारहीन पुरुष संसार में निन्दित होता है। 

इस लिये सिद्धि की इच्छा वाले पुरुष को सब प्रकार से आचारवान होना चाहिए।

संन्ध्योपासना करने वाले पुरुष को सब कार्य तथा फल प्राप्त होते हैं। 

अतः काम, क्रोध, लोभ, मोह किसी प्रकार से भी संध्या को नहीं त्यागना चाहिए। 

संध्या न करने से ब्राह्मण ब्राह्मणत्व से नष्ट होता है। 

असत्य भाषण नहीं करना चाहिये। 

पर दारा, पर द्रव्य, पर हिंसा मन वाणी से भी नहीं करनी चाहिए। 

शूद्रान्न, बासा अन्न, गणान्न तथा राजान्न का सदा त्याग करना चाहिए। 

अन्न का परिशोधन अवश्य चाहिए।

बिना स्नान किये, बिना जप किये हुए, अग्नि कार्य न किए हुए भोजन न करें। 

रात्रि में तथा बिना दीपक के तथा पर्णपृष्ठ पर फूटे पात्र में तथा गली में, पतितों के पास भोजन नहीं करना चाहिए। 

शूद्र का शेष तथा बालकों के साथ भोजन न करे। 

शुद्धान्न तथा सुसंस्कृत भोजन का एकाग्र चित्त से भोजन करना चाहिए। 

शिव इसके भोक्ता हैं ऐसा ध्यान करना चाहिए। 

मुंह से, खड़ा होकर, बायें हाथ से, दूसरे के हाथ से जल नहीं पीना चाहिए। 

अकेला मार्ग में न चले, बाहुओं से नदी को पार न करे, कुआं को न लांघे, पीठ पीछे गुरु या देवता अथवा सूर्य को करके जप आदिक न करे।

अग्नि में पैरों को न तपावे, अग्नि में मल का त्याग न करे। 

जल में पैरों को न पीटे, जल में नाक, थूक आदि मल का त्याग न करे।

अज, स्वान, खर, ऊँट, मार्जार तथा तुष की धूलि का स्पर्श न करे। 

जिसके घर में बिल्ली रहती है वह अन्त्यज के घर के समान है। 

उस घर में ब्राह्मणों को भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि वह चाण्डाल के समान है।

पाद की हवा, सूप की हवा, प्राण और मुख की हवा मनुष्य के सुकृत का हरण करती है अतः इनसे सदा बचना चाहिए। 

पाग बाँध करके, कंचुकी बाँधकर, केश खोलकर, नंगे होकर, अपवित्र हाथों से, मैल धारण किये हुए जप नहीं करना चाहिए। 

क्रोध, मद, जंभाई लेना, थूकना, प्रलाप, कुत्ता का या नीच का दर्शन, नींद आना ये जप के द्वेषी हैं। 

इनके हो जाने पर सूर्य का दर्शन करना चाहिए तथा आचमन, प्राणायाम करके शेष जप करना चाहिए। 

बिना आसन पर बैठकर, सोकर, खाट पर बैठकर जप न करना चाहिए।

आसन पर बैठकर, रेशमी वस्त्र या बाघ चर्म या लकड़ी का या ताल पर्ण का आसन पर बैठकर मंत्रार्थ का विचार करते हुए जप करना चाहिए। 

त्रिकाल गुरु की पूजा करनी चाहिए। गुरु और शिव एक ही हैं। 

शिव विद्या और गुरु भक्ति के अनुसार फल मिलता है। 

श्री की इच्छा वाले पुरुष को गुरु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। 

गुरु के सम्पर्क से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं। 

गुरु के सन्तुष्ट होने पर सब पाप नष्ट होते हैं। 

ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र आदि सभी देव गुरु की कृपा से ही उस पर सन्तुष्ट होते हैं। 

अतः कर्म, मन, वाणी से गुरु को क्रोध नहीं करना चाहिए। 

गुरु के क्रोध से आयु, ज्ञान, क्रिया सब नष्ट होते हैं। 

उसके यज्ञ निष्फल होते हैं।

शिवजी कहते हैं जो इन्द्रियों का दमन करके पंचाक्षर मन्त्र का जप करता है वह पंच भूतों से विजय को प्राप्त करता है। 

मन का संयम करके जो चार लाख जप करता है वह सभी इन्द्रियों को विजय कर लेता है। 

जो पच्चीस लाख जप करता है वह पच्चीस तत्वों को जीत लेता है। 

बीज सहित संपुट सहित सौ लाख जप करने वाला पवित्र आत्मा परम गति को प्राप्त होकर मुझे पाता है। 

जो इस पंचाक्षर विधि को देव या पितृ कार्य में ब्राह्मणों से सुनेगा या सुनायेगा वह परम गति को प्राप्त होगा।

क्रमशः शेष अगले अंक में...

