वानर राज बालि , हनुमान चालीसा :
वानर राज बालि से जुडी कुछ रोचक बातें ?
आइये जानते है रामायण के एक प्रमुख पात्र वानर राज बालि से जुडी कुछ रोचक और ख़ास बातें जैसे की आखिर क्यों वानर राज बाली नहीं जा सकता था ऋष्यमूक पर्वत पर ?,
आखिर क्यों उसने दबाया था रावण को अपनी बगल में ?,
मरते वक़्त कौनसी तीन ज्ञान की बातें बताई थी अंगद को? ….
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श्रीराम को सुग्रीव ने दी थी बालि के पराक्रम और शक्तियों की जानकारी जब रावण सीता का हरण करके लंका ले गया तो सीता की खोज करते हुए श्रीराम और लक्ष्मण की भेंट हनुमान से हुई।
ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान ने सुग्रीव और श्रीराम की मित्रता करवाई।
सुग्रीव ने श्रीराम को सीता की खोज में मदद करने का आश्वासन दिया।
इस के बाद सुग्रीव ने श्रीराम के सामने अपना दुख बताया कि किस प्रकार बालि ने बलपूर्वक मुझे ( सुग्रीव को ) राज्य से निष्कासित कर दिया है और मेरी पत्नी पर भी अधिकार कर लिया है।
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इसके बाद भी बालि मुझे नष्ट करने के लिए प्रयास कर रहा है।
इस प्रकार सुग्रीव ने श्रीराम के सम्मुख अपनी पीड़ा बताई तो भगवान ने सुग्रीव को बालि के आतंक से मुक्ति दिलाने का भरोसा जताया।
जब श्रीराम ने सुग्रीव के शत्रु बालि को खत्म करने की बात कही थी तो सुग्रीव ने उसके पराक्रम और शक्तियों की जानकारी श्रीराम को दी।
सुग्रीव ने श्रीराम को बताया कि बालि सूर्योदय से पहले ही पूर्व, पश्चिम और दक्षिण के सागर की परिक्रमा करके उत्तर तक घूम आता है।
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बालि बड़े-बड़े पर्वतों पर तुरंत ही चढ़ जाता है और बलपूर्वक शिखरों को उठा लेता है।
इतना ही नहीं, वह इन शिखरों को हवा में उछालकर फिर से हाथों में पकड़ लेता है।
वनों में बड़े - बड़े पेड़ों को तुरंत ही तोड़ डालता है।
बालि ने दुंदुभि नामक असुर का किया था वध सुग्रीव ने बताया कि एक समय दुंदुभि नामक असुर था।
वह बहुत ही शक्तिशाली और मायावी था।
इस असुर की ऊंचाई कैलाश पर्वत के समान थी और वह किसी भैंसे की तरह दिखाई देता था।
दुंदुभि एक हजार हाथियों का बल रखता था।
अपार बल के कारण वह घमंड से भर गया था।
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इसी घमंड में वह समुद्र देव के सामने पहुंच गया और युद्ध के लिए उन्हें ललकारने लगा।
तब समुद्र ने दुंदुभि से कहा कि मैं तुमसे युद्ध करने में असमर्थ हूं।
गिरिराज हिमालय तुमसे युद्ध कर सकते हैं, अत: तुम उनके पास जाओ।
इस के बाद वह हिमालय के पास युद्ध के लिए पहुंच गया।
तब हिमालय ने दुंदुभि को बालि से युद्ध करने की बात कही।
इस कारण ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं जाता था बालि सुग्रीव ने बताया कि बालि देवराज इंद्र का पुत्र है, इस कारण वह परम शक्तिशाली है।
जब दुंदुभि ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा तो उसने विशालकाय दुंदुभि को बुरी तरह - तरह मार - मारकर परास्त कर दिया था।
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जब पर्वत के आकार का भैंसा दुंदुभि मारा गया तो बालि ने दोनों हाथों से उठाकर उसके शव को हवा में फेंक दिया।
हवा में उड़ते हुए शव से रक्त की बूंदें मतंग मुनि के आश्रम में जा गिरीं।
इन रक्त की बूंदों से मतंग मुनि का आश्रम अपवित्र हो गया।
इस पर क्रोधित होकर मतंग मुनि ने श्राप दिया कि जिसने भी मेरे आश्रम और इस वन को अपवित्र किया है, वह आज के बाद इस क्षेत्र में न आए।
अन्यथा उसका नाश हो जाएगा।
मतंग मुनि के श्राप के कारण ही बालि ऋष्यमूक पर्वत क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता था।
मरते वक़्त बालि ने बताई थी अंगद को तीन काम की बातें रामायण में जब श्रीराम ने बालि को बाण मारा तो वह घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा था।
इस अवस्था में जब पुत्र अंगद उसके पास आया तब बालि ने उसे ज्ञान की कुछ बातें बताई थीं।
ये बातें आज भी हमें कई परेशानियों से बचा सकती हैं।
यहां जानिए ये बातें कौन सी हैं…!
