https://www.profitablecpmrate.com/gtfhp9z6u?key=af9a967ab51882fa8e8eec44994969ec 3. आध्यात्मिकता का नशा की संगत भाग 2: कामाख्या तंत्र योनि साधना
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कामाख्या तंत्र योनि साधना , पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक :

सभी ज्योतिष मित्रों को मेरा निवेदन हे आप मेरा दिया हुवा लेखो की कोपी ना करे में किसी के लेखो की कोपी नहीं करता,  किसी ने किसी का लेखो की कोपी किया हो तो वाही विद्या आगे बठाने की नही हे कोपी करने से आप को ज्ञ्नान नही मिल्त्ता भाई और आगे भी नही बढ़ता , आप आपके महेनत से तयार होने से बहुत आगे बठा जाता हे धन्यवाद ........
जय द्वारकाधीश

कामाख्या तंत्र योनि साधना , पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक :

कामाख्या तंत्र योनि साधना...!

कामाख्या - मन्त्र का महत्त्व ‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार प्रत्येक प्रकार की ‘सिद्धि ’ के लिये तथा‘विघ्न - निवारण’ हेतु ‘कामाख्या - मन्त्र’ का जाप करना आवश्क होता है ।

शक्ति के उपासकों के लिए ‘कामाख्या - मन्त्र’ की साधना अत्यन्त आवश्यक है। 





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यह ‘कामाख्या - मन्त्र’ कल्प - वृक्ष के समान है। 

सभी साधकों को एक, दो या चार बार इसका साधना एक वर्ष मे अवश्य करना चाहिए। 

इस मन्त्र की साधना में चक्रादि - शोधन या कलादि - शोधन की आवश्यकता नहीं है। 

इसकी साधना से सभी विघ्न दूर होते हैं और शीघ्र ही सिद्धि प्राप्तहोती है।

कामाख्या - मन्त्र’ का विनियोग :

ऋष्यादि - न्यास उक्त ‘कामाख्या - मन्त्र’ के विनियोग, ऋष्यादि - न्यासादि इस प्रकार हैं-

।। विनियोग ।।

ॐ अस्य कामाख्या-मन्त्रस्य श्रीअक्षोभ्यऋषि:, अनुष्टुप् छन्द: , श्रीकामाख्या देवता, सर्व- सिद्धि-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोग:।

।। ऋष्यादि-न्यास ।।

श्रीअक्षोभ्य-ऋषये नम: शिरसि,अनुष्टुप्-छन्दसे नम: मुखे,श्रीकामाख्या-देवतायै नम: हृदि,सर्व - सिद्धि - प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नम: सर्वाङ्गे।

।। कर-न्यास ।।

त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:,त्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा,त्रूं मध्यमाभ्यां वषट्,त्रैं अनामिकाभ्यां हुम्,त्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्,त्र: करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

।। अङ्ग-न्यास ।।त्रां हृदयाय नम:,त्रीं शिरसे स्वाहा,त्रूं शिखायै वषट्,त्रैं कवचाय हुम्,त्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्,त्र: अस्त्राय फट्।







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♦कामाख्या देवी का ध्यान♦

उक्त प्रकार न्यासादि करने के बाद भगवती कामाख्या का निम्न प्रकार से ध्यान करना चाहिए - 
भगवती कामाख्या लाल वस्त्र-धारिणी, द्वि-भूजा, सिन्दूर-तिलक लगाए हैं।