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संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण 

श्रीअयोध्या - माहात्म्य

सम्भेदतीर्थ, सीताकुण्ड, गुप्तहरि और चक्रहरि तीर्थ की महिमा......! 
  
भगवान् शिव बोले - जो संसारसमुद्रसे तारने और गरुड़जीको सुख देनेवाले हैं, घनीभूत मोहान्धकारका निवारण करनेके लिये चन्द्रस्वरूप हैं, उन भगवान् श्रीहरिको नमस्कार है। 

जहाँ ज्ञानमयी मणिकी प्रज्वलित शिखा प्रकाशित होती है तथा जो चित्तमें भगवत्संगरूपी सुधाकी वर्षा करनेवाली चन्द्रिकाके तुल्य है, मानसके उद्यानमें जो प्रवाहित होती है, उस भगवद्भक्तिरूपी मन्दाकिनीकी मैं शरण लेता हूँ। 

वह लीलापूर्वक उत्साहशक्तिको जाग्रत् करनेवाली तथा सम्पूर्ण जगत्में व्याप्त है। 

सात्त्विक भावोंकी पूर्वकोटि है। 

उसे ही वैष्णवी शक्ति कहते हैं। 

हवासे हिलते हुए कमलदलके पर्वके भीतर रहनेवाले पतनशील जन्तुओंकी भाँति पतनके गर्तमें गिरनेवाले प्राणियोंको स्थिरता देनेवाली एकमात्र श्रीहरिकी स्मृति ही है। 

हृदयकमलकी कलिकाको विकसित करनेवाली ज्ञानरूपी किरणमालाओंसे मण्डित सूर्यस्वरूप आप भगवान्‌को नमस्कार है। 

योगियोंकी एकमात्र गति आप संयमशील श्रीहरिको नमस्कार है। 

तेज और अन्धकार दोनोंसे परे विराजमान आप परमेश्वरको नमस्कार है। 

आप यज्ञस्वरूप, हविष्यके उपभोक्ता तथा ऋक्, यजु एवं सामवेदस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है। 

भगवती सरस्वतीके द्वारा गाये जानेवाले दिव्य सद्‌गुणोंसे विभूषित आप भगवान् विष्णुको नमस्कार है। 

आप शान्तस्वरूप, धर्मके निधि, क्षेत्रज्ञ एवं अमृतात्मा हैं, आपको नमस्कार है। 

आप साधकके योगकी प्रतिष्ठा तथा जीवके एकमात्र हेतु हैं, आपको नमस्कार है। 

आप घोरस्वरूप, मायाकी विधि तथा सहस्रों मस्तकवाले हैं, आपको नमस्कार है। 

आप योगनिद्रास्वरूप होकर शयन करते और अपने नाभिकमलसे उत्पन्न संसारकी सृष्टि रचते हैं, आपको नमस्कार है। 

आप जलस्वरूप एवं संसारकी स्थितिके कारण हैं, आपको नमस्कार है। 

आपके कार्योद्वारा आपकी शक्तिका अनुमान होता है। 

आप महाबली, सबके जीवन और परमात्मा हैं, आपको नमस्कार है। 

समस्त भूतोंके रक्षक और प्राण आप ही हैं, आप ही विश्व तथा उसके स्रष्टा ब्रह्मा हैं, आपको नमस्कार है। 

आप नृसिंहशरीर धारण करके दर्पयुक्त हो दैत्यका संहार करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही सबके पराक्रम हैं। 

आपका हृदय अनन्त है। 

आप सम्पूर्ण संसारके भावको ग्रहण करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। 

आप संसारके कारणभूत अज्ञानरूपी घोर अन्धकारका नाश करनेवाले हैं। 

आपका धाम अचिन्त्य है, आपको नमस्कार है। 

आप गूढ़रूपसे स्थित तथा अत्यन्त उद्वेगकारक रुद्र हैं, आपको नमस्कार है। 

आप शान्त हैं, जहाँ समस्त ऊर्मियाँ शान्त हो जाती हैं ऐसे कैवल्यपदको देनेवाले हैं। 

सम्पूर्ण भावपदार्थोंसे परे तथा सर्वमय हैं, आपको नमस्कार है। 

जो नील कमलके समान श्याम हैं और चमकते हुए केसरके समान सुशोभित कौस्तुभमणि धारण करते हैं तथा नेत्रोंके लिये रसायनरूप हैं, ऐसे आप भगवान् विष्णुको मैं प्रणाम करता हूँ।

क्रमशः...
शेष अगले अंक में जारी
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         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85 Web:Sarswatijyotish.com
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

एक बहुत ही सुंदर सी बात :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

एक बहुत ही सुंदर सी बात : 

