https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: ફેબ્રુઆરી 2021

। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा ---।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा  एक अनजाने सत्य से परिचय---।


। श्री रामचरित्रमानस प्रर्वचन ।।

लक्ष्मण जी के त्याग की अदभुत कथा  एक अनजाने सत्य से परिचय--- 

-हनुमानजी की रामभक्ति की गाथा संसार में भर में गाई जाती है।



लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी ।

लक्ष्मणजी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है ।

अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया -

भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा॥


अगस्त्य मुनि बोले- 

श्रीराम बेशक रावण और कुंभकर्ण प्रचंड वीर थे ।

लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था ॥ 

उसने अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध किया था और बांधकर लंका ले आया था॥

ब्रह्मा ने इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को मांगा तब इंद्र मुक्त हुए थे ॥

 लक्ष्मण ने उसका वध किया इस लिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ॥

श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे॥ 

फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं ।

कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था ॥

अगस्त्य मुनि ने कहा- 

प्रभु इंद्रजीत को वरदान था ।

कि उसका वध वही कर सकता था।

जो चौदह वर्षों तक न सोया हो ।

जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो ॥

श्रीराम बोले-  

परंतु मैं बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल - फूल देता रहा ॥ 

मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था ।

बगल की कुटी में लक्ष्मण थे।

फिर सीता का मुख भी न देखा हो ।

और चौदह वर्षों तक सोए न हों ।

ऐसा कैसे संभव है ॥

अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ 

प्रभु से कुछ छुपा है भला! 

दरअसल.....!

सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे लेकिन प्रभु चाहते थे ।

कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर - घर में हो ॥ 

अगस्त्य मुनि ने कहा -  

क्यों न लक्ष्मणजी से पूछा जाए ॥

लक्ष्मणजी आए प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-

सच कहिएगा॥

प्रभु ने पूछा- 

हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?

 फल दिए गए फिर भी अनाहारी कैसे रहे ? 

और 14 साल तक सोए नहीं ?

 यह कैसे हुआ ?

लक्ष्मणजी ने बताया- 

भैया जब हम भाभी को तलाशते ऋष्यमूक पर्वत गए तो सुग्रीव ने हमें उनके आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा ॥

आपको स्मरण होगा मैं तो सिवाए उनके पैरों के नुपूर के कोई आभूषण नहीं पहचान पाया था ।

क्योंकि मैंने कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नही।

चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में सुनिए -  

आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे ।

मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था ।

निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥

निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी ।

लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी ॥ 

आपको याद होगा राज्याभिषेक के समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था.

अब मैं 14 साल तक अनाहारी कैसे रहा! 

मैं जो फल - फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे ।

एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ 

आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- 

फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खाता कैसे?

मैंने उन्हें संभाल कर रख दिया॥

 सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ 

प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में रख दिया॥ 

फलों की गिनती हुई ।

सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे॥

 प्रभु ने कहा-

इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन तो आहार लिया था?

लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया - उन सात दिनों में फल आए ही नहीं ।


1. जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली, हम निराहारी रहे॥  

2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने कौन जाता॥ 

3. जिस दिन समुद्र की साधना कर आप उससे राह मांग रहे थे ।।

4. जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे ।।

5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे ।।

6. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी ।।

7. और जिस दिन आपने रावण-वध किया ॥

इन दिनों में हमें भोजन की सुध कहां थी॥ 

विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था ।

बिना आहार किए जीने की विद्या ।

उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका जिससे इंद्रजीत मारा गया ॥

भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की तपस्या के बारे में सुनकर उन्हें ह्रदय से लगा लिया । 

जीवन में तीन बातें बड़ी महत्वपूर्ण हैं



प्रतीक्षा - परीक्षा - समीक्षा। 

जीव भजन करे, साधना करे, सत्कर्म करे, पुरुषार्थ करे, कभी ना कभी फल जरूर मिलेगा। 

प्रभु कृपा जरूर करेंगे भले प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। 

दूसरी बात है परीक्षा - संसार की परीक्षा करते रहना। 

जितना जल्दी जान लोगे इससे मुक्त हो जाओगे। 

जानना ही मुक्त होने का मार्ग है। 

जगत में सर्वत्र बहुत विषाद है। 

प्रभु की और संत की शरणागति ही विषाद से प्रसाद की ओर ले जाती है। 

तीसरी बात है समीक्षा - अपनी निरंतर समीक्षा करते रहो। 

स्वयं का सुधार ही  उद्धार कर सकता है। 

भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक समृद्धि स्वयं के द्वारा ही प्राप्त होगी। 