भगवती कामाख्या निर्मल चन्द्र के समान उज्ज्वल एवं कमल के समान सुन्दर मुखवाली हैं।

भगवती कामाख्या स्वर्णादि के बने मणि - माणिक्य से जटित आभूषणों से शोभित हैं। 

भगवती कामाख्या विविध रत्नों से शोभित सिंहासन पर बैठी हुई हैं। 

भगवती कामाख्या मन्द-मन्द मुस्करा रही हैं।

भगवती कामाख्या उन्नत पयोधरोंवाली हैं। 

कृष्ण-वर्णा भगवती कामाख्या के बड़े-बड़े नेत्र हैं। 

भगवती कामाख्या विद्याओं द्वारा घिरी हुई हैं। 

डाकिनी-योगिनी द्वारा शोभायमान हैं।

सुन्दर स्त्रियों से विभूषित हैं। 

विविध सुगन्धों से सु-वासित हैं। 

हाथों में ताम्बूल लिए नायिकाओं द्वारा सु - शोभिता हैं।

भगवती कामाख्या समस्त सिंह - समूहों द्वारा वन्दिता हैं। 

भगवती कामाख्या त्रि - नेत्रा हैं।

भगवती के अमृत-मय वचनों को सुनने के लिए उत्सुका सरस्वती और लक्ष्मी से युक्ता देवी कामाख्या समस्त गुणों से सम्पन्ना,असीम दया-मयी एवं मङ्गल- रूपिणी हैं।

उक्त प्रकार से ध्यान कर कामाख्या देवीकी पूजा कर कामाख्या मन्त्र का ‘जप’ करना चाहिए।

’जप’ के बाद निम्न प्रकार से ‘प्रार्थना’ करनी चाहिए।





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♦कामाख्या प्रार्थना♦

कामाख्ये काम-सम्पन्ने, कामेश्वरि! हर-प्रिये!कामनां देहि मे नित्यं, कामेश्वरि! 
नमोऽस्तु ते।।

कामदे काम-रूपस्थे, सुभगे सुर-सेविते!करोमि दर्शनं देव्या:, सर्व-कामार्थ-सिद्धये।।

अर्थात् हे कामाख्या देवि! कामना पूर्ण करनेवाली,कामना की अधिष्ठात्री, शिवकी प्रिये!

मुझे सदा शुभ कामनाएँ दो औरमेरी कामनाओं को सिद्ध करो। 

हे कामनादेनेवाली, कामना के रूप में ही स्थितरहनेवाली, सुन्दरी और देव-गणों से सेवितादेवि! सभी कामनाओं की सिद्धि के लिए मैंआपके दर्शन करता हूँ।।

कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र ‘कामाख्या तन्त्र’ के चतुर्थ पटल में कामाख्या देवी का २२ अक्षर का मन्त्र उल्लिखित है-






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♦कामाख्या मंत्र:♦

ll त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा ll

उक्त मन्त्र महा-पापों को नष्ट करनेवाला, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देनेवाला है। 

इस के ‘जप’ से साधक साक्षात् देवी-स्वरूप बन जाता है। 

इस मन्त्र का स्मरण करते हीसभी विघ्न नष्ट हो जाते हैं।

इस मन्त्र के ऋष्यादि ‘त्र्यक्षर मन्त्र’ ( त्रीं त्रीं त्रीं ) के समान हैं।’

♦ध्यान♦

इस प्रकार किया जाता है मैं योनि - रूपा भवानी का ध्यान करता हूँ, जो कलि - काल के पापों का नाश करती हैं और समस्त भोग - विलास के उल्लास से पूर्ण करती हैं।

मैं अत्यन्त सुन्दर केशवाली, हँस - मुखी, त्रि - नेत्रा, सुन्दर कान्तिवाली,रेशमी वस्त्रों से प्रकाशमाना, अभय और वर - मुद्राओंसे युक्त, रत्न - जटित आभूषणों से भव्य, देव - वृक्ष केनीचे पीठ पर रत्न - जटित सिंहासन पर विराजमाना, ब्रह्मा - विष्णु - महेश द्वारा वन्दिता, बुद्धि - वृद्धि - स्वरूपा, काम - देव के मनो - मोहक बाण के समान अत्यन्तकमनीया, सभी कामनाओं को पूर्णकरनेवाली भवानी का भजन करता हूँ।






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♦शक्ति’ का महत्त्व♦

‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार साधना और जपादि का मूल ‘शक्ति’ है। 