वैज्ञानिकों ने आखिर मान ही लिया। 

आपकी सोच ही आपकी सबसे बड़ी बीमारी है। 

यह कोई आध्यात्मिक गुरु नहीं कह रहा। 

यह कोई फकीर या संत नहीं कह रहा। 

यह वह विज्ञान कह रहा है जो हर चीज का सबूत मांगता है। 

यह वह विज्ञान कह रहा है जो कहता था कि आपका दिमाग बदला नहीं जा सकता। 

आपका डीएनए आपकी किस्मत है। 

आज वही विज्ञान घुटनों पर है। 

आज वही विज्ञान मान रहा है कि जो बात हजारों साल पहले हमारे ऋषि मुनि कह गए थे वह सच है। 






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एक सवाल है मेरा आपसे और जवाब किसी और को नहीं अपने अंदर अपनी आत्मा को देना। 

क्या आप उसी तकलीफों में, उसी बीमारियों में, उसी पैसों की तंगी में, उसी टूटे हुए रिश्तों में सालों से फंसे हुए हैं ? 

क्या आपको लगता है कि आप एक ही सर्कल में एक ही चक्रव्यूह में घूम रहे हैं ? 

सुबह उठते हैं वही चिंता, वही डर, वही दर्द। 

रात को सोते हैं वही बोझ, वही अफसोस। 

क्या आपकी जिंदगी एक टूटी हुई रिकॉर्ड की तरह एक ही दुख का गाना बार - बार नहीं गा रही ? 

अगर जवाब हां है तो आज का यह वीडियो आपकी जिंदगी की दिशा बदल सकता है। 

आज हम उस विज्ञान की बात करेंगे जो आपकी जिंदगी को आपके शरीर को आपकी किस्मत को बदलने की चाबी आपके हाथों में देता है। 

आज हम बात करेंगे डॉक्टर जो डिस्पेंजा की। एक ऐसा नाम जिसने मॉडर्न मेडिसिन और अध्यात्म के बीच का पुल बना दिया है। 

एक ऐसा वैज्ञानिक जिसने साबित कर दिया कि रोग ठीक करना आपके ही हाथ में है। 

लेकिन डॉक्टर डिस्पेंजा को समझने से पहले हमें अपने सबसे बड़े दुश्मन को समझना होगा और आपका सबसे बड़ा दुश्मन कोई बाहर नहीं बैठा। 

वह आपके अंदर है। 

वह आपकी आदतें हैं। आपकी भावनाएं हैं। 

आपका अतीत है। 

सच तो यह है जैसा डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं। 

आपका शरीर आपके बीते हुए कल का नशा करता है। 

सोचिए इस बात की गहराई को। 

जैसे एक शराबी को शराब की तलब लगती है, जैसे एक ड्रग एडिक्ट को ड्रग्स की तड़प होती है, ठीक वैसे ही आपके शरीर को दुख, चिंता, डर और गुस्से की भावनाओं की लत लग चुकी है। 

आपने सालों से अपने शरीर को इन केमिकल्स का आदि बना दिया है। 

जब भी आप कोई पुरानी दुखद घटना याद करते हैं, आपका दिमाग फौरन स्ट्रेस, हॉर्मोन, कॉर्टिसोल और एड्रिनलिन छोड़ना शुरू कर देता है। 

आपका दिल तेज धड़कने लगता है। 

आपकी मांसपेशियां तन जाती हैं। 

आपका पाचन तंत्र ठप हो जाता है। 

आपका शरीर फाइट और फ्लाइट मोड में चला जाता है। 

अब मजेदार बात देखिए। 

आपने यह दिन में 50 बार किया, 100 बार किया, हजारों बार किया। 

अब आपके शरीर की कोशिकाओं, सेल्स को इन केमिकल्स की आदत पड़ गई है। 

अब उन्हें जिंदा रहने के लिए नॉर्मल महसूस करने के लिए यही केमिकल चाहिए। 

तो जैसे ही आप थोड़ा सा खुश महसूस करने की कोशिश करते हैं या कुछ नया करने की सोचते हैं, आपके शरीर की कोशिकाएं आपके दिमाग को सिग्नल भेजती हैं। 

अरे वो स्ट्रेस वाला केमिकल कहां है? 