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मरते समय बालि ने अंगद से कही ये बातें....!
बालि ने कहा- देशकालौ भजस्वाद्य क्षममाण: प्रियाप्रिये।
सुखदु:खसह: काले सुग्रीववशगो भव।।
इस श्लोक में बालि ने अगंद को ज्ञान की तीन बातें बताई हैं…!
1. देश काल और परिस्थितियों को समझो।
2. किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना चाहिए।
3. पसंद - नापसंद, सुख - दु:ख को सहन करना चाहिए और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
बालि ने अंगद से कहा ये बातें ध्यान रखते हुए अब से सुग्रीव के साथ रहो।
आज के समय में भी यदि इन बातों का ध्यान रखा जाए तो हर इंसान बुरे समय से बच सकता है।
अच्छे - बुरे हालात में शांति और धैर्य के साथ आचरण करना चाहिए।
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ये है बालि वध का प्रसंग जब बालि श्रीराम के बाण से घायल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, तब बालि में श्रीराम से कहा कि आप धर्म की रक्षा करते हैं तो मुझे ( बालि को ) इस प्रकार बाण क्यों मारा?
इस प्रश्न के जवाब में श्रीराम ने कहा कि छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी और पुत्री, ये सब समान होती हैं और जो व्यक्ति इन्हें बुरी नजर से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता है।
बालि, तूने अपने भाई सुग्रीव की पत्नी पर बुरी नजर रखी और सुग्रीव को मारना चाहा।
इस पाप के कारण तुझे बाण मारा है।
इस जवाब से बालि संतुष्ट हो गया और श्रीराम से अपने किए पापों की क्षमा याचना की।
इसके बाद बालि ने अगंद को श्रीराम की सेवा में सौंप दिया।
इस के बाद बालि ने प्राण त्याग दिए। बाली की पत्नी तारा विलाप करने लगी।
तब श्रीराम ने तारा को ज्ञान दिया कि यह शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से मिलकर बना है।
बालि का शरीर तुम्हारे सामने सोया है, लेकिन उसकी आत्मा अमर है तो विलाप नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार समझाने के बाद तारा शांत हुई।
इसके बाद श्रीराम में सुग्रीव को राज्य सौंप दिया।
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बाली ने रावण को दबाया था अपनी कांख में पृथ्वी तल के समस्त वीर योद्धाओं को परास्त करता हुआ रावण बालि से युद्ध करने के लिए गया।
उस समय बालि सन्ध्या के लिए गया हुआ था।
वह प्रतिदिन समस्त समुद्रों के तट पर जाकर सन्ध्या करता था।
बालि के मन्त्री तार के बहुत समझाने पर भी रावण बालि से युद्ध करने की इच्छा से ग्रस्त रहा।
वह सन्ध्या में लीन बालि के पास जाकर अपने पुष्पक विमान से उतरा तथा पीछे से जाकर उसको पकड़ने की इच्छा से धीरे - धीरे आगे बढ़ा।
बालि ने उसे देख लिया था किंतु उसने ऐसा नहीं जताया तथा सन्ध्या करता रहा।
रावण की पदचाप से जब उसने जान लिया कि वह निकट है तो तुरंत उसने रावण को पकड़कर बगल में दबा लिया और आकाश में उड़ने लगा।
बारी - बारी में उसने सब समुद्रों के किनारे सन्ध्या की।
राक्षसों ने भी उसका पीछा किया।
रावण ने स्थान - स्थान पर नोचा और काटा किंतु बालि ने उसे नहीं छोड़ा।
सन्ध्या समाप्त करके किष्किंधा के उपवन में उसने रावण को छोड़ा तथा उसके आने का प्रयोजन पूछा।
रावण बहुत थक गया था किंतु उसे उठाने वाला बालि तनिक भी शिथिल नहीं था।
उससे प्रभावित होकर रावण ने अग्नि को साक्षी बनाकर उससे मित्रता की।
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हनुमान चालीसा का ज्ञान वर्तमान परिपेक्ष में...!
कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है।
पर क्या आप जानते हैं कि श्री हनुमान चालीसा में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है।
माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना बचपन में की थी।
हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की।
अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं।
हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई।
हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं।
आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या - क्या बदलाव ला सकते हैं….!
शुरुआत गुरु से…!
