सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता, किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश
।। एक छोटी सी मार्मिक कहानी ।।
योगिनी एकादशी के दिन यहां हिमाचल के पहाड़ों में योगिराज अमर ज्योति जी से उनके भव्य आश्रम में मधुर मिलन हुआ!ये हिमालय में दो हज़ार वर्ष से जीवित प्रसिद्ध संतश्री महावतार बाबाजी के अनुयायी हैं!
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पूरे विश्व में विभिन्न धर्मों के साधक इनसे जुड़े हैं!
इन का जन्म कब हुआ,कहां हुआ,इनके मातापिता कौन थे...!
ये कोई नहीं जानता!ये बताते हैं कि जब इन्होंने होश संभाला,तो स्वयं को महावतार बाबाजी की गोद में पाया!
ये अन्न नहीं खाते और ये निद्रा विजयी हैं!
पुरानी फिल्मों के कई सुप्रसिद्ध गाने इन्होने लिखे थे,जैसे "तू प्यार का सागर है","जोत से जोत जलाते चलो","ए मेरे वतन के लोगों" और "हमको मन की शक्ति देना!"आदि !
"मुझे देखकर इन्होने इशारे से बुलाकर अपने पास बैठाया,और पूछा,"यहीं रुके हो ना??"
मैंने कहा,"नहीं,शोभा जी के यहां रुका हूं!"
"इन्होने कहा,"यहां क्यों नहीं रुके??"
मैंने कहा,"आपसे परिचय नहीं था!"
ये बोले,"परिचय का क्या है!?!
जो दिल मुझमें धड़क रहा है,वही आपमें धड़क रहा है!"
बातों बातों में इनसे पता चला कि ये पूज्य नीम करौली बाबा के साथ रहे हैं!
तभी किसी ने इन्हें बता दिया कि मैं अच्छा गा लेता हूं!
तब इन्होंने मुझसे कुछ सुनाने को कहा!
मैंने भजन सुनाया,"वहां मिलेंगे रास रचाते राधा के संग श्याम रे!"
इन्होने प्रसन्न होकर कहा,"अति सुन्दर!" फिर भक्तों ने इनसे भी कुछ सुनाने को कहा,तो इन्होने धीर गंभीर वाणी में अपना स्वरचित सुंदर भजन सुनाया,"प्रभु मेरे जीवन को कुंदन बना दो,कोई खोट मुझमें रहने ना पाए!"
इस भजन के सारगर्भित शब्दों से मेरे हृदय के तार झंकृत हो गए!
इन्होंने मुझे खूब आशीर्वाद दिया!
कुबेर का घर :
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वह साधु विचित्र स्वभाव का था।
वह बोलता कम था।
उसके बोलने का ढंग भी अजब था।
माँग सुनकर सब लोग हँसते थे।
कोई चिढ़ जाता था, तो कोई उसकी माँग सुनी - अनुसनी कर अपने काम में जुट जाता था।
साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुकारता था।
'माई ! अंजुलि भर मोती देना.. ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा.. भला करेगा।'
साधु की यह विचित्र माँग सुनकर स्त्रियाँ चकित हो उठती थीं।
वे कहती थीं - 'बाबा ! यहाँ तो पेट के लाले पड़े हैं।
तुम्हें इतने ढेर सारे मोती कहाँ से दे सकेंगे।
किसी राजमहल में जाकर मोती माँगना।
जाओ बाबा, जाओ... आगे बढ़ो...।'
साधु को खाली हाथ गाँव छोड़ता देख एक बुढ़िया को उस पर दया आई।
बुढ़िया ने साधु को पास बुलाया।
उसकी हथेली पर एक नन्हा सा मोती रखकर वह बोली - साधु महाराज !
मेरे पास अंजुलि भर मोती तो नहीं हैं।
नाक की नथनी टूटी तो यह एक मोती मिला है।
मैंने इसे संभालकर रखा था।
यह मोती ले लो।
अपने पास एक मोती है, ऐसा मेरे मन को गर्व तो नहीं होगा।
इस लिए तुम्हें सौंप रही हूँ।
कृपा कर इसे स्वीकार करना।
हमारे गाँव से खाली हाथ मत जाना।'
बुढ़िया के हाथ का नन्हा सा मोती देखकर साधु हँसने लगा।
उसने कहा 'माताजी !