हमें तो उसकी आदत है। 

जल्दी कुछ बुरा सोचो। 

जल्दी किसी पुरानी बात पर गुस्सा करो। 

जल्दी भविष्य की चिंता करो ताकि हमें हमारी रोज की खुराक मिल सके। 

और आपका दिमाग एक वफादार नौकर की तरह आपकी कोशिकाओं का आर्डर पूरा करता है। 

वह आपको फौरन आपके बॉस की कही कोई कड़वी बात याद दिलाएगा। 

आपके पार्टनर से हुई लड़ाई याद दिलाएगा। 

आपके बचपन का कोई घाव याद दिलाएगा। 

और जैसे ही आप वह सोचते हैं केमिकल रिलीज होता है और आपका शरीर कहता है आह अब जाकर आराम मिला। 

आप असल में अपनी भावनाओं के गुलाम बन चुके हैं। 

आप सोचते हैं कि आप अपनी सोच को कंट्रोल कर रहे हैं। 

लेकिन सच यह है कि आपका शरीर जो अतीत का आदि हो चुका है, वह आपकी सोच को कंट्रोल कर रहा है। 

आप अपने अतीत के भूत से नहीं बल्कि अपने अतीत केमिकल से बंधे हुए हैं। 

आप एक ही तरह से सोचते हैं। एक ही तरह से महसूस करते हैं। 

एक ही तरह के फैसले लेते हैं और फिर हैरान होते हैं कि आपकी जिंदगी बदल क्यों नहीं रही। 

यह वह जेल है जिसे आपने खुद बनाया है और इसकी दीवारें किसी ईंट या पत्थर की नहीं आपकी अपनी सोच की बनी है। 

इसी जेल का नक्शा बनाया डॉक्टर जो डिस्पेंजा ने और सिर्फ नक्शा नहीं बनाया। 

उस जेल को तोड़ने की चाबी भी दुनिया को दी। 

डॉक्टर डिस्पेंजा कोई साधारण डॉक्टर नहीं है। 

उनकी कहानी खुद एक चमत्कार है। 

सालों पहले एक एक्सीडेंट में उनकी रीड की हड्डी के छह वर्टिब्रा टूट गए थे। 

डॉक्टरों ने कहा कि वह शायद फिर कभी चल नहीं पाएंगे और उन्हें अपनी पीठ में स्टील की रड लगवानी पड़ेगी। 

डॉक्टर डिस्पेंजा ने मना कर दिया। उन्होंने एक क्रांतिकारी फैसला लिया। 

उन्होंने तय किया कि अगर दिमाग शरीर को बना सकता है तो दिमाग ही शरीर को ठीक भी कर सकता है। 

हफ्तों तक महीनों तक वह बिस्तर पर लेटे हुए सिर्फ एक ही काम करते थे। 

अपनी कल्पना में वह अपनी रीढ़ की हड्डी को दोबारा बनता हुआ जुड़ता हुआ और ठीक होता हुआ देखते थे। 

वह उस दर्द पर ध्यान नहीं देते थे जो उन्हें हो रहा था। वह उस सेहत पर ध्यान देते थे जो वह चाहते थे। 

और 10 हफ्तों के अंदर बिना किसी सर्जरी के जो डिस्पेंजा दोबारा अपने पैरों पर खड़े हो गए। 

यह चमत्कार था। 

लेकिन डॉक्टर डिस्पेंजा ने इसे चमत्कार नहीं विज्ञान माना और यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई यह समझने की कि इंसान के अंदर ऐसी कौन सी शक्ति है जो उसे बिना दवाइयों के भी ठीक कर सकती है। 

उन्होंने तीन ऐसे वैज्ञानिक सच दुनिया के सामने रखे जिन्होंने हमारी जिंदगी को देखने का नजरिया हमेशा के लिए बदल दिया। 

यह तीन सच वह चाबियां हैं जो आपके अतीत की जेल का ताला खोल सकती हैं। 

पहली चाबी न्यूरोप्लास्टिसिटी। 

आपका दिमाग गीली मिट्टी है। 

पत्थर की लकीर नहीं। 

सालों तक हमें यह पढ़ाया गया कि हमारा दिमाग 18 या 20 साल की उम्र तक विकसित हो जाता है और उसके बाद उसमें कोई बदलाव नहीं होता। 

यह सबसे बड़ा झूठ था जो विज्ञान ने हमें बताया। 

डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं कि आपका दिमाग कोई पत्थर की लकीर नहीं है बल्कि गीली मिट्टी है। 

आप हर दिन हर पल अपनी सोच से अपने ध्यान से इस पर नई लकीरें बना सकते हैं। 

नए रास्ते बना सकते हैं। 

विज्ञान की भाषा में इसे न्यूरोप्लास्टिसिटी कहते हैं। 

इस का एक सरल सा नियम है नर्व सेल्स दैट फायर टुगेदर वायर टुगेदर। 

यानी दिमाग की जो नसें एक साथ जलती हैं, वह आपस में मजबूती से जुड़ जाती हैं। 

इसे ऐसे समझिए। 

मान लीजिए आपके दिमाग में चिंता करने का एक रास्ता बना हुआ है। 

जैसे ही कोई छोटी सी समस्या आती है। 

आपकी सोच उस रास्ते पर ऐसे भागती है जैसे कोई हाईवे पर गाड़ी। 

क्या होगा? 