‘शक्ति’ ही जीवन का मूल है और वही ‘इह-लोक’ एवं ‘परलोक’ का मूल है। 

धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष का मूल भी ‘शक्ति’ ही है।

‘शक्ति’ को जो कुछ दिया जाता है, वह देवी को अर्पीत होता है। 

जिन उद्देश्यों से दिया जाताहै, वे सभी सफल होते हैं। 

कलि - युग में शक्ति की पुजा बहूत जरूरी है ।

♦गुरु-तत्त्व♦

‘कामाख्या तन्त्र’ के अनुसार सदा-शिव ही गुरुदेव हैं। 

महा-काली से युक्त वे देव सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं। 

मनुष्य-गुरु ‘गुरुदेव’ नहीं हैं, उनकी भावना मात्र हैं। 

मन्त्र देनेवाला अपने शिरस्थ कमल में गुरु का जो ध्यान करता है, उसी ध्यान को वह शिष्य के शिर में उपदिष्ट करता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मनुष्य में ‘गुरुदेव’ की भावना रखना मूर्खता है। 

मनुष्य-‘गुरु’मात्र मार्ग दिखानेवाला है, स्वयं ‘गुरु-देव’ नहीं हैं।

#नमामीशमीशान #कामाख्या

पुरुषोत्तम मास विशेष श्लोक : -

गोवर्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरुपिणम |

गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिका प्रियं| |

हे भगवान ! हे गिरिराज धर ! गोवर्धन को अपने हाथ में धारण करने वाले हे हरि ! 

हमारे विश्वास और भक्ति को भी तू ही धारण करना | 

प्रभु आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भक्ति बनी रहेगी, आपकी कृपा से ही मेरे जीवन में भी विश्वास रूपी गोवर्धन मेरी रक्षा करता रहेगा |

हे गोवर्धनधारी आपको मेरा प्रणाम है आप समर्थ होते हुए भी साधारण बालक की तरह लीला करते थे | 





गोकुल में आपके कारण सदैव उत्सव छाया रहता था मेरे ह्रदय में भी हमेशा उत्सव छाया रहे साधना में, सेवा - सुमिरन में मेरा उसाह कभी कम न हो | 

मै जप, साधना सेवा,करते हुए कभी थकूँ नहीं | 

मेरी इन्द्रियों में संसार का आकर्षण न हो, मैं आँख से तुझे ही देखने कि इच्छा रखूं, कानों से तेरी वाणी सुनने की इच्छा रखूं, जीभ के द्वारा दिया हुआ नाम जपने की इच्छा रखूं ! 

हे गोविन्द ! 

आप गोपियों के प्यारे हो ! 

ऐसी कृपा करो, ऐसी सदबुद्धि दो कि मेरी इन्द्रियां आपको ही चाहे ! 

मेरी इन्द्रियरूपी गोपीयों में संसार की चाह न हो, आपकी ही चाह हो !





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पंडित राज्यगुरु प्रभुलाल पी. वोरिया क्षत्रिय राजपूत जड़ेजा कुल गुर:-
PROFESSIONAL ASTROLOGER EXPERT IN:- 
-: 1987 YEARS ASTROLOGY EXPERIENCE :-
(2 Gold Medalist in Astrology & Vastu Science) 
" Opp. Shri Dhanlakshmi Strits , Marwar Strits, RAMESHWARM - 623526 ( TAMILANADU )
सेल नंबर: . + 91- 7010668409 / + 91- 7598240825 WHATSAPP नंबर : + 91 7598240825 ( तमिलनाडु )
Skype : astrologer85
Email: prabhurajyguru@gmail.com
आप इसी नंबर पर संपर्क/सन्देश करें...धन्यवाद.. 
नोट ये मेरा शोख नही हे मेरा जॉब हे कृप्या आप मुक्त सेवा के लिए कष्ट ना दे .....
जय द्वारकाधीश....
जय जय परशुरामजी...🙏🙏🙏

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