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हनुमान चालीसा की शुरुआत गुरु से हुई है…
श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि।
अर्थ - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं।
गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है।
जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे नहीं बढ़ा सकता। गुरु ही आपको सही रास्ता दिखा सकते हैं।
इस लिए तुलसीदास ने लिखा है कि गुरु के चरणों की धूल से मन के दर्पण को साफ करता हूं।
आज के दौर में गुरु हमारा सलाहकार भी हो सकता है, अधिकारी भी।
माता - पिता को पहला गुरु ही कहा गया है।
समझने वाली बात ये है कि गुरु यानी अपने से बड़ों का सम्मान करना जरूरी है।
अगर तरक्की की राह पर आगे बढ़ना है तो विनम्रता के साथ बड़ों का सम्मान करें।
वेशभूषा का रखें ख्याल…!
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चालीसा की चौपाई है....!
कंचन बरन बिराज सुबेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा।
अर्थ - आपके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला है, सुवेष यानी अच्छे वस्त्र पहने हैं, कानों में कुंडल हैं और बाल संवरे हुए हैं।
आज के दौर में आपकी तरक्की इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप रहते और दिखते कैसे हैं। पहला प्रभाव अच्छा होना चाहिए।
अगर आप बहुत गुणवान भी हैं लेकिन अच्छे से नहीं रहते हैं तो ये बात आपके करियर को प्रभावित कर सकती है।
इसलिए, रहन-सहन और वेशभूसा हमेशा अच्छा रखें।
आगे पढ़ें - हनुमान चालीसा में छिपे प्रबंध के सूत्र...!
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सिर्फ डिग्री काम नहीं आती....!
बिद्यावान गुनी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर।
अर्थ - आप विद्यावान हैं, गुणों की खान हैं, चतुर भी हैं।
राम के काम करने के लिए सदैव आतुर रहते हैं।
आज के दौर में एक अच्छी डिग्री होना बहुत जरूरी है।
लेकिन चालीसा कहती है सिर्फ डिग्री होने से आप सफल नहीं होंगे।
विद्या हासिल करने के साथ आपको अपने गुणों को भी बढ़ाना पड़ेगा, बुद्धि में चतुराई भी लानी होगी।
हनुमान में तीनों गुण हैं, वे सूर्य के शिष्य हैं, गुणी भी हैं और चतुर भी।
अच्छे श्रोता बनें...!
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प्रभु चरित सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया।
अर्थ -आप राम चरित यानी राम की कथा सुनने में रसिक है, राम, लक्ष्मण और सीता तीनों ही आपके मन में वास करते हैं।
जो आपकी प्रायोरिटी है, जो आपका काम है, उसे लेकर सिर्फ बोलने में नहीं, सुनने में भी आपको रस आना चाहिए।
अच्छा श्रोता होना बहुत जरूरी है।
अगर आपके पास सुनने की कला नहीं है तो आप कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते।
कहां, कैसे व्यवहार करना है ये ज्ञान जरूरी है...!
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सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा।
अर्थ - आपने अशोक वाटिका में सीता को अपने छोटे रुप में दर्शन दिए।
और लंका जलाते समय आपने बड़ा स्वरुप धारण किया।
कब, कहां, किस परिस्थिति में खुद का व्यवहार कैसा रखना है, ये कला हनुमानजी से सीखी जा सकती है।
सीता से जब अशोक वाटिका में मिले तो उनके सामने छोटे वानर के आकार में मिले, वहीं जब लंका जलाई तो पर्वताकार रुप धर लिया।
अक्सर लोग ये ही तय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें कब किसके सामने कैसा दिखना है।
अच्छे सलाहकार बनें.....!
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तुम्हरो मंत्र बिभीसन माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना।
अर्थ - विभीषण ने आपकी सलाह मानी, वे लंका के राजा बने ये सारी दुनिया जानती है।
हनुमान सीता की खोज में लंका गए तो वहां विभीषण से मिले। विभीषण को राम भक्त के रुप में देख कर उन्हें राम से मिलने की सलाह दे दी।
विभीषण ने भी उस सलाह को माना और रावण के मरने के बाद वे राम द्वारा लंका के राजा बनाए गए। किसको, कहां, क्या सलाह देनी चाहिए, इसकी समझ बहुत आवश्यक है। सही समय पर सही इंसान को दी गई सलाह सिर्फ उसका ही फायदा नहीं करती, आपको भी कहीं ना कहीं फायदा पहुंचाती है।
आत्मविश्वास की कमी ना हो...!
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।
अर्थ - राम नाम की अंगुठी अपने मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई अचरज नहीं है।
अगर आपमें खुद पर और अपने परमात्मा पर पूरा भरोसा है तो आप कोई भी मुश्किल से मुश्किल टॉस्क को आसानी से पूरा कर सकते हैं।
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आज के युवाओं में एक कमी ये भी है कि उनका भरोसा बहुत टूट जाता है।
आत्मविश्वास की कमी भी बहुत है।
प्रतिस्पर्धा के दौर में आत्मविश्वास की कमी होना खतरनाक है।
अपनेआप पर पूरा भरोसा रखें।
पंडारामा प्रभु राज्यगुरु