कहीं कुछ गलत ना हो जाए। 

मैं यह नहीं कर सकता। 

जितनी बार आप इस रास्ते पर चलते हैं, यह हाईवे उतना ही चौड़ा और पक्का होता जाता है। 

अब आप एक नया रास्ता बनाना चाहते हैं। 

विश्वास का, हिम्मत का, शांति का। जब आप पहली बार यह सोचने की कोशिश करते हैं कि सब ठीक हो जाएगा, मैं संभाल लूंगा। 

तो यह ऐसा है जैसे आप घने जंगल में पहली बार कुल्हाड़ी से रास्ता बना रहे हैं। 

इसमें मेहनत लगती है, मुश्किल होती है। दिमाग बार - बार पुराने हाईवे पर भागना चाहता है। 

लेकिन अगर आप रोज अभ्यास करें, रोज जानबूझकर उस नए रास्ते पर चलें तो धीरे - धीरे वह जंगल साफ होने लगता है। 

एक पगडंडी बनती है। 

फिर वह पगडंडी एक सड़क बनती है और एक दिन वह सड़क एक नया हाईवे बन जाती है। 

और पुराना चिंता वाला हाईवे इस्तेमाल ना होने की वजह से धीरे - धीरे घास - फूस और झाड़ियों से भर जाता है और गायब हो जाता है। 

यही है अपनी पर्सनालिटी को बदलना। 

यही है अपनी आदतों को बदलना। 

यह कोई मोटिवेशनल बात नहीं। 

यह न्यूरो साइंस है। 

आप सचमुच अपने दिमाग के तारों को दोबारा जोड़ सकते हैं। 

आप चिंता करने वाले इंसान से एक शांत इंसान बन सकते हैं। 

आप एक डरपोक इंसान से एक साहसी इंसान बन सकते हैं। 

आपको बस रोज उस नए रास्ते पर चलने का अनुशासन दिखाना होगा। 

आपकी हर सोच आपके दिमाग का आर्किटेक्चर बदल रही है। 

सवाल यह है कि आप बना क्या रहे हैं ? 

एक जेल या एक महल? 

दूसरी चाबी एपिजेनेटिक्स। 

आप अपने डीएनए के डायरेक्टर खुद हैं। 

यह दूसरी चाबी शायद विज्ञान की सबसे बड़ी खोज है और आपके लिए सबसे बड़ी खुशखबरी। 

हम सब एक डर में जीते हैं। मेरे पिता को शुगर थी तो मुझे भी होगी। 

मेरी मां को डिप्रेशन था तो यह मेरे खून में है। 

हम मानते हैं कि हमारा डीएनए, हमारी जेनेटिक कोडिंग, हमारी किस्मत की वह किताब है जिसे बदला नहीं जा सकता। 

डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं, यह आधा सच है। 

एपिजेनेटिक्स का विज्ञान यह साबित करता है कि आपका डीएनए एक ब्लूप्रिंट की तरह है जिसमें हजारों लाखों संभावनाएं लिखी हैं। 

लेकिन कौन सी संभावना हकीकत बनेगी इसका कंट्रोल आपके हाथ में है। 

इसे एक क्रिसमस ट्री की तरह समझिए। 

आपका डीएनए वो ट्री है और उस पर लगी हजारों लाइट्स आपके जींस हैं। 

अब कौन सी लाइट जलेगी और कौन सी बंद रहेगी। 

इस का स्विच आपके माहौल के पास है। 

आपकी भावनाओं के पास है। 

आपकी सोच के पास है। 

जब आप लगातार स्ट्रेस, डर और गुस्से में रहते हैं तो आप उन जींस के स्विच ऑन कर देते हैं जो बीमारियां पैदा करते हैं। 

आप सचमुच अपने शरीर को सिग्नल दे रहे हैं कि वह कैंसर के सेल्स बनाए। 

वो शुगर को ठीक से प्रोसेस ना करें। 

वह आपके जोड़ों में सूजन पैदा करें। और जब आप प्यार, कृतज्ञता, ग्रेटट्यूड और आनंद की स्थिति में होते हैं तो आप उन जींस के स्विच ऑन करते हैं जो सेहत बनाते हैं। 

जो शरीर की मरम्मत करते हैं जो आपको जवान रखते हैं। 

आप अपने शरीर को स्वस्थ रहने का सिग्नल दे रहे हैं। 

सोचिए यह कितनी बड़ी शक्ति है। 

आपके डीएनए में लिखा हो सकता है कि आपको आपके मां - बाप की बीमारी होगी। 

लेकिन डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं कि आप वह स्विच ऑफ कर सकते हैं। 

आप अपने जेनेटिक कोड के गुलाम नहीं हैं। 

आप उसके मास्टर हैं। 

आपकी भावनाएं आपके डीएनए को रीोग्रामिंग कर रही हैं। 

हर पल हर सांस के साथ आप अपनी किस्मत लिख रहे हैं। 

सेलुलर लेवल पर। 

जब आप सुबह उठकर कृतज्ञता महसूस करते हैं तो आप सिर्फ अच्छा महसूस नहीं कर रहे होते। 