यह छोटा मोती मैं अपनी फटी हुई झोली में कहाँ रखूँ ?
इसे अपने ही पास रखना।'
ऐसा कहकर साधु उस गाँव के बाहर निकल पड़ा।
दूसरे गाँव में आकर साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुकारने लगा..
'माताजी प्याली भर मोती देना। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा।'
साधु की यह विचित्र माँग सुनकर वहाँ की स्त्रियाँ भी अचंभित हो उठीं।
वहाँ भी साधु को प्याली भर मोती नहीं मिले।
अंत में निराश होकर वह वहाँ से भी खाली हाथ जाने लगा।
उस गाँव के एक छोर में किसान का एक ही घर था।
वहाँ मोती माँगने की चाह उसे घर के सामने ले गई।
माताजी ! प्याली भर मोती देना.. ईश्वर तुम्हारा भला करेगा।
साधु ने पुकार दी।
किसान सहसा बाहर आय।
उसने साधु के लिए ओसारे में चादर बिछाई।
और साधु से विनती की..
'साधु महाराज पधारिए... विराजमान होइए।'
किसान ने साधु को प्रणाम किया और मुड़कर पत्नी को आवाज दी..
लक्ष्मी, बाहर साधु जी आए हैं।
इनके दर्शन लेना।
किसान की पत्नी तुरंत बाहर आई।
उसने साधुजी के पाँव धोकर दर्शन किए।
'देख लक्ष्मी ! साधुजी बहुत भूखे हैं।
इनके भोजन की तुरंत व्यवस्था करना।
अंजुलि भर मोती लेकर पीसना और उसकी रोटियाँ बनाना।
तब तक मैं मोतियों की गागर लेकर आता हूँ।'
ऐसा कहकर वह किसान खाली गागर लेकर घर के बाहर निकला।
कुछ समय पश्चात किसान लौट आया।
तब तक लक्ष्मी ने भोजन बनाकर तैयार कर रखा था।
साधु ने पेट भर भोजन किया।
वह प्रसन्न हुआ।
उसने हँसकर किसान से कहा...!
बहुत दिनों बाद कुबेर के घर का भोजन मिला है।
मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
अब तुम्हारी याद आती रहे, इस लिए मुझे कान भर मोती देना।
मैं तुम दंपति को सदैव याद करूँगा।'
उस पर किसान ने हँसकर कहा - 'साधु महाराज !
मैं अनपढ़ किसान आपको कान भर मोती कैसे दे सकता हूँ।
आप ज्ञान संपन्न हैं।
इस कारण हम दोनों आपसे कान भर मोतियों की अपेक्षा रखते हैं।'
साधु ने आँखें भींचकर कहा - 'नहीं किसान राजा, तुम अनपढ़ नहीं हो।
तुम तो विद्वान हो। इस कारण तुम मेरी इच्छा पूरी करने में सक्षम रहे।
मेरी विचित्र माँग पूरी होने तक मैं हमेशा भूखा-प्यासा हूँ।
जब तुम जैसा कोई कुबेर मिल जाता है तो पेट भर भोजन कर लेता हूँ।'
साधु ने किसान की ओर देखा - जो फसल के दानों, पानी की बूँदों और उपदेश के शब्दों को मोती समझता है।
वही मेरी दृष्टि से सच्चा कुबेर है।
मैं वहाँ पेट भरकर भोजन करता हूँ।
फिर वह भोजन दाल - रोटी हो या चटनी रोटी।
प्रसन्नता का नमक उसमें स्वाद भर देता है।
जहाँ आतिथ्य का वास है।
वहाँ मुझे भोजन अवश्य मिल जाता है।
अच्छा अब मुझे चलने की अनुमति देना।
ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे।'
किसान दंपत्ति को आशीर्वाद देकर साधु आगे चल पड़ा।
कहा भी है....!
पृथ्वियां त्रीणि रत्नानि जलमन्नंसुभाषितम्।
मूढ़ै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञाभिधीयते।।
पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं।
जल, अन्न और सुभाषित।
मूर्ख लोग ही पत्थर के टुकड़ों हीरे, मोती माणिक्य आदि को ही रत्न कहते हैं🙏
जय जय श्री राम🚩
🙏जय श्री कृष्ण 🙏🏻
पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:-
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science)
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
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आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद..
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