एक ज्ञानी और महान व्यक्ति आत्मचिंतन करते- करते शिखर पर पहुँच जाता है। 

वहीं अज्ञानी स्वयं की बजाय दूसरों के गुण-दोष का 

चिंतन ही करते रहने के कारण उपलब्धियों से वंचित रह जाता है।

श्रीमद्भागवत प्रवचन युग धर्म और जीवन की चाणक्य नीति

  || युग - धर्म ||
 
पहाड़ की तराई में एक गांव है कीरतपुर। उस गांव में एक बुढ़िया रहती थी। 

उसका एक बेटा था। 

जिसका विवाह उसने थोड़ी दूर बसे दूसरे गांव धर्मपुर में कर दिया था। 

एक दिन बुढ़िया ने अपने बेटे रघुवीर से कहा, “बेटे, अब मुझसे घर का कामकाज नहीं होता। 

तू जाकर बहू को लिवा ला। 

मुझे बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा।” 

रघुवीर मां की बात सुन अपनी बहू को लिवाने ससुराल के लिए चल पड़ा। 

उसकी ससुराल के बीच एक घना जंगल पड़ता था।

जब वह जंगल के बीच से जा रहा था तो उसने देखा कि रास्ते के किनारे पेड़ के गिरे पत्तों-फूलों आदि में आग लगी हुई है और पास ही पत्तों की जलती आग के बीच एक बिल है जिसमें से सांप बार-बार अपना सिर निकाल रहा है, पर आग की गरमी से निकल नहीं पा रहा था। 

बुढिया के बेटे को आते देख सांप जोर से चिल्लाकर बोला,

 “ऐ भाई! मझे इस आग से बाहर निकालो, तुम्हारा बड़ा एहसान मानूंगा।” 

रघुवीर ने कहा. “तुम तो सांप हो। 

तुम्हारा क्या भरोसा, तुम निकलने के बाद मुझे काट सकते हो।*

सांप ने कहा, 

“कैसी बातें करते हो, तुम मेरी जान बचाओगे और मैं तुम्हें काट लूंगा? 

ऐसी बात सोची भी नहीं जा सकती।” 

सांप के बार-बार अनुनय करने पर लड़के को दया आ गई और उसने लाठी की मदद से सांप को आग से निकाल दिया। 

सांप जैसे ही आग से बाहर हुआ, उसने लड़के से कहा, 

“अब मैं तुम्हें काटूंगा।”

रघुवीर हक्का-बक्का रह गया, थरथराते हुए उसने कहा, 

“लेकिन तुमने तो न काटने का पक्का वायदा किया था।” 

सांप ने हंसते हुए कहा, 

“अरे मूर्ख! यह-

कलियुग है। 

कहने और करने में जमीन आसमान का अंतर है। 

यहां भलाई का बदला बुराई से है। 

यहां युग धर्म है। 

मैं तुम्हें काट कर युग - धर्म जरूर निबाहूंगा।” 

लड़के ने कहा,

 “यदि तुम्हें काटना ही है तो काट लो, पर मेरी तसल्ली तो करवा दो कि कलियुग का यही धर्म है।”

सांप ने लड़के की बात मान ली। 

लड़का सांप के साथ जंगल चरती हुई एक गाय के पास गया और गाय को पूरी घटना सुनाकर बोला,

 “गाय माता ! 

अब तुम्हीं न्याय करो!” गाय बोली, "

सांप ठीक कह रहा है। 

मुझे ही देखो, घास खाकर दूध देती हूं। 

खेती के लिए बछड़े बैल देती हूं लेकिन मेरे बूढ़े होने पर यह आदमी मुझे कसाई के हवाले कर देता है।

यही इस युग का न्याय है।

” सांप ने कहा, "

अब तो तेरी तसल्ली हो गई?

” लड़का गिड़गिड़ाया, “

किसी एक से और बात कर लेने दो। 

अगर उसने भी यही कहा तो मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं।

” लड़के ने सामने एक पेड़ को अपनी सारी कहानी दुहराई तो पेड़ ने कहा, “

सांप ठीक कह रहा है। 

मैं आदमी को शीतल छाया और मीठे फल देता हूं..!

पर बदले में आदमी मुझे काटता है...!