आप अपने शरीर में हजारों अच्छे जींस को जगा रहे होते हैं और जब आप ट्रैफिक में किसी पर चिल्लाते हैं तो आप सिर्फ गुस्सा नहीं कर रहे होते। 

आप अपने अंदर बीमारी के जींस को एक्टिवेट कर रहे होते हैं। 

तो अगली बार जब आप अपनी भावनाओं को चुने तो याद रखिएगा आप सिर्फ अपना मूड नहीं अपनी सेहत चुन रहे हैं। 

तीसरी और सबसे शक्तिशाली चाबी द प्लासीबो इफेक्ट विश्वास का विज्ञान। 

अगर आपको अभी भी कोई शक है तो यह तीसरा सबूत आपके सारे शक मिटा देगा। 

प्लेसीबो इफेक्ट विज्ञान की दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य और

सबसे बड़ा चमत्कार है। 

प्लेसिबो का मतलब है मैं खुश करूंगा। 

मेडिकल ट्रायल्स में मरीजों के एक ग्रुप को असली दवाई दी जाती है और दूसरे ग्रुप को एक नकली गोली जो शक्कर या आटे की बनी होती है। 

लेकिन उन्हें बताया जाता है कि यह एक बहुत ही असरदार नई दवाई है और बार - बार हजारों स्टडीज में एक हैरान करने वाली चीज देखी गई है। 

जिन लोगों ने नकली गोली खाई उनमें से भी 30 % 40 % यहां तक कि 50 % लोग भी ठीक हो गए। 

उनकी बीमारियां सच में ठीक हो गई। 

उनके ब्रेन स्कैन्स ने दिखाया कि उनके दिमाग में वही बदलाव हुए जो असली दवाई खाने वालों के हुए थे। 

कुछ स्टडीज में तो मरीजों की फेक सर्जरी की गई। 

उन्हें बेहोश किया गया। 

उनकी चमड़ी पर छोटा सा कट लगाया गया और फिर सिल दिया गया और उन्हें बताया गया कि उनका बहुत सफल ऑपरेशन हुआ है और उनमें से ज्यादातर लोग ठीक हो गए। 

अब यहां रुक कर सोचिए। 

एक सवाल पूछिए अपने आप से। 





अगर एक नकली गोली, एक शक्कर की गोली, एक झूठा ऑपरेशन इंसान को ठीक कर सकता है तो असली शक्ति कहां थी ? 

गोली में या इंसान के विश्वास में ? 

जवाब साफ है। 

शक्ति हमेशा से इंसान के अंदर ही थी। 

उस गोली ने सिर्फ उस शक्ति को जगाने का काम किया। 

उस इंसान ने इतनी मजबूती से यह मान लिया कि वह ठीक होने वाला है कि उसके अपने शरीर ने वह सारे केमिकल्स, वह सारे हॉर्मोंस बनाने शुरू कर दिए जो उसे ठीक करने के लिए जरूरी थे। 

डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं आपका शरीर दुनिया की सबसे बेहतरीन फार्मेसी है। 

उसे हर बीमारी का इलाज पता है। 

वह हर वो केमिकल बना सकता है जो दुनिया की कोई भी दवाई नहीं बना सकती। 

बस उसे सही सिग्नल देने की जरूरत है। 

और वह सिग्नल है आपका अटूट विश्वास। 

प्लेसीबो आप हैं। 

वह शक्ति आपके अंदर है। 

आप हर पल उस शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

आपको किसी नकली गोली का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। 

आप सीधे अपने विश्वास की शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। 

अब आप कहेंगे कि यह सब बातें तो बहुत अच्छी हैं। 

लेकिन यह काम कैसे करता है? 

विज्ञान और अध्यात्म यहां आकर एक हो जाते हैं। 

डॉक्टर डिस्पेंजा आज जिस क्वांटम फील्ड की बात कर रहे हैं, हमारे आरशी मुनि उसे हजारों साल से ब्रह्मांड, परमात्मा की चेतना या आकाश कहते आए हैं। 

यह एक ऊर्जा और सूचना का समंदर है जिसमें सारी संभावनाएं एक साथ मौजूद हैं। 

आपका भविष्य जहां आप स्वस्थ हैं, वह संभावना भी उसी फील्ड में मौजूद है। 

आपका भविष्य जहां आप अमीर हैं। 

वह संभावना भी वहीं मौजूद है।

आपका भविष्य जहां आप खुश हैं, वह भी वहीं मौजूद है। 

अभी आप अपनी पांच इंद्रियों से जो दुनिया देख रहे हैं, वह सिर्फ एक हकीकत है। 

लेकिन क्वांटम फील्ड में अनंत हकीकतें एक साथ मौजूद हैं। 

आप अपनी पुरानी पर्सनालिटी से, अपनी पुरानी ऊर्जा से, अपनी पुरानी भावनाओं से, उस क्वांटम फील्ड से कनेक्ट करते हैं और अपनी जिंदगी में वही पुरानी चीजें खींचते रहते हैं। 

वही बीमारियां, वही गरीबी, वही दुख जिस पल आप अपनी ऊर्जा बदलते हैं। 

अपनी भावनाओं को बदलते हैं। 

आप एक नए सिग्नल को क्वांटम फील्ड में भेजते हैं। 

जब आप अपनी आंखें बंद करके अपने उस भविष्य को महसूस करते हैं जिसे आप जीना चाहते हैं तो आप सचमुच उस भविष्य की फ्रीक्वेंसी पर आ जाते हैं। 

डॉक्टर डिस्पेंजा जिसे ब्रेन और हार्ट कोहेरेंस कहते हैं। 

यानी आपके दिमाग की सोच और आपके दिल की भावना जब एक हो जाती है। 

हम उसे ही ध्यान की अवस्था कहते हैं। 

जब आपके विचार मैं स्वस्थ हूं और आपकी भावनाएं स्वास्थ्य की खुशी और कृतज्ञता एक साथ मिल जाते हैं तो आप एक शक्तिशाली चुंबक बन जाते हैं जो क्वांटम फील्ड से उस संभावना को अपनी ओर खींच लेता है। 

हमारे उपनिषदों ने कहा अहम ब्रह्मास्मि मैं ही ब्रह्मांड हूं। 

इस का यही मतलब था आपकी चेतना कोई छोटी मोटी चीज नहीं है। 

यह उस परमात्मा की चेतना का ही हिस्सा है। 

आपके अंदर वह शक्ति है कि आप अपनी चेतना से पदार्थ पर मैटर पर प्रभाव डाल सकें। 

यह कोई नई फिलॉसफी नहीं है। 

यह वह विज्ञान है जो हजारों साल पुरानी सच्चाई को आज अपनी भाषा में बयां कर रहा है। 

बुद्ध ने कहा था हम वह हैं जो हम सोचते हैं। 

हमारा सब कुछ हमारे विचारों के साथ उत्पन्न होता है। 

अपने विचारों से हम दुनिया बनाते हैं। 

आज न्यूरो साइंस इसी बात पर मोहर लगा रहा है। 

तो अब सवाल यह नहीं है कि क्या यह मुमकिन है? 

सवाल यह है कि आप इसे करने के लिए तैयार हैं ? 

क्या आप अपने अतीत के नशे को छोड़ने के लिए तैयार हैं ? 

क्योंकि इसमें मेहनत लगती है। 

यह एक दिन का काम नहीं है। 

आपको रोज सुबह उठकर यह फैसला करना होगा कि आप अपने अतीत की ऊर्जा में नहीं झेंगे। 

आपको ध्यान में बैठना होगा। 

आपको अपने शरीर को यह याद दिलाना होगा कि अब बॉस आप हैं। 

आपकी कोशिकाएं नहीं। 

जब आपका मन भागेगा पुरानी चिंताओं की तरफ तो आपको उसे एक जंगली घोड़े की तरह पकड़ कर वापस लाना होगा और कहना होगा नहीं अब हम वहां नहीं जाएंगे। 

अब हम अपने भविष्य की रचना करेंगे। 

तो चलिए अब बातों को काम में बदलते हैं। 

मैं चाहता हूं कि आप अभी इसी पल मेरे साथ एक छोटा सा अभ्यास करें। 

यह सिर्फ 2 मिनट का अभ्यास आपकी जिंदगी में बदलाव की पहली चिंगारी हो सकता है। 

अगर आप ड्राइव कर रहे हैं या कोई मशीन चला रहे हैं तो इसे मत कीजिएगा। 

लेकिन अगर आप एक सुरक्षित जगह पर हैं तो अपनी आंखें बंद कर लीजिए। 

बस दो मिनट के लिए। 

एक गहरी सांस अंदर लीजिए और धीरे - धीरे बाहर छोड़िए। 

अपने शरीर को ढीला छोड़ दीजिए। 

अब मैं चाहता हूं कि आप उस भविष्य के बारे में सोें जो आप सच में चाहते हैं। 

वह एक चीज क्या है जिसे आप सबसे ज्यादा बदलना चाहते हैं ? 