आग में जलाता है। 

कलियुग का यही धर्म है।

” यह सुनकर लड़के ने सांप से कहा..!“

मैं तुम्हारे काटने का विरोध नहीं करूंगा।

लेकिन मेरी एक अंतिम इच्छा है..!

जब से मेरा विवाह हुआ है मैंने अपनी पत्नी का मुंह ठीक से नहीं देखा है। 

तुम मुझे एक मौका दे दो। 

मैं अपनी पत्नी को देखकर वापस आ जाऊंगा तब तुम मुझे काट लेना।

” सांप ने कहा, “मंजूर है...!

पर पत्नी से कोई बात न करना और 3 घण्टे के भीतर लौट आना।

” लड़का अपनी ससुराल पहुंचा। 

कुछ कदम दूर से ही उसने देखा...!

उसकी पत्नी दरवाजा साफ कर रही है। 

उसे देखकर उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे।

उसकी पत्नी उसे इस तरह देख अवाक रह गई।

वह कुछ पूछ पाती इसके पहले ही लड़का वापस चल दिया।

पत्नी ने सोचा जरूर कोई विपत्ति आई है। 

वह भी पीछे - पीछे चलकर सांप तक पहुंच गई।

*सांप ने फुफकारते हुए कहा...!

“मैंने तो तुम्हें पत्नी से बात करने से मना किया था। 

इसको लेकर क्यों आए हो?” 

इस पर उसकी पत्नी ने कहा...!

“इन्होंने मुझसे बात नहीं की। 

ये बिना कुछ बोले वापस चल दिए तो मैं इनके पीछे - पीछे चली आई हूं।

” लड़के ने कहा...!

“अब मैं तैयार हूं। 

युग धर्म का निर्वाह करो।” 

सांप लड़के को काटने को तैयार हुआ तभी उसकी पत्नी ने कहा...!

“थोड़ा रुक जाओ...!

तुम इन्हें काटने जा रहे हो। 

सिर्फ इतना बता दो, इनके बाद मैं अपना गुजारा कैसे करूंगी!

” सांप ने कहा...!

 “उसका इंतजाम है। 

इस बिल के सात फेरे करके इसे खोदोगी तो तुम्हें सोने से भरे हुए सात घड़े मिलेंगे, तुम्हारी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।” 

लड़के की पत्नी ने कहा...!

“मैं तुम्हारी बात पर कैसे विश्वास करूं। 

मेरी तसल्ली के लिए सात फेरे कर बिल खोद लेने दीजिए।” 

सांप लड़की की बात मान गया। 

लड़के की पत्नी बिल के फेरे लेने लगी। 

सातवां फेरा पूरा होते-होते उसने अपने पति के हाथ से लाठी छीनकर उसे सांप के सिर पर जोर से दे मारी।

सांप छटपटाने लगा। 

वह लड़की से बोला...!

तू तो बड़ी धोखेबाज निकली।

तब उसकी पत्नी ने कहा...!

“क्षमा करना नाग देवता। 

मैं तो आप ही की बात रख रही हूं। 

आपने कहा कि यहां भलाई का बदला बुराई है। 

हमें आपने इतना बड़ा खजाना बताया।

लेकिन हमें भी तो कलियुग का धर्म निबाहना पड़ा और आपके प्राण लेने पड़े।” 

सांप का निर्जीव शरीर एक ओर धराशायी हो गया। 

लड़का और उसकी पत्नी खजाना लेकर अपने गांव खुशी-खुशी लौट आए।      

बहुत बड़ी दौलत के मालिक होने के बावजूद भी यदि मन में कुछ पाने की चाह बाकी है ।

 तो समझ लेना वो अभी दरिद्र ही है ।

और कुछ पास में नहीं फिर भी जो अपनी मस्ती में झूम रहा है ।

उससे बढ़कर भी कोई दूसरा करोड़ पति नहीं हो सकता है।

सुदामा को गले लगाने के लिए आतुर श्री द्वारिकाधीश इस लिए भागकर नहीं गए ।

 कि सुदामा के पास कुछ नहीं है।

अपितु इस लिए गए कि सुदामा के मन में कुछ भी पाने की इच्छा अब शेष नहीं रह गयी थी।

इस लिए ही संतों ने कहा है कि जो कुछ नहीं माँगता उसको भगवान स्वयं को दे देते हैं। 

द्वारिकापुरी में आज सुदामा राजसिंहासन पर विराजमान हैं।

और कृष्ण समेत समस्त पटरानियाँ चरणों में बैठकर उनकी चरण सेवा कर रही हैं।

सुदामा अपने प्रभाव के कारण नहीं पूजे जा रहे हैं । 

अपितु अपने स्वभाव और कुछ भी न चाहने के भाव के कारण पूजे जा रहे हैं।

सुदामा की कुछ भी न पाने की इच्छा ने उन्हें द्वारिकापुरी का राजसिंहासन प्रदान कर दिया। 

मानो कि भगवान ये कहना चाह रहे हों । 

कि जिसकी अब और कोई इच्छा बाकी नहीं रही ।

वो मेरे ही समान मेरे बराबर में बैठने का अधिकारी बन जाता है !

श्रीमद भगवद्गीता के अनुसार चाणक्य नीति की तीन बाते।

तीन चीजे सोच समझ कर देना।

1जवाब,

2- सलाह 

3- उधार,

तीन चीजे सब को प्यारी होती है !

1- दौलत,

2- औरत,

3- औलाद,

तीन चीजे हमेशा दर्द देती है.!

1- धोखा,

2- गरीबी,

3- यादें,

तीन चीजे कभी मत करो!

1- घमंड,

2- अपमान,  

3-उम्मीद,

तीन चीजे चुराई नही जा सकती !

1- चरित्र 

2- ज्ञान,

3- विद्या,

तीन चीजे छोटी मत समझो !

1- कर्ज,

2-फर्ज,

3-मर्ज,

तीन चीजों को हमेशा महत्व दे!

1- परिवार 

2-रिश्तेदार, 

3-दोस्त

जय श्री कृष्ण !!
जय श्री राम.
🙏🙏🙏

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

।। श्री ऋग्वेद के अनुसार कौनसा तिलक किस दिन किस भगवान को लगाने का फल ।।

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

।। श्री ऋग्वेद के अनुसार कौनसा तिलक किस दिन किस भगवान को लगाने का फल ।।


श्री ऋग्वेद के अनुसार जानें, किस दिन किस‍ भगवान का कौनसा तिलक लगाएं ।


इस तरह तिलक लगाने से अदभुत चमात्‍कार होते हैं ।

अगर तिलक अनामिका अंगुली से लगाएं तो शांति मिलती है। 

मध्यमा अंगुली से आयु में बढ़ोत्तरी होती है ।

अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक माना गया है।

सनातन हिन्दू धर्म के वेदों की परंपराओं में सिर, मस्तक, गले, हृदय, दोनों बाजू, नाभि, पीठ, दोनों बगल आदि मिलाकर शरीर के कुल 12 स्थानों पर तिलक लगाने का विधान है।





माथे के ठीक बीच के हिस्से को ललाट बिंदु कहते हैं ।

यह भौहों का भी मध्य भाग है। 

तिलक हमेशा इसी स्थान पर धारण किया जाना चाहिए। 

ऐसा करना बहुत लाभदायक है क्योंकि सिंदूर उष्ण होता है। 

पूजा के समय तिलक लगाने का विशेष महत्व है और भगवान को स्नान करवाने के बाद उन्हें चन्दन और सुखड का तिलक किया जाता है।

पूजन करने वाला भी अपने मस्तक पर चंदन का तिलक लगाता है। 

यह सुगंधित होता है तथा इसका गुण शीतलता देने वाला होता है।

तिलक पांच प्रकार के होते हैं-

1- कुमकुम

2- केशर

3- चंदन

4- सुखड

5- भष्म

कुमकुम हल्दी चुना मिलकर बना होता है ।

जो हमारे आज्ञा चक्र की शुद्धि करते हुए ।

उसे केल्शियम देते हुए ज्ञान चक्र को प्रज्व्व्लित करता है।

केशर जिसका मस्तिष्क ठंडा/ शीतल होता है।

उसको केसर का तिलक प्रज्ज्वलित करता है।

चंदन और सुखड दिमाग को शीतलता प्रदान करते हुए ।

मानसिक शान्ति भी देता है।

भस्मी वैराग्य की अग्रसर करते हुए ।

मस्तष्क के रोम कूपों के विषाणुओं को भी नष्ट करता है।

जो भी व्यक्ति बिना तिलक लगाए भोर या संध्या का हवन करता है ।

उसे इसका फल नहीं प्राप्त होता।

ज्योतिष के अनुसार यदि तिलक धारण किया जाता है ।

तो सभी पाप नष्ट हो जाते है ।

सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग - अलग तिलक होते हैं। 

सुखड और चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है ।

व्यक्ति संकटों से बचता है ।

उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है ।

ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। 

यदि साप्ताहिक के वार अनुसार तिलक धारण किया जाए ।

तो उक्त वार से संबंधित ग्रहों को शुभ फल देने वाला बनाया जा सकता है।




RARE OCEANS Turmeric and Sandal Wood Rubbing Stone


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तिलक सप्ताह के किस दिन : -


सोमवार : 

सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है ।

तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं।

चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। 

मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। 

इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।

मंगलवार : 

मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। 

इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।

मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। 

इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। 

इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।

बुधवार : 

बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है।

वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।

इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। 

इस दिन सूखे सिंदूर ( जिसमें कोई तेल न मिला हो ) का तिलक लगाना चाहिए। 

इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।

गुरुवार : 

गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है।

बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। 

इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। 

इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। 

इस दिन सफेद सुखड या चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। 

हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। 

इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा।

जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।

शुक्रवार : 

शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। 

इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।

हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। 

दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। 

इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख - सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। 

इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।

शनिवार : 

शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। 

इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए। 

जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते।

दिन शुभ रहता है।

रविवार : 

रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। 

इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।

इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। 

भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।


तिलक लगाने का मंत्र !!


केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।

कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

किसी के माथे पर तिलक लगा देखकर मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है ।

कि आखिर टीका लगाने से फायदा क्या है? 

टीका लगाने के पीछे आध्यात्मिफक भावना के साथ - साथ दूसरे तरह के लाभ की कामना भी होती है।

आम तौर पर सुखड, चंदन, कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाने का विधान है। 

अगर कोई तिलक लगाने का लाभ तो लेना चाहता है। 

पर दूसरों को यह दिखाना नहीं चाहता, तो शास्त्रों में इसका भी उपाय बताया गया है।

कहा गया है कि ऐसी स्थिति में ललाट पर जल से तिलक लगा लेना चाहिए।

तिलक लगाने का लाभ

तिलक करने से व्यक्ति त्व प्रभावशाली हो जाता है। 

दरअसल, तिलक लगाने का मनोवैज्ञानिक असर होता है ।

क्योंकि इससे व्यक्तिञ के आत्मविश्वास और आत्मबल में भरपूर इजाफा होता है। 

ललाट पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मस्तक में तरावट आती है। 

लोग शांति व सुकून अनुभव करते हैं ।

यह कई तरह की मानसिक बीमारियों से बचाता है। 

दिमाग में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित तरीके से होता है ।

जिससे उदासी दूर होती है और मन में उत्साह जागता है ।

यह उत्साह लोगों को अच्छे कामों में लगाता है। 

इससे सिरदर्द की समस्या में कमी आती है। 

हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है। 

हल्दी में एंटी बैक्ट्रिवयल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार, चंदन का तिलक लगाने से मनुष्य के पापों का नाश होता है.। 

लोग कई तरह के संकट से बच जाते हैं। 

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है। 

माना जाता है कि सुखड और चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न - धन से भरा रहता है और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।

हर सुबह भगवान की पूजा के बाद नाभि पर लगाएं , यह चंदन सुखड के इत्र आर्थिक मानशिक और  सुख शान्ति बन सकता है :-

पूजा में सुगंधि का प्रयोग अवश्य किया जाता है। 

सुगंधि अर्थात खुशबू.... 

जो पूजा में चढ़ाए जाने वाले फूलों समेत धूपबत्ती आदि में भी होता है। 

खुशबू ताजगी का प्रतीक है और मन की प्रसन्नता देकर आपको ऊर्जा देती है। 

इस प्रकार आप खुशहाल मन से जो भी काम करते हैं वह अवश्य सफल होता है। 

शास्त्रों में इत्र के प्रयोग के बहुत मायने हैं। 

यहां हम आपको इत्र का एक ऐसा प्रयोग बता रहे हैं : -

जिसे अगर हर सुबह पूजा के बाद किया जाए तो आपके घर मे सुख शांति की किस्मत आ शक्ति है।

धन पाने से लेकर, सामाज में सम्मान - प्रसिद्धि पाने, नौकरी में तरक्की पाने, भाग्य जगाने के लिए यह अत्यंत कारगर है।


कैसे करें प्रयोग : -


इसके लिए आपको अपनी दिनचर्या में किसी भी प्रकार से बदलाव करने की आवश्यकता नहीं है ।

लेकिन रोजाना नहाने के बाद जिस भी प्रकार से पूजा या भगवान का ध्यान करते हैं, करें। 

इसके पश्चात् किसी भी अंगुली का प्रयोग करते हुए गुलाब या सुखड या चंदन के इत्र की थोड़ी सी मात्रा अपनी नाभि पर लगाएं।

आप किसी भी खुशबू का इत्र प्रयोग कर सकते हैं।

लेकिन दो खास मनोकामनाओं के लिए इन दो खास खुशबूओं का प्रयोग करना अधिक लाभकारी होगा।

धन संबंधी – 

गुलाब मां लक्ष्मी को बेहद प्रिय माना जाता है।
 
इस लिए आर्थिक तंगी दूर करनी हो या धन लाभ चाहिए तो ऐसे में गुलाब का इत्र प्रयोग करें।

सम्मान-प्रसिद्धि – 

इसी प्रकार अगर नौकरी में पदोन्नति चाहिए या समाज में आपको अपनी खास पहचान बनाने की चाह हो ।

सम्मान और प्रसिद्धि चाहते हों तो ऐसे में चंदन की खुशबू वाला इत्र प्रयोग करें।

अपने शरीर के इस अंग पर लगा लें परफ्यूम, आर्थिक मानसिक कष्ट दूर हो जाता है : -


आजकल शीतकाल शर्दी यो की मौसम चल रहा है ।

ऐसे में शीतकालीन शर्दी के मौषम वीक में कई दिन होते हैं ।

जो अलग अलग होते हैं जैसे रोज नवरात्रियों , दीपावली , लाभ पंचमी , राधिका अष्टमी , तुलशी विवाह , वसंत पंचमी महा नवरात्री , महा शिवरात्रि ,  और होलिका दहन तक शर्दी के मौषम शीतकालीन दिन रहता है ।
 
ऐसे में आज दुनियाभर में अलग अलग दिन में परफ्यूम दिन मनाया जा रहा है ।

आप सभी को बता दें कि आज सभी कपल एक दूजे को परफ्यूम गिफ्ट करते नजर आएँगे। 

ऐसे में आज हम आपको ज्योतिष के अनुसार परफ्यूम का एक ऐसा उपयोग बताने जा रहे हैं।

जिसे करने के बाद आप अपने धर में सुख शांति पूर्ण जीवन बना सकते हैं ।

जी हाँ, हर व्यक्ति दुनिया में धन, एश्वर्य और यश ही भगवान के पास मांग रहे है उनका नाम ही सुख सुख शांति है ।

तो अगर आप भी यह चाहते हैं ।

तो आज हम आपको बताने जा आरहे हैं ।

कि आपको शरीर के किस अंग पर परफ्यूम लगाने से यह सुख शांति संपति मिल सकती है। 

जी हाँ, आइए जानते हैं : -

1. कहते हैं इत्र को नाभि पर लगाने से व्यक्ति को यह तीनो चीज़े मिल जाती है।

इस कारण से हर रोज घर निकलने से पहले अपने नाभि पर इत्र लगा लेने से कभी भी धन और एश्वर्य मान सन्मान की कमी नहीं होती है और घर में खूब धन आता है ।

2. कहा जाता है सुखड चंदन, गुलाब और मोगरे से बने इत्र को अपने नाभि पर लगाने से सबसे ज्यादा फायदा मिलता है ।

3. आप सभी को बता दें कि सुखड चंदन और मोगरे का इत्र नाभि पर लगाने से अनिद्रा और गुस्से से छुटकारा मिल जाता है ।

इस वजह से जो इंसान ज्यादा गुस्सा करता है। 

उसे अपनी नाभि पर चंदन या मोगरे का इत्र लगाना चाहिए।

4. आप सभी को बता दें कि माईग्रेन या फिर सिर दर्द से परेशान लोगों के लिए भी यह बहुत असरदार उपाय है ।

अगर वह अपनी नाभि पर चंदन या मोगरे का इत्र लगाते हैं ।

तो उनके माइग्रेन और सिर दर्द की समस्या खत्म हो जाती है वह भी जड़ से।

         !!!!! शुभमस्तु !!!

🙏हर हर महादेव हर...!!
जय माँ अंबे ...!!!🙏🙏

पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN: 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
( 2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science ) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
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नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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