अपनी सेहत, अपने रिश्ते, अपनी आर्थिक स्थिति, किसी एक चीज को चुनिए। 

अब उसे सिर्फ सोचिए मत। उसे महसूस कीजिए। 

अगर आप अच्छी सेहत चाहते हैं, तो उस सेहत को अभी अपने शरीर में महसूस कीजिए। 

अपनी गहरी आसान सांसों को महसूस कीजिए। 

अपने शरीर में ऊर्जा को महसूस कीजिए। 

उस ताकत को महसूस कीजिए। 

शीशे में अपने स्वस्थ चमकते हुए चेहरे को देखिए। 

अगर आप दौलत चाहते हैं तो उस अमीरी की भावना को महसूस कीजिए। 

उस आजादी को महसूस कीजिए कि आपको किसी चीज का बिल चुकाने की चिंता नहीं है। 

उस खुशी को महसूस कीजिए जो आप अपने परिवार को कुछ खरीद कर देते हुए महसूस करेंगे। उस सुरक्षा और शांति को महसूस कीजिए। 

अगर आप एक प्यार भरा रिश्ता चाहते हैं तो उस प्यार को महसूस कीजिए। 

अपने पार्टनर का हाथ अपने हाथ में महसूस कीजिए। 

उनकी आंखों में अपने लिए प्यार देखिए। 

उस रिश्ते की गर्मजशी और अपनेपन को महसूस कीजिए। 

इसे पूरी तरह से महसूस कीजिए। 

इस भावना को अपने दिल में उतरने दीजिए। 

इतनी गहराई से महसूस कीजिए कि आप भूल जाएं कि यह अभी हकीकत नहीं है। 

क्योंकि सबसे बड़ा सच यह है आपके दिमाग को नकली और असली में फर्क नहीं पता। 

जब आप किसी डरावनी फिल्म को देखकर डरते हैं तो आपका दिमाग उसे असली मानकर स्ट्रेस हॉर्मोन छोड़ता है। 

ठीक उसी तरह जब आप अपने सुनहरे भविष्य को इतनी शिद्दत से महसूस करते हैं तो आपका दिमाग उसे भी असली मान लेता है और वह सारे केमिकल्स वो सारे न्यूरल कनेक्शन बनाने लगता है जो उस भविष्य से मेल खाते हैं। 

आप सचमुच अपने शरीर को अपने दिमाग को अपने डीएनए को अभी इसी पल धोखा दे रहे हैं। 

आप उसे भविष्य में जीना सिखा रहे हैं। 

और जब आप यह रोज करेंगे तो एक दिन आप अपनी आंखें खोलेंगे और पाएंगे कि जिस भविष्य को आप महसूस कर रहे थे वह आपकी हकीकत बन चुका है। 

अपनी आंखें खोल लीजिए। 

यह है वह काम, यह है वह साधना। 

रोज अपने आप को अपनी पुरानी पहचान से बड़ा बनाना। 

रोज अपनी समस्याओं से बड़ा महसूस करना। 

रोज उस इंसान की तरह सोचना, महसूस करना और काम करना जो आप बनना चाहते हैं। 

अंत में एक आखिरी और सबसे जरूरी सवाल जो आपको खुद से पूछना है। 

डॉक्टर डिस्पेंजा कहते हैं बदलाव इसलिए मुश्किल है क्योंकि हम अपने जाने पहचाने दुखों से अपनी जानी पहचानी तकलीफों से ज्यादा प्यार करते हैं बजाय एक अनजाने भविष्य को अपनाने के। 

कम से कम हमारे दुखों में एक अपनापन तो है, एक आदत तो है। 

तो आज आपको यह फैसला करना है। 

आप अपनी पुरानी जिंदगी को, अपनी पुरानी पहचान को, अपने पुराने दुखों को ज्यादा प्यार करते हैं या अपने आने वाले उस शानदार भविष्य से जिसे आपने अभी - अभी महसूस किया। 

फैसला आज आपको करना है। 

आप या तो अपनी यादों के भविष्य में जी सकते हैं या फिर अपने सपनों के भविष्य की रचना कर सकते हैं। 

चुनना आपको है। 

ब्लॉग पोस्ट हिंदी से जुड़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद। 

अगर इस  ब्लॉग पोस्ट ने आपके अंदर एक भी नई सोच की चिंगारी जलाई है तो इसे लाइक करें और उन लोगों के साथ शेयर करें जिनकी आप परवाह करते हैं। 

और कमेंट्स में जरूर बताएं कि आप आज अपनी जिंदगी को बदलने के लिए कौन सा पहला कदम उठाने वाले हैं। 

याद रखिए आप अपनी किस्मत के लेखक हैं। 

कलम आपके हाथ में है। 

आज एक नया आध्यात्मिकता का नशा की संगत में ब्लॉग पोस्ट अध्याय लिखवाने की मदद करने के
लिए। धन्यवाद।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Ramanatha Swami Covil Car Parking Ariya Strits , Nr. Maghamaya Amman Covil Strits , V.O.C. Nagar , RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

एक बहुत ही सुंदर सी कथा :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोप...